Blogs of Engr. Maqbool Akram

Blogs of Engr. Maqbool Akram

Menu
  • Home
  • Stories
  • Poems & Poets
  • History
  • Traveloge
  • Others
  • About us
Home Uncategorized

जाओ हनीफ़ जाओ (कहानी मंटो) मैं चीख़ी उधर दूसरे क्वार्टर से जीजी चीख़ी और मर गई वो समझ गई थी हाय, काश! मैं न चीख़ी होती।

by Engr. Maqbool Akram
March 17, 2025
in Uncategorized
0
496
SHARES
1.4k
VIEWS
Share on FacebookShare on Twitter

चौधरी ग़ुलाम अब्बास की ताज़ा तरीन तक़रीर–ओ–तबादल–ए–ख़यालात हो रहा था। टी हाउस की फ़ज़ा वहां की चाय की तरह गर्म थी। सब इस बात पर मुत्तफ़िक़ थे कि हम कश्मीर ले कर रहें गे, और ये कि डोगरा राज का फ़िल–फ़ौर ख़ातमा होना चाहिए।

 

सब के सब मुजाहिद थे। लड़ाई के फ़न से ना–बलद थे, मगर मैदान–ए–जंग में जाने के लिए सर–बकफ़ थे। उन का ख़याल था कि अगर एक दम हल्ला–बोल दिया जाये तो यूं चुटकियों में कश्मीर सर हो जाएगा, फिर डाक्टर ग्राहमों की कोई ज़रूरत न रहेगी, ना यू एन ओ में हर छटे महीने गिड़गिड़ाना पड़ेगा।

 

उन मुजाहिदों में, मैं भी था। मुसीबत ये है कि पण्डित जवाहर लाल नेहरू की तरह मैं भी कश्मीरी हूँ, इस लिए कश्मीर मेरी ज़बरदस्त कमज़ोरी है। चुनांचे मैं ने बाक़ी मुजाहिदों की हाँ में हाँ मिलाई और आख़िर में तय ये हुआ कि जब लड़ाई शुरू हो तो हम सब इस में शामिल हों और सफ़–ए–अव्वल में नज़र आएं। 

हनीफ़ ने यूं तो काफ़ी गर्म–जोशी का इज़हार किया, मगर मैं ने महसूस किया कि वो अफ़्सुर्दा सा है। मैं ने बहुत सोचा मगर मुझे इस अफ़्सुर्दगी की कोई वजह मालूम न हो सकी।

 

चाय पी कर बाक़ी सब चले गए, लेकिन मैं और हनीफ़ बैठे रहे। अब टी हाउस क़रीब क़रीब ख़ाली था…….
हम से बहुत दूर एक कोने में दो लड़के नाश्ता कर रहे थे।

 

हनीफ़ को एक अर्से से जानता था। मुझ से क़रीब क़रीब दस बरस छोटा था। बी.ए पास करने के बाद सोच रहा था कि उर्दू का एम.ए करूं या अंग्रेज़ी का। कभी कभी उस के दिमाग़ पर ये सनक भी सवार हो जाती कि हटाओ पढ़ाई को, सय्याही करनी चाहिए।

 

मैं ने हनीफ़ को ग़ौर से देखा। वो ऐश ट्रे में से माचिस की जली हुई तीलियां उठा उठा कर उन के टुकड़े टुकड़े कर रहा था। जैसा कि में पहले कह चुका हूँ, वो अफ़्सुर्दा था। इस वक़्त भी उस के चेहरे पर वही अफ़्सुर्दगी छाई हुई थी। मैं ने सोचा मौक़ा अच्छा है, उस से दरयाफ़्त करना चाहिए। चुनांचे मैं ने उस से कहा। “तुम ख़ामोश क्यों हो?”

 

हनीफ़ ने अपना झुका हुआ सर उठाया। माचिस की तीली के टुकड़े कर के एक तरफ़ फेंके और जवाब दिया। “ऐसे ही”

 

मैंने सिगरेट सुलगाया। “ऐसे ही, तो ठीक जवाब नहीं। हर चीज़ की कोई ना कोई वजह ज़रूर होती है…….
तुम ग़ालिबन किसी बीते हुए वाक़ियात के मुतअल्लिक़ सोच रहे हो!”

 

हनीफ़ ने इस्बात में सर हिलाया। “हाँ!”

