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पंच परमेश्वर:– जब हम पंच का स्थान ग्रहण करते हैं, तो ना कोई किसी का दोस्त होता है और ना ही दुश्मन (मुंशी प्रेमचंद की एक कहानी)

by Engr. Maqbool Akram
April 27, 2023
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जुम्मन शेख और अलगू चौधरी दो पक्के दोस्त थे। वो हिस्सेदारी में खेती करते थे, यहां तक कि उनका कुछ लेन–देन भी एक साथ होता था। दोनों एक दूसरे पर पूरा विश्वास करते थे।

 

जुम्मन जब हज पर गया, तो अलगू पर अपने घर की जिम्मेदारी छोड़ गया था और जब अलगू बाहर किसी काम से जाता,
तो जुम्मन को अपने घर की जिम्मेदारी दे दिया करता था। अलग–अलग धर्म के होने के बावजूद दोनों के बीच भाइयों जैसा प्यार था और यही उनकी दोस्ती का मूल मंत्र भी था।

जुम्मन शेख की एक बूढ़ी मौसी (खाला) थी, जिनके पास थोड़ी बहुत जमीन थी। जुम्मन के अलावा उसका कोई नहीं था। जुम्मन ने किसी तरीके से वो जमीन अपने नाम करवा ली थी। जमीन की रजिस्ट्री जुम्मन के नाम न होने तक मौसी का खूब ख्याल रखा गया। अच्छा खाना, अच्छा व्यवहार व आदर सब मिलता था, लेकिन एक बार जब रजिस्ट्री हुई, तो ये सब भी जाता रहा।

 

जुम्मन की बीवी रोटियों के साथ मौसी को ताने देने लगी। जुम्मन शेख भी कुछ नहीं कहता। जुम्मन की मौसी को उसकी बहू ताने मारती, “दो–तीन बीघा जमीन क्या दे दी, मानो मोल ही ले लिया हो।” मौसी ने कुछ दिन तक तो ये सहा, लेकिन जब उससे रहा नहीं गया, तो उसने इसकी शिकायत जुम्मन से कर दी, लेकिन जुम्मन ने औरतों के मामले में दखल देना सही नहीं समझा।

 

कुछ दिन तक तो ये सब यूं ही चलता रहा, लेकिन जब मौसी से ये सब सहा नहीं गया, तो उसने जुम्मन से कहा, “बेटा अब मेरा तुम्हारे साथ निभ नहीं पाएगा। एक काम करो, मुझे हर महीने पैसे दे दिया करो, मैं अपना गुजारा कर लूंगी।” जुम्मन ने बड़े ही रूखेपन से जवाब देते हुए कहा, “पैसे क्या पेड़ पर लगते हैं?” मौसी ने बड़े ही नम्र भाव से कहा, “मेरे पास रोजी–रोटी के लिए कुछ तो होना चाहिए?” पर जुम्मन मुकर गया।

 

इस पर मौसी गुस्सा हो गई और उसने पंचायत करने की धमकी दे दी। इस पर जुम्मन हंसा और बोला, “हां जरूर करो पंचायत, फैसला हो ही जाए, मैं भी कब तक ये सब सहता रहूंगा।”

 

जुम्मन को पूरा भरोसा था कि पंचायत का फैसला उसके ही पक्ष में जाएगा। आस–पास के गांव में ऐसा कोई नहीं था, जो जुम्मन के एहसानों तले दबा ना हो। कोई उससे बिगड़ना भला क्यों चाहेगा।

 

उसे अपनी जीत पर कोई संदेह नहीं था, क्योंकि आसमान से फरिश्ते तो पंचायत करने आएंगे नहीं? इस बीच बेचारी मौसी हाथ में लाठी लिए एक गांव से दूसरे गांव दौड़ती रही, एक–एक कदम चलना मुश्किल हो रहा था, लेकिन अब बात आन पड़ी थी, तो उसका निर्णय होना तो जरूरी था।

 

गांव में शायद ही ऐसा कोई शख्स होगा जिसको बुढ़िया ने अपना दुखड़ा ना सुनाया हो। किसी ने तो बुढ़िया की बातों को ऊपर–ऊपर से ही सुना, तो किसी ने उसके प्रति अपनी संवेदनाएं दिखाई। ऐसे बहुत ही कम लोग थे, जिन्होंने बुढ़िया की बातों को गौर से सुना हो।

