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पलाश के फूल: वह बड़ी भोली थी, कुछ न बोलती और मेरी ओर टुकुर-टुकुर देखती रहती (लेखक: अमरकांत)

by Engr. Maqbool Akram
April 27, 2024
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कई बार हम अपनी ग़लती को इतनी बार जस्टिफ़ाई करने की कोशिश करते हैं कि ख़ुद को सही समझने की ग़लतफ़हमी पाल लेते हैं. एक अधेड़ आदमी, अपने स्कूल के दोस्त से अपना सबसे अंतरंग क़िस्सा साझा करता है. वह जानता है, वह ग़लत है, पर ख़ुद के सही होने के लिए तमाम तर्क देता है. पर क्या वह सचमुच अपने उन तर्कों से जीत पाएगा?

 

नए मकान के सामने पक्की चहारदीवारी खड़ी करके जो अहाता बनाया गया है, उसमें दोनों ओर पलाश के पेड़ों पर लाल–लाल फूल छा गए थे.

 

राय साहब अहाते का फाटक खोलकर अंदर घुसे और बरामदे में पहुंच गए. धोती–कुर्ता, गांधी टोपी, हाथ में छड़ी… हाथों में मोटी–मोटी नसें उभर आई थीं. गाल भुने हुए बासी आलू के समान सिकुड़ चले थे, मूंछ और भौंहों के बालों पर हल्की सफेदी

 

‘बाबू हृदय नारायण! … ओवरसियर साहब!’ बाहर किसी को न पाकर दरवाज़े का पास खड़े होकर उन्होंने आवाज़ दी.

 

कुछ ही देर में लुंगी और कमीज़ में गंजी खोपड़ीवाला एक दुबला–पतला और सांवला व्यक्ति बाहर निकल आया. उसको देखकर राय साहब के मुंह पर आश्चर्य के साथ प्रसन्नता फैल गई. उन्होंने उसको देखकर रहस्यमय ढंग से पूछा,‘मुझको पहचाना?’ और जब हृदय नारायण ने कोई उत्तर न देकर संकुचित आंखों से घूरना ही उचित समझा तो वे बोले,‘कभी आप यहां गवर्नमेंट स्कूल में पढ़ते थे? अरे, मुझे भूल ही गए क्या? मेरा नाम नवलकिशोर राय…’

 

दोनों सहपाठी गले मिले. फिर वहीं बरामदे में कुर्सी पर आमने–सामने बैठे वे नाश्ता करते हुए बातों में खो गए, जो अपने स्कूल के अध्यापकों की विचित्रता से आरंभ होकर बाल–बच्चों, ज़माने और इंसान की चर्चा से गुज़रती हुई आसानी से परमात्मा से संबंधित विषयों पर आ गई.

 

‘ब्रदर स्त्री माया है!’ सामने शून्य में एक क्षण खोए–खोए से देखने के बाद राय साहब बोले, उसमें शैतान का वास होता है, वही भरमाता, चक्कर खिलाता और नरक के रास्ते पर ले जाता है. …पर भाई जान, मैं सिर्फ़ एक बात जानता हूं, उसके सामने किसी की नहीं चलती, जो कुछ होता है, उसकी के इशारे से होता है. वह चाहता है, तभी हम चोरी,
डकैती, हत्या, जना, बदकारी, सब कुछ करते और जहां उसकी मेहर हुई सब मिनटों में छूट जाता है.’

 

‘उसकी बड़ी कृपा है, नहीं हम तो कीड़ों–मकोड़ों से भी गए–बीते हैं.’ हृदयनारायण ने भक्ति से गदगद स्वर में कहा.

 

‘गए–बीते कहते हो, अरे एकदम गए–बीते हैं. मैं तो भई, अपने को जानता हूं. मेरे जैसा झूठा, बेईमान, नीच, घमंडी, बदकार कोई नहीं होगा. परंतु मुझ पापी को भी सरकार ने चरणों में थोड़ी जगह दे दी है.

