आज हम एक ऐसे शायर, और गीतकार की बात करने जा रहे हैं, जिसका एक-एक अक्षर मोतियों की तरह उनकी शायरी में हमेशा बिखरता आया. हम बात कर रहे हैं- मजरूह सुल्तानपुरी (Majrooh Sultanpuri) की।
मजरूह सुल्तानपुरी ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते थे, जहां पर संगीत और शेर-ओ-शायरी की बात तो बहुत दूर की है, उनके परिवार में तो तालीम का भी रिवाज भी नहीं था।
असरारुल हसन खान उर्फ़ मजरूह सुल्तानपुरी को एक तहसीलदार की बेटी से प्रेम था, लड़की का बाप रसूखदार था, मजरूह की मोहब्बत उसे नागवार गुजरी नतीजतन मोहब्बत की यह दास्तां अधूरी रह गयी।
मोहब्बत में लगे ज़ख्मों को हर्फ़ों में पिरोकर समाज के लिए छोड़ गया वह शायर, जिसके नगमों को दुनिया आज तक गा रही है।
ग़रीब-गुरबों का दर्द उनकी सांसों में धड़कता था, इसलिए यह शायर हुकूमत से ख़ल्क़ का नुमाइंदा बनकर उलझने से भी नहीं कतराता था। पेशे से हकीम, हर्फों के जादूगर और दर्द के चारागर इस अजीम शायर की शायरी और गीतों में दुनिया अलग रंग में नज़र आती है।
मजरूह शुरुआती दिनों में पेशे से हकीम थे। लोगों की नब्ज़ देखकर दवाई देते थे। न सिर्फ जड़ी-बूटियों से, बल्कि हर्फों से भी हर दर्द की दवा बनाते फिरते थे। मुशायरे के मंचों से होते हुए वह फिल्मों की खिड़की से कूदकर हमारे दिलों में इस तरह दाखिल हुए कि हमारे हर अहसास के लिए गीत लिख गए।
एक इंटरव्यू के दौरान मजरूह सुल्तानपुरी ने बताया था- हम राजपूतों के परिवार से आते थे. उस दौरान राजपूतों के परिवार की सात पुश्तों तक में तालीम नहीं होती थी. उस समय ये वॉरियर हुआ करते थे. जब अंग्रेज चले गए तो वॉरियर तो रहे नहीं।
बस तहजीबी तौर पर रह गए. शायर या गायक होना हमारे यहां बहुत खराब माना जाता था और शिक्षा की तो कभी कोई बात करता ही नहीं था. हालांकि, यह याद है कि बचपन से ही राइम सेंस था. फिर किसी तरह बाद में तालीम का महत्व समझा औऱ शिक्षा शुरू हुई।
मजरूह सुल्तानपुरी एक बार एक मुशाएरे के लिए मुंबई आए। उन्हें इस मुशाएरे में काफी सराहना मिली। इस मुशाएरे में उस जमाने के नामी फिल्म निर्माता और निर्देशक अब्दुल रशीद कारदार भी आए थे, जिन्हें ए आर कारदार के नाम से पहचाना जाता था।
कारदार को भी मजरूह सुल्तानपुरी के शेर और नज्म पसंद आईं। उन्होंने तभी सुल्तानपुरी के सामने यह पेशकश रख डाली कि आप मेरी फिल्म के गीत लिखिए। हालांकि, उस समय मजरूह सुल्तानपुरी ने इनकार कर दिया ।उन्हें लगता था कि फिल्मों में गीत लिखना अच्छा काम नहीं है।
इसके बाद एआर कारदार एक फिल्म बना रहे थे। यह बात 1944 की है । कारदार की इस फिल्म का नाम था- ‘शाहजहां’। इस फिल्म का संगीत दे रहे थे नौशाद साहब और गीत लिखने का काम मशहूर लेखक डीएन मधोक को दिया गया।
हालांकि, मधोक ने नौशाद साहब के साथ हुए मनमुटाव के कारण यह फिल्म बीच में ही छोड़ दी। अब कारदार और नौशाद दोनों परेशान कि फिल्म के गाने किससे लिखवाए जाएं। इसी बीच एआर कारदार को जिगर मुरादाबी का नाम ध्यान में आया।
