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चंगेज खान का Cursed कब्र के ठिकाने पर रहस्य लगभग पूरी दुनिया जीत लिया कहते है अगर चंगेज़ ख़ान की क़ब्र को खोदा तो दुनिया तबाह हो जाएगी।

चंगेज खान, एक ऐसा नेता, जिसने
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में अपनी मृत्यु के बाद प्रशांत महासागर से यूक्रेन तक फैले मंगोल साम्राज्य के संस्थापक के रूप में अपना नाम इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज कर लिया।

 

आज तक कई सारे प्रोजेक्ट चलाए गए, कई कोशिशें की गई, लेकिन किसी को सफलता नहीं मिली। इधर मंगाोलिया के लोगों का ऐसा मानना है कि गलती से अगर चंगेज खान की कब्र किसी के हाथ लग गई या किसी ने उस ताबूत को खोला तो दुनिया में तबाही जाएगी।

चंगेज़ खान अपनी पहचान छुपाना चाहते थे इसीलिए उसने अपनी वसीयत में लिखा था कि उसके मरने के बाद किसी गुमनाम जगह पर दफनाया जाए। कहते हैं कि चंगेज़ खान की मौत के बाद उसकी कब्र के ऊपर एक हज़ार घोड़े दौड़ाए गये थे जिससे किसी को भी उसकी कब्र के बारे में पता ना लग सके।

 

मंगोलिया के रहने वाले चंगेज़ ख़ान की मौत के बाद आठ सदियां बीत चुकी हैं. इसे लेकर तमाम मिशन चलाए गए, लेकिन उसकी क़ब्र का पता नहीं चला। नेशनल जियोग्राफ़िक ने तो सैटेलाइट के ज़रिए उसकी क़ब्र तलाशने की कोशिश की थी। इसे वैली ऑफ़ ख़ान प्रोजेक्ट का नाम दिया गया था।

 

दिलचस्प बात है कि चंगेज़ ख़ान की क़ब्र तलाशने में विदेशी लोगों की ही दिलचस्पी थी। मंगोलिया के लोग चंगेज़ ख़ान की क़ब्र का पता लगाना नहीं चाहते। इसकी बड़ी वजह एक डर भी है।

 

कहा
जाता रहा है कि अगर चंगेज़ ख़ान की क़ब्र को खोदा गया तो दुनिया तबाह हो जाएगी।

 

एक रिपोर्ट के अनुसार, कोई नहीं जानता कि इस खान को कहां दफनाया गया है और उसकी आरामगाह कैसी दिखती है, इसके बारे में कोई नहीं जानता।

कई शताब्दियों पहले चंगेज खान के नाम से जाने जाने वाले एक व्यक्ति ने मध्य एशिया और चीन के एक बड़े हिस्से को अपने अधीन कर लिया और तेजी से सत्ता में पहुंचा। हालाँकि, आधुनिक मनुष्य चंगेज खान के इतिहास से काफी परिचित है, लेकिन उसके जीवन के सबसे दिलचस्प हिस्सेउसकी मृत्युके बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है! तो उनकी मृत्यु का कारण दस्तावेजित किया गया है, ही उनके दफनाने का स्थान। आगे, जानने योग्य कुछ दिलचस्प बातें।

 

चंगेज़ ख़ान की अज्ञात कब्र के बारे में आश्चर्यजनक तथ्य: आख़िर चंगेज़ ख़ान की कब्र क्यों नहीं मिलती?