सब तरफ घूम–घाम के अंत में बुढ़िया अलगू चौधरी के पास पहुंची। अपनी लाठी किनारे रखते हुए उसने अलगू से कहा, “बेटा तुम भी मेरी पंचायत में आना।” अलगू ने कहा, “मुझे बुलाकर क्या करोगी मौसी? गांव के और लोग तो आएंगे ही।”

 

मौसी बोली, “अपनी मुसीबत का रोना सबके आगे रो आई, अब आना न आना उनके अधिकार में है।” इस पर अलगू ने कहा, “आने को तो आ जाऊंगा मौसी, पर वहां मैं कुछ बोलूंगा नहीं।” मौसी ने पूछा, “क्यों?” जवाब में अलगू ने कहा, “जुम्मन मेरा पुराना दोस्त है और मैं उसके साथ अपना रिश्ता बिगाड़ नहीं सकता।”

 

मौसी
बोली, “तो क्या बिगड़ने के डर से अपने दिल की नहीं कहोगे वहां?” अलगू मौसी के इस सवाल का जवाब नहीं दे सका, लेकिन उसके दिलो–दिमाग में यह सवाल बार–बार गूंजे जा रहा था।

 

शाम के समय पंचायत बैठी, जुम्मन ने पहले से ही पंचायत के बैठने के लिए इंतजाम कर रखा था। पंचायत शुरू हुई और बूढ़ी मौसी ने पंचों से निवेदन करते हुए कहा, “पंचों आज तीन साल हो गए, मैंने अपनी सारी जमीन जुम्मन के नाम कर दी। इसके बदले में इसने मुझे रोटी–कपड़ा देना मंजूर किया था।

 

साल भर तो जैसे–तैसे काट लिया, पर अब रोज–रोज का सहा नहीं जाता। अब मुझे ना तो रोटी मिल रही है और ना ही कपड़ा। अब इस उम्र में कोर्ट–कचहरी जा नहीं सकती, ऐसे में तुम लोगों के सिवा मैं किसे अपना दुख बताऊं? तुम्हारा जो फैसला होगा, वह मैं मान लूंगी।”

 

रामधन मिश्र, जिनके कुछ परिचित असामियों को जुम्मन ने अपने गांव में बसाया था, उन्होंने जुम्मन से पूछा, “हां मियां तुम किसी पंच को बदलना चाहो, तो अभी कर लो, बाद में जो पंच कहेंगे, वो फैसला तुम्हें मानना होगा।” जुम्मन को फिलहाल सदस्यों में वही लोग दिखाई दे रहे थे, जिनसे किसी ना किसी कारण उसका मनमुटाव था।

 

जुम्मन ने रामधन मिश्र को उत्तर देते हुए कहा, “मेरे लिए पंचों का हुक्म अल्लाह के हुक्म की तरह है, मुझे कोई आपत्ति नहीं।”

 

इस पर बूढ़ी मौसी जुम्मन से बोली, “पंच किसी के दोस्त या फिर दुश्मन नहीं होते, अगर तुम्हारा किसी पर विश्वास नहीं है, तो रहने दो तुम, अलगू को तो अच्छी तरह से जानते हो ना, तो मैं उसे ही सरपंच बनाती हूं।”

 

यह बात सुनकर जुम्मन अंदर ही अंदर बहुत खुश हुआ। अपनी भावनाओं को छुपाते हुए जुम्मन ने कहा, “चलो अलगू चौधरी भी ठीक है, मेरे लिए तो जैसे रामधन वैसे अलगू।”

 

अलगू ने जैसे ही यह बात सुनी, तो वो थोड़ा असमंजस में पड़ गया, वो इससे कन्नी काटना चाहता था, सो वह बोला, “अरे मौसी, तुम तो जानती हो कि मैं और जुम्मन बहुत अच्छे दोस्त हैं।”

 

इस पर मौसी ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा, “बेटा दोस्ती के लिए कोई अपना ईमान तो नहीं बेचता। पंच तो खुदा का ही नुमाइंदा होता है।”

 

