Blogs of Engr. Maqbool Akram

Blogs of Engr. Maqbool Akram

Menu
  • Home
  • Stories
  • Poems & Poets
  • History
  • Traveloge
  • Others
  • About us
Home Uncategorized

शेख़ इब्राहिम ‘ज़ौक़’: बहादुर शाह ज़फर के उस्ताद शायर जिससे ग़ालिब करते थे अदबी जंग

by Engr. Maqbool Akram
March 25, 2022
in Uncategorized
0
491
SHARES
1.4k
VIEWS
Share on FacebookShare on Twitter

आज हमारे बीच न तो ग़ालिब हैं और न ही ज़ौक़(1789-1854)  लेकिन उनके किस्से और असरार हमेशा हमें राह दिखाते
रहेंगे.

 

न ख़ुदा से शिकवा, न
बंदों से शिकायत।
शेख़ इब्राहिम ‘ज़ौक़ की उम्र भर की पूँजी
बस शेर गोई थी। लेकिन बदक़िस्मती से उनका पूरा कलाम भी हम तक नहीं पहुंच सका। ग़ज़ल की
पाण्डुलिपि वो तकिये के गिलाफ़, घड़े या मटके में डाल देते थे।
 

Poet Sheikh Ibrahim ‘Zauque’

देहांत के बाद उनके शागिर्दों ने कलाम सकलित किया और काम
पूरा न होने पाया था कि 1857 ई. का ग़दर हो गया। ज़ौक़ के देहांत के लगभग चालीस साल बाद
उनका कलाम प्रकाशित हुआ।

कहते हैं कि ज़ौक़ और ग़ालिब के बीच
जो जुबानी जंग थी उसकी वजह थी “जफ़र कि उस्तादी”

दर-असल बहादुर शाह
जफ़र को शायरी का जूनून जागा और वो अपने लिए एक उम्दा उस्ताद की तलाश करने लगे. ग़ालिब
को उम्मीद थी कि बादशाह जफ़र उन्हें ही अपना उस्ताद बनाएंगे लेकिन ज़ौक़ बाजी मार गए.
जिसके बाद ग़ालिब और ज़ौक़ के बीच में अदबी जंग शुरू हुई.

 

यूँ तो जब भी शायरी का ज़िक्र होता है तो सबसे पहले मिर्ज़ा
ग़ालिब का ही नाम ज़ेहन और जुबान पर आता है. लेकिन उर्दू अदब में कुछ ऐसे भी शायर हुए
हैं जिनका सम्मान खुद ग़ालिब भी करते हैं.
 

Mirza Ghalib

यहाँ हम बात कर रहे हैं ग़ालिब के समकालीन शायर शेख़ इब्राहीम
ज़ौक़ की. कहते हैं की मिर्ज़ा ग़ालिब और ज़ौक़ के दरमियान एक जुबानी जंग थी. लेकिन इस
जुबानी जंग के बाद भी दोनों के दिलों में एक दूसरे के लिए कोई खटास नहीं थी.

 

ज़ौक न तो शायरी में किसी से कम थे और न मुफ़लिसी में. पर उन्होंने न तो कभी ग़ालिब की तरह अपनी ग़ुर्बत का ढोल पीटा और न वजीफ़े के लिए हाथ–पैर मारे

 

ज़ौक़, यानी शेख़ मुहम्मद इब्राहिम ‘ज़ौक़’. जी, हां. वही, बहादुर शाह ज़फर के उस्ताद. उनके बारे में शायरी के किसी शौकीन से बात कर लीजिए. बेसाख़्ता वह यही कहेगा, ‘अरे, वो…ज़ौक़! वो…जिनकी ग़ालिब से अमूमन अदावत रहती थी.’

 

या उनके चंद शेर जो उसे ज़ुबानी याद होंगे, आपको पेश कर देगा. और फिर, बात या तो ग़ालिब पर आ जायेगी या मुबाहिसा कुछ और ही हो जाएगा.

