Blogs of Engr. Maqbool Akram

Blogs of Engr. Maqbool Akram

Menu
  • Home
  • Stories
  • Poems & Poets
  • History
  • Traveloge
  • Others
  • About us
Home Uncategorized

परवीन शाकिर छोटी उम्र बड़ी जिंदगी वो शायरा जिनके शेरों में धड़कता है आधुनिक नारी का दिल- दिल को उस राह पे चलना ही नहीं, जो मुझे तुझ से जुदा करती है

by Engr. Maqbool Akram
March 17, 2025
in Uncategorized
0
496
SHARES
1.4k
VIEWS
Share on FacebookShare on Twitter

26 दिसंबर,
1994
की सुबह परवीन शाकिर ने अपने बेटे मुराद के साथ नाश्ता किया और ऑफिस के लिए निकल पड़ीं । घर के पास ही फैज़ल चौराहे पर उनकी कार को एक यात्री बस ने बहुत जोर से टक्कर मारी । कार चालक की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। शाकिर को इस्लामाबाद अस्पताल ले जाया गया जहाँ बाद में उनकी मृत्यु हो गई ।

 

24 नवंबर
1952
को पाकिस्तान के कराची में जन्मीं दुनिया की मशहूर शायरा ‘परवीन शाकिर’ बहुत कम उम्र में दुनिया से चली गईं. उनके अपने पति से रिश्ते ठीक नहीं थे.

 

परवीन की दुखद मौत से कुछ दिन पहले ही उनका तलाक हुआ था, हादसे के बाद तमाम खयालात हवा में तैरे थे. उनके बारे में एक किस्सा मशहूर है कि जब उन्होंने
1982
में ‘सेंट्रल सुपीरियर सर्विस’ की लिखित परीक्षा दी तो उस परीक्षा में उन्हीं पर एक सवाल पूछा गया था, जिसे देखकर वह आत्मविभोर हो उठी थीं.

 

परवीन शाकिर की ग़ज़लें अपने–आप में एक मिसाल है. उनकी ग़ज़लों में कहीं–कहीं प्रेम का सूफियाना रूप मिलता है, तो कहीं प्रेम में डूबी एक मासूम–सी लड़की. जिस तरह इब्ने इंशा को अपनी रचनाओं में चांद बहुत प्यारा था, उसी तरह परवीन शाकिर को भीगा हुआ जंगल. परवीन शाकिर की किताब ‘ख़ुशबू‘ का प्रकाशन वाणी प्रकाशन ने हिंदी में भी किया है, जिसमें उनकी गज़लों–नज़्मों और शायरियों की बहार है।

 

उर्दू शायरी में उनके लफ्ज़ एक युग का प्रतिनिधित्व करते हैं. वर्ष 1977 में प्रकाशित अपने पहले संकलन में उन्होंने लिखा था, ‘जब हौले से चलती हुई हवा ने फूल को चूमा था तो ख़ुशबू पैदा हुई…’ परवीन शाकिर पाकिस्तान की उन कवयित्रियों में से एक हैं, जिनके शेरों और ग़ज़लों में लोकगीत की सादगी भी है और लय भी… क्लासिकी संगीत की नफ़ासत भी और नज़ाकत भी. उनकी नज़्में और ग़ज़लें भोलेपन और सॉफ़िस्टीकेशन का दिलआवेज़ संगम है.

 

परवीन शाकिर की प्रमुख कृतियों में ‘ख़ुशबू’, ‘सदबर्ग’, ‘रहमतों की बारिश’, ‘ख़ुद–कलामी’, ‘इंकार’, ‘खुली आंखों में सपना’, और ‘माह–ए–तमाम’ शामिल हैं. उनके पास अंग्रेजी साहित्य, लिग्विंसटिक्स एवं बैंक एडमिनिस्ट्रेशन की तीन–तीन स्नातकोत्तर डिग्रियां थीं. वह नौ वर्षों तक अध्यापन के पेशे में रहीं और बाद में प्रशासक बन गईं.

परवीन शाकिर एक पत्नी के साथ–साथ मां भी थीं, कवियित्री भी और रोज़ी कमाने वाली एक बहादुर औरत भी. अपनी गज़लों के माध्यम से उन्होंने प्रेम के जितने आयामों को छुआ, उतना कोई पुरुष कवि चाह कर भी नहीं कर पाया. क्योंकि औरत की बात करने की पहली शर्त ही है औरत होना, औरत के संघर्षों को जीना और अपने औरत होने को भीतर तक महसूस करना.

 

परवीन शाकिर ने उस दौर में यौन नज़दीकियों, गर्भावस्था, प्रसव, बेवफ़ाई, वियोग और तलाक जैसे विषयों को छुआ, जिस पर उनके समकालीन पुरुष कवियों की कम ही नज़र गई. उनकी भाषा सरल हो या साहित्यिक लेकिन उससे यह आभास ज़रूर मिलता है, कि उसमें संयम और सावधानी को तरजीह दी गई.

 

परवीन शाकिर जितनी पाकिस्तान में लोकप्रिय है उससे कहीं ज्यादा वह भारत में लोकप्रिय हैं।

 

गुलाम अली, आबिदा परवीन, तसव्वुर खानम, ताहिरा सय्यद, टीना सानी और मेहदी हसन जैसे गायकों ने उनकी ग़ज़लों को अपनी आवाजें दीं। दुनिया भर के मुशायरों में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के साथ, उन्होंने टेलीविजन पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, साक्षात्कार दिए और अपने समकालीनों के साथ अदब पर चर्चायें की।

 

सैय्यद शाकिर हुसैन और अफ़ज़ल–उन–निशा की बेटी सैय्यदा परवीन बानो शाकिर का जन्म 24 नवंबर, 1952 को पाकिस्तान के कराची में हुआ । उनके पिता बिहार के रहने वाले थे और भारत के विभाजन से दो साल पहले 1945 में नौकरी की तलाश में कराची चले गए थे। उनकी माँ भारत के पटना के रहने वाली थीं और शाकिर हुसैन से शादी के बाद उनकी मां भी कराची आ गईं।

