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मैडम क्यूरी: 2 बार नोबेल पुरस्कार जीतने वाली दुनिया की पहली महिला .संघर्ष और जीवन मूल्यों से समझौता न करने की कहानी है –जब स्वीडिश नोबेल एकेडमी ने मैरी क्यूरी से कहा- आप नोबेल पुरस्कार लेने मत आइए

by Engr. Maqbool Akram
December 16, 2022
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‘रेडियोएक्टिविटी’ शब्द का इस्तेमाल पहली बार उन्होंने ही किया था. उन्होंने रेडियम की खोज करके न्यूक्लियर फ़िज़िक्स की राह बनाई और बाद में उनकी यह खोज कैंसर के इलाज में वरदान साबित हुई. वे दो बार नोबेल पुरस्कार जीतने वाली दुनिया की पहली महिला थीं एवं रसायन विज्ञान (केमेस्ट्री) और भौतिकी दोनों ही क्षेत्रों में नोबेल पुरस्कार हासिल करने वाली अब तक इकलौती वैज्ञानिक हैं. वह पहली नोबेल विजेता मां थीं, जिनकी बेटी को भी नोबेल पुरस्कार मिला.

 

“वह एक स्‍त्री थी. वह एक सताए हुए मुल्‍क की स्‍त्री थी. वह गरीब थी. वह खूबसूरत थी. एक बड़े मकसद ने उसे उसके देश से दूर यहां पेरिस बुला भेजा था, जहां उसने गरीबी और अभाव में बहुत साल गुजारे. जहां उसकी मुलाकात एक ऐसे शख्‍स से हुई, जो उसी की तरह काबिल और बुद्धिमान था. उन्‍होंने शादी की. उनकी खुशी असीम थी.

Pirre Curie and Madame Currie

सबसे हताश और निराश दिनों में अनथक श्रम के बाद उन्‍होंने रेडियम की खोज की थी. इस खोज ने न सिर्फ विज्ञान और दुनिया की दिशा बदली, बल्कि मनुष्‍यता को एक खतरनाक बीमारी का इलाज भी दिया.

जब उनकी ख्‍याति पूरी दुनिया में फैल गई थी, जब जीवन में थोड़ी स्थिरता,
थोड़ा सुख आ रहा था, क्रूर नियति ने मैरी से उसका साथी छीन लिया. लेकिन इस दुख, संकट,
बीमारी और अकेलेपन में भी मैरी ने अपना काम जारी रखा. उसकी बाकी की पूरी जिंदगी विज्ञान और मानवता की सेवा को समर्पित है.”

 

ये पंक्तियां ईव क्‍यूरी ने मैरी क्‍यूरी की जीवनी की भूमिका में लिखी हैं. ईव मैरी की सबसे छोटी बेटी थीं.

 

आगे इस कहानी को पढ़ने से पहले सबसे ऊपर जो एक तस्‍वीर है, उसे ध्‍यान से देखिए. ये
1927
की फोटो है. बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्‍स में क्‍वांटम मैकेनिक्‍स पर हो रही इंटरनेशनल कॉन्‍फ्रेंस की. इस तस्‍वीर में आपको विज्ञान की दुनिया के बहुत सारे जाने–पहचाने चेहरे दिखेंगे.

 

अल्बर्ट आइंस्‍टीन, मैक्‍स प्‍लांक, पॉल लेग्‍नेविन, चार्ल्‍स थॉमसन, रीस विल्‍सन, रिचर्डसन. वो सारे लोग, जिनके बिना इस नई आधुनिक दुनिया की कल्‍पना भी नामुमकिन है. और इन सारे पुरुषों के बीच में फ्रंट रो बाएं से तीसरे नंबर पर मैक्‍स प्‍लांक के बगल में एक स्‍त्री बैठी है. 28 पुरुषों के बीच अकेली स्‍त्री. उसका नाम है मैरी क्‍यूरी.