 

ज़ौक़ का तार्रूफ़ इतना मुख़्तसर नहीं हो सकता. उन्होंने बहुत लंबा सफ़र तय किया था. आइये जानें कैसे थे उस्ताद ज़ौक़, कैसी थी उनकी शायरी, ज़िंदगी और ग़ालिब के साथ उनकी तनातनी के क़िस्से.

 

ज़ौक़ के वालिद शेख़ मुहम्मद रमज़ान एक अदना सिपाही थे जो दिल्ली में काबुली दरवाज़े के पास रहते थे.

 

इब्तिदाई तालीम हाफिज़ ग़ुलाम रसूल के मदरसे में हुई जो ख़ुद ‘शौक़’ के तख़ल्लुस से शायरी करते थे. संभव है कि शेख़ इब्राहीम ने उनसे मुतास्सिर होकर अपना तख़ल्लुस ‘ज़ौक़’रख लिया हो.

 

मियां इब्राहीम के दोस्त मीर काज़िम ‘बेक़रार’ उस्ताद शाह नसीर के शागिर्द थे. इब्राहीम भी उनकी सरपरस्ती में चले गये. शाह नसीर को इब्राहीम के पैर पालने में ही दिख गए थे.

 

पर वे अपनी औलाद को आगे बढ़ाने की जुगत में लगे रहे. इब्राहीम को जल्द ही ये बात समझ में आ गई. उन्होंने उस्ताद से तर्के ताल्लुकात कर (संबंध तोड़कर) महफ़िलों में शेर पढ़ना शुरू कर दिया और जल्द शोहरत भी हासिल हो गई.

Bahadur Shah Zafar

अब उनकी मंज़िल थी कि उनकी शोहरत शाही क़िले तक पंहुचे और वहां एंट्री मिले. कुछ ताल्लुकात और कुछ मशक़्क़त और बाकी क़िस्मत, यह भी हो गया. उन दिनों अकबर शाह (दूसरा) गद्दीनशीं था. उसे तो शायरी का शौक़ न था.

 

हां, उसका बेटा अबू ज़फर ज़रूर गहरी दिलचस्पी रखता था. कुछ ऐसे हालात बने कि अबू ज़फ़र ने इब्राहीम उर्फ़ ज़ौक़ को अपना उस्ताद क़ुबूल किया. इसी दौरान उन्हें ‘ख़ाकानी–ए–हिंद का ख़िताब मिला. पर अकबर शाह नहीं चाहता था कि अबू ज़फ़र अगला सुलतान बने. 

Akbar Shah 2nd

इधर, ज़फर के बादशाह बनने का मतलब था ज़ौक़ का प्रमोशन. चेले और उस्ताद की क़िस्मत बुलंद थी और जल्द ही, जैसा दोनों चाहते थे, हो गया. अबू ज़फर, बहादुर शाह ज़फ़र बन गया और शेख़ इब्राहीम उस्ताद ‘ज़ौक़’ कहलाये जाने लगे.

 

ग़ालिब से कम फक्कड़ नहीं थे ज़ौक़

यूं तो ज़ौक बादशाह के उस्ताद थे, पर क़िले के अंदर की चालबाज़ियों के चलते उसकी रहमत से मरहूम रहे. उनकी तनख्वाह महज़ चार रुपये महीना थी और मुफ़लिसी उन पर भी कहर बरपाती रही.

 

(ख़्याल रहे कि उस वक़्त तक ख़ुद ज़फ़र का वज़ीफ़ा 500 रुपये माहाना था),जो बाद मुद्दत 100 रुपये हो गया। ज़ौक़ धन–सम्पत्ति के तलबगार नहीं थे, वो बस दिल्ली में माननीय बने रहना चाहते थे। उनको अपने देश से मुहब्बत थी। सादगी इतनी कि कई मकानात होते हुए भी उम्र भर एक छोटे से मकान में रहते रहे.