 

उनके पिता सैयद शाकिर हुसैन, पाकिस्तान के टेलीफोन और टेलीग्राफ विभाग में एक क्लर्क के रूप में नौकरी करते थे। परवीन शाकिर की माँ ने एक बच्ची के रूप में उन्हें संवेदनशील और बहुत जिद्दी बताया है । उनका कहना है कि परवीन को नंगे पांव रहना अच्छा लगता था और उनकी यह आदत पूरे जीवन बनी रही ।

 

परवीन शाकिर घरेलू कामों से विरक्त और काफी हद तक अनजान, लेकिन बौद्धिक कामों में हमेशा बहुत आगे थीं । परवीन शाकिर के बारे में ये छोटी–छोटी बातें हमें उनके व्यक्तित्व और स्वतंत्र स्वभाव को समझने में मदद करती हैं। जब वह एक स्त्री के दृष्टिकोण से प्रेम, रोमांस, मन और शरीर के इच्छाओं के बारे में खुलकर बात करती हैं तो उत्साही प्रकृति, संवेदनशीलता और जिद, ये सब उनकी रचनाओं में आते हैं ।

 

उस काल और संदर्भ को देखते हुए परवीन की रचनायें वास्तव में महिलाओं के बारे में समाज के नियमों और रूढ़ियों को चुनौतियाँ देती हैं और सामाजिक व्यवस्था, सांस्कृतिक परम्पराओं तथा प्रचलित मान्यताओं को भी प्रभावित करती है।

 

परवीन शाकिर ने रिजविया गर्ल्स हाई स्कूल से मैट्रिक करने के बाद उन्होंने
1968
में सर सैयद कन्या महाविद्यालय में दाखिला लिया और
1971
कला स्नातक की उपाधि प्राप्त की, जिसके बाद शाकिर ने कराची विश्वविद्यालय में पोस्ट–ग्रेजुएट में दाखिला लिया और उन्होंने अंग्रेजी की पढ़ाई की और
1972
में मास्टर डिग्री हासिल की।

 

अंगरेजी में पोस्ट–ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने अब्दुल्ला गर्ल कालेज में लेक्चरर के रूप में काम करना शुरू किया। साथ ही शाकिर ने दैनिक अखबार ‘जंग’ के लिए ‘गोशा–ए–चश्म’ के नाम से स्तम्भ भी लिखना शुरू किया। शादी के तीन वर्ष बाद
1980
में उन्होंने ने कराची विश्वविद्यालय से अंग्रेजी भाषा विज्ञान में एम.ए. की डिग्री हासिल की।

 

धीरे–धीरे शाकिर का मन अध्यापन से ऊबने लगा । इसकी वजह बच्चों का अंग्रेजी विषय में रूचि न होना था । परवीन कहती हैं कि “क्लास में पढ़ाते समय कभी–कभी उन्हें लगता था की दीवारों से बात कर रही हैं।“उन्होंने इस स्थिति से छुटकारा पाने की सोच ली ।

 

दिन–रात मेहनत करके
1981
में शाकिर ने पाकिस्तान की सीनियर सिविल सर्विस (भारत की भारतीय प्रशासनिक सेवा के समकक्ष) की परीक्षा दी और सफलता की मेरिट में दूसरा स्थान प्राप्त किया ।

 

जब
उन्होंने 1981 अपनी सिविल सर्विस परीक्षा दी, तो परीक्षा में एक प्रश्न उनकी अपनी ग़ज़लों और नज्मों पर था । 1983 में उन्हें सीमा शुल्क और आबकारी विभाग में प्रशिक्षण जारी रखने के लिए चुना गया था । हालांकि, शाकिर ने सिविल सेवा में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया था और वह विदेश सेवा में जाना चाहती थीं। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। पाकिस्तान के तत्कालीन मार्शल लॉ तानाशाह, जनरल जिया–उल–हक़, ने महिलाओं को विदेश सेवा में काम करने से रोक दिया। परवीन शाकिर को इसका हमेशा दुख रहा। बाद में पाकिस्तान टीवी को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने में बेहद भरे मन से कहा था

 

“मै फारेन सर्विस में जाना चाहती थी और सेलेक्ट भी हो गयी थी । यह मेरी पहली पसंद थी और मैंने इसे हासिल भी कर लिया। लेकिन वो ज़माना ठीक नहीं था। 1983 में जो जनरल साहब हम पर हुकूमत करते थे उन्होंने ने एक आर्डिनेंस जारी किया कि लेडी अफसर की पोस्टिंग बाहर बिल्कुल नहीं होगी। मै औरत थी; यह मेरा ज़ुर्म था जो वो माफ़ नहीं कर सकते थे। हमें अपनी दूसरी पसंद कस्टम्स में आना पड़ा”

 

परवीन शाकिर में पढ़ने और ज्ञान प्राप्त करने की ऐसी ललक थी की नौकरी में आने के बाद भी प्रयास जारी रखे।
1991
में उन्हें हारवर्ड विश्वविद्यालय प्रोग्राम में भाग लेने के लिए फुलब्राइट छात्रवृत्ति से सम्मानित किया गया था ।फुलब्राइट स्कालरशिप के दौरान उन्होंने ट्रिनिटी कॉलेज में हर्टफोर्ड कंसोर्टियम फॉर हायर एजुकेशन के माध्यम से दक्षिण एशियाई साहित्य और सेंट जोसेफ कॉलेज में पाकिस्तान और बांग्लादेश की राजनीति और संस्कृति पर पाठ्यक्रम अलग से पढ़ाया।

 

हारवर्ड विश्वविद्यालय में परवीन शाकिर ने पढ़ाने के साथ–साथ हारवर्ड न्यूज एंड व्यूज अखबार के उप–संपादक के रूप में कार्य किया। 1993 में पाकिस्तान लौटने पर शाकिर कस्टम्स और सीमा शुल्क निरिक्षण विभाग में उप–निदेशक के पद पर पदोन्नत किया गया।

