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कुँवारी (कृष्ण चन्दर): ज़िंदगी की सारी ताश समेट कर अलग रख दी जाएगी, तुम्हारी क़िस्मत का बादशाह और इक्का, बेगम और ग़ुलाम सब धरे रह जाएँगे।

by Engr. Maqbool Akram
January 10, 2023
in Uncategorized
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मैगी एलियट 80 बरस की पुर–वक़ार ख़ातून हैं, बड़े क़ाएदे और क़रीने से सजती हैं। या‘नी अपनी उम्र, अपना रुत्बा, अपना माहौल देखकर सजती हैं। लबों पर हल्की सी लिपस्टिक, बालों में धीमी सी ख़ुश्बू, रुख़्सारों पर रूज़ का शाइबा सा, इतना हल्का कि गालों पर रंग मा‘लूम न हो, किसी अंदरूनी जज़्बे की चमक मा‘लूम हो।

 

हर शाम उनकी लाग़र कलाई का कंगन बदल जाता है। मैगी एलियट के पास चाँदी के छः सात कंगन हैं, जिन्हें वो बदल बदल के पहनती हैं। किसी भी मर्द को अपने क़रीब देखकर मैगी एलियट आज भी अचानक घबरा जाती हैं, फिर रुक कर कुछ अ‘जीब तरह से शर्मा कर मुस्कुराती हैं जैसे ये मुस्कुराहट देखने वाले से अपना बदन चुरा रही है।

इस मुस्कुराहट को देखकर यक़ीन हो जाता है कि मिस मैगी एलियट अपनी तवील उम्र के बावजूद अभी तक कुँवारी हैं। उनके तबस्सुम में इक अ‘जीब अनछुई सी कैफ़ियत है।

मैगी एलियट बैरोंट करीम भाई के ख़ानदान में सत्ताईस बरस की उम्र से आ गई थीं। वो कार्निवाल की रहने वाली थीं। बैरोंट करीम भाई उन्हें लंदन से अपना सैक्रेटरी बना के लाए थे और मैगी एलियट ने भी बंबई में जाना इसलिए पसंद कर लिया कि वो इंगलैंड में अपनी मुहब्बत की बाज़ी हार चुकी थीं।

 

वो इस तकलीफ़–दह माहौल से दूर भाग जाना चाहती थीं जहाँ उन्हें अपनी महरूमी का एहसास किसी पालतू कुत्ते की तरह हर–दम अपने पीछे पीछे तआक़ुब करता हुआ नज़र आता था।

 

वो लंदन छोड़कर बंबई आ गईं मगर सैक्रेटरी की हैसियत से ज़्यादा देर तक न चल सकीं। क्योंकि अभी मुहब्बत की महरूमी का एहसास नया–नया था इसलिए वो बैरोंट करीम भाई से मुलाक़ात करने के लिए आने वाले मर्दों से बिला–ज़रूरत तल्ख़ी का सुलूक कर बैठी थीं।

 

बैरोंट करीम भाई ने उन्हें सैक्रेटरी के ओहदे से अलग कर दिया मगर नर्म–दिल के आदमी थे इसलिए उन्होंने मैगी एलियट को मिसिज़ करीम भाई की सैक्रेटरी बना दिया।

 

कई बरस मैगी एलियट मिसिज़ करीम भाई की सैक्रेटरी रहीं। जब मिसिज़ करीम भाई की वफ़ात हो गई तो उन्हें मिसिज़ करीम भाई के बच्चों की गवर्नेस बना दिया गया, बैरोंट करीम भाई मर गए। बच्चे जवान हो गए। लड़कियों की शादी हो चुकी। वो ख़ानदान से बाहर चली गईं। मगर मैगी एलियट ख़ानदान के अंदर ही रहीं।

 

अब वो बैरोंट करीम भाई के सबसे बड़े लड़के इरशाद भाई की बीवी सकीना को अंग्रेज़ी पढ़ाने और मग़रिबी आदाब सिखाने पर मामूर थीं और इन दिनों बैरोंट करीम भाई के ख़ानदान के साथ बंबई से मसूरी आई हुई थीं। क्योंकि गरमियों में बैरोंट मरहूम का सारा ख़ानदान मसूरी आता था।

 

डफ़ल डोक के मशहूर देवदारों वाली घाटी पर दो–मंज़िला करीम काटिज अंग्रेज़ी घास वाले लॉन और अंग्रेज़ी फूलों वाले क़तओं और सलेटी बजरी वाली रविशों और सकीना करीम भाई की ऊँची सोसाइटी वाली पार्टियों की वज्ह से बेहद मशहूर था।

 

मसूरी क्लब की मैंबरी आसान थी मगर सकीना करीम भाई की दावतों में बुलाया जाना बहुत मुश्किल था। उसके लिए बड़ी तिगड़म करना पड़ती थी। मैं चूँकि ताश का उम्दा खिलाड़ी हूँ और सकीना को बुर्ज से इ‘श्क़ है इसलिए मैं अपनी दो हज़ार रुपया माहवार की क़लील आमदनी के बावजूद करीम काटिज की दावतों में बुलाया जाने लगा।