 

      
ऐसा माना जाता है कि चंगेज खान ने अपने आदमियों से कहा था कि जब वे जीवित थे तो उन्हें उनकी 6 बिल्लियों के साथ दफनाया जाए ताकि उन्हें जीवन के बाद वांछित स्थान पर उनका मार्गदर्शन मिल सके।

 

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उन्होंने अपने आदमियों से स्पष्ट रूप से कहा कि वे उनकी कब्र पर कोई निशान लगाए बिना उन्हें दफना दें।

 

कई लोगों का मानना है कि उनके शव को मंगोलिया में ओनोन नदी के पास दफनाया गया था।

 

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एक अन्य किंवदंती यह है कि चंगेज खान के अंतिम संस्कार में कब्र के सटीक स्थान को छिपाने के लिए किसी भी इंसान या चीज़ को मिटा दिया गया था।

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मकबरा बनते ही इसके निर्माण में लगे सभी राजमिस्त्रियों की हत्या कर दी गई और उसके बाद उन्हें मारने वाले सैनिकों को भी मार डाला गया।

 

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चंगेज खान के सम्मान में एक स्मारक के रूप में एक मकबरा बनाया गया था, लेकिन इसे उसकी कब्र के रूप में गलत नहीं समझा जाएगा।

 

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लोककथाओं में वर्णन किया गया है कि उसके कई घोड़ों को चंगेज खान की कब्र के पास दौड़ाया गया था और इसे सार्वजनिक दृश्य से ढकने के लिए साइट पर कई पेड़ लगाए गए थे।

 

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कुछ लोगों का कहना है कि खान के आदमियों ने नदी की दिशा को स्थायी रूप से खोजे जाने से बचाने के लिए उसकी कब्र तक बदल दिया था।

 

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किंवदंती है कि युआन राजवंश ने मंगोलों के प्रमुख खान शासकों को चंगेज खान की कब्र के करीब दफनाने की परंपरा का पालन किया था। यह स्थान चीन के उस हिस्से में है जहां मंगोलों का शासन था। हालाँकि इस जगह को चीनी भाषा में क्विनियन वैली के नाम से जाना जाता है, लेकिन इसका सटीक स्थान रहस्य में डूबा हुआ है।

 

इतिहासकारों, पुरातत्वविदों और जनजाति के अन्य लोगों द्वारा सदियों से चंगेज खान की कब्र की खोज की जा रही है। हालाँकि, ‘कब्रअभी भी खोजकर्ताओं से दूर है। 

वास्तव में मंगोलिया में कई लोग चाहते हैं कि यह मिले क्योंकि महान खान आज देश में एक प्रतिष्ठित धार्मिक व्यक्ति हैं।

 

1227
में जब खान की मृत्यु हुई, तब वह 67 वर्ष के थे और आज के उत्तरपश्चिमी चीन में एक समूह तांगुट्स के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व कर रहे थे।
चंगेज खान: मैन हू कॉन्क्वेर्ड वर्ल्ड
पुस्तक लिखने वाले इतिहासकार फ्रैंक मैकलिन ने कहा, जगह के स्थान को ध्यान में रखते हुए, सैनिकों के लिए शव को मंगोलिया वापस ले जाना बेहद मुश्किल होता।

Mongol Empire

अपनी मातृभूमि से 500 किलोमीटर दूर तैनात,
उस काल के मंगोलों के पास शव को लेप लगाने और उसे वापस लेने के साधन और ज्ञान नहीं थे। शव के सड़ने का जोखिम उठाते हुए, वे उसे वहीं दफनाने के लिए मजबूर हुए होंगे। मैकलिन को लगता है कि खान के अवशेष और कब्र उत्तरपश्चिमी चीन के ऑर्डोस क्षेत्र में हैं।

 

चंगेज़ ख़ान के ख़तरनाक रथ पर सवार मंगोल मौत और तबाही के हरकारे साबित हुए और देखते ही देखते शहर, इलाक़े और देश उनके आगे झुकते चले गए.

 

महज़ कुछ दशकों के अंदर ख़ून की होली खेलते, खोपड़ियों की मीनार खड़ी करते, हँसतेबसते शहरों की राख उड़ाते चंगेज़ ख़ान के जनरल बीजिंग से मॉस्को तक फैली सल्तनत के मालिक बन गए.