 

नौकर पान की तश्तरी लिए आ खड़ा हुआ था. दोनों मित्रों ने दो–दो बीड़े जमाए फिर राय साहब ने कहना आरंभ किया,

 

‘तुम तो नहीं जानते न, बिहार के तराई इलाक़े में सौ बीघा ज़मीन ख़रीदने के बाद ही पिता जी का स्वर्गवास हो गया था, यहां भी डेढ़ सौ बीघा ज़मीन थी. घर–गृहस्थी का सारा बोझ अचानक मेरे कंधों पर आ पड़ा. लेकिन मुझे कोई चिंता नहीं थी…कैसा शरीर था मेरा, याद है तुम्हें न? ताक़त, ज़िद और क्रोध तीनों मुझ में थे.

सच कहता हूं, जब अपने बंगले के सामने खड़ा हो जाता, तो लगता किसी क़िले के सामने खड़ा हूं, ऊंचाई दो पोरसा अधिक बढ़ गई है, सिर में पकका दस सेर लोहा भर गया है… किसी को अपने पैरों की धूल के बराबर तो समझता नहीं था. लोग मुझसे डरते और उनसे मुझे बेहद क्रोध और नफ़रत होती. मारने–पीटने, तंग, परेशान करने, जब इच्छा हो वसूली तहसीली करने में ही तबीयत लगती.

 

मामूली रौब नहीं था अपना… मेज़–कुर्सी लगी है, अफ़सरान आ रहे हैं. गप्पें लड़ रही हैं, दावतें उड़ रही हैं, नौकर–चाकर दौड़–दौड़कर हुक़्म बजा रहे हैं…’ आवाज़ अचानक धीमी पड़ , ‘और वह शैतान वाली बात कही न! बिरादर, क़सम खाकर कहता हूं पता नहीं क्या हो गया था जहां किसी जवान स्त्री को देखा नहीं पागलपन सवार हुआ.

 

ख़ास तरह से इसका मज़ा बिहारवाले इलाक़े में ख़ूब था. वहां के लोग बहुत ग़रीब और पिछड़े हुए थे. मैं साल में आठ–नौ महीने तो वहीं रहता और ऐश करता. बीच में वैसे कभी कुछ दिनों के लिए आकर बाल–बच्चों और यहां की गृहस्थी की खोज–ख़बर ले जाता. एक तो मैं ख़ुद ख़ासा जवान था, इस पर पैसा और शक्ति न मालूम कितनी ही…

 

लेकिन बाबू हृदयनारायण, ठीक बयालीस वर्ष की उम्र में शैतान की चपेट में इस तरह आ गया कि क्या बताऊं! जानते हो, कौन था? पंद्रह–सोलह वर्ष की एक लड़की!’ 

‘लड़की?’ हृदयनारायण चौंक पड़े जैसे उनको ऐसी उम्मीद न हो.

‘हां, लड़की!’ राय साहब हास्यपूर्ण मुंह बनाकर इस तरह बोले जैसे बहुत साधारण बात हो,‘वह भी एक मामूली किसान की! फसल की कटाई के समय मैं अपने बिहार के इलाक़े में पहुंचा था. वहां मेरा बंगला एक छोटे मैदान में है, जिसके दक्षिण में ख़ास गांव है और उत्तर में ग्वालों का टोला.

 

वह लड़की इसी टोले की थी. …उधर ही मेरा बग़ीचा पड़ता है. वहीं उस लड़की को देखा. वह दो और लड़कियों के साथ टिकोरे बीन रही थी. मुझको देखकर पहले तीनों भागीं. फिर वही लड़की पेड़ के नीचे छूटी खंचोली को लेने वापस आई, तो एक क्षण ठिठककर शंकित आंखों से उसने मुझे देखा, जैसे पक्षी दाना चुगने के पहले बहेलिए को देखता है और आख़िर में खंचोली लेकर भाग गई.