फिर उसी ताश के चसके के तुफ़ैल सकीना मुझे सह–पहर की चाय पर भी बुलाने लगी। होते–होते मेरे दिन का बेशतर हिस्सा करीम काटिज में गुज़रने लगा और सकीना की लड़की आइशा मुझे मीठी निगाहों से देखने लगी। देखती रहे।

 

क्या हर्ज है? अव्वल तो सकीना ख़ुद इस क़दर समझदार है कि अपनी सबसे बड़ी लड़की को कभी अपनी आँख से ओझल नहीं होने देती, फिर मिस एलियट इस क़दर मोहतात रहती हैं।

 

फिर
मैं ख़ुद इस क़दर डरपोक हूँ कि कभी किसी लड़की को लेकर भाग नहीं सकता।

इसलिए मीठी मीठी निगाहों से देखना, उँगलियों को छू लेना, आइशा के हाथ से चाय का पियाला ले लेना, उसकी बढ़ाई हुई प्लेट से मोरीन क्रीम खा लेना और कभी कभी ताश के दौरान में ज़रा मख़सूस लहजे में उसे
“
पार्टनर”
कह देना ही मेरे लिए काफ़ी है।

 

चलिए ज़िंदगी में पार्टनर न बने, ताश के खेल में बन गए और यूँ ग़ौर से देखा जाए तो ज़िंदगी की बाज़ी भी एक तरह से ताश का खेल है।

इस में कभी हार है, कभी जीत है। कभी पत्ते अच्छे आते हैं, कभी बुरे आते हैं, कभी पार्टनर से झगड़ा होता है, सुल्ह–ओ–सफ़ाई भी होती है, हिसाब–किताब भी होता है, इसी तरह अपने पत्ते खेलते–खेलते हम भूल जाते हैं कि इन पत्तों से बाहर भी कोई दुनिया है।

 

जहाँ गुलाब खिलते हैं, माली की बीवी बीमार है, एक लकड़हारा लकड़ियाँ लेकर बेचने के लिए बाज़ार जा रहा है, डौंडी वालों के कपड़े फटे हैं, आसमान पर सपेद बादल घूम रहे हैं, देवदार की शाख़ में बुलबुल ने घोंसला बनाया है, माली के बेटे ने गोफिया सँभाला है, यकायक हवा का एक झोंका आता है – चम्बेली के फूलों की ख़ुश्बू फ़िज़ा में तैरने लगती है, आइशा तुनुक कर कहती है, ”क्या सोच रहे हो? अपना पत्ता जल्दी से चलो।”

 

मैं घबराकर अपने पत्ते देखने लगता हूँ, क्योंकि ताश का खेल किसी के लिए ज़्यादा देर तक नहीं रुक सकता। जब ज़िंदगी की सारी ताश समेट कर अलग रख दी जाएगी, तुम्हारी क़िस्मत का बादशाह और इक्का, बेगम और ग़ुलाम सब धरे रह जाएँगे। और तुम इस ताश में से एक पत्ता निकाल न सकोगे, किसी को पार्टनर न कह सकोगे। तुम्हारी बाज़ी ख़त्म हुई और बस इतनी ही तुम्हारी बाज़ी थी… इसलिए अपना पत्ता जल्दी से चलो।

 

अस्ल में जो मैं इस तरह से सोचता हूँ तो इसकी वज्ह ये है कि में एक दफ़ा मुहब्बत की बाज़ी हार चुका हूँ। दुबारा ज़िंदगी को दाव पर लगाने की हिम्मत नहीं होती। मेरी तरह सुना है मिस एलियट भी इस मैदान में हार चुकी हैं।

 

मगर फिर भी दाँव लगाने से बाज़ नहीं आतीं। ये भी उनकी ज़िंदगी से गहरी मुहब्बत का सबूत है। हमेशा मुझसे चहल करती रहती हैं हालाँकि जानती हैं कि कुछ नहीं हो सकता। भला तीस बरस का मर्द और अस्सी बरस की औरत में क्या हो सकता है। मगर चहल करने से बाज़ नहीं आतीं।

 

“पाशा – अपने माथे की लट सँभालो। वर्ना मेरा ध्यान अपने पत्तों में नहीं रह सकता।”
– “
पाशा! कहाँ देख रहे हो? क्या दीवार के उस पेड़ से ताश के पत्ते लटके हैं”

“अब के मैं ज़रूर जीतूँगी। क्योंकि मेरे पत्तों में एक ‘पाशा‘ भी है।”

वो
मेरे नाम की ख़ातिर बादशाह को ‘पाशा‘ कहने लगी हैं। मिस एलियट के मासूम मज़ाक़ से सभी महज़ूज़ होते हैं।

 

आइशा भी हँस देती है फिर मेरी तरफ़ दुज़दीदा निगाहों से देखकर आँखें झुका लेती है। वो झुकी झुकी आँखें मुझे अपने पास बुलाती हैं। फ़ासला भी ज़्यादा नहीं है, मैं दोनों हाथ बढ़ाकर आइशा को अपने बाज़ुओं में ले सकता हूँ। मगर नहीं ले सकता – क्योंकि ताश खेलने वाले दूसरे भी तो होते हैं।

 

एक तरफ़ आइशा की माँ सकीना बैठी है। दूसरी तरफ़ करीम भाई स्टेट के मैनेजर आक़िल फ़ाज़िल भाई बैठे हैं जिन्होंने आइशा के लिए नैरोबी के एक करोड़पती बोहरा ताजिर का बेटा ढूँढ रखा है।

ज़िंदगी
की ताश किस क़दर आसान होती अगर दूसरे खेलने वाले न होते – … अब तुम इन सहमी–सहमी निगाहों के छोटे छोटे पत्ते मेरी तरफ़ क्यों फेंकती हो आइशा! इन दुग्गी, तिग्गियों से क्या होगा जबकि इक्का और बादशाह, बेगम और ग़ुलाम और नहले पर दहला दूसरों के हाथ में हैं? – नोबिड पार्टनर!

