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टूटे हुए तारे (कहानी)कृष्ण चन्दर: उसके बाल स्याह घने, मुलाइम,रात की भीगी ख़ामोशी, फिर उन बालों में सेब के चंद चटकते हुए ग़ुंचे

by Engr. Maqbool Akram
October 9, 2023
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रात की थकन से उसके शाने अभी तक बोझल थे। आँखें ख़ुमार–आलूदा और लबों पर तरेट के डाक बंगले की बीयर का कसैला ज़ायक़ा। वो बार–बार अपनी ज़बान को होंटों पर फेर कर उसके फीके और बे–लज़्ज़त से ज़ायक़े को दूर करने की कोशिश कर रहा था।

 

गो उस की आँखें मंदी हुई थी, लेकिन पहाड़ों के मोड़ उसे इस तरह याद थे, जैसे अलिफ़, बे की पहली सतर, और वो निहायत चाबुकदस्ती से अपनी मोटर को जिसमें सिर्फ दो आदमी बैठ सकते थे, (एक आदमी और ग़ालिबन एक औरत उन ख़तरनाक मोड़ों पर घुमाये ले जा रहा था। कहीं–कहीं तो ये मोड़ बहुत ख़तरनाक हो जाते।

एक तरफ़ उमूदी चट्टानें, दूसरी तरफ़ खाई, जिसकी तह में झेलम के नीले पानी और सफ़ेद झाग की एक टेढ़ी सी लकीर नज़र आ जाती, उन्हीं मोड़ों पर से तो कार को तेज़ चलाने में लुत्फ़ हासिल होता था। सारे जिस्म में एक फुरेरी सी आ जाती थी।

 

सुबह की हवा भी बर्फ़ीली और ख़ुश–गवार थी, उसमें ऊंची चोटियों की और घाटियों पर फैले हुए जंगलों के जेगन की महक घुली हुई थी। कैसी अनोखी महक थी, अजीब, बेनाम सी तर–ओ–ताज़ा, निहालू के लबों की तरह, वो अपनी नीम–वा पलकों के साए में पिछली रात के बीते हुए तरबनाक लम्हों को वापस बुलाने लगा।

 

बीयर की रंगत में डूबते हुए सूरज का सोना घुला हुआ था। उसके कसैले–पन में एक अजीब सी लताफ़त थी। रात की भीगी हुई ख़ामोशियों में दूर कहीं एक बुलबुल नग़मा–रेज़ थी। बुलबुल ने अपने नग़मे में ख़ामोशी और आवाज़ को यूं मिला दिया था कि दोनों एक दूसरे की सदाए बाज़–गश्त मालूम होते थे।

 

और वो ये मालूम ना कर सका था कि ये ख़ामोशी कहाँ ख़त्म होती है। और ये मौसीक़ी कहाँ शुरू होती है… चाँदनी–रात में सेब के फूल हंस रहे थे और निहालू के लब मुस्कुरा रहे थे।

 

वो लब–ए–जो बार–बार चूमे जाने पर भी मासूम दिखाई देते थे, ऐसा मालूम होता था कि दुनिया की कोई चीज़ भी उन्हें नहीं छू सकती, कैसा अजीब एहसास था। रात की तन्हाइयों में निहालू का हुस्न ग़ैर–फ़ानी और ग़ैर ज़मीनी मालूम होता था।

उसके लब, उस की आँखों की नरमी, उसके बाल स्याह घने और मुलाइम, जैसे रात की भीगी हुई ख़ामोशी, और फिर उन बालों में सेब के चंद चटकते हुए ग़ुंचे, जैसे रात की भीगी हुई ख़ामोशी में बुलबुल के मीठे नग़मे, और वो ये मालूम ना कर सका कि ख़ामोशी कहाँ शुरू होती है और ये मौसीक़ी कहाँ ख़त्म होती है।

 

लेकिन अब तो वो डाक बंगला भी बहुत पीछे रह गया था, और इस वक़्त किसी पुरस्तानी क़िले की तरह मालूम हो रहा था। मोड़ों के उलझाव में कार घूमती हुई जा रही थी और उसके तख़य्युल में निहालू के लब, जेगन की महक, बुलबुल का नग़मा और बियर का सुनहरा रंग चांदी के तार की तरह चमकती हुई सड़क पर उलझते गए।

 

नीचे झेलम का पानी वहशी राग गाने लगा और फ़िज़ा में सेब के लाखों फूल आँखें खोल कर चहचहाने लगे, और उसने सोचा कि क्यों ना वो अपनी मोटर को इसी खाई की वसीअ ख़ला पर एक बे–फ़िक्र परिंदे की तरह उड़ा कर ले जाये, ये ख़्याल आते ही उसने अपने जिस्म में एक सनसनी सी महसूस की और उसकी नीम–वा आँखें खुल गईं।

 

रास्ते में एक चश्मे के किनारे उसने अपनी कार ठहरा ली। और देर तक हाथ पाँव–धोता रहा, आँखों को छींटे देता रहा, एक पहाड़ी गीत गुनगुनाता रहा और पानी लेकर कुलिल्याँ करता रहा, आहिस्ता–आहिस्ता उस की आँखों में रचा हुआ ख़ुमार दूर हो गया और बीयर का कसैला ज़ायक़ा भी जाता रहा।