 

चंगेज़ खान अपनी पहचान छुपाना चाहते थे इसीलिए उसने अपनी वसीयत में लिखा था कि उसके मरने के बाद किसी गुमनाम जगह पर दफनाया जाए। कहते हैं कि चंगेज़ खान की मौत के बाद उसकी कब्र के ऊपर एक हज़ार घोड़े दौड़ाए गये थे जिससे किसी को भी उसकी कब्र के बारे में पता ना लग सके।

 

मंगोलिया के रहने वाले चंगेज़ ख़ान की मौत के बाद आठ सदियां बीत चुकी हैं. इसे लेकर तमाम मिशन चलाए गए, लेकिन उसकी क़ब्र का पता नहीं चला। नेशनल जियोग्राफ़िक ने तो सैटेलाइट के ज़रिए उसकी क़ब्र तलाशने की कोशिश की थी। इसे वैली ऑफ़ ख़ान प्रोजेक्ट का नाम दिया गया था।

 

दिलचस्प बात है कि चंगेज़ ख़ान की क़ब्र तलाशने में विदेशी लोगों की ही दिलचस्पी थी। मंगोलिया के लोग चंगेज़ ख़ान की क़ब्र का पता लगाना नहीं चाहते। इसकी बड़ी वजह एक डर भी है। कहा जाता रहा है कि अगर चंगेज़ ख़ान की क़ब्र को खोदा गया तो दुनिया तबाह हो जाएगी।

 

मंगोल सल्तनत तीन करोड़ वर्ग किलोमीटर पर फैली हुई थी. आज उस इलाक़े की कुल आबादी में तीन करोड़ लोग हैं.

 

लेकिन चंगेज़ ख़ान की कामयाबियां सिर्फ़ जंग तक सीमित नहीं थीं. एक और मैदान में भी उनकी जीत उतनी ही हैरतअंगेज़ है.

 

चंद साल पहले एक आनुवांशिक अनुसंधान से पता चला कि पूर्व मंगोलियाई साम्राज्य की सीमा में रहने वाले आठ फ़ीसद के क़रीब पुरुषों के वाई क्रोमोज़ोम के अंदर एक ऐसा निशान मौजूद है जिससे पता चलता है कि वह मंगोलियाई शासक के ख़ानदान से संबंध रखते हैं.

 

इस अनुसंधान से ये नतीजा निकलता है कि दुनिया में तक़रीबन एक करोड़ 60 लाख पुरुष यानी दुनिया के पुरुषों की कुल संख्या का 0.5 फ़ीसद हिस्सा चंगेज़ ख़ान से संबंध रखता है. 

पाकिस्तान में ऐसा ही ख़ास निशान हज़ारा क़बीले के लोगों के डीएनए में पाया जाता है जो वैसे भी ख़ुद को मंगोल कहते हैं. इसके अलावा मुग़ल, चुग़ताई और मिर्ज़ा नाम वाले लोग भी अपने आपको मंगोल नस्ल का बताते हैं.

 

एक शख़्स की इतनी औलादें कैसे?

अनुवांशिक अनुसंधान अपनी जगह है, लेकिन इस बात के ऐतिहासिक सबूत भी पाए जाते हैं.

 

चंगेज़ ख़ान ने ख़ुद दर्जनों शादियां कीं और उनके बेटों की तादाद 200 बताई जाती है. फिर उनमें से कई बेटों ने आगे जाकर हुकूमतें कायम कीं और साथ ही साथ विशाल हरम रखे जहां उनके बड़ी तादाद में बेटे पैदा हुए.

मशहूर इतिहासकार अता मलिक जुवायनी अपनी किताबतारीख़जहांगुशामें चंगेज़ ख़ान की मौत के सिर्फ़ 33 साल बाद लिखते हैं,
उस वक़्त के उनके ख़ानदान के 20 हज़ार लोग ऐशो आराम की ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं.

 

इस मौक़े पर एक और अनोखी घटना हुई जब चंगेज़ ख़ान की उम्र 60 साल से ऊपर हो गई तो उन्होंने अपने शिविर में अपनी पहली बीवी के गर्भ से पैदा हुए चार बेटों जोची, ओग़दाई, चुग़ताई और तोली को बुलवाया और ख़ास बैठक की, इसमें उनके उत्तराधिकारी के नाम का फ़ैसला होना था.