 

मैं तो दंग रह गया था. यह कैसी हैरत की बात थी कि इस गांव में ऐसी ख़ूबसूरत लड़की बढ़कर तैयार होती है और मैं जानता तक नहीं.’ और जैसे वह अपने मन के भाव ठीक से व्यक्त न कर पा रहे हों, इस तरह होंठों पर अंगुली रखकर कुछ देर तक सोचते से रहे,‘क्या बताऊं?…

 

शाम को वक़ीलों के डेरों के सामने मुवक्किल लोग बाटी बनाने के लिए उपलों का जो अंगार तैयार करते हैं, उसको तो देखा है तुमने, उसी तरह वह दमक रही थी. कहीं खोट नहीं. भरी–पूरी. क़ुदरत ने जैसे पीठ और कमर पर हाथ रखकर उसके शरीर को पहले तोड़ा, ऐंठा और ताना, फिर किसी जादू के बल से बड़ा और जवान कर दिया था. बड़ी–बड़ी रसीली आंखें, छोटा मुंह… बड़ा भोलापन था उसमें.’

 

सूरज डूब गया था. आंगनों से उठनेवाले धुएं और सड़क की धूल से चारों और कुहासा–सा छा गया था. सामने से कभी कोई एक्का या रिक्शा गुज़र जाता. कभी घर के अंदर से छोटे बच्चों का गिरोह पास आता, उनको कौतुक से देखता, चीख़–चिल्लाकर खेलता और चला जाता. और वे हर चीज़ से बेख़बर बात करने में इस तरह मशगूल थे, जैसे कई दिनों का भूखा सब सुध–बुध खोकर खाने पर टूट पड़े.

 

‘समझे, भाई हृदयनारायण, उस लड़की की सूरत ध्यान पर क्या चढ़ी कि खाना–पीना सब कुछ हराम हो गया.’ राय साहब का कथन जारी था, ‘इतनी उम्र हो गई थी, लेकिन किसी स्त्री के लिए ऐसी बेक़रारी कभी महसूस नहीं हुई थी. उसको पाने के लिए मैं क्या नहीं कर सकता था! उसका बाप भुलई मेरा ही आसामी था, सीधा–सादा किसान, जिसे पेट भरने के लिए खेती के अलावा इधर–उधर मज़दूरी भी करनी पड़ती.

 

मैंने अंजोरिया को–लड़की का यही नाम था–अकेले में पाकर एक दो बार छेड़ा भी, पर वह नई घोड़ी की तरह बिदककर भाग जाती. मुझ में अब इंतज़ार और बर्दाश्त की शक्ति नहीं रह गई थी. हारकर एक दिन मैंने चार आदमियों को लगाकर रात के अंधेरे में भुलई को ख़ूब अच्छी तरह पिटवा दिया….’

 

‘भुलई को पिटवा दिया? क्यों?’

‘नहीं जानते? अरे हमारे देहातों में यह आम रिवाज़ था. जब बाबू लोगों को किसी ग़रीब की बहू–बेटी पसंद आ जाती, तो वे उसको तंग–परेशान करते, मारते–पीटते, खेतों से बेदख़ल कर देते, और सफलता न मिलने पर बुरी तरह पिटवा देते.

 

फिर रात में उसके घर में घुसकर या किसी दूसरे तरीके से उल्लू सीधा करते. यह बहुत ही कारगर तरीक़ा समझा जाता. मैंने भी सभी फ़न इस्तेमाल किए. भुलई के हाथ–पैर बेकाम हो गए थे, सिर फट गया… शरीर में और भीतर घाव थे सो अलग. …अब भी नहीं समझे?… फिर मैं ही उसके आड़े वक़्त में काम आया.

 

 उसकी दवा–दारू के लिए मैंने ही पैसे उधार दिए, खाने के लिए गल्ला भिजवा दिया. भुलई की स्त्री हाल ही में मरी थी, एक लड़की ओर छोटे–छोटे दो बच्चों को छोड़कर, कोई नहीं था घर में. वह भारी मुसीबत में था और मुझे वह देवता समझने लगा.

