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अमेरिका ने जापान पर 6 अगस्त, तीन दिन बाद, 9 अगस्त एक और परमाणु बम गिराए: वो दिन जब लाशों और मलबे में बदल गया था हिरोशिमा और नागासाकी.

by Engr. Maqbool Akram
August 9, 2022
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इतिहास के पन्नों में 6 अगस्त
1945
का दिन काली स्याही से दर्ज है। इसी दिन अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा शहर पर परमाणु बम गिराया था जिसमें लाखों लोगों की मौत हो गई थी। इस हमले में
1,30,000
जापानी पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई थी।

 

उस बम का नाम ‘लिटिल बॉय‘ था जिसे
B-29
बॉम्बर
(Enola Gay)
के चालक दलों ने गिराया था। यह अमेरिका की तरफ से सफल परीक्षणों के बाद युद्ध में इस्तेमाल किया गया पहला परमाणु बम था। इसके तीन दिन बाद अमेरिका ने ‘फैट मैन‘ नाम का एक और बम जापान के दूसरे शहर नागासाकी पर गिरा दिया। इसमें
40,000
लोगों की मौत हो गई और जापान को सरेंडर करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

Japanese foreign affairs minister Mamoru Shigemitsu signs the Japanese Instrument of Surrender aboard the USS Missouri as General Richard K. Sutherland watches, 2 September 1945.

06 अगस्त
1945
को अमेरिका ने जापान के शहर हिरोशिमा पर पहला परमाणु बम गिराया. ना केवल जापान इससे दहल गया बल्कि सारी दुनिया थर्रा उठी. इसके 03 दिन बाद फिर नागासाकी पर भी बम गिराया गया. लाखों लोग एक ही झटके मारे गए. उससे भी बम के कारण हुए विकिरण से मारे जाते रहे. ये हादसा 76 साल पहले हुआ था. लेकिन ये ऐसी घटना है जो भुलाए नहीं भुलती.

 

इस
बम के बाद ही एशिया में द्वितीय युद्ध का खात्मा औपचारिकता रह गई. जापानी सेनाओं ने पीछे हटना शुरू कर दिया. करीब एक हफ्ते बाद ही जापान ने मित्र देशों के गठबंधन के सामने आत्मसमर्पण भी कर दिया.

 

क्या हुआ था 6 अगस्त 1945 को

6 अगस्त 1945 को ही हिरोशिमा में सुबह 8.15 के समय अमेरिका के बी29 बॉम्बर एनोला गे ने लिटिल बॉय नाम का परमाणु गिराया था जिसमें 20 हजार टन के टीएनटी से भी ज्यादा बल था.

The mission runs of 6 and 9 August, with Hiroshima, Nagasaki, and Kokura (the original target for 9 August) displayed

इस समय शहर के बहुत सारे लोग काम पर जा रहे थे. बच्चे भी स्कूल पहुंच चुके थे. एक अमेरिकी सर्वे के मुताबिक यह बम शहर के केंद्र के ही पास गिराया गया था, जिससे 80 हजार लोग मारे गए. इतने ही घायल हुए.

 

तीन दिन बाद एक और बम

इसके तीन दिन बाद ही एक और परमाणु बम जिससे फैट मैन कहा जाता है नागासाकी के ऊपर सुबह 11 बजे गिराया जिसमें 40 हजार लोग मारे गए. सर्वे के मुताबिक नागासाकी में नुकसान बहुत कम हुआ क्योंकि यह बम एक घाटी में गिरा और उसी वजह से उसका असर ज्यादा नहीं फैला. इसका असल केवल 1.8 वर्ग मील तक ही हुआ.

 

अमेरिका ने क्यों गिराया हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम, इस सवाल का जवाब पर कई मत है.

1945
में जापान और अमेरिका के बीच तनाव बहुत बढ़ गया था. जापान ने इंडोचायना इलाके पर कब्जा करने की नीति अपनाई, जिससे अमेरिका खफा हो गया था. अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति हैरी ट्रूमन को परमाणु बम के उपयोग के अधिकार दे दिए थे जिससे जापान को युद्ध में आत्मसमर्पण करने में मदद मिल सके.

