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Aligarh Wale Akhtar Ul-Iman-: जिनके घर शीशे के होते हैं, वो दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंका करते…

 बी.आर. चोपड़ा की सुपरहिट फ़िल्मवक़्तमें गुजरे ज़माने के मशहूर अभिनेता राजकुमार जब कहते हैं किचिनाय सेठ! जिनके घर शीशे के होते हैं, वो दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंका करतेतब यह संवाद लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गया था।

 

राजकुमार साहब की संवाद अदायगी के लोग कायल तब भी हुआ करते थे और अाज भी उन्हें उनकी कड़क अावाज के चलते याद किया जाता है। ऊपर से इसडॉयलॉगने दर्शकों को तालियां बजाने के लिए मजबूर कर दिया। खैर, इस संवाद को ताे राजकुमार साहब ने अपनी आवाज देकर अमर कर दिया।

 

लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये पंक्तियां लिखी किसने? अपने समय के मशहूर शायर, लेखक अख़्तरउलईमान ने लिखी थी ये लाइनें। अख्तर साहब अपने समय के बहुत संजीदा शायर थे।सरोंसामानकिताब में उनकी शायरियों का संकलन है। यह किताब 1983 में सारांश प्रकाशन से प्रकाशित ङुई थी।   

Akhtar-u-l-Iman


Akhtar
Ul-Iman(1915-1986)
का जन्म उत्तर प्रदेश के नजीबाबाद में हुआ था, जो गाँव की मस्जिद के इमाम के बेटे थे, और एक छतविहीन मदरसे में अरबी और उर्दू में शिक्षा प्राप्त करते थे। परिवार एक गांव से दूसरे गांव चला गया। उनकी बचपन की यादें आसपास के जंगलों के साथ हैं, जो हिरणों के झुंड के साथ घूमते हैं और गांव की सीमा से बाहर भटके हुए मवेशियों और बच्चों पर शिकार करने वाले हाइना के पैक्स बनाते हैं।

 

Akhtar Ul-Iman की
शिक्षा अलीगढ़ मुस्लिम
विश्वविद्यालय में हुई

उनकी शिक्षा दिल्ली कॉलेज और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हुई, जहाँ वे प्रगतिशील लेखकों के संपर्क में आए। स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद, उन्होंने विभिन्न क्षमताओं में काम किया, जिसमें ऑल इंडिया रेडियो के लिए एक कर्मचारी कलाकार भी शामिल था। 1944 में वे पूना / पुणे के शालीमार पिक्चर्स से जुड़े और जीवन भर फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े रहे।

 

उर्द शायरी के अधिकांश प्रेमी स्वीकार करेंगे कि अख्तरउलइमान शायद उनकी मृत्यु तक भाषा के सबसे महान जीवित कवि थे। उनका काम उनके अन्य महान समकालीनों जैसे कैफ़ी आज़मी और भारत के अली सरदार जाफ़री या पाकिस्तान के अहमद फ़राज़ और कातेल शिफ़ाई के रूप में बहुत सरल कारणों से प्रसिद्ध नहीं है: उनके पास एक मुशायरा व्यक्तित्व नहीं है, वह तरन्नुम (जप) और उन्होंने शायद ही कभी फिल्मी गीतों की रचना की।

सोचा न था कि आएगा ये दिन भी फिर कभी

इक बार हम मिले हैं ज़रा मुस्कुरा तो लें।    

अख्तर साहब सिर्फ फिल्मों में संवाद लेखन के लिए ही नहीं अपनी नज्मों और ग़ज़लों के लिए भी जाने जाते हैं। अक्सर लाेग उन्हें फ़िल्मी लेखक के रूप में जाननेसमझने की भूल करते हैं लेकिन फिल्मों आने से पहले वो एक नामचीन शायर और कहानीकार थे, और जब तक इस दुनिया में रहे, शायरी लिखते रहे।

 

शायरी और नज़्म लेखन ने ही फिल्मों में इंट्री की ज़मीन तैयार की। उनकी नज़्में अपने आप में एक मुकम्मल कहानी लिए हुए हाेती हैं, पाठकों के लिए सवाल छोड़ जाती हैं, एक संवेदनशील शायर की संवेदनाओं की बानगी देखिए

He was the father-in-law of actor Amjad Khan.