इस पर अलगू चौधरी ने जुम्मन से कहा, “देखो मैं और तुम पुराने दोस्त हैं। हमने हमेशा एक–दूसरे की मदद की है, लेकिन अब पंचों से जो भी निवेदन तुम्हें करना है वो करो।” अलगू की बात सुनकर जुम्मन ने सोचा कि अलगू ये सब बातें केवल दिखावे के लिए ही कर रहा है।

इसलिए, जुम्मन पूरे विश्वास के साथ बोला, “पंचों मेरी मौसी ने अपनी जमीन मेरे नाम कर दी थी।इसके बदले में मैंने उनका ख्याल रखना कबूल किया था।

 

इस बात का खुदा गवाह है कि मैंने आज तक अपनी मौसी को किसी तरह की कोई परेशानी नहीं आने दी, लेकिन औरतों में आपस में अनबन रहती है, इसमें मैं क्या कर सकता हूं। इसके अलावा मौसी मुझसे अब महीने का खर्च अलग से देने को बोल रही हैं।

 

इन्होंने मेरे नाम अपनी कितनी जायदाद की है, ये सभी लोगों को पता है और उससे इतना लाभ नहीं कि मैं मौसी का महीने का खर्च निकाल सकूं।

 

दान पत्र में भी इस तरह के खर्चे का कोई जिक्र नहीं है। अगर ऐसा होता, तो मैं इस तरह के झमेले में पड़ता ही नहीं, बाकि पंचों को जैसा ठीक लगे वैसा फैसला करें।”

 

अलगू चौधरी को कभी–कभार कचहरी का काम पड़ ही जाता था। इसलिए, वो कानून के बारे में अच्छी समझ रखता था और कानून का भी पक्का था। इसलिए, उसने जुम्मन से तर्क करना शुरू किए।

 

अलगू का एक–एक सवाल जुम्मन को बहुत खटक रहा था। वो इस बात को लेकर हैरान था कि अभी थोड़ी देर पहले तक तो अलगू किस तरह की बातें कर रहा था और अब एकदम से ना जाने उसे क्या हो गया।

 

जुम्मन अभी इसी सोच विचार में था कि इतने में अलगू ने अपना फैसला सुनाया, “जुम्मन, पंचों ने तमाम दलीलों को ध्यान में रखते हुए यह निष्कर्ष निकाला है कि मौसी को तुम्हें हर महीने खर्चा देना ही पड़ेगा, अगर तुम्हें यह फैसला मंजूर नहीं हो, तो जो जायदाद को लेकर करारनामा है उसे रद्द समझा जाएगा।”

 

फैसला सुनकर जुम्मन के होश उड़ गए। उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि यह फैसला उसका दोस्त सुना रहा है या फिर उसका कोई दुश्मन। उसे ऐसा लगा रहा था जैसे उसे किसी ने बहुत बड़ा धोखा दिया हो। अब जुम्मन को बस हर वक्त यही बात खाए जा रही थी कि वो अपने साथ हुए उस धोखे का बदला कब ले।

 

आखिर वो दिन आ ही गया और जुम्मन को अलगू से बदला लेने का मौका भी मिल गया। अलगू बटेसर से बैलों की एक जोड़ी खरीद कर लाया था, जिसमें से एक बैल की मौत हो गई। इस पर जुम्मन सब से कहता फिरता, “यह तो उस धोखे की सजा है। इंसान चाहे कुछ भी करे, लेकिन वो खुदा सब देखता है।”

 

वहीं, अलगू चौधरी को इस बात का शक था कि उसके बैल की मृत्यु ऐसे ही नहीं हुई है, बल्कि हो सकता है कि जुम्मन ने बैल को जहर दिया हो। चौधराइन ने भी इसे लेकर हामी भरी। इसी बात को लेकर एक दिन चौधराइन और जुम्मन की बीवी के बीच में काफी बहसबाजी भी हुई।

अब अलगू को यह समझ नहीं आ रहा था कि वो अकेले बैल का करे भी तो क्या करे। गांव में ही एक समझू साहू नाम का व्यक्ति था। वो इक्का गाड़ी चलाता था। उसका काम गांव से गुड़ लादकर शहर की मंडी ले जाना और वहां से तेल व नमक आदि लाना था।

 