उन्होंने जिगर मुरादाबादी से मुलाकात की और उन्हें साइनिंग अमाउंट दे दिया । अब जिगर मुरादाबादी घर पहुंचे, तो उन्हें महसूस हुआ कि यह काम तो वह नहीं कर पाएंगे । फिल्मों में सिचुएशन के हिसाब से गाने लिखना उनके बस की बात नहीं ।
अगले दिन जिगर मुरादाबादी ने साइनिंग अमाउंट और एक लेटर कारदार साहब को भेज दिया । इस लेटर में लिखा था कि आपकी धुन और स्थिति के हिसाब से मैं गीत नहीं लिख पाऊंगा । अगर मेरी किताब से आपको कोई गीत पसंद आता है, तो उसे आप रख लीजिए।
जिगर मुरादाबादी के इनकार के बाद अब फिर से कारदार साहब के आगे परेशानी खड़ी थी । वह दूसरे शायर की तलाश में जुट गए। तलाश के दौरान उनके दिमाग में नाम आया जिगर मुरादाबादी के शागिर्द मजरूह सुल्तानपुरी का । सुल्तानपुरी साहब उन दिनों जिगर मुरादाबादी के साथ उनके वहीं रहा करते थे।
एआर कारदार ने एक बार फिर से जिगर मुरादाबादी से संपर्क किया और उनसे कहा- अगर आप मेरी फिल्म में गाने नहीं लिख सकते तो कोई बात नहीं, लेकिन आप मजरूह से कहिए कि मेरी फिल्म के गाने लिख दे।
अब मजरूह ने फिर कारदार को इनकार कर दिया । उन्होंने जिगर मुरादाबादी से कहा- जब आप गीत नहीं लिखना चाहते, तो मैं क्यूं लिखूं । मैंने भी कभी सिचुएशन पर गीत नहीं लिखा ।
मजरूह सुल्तानपुरी की बात सुनकर जिगर मुरादाबादी ने उनसे कहा- अगर फिल्मों में गीत लिखोगे, तो पैसा कमाने का मौका मिलेगा। जिंदगी अगर अच्छे से जीनी है, तो उसके लिए दौलत बहुत जरूरी है।
जिगर मुरादाबादी के समझाने के बाद सुल्तानपुरी ने इस फिल्म के लिए हामी भरी ।अब सुल्तानपुरी, कारदार से मिलने पहुंचे । कारदान ने उन्हें फिल्म की एक सिचुएशन बताई और उस पर गीत लिखने को कहा ।
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह सिचुएशन मैंने दो लोगों को और दी है ।जिसकी ज्यादा अच्छी लगेगी, उसका गीत हम फिल्म में इस्तेमाल करेंगे । अब अगले दिन सुल्तानपुरी गीत लेकर कारदार के सामने जा खड़े हुए।
कारदार ने गीत पढ़ा, तो वह खुशी के मारे उछल पड़े और कहने लगे कि बस यही चाहिए था ।वह गीत था- ‘कर लीजिए चलकर मेरी जन्नत के नजारे, जन्नत ये बनाई है मोहब्बत के सहारे…’ इसी गीत के बलबूते मजरूह सुल्तानपुरी को फिल्म इंडस्ट्री की अपनी पहली फिल्म ‘शाहजहां’मिल गई।
मजरूह के इस फिल्म के दो गाने बहुत ही फेमस हुए। पहला गीत है- गम दिए मुस्तकिल कितना नाजुक है दिल और दूसरा गीत है- जब दिल ही टूट गया, हम जीकर क्या करेंगे ।
इन दोनों गानों को केएल सहगल ने अपनी आवाज दी।यह दोनों गाने आज भी लोगों की जुबां पर चढ़े हुए हैं। इतना ही नहीं, यही गाने केएल सहगल की पहचान भी बने थे।
इसके बाद फिल्म ‘अंदाज’ से उन्हें और लोकप्रियता मिली । इस फिल्म के बाद उन्हें एक कामयाब गीतकार के तौर पर जाना जाने लगा। एक के बाद एक मजरूह सुल्तानपुरी फिल्मों के हिट गाने लिखते चले गए ।