 

जब नोबेल पुरस्कार से गायब था मैरी क्यूरी का नाम  

1903 में मैरी क्यूरी और उनके पति पियरे क्यूरी को संयुक्त रूप से रेडियोएक्टिविटी की खोज के लिए फिजिक्स के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

 

लेकिन बात इतनी सीधी नहीं है. फ्रेंच साइंस एकेडमी ने सिर्फ पियरे क्यूरी का नाम नोबेल पुरस्कार समिति के पास भेजा था. जब पियरे को इस बारे में पता चला तो उन्हें आपत्ति जताई. उन्होंने नोबेल समिति को भेजे पत्र में लिखा–

Pirre Curie

“मैं और मैरी क्यूरी दोनों सालों से इस पर काम कर रहे हैं. इसलिए सिर्फ एक व्यक्ति को सम्मानित करना अनैतिक और अन्यायपूर्ण है. मैं गुजारिश करूंगा कि मैरी क्यूरी का नाम भी मेरे नाम के साथ नामित किया जाए.”

 

पियरे ने लगातार समिति को कई पत्र लिखे. अंत में उन्हें यह कहना पड़ा कि या तो दोनों का नाम होगा या फिर किसी का भी नहीं. नोबेल समिति ने अंत में हामी भर दी और पुरस्कार के लिए दोनों का नाम नामित किया गया.

 

लेकिन पुरस्कार लेने के लिए सिर्फ पियरे क्यूरी को बुलाया गया था. पियरे क्यूरी अकेले ही स्टॉकहोम गए. इतना ही नहीं, स्वीडिश एकेडमी ने अपने भाषण में रेडियोएक्टिविटी में मैरी क्यूरी के योगदान का ढंग से जिक्र भी नहीं किया. स्वीडिश एकेडमी के अध्यक्ष ने अपने भाषण में कहा,

 

“अच्छा है, अगर एक पुरुष के काम में उसकी संगिनी का भी योगदान हो.” मैरी के काम को कमतर आंकने और उसका पूरा श्रेय पियरे क्यूरी को दे देने की फ्रेंच अकादमिकों से लेकर स्वीडिश नोबेल कमेटी तक की कोशिशें चलती रहीं, लेकिन मैरी का काम वक्त के साथ इतना बड़ा हो गया कि उसे इग्नोर करना वैज्ञानिकों के लिए भी मुमकिन नहीं था.

 

पोलैंड के एक आदर्शवादी और निर्धन परिवार में मैरी का जन्म 155 साल पहले पोलैंड के एक आदर्शवादी और निर्धन शिक्षक परिवार में  हुआ था.

मैडम क्यूरी का वास्तविक नाम मारिया सालोमिया स्कोलोडोव्स्का था. उनका जन्म 7 नवंबर, 1867 को पोलैंड के वारसॉ शहर में हुआ था. उनके पिता व्लादिस्लॉ स्कोलोडोव्स्की गणित और भौतिकी के अध्यापक थे और माँ ब्रोनिस्लावा लड़कियों के एक बोर्डिंग स्कूल में हेड मिस्ट्रेस थीं.

 

उन दिनों पोलैंड में रूस के शासक जार के अधीन था. जार पोलैंड के लोगों की संस्कृति, इतिहास और पोलिश भाषा को मिटाने की कोशिशों में पूरी शिद्दत से जुटा हुआ था. जार की दहशत इतनी ज्यादा थी कि स्कूल–कालेजों में पोलिश भाषा और पोलैंड का इतिहास भी नहीं पढ़ाया जाता था.

 

यह सब करके जार उन पोल राष्ट्रवादियों और देशभक्तों को पूरी तरह से नेस्तनाबूद कर देना चाहता था, जो रूसी शासन के चंगुल से आजाद होना चाहते थे. मान्या के पिता भी इन्हीं देशप्रेमियों में से थे. पोलैंड की आजादी का खुलकर समर्थन करने की वजह से उनके पिता व्लादिस्लॉ स्कोलोडोव्स्की को स्कूल की नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. मजबूर होकर उन्हें एक के बाद एक निचले दर्जे के शिक्षण संबंधी काम करने पड़े.

 

मान्या की मां अक्सर बीमार रहती थीं. बाद में डॉक्टरों ने बताया की उन्हें टीबी हो गया है. आर्थिक तंगी की वजह से इलाज न करवा पाने और घर की तमाम मुश्किलों से जूझते हुए
1878
में सिर्फ 42 साल की उम्र में उनकी माँ का देहांत हो गया. तब मान्या की उम्र महज 10 साल थी.

 

मां और पिता, दोनों के परिवारों के पास जो भी पुश्‍तैनी जमीन–जायदाद थी, सब रूसी सरकार ने जब्‍त कर ली थी क्‍योंकि वो उन लोगों में से थे, जो पोलैंड के रूसी कब्‍जे के खिलाफ अपने देश की आजादी के लिए बोलते थे. परिवार के पास कोई पैसा, संसाधन नहीं था. 