अब लब सूखे थे, आँखों में जलन सी महसूस होने लगी, प्यास और इश्तिहा भी, उसने बोतल खोल कर गर्म चाय उंडेल ली, और सर्द तोस पर मक्खन लगा कर खाने लगा, बदन में गर्मी और क़ुव्वत आ रही थी, शानों की थकन मादूम होने लगी, अब वो राह चलते हुए लोगों, मोटरों और लारियों को ग़ौर और दिलचस्पी से देखने लगा।

 

इस वादी में बीकानेर के मारवाड़ी अपनी भारी भरकम बीवियों को पहलगाम सैर कराने के लिए ले जा रहे थे, उस कार में एक यूरोपियन मर्द एक हाथ से कार चला रहा था और दूसरा हाथ उस की बीवी की कमर पर था। जो अपने लबों पर सुर्ख़ी लगाने में मसरूफ़ थी, इस लारी मैं बीमार क्लर्क और उनकी अध–मुई बीवीयाँ बैठी थीं, और उनके बेशुमार बच्चे लारी की खिड़कियों पर खड़े ग़ुल मचा रहे थे।

 

इस लारी में सिक्ख ड्राईवर की पगड़ी ढीली हो चुकी थी और वो ऊँघता हुआ मालूम होता था, उसे ख़्याल आया कि चंद मील आगे जाकर ये सिक्ख ड्राईवर अपनी लारी को खाई की वसीअ ख़ला पर उड़ाने की कोशिश करेगा। और फिर दूसरे दिन वो अख़बार में एक छोटी सी ख़बर पढ़ लेगा, मर्री कश्मीर रोड पर एक हादिसा। लारी झेलम में जा गिरी, सब मुसाफ़िर झेलम में ग़र्क़ हो गए, ड्राईवर बाल बाल बच गया… लारी मोड़ पर से गुज़र गई।

 

उसी लारी में बैठे हुए लोग जिनमें पंजाब के चंद पहलवान भी शामिल थे बहुत ख़ुश–ओ–ख़ुर्रम दिखाई देते थे, इस ख़ुशी में ग़ालिबन कश्मीर की नाशपातियों और औरतों की नरमी और गुदाज़ पन का बहुत हिस्सा था लेकिन उन्हें क्या मालूम कि चंद मील आगे जा कर उन्हें मौत से मुक़ाबला करने कि लिए अपनी पहलवानी का सबूत देना पड़ेगा, और ये कि थोड़ी देर में ही वो औरतों की तरह चीख़ें मारते और खाई पर नाशपातियों की तरह लुढ़कते दिखाई देंगे।

 

इस लारी में चंद रेशमी बुर्क़े सरसरा रहे थे। लेकिन कइयों ने नक़ाब उलट दिए थे, एक बदसूरत औरत ने जो एक निहायत ख़ूबसूरत बुर्क़ा पहने थी ज़ोर से पान की पीक सड़क पर फेंकी और चंद छींटें उड़ कर चश्मे के क़रीब आ पड़ीं और वो परे सरक गया, तीन हातू, अपने घुटे हुए सुरों पर तंग टोपियाँ पहने और काँधों पर नमक के बड़े बड़े डले उठाए गुज़र रहे थे।

 

उनके नथुने फूले हुए थे और गाल, सुर्ख़ और चपटे। पाँव में पयाल की चप्पलें थीं, उसे वो ज़र्ब–उल–मस्ल याद आई। “कश्मीर में जाके हमने देखी एक अजीब बात, औरतें हैं मिस्ल परी, आदमी जिन ज़ात…” दो गूजिरयाँ, जवान, साँवली सलोनी, गदराई हुईं, जैसे रसीली जामुन, तेज़ी से क़दम उठाते हुए गुज़र गईं।

 

एक ड्राईवर ने अपनी लारी चश्मे के किनारे ठहरा ली और इंजन और पहिए ठंडे करने लगा, लारी में एक मोटे सेठ का मोटा कुत्ता उस की तरफ़ देखकर भौंकने लगा, “टॉमी! शट अप!, टॉमी! शट अप!” मोटे सेठ ने कई बार कहा, लेकिन कुत्ता ना रुका और लारी के मोड़ पर गुज़र जाने तक भौंकता रहा।

 

अब सूरज सुब्ह और दोपहर के दरमियानी वक़्फ़े में आ गया था, और उसने चलने की ठानी, उसने सोचा कि आज रात वो चौमील के डाक बंगले में क़ियाम करेगा। गढ़ी तो वो आज रात किसी तरह ना पहुंच सकता था।

 

उसने अपनी ओक मैं चश्मे का साफ़–ओ–शफ़्फ़ाफ़ पानी पीने के लिए भरा और फिर रुक गया, ख़ामोश क़दमों से एक औरत उसके क़रीब आ गई थी, नौजवान सी, और कुछ फ़र्बा अंदाम, उसने नीले फूलों वाली सूसी की एक भारी शलवार पहन रखी थी, और उस स्याह क़मीज़ पर उसकी उभरी हुई छातियों के गोल ख़म नज़र आए ।