 

अपना हँसी मज़ाक़ मिस एलियट से तो चलता ही था। मगर उसकी कैफ़ियत एक मासूम चहल से ज़्यादा न थी, अलबत्ता मास्टर मतीन अहमद के सिलसिले में मिस एलियट ज़्यादा संजीदा नज़र आती थीं, और दिन–ब–दिन ज़्यादा गहरी दिलचस्पी का सबूत दे रही थीं। मास्टर मतीन अहमद यहाँ मसूरी आकर तीन माह के लिए मुलाज़िम रखे गए थे, बच्चों को पढ़ाने के लिए और उनकी देख–भाल करने के लिए।

 

एस्टेट मैनेजर फ़ाज़िल भाई ने बहुत सोच समझ के मतीन अहमद साहिब को मास्टर मुक़र्रर किया था। क्योंकि मास्टर मतीन अहमद ख़ासे बूढ़े थे। सत्तर बरस के क़रीब उम्र होगी। दो बीवियाँ यके–बा‘द–दीगरे वफ़ात पा चुकी थीं। पोतों, नवासों वाले थे। 

छड़ी लेकर, सर झुकाकर अपनी गिरी हुई मूँछों को और गिरा कर चलते थे। सुर्ख़–ओ–सबीह रंगत में बुढ़ापे का पकावपन और बुढ़ापे की झुर्रियाँ आ गई थीं। मगर इस उम्र में भी हौसला जवान रखते थे, और दिल–गीर तख़ल्लुस करते थे। अपना कलाम जो आज तक कहीं न छपा था, मिस एलियट को हर–रोज़ सुनाते थे।

 

मिस एलियट हर–चंद कि उर्दू शायरी में मुतलक़ कोई इस्तिदाद न रखती थीं, अब मिसरे पर मिसरे उठाती थीं और इस कोशिश में रहती थीं कि किसी तरह गिरह भी लग जाए। हालाँकि इस नेक–दिल ख़ातून की शायराना सलाहियतों की मे‘राज ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार से आगे न बढ़ी थी।

 

मगर अब वो दोनों मास्टर मतीन अहमद और मिस मैगी एलियट कभी कभी बरामदे के किसी कोने में बैठे हुए, कभी किसी लॉन पर टहलते हुए, कभी डफ़ल डोक के देवदारों में घूमते हुए शायरी पर बहस करते रहते थे। और बहस के दौरान में मैगी मास्टर साहिब का मफ़लर ठीक करती जाती थीं, वर्ना सर्दी लग जाने का अंदेशा है। और सर्दी में शे‘र ठिठुर जाते हैं।

 

कभी उनके सर की टोपी का ज़ाविया बदल देती थीं, ”यूँ ज़्यादा अच्छा लगता है।”
कभी उनका हाथ पकड़ कर डफ़ल डोक के नाले के पत्थरों पर क़दम जमाकर चलती हुई नाला पार कर जातीं।

वर्ना
शाम को नाला पार करना ज़रूरी था। मर्द के बाज़ू का सहारा कितना अच्छा लगता है। मर्द की मज़बूत उँगलियों का लम्स जैसे किसी कमज़ोर बेल को पेड़ मिल जाए।

 

सेहत में आज भी मैगी मास्टर जी से बेहतर नज़र आती थीं। मगर नाला देखते ही छः साल की बच्ची की तरह डरने और काँपने लगतीं और अपने सारे जिस्म का बोझ ग़रीब मास्टर जी पर डाल देती थीं। मास्टर जी भी हाँपते–काँपते, होंट चबाते, दमा के मरीज़ की तरह साँस लेते हर–रोज़ बड़ी बहादुरी से मिस मैगी एलियट को नाला पार करा देते थे।

फिर दम इस क़दर फूल जाता था कि नाले के पत्थर पर देर तक बैठ कर मुँह से कुछ न बोल सकते। वादी का मंज़र देखते रहते, अपने साँस की धूँकनी ठीक करने में उन्हें कई मिनट लग जाते। मगर वो ख़ामोशी के इस लंबे वक़्फ़े को किसी तरह अपनी जिस्मानी कमज़ोरी पर महमूल करने के लिए तैयार न थे। बल्कि जब दम में दम आता तो कहते,

 

”मैगी यहाँ से वादी का मंज़र इस क़दर ख़ूबसूरत दिखाई देता है कि यहाँ आते ही दम–ब–ख़ुद हो जाता हूँ। मुँह से कुछ बोल नहीं सकता!”