“और वो वाक़िया कश्मीर की सरज़मीन से ताल्लुक़ रखता है।”

हनीफ़ चौंका। “आप ने कैसे जाना?”


मैंने मुस्कुरा कर कहा। “शर्लिक होमज़ हूँ मैं भी…….अरे भई कश्मीर की बातें जो हो रही थीं……. जब तुम ने मान लिया कि सोच रहे हो……. किसी बीते हुए वाक़िए के मुतअल्लिक़ सोच रहे हो तो मैं फ़ौरन इस नतीजे पर पहुंच गया कि उस बीते हुए वाक़िए का तअल्लुक़ कश्मीर के सिवा और किसी सरज़मीन से नहीं हो सकता……. क्या वहां कोई रुमान लड़ा था तुम्हारा?”

 

“रुमान…….
मालूम नहीं…….
जाने क्या था?। बहरहाल, कुछ न कुछ हुआ था जिस की याद अब तक बाक़ी है।”

 

मेरी ख़्वाहिश थी कि मैं हनीफ़ से उस की दास्तान सुनूँ। “अगर कोई अमर माने न हो तो क्या तुम मुझे बता सकते हो कि वो कुछ ना कुछ क्या था?” हनीफ़ ने मुझ से सिगरेट मांग कर सुलगाया और कहा। “मंटो साहब! कोई ख़ास दिलचस्प वाक़िया नहीं……. लेकिन अगर आप ख़ामोशी से सुनते रहेंगे और मुझे टोकेंगे नहीं तो मैं आज से तीन बरस पहले जो कुछ हुआ, आप को मिन्न–ओ–अन बता दूंगा……. मैं अफ़्साना–गो नहीं……. फिर भी मैं कोशिश करूंगा।”

 

Saadat Husain Manto

मैंने वअदा किया कि मैं उस के तसलसुल को नहीं तोड़ूंगा। असल में वो अब दिल–ओ–दिमाग़ की गहिराइयों में डूब कर अपनी दास्तान बयान करना चाहता था। 


हनीफ़ ने थोड़े तवक्कुफ़ के बाद कहना शुरू किया। “मंटो साहब! आज से दो बरस पहले की बात है जब कि बटवारा किसी के वहम–ओ–गुमान में भी नहीं था। गर्मियों का मौसम था। मेरी तबीयत उदास थी। मालूम नहीं क्यूँ…….
मेरा ख़याल है कि हर कुंवारा नौजवान इस किस्म के मौसम में ज़रूर उदासी महसूस करता है…….
ख़ैर…….
मैं ने एक रोज़ कश्मीर जाने का इरादा कर लिया।

 

मुख़्तसर सा सामान लिया और लारियों के अड्डे पर जा पहुंचा। लारी जब कद पहुंची तो मेरा इरादा बदल गया। मैं ने सोचा श्रीनगर में क्या धरा है, बीसियों मर्तबा देख चुका हूँ……. अगले स्टेशन बटूत पर उतर जाऊंगा। सुना है बड़ा सेहत–अफ़्ज़ा मुक़ाम है। तप–ए–दिक़ के मरीज़ यहीं आते हैं और सेहत–याब हो कर जाते हैं……. चुनांचे मैं बटूत उतर गया और वहां एक होटल में ठहर गया…….होटल बस एक ही वाजिबी सा था।

 

बहर–हाल, ठीक था।
…….
मुझे बटूत पसंद आ गया। सुबह चढ़ाई की सैर को निकल जाता…….
वापस आ कर ख़ालिस मक्खन और डबल रोटी का नाशता करता और लेट कर किसी किताब के मुताले में मसरूफ़ हो जाता।

 

दिन उस सेहत–अफ़्ज़ा फ़िज़ा में बड़ी अच्छी तरह गुज़र रहे थे…….
आस पास जितने दुकानदार थे सब मेरे दोस्त बन गए थे, खासतौर पर सरदार लहना सिंह जो दर्ज़ियों का काम करता था। मैं उस की दुकान पर घंटों बैठा रहता था। इश्क़–ओ–मोहब्बत के अफ़साने सुनने और सुनाने का उसे क़रीब क़रीब ख़बत था। मशीन चलती रहती थी और वो या तो कोई दास्तान–ए–इश्क़ सुनता रहता था या सुनाता रहता था।