 

पर उन्होंने ग़ालिब की तरह न तो कभी अपनी ग़ुर्बत का ढोल पीटा और न वजीफ़े के लिए हाथ पैर मारे. ज़फर इस हक़ीक़त से बेख़बर थे और ज़ौक़ ने उन्हें बाख़बर न किया.

 

ज़ौक़ ग़ालिब की तरह ऐबीले और दिलफेंक भी नहीं थे. वे सादगी पसंद थे. एक छोटे से मकान में रहते जिसका अहाता इतना छोटा कि बमुश्किल एक चारपाई आ पाए. हवेली के हुजरे (कमरे) कम और तंग थे. फिर भी उन्होंने एतराज़ न किया.

 

उस्तादी कांटों का ताज थी

उस्तादी तो मिलना शान की बात तो थी पर मुश्किलें भी कम नहीं थीं. ज़फर को कोई मिसरा पसंद आ जाता, तो ज़ौक़ को उसे पूरा करने की ज़िम्मेदारी दे दी जाती. मिसाल के तौर पर एक दफ़ा ज़फर, ज़ौक़ और ‘मिर्ज़ा’फ़ख़रु तालाब के किनारे सैर कर रहे थे.

 

फ़ख़रु
ने मिसरा
उछाल दिया
कि ‘चांदनी
देखे अगर
वह महजबीं
तालाब पर’ और
ज़ौक़ को
कहा कि
उस्ताद इसे
शेर बनायें.
ज़ौक़ ने
फ़ौरन मिसरा
लगाया ‘ताबे–अक्से–रुख़
से पानी
फेर दे
मेहताब पर.’

 

बादशाह को किसी राह चलते कोई जुमला पसंद आ गया तो उसे पूरा करने की ज़िम्मेदारी ज़ौक़ की. हज़ारों टप्पे, ठुमरियां, गीत, ग़ज़लें ऐसे ही बनीं और बादशाह की भेंट चढ़ गईं. उनका यह शेर उनकी मुश्किल को बख़ूबी बयान करता है:

‘ज़ौक़’ मुरत्तिब क्योंकि हो दीवां शिकवाए–फुरसत किससे करें

   बांधे हमने अपने गले में आप ‘ज़फ़र’ के झगड़े हैं’

शायद यही वजह भी रही कि जीते–जी वो कभी अपना दीवान नहीं छपवा पाए. और, बारहा (कई बार) ऐसा हुआ कि कभी ज़फ़र ने ज़ौक़ का कोई मिसरा सुन लिया तो उसी ज़मीन पर एक ग़ज़ल बना ली और भेज दी उनके पास इस्लाह (सुधार) के लिए.

 

मरता क्या न करता वाली बात. बेचारे ज़ौक़ को अपनी शायरी उनके नाम करनी पड़ती. इस वजह से ज़ौक़ ज़फर से अपनी शायरी छुपाते थे. जानकारों का कहना है कि ज़फर के जो चार दीवान शाया हुए हैं उनमें ज़ौक़ की शायरी की भरमार है. अब समझ आता है कि क्यूं फैज़ अहमद फैज़ सरीखे शायर ज़फर को शायर नहीं मानते थे.

 

ज़ौक़ की शायरी और शख़्सियत के अलहदा रंग

फ़ारसी तरकीबों के सिलसिले में ग़ालिब और मोमिन का नाम अक्सर आता है. ज़ौक़ ने ज़्यादातर उर्दू में लिखा. और उनकी उर्दू की शायरी अपने समकालीन ग़ालिब या मोमिन से किसी दर्ज़ा कमतर नहीं है.

 

लफ़्ज़ों के सही इस्तेमाल और नज़्म की रवानगी में उनका सानी नहीं था. और उनका कमाल ख़ूबसूरती की बयानबाज़ी में नज़र आता है. इनके कलामों में सादा ज़ुबानी, हुस्नपरस्ती और मुहब्बत की कशिश बाकमाल नज़र आती है. इसकी बानगी चंद अशआर हैं.

