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बड़ी शर्म की बात: (इस्मत चुग़ताई) औरत मर्द की नाक काटे तो दहल जाती हूं. उफ़ कितनी शर्म की बात

by Engr. Maqbool Akram
March 22, 2025
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 रात के सन्नाटे में फ़्लैट की घंटी ज़ख़्मी बिलाव की तरह ग़ुर्रा रही थी. लड़कियां आख़िरी शो देखकर कभी की अपने कमरों में बंद सो रही थीं. आया छुट्टी पर गई हुई थी और घंटी पर किसी की उंगली बेरहमी से जमी हुई थी. मैंने लश्तम पश्तम जाकर दरवाज़ा खोला.

 

ढोंडी छोकरे का हाथ थामे दूसरे हाथ से छोकरी को कलेजे से लगाए झुकी झुकी घुसी और भाग कर नौकरों वाले ग़ुस्ल–ख़ाने में लुप्त हो गई. दूर सड़क पर ग़ोल बयाबानी का शोर ए रोड की तरफ़ लपका चला आ रहा था. मैंने बालकनी से देखा औरतें, बच्चे नशे में धुत्त, नौकर बे–तहाशा बोलियों में ना जाने किसे ललकारते चले आ रहे थे.

 

चौकी–दार शायद ऊंघ गया था तभी ढोंडी उस की आंखों में धूल झोंक कर घुस पड़ी. वो उस के पीछे लपकने के बजाय फाटक में ताले जड़ने दौड़ा और जब मजमा कम्पाऊंड की दीवार पर चढ़ कर फांदने लगा तो उसने लपक कर लोहे का अंदरूनी दरवाज़ा बंद कर लिया और सलाख़ों में से हमला आवारों को डंडे से धमकाने लगा.

 

उधर से महफ़ूज़ पाकर मैंने जल्दी जल्दी बिजलियां जलाईं. ग़ुस्ल–ख़ाने से मिला हुआ जो कूड़े कबाड़ का छोटा सा हिस्सा है उस में ढोंडी मैले कपड़ों की टोकरी से चिपकी थर–थर कांप रही थी. उस की ठोढ़ी लहूलुहान थी और ख़ून गर्दन से बह कर शलूका और धोती को तर कर रहा था.

 

मैंने उस से बहुत पूछा कि क्या मुआमला है मगर उसकी आंखें फटी थीं और जोड़ी सवार थी. बच्ची फटी हुई चोली से फ़ायदा उठा रही थी और बड़ी तुनदही से अपनी अ’ज़ली भूक मिटाने में मशग़ूल थी. छोकरा हस्ब–ए–आदत नाक सुड़क रहा था और पेशाब से तर टांगें खुजा रहा था.

 

ढोंडी को में उस वक़्त से जानती हूं जब उस का पति राव चौथे माले के सेठ की ड्रायवरी करता था. नाम से तो लगता है ढोंडी कोई लहीम शहीम मर्द मार क़िस्म की घाइन होगी मगर ढोंडी का क़द मुश्किल से चार फुट होगा. जी भर के बदसूरत, चुइयां सी आंखें, आगे को घुसका हुआ निचला जबड़ा और धंसा हुआ माथा.

 

चंद माह पहले ही एक अदद लौंडिया जनी थी तो राव ने दारू पी कर उस की हड्डी पसली नरम कर दी थी. डेढ़ माह की सूखी मारी बच्ची ना जाने रात को कब मर गई. और ढोंडी डाढ़ें मार मार कर रोई.

 

बाई लोग का कहना था कि ढोंडी ने टोपा दे के बच्ची की छुट्टी कर दी. यानी रात को चुपके से गला दबाया. मगर ऐसी बात होती तो फिर इतना मातम करने की क्या ज़रूरत थी.

 

ढोंडी का मर्द एक दम मवाली था. बहुत दारू पीता था. मगर ढोंडी कहती थी रात की वर्दी करता है. सेठ सारी सारी रात छोकरियों के संग ठट्ठा करता है. वो मोटर में बैठे–बैठे ऊब जाता है तो पव्वा मार लेता है.

 

बम्बई की शायद ही कोई बिल्डिंग हो जिसके अहाते के किसी कोने में, अंधेरी गैरज में या नौकरों की कोठरी में हत्ता कि गंदे संडासों में दारू नहीं कशीद की जाती. और फिर इधर वर्ली के सुनसान इलाक़े में डांडा की तरफ़ जाने वाली सड़क ये झोंपड़ पट्टी में तो बाक़ायदा ठर्रे की बार जमी हुई हैं…

 

मक्खन में तली हुई क्या फ़र्स्ट क्लास मछली खाना हो तो डांडा से बेहतर कोई जगह नहीं. वहां मुख़्तसर तरीन चोली और लंगोटी पहने मछेरनों का अक्खे बम्बई में जवाब नहीं. उधर जो नए फ़्लैट बन रहे हैं उनमें सेठ लोग अपनी रखैल रखते हैं.