उन्होंने केएल सहगल से लेकर नई पीढ़ी के एक्टर शाहरुख खान, आमिर खान तक के लिए गाने लिखे। फिल्मी गीतकार के रूप में मजरूह सुल्तानपुरी वक्त को छोटा करते हुए हर उम्र के साथ खड़े दिखाई देते हैं।
मजरूह सुल्तानपुरी ने 350 फिल्मों में दो हजार से ज्यादा गीत लिखे। इनमें से 10 सर्वाधिक लोकप्रिय नगमें हम आपके लिए पेश कर रहे हैं। सुनते हैं मजरूह सुल्तानपुरी के टॉप 10 ever green सदा बहार गीत…
बहरहाल, अब अगली बार, जब आप यह गाना सुनेंगे तो जेल में बैठे उस इंसान को जरूर याद कीजिएगा, जिसके पास बंद दीवारों में सिर्फ दो ही रास्ते थे। एक, या तो निराशा को गले लगा ले। या फिर दूसरा, खुद को यह कहकर आशा से भर सके, ‘अनहोनी पथ में कांटे लाख बिछाए, होनी तो फिर भी बिछड़ा यार मिलाए। ये बिरहा ये दूरी दो पल की मजबूरी, फिर कोई दिलवाला काहे को घबराए। धारा जो बहती है, मिलके रहती है। बहती धारा बन जा, फिर दुनिया से डोल…’
ये गीत न केवल भारतीय संगीत के इतिहास का हिस्सा हैं, बल्कि मजरूह सुल्तानपुरी की साहित्यिक प्रतिभा और उनके प्रेम और दर्द को शब्दों में पिरोने की क्षमता का भी प्रमाण हैं।
1- एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल film “Dharam Karam “1975

इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल
जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल
दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत
कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल
इक दिन बिक जायेगा …
ला ला ललल्लल्ला
(अनहोनी पग में काँटें लाख बिछाए
होनी तो फिर भी बिछड़ा यार मिलाए ) – (२)
ये बिरहा ये दूरी, दो पल की मजबूरी
फिर कोई दिलवाला काहे को घबराये, तरम्पम,
धारा, तो बहती है, बहके रहती है
बहती धारा बन जा, फिर दुनिया से डोल
एक दिन …
(परदे के पीछे बैठी साँवली गोरी
थाम के तेरे मेरे मन की डोरी ) – (२)
ये डोरी ना छूटे, ये बन्धन ना टूटे
भोर होने वाली है अब रैना है थोड़ी, तरम्पम,
सर को झुकाए तू, बैठा क्या है यार
गोरी से नैना जोड़, फिर दुनिया से डोल
एक दिन
2-पहला नशा पहला खुमार… film “ jo Jeeta woho Sikandar”1992
पहला नशा, पहला खुमार
नया प्यार हैं नया इंतज़ार
करलूँ मैं क्या अपना हाल
ऐ दिल-ए-बेक़रार मेरे दिल-ए-बेक़रार
तू ही बता
(उड़ता ही फिरूँ इन हवाओं में कहीं
या मैं झूल जाऊँ, इन घटाओं में कहीं ) – २
एक करलूँ आसमान और ज़मीन
अब यारो क्या करूँ क्या नहीं
पहला नशा, पहला खुमार …
(उसने बात की, कुछ ऐसे ढंग से
सपने दे गया वो हज़ारों रंग के ) – २
रह जाऊँ जैसे में हार के
और चूमे वो मुझे प्यार से
पहला नशा, पहला खुमार
नया प्यार हैं नया इंतज़ार
करलूँ मैं क्या अपना हाल,
ऐ दिल-ए-बेक़रार मेरे दिल-ए-बेक़रार,
तू ही बता
3-ख्वाब हो तुम या कोई हकीकत हो तुम-film” Teen Deviyan”1965.