 

अगस्त
1945
तक जापान द्वितीय विश्व युद्ध हार चुका था. इस बात की जानकारी अमेरिका और जापान दोनों ही देशों को थी. ऐसे में कुछ सवाल थे, जो हर किसी के मन में लगातार उठ रहे थे. कितने दिनों तक युद्ध चलेगा, जापान कब सरेंडर करेगा और आगे क्या? जापान सरेंडर करने और आखिर तक युद्ध लड़ने के बीच बंट चुका था. ऐसे में जापान ने युद्ध लड़ना जारी रखा.

ट्रूमन ने जापान को चेताया था कि अगर वो समर्पण नहीं किया तो अमेरिका जापान के किसी भी शहर को पूरी तरह से नेस्तोनाबूद करने के लिए तैयार है.

 

अगर जापान ने उनकी शर्तों को नहीं माना तो वे हवा में बर्बादी की बारिश देखने के लिए तैयार रहे. उन हालातों में जापान ने कोई समझौता नहीं किया. फिर अमेरिका ने बम गिराने का फैसला कर 6 अगस्त को हिरोशिमा पर और 9 अगस्त को नागासाकी पर परमाणु बम गिरा दिए.

हिरोशिमा पर जिस समय बम गिराया गया, वो लोगों के आफिस जाने का समय था. बम भी इस शहर के मुख्य केंद्र पर गिराया गया.

 

इस मामले कुछ और मत भी हैं जो अमेरिका के जापान पर परमाणु बम गिराने का अलग कारण बताते हैं.

इतिहासकार गार एलपरोजित्ज ने 1965 में अपने किताब में दलील दी है कि जापान तो उस समय हार ही रहा था, लेकिन अमेरिका युद्ध के बाद सोवियत संघ से शक्ति के मामले में आगे निकलना चाहता था. इसीलिए उनसे यह एक तरह का ‘शक्ति प्रदर्शन’ किया. यह भी कहा जाता है कि यह मत उस समय सोवियत संघ ने प्रचलित किया था.


Representatives of the Empire of Japan stand aboard USS Missouri prior to signing of the Instrument of Surrender.

 विश्व विजयी बनना हर ताकतवर देश के तानाशाह का सपना होता है.

हिटलर ने भी यही सपना देखा था. एक सितंबर
1939
को पोलैंड पर अचानक हमला करके उसने इस सपने को पूरा करने की शुरुआत की तो यह एक तरह से द्वितीय विश्वयुद्ध की भी शुरुआत थी.

 

सुदूर पूर्व में जापान का राजवंश भी इसी सपने को पूरा करने की लालसा में
1937
से एशिया–प्रशांत क्षेत्र में अपना विस्तार कर रहा था. जल्दी ही वह भी द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल हो गया.

 

हिटलर ने 22 जून, 1941 को सोवियत संघ पर आक्रमण कर दिया था.

जापान ने भी उन्माद में आकर सात दिसंबर, 1941 को प्रशांत महासागर में स्थित अमेरिकी नौसैनिक अड्डे पर्ल हार्बर पर धुंआधार बमबारी कर अमेरिका को चुनौती दे दी थी. जापान का यह उकसावा अमेरिका लिए द्वितीय विश्वयुद्ध में कूद पड़ने का खुला न्यौता बन गया.

 

शुरुआत में ये दोनों देश काफी तेजी से आगे बढ़े. जर्मनी का यूरोप के एक बड़े हिस्से पर कब्जा हो गया तो जापान एशिया–प्रशांत महासागर के बहुत बड़े भू–भाग पर अपना विस्तार कर चुका था.

 

लेकिन
1942
में हवाई के पास जापानी सेना की और 1943 में स्टालिनग्राद में जर्मन सेना की पराजय के बाद किस्मत का पहिया इन दोनों देशों के लिए उल्टा घूमने लगा.

 

अगले दो सालों में ही जर्मनी की हार तय हो गई. अपने 56वें जन्मदिन के 10 दिन बाद,
1945
में
29-30
अप्रैल के बीच वाली रात हिटलर ने बर्लिन के अपने भूमिगत बंकर में पहले तो अपनी प्रेमिका एफ़ा ब्राउन से शादी रचाई और कुछ ही घंटे बाद दोनों ने आत्महत्या कर ली.