उस को बटूत से मुतअल्लिक़ हर चीज़ का इल्म था। कौन किस से इश्क़ लड़ा रहा है। किस किस की आपस में खटपट हुई। कौन कौन सी लौंडिया पर पुर्जे़ निकाल रही है…….
ऐसी तमाम बातें उस की जेब में ठुँसी रहती थीं।


शाम को मैं और वो उतराई की तरफ़ सैर को जाते थे और बानहाल के दर्रे तक पहुंच कर फिर आहिस्ता आहिस्ता वापिस चले आते थे…….
होटल से उतराई की तरफ़ पहले मोड़ पर सड़क के दाहिने हाथ मिट्टी के बने हुए क्वार्टर से थे…….
मैं ने एक दिन सरदार से पूछा कि ये क्वार्टर क्या रिहाइश के लिए हैं? ये मैं ने इस लिए दरयाफ़्त किया था कि मुझे वो पसंद आ गए थे…….
सरदार जी ने मुझे बताया कि हाँ, रिहाइश ही के लिए हैं।

आज–कल इस में सरगोधे के एक रेलवे बाबू ठहरे हुए हैं। उन की धर्म पत्नी बीमार है……. मैं समझ गया कि दिक़ होगी……. ख़ुदा मालूम मैं दिक़ से इतना क्यूँ डरता हूँ……. उस दिन के बाद जब कभी मैं उधर से गुज़रा, नाक और मुँह पर रुमाल रख के गुज़रा। मैं दास्तान को तवील नहीं करना चाहता।

 

क़िस्सा मुख़्तसर ये कि रेलवे बाबा जिन का नाम कुन्दन लाल था, से मेरी दोस्ती हो गई और मैं ने महसूस किया कि उसे अपनी बीमार बीवी की कोई परवाह नहीं। वो इस फ़र्ज़ को महेज़ एक फ़र्ज़ समझ कर अदा कर रहा है। वो उस के पास बहुत कम जाता था और दूसरे क्वार्टर में रहता था जिस में वो दिन में तीन मर्तबा फिनाएल छिड़कता था…….मरीज़ा की देख भाल उस की छोटी बहन सुमित्री करती थी। दिन रात ये लड़की जिस की उम्र बमुश्किल चौदह बरस की होगी अपनी बहन की ख़िदमत में मसरूफ़ रहती थी।

 

मैं ने सुमित्री को पहली मर्तबा मग्गू नाले पर देखा…….
मैले कपड़ों का बड़ा अंबार पास रखे वो नाले के पानी से ग़ालिबन शलवार धो रही थी कि मैं पास से गुज़रा। आहट सुन कर वो चौंकी। मुझे देख कर उस ने हाथ जोड़ कर नमस्ते किया। मैं ने उस का जवाब दिया और उस से पूछा…….
तुम मुझे जानती हो?…….
सुमित्री ने बारीक आवाज़ में कहा…….
जी हाँ…….
आप बाबू जी के दोस्त हैं…….
मैं ने ऐसा महसूस किया कि मज़लूमियत जो सिकुड़ कर सुमित्री की शक्ल इख़्तियार कर गई है।

 

मेरा जी चाहता था कि उस से बातें करूं और कुछ कपड़े धो डालूं ताकि उस का कुछ बोझ हल्का हो जाये। मगर पहली मुलाक़ात में ऐसी बे–तकल्लुफ़ी नामुनासिब थी।

 

दूसरी मुलाक़ात भी उसी नाले पर हुई। वो कपड़ों पर साबुन लगा रही थी तो मैं ने उस को नमस्ते की और छोटी छोटी बट्टियों के बिस्तर पर उस के पास ही बैठ गया। वो किसी क़दर घबराई लेकिन जब बातें शुरू हुईं तो उस की घबराहट दूर हो गई और इतनी बेतकल्लुफ़ हो गई कि उस ने मुझे अपने घर के तमाम मुआमलात सुनाने शुरू कर दिए।

 

बाबू जी यानी कुंदन लाल से उस की बड़ी बहन की शादी हुए पाँच बरस हो चले थे। पहले बरस में बाबू जी का सुलूक अपनी बीवी से ठीक रहा, लेकिन जब रिश्वत के इल्ज़ाम में वो नौकरी से मुअत्तल हुआ तो उस ने अपनी बीवी का ज़ेवर बेचना चाहा…….ज़ेवर बेच कर वो जुवा खेलना चाहता था कि दो–गुने रुपये हो जाऐंगे। बीवी न मानी।