ख्वाब हो तुम या कोई हक़ीक़त
कौन हो तुम बतलाओ
हो ओ ओ, देर से कितनी दूर खड़ी हो
और करीब आ जाओ
ख्वाब हो तुम या कोई हक़ीक़त
कौन हो तुम बतलाओ
हो ओ ओ, देर से कितनी दूर खड़ी हो
और करीब आ जाओ
धड़कनो ने सुनी एक सदा पाओं की
धड़कनो ने सुनी एक सदा पाओं की
और दिल पे लहराई आँचल की छाँव सी
और दिल पे लहराई आँचल की छाँव सी
ख्वाब हो तुम या कोई हक़ीक़त
कौन हो तुम बतलाओ
हो ओ ओ, देर से कितनी दूर खड़ी हो
और करीब आ जाओ
ख्वाब हो तुम या कोई हक़ीक़त
कौन हो तुम बतलाओ
हो ओ ओ, देर से कितनी दूर खड़ी हो
और करीब आ जाओ
मिल ही जाती हो तुम मुझको हर मोड़ पे
मिल ही जाती हो तुम मुझको हर मोड़ पे
चल देती हो कितने अफ़साने छोड़ के
चल देती हो कितने अफ़साने छोड़ के
ख्वाब हो तुम या कोई हक़ीक़त
कौन हो तुम बतलाओ
हो ओ ओ, देर से कितनी दूर खड़ी हो
और करीब आ जाओ
ख्वाब हो तुम या कोई हक़ीक़तकौन हो तुम बतलाओ
हो ओ ओ, देर से कितनी दूर खड़ी हो
और करीब आ जाओ
फिर पुकारा मुझे, फिर मेरा नाम लो
फिर पुकारा मुझे, फिर मेरा नाम लो
गिरता हूँ, फिर अपनी बाहों में थाम लो
गिरता हूँ, फिर अपनी बाहों में थाम लो
ख्वाब हो तुम या कोई हक़ीक़त
कौन हो तुम बतलाओ
हो ओ ओ, देर से कितनी दूर खड़ी हो
और करीब आ जाओ
ख्वाब हो तुम या कोई हक़ीक़त
कौन हो तुम बतलाओ
हो ओ ओ, देर से कितनी दूर खड़ी हो
और करीब आ जाओ
ख्वाब हो तुम या कोई हक़ीक़त
कौन हो तुम बतलाओ
हो ओ ओ, देर से कितनी दूर खड़ी हो
और करीब आ जाओ
4-अच्छा जी मैं हार चलो-film “Kala Pani”1958
अच्छा जी मैं हारी, चलो, मान जाओ ना
देखी सबकी यारी, मेरा दिल, जलाओ ना
छोटे से क़ुसूर पे, ऐसे हो खफ़ा
रूठे तो हुज़ूर थे, मेरी क्या खता
देखो दिल ना तोड़ो
छोड़ो हाथ छोड़ो
छोड़ दिया तो हाथ मलोगे, समझे?
अजी समझे!
अच्छा जी मैं हारी, चलो…
जीवन के ये रास्ते, लम्बे हैं सनम
काटेंगे ये ज़िंदगी, ठोकर खा के हम
ज़ालिम साथ देले
अच्छे हम अकेले
चार कदम भी चल न सकोगे, समझे?
हाँ समझे!
अच्छा जी मैं हारी, चलो…
जाओ रह सकोगे ना, तुम भी चैन से
तुम तो खैर लूटना जीने के मज़े
क्या करना है जी के
हो रहना किसी के
हम ना रहे तो याद करोगे, समझे?
समझे!
अच्छा जी मैं हारी, चलो…
5-चाँद फिर निकला, मगर तुम ना आये-film “Paying Guest”1957
चाँद फिर निकला, मगर तुम न आये
जला फिर मेरा दिल, करुँ क्या मैं हाय
चाँद फिर निकला…
ये रात कहती है वो दिन गये तेरे
ये जानता है दिल के तुम नहीं मेरे
खड़ी मैं हूँ फिर भी निगाहें बिछाये
मैं क्या करूँ हाय के तुम याद आये
चाँद फिर निकला…
सुलगते सीने से धुंआ सा उठता है
लो अब चले आओ के दम घुटता हैं
जला गये तन को बहारों के साये
मैं क्या करुँ हाय के तुम याद आये
चाँद फिर निकला…
6- जाने कहां मेरा जिगर गया जी-film “Mr &Mrs 55” 1955
जाने कहाँ मेरा जिगर गया जी
अभी अभी यहीं था किधर गया जी
किसी की अदाओं पे मर गया जी
बड़ी बड़ी अंखियों से डर गया जी
कहीं मारे डर के चूहा तो नहीं हो गया
कोने कोने देखा न जाने कहाँ खो गया
यहाँ उसे लाए काहे को बिना काम रे
जल्दी जल्दी ढूँढो के होने लगी शाम रे