 

उन्हें
फिर से विदेश जाने और पीएचडी करने में रुचि थी, और 1971 के पाकिस्तान और बांग्लादेश युद्ध पर शोध करना चाहती थीं, लेकिन 1994 में उनकी असामयिक मृत्यु के कारण वह इच्छा पूरी नहीं हो सकी।

                                

अगर हम उनकी निजी जीवन यात्रा को समझने की कोशिश करें तो सबसे अच्छा तरीका है कि हम उनकी नज़्मो और ग़ज़लों को उसी क्रम में पढ़ें जिस क्रम में संग्रह प्रकाशित हुए थे। जैसे जैसे हम शाकिर के पांच खंडों को पढ़ते हैं वैसे– वैसे हम उनकी अधिकांश कविता के आत्मकथात्मक स्वर से प्रभावित होते है।

 

ऐसा भी लगता है कि शाकिर ने किताबों में कविताओं को उनकी रचना के लगभग कालानुक्रमिक क्रम में व्यवस्थित किया है। इस प्रकार उनमें “लड़की” से “प्रेमी“, एक “पत्नी“, एक “माँ” और दुनिया का सामना करने वाली “कामकाजी महिला” के विकास को पढ़ा जा सकता है।

 

बहुत
ही व्यक्तिगत क्षणों में एक टीवी इंटरव्यू में, (जिसका जिक्र शाकिर की बहुत करीबी मित्र रफ़ाक़त जावेद ने भी अपनी किताब, “परवीन शाकिर जैसा मैंने जाना”, में किया है) शाकिर ने कहा था, “जिन्दगी ने मेरे साथ इन्साफ नहीं किया।” अखिरकार उन्होंने ऐसा क्यों कहा? हमें समझना होगा।

 

एक
मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी परवीन शाकिर को विरासत में वह सब कुछ मिला जो उस समाज का हिस्सा है । माँ–बाप–परिवार का प्यार, पढ़ने लिखने की आजादी के साथ सामाजिक रूढ़ियाँ और बेड़ियाँ भी उनके हिस्से में आयीं ।

 

बीस वर्ष की उम्र तक आते–आते शाकिर उर्दू ग़ज़लों और नज्मों की दुनिया में अच्छी–खासी प्रसिद्धि पा चुकीं थी । उन्हें बराबर मुशायरों में बुलाया जाने लगा था । जवानी के ओर जब कदम बढ़े तो भावनाओं का ज्वार भी फूटा । विद्यार्थी जीवन में उनका पहला प्यार अपने से सीनियर क्लास में पढने वाले एक लम्बे एवं ख़ूबसूरत लड़के से हुआ ।

 

लेकिन
समय के साथ उन्हें एक सरकारी अधिकारी से प्यार हुआ और शाकिर की पहली किताब, ख़ुशबू, की शायरी के पीछे का प्रेरणा श्रोत भी यही व्यक्ति था। परवीन उसके साथ शादी कर घर बसाना चाहती थीं। पर ऐसा हो न सका। यद्यपि दोंनों इस्लाम को मानने वाले थे पर उनका सम्प्रदाय अलग था । शाकिर शिया थीं और वो सुन्नी ।

 

उनकी सामाजिक स्थिति भी एक दूसरे से अलग थी। पिता सैयद शाकिर हुसैन ने सांप्रदायिक मतभेदों के आधार पर इस विवाह की अनुमति देने से इन्कार कर दिया ।

इस दौरान परवीन शाकिर के दुख–दर्द का अहसास उनकी पहली किताब “ख़ुशबू” के भूमिका “दरीचा–ए–गुल” से मिलता है । परवीन लिखती हैं :

 

तेज़ जाते लम्हों की टूटती हुई दहलीज़ पर, हवा के बाज़ू थामे एक लड़की खड़ी है और सोच रही है कि इस समय आपसे क्या कहे । बरस बीते, गयी रात के किसी ठहरे हुए सन्नाटे में उसने अपने रब से दुआ की थी कि उस पर उनके अंदर की लड़की को प्रकट कर दे ।

 

मुझे
यकीन है, यह सुन कर उसका ख़ुदा इस दुआ की सादगी पर एक बार तो जरूर मुस्कराया होगा ! (कच्ची उम्रों के लड़कियां नहीं जानती कि मोह–बंधन से बड़ी यातना धरती पर आज तक नहीं उतरी) पर वह उसकी बात मान गया -– और उसे चाँद की तमन्ना करने के काम में अस्तित्व के हज़ार दरवाजे वाले शहर का जादू दे दिया गया ।

 

अस्तित्व नगर के सारे दरवाज़े अंदर की तरफ खुलते हैं और जहाँ से वापसी का कोई रास्ता नहीं ! बात यह नहीं कि शहरे–जाँ की दीवार की मुरझाई बेलों पर किसी का सौंदर्य, बुलबुले की तरह नहीं उतरा या उस शहर के गलियों में जिंदगी ने ख़ुशबू नहीं खेली –

 

यहाँ तो ऐसे मौसम भी आये कि जब बहार ने आँखों पर फूल बांध दिए और रंगों के घेरे से रिहाई दुश्वार हो गयी थी –- मगर जब हवा के दिल में पत्ते रहित शाखें गड़ जाएं तो बहार के हाथों से सारे फूल गिर जाते हैं ।

 

 “ख़ुशबू”
उसी सफ़र की कहानी है । हैरान आँखों, शबनमी गालों और उदास मुस्कराहट वाली यह लड़की मानती है कि उसकी यह कहानी नई नहीं है (और यही क्या, दुनिया की कोई कहानी नई नहीं है — यह तो हमारे अंदर का कहानीकार है जो इसको ऐसा सुन्दर बुन देता है कि संसार का मन मोह ले) ।

 

फिर ख़ुद को पाने की तलाश में अपना आप को खो देना तो बड़ी पुरानी बात है -– पर है बहुत सच्ची और अनिवार्य! ……
सो यह लड़की जब आप से बात करेगी तो उसकी पलकें बेशक भीगी हुई होंगी –- लेकिन ज़रा गौर से देखिएगा — इसका सिर उठा हुआ है।