 

सेठानियों की जासूसी कारवाईयों से महफ़ूज़ ये सेठ लोग जो फ़िल्म का धंदा करते हैं, यानी डिस्ट्रीब्यूटर और प्रोड्यूसर के बीच के कंडे जो फ़िल्म के इलावा छोकरी से लेकर हिट फिल्मों तक का लेन–देन पटाते हैं.

 

सेठ लोग जब ऊपर चले जाते हैं तो नीचे उतरने का वक़्त मुक़र्रर नहीं होता. नीचे ड्राईवर जुआ और शराब का दौर चलाते हैं. वहीं से राव को शराब की आदत ने पकड़ लिया. फिर ये आदत इतनी बढ़ी कि ढोंडी की सौत बन बैठी.

 

बच्ची के मरने के चंद महीने बाद ढोंडी का पैर फिर से भारी हो गया. अब के राव ने अल्टीमेटम दे दिया कि अगर फिर छोकरी डाली तो वो उस का पत्ता काट के दूसरी बहू करेगा…

 

लेकिन छोकरी पैदा होने से पहले ही एक दिन राव ने बच्चों को स्कूल से लाते समय गाड़ी फ़ुट–पाथ पर चढ़ा दी. बच्चों के चोट तो नहीं लगी मगर हाय तौबा इतनी मचाई कि सेठ ने उसे खड़े खड़े निकाल दिया.

 

राव और ढोंडी को गैरज ख़ाली कर के जाना पड़ा. जिस पर उसी दिन नए ड्राईवर ने क़ब्ज़ा कर लिया.

 

एक दिन क्या देखती हूं ढोंडी एक छिपकली की शक्ल की छोकरी छाती से चिपकाए फ़ुट–पाथ पर बैठने वाली तरकारी वाली के पास जमी हुई हैं. उजाड़ सूरत, खुसटी हुई…

 

“अरे ढोंडी कैसी है री?” मैंने रस्मन पूछ लिया.

“ठीक है बाई.” वो उठकर मेरे साथ साथ चलने लगी

“राव कैसा है?”

“ओ तो गया बी.”

“किधर गया?”

“समुंदर पार दुबई को.”

 

“तो कमबख़्त बच्ची की वजह से तुझे छोड़ गया.”

“नई बाई छोकरी तो बाद में आई. वो तो पैसा कमाने को गया.”

“ओहो तब तो ठाठ होंगे तेरे. बहुत रुपय भेजता होगा तुझे.”

“नईं बाई. उसे अपनी आई को भेजता.”

 

“उस की मां यानी तेरी सास को?” मराठी में आई मां को कहते हैं.

“नईं, वो लुच्ची जो उसे उधर भिजवाया.” तो ढोंडी साहिबा तंज़ फ़रमा रही थीं.

 

“उधर डांडा में दोनों का लफ़ड़ा चलता था. जाने से पहले राव ने ब्याह किया उससे और…”

 

“मगर दूसरी शादी तुझे तलाक़ दिए बिना कैसे कर सकता है. हथकड़ियां पड़ जाएंगी सुअर को.”

“कौन डालता हथकड़ी बाई?”

 

“अरे दस बारह साल हुए क़ानून पास हुआ कि एक से ज़्यादा बीवी की इजाज़त नहीं. तलाक़ बग़ैर दूसरी शादी जुर्म है.”

“काय को? अक्खा गुजराती, मराठी, सिंधी और भया लोग कितनी शादी बनाता.”

“सब पर केस चल सकता है.”

Ismat hughtai

 ढोंडी क़त’ई मानने को तैयार ना थी और ना मेरे पास वक़्त ना वसीला कि उसे क़ानून समझाती फिरूं. ख़ुद मेरे जान पहचान के मुअज़्ज़िज़ लोगों के पास एक बीवी के इलावा और कई औरतें हैं. सुना है पण्डित से फेरे डलवा लू, कोई नहीं पकड़ सकता. जी को तसल्ली भी हो जाती है कि मुआमला हलाल हो गया.

 

“बाई मेरे को काम देव.” ढोंडी पीछे पड़ गई. मेरी पुरानी झाड़ू कुटका करने वाली बाई, ढोंडी को मेरे साथ देखते ही दौलतीयां झाड़ने लगी. और दोनों में निहायत फ़र्राटे की मराठी में जंग शुरू हो गई. मैं इतने साल से बंबई में रहती हूं, कोई रसान रसान बोले तो मराठी, गुजराती, सिंधी, बंगाली ख़ासी पल्ले पड़ जाती है.

 

मगर जब उन्हें ज़बानों में तू–तू मैं–मैं शुरू हो जाती है तो मेरे ख़ाक समझ में नहीं आती. इंतिहाई रूह फ़र्सा पथरीली चीख़ों में तो हर लफ़्ज़ गाली बन कर कान के पर्दे फाड़ने लगता है. जैसे बिना टायर की गाड़ी खड़ंजे पर दौड़ रही हो.