सच्ची सच्ची कह दो दिखाओ नहीं चाल रे
तूने तो नहीं हैं चुराया मेरा माल रे
ऐसे नहीं चोरी खुलेगी तकरार से
चलो चलो थाने बताएं जमादार से
कोइ उल्फ़त की नज़र ज़रा फेर दे
लेले दो चार आने जिगर मेरा छेड़ दे
बातें हैं नज़र की नज़र से समझाऊंगी
पहले पड़ो पइयां तो फिर बतलाऊंगी
7-तुम साथ हो जब- film “Kaliya” 1981
तुम साथ हो जब अपने, दुनिया को दिखा देंगे
हम मौत को जीने के, अंदाज़ सिखा देंगे…
हम तो हैं दिल वाले, खंजर से नहीं डरते
अरे, हम तो हैं दिल वाले, खंजर से नहीं डरते
हम ज़ुल्फ़ों के कैदी हैं, सूली से नहीं मरते
सूली को भी ज़ुल्फ़ों की, ज़ंजीर बना देंगे
तुम साथ हो जब अपने…
ऐ अहल-ए-जहां तुम को, नफ़रत की है बीमारी
बरसाया करो शोले, फेंका करो चिंगारी
हम प्यार की शबनम से, हर आग बुझा देंगे
तुम साथ हो जब अपने…
माना के अंधेरों के, गहरे हैं बहुत साये
पर दर है यहां किसको, आती है तो रात आए
हम रात की सीने में, इक शम्मा जला देंगे
तुम साथ हो जब अपने…
8-मैं सितारों का तराना-film “Chalti ka naam gadi” 1958
मैं सितारों का तराना, मैं बहारों का फ़साना
लेके इक अंगड़ाई मुझ पे, डाल नज़र बन जा दीवाना
रूप का तुम हो खज़ाना, तुम हो मेरी जाँ ये माना
लेकिन पहले दे दो मेरा, पांच रुपैया बारा आना
पाँच रुपैया, बारा आना-आआ …
मारेगा भैया, ना ना ना ना-आआ …
माल ज़र, भूलकर, दिल जिगर हमसे निशानी माँगो ना
दिलरुबा, क्या कहा, दिल जिगर क्या है जवानी माँगो ना
तेरे लिये मजनू बन सकता हूँ
लैला लैला कर सकता हूँ
चाहे नमूना देख लो — हाय
खून-ए-दिल पीने को और लक़्त-ए-जिगर खाने को
ये गिज़ा मिलती है लैला – (२)
तेरे दीवाने को – (२)
ओ हो हो जोश-ए-उल्फ़त का ज़माना, लागे है कैसा सुहाना
लेके इक अंगड़ाई मुझ पे, डाल नज़र बन जा दीवाना
मानता हूँ है सुहाना, जोश-ए-उल्फ़त का ज़माना
लेकिन पहले दे दो मेरा, पाँच रुपैया बारा आना
ग़म भुला, साज उठा, राग मेरे रूप के तू गाये जा
ऐ दिलरुबा, होय दिलरुबा, हाँ इसी अंदाज़ से फ़रमाये जा
गीत सुना सकता हूँ दादरा
गिनकर पूरे बारा मातरा
चाहे नमूना देख लो — हाय
धीरे से जाना बगियन में, धीरे से जाना बगियन में
रे भँवरा, धीरे से जाना बगियन में
होय लल्ला ढींग लल्ला – (२)
ओ हो हो तू कला का है दीवाना कम है क्या तुझको बहाना
लेके इक अंगड़ाई मुझ पे, डाल नज़र बन जा दीवाना
हाँ ये अच्छा है बहाना मैं कला का हूँ दीवाना
लेकिन पहले दे दो मेरा, पाँच रुपैय्या बारा आना
बेखबर, प्यार कर, धन की दुनिया क्या है ढलती छाया है
हाय हाय हाय दिलरुबा, सच कहा साँच तेरा प्यार बाकी माया है
तेरे लिये जोगी बन सकता हूँ
जंगल जंगल फिर सकता हूँ
चाहे नमूना देख लो — हाय
बममुकच ए बिन बममुकच ए बिन बममुकच ए बिन बममुकच
(तेरी गठरी में लागा चोर मुसाफ़िर
जाग ज़रा तू जाग ज़रा ) – (२)
ओ हो हो मैं हूँ तेरी जान-ए-जाना आ मुझी से लव लगाना
लेके इक अंगड़ाई मुझ पे, डाल नज़र बन जा दीवाना
जै गुरू मैने ये माना तू है मेरि जान-ए-जाना
लेकिन पहले दे दो मेरा – यक दुइ तीन चार पांच
पाँच रुपैया बारा आना …