 

परवीन शाकिर की पहली किताब “ख़ुशबू” को विशुद्ध रूप से प्रेम और उनके साथ जुड़े सभी रंगों के कविता संग्रह की उपाधि दी जा सकती है । “ख़ुशबू” में न केवल बहुत बेबाकी से प्रेम, वियोग, विछोह, निराशा, कुढ़न आदि का इज़हार तो है ही; बेहद सादे एवं सभ्य ढंग से यौनिकता का भी वर्णन पाते हैं ।

 

यह सब तत्कालीन इस्लामी समाज में और वह भी एक कुआंरी लड़की द्वारा लिखा जाना अपने आप में बहुत बड़ी बात थी

 

परवीन शाकिर का पहली नज्मों और ग़ज़लों का संग्रह “ख़ुशबू”
1977
में प्रकाशित हुआ । यह एक तात्कालिक सनसनी बन गई और उन्हे बहुत आलोचनात्मक प्रशंसा और जनता का प्यार मिला। परवीन को इसके लिए प्रतिष्ठित “अदमजी साहित्य पुरस्कार” भी मिला ।

 

“ख़ुशबू” में वह एक युवा भावुक लड़की के रूप में दिखाई देती हैं, जिसके पास न केवल बहुत सौंदर्य बोध है बल्कि सुंदरता की परख के लिए आँखें भी। वह अपने स्त्रीत्व को पूरी तरह से प्यार करती है और इसे छिपाने की कभी कोशिश नहीं करती ।

 

परवीन शाकिर का उर्दू शायरी में सबसे बड़ा योगदान यह है कि उन्होंने खुलासा किया कि एक महिला अपने पूरे दिल से किसी पुरुष से कैसे प्यार करती है।

 

उनसे पहले किसी अन्य शायरा की आवाज इतनी गहराई से व्यक्त नहीं हुई थी। “ख़ुशबू” की रोमांटिक यात्रा के दौरान एक अव्यक्त उदासी भी महसूस होती है। यह अंत में आता है जब वह प्यार में निराश होती है। उन्हें लगता है कि उनकी भावनाएँ पूरी नहीं हुई हैं और वह अपने पूरे प्रेम प्रसंग पर हैरान हैं।

 

यहीं से असली शायरा का जन्म होता है। “ख़ुशबू” एक सुंदर प्रेम कहानी है जो कविता में लिखी और कोमल भावनाओं के साथ बुनी गई है। प्यार के बारे में परवीन शाकिर ने हमेशा बहुत स्पष्ट रुख अख्तियार किया । इस सिलसिले में एक टीवी इंटरव्यू में जब उनसे से पूछा गया कि क्या शायरी करने के लिए प्यार करना ज़रूरी है? उनका जवाब था:

 

“जब कोई व्यक्ति सीखता है कि उसे किसी को प्यार करना और किसी से प्यार पाना कितना महत्वपूर्ण है, तो वह व्यक्ति सभ्य हो जाता है; प्रेम धैर्य सिखाता है और एक व्यक्ति को सहने की शक्ति देता है और आदमी को सम्पूर्ण बनाता है …..
जब अस्तित्व ने प्रेम के लिए अंतर्ज्ञान पाया, तो कविता का जन्म हुआ।“ 

 

उनकी शादी सितम्बर 1976 में उनके चचेरे भाई, डॉ. नसीर अली से हुई। परवीन शाकिर उस समय चौबीस साल की थीं और तब तक वह उर्दू के दुनियां में काफी जानी–मानी हस्ती बन चुकी थीं । शादी के लगभग़ तीन वर्ष बाद 20 नवम्बर 1979 परवीन शाकिर ने एक खुबसूरत बेटे, सैय्यद मुराद अली, को जन्म दिया । वह प्यार से अपने बेटे को ‘गीतू’ नाम से बुलाया करती थें और उसे अपनी तीसरी पुस्तक, “ख़ुदक़लामी” समर्पित की।

परवीन
शाकिर को यह बात हमेशा सालती रही की बेटे के जन्म के बाद उनसे मिलने और बेटे का मुंह देखने डॉ. नसीर अली उसके जन्म के तीन दिन बाद आये । किसी भी पत्नी और पहली बार माँ बनने वाली औरत के लिए यह बहुत दुख की बात थी।

 

“ख़ुशबू” की संवेदनशील लड़की इन वर्षों में काफी परिपक्व हो गई थी और एक मजबूत महिला बन गई थी। उनके लिए अब दुनिया में प्यार और भावनाएं ही सब कुछ नहीं हैं। उन्होंने बहुत प्रसिद्धि और आलोचना भी देखी । “ख़ुशबू” की शर्मीली लड़की वैवाहिक आनंद पर स्वतंत्र रूप से लिखने वाली एक आश्वस्त महिला बन गई है।

 

 “सदबर्ग” की नज़्में और ग़ज़लें एक मजबूत एहसास देती हैं कि दुःख उनकी खुशियों को छीन रहा हैं। सपना टूट चुका था; दुःख पहले से कहीं अधिक गहरा था ।

 

बिखरते वैवाहिक जीवन की झलक “सदबर्ग” की भूमिका में दिखाई देती है । परवीन “सदबर्ग” (जो
1980
में छपी थी) की भूमिका में लिखती हैं:

 

“ज़िन्दगी के मेले में रक्स की घड़ी आई तो, संड्रिला की जूतियाँ ही ग़ायब थीं, न वह ख़्वाब था, न वह बाग़ था, न वह शहज़ादा, अच्छे रंगों की सब परियां अपने तिलस्मी देश को उड़ चुकी थीं और लहू–लुहान हथेलियों से आँखों को मलती शहज़ादी जंगल में अकेली रह गयी –- और जंगल की शाम कभी तनहा नहीं आती ! भेड़िये उसके खास दोस्त होते हैं ! शहज़ादी के बचाव का सिर्फ एक ही तरीक़ा है उसे हज़ार रातों तक कहानी कहनी है….. और अभी तो सिर्फ 27 रातें ही गुज़री हैं ।

 

मादरज़ाद झूठों की बस्ती में जीवन जीने का और कोई हुनर नहीं — और हवा से बढ़ कर और कोई झूठा क्या होगा कि जो सुबह–सवेरे फूलों को चूम कर जगाती भी है और शाम ढले अपने लालची नाखूनों से उसकी पंखुड़ियाँ भी नोच लेती है — खिलने की कीमत चुकाने में जान का नुकसान वैसे कोई बात नहीं, मगर यह पंखुड़ी–पंखुड़ी हो कर दर–ब–दर फिरना यकीनन दुख देता है — हवा का कोई घर नहीं, सो वो किसी के सर पर छत नहीं देख सकती !