 

“यही हालत मेरी भी होती है।”, मैगी भी अपनी फूली हुई साँस को क़ाबू में करते हुए कहतीं। ”ये वादी बिल्कुल तुम्हारी शायरी की तरह ख़ूबसूरत है।”

 

बहुत देर तक वो दोनों चुप रहते, क्योंकि वापसी में नाले को फिर पार करना होगा। मास्टर मतीन अहमद बड़ी ना–उमीदी से नाले को देखते और उनकी हिम्मत डूब डूब जाती। और वो दिल ही दिल में सोचते, ”कल से मैं मैगी को इधर सैर करने के लिए नहीं लाऊँगा।”

 

मगर
मैगी की यही तो एक कमज़ोरी थी। नाले के इस चंद गज़ के पाट में वो सब कुछ पा लेती थीं।

वो सब कुछ जो उसे इस ज़िंदगी में कभी नहीं मिला। इस मुख़्तसर से फ़ासले में वो किसी की बीवी हो जातीं, किसी का सहारा ले लेतीं, किसी के कंधे से सर लगा देतीं, किसी की गहरी क़ुर्बत का एहसास कर लेतीं, बिल्कुल उस अल्हड़ कुँवारी की तरह हो जातीं, जो किसी ख़तरे के समय अपने आपको बचाने के लिए किसी मर्द से लिपट जाती है।

 

नाले के पार जा कर वो फिर एक अंग्रेज़ औरत हो जाती थीं। अपने आप में मुकम्मल मज़बूत और ख़ुद–मुख़्तार। मगर नाला पार करते हुए कमज़ोरी के ये चंद लम्हे बड़े क़ीमती होते थे। और वो हर–रोज़ बड़ी बे–सब्री से उन चंद लम्हों का इंतिज़ार करती थीं!

 

फिर एक दिन उनकी ज़िंदगी में पाम आ गई। पामेला थोराट। उनकी बंबई की सहेली थी।

पामेला ने बंबई के एक ताजिर से शादी की थी। चंद साल बंबई में रह कर मिस्टर थोराट और उनकी बीवी बैंगलौर चले गए थे। चंद साल ख़त–ओ–किताबत होती रही… फिर ख़त–ओ–किताबत बंद हो गई।

 

अब बीस–बाईस बरस के तवील वक़्फ़े के बा‘द जब पामेला थोराट अचानक उसे मसूरी में नज़र आ गई तो दोनों सहेलियों की ख़ुशी देखने के लाएक़ थी। न सिर्फ़ ये कि दोनों ने कई मिनट तक मुसाफ़ा किया बल्कि आवाज़ में लर्ज़िश भी थी। और आँख में आँसुुओं का शुबह तक पैदा हो गया था।

 

पाम इस अरसे में दो शौहर भुगत चुकी थी। वो बेचारे दोनों मर चुके थे। मगर साठ बरस की हो कर भी पाम अपनी शोख़ी और तर्रारी को हाथ से न जाने देना चाहती थी। अपनी फ़ितरत में पाम मैगी से बिल्कुल अलग थी। मैगी दुबली थी तो पाम मोटी। मैगी संजीदा थी तो पाम बात बे–बात पर क़हक़हा लगाने वाली। मैगी हल्का सा मेकअप करती थी तो पाम बिल्कुल गहरा। बिल्कुल जवान औरतों का सा मेकअप करती थी। उसकी आवाज़ भी अभी तक बहुत अच्छी थी और उसे बहुत से फ़ुहश लतीफ़े याद थे। नहीं। नहीं। उसकी कोई औलाद न थी।

 

पहले शौहर से एक लड़की थी। दो साल की उम्र में चल बसी। दूसरा शौहर एक एंग्लो–इंडियन था। वो हर वक़्त शराब में धुत रहता था। और कभी कभी उसे पीटता भी था। कभी कभी मर्द पीटे तो बड़ा मज़ा आता है। पाम ने मैगी को सरगोशी में बताया क्योंकि उसके बा‘द मर्द पर पछतावे का एक शदीद दौरा पड़ता है।

 

इस में वो औरत से बड़ी अहमक़ाना बातें करता है, रोता है। हाथ जोड़ता है, पाँव पड़ता है। कभी कभी जज़्बात से मग़्लूब हो कर नया फ़्राक तक सिल्वा देता है। पाम को जब भी किसी नई फ़्राक की ज़रूरत होती थी, वो अपने शौहर को किसी न किसी तरह उसे पीटने पर मजबूर कर देती थी। शौहर रखना उम्दा चीज़ है। मगर आह… अब तो बुढ़ापा आ गया।

 

पाम एक सर्द आह भर कर ख़ामोश हो गई।

“तुम तो बिल्कुल बच्चा हो। बिल्कुल बच्चा।”
मैगी ने बड़ी उम्र की बहन का रिश्ता किया और पाम की उलझी हुई लट ठीक करने लगी। ”ये बाल कैसे बना रखे हैं।‘

मैगी के लहजे में ममता की सरज़निश सी आ गई जिसे सुनकर पाम कुछ और फैल गई। इठला कर बोली, ”अब हमसे नहीं होता मैगी।”

“तुम कहाँ ठहरी हो?” मैगी ने पाम से पूछा

“पहले तो कलारस में ठहरी थी।

 

एक गुजराती फ़ैमिली के हमराह अहमदाबाद से आई थी। उन लोगों को जल्दी वापिस जाना पड़ गया। ख़ानदान में कोई मौत हो गई थी। वो लोग सब चले गए। मगर मैं ऐसी शदीद गर्मी में वापिस अहमदाबाद नहीं जा सकती।