 

चंगेज़ ख़ान ने इस बैठक की शुरुआत में कहा,
अगर मेरे सब बेटे सुल्तान बनना चाहें और एकदूसरे के मातहत काम करने से इनकार कर दें तो फिर क्या ये वही बात नहीं होगी जो पुरानी कहानियों के दो सांपों के बारे में कही जाती है जिसमें से एक के कई सिर और एक दुम और दूसरे का एक सिर और कई दुमें थीं?”

चंगेज़ ख़ान ने कहानी सुनाई कि जब कई सिरों वाले सांप को भूख लगती थी और वह शिकार के लिए निकलता था तो उसके कई सिर आपस में एकराय नहीं हो पाते थे कि किस तरफ़ जाना है. आख़िर कई सिरों वाला सांप भूख से मर गया जबकि कई दुमों वाला आराम से ज़िंदगी गुज़ारता रहा.

 

उसके बाद चंगेज़ ने अपने सबसे बड़े बेटे जोची ख़ान को बोलने के लिए बुलाया. इसके मुताबिक़ पहले बोलने का हक़ देने का मतलब ये था कि बाक़ी भाई जोची की सत्ता क़बूल कर लें.

 

ये बात दूसरे नंबर वाले बेटे चुग़ताई को हज़म नहीं हो सकी. वह उठ खड़ा हुआ और अपने पिता से कहा, “क्या इसका मतलब है कि आप जोची को अपना उत्तराधिकारी बना रहे हैं? हम किसी नाजायज़ औलाद को अपना प्रमुख कैसे मान सकते हैं?”

 

आख़िर चंगेज़ ख़ान की कब्र क्यों नहीं मिलती?

 

चुग़ताई का इशारा 40 साल पुरानी उस घटना की ओर था जब चंगेज़ की पहली पत्नी बोरता ख़ातून को चंगेज़ के विरोधी क़बीले ने अग़वा कर लिया था.

 

बोरता
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में ओलखोंद क़बीले में पैदा हुई थीं जो तैमूजिन (चंगेज़ ख़ान का असली नाम) के बोरजिगन क़बीले का सहयोगी था.

उन दोनों की बचपन ही में मंगनी हो गई थी, जबकि शादी उस वक़्त हुई जब बोरता की उम्र 17 और चंगेज़ की उम्र 16 बरस थी. बोरता को फ़र का कोट बतौर दहेज़ दिया गया.

 

शादी के चंद ही दिन बाद विरोधी क़बीले ने कैंप पर धावा बोल दिया. तैमूजिन अपने छह छोटे भाइयों और मां समेत फ़रार होने में कामयाब हो गए, लेकिन उसकी दुल्हन पीछे ही रह गई.

 

कहानी कुछ यूं है कि तैमूजिन की मां एक विरोधी क़बीले से संबंध रखती थी और उसे तैमूजिन के पिता ने अग़वा करके अपनी बीवी बना लिया था. वह क़बीला इस बात को बरसों बाद भी भुला नहीं पाया था और वह बोरता को उठाकर तैमूजिन की मां के बदले लेना चाहता था.

 

बोरता एक बैलगाड़ी में छिप गई, लेकिन उसे विरोधी क़बीले ने ढूंढ निकाला और घोड़े पर डालकर साथ ले गए.

तैमूजिन ने अपनी दुल्हन को खोजने की कोशिश जारी रखी. वह ख़ानाबदोश मरकद क़बीला था जो एशिया के हज़ारों मील के क्षेत्र में फैले मैदानों में जाता था और वह जहांजहां जाता था तैमूजिन कुछ फ़ासले से उनके पीछे होता था. इसी दौरान उसने इधरउधर से साथी भी इकट्ठा करना शुरू कर दिया.

 

उस दौरान तैमूजिन कहता था, “मरकदों ने सिर्फ़ मेरा शिविर ही सूना नहीं किया बल्कि सीना चीरकर मेरा दिल भी निकाल ले गए हैं.”