 

और चश्मे का साफ़–ओ–शफ़्फ़ाफ़ पानी उस की ओक से बाहर छलकने लगा, और कुछ अर्से के बाद उसके पतले, प्यासे सुर्ख़ लबों की तरफ़ देखकर उसे अपना सवाल बेमानी सा मालूम हुआ।

औरत चश्मे में से ओक भर–भर कर अपनी प्यास बुझाती, और उसकी प्यास तेज़ होती गई। औरत के लब और गाल गीले हो गए और कानों के क़रीब बल खाती हुई ज़ुल्फ़ भी, और फिर यकायक दोनों की निगाहें मिलीं, औरत ने मुस्कुरा कर अपनी आँखों को ठंडे पानी के छींटे देने शुरू किए।

 

उसने पूछा, “तुम कहाँ जा रही हो?”

औरत ने कहा, “मैं नक्कर में अपने मैके गई थी, अब बुलंद कोट अपने ख़ाविंद के पास जा रही हूँ।”

“बुलंद कोट किधर है?”

 

औरत ने कहा। “यहां से सात आठ कोस तक तो मैं इसी सड़क पर चलूंगी, फिर आगे जंगल से एक रास्ता ऊपर पहाड़ की तरफ़ चढ़ता है, वो रास्ता हमारे बुलंद कोट की तरफ़ जाता है बहुत ऊंची और सर्द जगह है।”

 

“तो फिर तुम वहां क्यों रहती हो। यहां देखो कितना ख़ुशगवार मौसम है, और इस चश्मे का पानी कितना ठंडा और मीठा है।”

 

औरत ने हंसकर कहा, “हम बक्करवाल लोग हैं, हम भेड़ों, बकरीयों, भैंसों के गल्ले के गल्ले पालते हैं। आजकल उन ऊंचे इलाक़ों पर बहुत उम्दा–उम्दा हरी–हरी घास होती है, जो बर्फ़ के घुल जाने पर फूटती है, उस बारीक, नर्म और हरी दूब को हमारे मवेशी बहुत शौक़ से खाते हैं, और चश्मे तो वहां इस से भी ज़्यादा ठंडे और मीठे हैं।”

 

उसने बात का रुख बदल कर कहा, “क्या तुमने कभी मोटर की सवारी की है?”

“हाँ एक–बार लारी में बैठी थी, जब मेरी शादी हुई थी।”

“कितना अरसा हुआ?”

“दो साल”

 

वो अपना रख़्त–ए–सफ़र बाँधने लगा, औरत की नाक पर पानी की दो बूँदें अभी तक लटक रही थीं, और गीली ज़ुल्फ़ दाहिने गाल से चिपक गई थी, उसने कहा, “तुम्हारी नाक पर पानी की दो बूँदें हैं।”
और फिर वो यका–यक दोनों हँसने लगे। दो बूँदें, दो साल, दो गोलाइयाँ, और उसने आहिस्ता से कहा, “आओ तुम मेरी कार में बैठ जाओ, कम–अज़–कम सात आठ कोस तक तो मैं तुम्हें साथ ले जा सकता हूँ।”

 

उसने उस का हाथ पकड़ लिया, औरत हिचकिचाई, लेकिन मोटर का दरवाज़ा खुला था और उसने उसे अंदर धकेल दिया, और फिर क्या ये मोटर भी दो आदमियों के सफ़र के लिए ना बनाई गई थी? एक मर्द और ग़ालिबन एक औरत, और उसने ग़ैर शेअरी तौर पर अपना एक हाथ उस की कमर पर रख दिया।

 

औरत के जिस्म में एक ख़फ़ीफ़ सी झुर–झुरी पैदा हुई जैसे सोए हुए समुंद्र की लहरें बेदार हो जाएं मोटर भागती गई और उस का हर–नफ़स आतिशीं होता गया। आग और समुंद्र जिनमें बुलंद कोट की रिफ़अतें ग़र्क़ हो जाती हैं और वक़्त मिट जाता है

जब वो चौमेल के डाक बंगले पर पहुंचा, तो हर तरफ़ शाम की उदासी छा रही थी। सामने का स्याह पहाड़ किसी वसीअ क़िले की दीवार मालूम हो रहा था, और दरख़्तों की चोटियाँ पहरेदार की बंदूक़ें। अब वो फिर अकेला था, उसे अपने आपसे, क़िले की दीवार से, पहरेदारों की बंदूक़ो से, फ़िज़ा की तन्हाई से डर महसूस हुआ।

 

अपने आपसे डर, इस तीरगी से डर, जो उस की रूह पर छाई हुई थी, रात के गहरे सायों की तरह, जैसे वो अफ़्सुर्दगी के दलदल में अंदर ही अंदर धँसा जा रहा हो। उसने डाक बंगले के बैरे को आवाज़ देकर कहा।

 

“एक वाईट हॉर्स खोल दो।” और फिर उसने दस रुपय का नोट उसके हाथ में थमा दिया, जान–ए–अज़ीज़ के मुक़ाबले में दस रुपय के नोट की क्या एहमियत थी, काग़ज़ का हक़ीर टुकड़ा, बोतल अपने सामने देखकर उसने सोचा, अब मैं बच जाऊँगा, अब इस दलदल में नहीं धंसूँगा।