 

इसलिए मैं उनकी मुलाज़िमत से अलग हो गई हूँ और अब मिसिज़ ट्रेवरज़ के छोटे बोर्डिंग हाऊस में पड़ी हूँ। बड़ी कमीनी औरत है। अभी तक दो रोज़ की पुरानी उबली हुई पत्तियों की चाय देती है। जैसे ये मसूरी न हो, इंगलैंड हो और जंग अभी तक जारी हो।”

 

मैगी पामेला को मिसिज़ ट्रेवरज़ के बोर्डिंग हाऊस से करीम काटिज में उठा लाई और उससे ऐसी मुहब्बत और शफ़क़त से पेश आने लगी जैसे पाम उसकी साठ बरस की सहेली न हो, कोई छोटी सी बच्ची हो। मैगी पाम के बाल बनाती, पाम के कपड़े निकालती, उसके कपड़ों पर इस्त्री करती, उस को मशवरा देती।

 

वो कौन सी चीज़ खाए कौन सी चीज़ ना खाए। कभी कभी उसे एक सख़्त–गीर माँ की तरह डाँट–डपट भी देती और पाम मैगी की मुहब्बत पाकर बे–तरह इठलाने लगी थी और साठ बरस की हो कर तीस बरस की ख़ातून की सी अदाएँ दिखाने लगी। और जब मैगी की मुहब्बत बहुत ज़ोर मारती तो वो तक़रीबन तुतलाने लगती।

 

अब मैगी और पाम और मास्टर जी (मास्टर मतीन अहमद) का तिगड़म बन गया था। तीनों बरामदे के दूसरे कोने में अलग से जा कर बैठते थे, ताश खेलते थे और हर वक़्त तीन शरीर बच्चों की तरह मसरूर और मगन नज़र आते थे। आपस में उनकी क्या बातें होती थीं, ये तो हम नहीं जान सके।

 

अलबत्ता इतना ज़रूर एहसास होने लगा कि इन तीनों में गाढ़ी छन रही है। मास्टर जी जो पहले सिर्फ़ मैगी पर अपनी पूरी तवज्जोह सर्फ़ करते थे, अब मैगी के इसरार करने पर पाम पर भी किसी क़दर अपनी तवज्जोह देने लगे। आहिस्ता–आहिस्ता यूँ हो गया कि तअ‘ल्लुक़ात बराबर के हो गए।

 

मास्टर जी अपनी आधी तवज्जोह मैगी और आधी तवज्जोह पाम को देते थे और किसी तरफ़ डंडी न मारते थे। बहुत दिनों तक ये सिलसिला चला फिर हौले–हौले ग़ैर–शऊ‘री तौर पर पाम की तरफ़ पलड़ा झुकता चला गया। क्योंकि पाम साठ बरस की थीं और मैगी अस्सी बरस की।

 

पाम के चेहरे पर झुर्रियाँ बहुत कम थीं और पाम किसी क़दर ज़िंदा–दिल थी, और कैसे उम्दा लतीफ़े सुनाती थी। मैगी की रूह बिला–शुबा पाम से बेहतर मा‘लूम होती है। मगर जिस्म को जिधर से देखो, हड्डियाँ सी निकली हुई मा‘लूम होती हैं।

 

और पाम तो बिल्कुल गर्म पानी की भरी हुई रबड़ की बोतल की तरह आराम–देह मा‘लूम होती है। और शरीर पाम पलड़ा अपनी तरफ़ झुकते देखकर ग़रीब मास्टर को और भी उकसाने लगी। और अपनी सहेली की सारी ख़ातिर–ओ–मुदारत भूल कर उसे जलाने पर तुल गई।

 

“बे–हया बिल्ली!”
मैगी ने अपने दिल ही दिल में सोचा, पहले तो मैगी ने तरह दी और बार–बार वो तरह देती रही। कभी निगाहें फेर लेती, जैसे उसने कुछ देखा न हो। फिर ज़हनी तौर पर यूँ ग़ायब हो जाती जैसे उसने कुछ सुना न हो। फिर जब दिल ख़ून होने लगता, उस वक़्त भी यूँ हँस देती जैसे कुछ हुआ न हो। मगर पलड़ा झुकता ही गया और हम देखते ही रहे और उन तीनों से दूर ही दूर अपने बुर्ज की मेज़ से इस दिलचस्प ड्रामे को देखते रहे जो अब मे‘राज को पहुँच रहा था।

 

एक महकती हुई नारंजी शाम में जब हवा की ख़ुनकी बढ़ गई थी और हम लोग मसूरी क्लब जाने की तैयारी कर रहे थे, आइशा और मैं काले संग–ए–मरमर के शेरों वाले चबूतरे पर खड़े सकीना और फ़ाज़िल भाई का इंतिज़ार कर रहे थे, जो अपने अपने कमरे में कपड़े बदलने के लिए गए थे।

 

गई तो आइशा भी थी मगर अपने कमरे से जल्दी निकल आई थी क्योंकि इस तरह से हम दोनों को अकेले में साथ रहने के लिए चंद मिनट मिल जाते थे। इस वक़्त आइशा एक काले शेर की पीठ पर बैठी हुई तुनक–मिज़ाजी से बार–बार अपने दाएँ पाँव का सैंडिल हिला रही थी और क़रीब के मर्मरीं सुतून पर चढ़ी हुई ज़र्द गुलाब वाली बेल से फूलों की कच्ची कलियाँ तोड़–तोड़ कर मेरे पाँव पर फेंक रही थी।