मरने से पहले हिटलर ने अपनी वसीयत में लिखवाया, ‘मैं और मेरी पत्नी भगोड़े बनने या आत्मसमर्पण की शर्मिंदगी के बदले मृत्यु का वरण कर रहे हैं.’ हिटलर की आत्महत्या के एक ही सप्ताह बाद, सात से आठ मई वाली मध्यरात्रि को जर्मनी ने बिनाशर्त आत्मसमर्पण कर दिया.

 

इस तरह यूरोप में तो द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत हो गया,
nskfv
एशिया में वह चलता रहा. जापान की भी कमर तो टूट चुकी थी पर वह घुटने टेकने में टालमटोल कर रहा था.

 

अमेरिका, सोवियत संघ और ब्रिटेन का पोट्सडाम शिखर सम्मेलन

जर्मनी की पराजय के दो महीने बाद बर्लिन से सटे पोट्सडाम नगर में 17 जुलाई से दो अगस्त 1945 तक एक शिखर सम्मेलन हुआ. इसमें द्वितीय विश्वयुद्ध के तीन मुख्य विजेता – अमेरिका के राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल और सोवियत संघ के नेता जोसेफ स्टालिन शामिल थे.

 

इसी
बैठक में जर्मनी के विभाजन पर सहमति बनी. इसी सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति ट्रूमैन को यह समाचार मिला कि 16 जुलाई को अमेरिका के लास अलामॉस मरुस्थल में पहले यूरेनियम परमाणु बम का परीक्षण (ट्रिनिटी टेस्ट) सफल रहा है.

वैसा ही दूसरा बम (लिटिल बॉय) युद्ध में इस्तेमाल के लिए प्रशांत महासागर के ‘तिनियान‘द्वीप पर भेजा जा रहा है.

उसी दिन चर्चिल को भी यह बात पता चल गई. अपने संस्मरणों में उन्होंने लिखा, ‘अचानक ही वह भयस्वप्न (जापान) गायब हो गया था, उसकी जगह इस सांत्वना देनी वाली संभावना ने ले ली कि अब एक या दो विध्वंसक हमले युद्ध का अंत कर देंगे.’

 

राष्ट्रपति ट्रूमैन अपनी डायरी में उस बैठक का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि 24 जुलाई के दिन सोवियत नेता स्टालिन से उन्होंने कुछ ऐसे ढंग से, मानो यह कोई बड़ी बात नहीं है, यह कहा कि अमेरिका ने एक
ऐसा बम बना लिया है जिससे जापान के होश ठिकाने लगाए जा सकते हैं.

 

स्टालिन
ने भी बड़े सहज भाव से कहा कि उसका ‘सदुपयोग’ ही करें तो बेहतर है. समझा जाता है कि अमेरिका की परमाणु बम परियोजना ‘मैनहैटन प्रोजेक्ट’ से जुड़े जर्मनवंशी ब्रिटिश भौतिकशास्त्री क्लाउस फुक्स के जरिये – जो रूसी जासूस भी था – स्टालिन को इस बम की भनक मिल चुकी थी.

 

स्टालिन ने उसी शाम सोवियत गुप्तचर सेवा के प्रमुख लावरेंती बेरिया को हिदायत दी कि
1943
से चल रहे रूसी परमाणु बम के काम में तेज़ी लाई जाए.

 

‘विशेष बम’ के इस्तेमाल की तैयारी

25 जुलाई को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन ने फिलिप्पीन सागर में स्थित तिनियान द्वीप पर तैनात अमेरिका की प्रशांत महासागरीय वायुसेना के मुख्य कमांडर को पोट्सडाम से ही आदेश दिया कि तीन अगस्त तक ‘विशेष बम’ के इस्तेमाल की तैयारी कर ली जाए.