 

मैंने दोनों को डांट कर अलग किया. बालिश्त भर की ढोंडी छोकरी को सीढ़ी पर टिका कर लॉंग कस रही थी. और ढाई मन की धोबन कुसुमाबाई चावलों की बोरी दीवार से टिका कर ख़म ठोका चाहती थी. बड़ी मुश्किल से दोनों को ठंडा किया और ढोंडी को समझाया कि कुसमाबाई की शान में कुछ भी कहा तो अच्छा ना होगा. वो तीन बरस से मेरे हां लगी है.

 

बरसात
शुरू होते ही बम्बई में बाई लोग का भाव गिरने लगता है. सुहाने जाड़ों और गर्मी में आंख लगाने को बाई नहीं मिलती. तब ना बिना लाईसेंस की छाबड़ी लगाई जा सकती है. ना कीचड़ पानी में लुथड़े हुए बाग़ बाग़ीचे, सुनसान कोने कथरे, समुंदर के किनारे ऊंचे नीचे चट्टान किसी भी सुहावने धंदे के लिए काम नहीं आ सकते.

 

फ़्लैटों की अगासियों में मुस्तक़िल वाले नौकर जमे होते हैं. हां इन दिनों बावर्ची लोग के ऐश होते हैं. और जब मालिक मकान सो जाते हैं तो बावर्ची किचन में राजा इंद्र बने मज़े उड़ाते हैं. बचा–खुचा खाना बड़ी दरिया दिली से अपनी प्रेमिकाओं को निगला देते हैं.

 

कभी चार पांच लफ़ंगे जमा हो कर जुआ शराब से शौक़ फ़रमाते हैं और अगर गर्मी में एयर कंडीशन कमरों में साहब लोग बंद हों तो ड्राइंगरूम में बिस्तर लग जाते हैं. जो सुबह दूध लाने के वक़्त ख़ाली करके सफ़ाई हो जाती है.

 

शुक्र है बरसात के बहाव में छिपकली की सूरत की छोकरी भी अल्लाह को प्यारी हो गई. सड़ी गली डस्टबिन में फेंकी हुई तरकारियों के छिलकों की भाजी खाने वाली मां का दूध पी कर मोटा ताज़ा बच्चा भी दम तोड़ देता वो तो फिर भी नाचीज़ छिपकली थी.

 

बच्ची
की मौत ने जैसे ढोंडी के दिन फेर दिए कि बाई लोग के मुख़्तलिफ़ धंदे जाग उठे और नौकरों का तोड़ा पड़ गया. ढोंडी ने बिल्डिंग के छब्बीस फ़्लैटों में से आठ दस मार लिए और सुबह से शाम तक कपड़ा बर्तन झाड़ू कुटका करके ख़ूब कमाने लगी.

 

राव ने रुपया भेज कर अपनी महबूबा को परदेस बुला लिया और ढोंडी ने लाल हरी धोतियां ख़रीद कर तरकारी वाली बाई के पास बैठना शुरू कर दिया. जहां बोझ भुजक्कड़ यानी शंकर की बूढ़ी मां ना तजुर्बा कार बाई लोग को ज़िंदा रहने के तीर बहदफ़ नुस्खे़ बांटती. ढोंडी पूरे ध्यान से उस के भाषण सुनती और सर धुनती.

 

काम निमटा कर ये बाई लोग शाम को नहा–धोकर सोलह सिंगार करती हैं. नुक्कड़ से पान के बेड़े ख़रीद कर कल्ला गर्म करती हैं और ताज़ी हवा खाने मैरीन ड्राईव पर समुंदर के किनारे मुंडेर पर बैठ कर तबादला–ए– ख़्यालात करती हैं. खुल कर हंसती बोलती हैं. राहगीरों से आंखें भी लड़ाती हैं. वहीं पहली बार छः फुट ऊंचे रघूनाथ घाटे से ढोंडी की आंख में लड़ गई.

राव
के बाद उसे मर्द की आंख में आंख डालने की मोहलत ही ना मिली थी. तीन चार बार रघू उस के सामने से बड़े बांकपन से तिरछी नज़र डालता गुज़रा. एक–बार ठहर कर बीड़ी भी सुलगाता रहा. फिर कुछ दूर मुंडेर पर बैठ गया. दो चार दिन में दूरी कम होती गई और क़ुरबत बढ़ती गई.

 

कभी पकौड़ियां, सींग चना भी पेश किया. पहले तो ढोंडी सर हिलाती रही थी. शंकर की मां की आंख का इशारा पाकर काँपते हाथों से दो चने भी उठा लिए जो उस की मुट्ठी में पसीजते रहे. मंह में डालने की हिम्मत ना हुई…

 

क़िस्सा मुख़्तसर एक दिन घंटी बजी, खोलने पर छः फुट ऊंचे रघू के साथ चार फुट की ढोंडी शरमाई लजाई खड़ी थीं.

 

“बाई हम सादी बनाया. गंगा बाई को बोलाया, कल से वो काम पे आएगी उन्होंने कुछ सरपट मराठी में दूल्हा मियां को कुछ हिदायात दीं और ख़ुद अंदर आ गईं.