 

मैंने उसको राज़ी करवा लिया कि वह अंजोरिया को मेरे यहां भेज दिया करे, वह घास या चारा काट दिया करेगी…खाने भर को निकल आएगा.’

‘फिर लड़की आने लगी होगी,’ जैसे कोई उत्सुकता हो, इस तरह हृदयनारायण ने प्रश्न किया.

 

‘आती नहीं तो जाती कहां?’ राय साहब बोले,‘बस सुनते जाओ! हां, तो वह आकर काम करने लगी. मैं बेवकूफ़ नहीं था, ज़िंदगी भर यही किया था, जल्दीबाज़ी से मामला बिगड़ जाता. …चिड़िया को मैंने परचने दिया. रोज़ मौक़ा देखकर उससे बात करता, उसके बाप की तक़लीफ़ के लिए सहानुभूति प्रकट करता, मुझ से दूसरों का कष्ट देखा नहीं जाता इसकी चर्चा करता और उसके हाथ पर मजूरी से अधिक पैसे रख देता.

 

वह बड़ी भोली थी, कुछ न बोलती और मेरी ओर टुकुर–टुकुर देखती रहती. ख़ैर, धीरे–धीरे उसकी भटक खुलने लगी. एक दिन दोपहर में जब लू चल रही थी और चारों तरफ़ सुनसान था मैंने उसे अपने कमरे में बंद कर दिया….’ उन्होंने मित्र के आश्चर्य विमुग्ध मुख को एक क्षण ग़ौर से देखा और बात का प्रभाव पड़ रहा है, इससे आश्वस्त और संतुष्ट होकर आगे कह

 

तो ब्रदर, किवाड़ बंद करते ही उसका मुंह सूख गया. रोनी शक़्ल बनाकर वह बाहर जाने की ज़िद करने लगी. जब मैंने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ लिए तो सचमुच रोने लगी. मेरे शरीर में अजीब झनझनाहट और सनसनाहट हो रही थी, मैं बेकाबू होने लगा.

 

मैंने उसको बहुत पुचकारा और समझाया. क़समें खाईं कि मेरा प्रेम सच्चा है और उसके लिए अपनी ज़मीन जायदाद, जान, सब कुछ क़ुर्बान कर सकता हूं. आख़िर मैं इतना उतावला हो गया कि नीचे झुककर उसके पैर पकड़ लिए. यह मेरे लिए अजीब बात थी, क्यों कि औरत से इस तरह विनती करने का मैं आदी नहीं था, परंतु पता नहीं क्या हो गया था. वह रोती और सुबकती रही…’

 

अंधेरा फैलने लगा था. सड़क की बिजली और बाईं ओर कुछ ही दूरी पर हलवाई की दुकान की गैसबत्ती जल चुकी थी. राय साहब कभी ऊंची आवाज़ में और कभी फुसफुसाकर बोलते और अक्सर कनखी से चौखट व अहाते की ओर देख लेते.

 

‘भैया अब देखिए, क्या होता है! … वह रोज़ आने लगी.’ राय साहब कुछ देर तक अपने दाहिने हाथ को विचार पूर्ण दृष्टि से देखने के बाद बोले,‘शुरू–शुरू वह बहुत उदास और दुखी रहती, पर मुझे होश–हवास नहीं था. लगता, इसको जितना प्यार करने लगा हूं, उतना कभी किसी को नहीं करता था. देर तक उसके बालों पर हाथ फेरता, अपने प्रेम की सच्चाई की दुहाई देता. कभी–कभी पाग़ल की तरह उसके पैरों को चूमने लगता.