 

एक
कली मेरी पतलून की मोहरी में जा अटकी और मैं उसे निकालने के लिए जो झुका तो मुझे आइशा का सुर्ख़ होता हुआ चेहरा और उसके सीने के थरथराते हुए उभार अपने बहुत क़रीब नज़र आए। आइशा बहुत क़रीब से मुझे देख रही थी।

 

मैंने झुके झुके उसकी तरफ़ एक लम्हे के लिए देखा वो मेरे इस क़दर क़रीब थी कि मैं उसके साँस की आँच और उसके हुस्न की पिघलती हुई लौ को अपने रुख़्सारों पर महसूस कर सकता था।

 

उसके गुलाबी होंट ज़रा से खुल गए थे और बिल्कुल मुंतज़िर थे। ऐसे में मैंने सकीना को बरामदे के अंदर के कमरे से निकलते हुए देख लिया। मैंने जल्दी से पतलून की मोहरी से ज़र्द गुलाब की कच्ची कली को निकाला और सीधा हो कर उसे ज़ोर से दूर फेंक दिया।

 

“बुज़–दिल“, आइशा नागिन की तरह फुंकारी। फिर सकीना को आते देखकर सँभल गई।

 

मैगी और पाम और मास्टर जी भी तीनों बाहर जा रहे थे मगर क्लब को नहीं। नाले पर सैर करने के लिए। कुछ दिनों से ये तीनों इकट्ठे सैर करने के लिए नाले को जाते थे। आज सर्दी बढ़ती देखकर मैगी अपने दुबले छरीरे बदन में झुरझुरी महसूस कर के काँप उठी। उसने पाम और मास्टर जी, दोनों की तरफ़ देखकर कहा, ”ठहरो। मैं अंदर से अपना ऊनी कोट पहन कर आती हूँ।‘

 

“ऊनी कोट। गर्मी की रुत में?” पाम ने तज़हीक–आमेज़ आवाज़ में सवाल किया। मगर मैगी उसके सवाल का कोई जवाब न देकर अंदर चली गई।

 

चंद लम्हों तक तो पाम चुप रही, और अपने दोनों कूल्हों पर हाथ रखकर इधर उधर डोलती रही। फिर उसकी आँखों में एक शरीर चमक नुमूदार हुई और उसने इशारे से मास्टर मतीन अहमद को अपने पीछे आने के लिए कहा।

 

मास्टर मतीन अहमद ने चंद लम्हों के लिए तवक़्क़ुफ़ किया, बहुत बेचैन नज़र आए। इधर–उधर देखा। जब कुछ समझ नहीं आया तो पाम के पीछे–पीछे हो लिए। पाम नाले की सिम्त जा रही थी। मास्टर मतीन अहमद को साथ लेकर।

 

चंद लम्हों में वो दोनों नज़रों से ओझल हो गए। जब नज़र से ओझल होने लगे तो मैंने देखा मास्टर जी पाम के साथ साथ चल रहे हैं। पाम ने उनके बाज़ू का सहारा ले लिया था। वो बाज़ू, जो अब तक सिर्फ़ मैगी के लिए महफ़ूज़ था।

 

उनके जाने के बा‘द ही मैगी गुनगुनाती हुई अपना हल्का ग्रे ऊनी कोट पहन कर बाहर निकल आई। जब उसने देखा कि मास्टर जी और पाम नहीं हैं तो वो एक–बार ठिठक गई। उसके चेहरे का रंग इक–दम उसके कोट की तरह ग्रे हो गया। ज़ेर–ए–लब होंटों की गुनगुनाहट इक–दम रुक गई। उसने इधर उधर देखा। जब कुछ समझ में न आया तो सकीना से पूछा, ”ये लोग कहाँ हैं।‘

“चले गए।“,
सकीना ने बेहिस लहजे में कहा।

 

मैगी की डोलती हुई पुतलियाँ बड़ी तेज़ी से इधर–उधर घूमीं। जैसे कोई परिंदा अचानक ज़ख़्मी हो कर तड़पने लगे। सकीना इन आँखों अज़ीयत की ताब न ला सकी। बड़े गुस्से से बोली, ”मैगी तुम्हें हुआ क्या है? देखती नहीं हो। पाम तुमसे उम्र में कितनी कम है?”

 

मैगी ने एक लम्हे के लिए ठिठक कर सीधा सकीना की आँखों में देखा। फिर बड़ी नख़वत से एक एक लफ़्ज़ पुर–ज़ोर देकर बोली, ”उम्र कम है तो क्या हुआ… वो मेरी तरह कुँवारी तो नहीं है?”