 

“हमारा हिसाब कर देन बाई.” तीस रुपया महीना के हिसाब से पच्चीस दिन के पच्चीस होते थे. मैंने दस दस के तीन नोट पकड़ा दिए. ढोंडी के मुख से फूल झड़ रहे थे. झूटे तले की लाल लॉंग वाली नौ गिरी धोती और ऊदी चोली में ढोंडी का सियाह रंग फूटा निकल रहा था.

 

बालिश्त भर की महा बदसूरत औरत में बला की सेक्स अपील थी. पतली कमर भारी कूल्हे, पैरों में नए चांदी के तोड़े, माथे पर अठन्नी बराबर सिंदूर का टीका, सौ–सौ बहारें दिखा रहा था. बार–बार मंगल सूत्र को छू रही थी जैसे इतमीनान करना चाहती हो कि मुआमला क़त’ई मा’क़ूल है.

 

 

याद नहीं कई साल गुज़रे कि एक दिन चली आ रही हैं बी ढोंडी. पौने दो बरस के छोकरे का हाथ थामे पूरे दिन का पेट संभाले, मंह पर ठेकरे टूट रहे थे. मंगल सूत्र ग़ायब पैरों के तोड़े उड़न–छू.

 

“बाई कोई काम देव.”

गंगा बाई ने अपने वजूद का ऐलान एक अदद छींक से दिया और चाय की ट्रे मेज़ पर एक झटके से पटख़ दी ताकि मैं उनके रिऐक्शन को नोट कर लूं.

 

“क्या हुआ ढोंडी? रघूनाथ का क्या हाल है?”

जवाब में उन्होंने सरपट मराठी में जवाब खड़खड़ाया. साऊंड इफ़ेक्ट से मैंने फ़ौरन उन का मतलब समझ लिया, मुआमला गंभीर है.

 

जब ब्याह कर ससुराल पहुंचीं तो पता चला कि रघू की बीवी मैके पटख़वा दी गई थी क्यों कि उस की सास से एक मिनट नहीं बनती थी. चार चोट की मार देती थी. अब ढोंडी को भी मारती थी हलकट.

 

इतने बरस बम्बई में रही और हलकट के मअ’नी भी मेरे पल्ले नहीं पड़े. हां इतना पता चला कि हलकट के मअ’नी बहुत ही ख़राब, बदमाश, मरख़नी, चालबाज़ औरत.

 

“उसने तुझे मारा और पिट ली, तू भी मारती बुढ़िया को.”

 

काय की बुढ़िया, बस ढोंडी से साल दो साल छोटी ही होगी. लंबी तड़ंगी, मर्द मार औरत, फूंक मारे तो ढोंडी जैसी चुहिया वो जाये. बुड्ढे को रोज़ नोटाक मंगताइज. यानी अगर ठर्रे का पव्वा ना मिले तो तूफ़ान बरपा कर देता है. उस की औरत तो रघू दस बारह साल का था तब ही ख़ल्लास हो गई थी.

 

उस के बाद रघू का बाप इधर उधर मंह मारता रहा. राज मज़दूर का काम करता था. बम्बई में बड़े ज़ोर से बिल्डिंगें खड़ी हो रही थीं. ख़ाक–धूल फेफड़ों में जमती गई, सीलन की वजह से गठिया भी हो गई और दमा तो है ही दम के साथ. इस वक़्त तक रघू का ब्याह हो चुका था मगर कोई मुस्तक़िल रोज़गार आज तक नहीं जुड़ा. बुड्ढा गांव गया तो किसी बहुत सी छोकरियों के बाप ने एक अदद उस के सर मंढ दी.

 

बुड्ढा तो किसी करम का नहीं था. रघू और सौतेली मां भूरीबाई का टांका जुड़ गया जिस पर उस की पत्नी ने बड़े फ़ेल मचाए. रघू ने हलकट की मदद से उसे मार कूट कर मैके पटख़ दिया क्यों कि उस चुड़ैल ने भी छोकरी थोप दी थी.

 

बुड्ढे को जवान बीवी और बेटे के ताल्लुक़ात पर क़तई कोई एतराज़ ना होता अगर उस की नोटाक पाबंदी से मिलती रहती. मगर इतना ठर्रा ख़रीदने के लिए जो तीनों को पूरा पड़ जाये. भूरी तो इन दोनों को भी पीछे छोड़ देती और पानी की तरह दारू डकार जाती थी.

 

दारू का तोड़ा पड़ता तो जूतम पैज़ार शुरू हो जाती. रघू जब भूरी की ठुकाई करता तो बुड्ढे के दिल में कलियां चटख़्ने लगतीं. रक़ाबत का जज़्बा तो कभी का मर चुका था कि ये नाज़ुक एहसास धन की छाओं में ही फलता फूलता है.

 

बूढ़े की रग–रग फोड़ा बन चुकी थी तब ही रक़ाबत की आग भी सड़गल के रिस गई होगी. उसे तो बस लगन थी और वो दारू की, कि सबसे बड़ा मरहम मदहोशी है.