समझू का मन अलगू के बैल पर आ गया था। उसने देखा कि बैल काफी अच्छा है, तो दिन में दो से तीन चक्कर शहर के हो जाएंगे, तो उसने इस बारे में अलगू से बात की और एक तय दाम में बैल ले जाकर अपने खूंटे में बांध दिया।समझू को नया बैल क्या मिला वो फूले ना समाता। दिन में चार–चार चक्कर शहर के लगाने लगा। ना उसे बैल के चारे की फिक्र होती और ना ही उसके पानी की। रात को बस रूखा–सूखा भूसा सामने डाल दिया करता था। बेचारा बैल दम नहीं ले पाता था कि समझू उसे फिर हांक देता।

 

एक दिन शहर का चौथा चक्कर लगाकर समझू साहू वापस आ रहा था। उसने इक्के पर दोगुना वजन लादा था। दिनभर की थकान से बैल मुश्किल से ही चल पा रहा था। अंधेरा होने वाला था और समझू को पहुंचने की जल्दी लगी थी।

 

ऐसे में वो उसे कोड़े मारकर भगाता जाता, लेकिन अंत में जानवर से सहा नहीं गया और वो धरती पर गिर पड़ा। बैल गिरा भी ऐसा कि उसने प्राण छोड़ दिए।

दिनभर के चक्कर लगाने के बाद साहू जी के पास कोई ढाई सौ रुपये कमाई बनी थी, जो उसकी कमर में बंधी थी। इसके अलावा, नमक के बोरे भी गाड़ी में थे, ऐसे में गाड़ी को छोड़कर भी वो जा नहीं सकता था। इस तरह उसने रात को वहीं रुकने का फैसला किया।

 

पहले हुक्का और फिर चिलम पीकर साहू जी अपनी नींद को भगाने की कोशिश करते रहे, लेकिन ना जाने कब आंख लग गई। जब नींद खुली, तो इसके साथ ही होश भी उड़ गए। कमर से बंधी थैली गायब थी।

 

इस घटना को करीब एक महीना बीत गया। अलगू जब अपने बैल के पैसे लेने साहू जी के पास गया, तो मामला ही उलटा पड़ गया। साहू तो साहू उसकी बीवी भी उसपर झल्ला पड़ी। साहू बिगड़ते हुए बोला, “यहां हमारी पूरी कमाई लूट गई और इन्हें अपने पैसों की पड़ी है।

 

कमजोर बैल थमा दिया और अब उसके भी पैसे मांगने चले। अगर तसल्ली नहीं मिलती, तो हमारा बैल बाहर बंधा है, उसे ले जाओ, महीना–दो महीना उससे काम करवा लो, इससे ज्यादा क्या लोगे।”

अलगू पहले तो शांत रहकर मामला दबाने में लगे रहे, लेकिन यहां सवाल पैसों का था, तो वो भी गुस्सा पड़े। दोनों का शोर सुनकर गांव के और लोग भी इकट्ठा हो गए।

 

दोनों को शांत करवाते हुए उन्हें पंचायत करने की सलाह दे डाली। अलगू चौधरी और समझू साहू दोनों इसे लेकर राजी हो गए।

 

फिर क्या था, घटना के ठीक तीसरे दिन पंचायत बैठी। रामधन मिश्र ने कहा, “देर क्यों करें, अपने पंचों का चुनाव कर लो। बोलो अलगू तुम किसे पंच चुनोगे। अलगू ने कहा, “समझू साहू ही इसका निर्णय करें।” इस पर समझू खड़ा हुआ और बोला,
“
मैं जुम्मन शेख को चुनता हूं।”

 

जुम्मन का नाम सुनते ही अलगू चौधरी पीला पड़ गया। इस पर रामधन ने पूछा, “क्यों अलगू, तुम्हें इस बात से कोई आपत्ति तो नहीं?” अलगू ने उत्तर दिया, “मुझे कोई आपत्ति नहीं है।”

 

जुम्मन ने जैसे ही सरपंच का स्थान ग्रहण किया, उसके मन में यह भाव पैदा हुआ कि मैं इस वक्त धर्म के सबसे बड़े स्थान पर बैठा हूं। मैं जो कहूंगा, वो अल्लाह की आवाज होगी। इसलिए, मुझे सत्य के मार्ग पर ही चलना है।

 

