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मैंने कहा वो प्यार के रिश्ते नहीं रहे, कहने लगी के तुम भी तो वैसे नहीं रहे(Hasan Abbas Raza)

by Engr. Maqbool Akram
January 18, 2024
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मैंने कहा वो प्यार के रिश्ते नहीं रहे

मैंने कहा वो प्यार के रिश्ते नहीं रहे,

कहने लगी के तुम भी तो वैसे नहीं रहे,

पूछा कहां गए मेरे यारां–ए–खुश–ख्याल,

कहने लगी के वो भी तुम्हारे नहीं रहे,

 

पूछा घरों में खिड़किया क्यूँ ख़त्म हो गईं,

बोली कि अब वो झांकने वाले नहीं रहे !

अगला सवाल था कि मेरी नींद क्या हुई,

बोली तुम्हारी ऑंख में सपने नहीं रहे !

जाओ आज तक दिया नहीं तुम ने मुझे फरेब,

पर ये भी सच है तुम कभी मेरे नहीं रहे,

बोली कुरेदते हो तुम उस ढेर को जहां,

बस रख रह गयी है शरारे नहीं रहे,

पूछा तुम्हें कभी नहीं आया मेरा ख्याल,

क्या तुम को याद, यार पुराने नहीं रहे,

कहने लगी मैं ढूंढती तेरा पता मगर,

जिन पर निशान लगे थे वो नक़्शे नहीं रहे,

तेरे बग़ैर शहर–ए–सुख़न संग हो गया,

हौंथों पे अब वो रेशमी लहजे नहीं रहे,

जिन से उतर के आती दबे पांव तेरी याद,

ख्वाबों में भी वो कासनी ज़ीने नहीं रहे,

हमने कहा जो हो सके करना हमें मुआफ़,

तुम जैसा चाहती थी हम वैसे नहीं रहे,

अब ये तेरी रज़ा है के जो चाहे सो करे,

वरना किसी को क्या कहते हम अपने नहीं रहे.!!

 

Maine Kaha Wo Pyar Ke Rishte Nahi Rahe

Maine Kaha Wo Pyar Ke
Rishte Nahi Rahe,

Kahne Lagi Ke Tum Bhi
To Waise Nahi Rahe,

Puchha Kahaan Gaye
Mere Yaaraan-e-khush-khyaal,

Kahne Lagi Ke Wo Bhi
Tumhare Nahi Rahe,

Go Aaj Tak Diya Nahi
Tum Ne Mujhe Fareb,

Par Ye Bhi Sach Hai
Tum Kabhi Mere Nahi Rahe,

Boli Kuredte Ho Tum Us
Dhher Ko Jahaan,

Bas Raakh Rah Gayi Hai
Sharaare Nahi Rahe,

Puchha Tumhein Kabhi
Nahi Aaya Mera Khyaal,

Kya Tum Ko Yaad, Yaar
Puraane Nahi Rahe,

Kahne Lagi Main
Dhundhti Tera Pata Magar,

Jin Par Nishaan Lage
The Wo Naqshe Nahi Rahe,

Tere Baghair
Shahr-e-sukhan Sang Ho Gaya,

Honthon Pe Ab Wo
Reshmi Lahje Nahi Rahe,

Jin Se Utar Ke Aati
Dabe Paanw Teri Yaad,

Khwabon Mein Bhi Wo
Kaasni Zeene Nahi Rahe,

Hum Ne Kaha Jo Ho Sake
Karna Humein Muaaf,

Tum Jaisa Chahti Thi
Hum Waise Nahi Rahe,

Ab Ye Teri Raza Hai ke
Jo Chaahe So Kare,

Warna Kisi Ke Kya Ke
Hum Apne Nahi Rahe.!!

 

میں نے کہا وہ پیار کے رشتے نہیں رہے

میں نے کہا وہ پیار کے رشتے نہیں رہے

کہنے لگی کہ تم بھی تو ویسے نہیں رہے

پوچھا گھروں میں کھڑکیاں کیوں ختم ہو گئیں ؟

بولی کہ اب وہ جھانکنے والے نہیں رہے

پوچھا کہاں گئے مرے یارانِ خوش خصال

کہنے لگی کہ وہ بھی تمہارے نہیں رہے

اگلا سوال تھا کہ مری نیند کیا ہوئی؟

بولی تمہاری آنکھ میں سپنے نہیں رہے

پوچھا کرو گی کیا جو اگر میں نہیں رہا؟

بولی یہاں تو تم سے بھی اچھے، نہیں رہے

آخر وہ پھٹ پڑی کہ سنو اب مرے سوال

کیا سچ نہیں کہ تم بھی کسی کے نہیں رہے

گو آج تک دیا نہیں تم نے مجھے فریب

پر یہ بھی سچ ہے تم کبھی میرے نہیں رہے

اب مدتوں کے بعد یہ آئے ہو دیکھنے

کتنے چراغ ہیں ابھی، کتنے نہیں رہے !

میں نے کہا مجھے تری یادیں عزیز تھیں

ان کے سوا کبھی کہیں الجھے نہیں رہے

کیا یہ بہت نہیں کہ تری یاد کے چراغ

اتنے جلے کہ مجھ میں اندھیرے نہیں رہے

کہنے لگی تسلّیاں کیوں دے رہے ہو تم

کیا اب تمہاری جیب میں وعدے نہیں رہے

بہلا نہ پائیں گے یہ کھلونے حروف کے

تم جانتے ہو ہم کوئی بچے نہیں رہے

بولی کریدتے ہو تم اُس ڈھیر کو جہاں

بس راکھ رہ گئی ہے، شرارے نہیں رہے

پوچھا تمہیں کبھی نہیں آیا مرا خیال؟

کیا تم کو یاد، یار پرانے نہیں رہے

کہنے لگی میں ڈھونڈتی تیرا پتہ، مگر

جن پر نشاں لگے تھے، وہ نقشے نہیں رہے

بولی کہ سارا شہرِ سخن سنگ ہو گیا

ہونٹوں پہ اب وہ ریشمی لہجے نہیں رہے

جن سے اتر کے آتی دبے پاؤں تیری یاد

خوابوں میں بھی وہ کاسنی زینے نہیں رہے

میں نے کہا، جو ہو سکے، کرنا ہمیں معاف

تم جیسا چاہتی تھیں، ہم ایسے نہیں رہے

ہم عشق کے گدا، ترے در تک تو آ گئے

لیکن ہمارے ہاتھ میں کاسے نہیں رہے

اب یہ تری رضاؔ ہے، کہ جو چاہے، سو، کرے

ورنہ کسی کے کیا، کہ ہم اپنے نہیں رہے

  

The End



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Engr. Maqbool Akram

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I am, Engineer Maqbool Akram (M.Tech. Mechanical Engineer from AMU ), believe that reading and understanding literature and history is important to increase knowledge and improve life. I am a blog writer. I like to write about the lives and stories of literary and historical greats. My goal is to convey the lives and thoughts of those personalities who have had a profound impact on the world in simple language. I research the lives of poets, writers, and historical heroes and highlight their unheard aspects. Be it the poems of John Keats, the Shayari of Mirza Ghalib, or the struggle-filled story of any historical person—I present it simply and interestingly.

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