गरीबी और नियति,
दोनों ही एक दिन मैरी को पेरिस ले आई. यहां पेरिस में मैरी ने पहले बतौर गवर्नेस काम किया और अपनी पढ़ाई का खर्च खुद उठाया. वह इतनी गरीब थी कि कई बार उसके पास खाने को पैसे भी न होते. जब शहर का तापमान शून्‍य से नीचे चला जाता तो ठंड से बचने के लिए वो एक के ऊपर एक अपने सारे कपड़े पहन लेती. वो दिन में यूनिवर्सिटी जाती और शाम को बच्‍चों को ट्यूशन पढ़ाती.

 

ईव क्‍यूरी अपनी मां की बायोग्राफी में लिखती हैं, “घर से दूर पेरिस शहर शहर में अकेली उस लड़की के चेहरे पर एक सतत उदासी थी. उसके बाल बिखरे होते और उसे अपने कपड़ों को सजाने और चेहरे को संवारने का कोई होश नहीं होता. वो अपनी पढ़ाई, प्रयोगशाला, ठंड के दिनों में खुद को गर्म रखने और अगले दिन के ब्रेड की फिक्र में हमेशा इतनी खोई होती कि कई सालों तक उसे इस बात का इलहाम भी नहीं हुआ कि जिस शहर में वो रहती थी, वो शहर कितना खूबसूरत था.

 

कि शहर के बीचोंबीच एक नदी थी, जिसे उसने कभी ठहरकर नहीं देखा था. पोलैंड में जो दुर्भाग्‍य उसके परिवार के सिर आ पड़ा था, मैरी उस दुख और दुर्भाग्‍य को अपने साथ लेकर आई थी. एक ही चीज उसे जिंदा रखे थी– और वो था विज्ञान में उसकी अपार निष्‍ठा और विश्‍वास.”

 

मैरी क्‍यूरी उस इंटरनेशनल साइंस कॉन्‍फ्रेंस की तस्‍वीर में ही अकेली महिला नहीं थीं. वो पेरिस यूनिवर्सिटी में फिजिक्‍स, केमेस्‍ट्री और मैथमेटिक्‍स पढ़ने वाली भी पहली महिला थीं. वहां से फिजिक्‍स में डिग्री लेने के बाद गैब्रिएल लिपमैन की लेबोरेटरी में काम करने वाली भी पहली महिला थीं.

 

पेरिस की सॉरबोन यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाली भी पहली महिला थीं जिसे बार– बार अपनी काबिलियत साबित करने के लिए मर्दों के मुकाबले कई गुना ज्‍यादा मेहनत करनी पड़ती थी.जिसकी क्षमताओं को सहकर्मी मर्द हमेशा शक की निगाह से देखते थे, सिवा एक के.

 

पियरे क्‍यूरी से पहली मुलाकात:-  पियरे क्‍यूरी. पियरे ने मैरी का रिसर्च पेपर पढ़ा था और पढ़कर अचंभित हुआ था.

ईव लिखती हैं कि मैरी की तरह पियरे भी बेहद शर्मीला, संकोची और जवानी के राग–रंग से दूर दिन भर सिर्फ प्रयोगशाला में अपना वक्‍त बिताने वाला व्‍यक्ति था. लेकिन पियरे को मैरी से प्‍यार हो गया.

 

मैरी पहले तो दूर–दूर रहीं, इनकार करती रहीं, लेकिन फिर उन्‍हें भी लगा कि इस शहर में कोई और उन्‍हें उस तरह समझ नहीं सकता, जैसे ये इंसान समझता है.

नोबेल मिलने के बाद न केवल क्यूरी दंपति की आर्थिक स्थिति सुधरी बल्कि उन्हें काफी लोकप्रियता भी हासिल हुई. अब मैरी क्यूरी को सम्मान से ‘मैडम क्यूरी’ कहकर संबोधित किया जाने लगा था. हालांकि यह खुशी ज्यादा दिनों तक न टिकी नहीं.

 

1906 में एक सड़क दुर्घटना में पियरे क्यूरी की मौत हो गई. मैरी के लिए यह बहुत बड़ा सदमा था. लेकिन साहसी मैरी ने हार न मानते हुए अपना और अपने पति के अधूरे शोध को आगे बढ़ाने का निश्चय किया.