 

फिर मिस मैगी एलियट उम्र अस्सी साल, एक औरत, अपनी एड़ी पर घूम गई और एक ना–काबिल–ए–तसख़ीर ग़ुरूर से सर उठाए हुए बरामदे में चली गई। वापिस अपने कमरे में चली गई। दरवाज़ा बंद हो गया। हम देखते ही रह गए। ये भी समझ न आया, हँसें या रोएँ।

 

सकीना इक–दम बहुत संजीदा हो गई थी। उसने अपनी आँखें हमसे चुरा ली थीं और अब तेज़–तेज़ क़दमों से आगे चल रही थी। उनके पीछे पीछे फ़ाज़िल भाई जल्दी–जल्दी से क़दम बढ़ाने लगे।

 

आइशा ने मेरी तरफ़ बड़े ग़ौर से देखा। मैंने गुलाब की बेल से एक ज़र्द कली को तोड़ लिया और उसे सूँघते हुए बोला,

“नो बिड पार्टनर।”

The End


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Engr. Maqbool Akram

Engr. Maqbool Akram

I am, Engineer Maqbool Akram (M.Tech. Mechanical Engineer from AMU ), believe that reading and understanding literature and history is important to increase knowledge and improve life. I am a blog writer. I like to write about the lives and stories of literary and historical greats. My goal is to convey the lives and thoughts of those personalities who have had a profound impact on the world in simple language. I research the lives of poets, writers, and historical heroes and highlight their unheard aspects. Be it the poems of John Keats, the Shayari of Mirza Ghalib, or the struggle-filled story of any historical person—I present it simply and interestingly.

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साहब-ए-करामात- फाताँ ने वहीं चारपाई से कहा। “हाँ…….मौलवी साहब की दाढ़ी और पट्टे।” सआदत हसन मंटो

May 5, 2025
धुंआ धुंआ ज़िंदगी लाइफ़ इन मेट्रो; ट्वंटी  ट्वंटी क्रिकेट की तरह तलाक़ का निर्णय भी जल्दी आगया. और वे दोनों ‘एक्स’ होगए (नंदकिशोर बर्वे)

धुंआ धुंआ ज़िंदगी-लाइफ़ इन मेट्रो; ट्वंटी ट्वंटी क्रिकेट की तरह तलाक़ का निर्णय भी जल्दी आ गया. और वे दोनों ‘एक्स’ हो गए. (नंद किशोर बर्वे)

May 2, 2025
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तुमने क्यों कहा था मैं सुंदर हूं: फ़ोटो में माया की तरह छरहरे शरीर, परंतु बहुत सुंदर अनुपात के अवयव की निरावरण युवती, दाईं बांह का सहारा लिये एक चट्टान पर बैठी, कहीं दूर देख रही थी (यशपाल की कहानी )

May 2, 2025
अलाउद्दीन खिलजी, ने भारत की रक्षा दुनिया के क्रूरतम लड़ाके ‘मंगोलो’ से की। जिन्होंने बगदाद के खलीफा अबू मुस्तसिम बिल्लाह तक को मार दिया था।

अलाउद्दीन खिलजी, ने भारत की रक्षा दुनिया के क्रूरतम लड़ाके ‘मंगोलो’ से की। जिन्होंने बगदाद के खलीफा अबू मुस्तसिम बिल्लाह तक को मार दिया था।

May 2, 2025
जॉन कीट्स ब्रिटेन के महान कवि और फैनी ब्रॉन की असफल प्रेम कहानी- कीट्स की मृत्यु महज 25 साल में हो गई दोनों ने शादी नहीं की उसने विधवा के रूप में कीट्स  की मृत्यु पर शोक मनाया।

जॉन कीट्स ब्रिटेन के महान कवि और फैनी ब्रॉन की असफल प्रेम कहानी- कीट्स की मृत्यु महज 25 साल में हो गई दोनों ने शादी नहीं की उसने विधवा के रूप में कीट्स की मृत्यु पर शोक मनाया।

May 2, 2025
Fall of Constantinople नौजवान सुल्तान मोहम्मद फतेह ने 29 मई 1453 को कुस्तुनतुनिय फतह (इस्तांबूल) किया.रोमन साम्राज्य का अंत. इस के बाद इस्लाम का यूरोप में प्रवेश.

Fall of Constantinople नौजवान सुल्तान मोहम्मद फतेह ने 29 मई 1453 को कुस्तुनतुनिय फतह (इस्तांबूल) किया.रोमन साम्राज्य का अंत. इस के बाद इस्लाम का यूरोप में प्रवेश.

May 2, 2025
पटना की बेहद हसीन तवायफ और एक पुजारी की लव स्टोरी – यह सूखा हुआ पान हमेशा उनकी विधवा पत्नी के लिए रहस्य ही बना रहा.

पटना की बेहद हसीन तवायफ और एक पुजारी की लव स्टोरी – यह सूखा हुआ पान हमेशा उनकी विधवा पत्नी के लिए रहस्य ही बना रहा.

April 24, 2025
बड़ी शर्म की बात: (इस्मत चुग़ताई) औरत मर्द की नाक काटे तो दहल जाती हूं. उफ़ कितनी शर्म की बात

बड़ी शर्म की बात: (इस्मत चुग़ताई) औरत मर्द की नाक काटे तो दहल जाती हूं. उफ़ कितनी शर्म की बात

March 22, 2025
नशे की रात के बाद का सवेरा (ख़ुशवंत सिंह) अपने अधूरे सपने का अन्त देखने लगा-जो एक विवाहित आदमी बिना संTकोच के कर सकता है.

नशे की रात के बाद का सवेरा (ख़ुशवंत सिंह) अपने अधूरे सपने का अन्त देखने लगा-जो एक विवाहित आदमी बिना संTकोच के कर सकता है.