‘आना तो खफ़ा आना, जाना तो रुला जाना

  आना है तो क्या आना, जाना है तो क्या जाना’

 

‘क्या आये तुम जो आये घड़़ी दो घड़ी के बाद

   सीने में सांस होगी अड़ी दो घड़ी के बाद’

 

   मैं वो मजनूं हूं जो निकलूं कुंजे–जिंदा छोड़कर

   सेबे–जन्नत तक न खाऊं संगे–तिफ़ला छोड़कर’

 

   मर्ज़–ए–इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे

   न दवा याद रहे और न दुआ याद रहे

   तुम जिसे याद करो फिर उसे क्या याद रहे

   न ख़ुदाई की हो परवा न ख़ुदा याद रहे

 

ज़ौक़ बड़े अच्छे गणितज्ञ और भविष्यवेत्ता भी थे. उन्हें कुण्डलियां बनाना आता था. मौसिकी के ख़ासे जानकार, तसव्वुफ़ (सूफ़ीवाद) के शैदाई, तारीख़ में उनकी गहरी पैठ थी. याददाश्त इतनी तेज़ कि एक बार जो पढ़ लिया वह ज़हन पर चस्पां हो गया. बताते हैं उन्होंने उस्तादों के लगभग 350 दीवान पढ़े थे.

 

ज़ौक़ बनाम ग़ालिब

ग़ालिब, ज़ौक़ और मोमिन की हरचंद कोशिश यह रहती कि बाक़ियों से कैसे आगे निकला जाये और बादशाह की आंख का नूर बना जाए. यह तय है कि ग़ालिब इन दोनों पर भारी पड़ते थे, पर ज़ौक़ कम–से–कम उर्दू के कलामों में ग़ालिब से कमतर नहीं साबित होते थे.

ग़ालिब और ज़ौक के बीच अदबी जंग

मशहूर क़िस्सा है कि बादशाह और उनकी अज़ीज़ा बेगम ज़ीनत महल के बेटे मिर्ज़ा जवां बख़्त के निकाह पर मिर्ज़ा नोशा (मिर्ज़ा ग़ालिब) को बख़्त का सेहरा पढ़ने का ज़िम्मा मिला. वहीं ज़फर की ख्व़ाहिश थी कि ज़ौक़ इस काम को अंजाम दें. ख़ैर, तय हुआ कि जवां बख्त का सेहरा ज़ौक़ और गालिब दोनों ही लिखेंगे.

ग़ालिब ने सेहरे के मक़ते (आखिरी शेर) में कहा–

‘हम सुख़नफहम हैं गालिब के तरफ़दार नहीं

  देखें इस सहरे से कह दे कोई बढ़कर सेहरा’.

 

महफ़िल में ये साफ़ ज़ाहिर हो गया कि ग़ालिब ने ज़ौक़ पर तंज़ कसा है. बादशाह ज़फर ज़ौक़ की तरफ़ मुख़ातिब होकर बोले कि वो भी फ़ौरन से पेश्तर इसी मौज़ूं पर कुछ फ़रमाएं.

 

आख़िर बादशाह और उनकी इज्ज़त का सवाल जो ठहरा. क्या करें, बादशाह की उस्तादी पकड़बुलावे की नौकरी है. ज़ौक़ ने भी ज़फर को मायूस न किया. उन्होंने कहा,

  ऐ
जवां बख़्त
!
मुबारक तुझे
सर पर
सेहरा

  आज है
यम्नो–सआदत
का तेरे
सर पर
सेहरा’

इसके मक़ते में उन्होंने ग़ालिब की बात का यूं जवाब दिया.