 

और उसने बोतल को ज़ोर से गर्दन से पकड़ लिया, शायद कहीं वो उसका दामन छुड़ा कर ना भाग जाये, उसने बैरे को आवाज़ दी।

 

“जी सरकार”

“एक मुर्ग़ी भून लो, देखो दुबली–पतली ना हो।”

“बहुत अच्छा सरकार”

“और हाँ देखो” उसने बैरे के हाथ में पाँच का नोट देकर कहा, “एक… ले आओ दुबली पतली ना हो। तुम्हें भी इनाम मिलेगा।”

 

बैरे की बाछें खिल गईं, आँखें चमक उठीं, गर्दन की रगें एक क़स्साब की तरह तन गईं, उसने ख़ुश हो कर कहा, “हुज़ूर बेफ़िकर रहें ऐसा उम्दा चूज़ा लाऊँगा कि…”

 

“जाओ, जाओ।” उसने जल्दी से कहा, और बोतल को गिलास में उंडेलना शुरू किया।

 

डाक बंगले के बाग़ में बीने और रुदने बारी–बारी बोल रहे थे। बीने कहते, पें–पें पीं, रुदने कहते बड़ी री री, फिर दोनों चुप हो जाते और यका–यक कोई नज़र ना आने वाला परिंदा किसी दरख़्त पर फड़–फड़ाने लगता, और उसने सोचा कि वो उसी वक़्त गैरज में जा कर अपनी मोटर से लिपट जाये, और आँसू बहा–बहा कर कहे, “मैं अकेला हूँ, मेरी जान, में अकेला हूँ।

 

मुझे तुमसे मुहब्बत है।” बड़ी री री… जी… जी… जी… पी… पी… पी… क्या वो जिए या पिए… बोतल ख़ाली हो गई। और वो मेज़ पर सर पटक कर झुक जाने को था कि यका–यक किसी ने उसके शाने को हिलाया। बैरा उसके पास खड़ा था और उसके पास एक औरत खड़ी थी।

 

“तुम कौन हो?” उसने हकलाते हुए पूछा।

“मेरा नाम ज़ुबेदा है।” औरत ने काँपती हुई आवाज़ में कहा, वो कुर्सी का सहारा लेकर उठा और कमरे के अंदर जाने के लिए मुड़ा।

 

बैरे ने उसे सहारा देना चाहा लेकिन उसने उसे झिड़क कर कहा, “हट जाओ” मैं कमरे में ख़ुद चला जाऊँगा। वो उस वक़्त इस जर्री सय्याह की तरह महसूस कर रहा था। जो किसी दुश्वार–गुज़ार बर्फ़िस्तान में सफ़र कर रहा हो, एक स्याह खाई सी हर तरफ़ फैली हुई थी, सिर्फ कमरे में एक कोने पर एक छोटा सा लैम्प जल रहा था, रोशनी चारों तरफ़ तारीकी का समुंद्र और बीच में रोशनी का मीनार…

वो उस रोशनी की तरफ़ बढ़ता चला गया, शायद वो अब भी बच जाएगा। यकायक उसने पीछे दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ सुनी और वो रुक गया। बैरे ने औरत को अंदर धकेल कर दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया था, औरत दरवाज़े से लग कर खड़ी हो गई।

 

“आओ… आओ…”
उसने औरत की तरफ़ हाथ हिला कर झूमते हुए कहा, “इधर आओ, रोशनी इधर है।”

 

औरत हौले–हौले क़दमों से क़रीब आ गई थी। उसके बालों के ऐन दरमियान से एक सीधी माँग निकली हुई थी चांदी के तार की तरह… और उसने दोनों तरफ़ बालों में पुर–तकल्लुफ़ अंदाज़ में सित्था लगाया हुआ था, सत्थे का मोम बालों पर लैम्प की रोशनी के इन’इकास से बार–बार चमक उठता था, उसके कानों में चांदी की एक–एक बाली लटक रही थी।

 

उसने औरत के शाने पर झुक कर राज़ दाराना लहजे में कहा, “क्यों? तुम उदास हो… तुम्हारा नाम किया है?”

 

“ज़ुबेदा।” उसने बे–जान से लहजा में कहा।

“शुबेदा… शुबेदा…”
उसने हंस कर कहा।

 

“शुबेदा …
हूँ… क्या ख़ूब…
”
उसने उसके चमकीले बालों पर हाथ फेरते हुए कहा। “ये क्या है… शुबेदा… प्यारी श… श… शबेदा…”

“ये सित्था है। ये मोम और जंगल के जेगन से बनता है। इससे बाल ख़ूबसूरत…”

“ख़ूब शूरत… ख़ूब शूरत शुबेदा… आ…
”
उसने हंसी और हिचकी के बीच के लहजे में कहा। “तुम बहुत ख़ूब शूरत हो शुबेदा…”
उसने ज़ुबेदा के साफ़ और गुलाबी रुख़्सारों पर उंगलियाँ फेरते हुए कहा। फिर वो अलग हट कर खड़ा हो गया और उंगली से उसकी तरफ़ इशारा कर के कहने लगा, “तुम… तुम …
शुबेदा हो।? नहीं… तुम मेरी माँ हो… ही ही ही।”

 

और वो उसके क़रीब गया।

औरत ने यका–यक उसके बाज़ुओं को झटक दिया, जैसे उसे किसी साँप ने डस लिया हो।

 

“हाँ… हाँ…”
वो चिल्ला कर बोला। “श, श शुबेदा माँ है, शुबेदा मेरी बहन है… श श शुबेदा मैं गुनहगार हूँ। शुबेदा तुम यहाँ क्यों आईं। आख़… हैं?”