March 18, 2025
अंतिम प्यार: ताड़ के वृक्षों के समूह के समीप मौन रहने वाली छाया के आश्रय में एक सुन्दर नवयुवती नदी के नील-वर्ण जल में अचल बिजली-सी मौन खड़ी थी. (रबिन्द्रनाथ टैगोर की कहानी )

अंतिम प्यार: ताड़ के वृक्षों के समूह के समीप मौन रहने वाली छाया के आश्रय में एक सुन्दर नवयुवती नदी के नील-वर्ण जल में अचल बिजली-सी मौन खड़ी थी. (रबिन्द्रनाथ टैगोर की कहानी )

March 17, 2025
नाच पार्टी के बाद. वन नाइट लव स्टोरी (रूसी कहानी हिंदी में) लियो टॉल्स्टॉय

नाच पार्टी के बाद. वन नाइट लव स्टोरी (रूसी कहानी हिंदी में) लियो टॉल्स्टॉय

March 17, 2025
परवीन शाकिर छोटी उम्र बड़ी जिंदगी वो शायरा जिनके शेरों में धड़कता है आधुनिक नारी का दिल- दिल को उस राह पे चलना ही नहीं, जो मुझे तुझ से जुदा करती है

परवीन शाकिर छोटी उम्र बड़ी जिंदगी वो शायरा जिनके शेरों में धड़कता है आधुनिक नारी का दिल- दिल को उस राह पे चलना ही नहीं, जो मुझे तुझ से जुदा करती है

March 17, 2025
आय विल कॉल यू मोबाइल फोन (रूपा सिंह) जैसे ही डाटा ऑन किया खट् खट् कर कई मैसेज दस्तक देते चले आये इतनी तेजी से सबकी खबरें स्क्रीन पर चमक रही थी

आय विल कॉल यू मोबाइल फोन (रूपा सिंह) जैसे ही डाटा ऑन किया खट् खट् कर कई मैसेज दस्तक देते चले आये इतनी तेजी से सबकी खबरें स्क्रीन पर चमक रही थी

March 17, 2025
चार्ल्स डिकेंस: के प्रेम प्रसंग विक्टोरियन इंग्लैंड के महान उपन्यासकार अपने युग के रॉक स्टार गलत जगहों पर प्यार की तलाश

चार्ल्स डिकेंस: के प्रेम प्रसंग विक्टोरियन इंग्लैंड के महान उपन्यासकार अपने युग के रॉक स्टार गलत जगहों पर प्यार की तलाश

March 18, 2025
पंच परमेश्वर: फूलो ने घूंघट नहीं खींचा मुंह उठा दिया गेहुंए रंग में दो मांसल आंखें थीं जिनमें  रात का खुमार अभी बिल्कुल मिटा नहीं (रांगेय राघव की कहानी)

पंच परमेश्वर: फूलो ने घूंघट नहीं खींचा मुंह उठा दिया गेहुंए रंग में दो मांसल आंखें थीं जिनमें रात का खुमार अभी बिल्कुल मिटा नहीं (रांगेय राघव की कहानी)

March 18, 2025
मैं खुदा हूँ Ana’l haqq मंसूर अल-हलाज: जल्लाद ने सिर काटा तो धड़ से खून की धार फूट पड़ी और अचानक उनके शरीर से कटा एक-एक अंग चीखने लगा च्मैं ही सत्य हूं

मैं खुदा हूँ Ana’l haqq मंसूर अल-हलाज: जल्लाद ने सिर काटा तो धड़ से खून की धार फूट पड़ी और अचानक उनके शरीर से कटा एक-एक अंग चीखने लगा च्मैं ही सत्य हूं

March 17, 2025
नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है  तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

March 18, 2025
अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

March 18, 2025
Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

March 17, 2025
सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

March 17, 2025
Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

March 17, 2025
मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

March 17, 2025
Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

March 18, 2025
Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

March 17, 2025
River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

March 17, 2025
Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

March 18, 2025
पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

March 17, 2025
पड़ोसिन (कहानी रवीन्द्रनाथ ठाकुर) अब छिपाना बेकार है वह तुम्हारी ही पड़ोसिन है, उन्नीस नम्बर में रहती है मैंने पूछा, सिर्फ कविताएं पढ़कर ही वह मुग्ध हो गई?’

पड़ोसिन (कहानी रवीन्द्रनाथ ठाकुर) अब छिपाना बेकार है वह तुम्हारी ही पड़ोसिन है, उन्नीस नम्बर में रहती है मैंने पूछा, सिर्फ कविताएं पढ़कर ही वह मुग्ध हो गई?’

March 17, 2025
Katha Saar of Karbala (Play):  By Munshi Premchand katha samrat ( 31 July 1880 –8 October 1936 )

Katha Saar of Karbala (Play): By Munshi Premchand katha samrat ( 31 July 1880 –8 October 1936 )

March 17, 2025
Royal Love Story of A Maharani: एक महारानी की अनोखी प्रेम कहानी महारानी रियासत के दीवान से ही प्रेम कर बैठी

Royal Love Story of A Maharani: एक महारानी की अनोखी प्रेम कहानी महारानी रियासत के दीवान से ही प्रेम कर बैठी

March 17, 2025
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