 

पता नहीं बुड्ढे के ख़ानदान के फ़र्द अक़लियत की फ़हरिस्त में आते हैं कि नहीं. आधा बम्बई तो उसी क़बीले का नज़र आता है. जिनका कोई पुरसान–ए–हाल नहीं. पिछली दफ़ा बड़ा दुंद मचा था. बुड्ढे ने बहू और रघू के साथ जा कर वोट भी डाला था. तमाम दीवारें गाय, बैल और घोड़े की तस्वीरों से भर गई थीं.

 

बड़ी मुश्किल से दो बरसातों में धुलीं. उसे क़तई पता नहीं था कि वो उनको वोट क्यों दे रहा है. उसे लारी में ले जाया गया और उसे जो बताया गया था उसी तस्वीर पर निशान लगा दिया था. नीली स्याही का निशान उसने हस्ब–ए–हिदायत फ़ौरन अंगोछे से रगड़ डाला था.

 

उसे गिनती नहीं आती और ना याददाश्त काम करती है पर उस दिन उसने कितने ही पर्चे डब्बों में डाले और उस दिन सबको मिलाकर पूरे अड़तालीस रुपय हाथ लगे थे तब की दिन जी भर के ठर्रा और बड़ा गोश्त उड़ाया था…

 

पता नहीं कौन गद्दी पर बैठा कौन उतरा, पर्चियों पर बनी तस्वीरें ख़ामोश हैं ना दीवारों पर लगे ऊंट घोड़े की वो ज़बान जानता है जो अपनी मुश्किलात का किसी से हल पूछे और तब भूरीबाई के दिमाग़ आसमान पर चढ़ने लगे थे. घर का ख़र्चा चलाने के लिए वो झोंपड़ी वाली बाई की मदद से धंदा करने लगी थी.

 

वहीं उस की एक फ़िल्म वाले से भेंट हो गई. और वो उसे भीड़ के सीन में एक्स्ट्रा बनाके ले गया. उसी दिन से भूरीबाई अपने को फ़िल्म स्टार समझने लगी है और धरती पर पैर नहीं टिकते.

 

उधर ढोंडी की कमाई की ख़ैर–ख़बर दूर दूर तक फैल रही थी. आठ दस घरों का काम समेटती है फ़ी घर से तीस पैंतीस मार लेती है. पैर में पाज़ेब भी झनकती है और सूद पर रुपया भी चलाने लगी है. तभी रघू एक जान छोड़ हज़ार जान से इस पर आशिक़ हुआ. मगर ढोंडी के नसीब ही खोटे हैं.

 

हलकट ने फ़ेल मचाए कि फ़िल्म वाले ने उसे हीरोइन बनाने का पक्का वादा किया है. रघू की बीवी जो मैके चली गई थी उस का भाई नहीं भेजता कि वहां नई कॉलोनी में बहुत काम है. जो मज़दूर दूर–दूर के गांव से आकर जुटे हैं वो घर–वाली थोड़े संग ले के आए हैं. उनकी भी तो ज़रूरियात हैं. रघू गया, हाथ पैर जोड़े मगर भाई टस से मस ना हुआ.

 

उस की छोकरी मर गई. अच्छा हुआ अब उस की गोद में छः महीने का लौंडा है. रघू को ताव आता है और ठंडा हो जाता है. उस का साला बहन की कमाई खा खाकर सांड हो रहा है.

 

कम्पाउंड में अब भी झगड़ा चल रहा है.

बड़ी मुश्किल से समझ में आता है कि ढोंडी पर किसी ने क़ातिलाना हमला नहीं किया बल्कि ढोंडी ने अपने पति की नाक चबा डाली. थूकी भी नहीं शायद निगल गई. पुलिस रघू को ले गई मगर ढोंडी इर्तिकाब–ए–जुर्म के बाद सटक गई.

 

रघू बेहोश है, शायद मर रहा है या मर चुका है. इस का मतलब है ढोंडी इसी इमारत के किसी फ़्लैट में अंडर ग्राउंड हो गई है मगर चौकीदार अंदर से ताला मार कर बैठ गया है. सुबह से पहले नहीं खोलेगा. मुझे सख़्त बेचैनी है. छोकरे चौकीदार पर आवाज़े कस रहे हैं, पर वो टस से मस नहीं होता. सुबह जब पुलिस ढोंडी की तलाश में आएगी तब दरवाज़ा खुलेगा.

 

मुझे ढोंडी से डर लग रहा है. उसने पति की नाक चबा डाली. मैंने आज तक ऐसी बात नहीं सुनी कि किसी औरत ने ग़ुस्सा या रक़ाबत में पति की नाक काटी हो. हां मर्दों की नाक तब ज़रूर कट जाती है जब उनकी बहन बीवी या बेटी किसी के संग भाग निकलीं या हराम का बच्चा जन बैठें, पर औरत ज़ात पर पति की नाक सच–मुच काट डालना बिलकुल नहीं सजता.

 

मैं बड़ी तरक़्क़ी–पसंद बनती हूं. औरत और मर्द की बराबरी की शिद्दत से क़ाइल हूं. मगर ढोंडी का नाक चबा डालना बहुत वैसा लग रहा है. शायद इसलिए कि दुनिया की तारीख़ में मेरे इल्म के हिसाबों में ये पहला हादसा है.