 

सदबर्ग के 1988 के संस्करण की भूमिका में परवीन शाकिर ने आगे जोड़ा:

 

“सदबर्ग आते–आते परिदृश्य बदल चुका था -– मेरे जीवन का भी और उस धरती का भी जिसके होने से मेरा होना है –- संसार की युद्धभूमि में हमने कई लड़ाइयां एक साथ हारीं और बहुत ख़्वाबों पर इकट्ठे मिट्टी बराबर की ।

सदबर्ग की ग़ज़लें और नज़्में परवीन शाकिर के जिंदगी के सबसे मुश्किल समय की हैं और उनमे चारों तरफ निराशा और कड़वाहट का ही माहौल दिखाई देता है । बेटे के जन्म के बाद एक बार उम्मीद बनी की डा. नसीर और शाकिर के संबंधो में सुधार आएगा ।

 

अफ़सोस ऐसा हो न सका । वास्तव में परवीन शाकिर और डा. नसीर अली अलग–अलग दुनिया के लोग थे । ज़िंदगी के बारे में दोनों के विचार अलग थे । 1987
में दोनों आपसी रजामंदी से एक–दूसरे से अलग हो गए । परवीन शाकिर को बेटे मुराद से बेपनाह मुहब्बत थी । वो मुराद के बिना ज़िंदगी सोच भी नहीं सकती थीं ।

 

उन्होंने बिना किसी मांग, बिना किसी शर्त के मुराद के पालन–पोषण की जिम्मेदारी ख़ुद ली और तलाकनामे की यह शर्त भी स्वीकार कर ली जिसमें कहा गया था कि अगर परवीन शाकिर ने दूसरा विवाह किया तो बेटा मुराद उनसे लेकर पिता को दे दिया जाएगा ।

 

डा. नसीर ने तो तलाक़ के एक वर्ष के अंदर ही दूसरी शादी कर ली लेकिन परवीन शाकिर अपने जीवन के शेष वर्षों में अविवाहित रहीं । बेटा मुराद उनके जीवन का कितना बड़ा हिस्सा था यह शाकिर द्वारा बेटे के लिए लिखी गयी कई नज्मों से समझा जा सकता है

 

उस समय जहाँ रोज़मर्रा की ज़िंदगी काफी परेशानी भरी चल रही थी उसी दरम्यान उनका तीसरा संग्रह “खुद–कलामी” आया जो परवीन शाकिर को एक स्वावलम्बी, स्वतंत्र, कामकाज़ी एवं दृढ़ महिला के साथ–साथ एक ममतामयी माँ की मजबूत छवि प्रस्तुत करता है।

 

उनके सभी अँधेरे उनके बेटे की आँखों की रौशनी में धीमे पड़ गए। इन नज़्मों और ग़ज़लों में एक महिला की गर्भावस्था और माँ होने की भावनाओं का सुंदर वर्णन मिलता है। वह दुनिया में एक नया जीवन लाने के लिए बहुत खुश है और अपने बच्चे को पूरी तरह से प्यार करती है ।

 

इस संग्रह की कुछ नज़्में और ग़ज़लें उनके पेशेवर जीवन के संघर्ष को दर्शाती हैं। ऐसा लगता है कि वह कठिन समय में बढ़ती जिम्मेदारियों के बीच सामजस्य बनाने के कोशिश कर रही हैं और अपने को पेशेवर जीवन, घरेलू कर्तव्यों और मातृत्व के बीच विभाजित महसूस करती है। उनके अंदर की शायरा को अपने लिए समय नहीं मिलता। रीति–रिवाजों में अपनी नौकरी का जिक्र करते हुए वह लिखती हैं:

 

हिन्दसे गिध के तरह दिन मिरा खा जाते हैं।

हर्फ़
मिलने मुझसे आते हैं ज़रा शाम के बाद ।

 

1986
में, परवीन शाकिर को इस्लामाबाद में फेडरल ब्यूरो ऑफ़ रेवेन्यू में दूसरा सचिव नियुक्त किया गया। उन्होंने अपने जन्म के शहर कराची को छोड़ दिया और राजधानी में नए जीवन की ओर बढ़ गयीं।

 

उनकी
कविता का अंतिम संग्रह “इन्कार” था। यह उनके पूरे जीवन का प्रतिबिंब बनकर उभरता है। उन्होंने प्रेम की शायरी से किनारा नहीं किया लेकिन अब वह सरकारी खामियों पर भी खुल कर लिखने लगीं।

 

परवीन शाकिर की पांचवीं किताब “कफ़े–आइना” उनके मौत के बाद उनकी बहन नसरीन और मित्रों ने संकलित की।

 

26 दिसंबर, 1994 की सुबह परवीन शाकिर ने अपने बेटे मुराद के साथ नाश्ता किया और ऑफिस के लिए निकल पड़ीं । घर के पास ही फैज़ल चौराहे पर उनकी कार को एक यात्री बस ने बहुत जोर से टक्कर मारी । कार चालक की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। शाकिर को इस्लामाबाद अस्पताल ले जाया गया जहाँ बाद में उनकी मृत्यु हो गई ।

 