“मैं ग़रीब हूँ।” ज़ुबेदा ने आहिस्ता से कहा।

“ग़रीब? ही ही ही।”

 

“मेरा बच्चा बीमार है? जर्रा, मेरा नन्हा सा जर्रा, डागदार
(
डाक्टर) ने कहा है उसे निमोनिया हो गया है। वो चार रुपय फ़ीस माँगता है, बैरे ने मुझे सिर्फ तीन रुपय दिए हैं, ख़ुदा के लिए मुझे एक रुपया और दे दो।”

 

“निमोनिया? ही ही ही… उसे ख… ख… ख़ैराती हस्पताल ले जाओ ना… निमोनिया… नत्था जरा…”

 

“यहां एक ही तो हस्पताल है।” औरत ने उदास लहजे में कहा। “और वो भी ख़ैराती… मेरे अल्लाह… मैं क्या करूँ… मैं तुम्हारे पाँव पड़ती हूँ। ख़ुदा के लिए मुझे एक रुपया और दे देना। सिर्फ एक रुपया।”

 

“बश… बश… फ़िक्र ना करो… ना… ना नन्ही शुबेदा।” वो उस की गर्दन में लिपट कर कहने लगा। “मैं तुम पर मरता हूँ। ख़ूबसूरत शुबेदा… मैं अकेला हूँ… मैं अकेला हूँ… मैं अकेला हूँ… मुझे तुम से मुहब्बत है, मुझे बचाओ। शुबेदा… उसने उसके शाने पर सर रख दिया और फूट–फूटकर रोने लगी।

 

वो सोया पड़ा था, औरत के गले में उसके बाज़ू हमाइल थे जैसे ‘वाईट हॉर्स’ की बोतल पर उसकी उंगलियाँ। लैम्प की मद्धम रोशनी झिलमिला रही थी। काली रात के सन्नाटे में नज़र ना आने वाले बीए और रोने अभी तक बहस किए जाते थे… जी… जी… जी… पी… पी… पी…लेकिन उन्हें सुनने वाला मौजूद ना था। खाई उसके सर पर हमवार हो चुकी थी।

 

जब वो जागा तो ख़ुमार उतर चुका था, रोशनी बुझ गई थी। साए ग़ायब हो चुके थे, बीने और रोने ख़ामोश थे, सुब्ह का हल्का सा परतो चारों तरफ़ छन रहा था, वो अभी तक उस की आग़ोश में मदहोश पड़ी थी।

 

बरहना, सित्थे से आरास्ता किए हुए बाल परेशान थे और सपीद गर्दन के उन हिस्सों पर सुर्ख़–सुर्ख़ निशान थे। जिन्हें वो बार–बार चूमता रहा था। उसने नीम–वा आँखों से उसे सर से पाँव तक देखा, सुडौल, गुदाज़, साँचे में ढला हुआ जिस्म, वो आहिस्ता से उसके पिंडे पर उंगलियाँ फेरने लगा।

 

औरत के सारे जिस्म में एक लर्ज़िश पैदा हुई, जैसे सोए हुए समुंद्र की लहरें बेदार हो जाएं। उसके लबों से एक आह सी निकली। और उसने आहिस्ता से उस मदहोशी के आलम में कहा।

 

“जर्रे… प्यारे नन्हे जर्रे… और फिर उसके नीम–वा लब उसी तरह आपस में मिले, जैसे माँ अपने प्यारे बेटे को चूम रही हो… नन्हा जर्रा? यकायक वो चौंक पड़ा, गुज़री हुई रात के मौहूम से साए उसकी आँखों के आगे आते गए। नन्हा जर्रा… निमोनिया… डागदार। वो काँपने लगा। तीन रुपय… चार रुपय… सिर्फ एक रुपया। उसने फ़ौरन अपने बाज़ू उस की गर्दन से हटा लिए।

 

नन्हा जर्रा… और उसे ऐसा मालूम हुआ। जैसे वो अपनी माँ से ज़िना कर रहा हो… और वो यक–लख़्त बिस्तर से उछल कर ज़मीन पर खड़ा हो गया। और फटी फटी निगाहों से उस औरत की तरफ़ तकने लगा। जो अब जाग गई थी, और बरहना थी और सारी रात उसकी आग़ोश में रही थी।

 