 

जिस विशेष बम – ‘लिटिल बॉय’ – को तीन अगस्त को गिराने की बात ट्रूमैन कर रहे थे वह यूरेनियम बम था. लेकिन इसके साथ ही एक दूसरा बम ‘फैट मैन’ भी तैयार हो रहा था. यह प्लूटोनियम बम था जिसे ‘ट्रिनि’ परीक्षण के दो सप्ताह बाद तैयार कर लिया गया था. हालांकि उसका पूर्ण परीक्षण अभी बाकी था.

Little Boy unit on trailer cradle in pit on Tinian, before being loaded into Enola Gay‘s bomb bay

यह जानने के लिए कि दोनों में से कौन कितना संहारक है, दोनों प्रकार के बम जापान के दो शहरों में गिराए जाने थे. इसके लिए जापान के चार शहरों की सूची तैयार की गई. संभावित लक्ष्यों की पहली सूची में हिरोशिमा के अलावा कोकूरा,
क्योतो और निईगाता के नाम थे.

 

एक हनीमून की याद ने क्योतो को बचाया

नागासाकी अमेरिका के निशाने पर नहीं था. लेकिन अमेरिका के तत्कालीन युद्धमंत्री स्टिम्सन के कहने पर जापान की पुरानी राजधानी क्योतो का नाम संभावित शहरों की सूची से हटा कर उसकी जगह नागासाकी का नाम शामिल कर लिया गया.

 

स्टिम्सन ने अपनी पत्नी के साथ क्योतो में कभी हनीमून मनाया था और वे नहीं चाहते थे कि वह मटियामेट हो जाए. वहीं दूसरी तरफ अमेरिका के जनरल ड्वाइट आइज़नहावर जैसे सैनिक अफ़सर और लेओ ज़िलार्द जैसे भौतिकशास्त्री इस बम के विरुद्ध थे.

 

Colonel Paul Tibbets, pilot of the Enola Gay, waving from its cockpit

लेकिन, राष्ट्रपति ट्रूमैन और उनके सलाहकार जापान पर परमाणु बम गिराने के अपने इरादे पर अटल रहे. उनका कहना था कि दो अरब डॉलर लगा कर इन बमों का विकास क्या इसलिए किया गया है कि उनका कभी इस्तेमाल ही न हो!

 

तर्क दिया गया कि इन बमों की मार से जापान जल्द ही आत्मसमर्पण कर देगा और अमेरिकी सैनिकों का कटना–मरना बंद हो जाएगा.

अमेरिका के लिए अपने सैनिकों की यह अतिरिक्त चिंता जापानी सैनिकों के उस जीवट से भी निकली थी जिसके बूते उन्होंने जुलाई,
1945
में ओकीनावा की लड़ाई में
12,500
अमेरिकी सैनिकों का सफाया कर दिया था. तब तक पूरे प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में करीब 70
000
अमेरिकी सैनिक मारे जा चुके थे.

जापान
पहले ही आत्मसमर्पण के लिए रास्ता तलाश रहा था—एक सच्चाई यह भी है कि 1945 का जुलाई महीना आने तक जापान शांति–वार्ता के रास्ते तलाशने लगा था.

 

पोट्सडाम शिखर सम्मेलन से एक सप्ताह पहले, नौ जुलाई को मॉस्को में जापानी राजदूत ने सोवियत विदेशमंत्री व्याचेस्लाव मोलोतोव से मिलकर अनुरोध किया कि पोट्सडाम शिखर सम्मेलन के नेताओं से कहा जाए कि जापान उनके साथ शांति–वार्ताएं चाहता है.

 

लेकिन
संसार की प्रथम परमाणु शक्ति बन चुके अमेरिका के राष्ट्रपति की दिलचस्पी किसी शांति–वार्ता में नहीं, जापान के बिना शर्त आत्मसमर्पण में थी.

25 जुलाई
1945
को ‘विशेष बम’ के इस्तेमाल की तैयारी शुरू करने के आदेश के अगले दिन, 26
जुलाई को राष्ट्रपति ट्रूमैन ने पोट्सडाम में अमेरिका, ब्रिटेन और च्यांग काई–शेक के राष्ट्रवादी चीन गणराज्य की ओर से एक संयुक्त घोषणा पढ़ कर सुनाई.इसमें जापान से अविलंब बिनाशर्त आत्मसमर्पण कर देने की मांग की गई थी. इसके लिए सोवियत संघ से कोई मशविरा नहीं किया गया.