 

उसको हमेशा देखता रहूं यही इच्छा बनी रहती. वह ख़ुश रहे, ऐसी हमेशा कोशिश करता. अपने हाथ से रोज़ मिठाई खिलाना, अच्छी–अच्छी साड़ियां, साबुन, कंघी, इत्र फुलेल, रुपए–पैसे देता… धीरे–धीरे उसकी तबीयत बदलने लगी. कुछ दिनों बाद चहकने लगी. और मेरे देखते ही देखते वह भोली–भाली लड़की इतराना, नखरे करना और रूठना–मचलना सीख गई.

 

मुझे देखते ही उसकी आंखें चमक उठतीं…दौड़कर मुझसे चिपट जाती. उसे मज़ाक करना भी आ गया था, मेरी पकड़ से छिटक–छिटक जाती और ख़ूब हंसती. पर उसका भोलापन कहीं नहीं गया. उसे मैं जब और जहां बुलाता वह बिना हिचक आ जाती.

 

उसकी ख़ुशी का अंत नहीं था और वह कहती कि मेरे यहां छोड़कर उसकी कहीं तबीयत नहीं लगती. ख़ास तरह से उस समय उसकी हालत देखने लायक होती, जब मैं कुछ दिनों के लिए बाहर चला जाता और वापस लौटता. मुझे देखते ही वह बहुत उत्तेजित हो जाती और सिसक–सिसक कर रोने लगती.

 

कभी मेरी तबीयत ढीली होती तो वह बहुत चिंतित और परेशान हो जाती… सच कहता हूं, वह मेरे पीछे पाग़ल हो गई थी, उसे किसी बात का ग़म नहीं था, जान देने के लिए भी कहता, तो वह ख़ुशी–ख़ुशी दे देती. उसे क्या हो गया था? मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा भी होगा…लेकिन जानते हो, सीधी गाय ही खेत चरती है…और इस तरह पूरे तीन वर्ष बीत गए.’

 

‘माया का चक्कर था!’ बहुत देर हृदयनारायण अपने को ज़ब्त किए हुए थे, मौक़ा पाकर उन्होंने अपनी सम्मति प्रकट कर दी.

 

‘मामूली चक्कर था? मुझे घर–गृहस्थी, बाल–बच्चों, किसी की कुछ परवाह नहीं थी. जानता था, गांव वाले खुसुर–पुसुर करते, पर मुझसे सभी कांपते, मेरी प्रजा जो थे. रुपए के बल से भुलई का मुंह बंद था. फिर अंजोरिया किसी की नहीं सुनती.

 

उसकी शादी हो गई थी, उसका पति अभी बच्चा ही था और एक बार ससुराल जाकर दो ही दिन में वह भाग आई थी. उसका यौवन गदरा गया था. …ये तीन वर्ष नशे में बीत गए थे… और एक दिन उसने क्या कहा जानते हो?’ प्रश्न–सूचक दृष्टि से उन्होंने हृदय नारायण की ओर देखा और बोले,‘बरसात की काली अंधेरी रात थी. वह आई. बहुत दुखी और उदास दिखाई दे रही थी. मैंने कारण पूछा. उसने मिन्नत भरे स्वर में कहा,‘मुझे लेकर कहीं भाग चलो!’ उसकी लंबी, काली आंखें मेरी आंखों में खो गईं थीं.

 

‘क्या बात है?’ मैंने पूछा.

नहीं, मैं यहां नहीं रहूंगी.’ उसने मचलते हुए से कहा,‘लोग न मालूम कैसी–कैसी बातें कहते हैं. …कोई ठीक से नहीं बोलता…मुझे काशी ले चलो, वहां कोई मकान ले लेना, मैं उसी में रहा करूंगी.’

 

‘उसने गांव के बालकृष्ण मिश्र का उदाहरण दिया, जिन्होंने अपनी प्रेमिका के लिए बनारस में एक मकान ख़रीद दिया था और ख़ुद अक्सर वहीं रहते थे. उसकी बात से मैं चौंका और घबरा गया.