‘जिसको दावा हो सुख़न का ये सुना दो उनको

  
देख इसे कहते हैं सुख़नवर सेहरा’

कहते हैं उस दिन ज़ौक़ ने महफिल लूट ली थी. ज़फ़र ग़ालिब की इस बेहयाई से ख़ासे नाराज़ भी हुए. ग़ालिब ने अपनी सफ़ाई भी पेश की थी. पर यह क़िस्सा फिर कभी.

इसी अदावत पर एक और शेर है

‘न हुआ पर न हुआ मीर का अंदाज़ नसीब

‘ज़ौक़ यारों ने बहुत ज़ोर ग़ज़ल में मारा’

 

हालांकि उनकी ग़ालिब से तनातनी कभी इस तक हद न हुई कि एक दूसरे को शर्मसार करने की नौबत आये और इसमें भी ज़ौक़ का कमाल ज़्यादा था.

 

जहां ग़ालिब नए ख़यालों पर लिखना पसंद करते और हुस्न–औ–इश्क़ पर कम तो वहीं ज़ौक़ का कमाल ख़ूबसूरती की चुस्त और दिलचस्प बयानी में था.

भावना के मैदान में उन्होंने कम ही हाथ–पैर मारे हैं. ज़ौक़ आकारवाद के साधक थे, और ग़ालिब ज़हनी तलातुम (भंवर) में डुबकी लगाते रहते थे और तसव्वुफ़ की कश्ती से उसे पार करते. पर बात यह भी है कि कहीं न कहीं दोनों एक दूसरे के कायल भी थे.

 

ग़ालिब ने एक दफ़ा कहीं यह शेर सुना:

‘अब तो घबरा के कहते हैं कि मर जायेंगे,

   मर के भी चैन न पाया तो किधर जायेंगे.’

जब उन्हें मालूम हुआ कि यह ज़ौक़ का है, तो बारहा दोस्तों की महफ़िल में इसे गुनगुना देते. वहीं, ज़ौक़ ने कभी कहा था कि मिर्ज़ा (ग़ालिब) को ख़ुद अपने अच्छे शेरों का पता नहीं है, वे उनका यह शेर सुनाया करते थे;

  दरिया–ए–मआसी तुनुक–आबी से हुआ ख़ुश्क

   मेरा सरे–दामन भी अभी तर न हुआ था’.

 

दिल्ली से मुहब्बत

ज़ौक़ को दिल्ली से दिली मुहब्बत थी. वरना क्या बात थी कि वे भी ‘दाग़’ दहलवी या मीर के जैसे वहां से दस्तअफ्शां (जगह छोड़ना) न होते? क़िस्सा है कि दक्कन के नवाब ने अपने दीवान चन्दूलाल के हाथों उन्हें चंद ग़ज़लें इस्लाह (सुधार) के लिए भेजीं और साथ में
500
रुपये और ख़िलवत देकर वहां आने का न्यौता दे डाला.

ज़ौक़ ने ग़ज़लें तो दुरस्त कर दीं पर ख़ुद न गए. जो ग़ज़ल इस्लाह करके भेजी थी उसका मक़ता था

‘आजकल गर्चे दक्कन में है बड़ी कद्रे सुखन

  कौन जाये ‘ज़ौक़’पर दिल्ली की गलियां छोड़कर’

 

दिल्ली की गलियां तो न छोड़ीं, पर हां, वे
16
नवंबर, 1854 को दुनिया से कूच कर गए. उनका शेर था—

  ‘लायी हयात आए क़ज़ा ले चली चले

     न अपनी ख़ुशी आये, न अपनी ख़ुशी चले’

इंतकाल से तीन घंटे पहले उन्होंने यह शेर कहा था.

  कहते हैं ‘ज़ौक़’ आज जहां से गुज़र गया

  क्या ख़ूब आदमी था, ख़ुदा मग़फ़रत करे

 

जीते जी एक भी दीवान नहीं छपा. जो कुछ भी लिखा उसमें से बहुत कुछ ज़फ़र को दे दिया. बाक़ी जो बचा,
1857
के ग़दर की भेंट चढ़ गया और साथ में उनका एकलौता बेटा भी जाता रहा.