 

Little Boy unit on trailer cradle in pit on Tinian, before being loaded into Enola Gay‘s bomb bay

जबकि सोवियत विदेशमंत्री मोलोतोव ने अनुरोध किया था कि इस घोषणा को कुछ दिनों के लिए टाल दिया जाए ताकि उनकी सरकार जापान के साथ अपनी अनाक्रमण संधि का अंत घोषित कर सके.

 

1939 के सोवियत–जापानी सीमा–संघर्ष के बाद 13 अप्रैल, 1941 को दोनों देशों (सोवियत संघ– जापान )ने अगले पांच वर्षों तक एक–दूसरे पर आक्रमण नहीं करने की संधि की थी.

 

लेकिन दो महीने बाद ही जब सोवियत संघ जर्मन आक्रमण का शिकार बना तो उसे हिटलर–विरोधी मित्र राष्ट्रों के गुट में शामिल होना पड़ा.

इस दौरान उसने मित्र देशों को यह आश्वासन दिया कि ज़रूरत पड़ने पर वह सुदूरपूर्व में जर्मनी के साथी जापान के विरुद्ध मोर्चा खोलने से नहीं हिचकेगा. यह दुविधा जापान के साथ भी थी कि वह एक ऐसे देश के साथ अनाक्रमण संधि कैसे निभाए जो उसके परम मित्र जर्मनी के साथ युद्ध में है.

 

फिर भी दोनों देश
1945
तक समय निकालते रहे. अमेरिका और ब्रिटेन आग्रह कर रहे थे कि सुदूरपूर्व में उनका बोझ हल्का करने के लिए सोवियत संघ जापान के विरुद्ध मोर्चा खोले.

 

सोवियत संघ ने अंततः पांच अप्रैल,
1945
को जापान के साथ अनाक्रमण संधि से अपना हाथ खींच लिया. पोट्सडाम शिखर सम्मेलन के समापन के तुरंत बाद उसने आठ अगस्त, 1945 को जापान अधिकृत मंचूरिया पर आक्रमण कर दिया.

 

ट्रूमैन बम के पहले जापान का आत्मसमर्पण नहीं चाहते थे

अमेरिकी
राष्ट्रपति ट्रूमैन की प्राथमिकता इस बीच बदल चुकी थी. 16 जुलाई वाले सफल परमाणु परीक्षण के बाद वे जापान को अकेले ही धूल चटाना चाहते थे. अब उन्हें सोवियत संघ की कोई आवश्यकता नहीं थी.

 

26 जुलाई,
1945
वाली अपनी पोट्सडाम घोषणा में उन्होंने कहा, ‘हमारी संपूर्ण सैन्य शक्ति और दृढ़निश्चय का अर्थ है जापानी सेना का अपरिहार्य विनाश और जापानी देश का अपरिहार्य विध्वंस. जापान पर पूरी तरह क़ब्ज़ा कर लिया जाएगा.

उसके नेताओं को अपदस्थ और तहस–नहस कर दिया जाएगा. लोकतंत्र की स्थापना होगी और और युद्ध–अपराधियों को दंडित किया जाएगा. जापान के भूभाग को चार मुख्य द्वीपों तक सीमित कर उससे क्षतिपूर्ति वसूली जायेगी…’

 

6 अगस्त, 1945 को हिरोशिमा पर यूरेनियम वाला पहला परमाणु बम गिरा कर ट्रूमैन ने जता दिया कि वे जापान का कैसा विध्वंस चाहते हैं. सुबह आठ बज कर 16 मिनट पर ज़मीन से 600 मीटर ऊपर बम फूटा और 43 सेकंड के भीतर शहर के केंद्रीय हिस्से का 80 फीसदी नेस्तनाबूद हो गया.

 

10 लाख सेल्शियस तापमान वाला आग का एक ऐसा गोला तेज़ी से फैला, जिसने 10 किलोमीटर के दायरे आई हर चीज को राख कर दिया. शहर के
76,000
घरों में से
70,000
तहस–नहस या क्षतिग्रस्त हो गए.
70,000
से
80,000
लोग तुरंत मर गए. जो लोग नगरकेंद्र में थे उनके शरीर तो भाप बन गए.