वो चीख़ कर कहने लगा, “छुपा लो, छुपा लो अपने आपको इस कम्बल में। दफ़ा हो जाओ मेरे सामने से। क्यों इस तरह परेशान निगाहों से मेरी तरफ़ देख रही हो। सुनती नहीं हो क्या? मैं कहता हूँ, उट्ठो, उट्ठो मेरे बिस्तर से… ये लो… ये लो… एक रुपया दो रुपय, तीन रुपय, चार रुपय, ये सब ले लो, भागो यहाँ से, भागो भागो भागो!” और उसने उस औरत को कम्बल उड़ाकर उसके कपड़े उसके हाथ में देकर उसे कमरे से निकाल दिया।

 

बहुत देर तक वो बिस्तर पर सर पकड़े बैठा रहा। दिल–ओ–दिमाग़ पर एक मुबहम सी उलझन एक मकड़ी के जाले की तरह तनी हुई थी। जो उसे बार–बार परेशान कर रही थी, और वो कुछ ना सोच सकता था। बार–बार अपने उलझे हुए लंबे बालों में उंगलियाँ फेर कर उस मकड़ी के जाले को दूर करने की कोशिश करता रहा आख़िर जब बैरे ने आकर उससे कहा, “साहब ग़ुस्ल–ख़ाने में गर्म पानी धरा है।” तो वो बेदिली से उठा और पोटेशियम परमेंगनेट की पिचकारी उठा कर ग़ुस्ल–ख़ाने में घुस गया।

 

तबीय्यत बेमज़ा सी हो गई थी, और मुँह का कड़वा कसैला ज़ायक़ा होश आने पर भी दूर ना हुआ था। शाने बोझल से थे, नहा कर वो बरामदे में मेज़ पर कुहनियाँ टेक कर नाशते का इंतिज़ार करता रहा और अपने आपको कोसता रहा। होशियार बैरे ने नाश्ते पर बियर बोतल हाज़िर कर दी। बियर के ख़ुश–रंग सय्याल ने आहिस्ता–आहिस्ता उसके ख़्यालात की रौ को बदल दिया।

 

उसकी तबीय्यत मुज़र्रह होती गई, वो आहिस्ता–आहिस्ता गुनगुनाने लगा, और सीटियाँ बजाने लगा, बीती हुई रातों के लम्हे ख़ुशगवार और दिलकश बनते चले गए, सत्थे से चमकते हुए बाल, स्याह क़मीज़ पर छातीयों के उभरे हुए ख़म, निहालू का ग़ैर–फ़ानी हुस्न, बुलबुल का नग़मा, पपीए की पी, पी, और सेब के फूल।

 

चांदनी में हंसते हुए यकायक किसी रास्ते में चमकते हुए चश्मे का ठंडा पानी और मीठा पानी उस की आँखों के सामने ख़ुशी से उछलने और उबल–उबल कर क़ह–क़हे लगाने लगा, और उसे अपनी कार की याद आई जो गैरज में पड़ी उस की राह तक रही थी। वो खड़ा हो गया। और उसने बैरे को इनाम देकर पूछा, “गढ़ी का डाक बंगला यहां से कितने मील दूर होगा।”

 

“एक सौ दस मील सरकार।”

“हाँ बैरे का क्या नाम है?”

“ख़ादिम शाह, हुज़ूर।”

“हम्म।”

“बहुत अच्छा आदमी है” बैरे ने कहा। “साहब लोगों का पुराना ख़ादिम है हुज़ूर।”

 

डाक बंगले के क़रीब एक मोड़ काटते हुए उसे एक नीले रंग की कार मिल गई जो डाक बंगले की तरफ़ आ रही थी। एक भारी जिस्म और दुहरी ठोढ़ी वाला आदमी जिसने स्याह फुंदने वाली रूमी टोपी पहन रखी थी, कार चला रहा था।

 

उस की बग़ल में एक औरत बैठी हुई थी, नीली सूसी की शलवार, स्याह क़मीज़ पर छातीयों के उभरे हुए ख़म, और आँखों में आदी मुजरिमों की सी बे–जान उदासी और वो दिल ही दिल में मुस्कुराया… महरम नहीं है तू ही नवाहाए राज़ का।

ग़रीब औरतों ने अपनी ख़्याली इस्मत की ख़ातिर पहाड़ों पर बुलंद कोट बनाए थे। लेकिन हक़ीक़त ये थी, कि उनके मैके और ससुराल, एक मीठे चश्मे से दूसरे मीठे चश्मे तक और एक डाक बंगले से दूसरे डाक बंगले तक महदूद थे।

 

उसने दिल ही दिल में ख़ुदावंद का लाख–लाख शुक्र अदा किया जिसने उन लोगों को ग़रीब बना कर उसके लिए दिलकश रातें मुहय्या की थीं।

 

ज़ुबेदा, वाईट हॉर्स, और भुना हुआ मुर्ग़… इलाही कैसी–कैसी नेअमतें तूने बनाई हैं। उसके तख़य्युल में गढ़ी का डाक बंगला एक पुरस्तानी क़िला नज़र आने लगा। और उसने अपनी कार की रफ़्तार तेज़ कर दी।

 