 

जो रह गया, उसका हिसाब यह है – 167 ग़ज़लें, 194 अकेले शेर, 24 क़सीदे, 1 मसनवी, 20 रुबाइयां, 5-6 क़ते, 1 सेहरा और कुछ अधूरे क़सीदे. याद आता है उनके प्रतिद्वंदी ग़ालिब का शेर.

‘चंद तस्वीरें बुतां, चंद हसीनों के ख़तूत

  बाद मरने के मेरे घर से ये सामां निकला’

 

हम यहां पर इस महान शायर के 5 शेर पेश कर रहे हैं। 

1-अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जायेंगे

 मर गये पर न लगा जी तो किधर जायेंगे

 

2-‘ज़ौक़‘ जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला

 उनको मैख़ाने में ले लाओ, संवर जायेंगे

 

3-क्या आए तुम जो आए घड़ी दो घड़ी के बाद

  सीने में होगी सांस अड़ी दो घड़ी के बाद

 

4-मर्ज़–ए–इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे

 न दवा याद रहे और न दुआ याद रहे

 

5-ज़ाहिद शराब पीने से काफ़िर हुआ मैं क्यूँ

   क्या डेढ़ चुल्लू पानी में ईमान बह गया

The End





  

Share196Tweet123
Engr. Maqbool Akram

Engr. Maqbool Akram

I am, Engineer Maqbool Akram (M.Tech. Mechanical Engineer from AMU ), believe that reading and understanding literature and history is important to increase knowledge and improve life. I am a blog writer. I like to write about the lives and stories of literary and historical greats. My goal is to convey the lives and thoughts of those personalities who have had a profound impact on the world in simple language. I research the lives of poets, writers, and historical heroes and highlight their unheard aspects. Be it the poems of John Keats, the Shayari of Mirza Ghalib, or the struggle-filled story of any historical person—I present it simply and interestingly.

Latest Post

साहब-ए-करामात- फाताँ ने वहीं चारपाई से कहा। “हाँ…….मौलवी साहब की दाढ़ी और पट्टे।” सआदत हसन मंटो

May 5, 2025
धुंआ धुंआ ज़िंदगी लाइफ़ इन मेट्रो; ट्वंटी  ट्वंटी क्रिकेट की तरह तलाक़ का निर्णय भी जल्दी आगया. और वे दोनों ‘एक्स’ होगए (नंदकिशोर बर्वे)

धुंआ धुंआ ज़िंदगी-लाइफ़ इन मेट्रो; ट्वंटी ट्वंटी क्रिकेट की तरह तलाक़ का निर्णय भी जल्दी आ गया. और वे दोनों ‘एक्स’ हो गए. (नंद किशोर बर्वे)

May 2, 2025
IUIUIIU

तुमने क्यों कहा था मैं सुंदर हूं: फ़ोटो में माया की तरह छरहरे शरीर, परंतु बहुत सुंदर अनुपात के अवयव की निरावरण युवती, दाईं बांह का सहारा लिये एक चट्टान पर बैठी, कहीं दूर देख रही थी (यशपाल की कहानी )

May 2, 2025
अलाउद्दीन खिलजी, ने भारत की रक्षा दुनिया के क्रूरतम लड़ाके ‘मंगोलो’ से की। जिन्होंने बगदाद के खलीफा अबू मुस्तसिम बिल्लाह तक को मार दिया था।

अलाउद्दीन खिलजी, ने भारत की रक्षा दुनिया के क्रूरतम लड़ाके ‘मंगोलो’ से की। जिन्होंने बगदाद के खलीफा अबू मुस्तसिम बिल्लाह तक को मार दिया था।