 

नतीजा इस का ये हुआ कि उस ने उस को मारना पीटना शुरू कर दिया। सारा दिन एक तंग–ओ–तारीक कोठरी में बंद रखता और खाने को कुछ न देता। उस ने महीनों ऐसा किया। आख़िर एक दिन आजिज़ आ कर उस की बीवी ने अपने ज़ेवर उस के हवाले कर दिए। लेकिन ज़ेवर लेकर वो ऐसा ग़ायब हुआ कि छः महीने तक उस की शक्ल नज़र न आई।

 

इस दौरान में सुमित्री की बहन फ़ाक़ा–कशी करती रही। वो अगर चाहती तो अपने मैके जा सकती थी। उस का बाप माल–दार था और उस से बहुत प्यार करता था, मगर उस ने मुनासिब न समझा। नतीजा इस का ये हुआ कि उस को दिक़ हो गई। कुंदन लाल छः महीने के बाद अचानक घर आया तो उस की बीवी बिस्तर पर पड़ी थी…….
कुंदन लाल अब नौकरी पर बहाल हो चुका था…….
जब उस से पूछा गया कि वो इतनी देर कहाँ रहा तो वो गोल कर गया।

 

सुमित्री की बहन ने उस से ज़ेवरों के बारे में नहीं पूछा। उस का पति घर वापिस आ गया था, वो बहुत ख़ुश थी कि भगवान ने उस की सुन ली……. उस की सेहत किसी क़दर बेहतर हो गई, मगर ये, उन के आने से जो आ जाती है मुँह पर रौनक, वाला मुआमला था।

 

एक महीने के बाद उस की हालत और भी ज़्यादा ख़राब हो गई…….
इस असना में सुमित्री के माँ बाप को पता चल गया। वो फ़ौरन वहां पहुंचे और कुंदन लाल को मजबूर किया कि वो अपनी बीवी को फ़ौरन किसी पहाड़ पर ले जाये। ख़र्च वग़ैरा का ज़िम्मा उन्हों ने कहा, हमारा है…….
कुंदन लाल ने कहा चलो सैर ही सही, सुमित्री को दिल बहलावे के लिए साथ लिया और बटूत पहुंच गया।

 

यहां वो अपनी बीवी की क़तअन देख भाल नहीं करता था…….
सारा दिन बाहर ताश खेलता रहता। सुमित्री परहेज़ी खाना पकाती थी, इस लिए वो सुब्ह शाम होटल से खाना खाता। हर महीने ससुराल लिख देता कि ख़र्च ज़्यादा हो रहा है, चुनांचे वहां से रक़म में इज़ाफ़ा कर दिया जाता।

 

मैं
दास्तान लंबी नहीं करना चाहता……. सुमित्री से मेरी मुलाक़ात अब हर–रोज़ होने लगी। नाले पर वो जगह जहां वो कपड़े धोती थी। बड़ी ठंडी थी……. नाले का पानी भी ठंडा था।

 

सेब के दरख़्त की छाँव बहुत प्यारी थी और गोल गोल बट्टियां, जी चाहता था कि सारा दिन उन्हें उठा उठा कर नाले के शफ़्फ़ाफ़ पानी में फेंकता रहूं……. ये थोड़ी सी भोंडी शायरी मैं ने इस लिए की है कि मुझे सुमित्री से मोहब्बत हो गई थी, और मुझे ये मालूम था कि उस ने उसे क़ुबूल कर लिया है……. चुनांचे एक दिन जज़्बात से मग़्लूब हो कर मैं ने उसे अपने सीने के साथ लगा लिया। उस के होंटों पर अपने होंट रख दिए और आँखें बंद कर लीं। सेब के दरख़्तों में चिड़ियां चहचहा रही थीं और मग्गू नाले का पानी गुनगुनाता हुआ बह रहा था।

 