मोटर
के आगे और पीछे, चीढ और देवादार के घने और सब्ज़ जंगलों के दरमियान चाँदी के तार की तरह चमकती हुई वो पक्की सड़क फैलती जा रही है, एक मीठे चश्मे से दूसरे चश्मे तक, एक डाक बंगले से दूसरे डाक बंगले तक, एक अमीर की जेब से दूसरे अमीर की जेब तक, ये वही नुक़रई तार है जिसने इन्सानों के दिल तारीक कर दिए हैं। औरतों की इस्मतें वीरान कर डाली हैं, और समाज की रूह को आतिशक के जहन्नुम में झुलसा दिया है।

 

The
End

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Engr. Maqbool Akram

Engr. Maqbool Akram

I am, Engineer Maqbool Akram (M.Tech. Mechanical Engineer from AMU ), believe that reading and understanding literature and history is important to increase knowledge and improve life. I am a blog writer. I like to write about the lives and stories of literary and historical greats. My goal is to convey the lives and thoughts of those personalities who have had a profound impact on the world in simple language. I research the lives of poets, writers, and historical heroes and highlight their unheard aspects. Be it the poems of John Keats, the Shayari of Mirza Ghalib, or the struggle-filled story of any historical person—I present it simply and interestingly.

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साहब-ए-करामात- फाताँ ने वहीं चारपाई से कहा। “हाँ…….मौलवी साहब की दाढ़ी और पट्टे।” सआदत हसन मंटो

May 5, 2025
धुंआ धुंआ ज़िंदगी लाइफ़ इन मेट्रो; ट्वंटी  ट्वंटी क्रिकेट की तरह तलाक़ का निर्णय भी जल्दी आगया. और वे दोनों ‘एक्स’ होगए (नंदकिशोर बर्वे)

धुंआ धुंआ ज़िंदगी-लाइफ़ इन मेट्रो; ट्वंटी ट्वंटी क्रिकेट की तरह तलाक़ का निर्णय भी जल्दी आ गया. और वे दोनों ‘एक्स’ हो गए. (नंद किशोर बर्वे)

May 2, 2025
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तुमने क्यों कहा था मैं सुंदर हूं: फ़ोटो में माया की तरह छरहरे शरीर, परंतु बहुत सुंदर अनुपात के अवयव की निरावरण युवती, दाईं बांह का सहारा लिये एक चट्टान पर बैठी, कहीं दूर देख रही थी (यशपाल की कहानी )

May 2, 2025
अलाउद्दीन खिलजी, ने भारत की रक्षा दुनिया के क्रूरतम लड़ाके ‘मंगोलो’ से की। जिन्होंने बगदाद के खलीफा अबू मुस्तसिम बिल्लाह तक को मार दिया था।

अलाउद्दीन खिलजी, ने भारत की रक्षा दुनिया के क्रूरतम लड़ाके ‘मंगोलो’ से की। जिन्होंने बगदाद के खलीफा अबू मुस्तसिम बिल्लाह तक को मार दिया था।

May 2, 2025
जॉन कीट्स ब्रिटेन के महान कवि और फैनी ब्रॉन की असफल प्रेम कहानी- कीट्स की मृत्यु महज 25 साल में हो गई दोनों ने शादी नहीं की उसने विधवा के रूप में कीट्स  की मृत्यु पर शोक मनाया।

जॉन कीट्स ब्रिटेन के महान कवि और फैनी ब्रॉन की असफल प्रेम कहानी- कीट्स की मृत्यु महज 25 साल में हो गई दोनों ने शादी नहीं की उसने विधवा के रूप में कीट्स की मृत्यु पर शोक मनाया।

May 2, 2025
Fall of Constantinople नौजवान सुल्तान मोहम्मद फतेह ने 29 मई 1453 को कुस्तुनतुनिय फतह (इस्तांबूल) किया.रोमन साम्राज्य का अंत. इस के बाद इस्लाम का यूरोप में प्रवेश.

Fall of Constantinople नौजवान सुल्तान मोहम्मद फतेह ने 29 मई 1453 को कुस्तुनतुनिय फतह (इस्तांबूल) किया.रोमन साम्राज्य का अंत. इस के बाद इस्लाम का यूरोप में प्रवेश.

May 2, 2025
पटना की बेहद हसीन तवायफ और एक पुजारी की लव स्टोरी – यह सूखा हुआ पान हमेशा उनकी विधवा पत्नी के लिए रहस्य ही बना रहा.

पटना की बेहद हसीन तवायफ और एक पुजारी की लव स्टोरी – यह सूखा हुआ पान हमेशा उनकी विधवा पत्नी के लिए रहस्य ही बना रहा.

April 24, 2025
बड़ी शर्म की बात: (इस्मत चुग़ताई) औरत मर्द की नाक काटे तो दहल जाती हूं. उफ़ कितनी शर्म की बात

बड़ी शर्म की बात: (इस्मत चुग़ताई) औरत मर्द की नाक काटे तो दहल जाती हूं. उफ़ कितनी शर्म की बात

March 22, 2025
नशे की रात के बाद का सवेरा (ख़ुशवंत सिंह) अपने अधूरे सपने का अन्त देखने लगा-जो एक विवाहित आदमी बिना संTकोच के कर सकता है.

नशे की रात के बाद का सवेरा (ख़ुशवंत सिंह) अपने अधूरे सपने का अन्त देखने लगा-जो एक विवाहित आदमी बिना संTकोच के कर सकता है.