 

“अरे साली चबा के गुट गई, थूकी भी नहीं.” नीचे मुंडेर पर बैठा कोई तबसरा कर रहा है. “हमने बहुत ढूंढी नहीं मिली शायद किसी की चप्पल में चिपकी चली गई.”

 

और ढोंडी किसी बात का जवाब नहीं देती. उसका चुप का सन्नाटा मेरे कानों के पर्दे फाड़े दे रहा है. उफ़ उस की आंखें कहां गुम हो गईं हैं. उनमें किस बला की ख़ाली–पन है. आख़िर सुबह हो गई. फाटक का ताला खुला मगर पुलिस नहीं आई. लोग बालकनियों पर खड़े इंतिज़ार कर रहे हैं, फ़ुट–पाथ पर भी जमाव जमे हैं

 

ढोंडी सहमी हुई उतर कर फुट–पाथ पर क़दम तौल तौल कर चल रही है. बाई लोग आपस में बुद–बुद कर रही हैं उनकी आंखों में इस औरत के लिए सहमी हुई नफ़रत है जैसे ज़हरीली नागिन ने किसी मुक़द्दस चीज़ को डस लिया हो.

 

ढोंडी मुजरिम सी बनी सफ़ाई पेश कर रही है. उसने पति देव की नाक नहीं काटी. नशे में धुत्त जब वो उस पर पिल पड़ा और कपड़े फाड़ने लगा तो उसने काटा नोचा तो बहुत मगर वो पति की नाक हरगिज़ नहीं काट सकती.

 

हो सकता है वो उस के होंट चूमने झुका हो और नाक ढोंडी के दांतों की ज़द में आ गई हो. हां इस पर रघू का ख़ून तो बरसा क्योंकि उस के जिस्म पर कोई ज़ख़्म नहीं. उसके कपड़ों पर पति के ख़ून के दाग़ धोकर भी पूरी तरह नहीं छूटे.

 

मगर बाई लोग उससे आंखें चुरा रही हैं. उसने बड़ी बेजा की. पति भगवान समान होता है. ख़ुदाए मजाज़ी होता है. अक्सर औरतों ने अपने प्रेमियों का ग़ैज़–ओ–ग़ज़ब की हालत में ख़ून कर दिया है असलिए में ख़ंजर उतार दिया है.

 

ढोंडी भी अगर रघू नाथ का नर्ख़रा चबा डालती, उस की आंखें फोड़ देती तो भी कुछ ना जाता, मगर मर्द की नाक उफ़ वो चाहे चाक़ू से काटी जाये या दाँतों से बड़ी घिनौनी हरकत है जो हरगिज़ क़ाबिल–ए–मु’आफ़ी नहीं.

 

दिन ढला, दोपहर हुई और समुंदर पर डूबत हुए सूरज ने आग सी लगादी. फ़िज़ा में नहूसत सी तारी है. ढोंडी दीवार से लगी बैठी है. ना वो गई और ना किसी फ़्लैट से उस की पुकार आई. ना जाने कब सब यही चाह रहे थे कि रघू मर जाये और ढोंडी को फांसी हो जाएगी कि क़िस्सा पाक हो.

 

कोई पांच साढे़ पांच का अमल होगा कि चर्चगेट स्टेशन की और से लौंडों की भीड़ में घिरा लंबा बांस जैसा रघू नाथ घाटे आता दिखाई दिया. लौंडे उचक उचक कर उस की नाक देख रहे थे.

 

रघू
की नाक पर टांकों तक का निशाना नहीं था. मोजिज़ा हो गया, ज़रूर धोलकिया ने केस हैंडल किया होगा. भई कमाल है ना फाया ना पट्टी. यहां तक कि खरोंच तक नहीं. लोग गुम–सुम उस की नाक को तक रहे हैं और रघू सबकी और मुश्तबा नज़रों से देखता लपका चला आ रहा है.

 

“कौन बोला नाक काटा?” रघू बिगड़ खड़ा हुआ.

“जब जासती पीता तो नाक से खून आता. फिर उस हलकट ने हमको टक्कर मारा. तभी हम बेहोश हो गया.”

 

एक दम ढोंडी चिंघाड़ चिंघाड़ कर रोने लगी और सरपट मराठी में ना जाने क्या कह रही थी.बालकनियों से साहब लोग झुक–झुक कर ना जाने क्या कह रहे थे.

 

सब एक दम बोल रहे थे और किसी को दूसरे की बात समझने की फ़ुर्सत ना थी. और कुछ समझने की बात भी ना थी. सब ही कुछ बौखलाए हुए थे. रघू जल्दी जल्दी ढोंडी का गोडर समेट रहा था… उन लोगों के जाने के बाद मजमा कुछ मायूस सा हो कर बिखर गया.

 

इतने धांसू ड्रामे का अंजाम इतना फुस फुसा. बिजली के खम्बे की रोशनी में रखू की नाक और ढोंडी के मंह से ख़ून उबलता देखकर किसी मनचले ने पुलिस को फ़ोन कर दिया.