 

आख़िरकार जब मरकद क़बीला 400
किलोमीटर दूर साइबेरिया की बैकाल झील के क़रीब पहुंचा तो तैमूजिन ने अपने दो साथियों के साथ छापा मारकर बोरता को दुश्मनों से छुड़ा लिया.

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस घटना का चंगेज़ ख़ान की ज़िंदगी में बड़ा महत्व है, क्योंकि इसने उन्हें उस रास्ते पर डाल दिया जिस पर आगे चलकर उन्होंने दुनिया के बड़े हिस्से पर राज किया.

 

बोरता को छुड़ातेछुड़ाते आठ महीने गुज़र चुके थे और उनकी वापसी के कुछ ही अरसे के बाद जोची का जन्म हुआ.

 

उस समय भी कई बार कानाफूसियां हुईं, लेकिन चंगेज़ ने हमेशा जोची को अपना बेटा ही माना और यही वजह है कि अब वह अपनी ज़िदंगी के आख़िरी दौर में उसी को उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे.

 

लेकिन उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि 40 बरस बाद यही घटना उनके गले की हड्डी बन जाएगी और उनके अपने बेटे उनके सामने एक बेटे की पहचान को लेकर उन्हें दुविधा में डाल देंगे.

 

भाइयों में लड़ाई

चुग़ताई ने जब जोची पर आरोप लगाया तो जोची चुप बैठ सका. उसने उठकर चुग़ताई को थप्पड़ दे मारा और दोनों भाइयों में हाथापाई हो गई. दरबारियों ने बड़ी मुश्किल से दोनों को छुड़ाया.

चंगेज़ ख़ान को अंदाज़ा हो गया कि उनके मरने के बाद तीनों छोटे बेटे कभी भी जोची को बतौर राजा स्वीकार नहीं कर सकेंगे और आपस में लड़कर उसकी सल्तनत को तबाह कर देंगे.

 

अब चुग़ताई ने एक प्रस्ताव पेश किया जिसको छोटे भाइयों ने तुरंत समर्थन दे दिया. उसने बीच का रास्ता पेश किया कि वह, जोची बल्कि तीसरे नंबर वाले भाई ओग़दाई को बादशाह बना दिया जाए.

 

चंगेज़ ख़ान को चोट तो गहरी लगी थी, लेकिन कोई और चारा नहीं था. उन्होंने कहा,
धरती मां व्यापक है और इसकी नदियां और झीलें बेशुमार हैं. एक दूसरे से दूरदूर तंबू स्थापित करें और अपनीअपनी सल्तनतों पर राज करें.”

 

ये इतिहास की अजीब विडंबना है कि आज जिस शख़्स की औलाद करोड़ों की संख्या में बताई जा रही है, उसके अपने बेटों ने उसके मुंह पर उसके उत्तराधिकारी को उसका बेटा मानने से इनकार कर दिया था.

 

18 अगस्त
1227
को आख़िरी सांसें लेते वक़्त शायद चंगेज़ ख़ान को सबसे ज़्यादा दुख इसी बात का रहा होगा. मरने से पहले उसका आख़िरी बयान था, ‘मैं पूरी दुनिया फतह करना चाहता था. लेकिन एक उम्र इसके लिए बहुत कम है

The End

 

 

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Engr. Maqbool Akram

Engr Maqbool Akram is M.Tech (Mechanical Engineering) from A.M.U.Aligarh, is not only a professional Engineer. He is a Blogger too. His blogs are not for tired minds it is for those who believe that life is for personal growth, to create and to find yourself. There is so much that we haven’t done… so many things that we haven’t yet tried…so many places we haven’t been to…so many arts we haven’t learnt…so many books, which haven’t read.. Our many dreams are still un interpreted…The list is endless and can go on… These Blogs are antidotes for poisonous attitude of life. It for those who love to read stories and poems of world class literature: Prem Chandra, Manto to Anton Chekhov. Ghalib to john Keats, love to travel and adventure. Like to read less talked pages of World History, and romancing Filmi Dunya and many more.
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