Hiroshima after Atomic BOMBING

जैसे यह सब पर्याप्त न हो, तीन ही दिन बाद 9 अगस्त को 11 बज कर दो मिनट पर नागासाकी पर दूसरा परमाणु बम गिराया गया. यूरेनियम से भी कहीं अधिक विनाशकारी प्लूटोनियम वाले इस बम ने एक किलोमीटर के दायरे में 80 प्रतिशत मकानों को भस्म कर दिया.

 


A 
pumpkin bomb (Fat Man test unit) being raised from the pit into the bomb bay of a B-29 for bombing practice during the weeks before the attack on Nagasaki.

अनुमान है कि वहां भी
70,000
से
80,000
हज़ार लोग मरे. दोनों बमों का औचित्य सिद्ध करने के लिए तर्क यह दिया गया कि उनके बिना जापान आत्मसमर्पण में टालमटोल जारी रखता.

 

क्या नागासाकी पर दूसरा बम जरूरी था?

जापान
पर दो बम इसलिए गिराए गए क्योंकि अमेरिका के पास उस समय दो प्रकार के बम थे.

यूरेनियम वाला बम हिरोशिमा पर गिराया गया और प्लूटोनियम वाला नागासाकी पर. यह दूसरा बम बहुत ख़र्चीला था और तब तक बिना परीक्षण वाला प्रोटोटाइप था. उसका गिराया जाना सीधे लड़ाई के मैदान में परीक्षण के समान था.

जापान ने इस दूसरे बम के बाद 15 अगस्त, 1945 को अपनी हार मान ली थी. दो सितंबर को उसने विधिवत आत्मसमर्पण कर दिया.

आठ अगस्त,
1945
को जापान के विरुद्ध स्टालिन की युद्ध–घोषणा से अमेरिका को यह डर भी लगने लगा था कि कहीं ऐसा न हो कि वह अपने प्लूटोनियम बम ‘फैट मैन’ का वहां परीक्षण ही न कर पाए. इस कारण से भी उसे गिराने की तारीख 13 के बदले नौ अगस्त कर दी गई.

 

उसे यह भी सुनिश्चित करना था कि जर्मनी की तरह कहीं जापानी मुख्यभूमि पर भी रूसी सैनिक पहले पहुंच कर अपना झंडा न फहरा दें. तब हो सकता था कि जापान उसके हाथ से पूरी तरह फिसल जाता या फिर जर्मनी की ही तरह जापान की भी बंदरबांट करनी पड़ती.

 

जापान का आत्मसमर्पण

लगभग 74 हज़ार लोग इस हमले में मारे गए थे और इतनी ही संख्या में लोग घायल हुए थे। इसी रात अमरीकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने घोषणा की,
“
जापानियों को अब पता चल चुका होगा कि परमाणु बम क्या कर सकता है।“

उन्होंने कहा,
“
अगर जापान ने अभी भी आत्मसमर्पण नहीं किया तो उसके अन्य युद्ध प्रतिष्ठानों पर हमला किया जाएगा और दुर्भाग्य से इसमें हज़ारों नागरिक मारे जाएंगे।”
दो परमाणु हमलों और 8 अगस्त
1945
को सोवियत संघ द्वारा जापान के विरुद्ध मोर्चा खोल देने पर, जापान के पास कोई और रास्ता नहीं बचा था।

Hiroshima-Atomic Bombing Dome

जापान के युद्ध मंत्री और सेना के अधिकारी आत्मसमर्पण के पक्ष में फिर भी नहीं थे, लेकिन प्रधानमंत्री बारोन कांतारो सुज़ुकी ने एक आपातकालीन बैठक बुलाई और इसके छह दिन बाद जापान ने मित्र राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।

इसके
बाद पूरी दुनिया से दूसरे विश्व युद्ध का खात्मा हो गया. लेकिन इन परमाणु बमों पर मानवीयता पर एक बदनुमा दाग लगा दिया जिसे युद्ध के कारण होने वाली तबाही के तौर पर याद किया जाता है.