Amjad Khan with wife Shehla  and children

Amjad Khan

ये आधुनिक उर्दू नज़्म के संस्थापकों में शामिल हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में एम.. करने वाले ईमान साहब ने आल इंडिया रेडियो से कॅरियर की शुरुआत की। कुछ समय बाद जब उन्होंने फिल्मों में लिखने का निर्णय लिया तो 1945 में वे मुंबई की तरफ चल दिए। 1948 में फिल्मझरनासे शुरुआत की लेकिन फिल्मकानूनउनके लिए मील का पत्थर साबित हुई।

 

यहाँ से वे सिनेमा की दुनिया में बतौर लेखक स्थापित हो गए। इत्तफ़ाक़, क़ानून, धुंध, पाकीज़ा, पत्थर के सनम, गुमराह जैसी कई फ़िल्में, जिनके संवाद लोगों के जुबान पर चढ़ गए तो उसके पीछे अख्तरउलईमान साहब की कलम ही थी। 

 

नुक़रई घंटियाँ सी बजती हैं

धीमी आवाज़ मेरे कानों में

दूर से रही हो तुम शायद

भूलेबिसरे हुए ज़मानों में

अपनी मेरी शिकायतेंशिकवे

याद कर कर के हँस रही हो कहीं।

अख्तर साहब उर्दू की दुनिया के एक ऐसे शायर थे जो अपनी शायरी में बहुत यथार्थवादी और आधुनिक थे, उनकी नज्मों में आम आदमी की जिंदगी और दर्द की कहानियां हैं। तारीक सय्यारा (1943), गर्दयाब (1946), आबजू (1959), यादें (1961), बिंतलम्हात (1969), नया आहंग (1977), सारसामान (1983) अख्तर साहब के काव्य संग्रह हैं। उर्दू साहित्य में योगदान के लिए उन्हें 1962 में साहित्य अकादमी अवार्ड से नवाजा गया।

 

फ़िल्मधर्मपुत्रऔरवक़्तमें संवाद लेखन के लिए उन्हें दो बार फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड मिला। 9 मार्च 1996 को ईमान साहब ने शायरी और सिनेमा ही नहीं इस दुनिया को अलविदा कह दिया, मुंबई में उन्होंने आख़िरी सांस ली लेकिन उनकी नज्में, उनके लिखे हुए संवाद आज भी लोगों के जुबान पर हैं। 

भारतीय सिनेमा

हिंदी सिनेमा को उनका योगदान महत्वपूर्ण है, उनकी पहली ऐतिहासिक फिल्म कानून थी जो उनकी बड़ी हिट फ़िल्म थी। अन्य महत्वपूर्ण फिल्मों के लिए उन्होंने एक स्क्रिप्ट लेखक के रूप में योगदान दिया धर्मरूप (1961) – जिसके लिए उन्हें फिल्मफेयर मिला पुरस्कार गुमराह, वकत, पाथर के सनम, और दाग़ ।एक फिल्म जिसमें उनके गीत हैंबिखरे मोती

 

फिल्मोग्रफी

विजय (1988) – लेखक

चोर पुलिस (1983) – लेखक

लाहु पुकेरेगा (1980) – निदेशक

मुसाफिर (1978) – लेखक

चंडी सोना (1977) – लेखक

ज़मीर (1975) – लेखक

36 घांटे (1974) – लेखक

रोटी (1974) – लेखक

नया नशा (1 9 73) – लेखक

बड़ा कबूतर (1973) – लेखक

दाग़लेखक

धंद (1973) – लेखक

जोशीला (1973) – लेखक

कुणावाड़ा बदन (1973) – लेखक

दस्तान (1972) – लेखक

जोरू का गुलाम (1972) – लेखक

आदमी और इंसान (1969) – लेखक

चिराग (1969) – लेखक

इत्तेफाक (1969) – लेखक

आदमी (1968) – लेखक

हमराज़ (1967) – लेखक

पत्थर के सनम (1967) – लेखक

गबन (1966) – लेखक

मेरा साया (1966) – लेखक

फूल और पत्थर (1966) – लेखक

भूत बंगला (1965) – लेखक

वकत (1965) – लेखक

शबनम (1964) – लेखक

यादें (1964) – लेखक

आज और काल (1963) – लेखक

अक्ली मट जययो (1963) – लेखक

गुमराह (1963) – लेखक

नीली आंखें (1962) – लेखक

धर्मपुत्र (1961) – लेखक

फ्लैट नंबर 9 (1961) – लेखक

बारूद (1960) – लेखक

कल्पना (1960) – लेखक

कानून (1960) – लेखक

निर्दोष (1950) – लेखक

अभिनेत्री (1948) – लेखक

झरना (1948) – लेखक  

The End

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Engr. Maqbool Akram

Engr Maqbool Akram is M.Tech (Mechanical Engineering) from A.M.U.Aligarh, is not only a professional Engineer. He is a Blogger too. His blogs are not for tired minds it is for those who believe that life is for personal growth, to create and to find yourself. There is so much that we haven’t done… so many things that we haven’t yet tried…so many places we haven’t been to…so many arts we haven’t learnt…so many books, which haven’t read.. Our many dreams are still un interpreted…The list is endless and can go on… These Blogs are antidotes for poisonous attitude of life. It for those who love to read stories and poems of world class literature: Prem Chandra, Manto to Anton Chekhov. Ghalib to john Keats, love to travel and adventure. Like to read less talked pages of World History, and romancing Filmi Dunya and many more.
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