 

पियरे की मृत्‍यु पर मैरी ने अपनी डायरी में लिखा था–

“तुम कहते थे कि तुमने ऐसा आत्‍मविश्‍वास पहले कभी नहीं महसूस किया था, जैसा मुझसे अपने प्‍यार का निवेदन करते हुए तुम्‍हें हुआ था. इतना यकीन था तुम्‍हें कि हम एक–दूसरे के लिए ही बने हैं. मैं हंसती थी, लेकिन आज मैं जानती हूं कि तुम सही थे.”

 

ईव क्‍यूरी की किताब में एक पूरा अध्‍याय मैरी और पियरे की शादी के शुरुआती सालों के बारे में है. घर में पैसे अब भी नहीं थे, साइंस रिसर्च के लिए जरूरी सपोर्ट भी नहीं था, दोनों अपने घर, अपनी तंख्‍वाह के पैसे लगाकर रिसर्च के काम में लगे हुए थे. मैरी पूरा दिन लैबोरेटरी में बिताने के बाद छोटी बच्‍ची की देखभाल करतीं, खाना बनातीं और घर के दूसरे काम करतीं. फिर भी दोनों एक–दूसरे के साथ बेहद खुश थे.

सोरबोन यूनिवर्सिटी (पेरिस) के प्रशासकों ने सभी परम्पराओं को ताक पर रखते हुए पियरे की मौत से खाली हुए प्रोफेसर पद पर मैरी क्यूरी को नियुक्त कर दिया.

कुछ लोगों को एक महिला को प्रोफेसर के पद पर बैठाने की बात रास नहीं आई और उन्होंने इसकी कड़वी आलोचना की. लेकिन पियरे की मौत के बाद अकेली पड़ गई मैरी अपने शोध में तन–मन से लगी रहीं. अथक परिश्रम की बदौलत उन्हें कई डेसीग्राम शुद्धतम रेडियम तैयार करने में सफलता मिली. रेडियोएक्टिविटी पर तमाम मौलिक अनुसंधानों के लिए मैडम क्यूरी को
1911
में रसायन विज्ञान के क्षेत्र में दूसरी बार नोबेल पुरस्कार दिया गया.

 

लेकिन वो कहते हैं न कि शोहरत के कुछ अँधेरे पहलू भी होते हैं. एक महिला को दूसरी बार नोबेल देने पर कुछ लोगों ने नोबेल कमेटी के फैसले पर सवाल खड़े कर दिए.

इसके अलावा पेरिस में वैज्ञानिक पॉल लैंगेवीन से कथित प्रेम प्रसंग को लेकर मैरी क्यूरी पर तरह–तरह के लांछन भी लगाए जा रहे थे. पेरिस में उनके परिवार का रहना दूभर हो गया था. यहां तक कि नोबेल कमेटी के एक सदस्य ने भी उन्हें कह दिया था कि वे पुरस्कार लेने के लिए स्वयं स्वीडन न आएं. लेकिन मैरी पुरस्कार ग्रहण करने स्वीडन गईं और अपने भाषण में इस नोबेल पुरस्कार को ‘पियरे क्यूरी की यादों के प्रति एक श्रद्धांजलि कहा’.

Madame Currie with her Daughters

 

दो बार नोबेल पुरस्कार जीतने के बावजूद कभी भी उन्हें एकेडमी ऑफ साइंसेज का सदस्य नहीं चुना गया. मैडम क्यूरी ने अपने वैज्ञानिक खोजों का कभी भी पेटेंट नहीं करवाया और उनको मानव जाति की भलाई, विशेषकर चिकित्सकीय इस्तेमाल के लिए समर्पित कर दिया.

 

रेडियम और पोलोनियम की खोज के लिए दूसरा नोबेल पुरस्कार 8 साल बाद 1911 में मैरी क्यूरी को दोबारा नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

 

इस बार यह पुरस्कार उन्हें केमेस्ट्री में रेडियम और पोलोनियम की खोज के लिए दिया गया. बहुतों ने अब भी इस काम का सारा श्रेय पियरे को दे दिया. उनका कहना था कि ये तो पुराना ही काम है. इसके लिए वो अलग से पुरस्कार की हकदार नहीं. लेकिन ये सब चर्चे और अफवाहें असल विज्ञान और श्रम के सामने टिकने वाली चीजें नहीं थीं.