May 2, 2025
जॉन कीट्स ब्रिटेन के महान कवि और फैनी ब्रॉन की असफल प्रेम कहानी- कीट्स की मृत्यु महज 25 साल में हो गई दोनों ने शादी नहीं की उसने विधवा के रूप में कीट्स  की मृत्यु पर शोक मनाया।

जॉन कीट्स ब्रिटेन के महान कवि और फैनी ब्रॉन की असफल प्रेम कहानी- कीट्स की मृत्यु महज 25 साल में हो गई दोनों ने शादी नहीं की उसने विधवा के रूप में कीट्स की मृत्यु पर शोक मनाया।

May 2, 2025
Fall of Constantinople नौजवान सुल्तान मोहम्मद फतेह ने 29 मई 1453 को कुस्तुनतुनिय फतह (इस्तांबूल) किया.रोमन साम्राज्य का अंत. इस के बाद इस्लाम का यूरोप में प्रवेश.

Fall of Constantinople नौजवान सुल्तान मोहम्मद फतेह ने 29 मई 1453 को कुस्तुनतुनिय फतह (इस्तांबूल) किया.रोमन साम्राज्य का अंत. इस के बाद इस्लाम का यूरोप में प्रवेश.

May 2, 2025
पटना की बेहद हसीन तवायफ और एक पुजारी की लव स्टोरी – यह सूखा हुआ पान हमेशा उनकी विधवा पत्नी के लिए रहस्य ही बना रहा.

पटना की बेहद हसीन तवायफ और एक पुजारी की लव स्टोरी – यह सूखा हुआ पान हमेशा उनकी विधवा पत्नी के लिए रहस्य ही बना रहा.

April 24, 2025
बड़ी शर्म की बात: (इस्मत चुग़ताई) औरत मर्द की नाक काटे तो दहल जाती हूं. उफ़ कितनी शर्म की बात

बड़ी शर्म की बात: (इस्मत चुग़ताई) औरत मर्द की नाक काटे तो दहल जाती हूं. उफ़ कितनी शर्म की बात

March 22, 2025
नशे की रात के बाद का सवेरा (ख़ुशवंत सिंह) अपने अधूरे सपने का अन्त देखने लगा-जो एक विवाहित आदमी बिना संTकोच के कर सकता है.

नशे की रात के बाद का सवेरा (ख़ुशवंत सिंह) अपने अधूरे सपने का अन्त देखने लगा-जो एक विवाहित आदमी बिना संTकोच के कर सकता है.

March 18, 2025
अंतिम प्यार: ताड़ के वृक्षों के समूह के समीप मौन रहने वाली छाया के आश्रय में एक सुन्दर नवयुवती नदी के नील-वर्ण जल में अचल बिजली-सी मौन खड़ी थी. (रबिन्द्रनाथ टैगोर की कहानी )

अंतिम प्यार: ताड़ के वृक्षों के समूह के समीप मौन रहने वाली छाया के आश्रय में एक सुन्दर नवयुवती नदी के नील-वर्ण जल में अचल बिजली-सी मौन खड़ी थी. (रबिन्द्रनाथ टैगोर की कहानी )

March 17, 2025
नाच पार्टी के बाद. वन नाइट लव स्टोरी (रूसी कहानी हिंदी में) लियो टॉल्स्टॉय

नाच पार्टी के बाद. वन नाइट लव स्टोरी (रूसी कहानी हिंदी में) लियो टॉल्स्टॉय

March 17, 2025
परवीन शाकिर छोटी उम्र बड़ी जिंदगी वो शायरा जिनके शेरों में धड़कता है आधुनिक नारी का दिल- दिल को उस राह पे चलना ही नहीं, जो मुझे तुझ से जुदा करती है

परवीन शाकिर छोटी उम्र बड़ी जिंदगी वो शायरा जिनके शेरों में धड़कता है आधुनिक नारी का दिल- दिल को उस राह पे चलना ही नहीं, जो मुझे तुझ से जुदा करती है