The  Hiroshima memorial Canotaph

The End

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Engr. Maqbool Akram

Engr. Maqbool Akram

I am, Engineer Maqbool Akram (M.Tech. Mechanical Engineer from AMU ), believe that reading and understanding literature and history is important to increase knowledge and improve life. I am a blog writer. I like to write about the lives and stories of literary and historical greats. My goal is to convey the lives and thoughts of those personalities who have had a profound impact on the world in simple language. I research the lives of poets, writers, and historical heroes and highlight their unheard aspects. Be it the poems of John Keats, the Shayari of Mirza Ghalib, or the struggle-filled story of any historical person—I present it simply and interestingly.

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परवीन शाकिर छोटी उम्र बड़ी जिंदगी वो शायरा जिनके शेरों में धड़कता है आधुनिक नारी का दिल- दिल को उस राह पे चलना ही नहीं, जो मुझे तुझ से जुदा करती है

March 17, 2025
आय विल कॉल यू मोबाइल फोन (रूपा सिंह) जैसे ही डाटा ऑन किया खट् खट् कर कई मैसेज दस्तक देते चले आये इतनी तेजी से सबकी खबरें स्क्रीन पर चमक रही थी

आय विल कॉल यू मोबाइल फोन (रूपा सिंह) जैसे ही डाटा ऑन किया खट् खट् कर कई मैसेज दस्तक देते चले आये इतनी तेजी से सबकी खबरें स्क्रीन पर चमक रही थी

March 17, 2025
चार्ल्स डिकेंस: के प्रेम प्रसंग विक्टोरियन इंग्लैंड के महान उपन्यासकार अपने युग के रॉक स्टार गलत जगहों पर प्यार की तलाश

चार्ल्स डिकेंस: के प्रेम प्रसंग विक्टोरियन इंग्लैंड के महान उपन्यासकार अपने युग के रॉक स्टार गलत जगहों पर प्यार की तलाश

March 18, 2025
पंच परमेश्वर: फूलो ने घूंघट नहीं खींचा मुंह उठा दिया गेहुंए रंग में दो मांसल आंखें थीं जिनमें  रात का खुमार अभी बिल्कुल मिटा नहीं (रांगेय राघव की कहानी)

पंच परमेश्वर: फूलो ने घूंघट नहीं खींचा मुंह उठा दिया गेहुंए रंग में दो मांसल आंखें थीं जिनमें रात का खुमार अभी बिल्कुल मिटा नहीं (रांगेय राघव की कहानी)

March 18, 2025
मैं खुदा हूँ Ana’l haqq मंसूर अल-हलाज: जल्लाद ने सिर काटा तो धड़ से खून की धार फूट पड़ी और अचानक उनके शरीर से कटा एक-एक अंग चीखने लगा च्मैं ही सत्य हूं

मैं खुदा हूँ Ana’l haqq मंसूर अल-हलाज: जल्लाद ने सिर काटा तो धड़ से खून की धार फूट पड़ी और अचानक उनके शरीर से कटा एक-एक अंग चीखने लगा च्मैं ही सत्य हूं

March 17, 2025
नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है  तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

March 18, 2025
अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

March 18, 2025
Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

March 17, 2025
सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

March 17, 2025
Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

March 17, 2025
मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

March 17, 2025
Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

March 18, 2025
Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

March 17, 2025
River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

March 17, 2025
Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

March 18, 2025
पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

March 17, 2025
पड़ोसिन (कहानी रवीन्द्रनाथ ठाकुर) अब छिपाना बेकार है वह तुम्हारी ही पड़ोसिन है, उन्नीस नम्बर में रहती है मैंने पूछा, सिर्फ कविताएं पढ़कर ही वह मुग्ध हो गई?’

पड़ोसिन (कहानी रवीन्द्रनाथ ठाकुर) अब छिपाना बेकार है वह तुम्हारी ही पड़ोसिन है, उन्नीस नम्बर में रहती है मैंने पूछा, सिर्फ कविताएं पढ़कर ही वह मुग्ध हो गई?’

March 17, 2025
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