Madame Currie

1911 में जब नोबेल की घोषणा हुई, तब भी नोबेल समिति चाहती थी कि मैरी पुरस्कार लेने खुद न आएं क्योंकि पियरे की मृत्यु के बाद अपने एक सहयोगी वैज्ञानिक के साथ उसके अफेयर की खबरें बहुत अशोभनीय ढंग से लोकल अखबारों में छापी गई थीं.

 

पियरे
की मृत्यु और मानो जीवन का अंत 

मैरी
आत्म सम्मान के साथ सिर उठाकर खड़ी रहीं और पुरस्कार लेने खुद स्टॉकहोम गईं. इस बार पियरे उनके साथ नहीं थे. 5 साल पहले एक सड़क दुघर्टना में उनका निधन हो गया था. पियरे की मृत्यु पर मैरी ने अपनी डायरी में लिखा– 

Accident of Pierre Curie

“पियरे, मेरे पियरे, तुम वहां हो. घायल, स्थित, शांत. गहरी नींद में सोते हुए. तुम्हारा चेहरा अब भी कितना स्नेहिल और निर्मल है. मानो तुम एक ऐसे अंतहीन सपने में खो गए हो, जहां से वापस नहीं लौट सकते. तुम्हारे होंठ, जिन्हें मैं प्यार से लालची होंठ कहा करती थी, रंगहीन हो गए हैं. तुम्हारी दाढ़ी अब भी सफेद है. बाल दिख नहीं रहे क्योंकि सिर के घावों ने उन्हें ढंक लिया है. तुमने कितना कष्ट सहा, कितनी असहनीय पीड़ा से गुजरे. तुम्हारे कपड़े रक्त से सने हुए हैं. तुम्हारे सिर को कितनी तकलीफ, कितना दर्द हुआ है, जिसे मैं अपने दोनों हाथों में भरकर हमेशा सहलाती थी.”

 

“मैंने तुम्हारे पलकों को चूमा. वो आज भी वैसे ही बंद थीं, जैसे हमेशा चूमे जाते हुए तुम उन्हें बंद कर लेते थे. शनिवार की सुबह हमने तुम्हें ताबूत में बंद किया. विदा से पहले आखिरी बार मैंने तुम्हारे ठंडे चेहरे को चूमा हमेशा की तरह. हमारी जो तस्वीर तुम्हें सबसे ज्यादा पसंद थी, वो तुम्हारे साथ जानी चाहिए. तुम ठीक कहते थे. हम एक–दूसरे के लिए ही बने थे…. अब सबकुछ खत्म हो गया है. पियरे धरती के नीचे गहरी नींद में सो रहा है. यह सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ का अंत है.”

 

पहला
विश्व युद्ध और युद्ध के मैदान में मैरी क्यूरी

गरीबी, अभाव और जीवन के संघर्षों ने मैरी की सेहत पहले ही बहुत खराब कर दिया था. लेकिन अपने वैज्ञानिक प्रयोगों के कारण लगातार रेडिएशन के संपर्क में रहने का उनकी सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ा. ईव क्यूरी अपनी किताब में लिखती हैं– “मैरी 37 साल की थीं, जब मेरा जन्म हुआ. जब तक मैं बड़ी हुई, वह ऑलरेडी एक तेजी से बूढ़ी और कमजोर हो रही थीं.” मैरी के जीवन में कुछ भी उनका अपने लिए नहीं था.

Madame Currie in Red Cross camp during world War

सबकुछ विज्ञान के लिए, समाज के लिए, मानवता की बेहतरी के लिए था. रेडियोएक्टिविटी और रेडियम की खोज ने एक्सरे मशीन की बुनियाद रखी.

 

पहले विश्व युद्ध के समय जब मामूली सी चोटों को गंभीर समझकर जान बचाने के लिए लोगों के हाथ–पैर म्यूटीलेट किए जा रहे थे, मैरी ने सरकारसे अपील की कि वो अपनी एक्सरे मशीन के साथ वॉर जोन में जाना चाहती हैं.

 

इसके
लिए उन्हें प्रेस में जाने और अपना नोबेल पुरस्कार लौटाने की धमकी देने तक काफी लड़ाई लड़नी पड़ी.