ह
तब बयालीस वर्ष की थीं । परवीन शाकिर अपने जीवन के दौरान कहा करती थी कि वह 42 साल से अधिक नहीं जियेंगी और यह सही साबित हुआ ।

 

उनकी
सबसे अच्छी दोस्त और शुभचिंतक, श्रीमती परवीन कादिर आगा ने अपनी किताब Teardrops, Raindrops: A biography of
Parveen Shakir
में लिखा है कि:

 

“परवीन का ड्रेसिंग टेबल श्रृंगार की वस्तुओं से भरा रहता था, लेकिन मृत्यु के 15 दिनों से पहले, उसकी मेज लगभग खाली थी और उसने श्रृंगार करना लगभग बंद ही कर दिया था। जैसे कि वह अनंत काल की यात्रा के लिए तैयार थीं।

 

जिस सड़क पर दुर्घटना हुई उसका नाम परवीन शाकिर के सम्मान में
“
परवीन शाकिर रोड” रखा गया। पाकिस्तान पोस्ट एंड टेलीग्राफ विभाग ने
2013
में परवीन शाकिर को उनकी 19वीं पुण्यतिथि पर सम्मानित करने के लिए
10
रुपये का एक स्मारक डाक टिकट जारी किया।

 

परवीन महसूस करती थीं कि वह अपने ही परिवार, ससुराल में उर्दू सहित्य, ग़ज़लों और नज्मों के लिए अपने जुनून को समझा नहीं सकीं। एक प्रतिभाशाली शायरा और ज़हीन सिविल सरवेंट के रूप में उनकी प्रसिद्धी, प्रतिष्ठा भी उन्हें सर्वव्यापी पितृसत्तात्मक, सामाजिक रूढियों और कुरीतियों से बचा नहीं सका।

 

 “सदबर्ग” की भूमिका में परवीन लिखती हैं :

 

“ जिस मुआशरे में क़द्रों के नंबर मनसूख़ हो चुके हों और दिरहमें–ख़ुद्दारी, दीनारे–इज़्ज़ते–नफ़स कौड़ियों के भी मोल न निकलें, वहां नेकी की नुसरत को कौन आये? वहां तो समाअतें बहरी बसारतें अंधी हो जाती हैं ………. और
मेरा गुनाह यह है कि मै एक ऐसे क़बीले में पैदा हुई जहाँ सोच रखना जरायम में शामिल है ।

 

मगर
क़बीलेवालों से भूल यह हुई की उन्होंने मुझे पैदा होते ही ज़मीन में नहीं गाड़ा (और अब मुझे दीवार में चिन देना उनके लिए ख़लाकी तौर पर उतना आसान नहीं रहा!) मगर वो अपनी भूल से बेख़बर नहीं, सो अब मैं हूँ और मेरे होने की मजबूरी का यह अँधा कुआँ जिसके गिर्द घूमते–घूमते मेरे पांव पत्थर के हो गए हैं और आँखें पानी की — क्यों कि मैंने और लड़कियों की तरह खोपे पहनने से इन्कार कर दिया था ! और इन्कार करने वालों का अंजाम कभी अच्छा नहीं हुआ !

 

हर इन्कार पर मेरे जिस्म में एक मेख़ का और इज़ाफ़ा हो गया —
मगर मेखें ठोकने वालों ने मेरी आँखों से कोई तअर्रुज़ न किया —
शायद वो जानते थे इन्हें बुझाने से अंदर के रौशनी में कोई फ़र्क्र पड़ेगा, या फिर अपनी सफ्फ़ाकियों से लुफ़्तअन्दोज़ होने के लिए वे एक गूंगे गवाह के तालिब थे और मै हैरान हूँ की इस गवाही से मेरी आँखे अब तक पथरायीं क्यों नहीं!

 

शुरुआती आवाज़, तड़प, शाकिर की मौत से पहले गंभीर और सवालिया हो गई। यह विकास
1980
के दशक में हुआ जब उन्हें एक कस्टम अधिकारी में पाकिस्तानी प्रतिष्ठान की सीमाओं से निपटना पड़ा। बाद में एक कविता, एक वरिष्ठ कार्यकारी की सलाह में, वह अपना दिल खोलती है:

 

मेरे कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारी ने

एक दिन मुझे असामान्य तरीके से अपने कार्यालय में बुलाया

और एक–दो फाइलों के बारे में पूछने के बाद

असहज भाव से भौंहें सिकोड़ते हुए उन्होंने मेरी असभ्य हरकतों का जिक्र किया ।

 

समाज में कवयित्री की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए

उन्होंने जो कहा उसका सार

यह था कि राष्ट्र में कवि की वही भूमिका है

जो हमारे शरीर में एक अपेंडिक्स की होती

है। बिल्कुल बेकार, लेकिन कभी–कभी बहुत दर्द देने में सक्षम।

इसलिए इससे छुटकारा पाने का केवल एक ही तरीका है – सर्जरी! उनके होठों पर एक हल्की मुस्कान खेली, क्योंकि उन्होंने कल्पना की थी कि उन्होंने खुद को मेरे व्यक्तित्व के अपेंडिक्स से मुक्त कर लिया है।

 

उनकी कविता वर्किंग वूमन भी धुंधली सीमाओं और अपरिहार्य दोहरे बोझ की बात करती है। यह सर्वविदित है कि शाकिर फहमीदा रियाज़ से काफी प्रेरित थे क्योंकि रियाज़ ने पहली बार आधुनिक उर्दू शायरी में एक शक्तिशाली स्त्री स्वर को सामने लाया जो पुरुष प्रधान समाज के लिए आकर्षक और चुनौतीपूर्ण दोनों था।

 

आने वाले सालों में शाकिर ने वैवाहिक समस्याओं, गर्भावस्था, कामुकता और बहुत कुछ पर विस्तार से लिखा। उनकी एक कविता ‘ बर्फ़ बारी के बाद ‘ अपनी स्पष्टवादिता के लिए उल्लेखनीय है।