पंचायत शुरू हुई और दोनों पक्षों से सवाल–जवाब का सिलसिला भी। इस बात को लेकर सभी की सहमति थी कि समझू को बैल का खरीद मूल्य तो देना ही होगा, लेकिन दो पंच इस बात को लेकर समझू को थोड़ी राहत देना चाहते थे, क्योंकि बैल के मर जाने से उसे भी हानि हुई थी।

 

लेकिन इसके उलट दो पंच समझू पर बैल के मूल्य के अलावा उस पर अतिरिक्त दंड राशि भी लगाना चाहते थे, ताकि कोई दूसरा पशुओं के साथ इस तरह का क्रूर व्यवहार करने से पहले सौ बार सोचे।

 

अंत में जुम्मन खड़ा हुआ और फैसला सुनाते हुए बोला, “अलगू चौधरी और समझू साहू, पंचों ने पूरे मामले पर अच्छी तरह से सोच विचार कर यह निर्णय लिया है कि समझू साहू, अलगू चौधरी को बैल के पूरे पैसे देगा, क्योंकि जब बैल खरीदा गया था, तो उसे कोई बीमारी नहीं थी। बैल की मौत उस पर किए जुल्म और कड़े परिश्रम से हुई है।” 

इस पर रामधन मिश्र ने खड़े होते हुए कहा, “समझू साहू ने बैल को अपने किए की वजह से मारा है, इसलिए उससे तो अतिरिक्त दंड भी लेना चाहिए।”

 

इस पर जुम्मन ने कहा, “यह दूसरा मसला है, इसे अभी उठाने का कोई मतलब नहीं।” इस पर झगड़ू साहू बोले, “पर समझू को भी थोड़ी रियायत तो मिलनी चाहिए।” इस पर जुम्मन ने कहा, “यह अलगू चौधरी का खुद का फैसला है, अगर वो समझू को रियायत देता है, तो यह उसका बड़प्पन होगा।”

 

पंचों का यह फैसला सुनकर अलगू चौधरी बहुत खुश हुआ और जोर से नारा लगाते हुए बोला, “पंच परमेश्वर की जय।” पंचायत में मौजूद सभी लोग अलगू के साथ यह नारा लगाने लगे। हर कोई जुम्मन के न्याय नीति की तारीफ कर रहा था।

पंचायत खत्म होने के बाद जुम्मन अलगू के पास आया और रोते हुए उसे गले लगा लिया। जुम्मन बोला, “भाई अलगू, जब तुमने मेरी पंचायत का फैसला सुनाया था, तो मुझे बहुत बुरा लगा था और तब से मैं तुम्हारा शत्रु बन बैठा था।

 

लेकिन
आज मुझे इस बात का एहसास हुआ कि जब हम पंच का स्थान ग्रहण करते हैं, तो ना कोई किसी का दोस्त होता है और ना ही दुश्मन।

 

सच और न्याय के सिवा कुछ भी समझ में नहीं आता है।” यह बात सुनकर अलगू चौधरी भी रोने लग गया। दोनों के बीच जो बुराई का मैल था, वो आंसुओं से धुल गया और दोनों की दोस्ती और पक्की हो गई।

 

कहानी से सीख :-जब हमारे हाथ में निर्णय लेने की शक्ति हो, तो हमें किसी के साथ पक्षपात नहीं करना चाहिए। एक आदर्श न्यायकर्ता वही है, जो सबको समान रूप से देखे।

                                                     The End 

Disclaimer–Blogger
has posted this short story “
पंच परमेश्वर” WRITTEN  BY “मुंशी प्रेमचंद” with help of
materials and images available on net. Images on this blog are posted to make
the text interesting.The materials and images are the copy right of original
writers. The copyright of these materials are with the respective owners.Blogger
is thankful to original writers.
 

  

  

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Engr. Maqbool Akram

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I am, Engineer Maqbool Akram (M.Tech. Mechanical Engineer from AMU ), believe that reading and understanding literature and history is important to increase knowledge and improve life. I am a blog writer. I like to write about the lives and stories of literary and historical greats. My goal is to convey the lives and thoughts of those personalities who have had a profound impact on the world in simple language. I research the lives of poets, writers, and historical heroes and highlight their unheard aspects. Be it the poems of John Keats, the Shayari of Mirza Ghalib, or the struggle-filled story of any historical person—I present it simply and interestingly.

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March 17, 2025
River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

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March 17, 2025
Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

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March 18, 2025
पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

March 17, 2025
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