 

मैंने उसे समझाने की कोशिश की कि जब तक मैं ज़िंदा हूं उसको डरने की ज़रूरत नहीं, उसका कोई बाल–बांका नहीं कर सकता, वह लोगों के नाम बताए, मैं उनकी खाल खिंचवा लूंगा. पर वह कुछ बोली नहीं और रोने लगी

 

कुछ दिनों बाद उसे कहा, मुझे रखैल रख लो, मैं कहीं नहीं जाऊंगी, तुमको छोड़कर मुझे कुछ अच्छा नहीं लगेगा.’…मैं बहुत हैरत में था. आख़िर वह क्या चाहती थी? तीन वर्ष तक उसने कोई ऐसा सवाल नहीं उठाया, अब कौन सी ऐसी बात हो गई थी?

 

जब वह चली गई, तो मैं देर तक सोचता रहा. अब देखिए, अचानक मुझ में क्या परिवर्तन होता है!…भैया, ऐसा लगा कि मेरे दिमाग़ में एक रौशनी जल उठी है. सब कुछ साफ़ होता गया. मेरे अंदर कोई कह रहा था, नवल किशोर, तुम आज तक शैतान के चक्कर में रहे, वही शैतान तुम्हारी इज़्ज़त, ज़मीन जायदाद, बाल बच्चे सभी कुछ छीनकर तुम्हें बरबाद करना चाहता है…. और बात सच थी.

 

तुम्ही बताओ, हृदयनारायण, एक फ़ाहशा औरत में ऐसी ईमानदारी और लगाव का कारण क्या हो सकता है? अपने रूप के जादू से मुझे वश में किया, फिर अपना प्यार जताकर मुझे उल्लू बनाती रही…माया का असली रूप यहीं देख सकते हो… तो मैं ज्यों–ज्यों सोचता गया, मुझ में उस औरत के लिए नफ़रत–सी भरती गई. मैं देर तक पश्चात्ताप की आग में जलता रहा और रोता रहा…’

 

‘यही भगवान है!’ हृदयनारायण का मुख उत्तेजना से चमक रहा था.

‘और किसको भगवान कहा जाता है,’ रायसाहब छूटते ही बोले,‘तुमने देखा, मेरे जैसा नीच कोई नहीं होगा, पर उनकी कृपा से सारी नीचता छूमंतर कर के भाग गई. अब मेरा हृदय एकदम पवित्र था. मैं चाहता था कि उस लड़की से किसी तरह छुटकारा मिले.

पर उसके सामने कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती थी. और एक रोज़, भैया, मैंने सोचा कि अभी तक मुझ पर शैतान की असर है. जब तक मैं यहां से टलता नही वह ख़त्म नहीं होने का….तुम समझ रहे हो न? सब भगवान सोचवा रहा था… अब देखिए कि मैं एक रोज़ वहां से चुपके से घर के लिए रवाना हो जाता हूं! …फिर मैं वहां कभी नहीं गया.

 

अपने भाई और लड़कों को भेजता रहा,’ कुछ देर तक वे चुप रहे जैसे कोई मंज़िल तय कर ली हो. फिर गहरी सांस छोड़कर बोले,‘तब से मेरा जीवन ही बदल गया. …अब सारा जीवन सरकार के चरणों में अर्पित है. मैं अच्छी तरह समझ गया कि सब उन्हीं की लीला थी.

 

वह चाहते थे कि मैं शैतान के चक्कर में फंसूं, जिससे मेरी आंखें खुलें. अब मैं सवेरे नहा–धोकर चौकी पर पूजा करने बैठ जाता हूं तो घंटों सुध–बुध नहीं रहती. शाम को भी ऐसा ही चलता है. चौबीसों घंटे मन उन्हीं में रमा रहता है.’