 

हस्पताल के डाक्टर भी बेहद ख़फ़ा थे कि नक्सीर के केस के लिए उनकी नींद हराम की. पुलिस शर्मिंदा थी कि ग़ुंडों ने जान–बूझ कर बेवक़ूफ़ बना दिया.

 

ख़ुद
मेरे ऊपर सख़्त खिसयान पन तारी था. जिसका इल्ज़ाम मैं किसी ना किसी पर थोपने के मंसूबे बना रही थी. मैं जो ख़ुद को निहायत रोशन ख़्याल, दुखी तबक़े का हम दर्द और आम इन्सान से बेहद क़रीब समझती हूं, उनके बारे में बस इतना जानती हूं कि नक्सीर को क़त्ल की वारदात यक़ीन कर लेती हूं. मर्द–ओ–औरत के बराबर हुक़ूक़ की अलम बरदार मर्द नाक काटता है तो नफ़रत करती हूं मगर औरत मर्द की नाक काटे तो दहल जाती हूं. उफ़ कितनी शर्म की बात है.

 

The End

 



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Engr. Maqbool Akram

Engr. Maqbool Akram

I am, Engineer Maqbool Akram (M.Tech. Mechanical Engineer from AMU ), believe that reading and understanding literature and history is important to increase knowledge and improve life. I am a blog writer. I like to write about the lives and stories of literary and historical greats. My goal is to convey the lives and thoughts of those personalities who have had a profound impact on the world in simple language. I research the lives of poets, writers, and historical heroes and highlight their unheard aspects. Be it the poems of John Keats, the Shayari of Mirza Ghalib, or the struggle-filled story of any historical person—I present it simply and interestingly.

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Renuka Devi: Daughter of founder of Abdullah Women’s College A.M.U.Aligarh was legendary actress of pre-partition era (Begum Khurshid Mirza)

Renuka Devi: Daughter of founder of Abdullah Women’s College A.M.U.Aligarh was legendary actress of pre-partition era (Begum Khurshid Mirza)

May 11, 2025

साहब-ए-करामात- फाताँ ने वहीं चारपाई से कहा। “हाँ…….मौलवी साहब की दाढ़ी और पट्टे।” सआदत हसन मंटो

May 5, 2025
धुंआ धुंआ ज़िंदगी लाइफ़ इन मेट्रो; ट्वंटी  ट्वंटी क्रिकेट की तरह तलाक़ का निर्णय भी जल्दी आगया. और वे दोनों ‘एक्स’ होगए (नंदकिशोर बर्वे)

धुंआ धुंआ ज़िंदगी-लाइफ़ इन मेट्रो; ट्वंटी ट्वंटी क्रिकेट की तरह तलाक़ का निर्णय भी जल्दी आ गया. और वे दोनों ‘एक्स’ हो गए. (नंद किशोर बर्वे)

May 2, 2025
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तुमने क्यों कहा था मैं सुंदर हूं: फ़ोटो में माया की तरह छरहरे शरीर, परंतु बहुत सुंदर अनुपात के अवयव की निरावरण युवती, दाईं बांह का सहारा लिये एक चट्टान पर बैठी, कहीं दूर देख रही थी (यशपाल की कहानी )

May 2, 2025
अलाउद्दीन खिलजी, ने भारत की रक्षा दुनिया के क्रूरतम लड़ाके ‘मंगोलो’ से की। जिन्होंने बगदाद के खलीफा अबू मुस्तसिम बिल्लाह तक को मार दिया था।

अलाउद्दीन खिलजी, ने भारत की रक्षा दुनिया के क्रूरतम लड़ाके ‘मंगोलो’ से की। जिन्होंने बगदाद के खलीफा अबू मुस्तसिम बिल्लाह तक को मार दिया था।

May 2, 2025
जॉन कीट्स ब्रिटेन के महान कवि और फैनी ब्रॉन की असफल प्रेम कहानी- कीट्स की मृत्यु महज 25 साल में हो गई दोनों ने शादी नहीं की उसने विधवा के रूप में कीट्स  की मृत्यु पर शोक मनाया।

जॉन कीट्स ब्रिटेन के महान कवि और फैनी ब्रॉन की असफल प्रेम कहानी- कीट्स की मृत्यु महज 25 साल में हो गई दोनों ने शादी नहीं की उसने विधवा के रूप में कीट्स की मृत्यु पर शोक मनाया।

May 2, 2025
Fall of Constantinople नौजवान सुल्तान मोहम्मद फतेह ने 29 मई 1453 को कुस्तुनतुनिय फतह (इस्तांबूल) किया.रोमन साम्राज्य का अंत. इस के बाद इस्लाम का यूरोप में प्रवेश.

Fall of Constantinople नौजवान सुल्तान मोहम्मद फतेह ने 29 मई 1453 को कुस्तुनतुनिय फतह (इस्तांबूल) किया.रोमन साम्राज्य का अंत. इस के बाद इस्लाम का यूरोप में प्रवेश.

May 2, 2025
पटना की बेहद हसीन तवायफ और एक पुजारी की लव स्टोरी – यह सूखा हुआ पान हमेशा उनकी विधवा पत्नी के लिए रहस्य ही बना रहा.