March 17, 2025
आय विल कॉल यू मोबाइल फोन (रूपा सिंह) जैसे ही डाटा ऑन किया खट् खट् कर कई मैसेज दस्तक देते चले आये इतनी तेजी से सबकी खबरें स्क्रीन पर चमक रही थी

आय विल कॉल यू मोबाइल फोन (रूपा सिंह) जैसे ही डाटा ऑन किया खट् खट् कर कई मैसेज दस्तक देते चले आये इतनी तेजी से सबकी खबरें स्क्रीन पर चमक रही थी

March 17, 2025
चार्ल्स डिकेंस: के प्रेम प्रसंग विक्टोरियन इंग्लैंड के महान उपन्यासकार अपने युग के रॉक स्टार गलत जगहों पर प्यार की तलाश

चार्ल्स डिकेंस: के प्रेम प्रसंग विक्टोरियन इंग्लैंड के महान उपन्यासकार अपने युग के रॉक स्टार गलत जगहों पर प्यार की तलाश

March 18, 2025
पंच परमेश्वर: फूलो ने घूंघट नहीं खींचा मुंह उठा दिया गेहुंए रंग में दो मांसल आंखें थीं जिनमें  रात का खुमार अभी बिल्कुल मिटा नहीं (रांगेय राघव की कहानी)

पंच परमेश्वर: फूलो ने घूंघट नहीं खींचा मुंह उठा दिया गेहुंए रंग में दो मांसल आंखें थीं जिनमें रात का खुमार अभी बिल्कुल मिटा नहीं (रांगेय राघव की कहानी)

March 18, 2025
मैं खुदा हूँ Ana’l haqq मंसूर अल-हलाज: जल्लाद ने सिर काटा तो धड़ से खून की धार फूट पड़ी और अचानक उनके शरीर से कटा एक-एक अंग चीखने लगा च्मैं ही सत्य हूं

मैं खुदा हूँ Ana’l haqq मंसूर अल-हलाज: जल्लाद ने सिर काटा तो धड़ से खून की धार फूट पड़ी और अचानक उनके शरीर से कटा एक-एक अंग चीखने लगा च्मैं ही सत्य हूं

March 17, 2025
नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है  तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

March 18, 2025
अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

March 18, 2025
Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

March 17, 2025
सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

March 17, 2025
Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

March 17, 2025
मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

March 17, 2025
Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

March 18, 2025
Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

March 17, 2025
River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

March 17, 2025
Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

March 18, 2025
पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

March 17, 2025
पड़ोसिन (कहानी रवीन्द्रनाथ ठाकुर) अब छिपाना बेकार है वह तुम्हारी ही पड़ोसिन है, उन्नीस नम्बर में रहती है मैंने पूछा, सिर्फ कविताएं पढ़कर ही वह मुग्ध हो गई?’

पड़ोसिन (कहानी रवीन्द्रनाथ ठाकुर) अब छिपाना बेकार है वह तुम्हारी ही पड़ोसिन है, उन्नीस नम्बर में रहती है मैंने पूछा, सिर्फ कविताएं पढ़कर ही वह मुग्ध हो गई?’

March 17, 2025
Katha Saar of Karbala (Play):  By Munshi Premchand katha samrat ( 31 July 1880 –8 October 1936 )

Katha Saar of Karbala (Play): By Munshi Premchand katha samrat ( 31 July 1880 –8 October 1936 )

March 17, 2025
Royal Love Story of A Maharani: एक महारानी की अनोखी प्रेम कहानी महारानी रियासत के दीवान से ही प्रेम कर बैठी

Royal Love Story of A Maharani: एक महारानी की अनोखी प्रेम कहानी महारानी रियासत के दीवान से ही प्रेम कर बैठी

March 17, 2025
  • About us
  • Contact us
  • Home

Copyright © 2025. All rights reserved. Design By Digital Aligarh

No Result
View All Result
  • About us
  • Contact us
  • Home

Copyright © 2025. All rights reserved. Design By Digital Aligarh