 

उनकी आंखें चमक रही थीं,‘और तब से उसकी बड़ी कृपा रही. जानते हो, जब मैं बिहार से भाग आया, उसके कुछ ही दिनों बाद ज़मीदारी टूटी थी. मैंने दौड़–धूप की, रुपए ख़र्च किए और किसी तरह क़रीब पचहत्तर बीघे ज़मीन ख़ुदकाश्त करवा ली.

 

बताओ, अगर उसकी दया न होती, तो सारी ज़मीन चली न जाती? कहां तक गिनाऊं? छोटा लड़का आवारा निकला जा रहा था, मैंने मिल–मिलाकर दो–तीन ठेके दिलवा दिए…अब हज़ारों में पीटता है. बड़ा लड़का बनारस कमिश्नरी में वक़ील है.

गांव में आटा–चक्की और चीनी का कारख़ाना खुल गया है. पिछले साल से पंचायत का सभापति भी हो गया हूं… सच पूछो तो रोब–दाब में कमी नहीं आई है. और यह किसकी बदौलत? सब सरकार की कृपा का फल है.’ वे कुछ उदास से हो गए,‘तुम्हारी दुआ से मुझे किसी बात की कमी नहीं, ज़मीन–जायदाद, बाग़–बगीचे, इज़्ज़त–आबरू, बाल–बच्चे सब कुछ है…पर सच कहता हूं मुझे किसी से कोई मतलब नहीं. भैया, इस जीवन में कोई सार नहीं…’

वह सहसा चुप हो गए और उनकी दृष्टि शून्य में खो गई.

अंधेरे में पलाश के फूल विहंस रहे थे.

The End








 

 

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Engr. Maqbool Akram

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I am, Engineer Maqbool Akram (M.Tech. Mechanical Engineer from AMU ), believe that reading and understanding literature and history is important to increase knowledge and improve life. I am a blog writer. I like to write about the lives and stories of literary and historical greats. My goal is to convey the lives and thoughts of those personalities who have had a profound impact on the world in simple language. I research the lives of poets, writers, and historical heroes and highlight their unheard aspects. Be it the poems of John Keats, the Shayari of Mirza Ghalib, or the struggle-filled story of any historical person—I present it simply and interestingly.

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मैं खुदा हूँ Ana’l haqq मंसूर अल-हलाज: जल्लाद ने सिर काटा तो धड़ से खून की धार फूट पड़ी और अचानक उनके शरीर से कटा एक-एक अंग चीखने लगा च्मैं ही सत्य हूं

March 17, 2025
नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है  तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

March 18, 2025
अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

March 18, 2025
Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

March 17, 2025
सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

March 17, 2025
Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

March 17, 2025
मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

March 17, 2025
Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

March 18, 2025
Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

March 17, 2025
River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

March 17, 2025
Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

March 18, 2025
पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

March 17, 2025
पड़ोसिन (कहानी रवीन्द्रनाथ ठाकुर) अब छिपाना बेकार है वह तुम्हारी ही पड़ोसिन है, उन्नीस नम्बर में रहती है मैंने पूछा, सिर्फ कविताएं पढ़कर ही वह मुग्ध हो गई?’

पड़ोसिन (कहानी रवीन्द्रनाथ ठाकुर) अब छिपाना बेकार है वह तुम्हारी ही पड़ोसिन है, उन्नीस नम्बर में रहती है मैंने पूछा, सिर्फ कविताएं पढ़कर ही वह मुग्ध हो गई?’

March 17, 2025
Katha Saar of Karbala (Play):  By Munshi Premchand katha samrat ( 31 July 1880 –8 October 1936 )

Katha Saar of Karbala (Play): By Munshi Premchand katha samrat ( 31 July 1880 –8 October 1936 )

March 17, 2025
Royal Love Story of A Maharani: एक महारानी की अनोखी प्रेम कहानी महारानी रियासत के दीवान से ही प्रेम कर बैठी

Royal Love Story of A Maharani: एक महारानी की अनोखी प्रेम कहानी महारानी रियासत के दीवान से ही प्रेम कर बैठी

March 17, 2025
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