पटना की बेहद हसीन तवायफ और एक पुजारी की लव स्टोरी – यह सूखा हुआ पान हमेशा उनकी विधवा पत्नी के लिए रहस्य ही बना रहा.

April 24, 2025
बड़ी शर्म की बात: (इस्मत चुग़ताई) औरत मर्द की नाक काटे तो दहल जाती हूं. उफ़ कितनी शर्म की बात

बड़ी शर्म की बात: (इस्मत चुग़ताई) औरत मर्द की नाक काटे तो दहल जाती हूं. उफ़ कितनी शर्म की बात

March 22, 2025
नशे की रात के बाद का सवेरा (ख़ुशवंत सिंह) अपने अधूरे सपने का अन्त देखने लगा-जो एक विवाहित आदमी बिना संTकोच के कर सकता है.

नशे की रात के बाद का सवेरा (ख़ुशवंत सिंह) अपने अधूरे सपने का अन्त देखने लगा-जो एक विवाहित आदमी बिना संTकोच के कर सकता है.

March 18, 2025
अंतिम प्यार: ताड़ के वृक्षों के समूह के समीप मौन रहने वाली छाया के आश्रय में एक सुन्दर नवयुवती नदी के नील-वर्ण जल में अचल बिजली-सी मौन खड़ी थी. (रबिन्द्रनाथ टैगोर की कहानी )

अंतिम प्यार: ताड़ के वृक्षों के समूह के समीप मौन रहने वाली छाया के आश्रय में एक सुन्दर नवयुवती नदी के नील-वर्ण जल में अचल बिजली-सी मौन खड़ी थी. (रबिन्द्रनाथ टैगोर की कहानी )

March 17, 2025
नाच पार्टी के बाद. वन नाइट लव स्टोरी (रूसी कहानी हिंदी में) लियो टॉल्स्टॉय

नाच पार्टी के बाद. वन नाइट लव स्टोरी (रूसी कहानी हिंदी में) लियो टॉल्स्टॉय

March 17, 2025
परवीन शाकिर छोटी उम्र बड़ी जिंदगी वो शायरा जिनके शेरों में धड़कता है आधुनिक नारी का दिल- दिल को उस राह पे चलना ही नहीं, जो मुझे तुझ से जुदा करती है

परवीन शाकिर छोटी उम्र बड़ी जिंदगी वो शायरा जिनके शेरों में धड़कता है आधुनिक नारी का दिल- दिल को उस राह पे चलना ही नहीं, जो मुझे तुझ से जुदा करती है

March 17, 2025
आय विल कॉल यू मोबाइल फोन (रूपा सिंह) जैसे ही डाटा ऑन किया खट् खट् कर कई मैसेज दस्तक देते चले आये इतनी तेजी से सबकी खबरें स्क्रीन पर चमक रही थी

आय विल कॉल यू मोबाइल फोन (रूपा सिंह) जैसे ही डाटा ऑन किया खट् खट् कर कई मैसेज दस्तक देते चले आये इतनी तेजी से सबकी खबरें स्क्रीन पर चमक रही थी

March 17, 2025
चार्ल्स डिकेंस: के प्रेम प्रसंग विक्टोरियन इंग्लैंड के महान उपन्यासकार अपने युग के रॉक स्टार गलत जगहों पर प्यार की तलाश

चार्ल्स डिकेंस: के प्रेम प्रसंग विक्टोरियन इंग्लैंड के महान उपन्यासकार अपने युग के रॉक स्टार गलत जगहों पर प्यार की तलाश

March 18, 2025
पंच परमेश्वर: फूलो ने घूंघट नहीं खींचा मुंह उठा दिया गेहुंए रंग में दो मांसल आंखें थीं जिनमें  रात का खुमार अभी बिल्कुल मिटा नहीं (रांगेय राघव की कहानी)

पंच परमेश्वर: फूलो ने घूंघट नहीं खींचा मुंह उठा दिया गेहुंए रंग में दो मांसल आंखें थीं जिनमें रात का खुमार अभी बिल्कुल मिटा नहीं (रांगेय राघव की कहानी)

March 18, 2025
मैं खुदा हूँ Ana’l haqq मंसूर अल-हलाज: जल्लाद ने सिर काटा तो धड़ से खून की धार फूट पड़ी और अचानक उनके शरीर से कटा एक-एक अंग चीखने लगा च्मैं ही सत्य हूं

मैं खुदा हूँ Ana’l haqq मंसूर अल-हलाज: जल्लाद ने सिर काटा तो धड़ से खून की धार फूट पड़ी और अचानक उनके शरीर से कटा एक-एक अंग चीखने लगा च्मैं ही सत्य हूं

March 17, 2025
नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है  तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

March 18, 2025
अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

March 18, 2025
Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

March 17, 2025
सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

March 17, 2025
Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

March 17, 2025
मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

March 17, 2025
Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

March 18, 2025
Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

March 17, 2025
River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

March 17, 2025
Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

March 18, 2025
पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

March 17, 2025
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