March 18, 2025
अंतिम प्यार: ताड़ के वृक्षों के समूह के समीप मौन रहने वाली छाया के आश्रय में एक सुन्दर नवयुवती नदी के नील-वर्ण जल में अचल बिजली-सी मौन खड़ी थी. (रबिन्द्रनाथ टैगोर की कहानी )

अंतिम प्यार: ताड़ के वृक्षों के समूह के समीप मौन रहने वाली छाया के आश्रय में एक सुन्दर नवयुवती नदी के नील-वर्ण जल में अचल बिजली-सी मौन खड़ी थी. (रबिन्द्रनाथ टैगोर की कहानी )

March 17, 2025
नाच पार्टी के बाद. वन नाइट लव स्टोरी (रूसी कहानी हिंदी में) लियो टॉल्स्टॉय

नाच पार्टी के बाद. वन नाइट लव स्टोरी (रूसी कहानी हिंदी में) लियो टॉल्स्टॉय

March 17, 2025
परवीन शाकिर छोटी उम्र बड़ी जिंदगी वो शायरा जिनके शेरों में धड़कता है आधुनिक नारी का दिल- दिल को उस राह पे चलना ही नहीं, जो मुझे तुझ से जुदा करती है

परवीन शाकिर छोटी उम्र बड़ी जिंदगी वो शायरा जिनके शेरों में धड़कता है आधुनिक नारी का दिल- दिल को उस राह पे चलना ही नहीं, जो मुझे तुझ से जुदा करती है

March 17, 2025
आय विल कॉल यू मोबाइल फोन (रूपा सिंह) जैसे ही डाटा ऑन किया खट् खट् कर कई मैसेज दस्तक देते चले आये इतनी तेजी से सबकी खबरें स्क्रीन पर चमक रही थी

आय विल कॉल यू मोबाइल फोन (रूपा सिंह) जैसे ही डाटा ऑन किया खट् खट् कर कई मैसेज दस्तक देते चले आये इतनी तेजी से सबकी खबरें स्क्रीन पर चमक रही थी

March 17, 2025
चार्ल्स डिकेंस: के प्रेम प्रसंग विक्टोरियन इंग्लैंड के महान उपन्यासकार अपने युग के रॉक स्टार गलत जगहों पर प्यार की तलाश

चार्ल्स डिकेंस: के प्रेम प्रसंग विक्टोरियन इंग्लैंड के महान उपन्यासकार अपने युग के रॉक स्टार गलत जगहों पर प्यार की तलाश

March 18, 2025
पंच परमेश्वर: फूलो ने घूंघट नहीं खींचा मुंह उठा दिया गेहुंए रंग में दो मांसल आंखें थीं जिनमें  रात का खुमार अभी बिल्कुल मिटा नहीं (रांगेय राघव की कहानी)

पंच परमेश्वर: फूलो ने घूंघट नहीं खींचा मुंह उठा दिया गेहुंए रंग में दो मांसल आंखें थीं जिनमें रात का खुमार अभी बिल्कुल मिटा नहीं (रांगेय राघव की कहानी)

March 18, 2025
मैं खुदा हूँ Ana’l haqq मंसूर अल-हलाज: जल्लाद ने सिर काटा तो धड़ से खून की धार फूट पड़ी और अचानक उनके शरीर से कटा एक-एक अंग चीखने लगा च्मैं ही सत्य हूं

मैं खुदा हूँ Ana’l haqq मंसूर अल-हलाज: जल्लाद ने सिर काटा तो धड़ से खून की धार फूट पड़ी और अचानक उनके शरीर से कटा एक-एक अंग चीखने लगा च्मैं ही सत्य हूं

March 17, 2025
नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है  तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

March 18, 2025
अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

March 18, 2025
Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

March 17, 2025
सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

March 17, 2025
Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

March 17, 2025
मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

March 17, 2025
Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

March 18, 2025
Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

March 17, 2025
River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

March 17, 2025
Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

March 18, 2025
पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

March 17, 2025
पड़ोसिन (कहानी रवीन्द्रनाथ ठाकुर) अब छिपाना बेकार है वह तुम्हारी ही पड़ोसिन है, उन्नीस नम्बर में रहती है मैंने पूछा, सिर्फ कविताएं पढ़कर ही वह मुग्ध हो गई?’

पड़ोसिन (कहानी रवीन्द्रनाथ ठाकुर) अब छिपाना बेकार है वह तुम्हारी ही पड़ोसिन है, उन्नीस नम्बर में रहती है मैंने पूछा, सिर्फ कविताएं पढ़कर ही वह मुग्ध हो गई?’

March 17, 2025
Katha Saar of Karbala (Play):  By Munshi Premchand katha samrat ( 31 July 1880 –8 October 1936 )

Katha Saar of Karbala (Play): By Munshi Premchand katha samrat ( 31 July 1880 –8 October 1936 )

March 17, 2025
Royal Love Story of A Maharani: एक महारानी की अनोखी प्रेम कहानी महारानी रियासत के दीवान से ही प्रेम कर बैठी

Royal Love Story of A Maharani: एक महारानी की अनोखी प्रेम कहानी महारानी रियासत के दीवान से ही प्रेम कर बैठी

March 17, 2025
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