शाकिर का जीवन भी उनकी पारंपरिक मध्यम वर्गीय पृष्ठभूमि के विरुद्ध संघर्षपूर्ण रहा। उन्होंने अपने माता–पिता की इच्छा के अनुसार विवाह किया: एक दुखी विवाह जो तलाक में परिणत हुआ।

 

इस वैवाहिक विकल्प ने उनके दिल को सबसे अधिक दुख पहुँचाया जब उन्हें अपने प्रेमी के साथ एक गहन संबंध समाप्त करना पड़ा, सिर्फ़ उनके साथ रहने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी थी।

 

यह घटना उनकी मृत्यु के बाद सार्वजनिक हुई जब उनके एक पूर्व प्रोफेसर ने एक उर्दू अख़बार में एक लंबा लेख लिखा जिसमें बताया गया कि कैसे ठुकराया हुआ प्रेमी व्याकुल था और कैसे परवीन के रोमांटिक आदर्श को एक सामाजिक रूढ़ि ने पूरी तरह से नष्ट कर दिया था।

 

परवीन ने अपने लिए एक कैरियर चुनने का साहस किया और सिविल सेवाओं में भर्ती के लिए प्रतियोगी प्रवेश परीक्षा में एक प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त किया।

 

यह तलाक के कारणों में से एक बन गया, जैसा कि उनके सिविल सेवक मित्र ने बताया। पाकिस्तानी शहरी परिदृश्य में एकल मातृत्व के आने से बहुत पहले, शाकिर अपने बेटे मुराद की एक सफल, व्यापक रूप से जानी जाने वाली एकल माँ बन चुकी थीं।

 

26 दिसंबर, 1994 एक दुखद दिन था जब पाकिस्तान को उनकी दुखद और अप्रत्याशित मौत के बारे में पता चला। परवीन ने मृत्यु के बाद भी अपनी विशिष्टता बनाए रखी। पंद्रह साल बाद भी वे बेहद लोकप्रिय हैं। अगर कुछ हुआ तो, उनकी कविता की उचित रूप से पुनर्व्याख्या की गई है और जो आलोचक उन्हें एक हल्के–फुल्के काव्य के रूप में खारिज करते थे, उन्हें एहसास हुआ है कि परवीन की काव्य दृष्टि में मेंहदी से रंगे हाथों और किशोर प्रेमियों के टूटे दिलों से कहीं अधिक था।

The End

 

 

Share198Tweet124
Engr. Maqbool Akram

Engr. Maqbool Akram

I am, Engineer Maqbool Akram (M.Tech. Mechanical Engineer from AMU ), believe that reading and understanding literature and history is important to increase knowledge and improve life. I am a blog writer. I like to write about the lives and stories of literary and historical greats. My goal is to convey the lives and thoughts of those personalities who have had a profound impact on the world in simple language. I research the lives of poets, writers, and historical heroes and highlight their unheard aspects. Be it the poems of John Keats, the Shayari of Mirza Ghalib, or the struggle-filled story of any historical person—I present it simply and interestingly.

Latest Post

Roxelan--From Harem to Queen

Roxelana: A Concubine From Harem To Queen of Ottoman Suleiman The Mgnificient

May 20, 2025
Travelogue of Gandikota canyon & Fort: adventure, heritage and romance.

Travelogue of Gandikota canyon & Fort: adventure, heritage and romance.

May 15, 2025
Renuka Devi: Daughter of founder of Abdullah Women’s College A.M.U.Aligarh was legendary actress of pre-partition era (Begum Khurshid Mirza)

Renuka Devi: Daughter of founder of Abdullah Women’s College A.M.U.Aligarh was legendary actress of pre-partition era (Begum Khurshid Mirza)

May 11, 2025

साहब-ए-करामात- फाताँ ने वहीं चारपाई से कहा। “हाँ…….मौलवी साहब की दाढ़ी और पट्टे।” सआदत हसन मंटो

May 5, 2025
धुंआ धुंआ ज़िंदगी लाइफ़ इन मेट्रो; ट्वंटी  ट्वंटी क्रिकेट की तरह तलाक़ का निर्णय भी जल्दी आगया. और वे दोनों ‘एक्स’ होगए (नंदकिशोर बर्वे)

धुंआ धुंआ ज़िंदगी-लाइफ़ इन मेट्रो; ट्वंटी ट्वंटी क्रिकेट की तरह तलाक़ का निर्णय भी जल्दी आ गया. और वे दोनों ‘एक्स’ हो गए. (नंद किशोर बर्वे)

May 2, 2025
IUIUIIU

तुमने क्यों कहा था मैं सुंदर हूं: फ़ोटो में माया की तरह छरहरे शरीर, परंतु बहुत सुंदर अनुपात के अवयव की निरावरण युवती, दाईं बांह का सहारा लिये एक चट्टान पर बैठी, कहीं दूर देख रही थी (यशपाल की कहानी )

May 2, 2025
अलाउद्दीन खिलजी, ने भारत की रक्षा दुनिया के क्रूरतम लड़ाके ‘मंगोलो’ से की। जिन्होंने बगदाद के खलीफा अबू मुस्तसिम बिल्लाह तक को मार दिया था।

अलाउद्दीन खिलजी, ने भारत की रक्षा दुनिया के क्रूरतम लड़ाके ‘मंगोलो’ से की। जिन्होंने बगदाद के खलीफा अबू मुस्तसिम बिल्लाह तक को मार दिया था।

May 2, 2025
जॉन कीट्स ब्रिटेन के महान कवि और फैनी ब्रॉन की असफल प्रेम कहानी- कीट्स की मृत्यु महज 25 साल में हो गई दोनों ने शादी नहीं की उसने विधवा के रूप में कीट्स  की मृत्यु पर शोक मनाया।

जॉन कीट्स ब्रिटेन के महान कवि और फैनी ब्रॉन की असफल प्रेम कहानी- कीट्स की मृत्यु महज 25 साल में हो गई दोनों ने शादी नहीं की उसने विधवा के रूप में कीट्स की मृत्यु पर शोक मनाया।

May 2, 2025
Fall of Constantinople नौजवान सुल्तान मोहम्मद फतेह ने 29 मई 1453 को कुस्तुनतुनिय फतह (इस्तांबूल) किया.रोमन साम्राज्य का अंत. इस के बाद इस्लाम का यूरोप में प्रवेश.