 

उन एक्सरे मशीनों और कई टन रेडियम को पेरिस से 200 किलोमीटर दूर वॉर जोन में पहुंचाने की भी लंबी कहानी है. लेकिन महीनों के अनथक श्रम और समर्पण का नतीजा ये हुआ कि वॉर खत्म होने तक मैरी क्यूरी की इस मशीन ने तकरीबन 10 लाख लोगों की जान बचाई. यह मानवता के हित में उनका आखिरी महत्वपूर्ण योगदान था.

 

मैरी
क्यूरी की अमूल्य विरासत 4 जुलाई, 1934 को 66 वर्ष की आयु में मैरी की मृत्यु हो गई.

 

लेकिन मैडम क्यूरी रेडियम के विकिरण (रेडिएशन) की मार से बच न सकीं. लंबे समय तक रेडिएशन के बीच काम करते रहने से मैरी को कैंसर हो गया.


उनकी मृत्यु के एक साल बाद 1935 में उनकी बड़ी बेटी आइरीन और उनके पति फ्रेडरिक जोलिओट को आर्टिफिशियल रेडिएशन की खोज के लिए संयुक्त रूप से केमेस्ट्री के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. छोटी बेटी ईव क्यूरी बड़ी होकर प्रसिद्ध लेखक और पियानिस्ट बनी. 

 

आज 21वीं सदी के दो दशक बाद भी जब विज्ञान में स्त्रियों की हिस्सेदारी 20 फीसदी से ज्यादा नहीं है, मैरी ने उस जमाने में न सिर्फ वैज्ञानिक होने, बल्कि महिला वैज्ञानिक होने का दुस्साहस किया था. उस साहस और समर्पण ने, मर्दों की दुनिया में अपने लिए बराबर का हिस्सा मांगने और हासिल करने के उस साहस ने भविष्य की स्त्रियों के लिए रास्ता बनाया. वही रास्ता, जिस पर आज हम सब चल रहे हैं.

The
End

अस्वीकरण–ब्लॉगर ने नेट–विकिपीडिया पर उपलब्ध सामग्री और छवियों की मदद से यह संक्षिप्त लेख तैयार किया है। पाठ को रोचक बनाने के लिए इस ब्लॉग पर चित्र पोस्ट किए गए हैं। सामग्री और चित्र मूल लेखकों के कॉपी राइट हैं। इन सामग्रियों का कॉपीराइट संबंधित स्वामियों के पास है। ब्लॉगर मूल लेखकों का आभारी है।

 

 

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Engr. Maqbool Akram

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I am, Engineer Maqbool Akram (M.Tech. Mechanical Engineer from AMU ), believe that reading and understanding literature and history is important to increase knowledge and improve life. I am a blog writer. I like to write about the lives and stories of literary and historical greats. My goal is to convey the lives and thoughts of those personalities who have had a profound impact on the world in simple language. I research the lives of poets, writers, and historical heroes and highlight their unheard aspects. Be it the poems of John Keats, the Shayari of Mirza Ghalib, or the struggle-filled story of any historical person—I present it simply and interestingly.

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Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

March 17, 2025
सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

March 17, 2025
Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

March 17, 2025
मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

March 17, 2025
Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

March 18, 2025
Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

March 17, 2025
River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

March 17, 2025
Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

March 18, 2025
पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

March 17, 2025
पड़ोसिन (कहानी रवीन्द्रनाथ ठाकुर) अब छिपाना बेकार है वह तुम्हारी ही पड़ोसिन है, उन्नीस नम्बर में रहती है मैंने पूछा, सिर्फ कविताएं पढ़कर ही वह मुग्ध हो गई?’

पड़ोसिन (कहानी रवीन्द्रनाथ ठाकुर) अब छिपाना बेकार है वह तुम्हारी ही पड़ोसिन है, उन्नीस नम्बर में रहती है मैंने पूछा, सिर्फ कविताएं पढ़कर ही वह मुग्ध हो गई?’

March 17, 2025
Katha Saar of Karbala (Play):  By Munshi Premchand katha samrat ( 31 July 1880 –8 October 1936 )

Katha Saar of Karbala (Play): By Munshi Premchand katha samrat ( 31 July 1880 –8 October 1936 )

March 17, 2025
Royal Love Story of A Maharani: एक महारानी की अनोखी प्रेम कहानी महारानी रियासत के दीवान से ही प्रेम कर बैठी

Royal Love Story of A Maharani: एक महारानी की अनोखी प्रेम कहानी महारानी रियासत के दीवान से ही प्रेम कर बैठी

March 17, 2025
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