Fall of Constantinople नौजवान सुल्तान मोहम्मद फतेह ने 29 मई 1453 को कुस्तुनतुनिय फतह (इस्तांबूल) किया.रोमन साम्राज्य का अंत. इस के बाद इस्लाम का यूरोप में प्रवेश.

May 2, 2025
पटना की बेहद हसीन तवायफ और एक पुजारी की लव स्टोरी – यह सूखा हुआ पान हमेशा उनकी विधवा पत्नी के लिए रहस्य ही बना रहा.

पटना की बेहद हसीन तवायफ और एक पुजारी की लव स्टोरी – यह सूखा हुआ पान हमेशा उनकी विधवा पत्नी के लिए रहस्य ही बना रहा.

April 24, 2025
बड़ी शर्म की बात: (इस्मत चुग़ताई) औरत मर्द की नाक काटे तो दहल जाती हूं. उफ़ कितनी शर्म की बात

बड़ी शर्म की बात: (इस्मत चुग़ताई) औरत मर्द की नाक काटे तो दहल जाती हूं. उफ़ कितनी शर्म की बात

March 22, 2025
नशे की रात के बाद का सवेरा (ख़ुशवंत सिंह) अपने अधूरे सपने का अन्त देखने लगा-जो एक विवाहित आदमी बिना संTकोच के कर सकता है.

नशे की रात के बाद का सवेरा (ख़ुशवंत सिंह) अपने अधूरे सपने का अन्त देखने लगा-जो एक विवाहित आदमी बिना संTकोच के कर सकता है.

March 18, 2025
अंतिम प्यार: ताड़ के वृक्षों के समूह के समीप मौन रहने वाली छाया के आश्रय में एक सुन्दर नवयुवती नदी के नील-वर्ण जल में अचल बिजली-सी मौन खड़ी थी. (रबिन्द्रनाथ टैगोर की कहानी )

अंतिम प्यार: ताड़ के वृक्षों के समूह के समीप मौन रहने वाली छाया के आश्रय में एक सुन्दर नवयुवती नदी के नील-वर्ण जल में अचल बिजली-सी मौन खड़ी थी. (रबिन्द्रनाथ टैगोर की कहानी )

March 17, 2025
नाच पार्टी के बाद. वन नाइट लव स्टोरी (रूसी कहानी हिंदी में) लियो टॉल्स्टॉय

नाच पार्टी के बाद. वन नाइट लव स्टोरी (रूसी कहानी हिंदी में) लियो टॉल्स्टॉय

March 17, 2025
परवीन शाकिर छोटी उम्र बड़ी जिंदगी वो शायरा जिनके शेरों में धड़कता है आधुनिक नारी का दिल- दिल को उस राह पे चलना ही नहीं, जो मुझे तुझ से जुदा करती है

परवीन शाकिर छोटी उम्र बड़ी जिंदगी वो शायरा जिनके शेरों में धड़कता है आधुनिक नारी का दिल- दिल को उस राह पे चलना ही नहीं, जो मुझे तुझ से जुदा करती है

March 17, 2025
आय विल कॉल यू मोबाइल फोन (रूपा सिंह) जैसे ही डाटा ऑन किया खट् खट् कर कई मैसेज दस्तक देते चले आये इतनी तेजी से सबकी खबरें स्क्रीन पर चमक रही थी

आय विल कॉल यू मोबाइल फोन (रूपा सिंह) जैसे ही डाटा ऑन किया खट् खट् कर कई मैसेज दस्तक देते चले आये इतनी तेजी से सबकी खबरें स्क्रीन पर चमक रही थी

March 17, 2025
चार्ल्स डिकेंस: के प्रेम प्रसंग विक्टोरियन इंग्लैंड के महान उपन्यासकार अपने युग के रॉक स्टार गलत जगहों पर प्यार की तलाश

चार्ल्स डिकेंस: के प्रेम प्रसंग विक्टोरियन इंग्लैंड के महान उपन्यासकार अपने युग के रॉक स्टार गलत जगहों पर प्यार की तलाश

March 18, 2025
पंच परमेश्वर: फूलो ने घूंघट नहीं खींचा मुंह उठा दिया गेहुंए रंग में दो मांसल आंखें थीं जिनमें  रात का खुमार अभी बिल्कुल मिटा नहीं (रांगेय राघव की कहानी)

पंच परमेश्वर: फूलो ने घूंघट नहीं खींचा मुंह उठा दिया गेहुंए रंग में दो मांसल आंखें थीं जिनमें रात का खुमार अभी बिल्कुल मिटा नहीं (रांगेय राघव की कहानी)

March 18, 2025
मैं खुदा हूँ Ana’l haqq मंसूर अल-हलाज: जल्लाद ने सिर काटा तो धड़ से खून की धार फूट पड़ी और अचानक उनके शरीर से कटा एक-एक अंग चीखने लगा च्मैं ही सत्य हूं

मैं खुदा हूँ Ana’l haqq मंसूर अल-हलाज: जल्लाद ने सिर काटा तो धड़ से खून की धार फूट पड़ी और अचानक उनके शरीर से कटा एक-एक अंग चीखने लगा च्मैं ही सत्य हूं

March 17, 2025
नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है  तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

March 18, 2025
अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

March 18, 2025
Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

March 17, 2025
सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

March 17, 2025
Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

March 17, 2025
मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

March 17, 2025
Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

March 18, 2025
Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

March 17, 2025
River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

March 17, 2025
Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

March 18, 2025
पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

March 17, 2025
  • About us
  • Contact us
  • Home

Copyright © 2025. All rights reserved. Design By Digital Aligarh

No Result
View All Result
  • About us
  • Contact us
  • Home

Copyright © 2025. All rights reserved. Design By Digital Aligarh