वो ख़ूबसूरत थी, गो दुबली थी मगर इस तौर पर कि ग़ौर करने पर आदमी इस नतीजे पर पहुंचता था कि उसे दुबली ही होना चाहिए था। अगर वो ज़रा मोटी होती तो इतनी ख़तरनाक तौर पर ख़ूबसूरत न होती……. उस की आँखें ग़ज़ाली थीं। जिन में क़ुदरती सुरमा लगा रहता था……. ठुमका सा क़द……. घने सियाह बाल जो उस की कमर तक आते थे……. छोटा सा कुँवारा जोबन…….
मंटो साहिब! मैं उस की मुहब्बत में सर–ता–पा ग़र्क़ हो गया।

 

एक दिन जब वो अपनी मोहब्बत का इज़हार कर रही थी, मैं ने वो बात जो बड़े दिनों से मेरे दिल में कांटे की तरह चुभ रही थी, उस से कही कि देखो सुमित्री! मैं मुस्लमान हूँ, तुम हिंदू……. बताओ अंजाम क्या होगा……. मैं कोई औबाश नहीं कि तुम्हें ख़राब कर के चलता बनूँ। मैं तुम्हें अपना जीवन साथी बनाना चाहता हूँ…….सुमित्री ने मेरे गले में बाँहें डालीं और बड़े मज़बूत लहजे में कहा हनीफ़! मैं मुस्लमान हो जाऊंगी।

 

मेरे सीने का बोझ उतर गया…….
तय हुआ कि जूँ ही उस की बहन अच्छी होगी, वो मेरे साथ चल देगी…….
उस की बहन को कहाँ अच्छा होना था। कुंदन लाल ने मुझे बताया कि वो उस की मौत का मुंतज़िर है। ये बात ठीक भी थी, गो इस तरह सोचना और उस का ईलाज करना कुछ मुनासिब नहीं था। बहरहाल, हक़ीक़त सामने थी। कमबख़्त मर्ज़ ही ऐसा था कि बचना मुहाल था।

 

सुमित्री की बहन की तबीअत दिन बदिन गिरती गई……. कुंदन लाल को कोई पर्वाह नहीं थी……. चूँकि अब ससुराल से रुपये ज़्यादा आने लगे थे और ख़र्च कम हो गया था या ख़ुद कम कर दिया गया था, उस ने डाले बंगले जा कर शराब पीना शुरू कर दी और सुमित्री से छेड़छाड़ करने लगा।

 

मंटो साहिब! जब मैं ने ये सुना तो मेरी आँखों में ख़ून उतर आया। इतनी जुर्रत नहीं थी वर्ना मैं बीच सड़क के उस की मरम्मत जूतों से करता…….
मैं ने सुमित्री को अपने सीने से लगाया। उस के आँसू पोंछे और दूसरी बातें शुरू कर दीं जो प्यार मोहब्बत की थीं।

 

एक दिन मैं सुब्ह सवेरे निकला। जब उन क्वार्टरों के पास पहुंचा तो मैं ने महसूस किया कि सुमित्री की बहन अल्लाह को प्यारी हो चुकी है, चुनांचे मैं ने दरवाज़े के पास खड़े हो कर कुंदन लाल को आवाज़ दी। मेरा ख़याल दुरुस्त था। बे–चारी ने रात ग्यारह बजे आख़िरी सांस लिया था। कुंदन लाल ने मुझ से कहा कि मैं थोड़ी देर वहां खड़ा रहूं ताकि वो क्रियाकर्म के लिए बंद–ओ–बस्त कर आए…….
वो चला गया।

 

थोड़ी देर के बाद मुझे सुमित्री का ख़याल आया……. वो कहाँ थी। जिस कमरे में उस की बहन की लाश थी, बिलकुल ख़ामोश था……. मैं साथ वाले क्वार्टर की तरफ़ बढ़ा। अंदर झांक कर देखा। सुमित्री चारपाई पर गठरी बनी लेटी थी।

 

मैं अन्दर चला गया। उस का कंधा हिला कर मैं ने कहा, सुमित्री! सुमित्री……. उस ने कोई जवाब ना दिया……. मैं ने देखा कि उस की शलवार बड़े बड़े धब्बों से भरी हुई है……. मैं ने फिर उस का कंधा हिलाया मगर वो ख़ामोश रही…….
मैं ने बड़े प्यार से पूछा,
क्या बात है सुमित्री……. सुमित्री ने रोना शुरू कर दिया।

 

मैं
उस के पास बैठ गया……. क्या बता है सुमित्री……. सुमित्री सिसकियों भरी आवाज़ में बोली……. जाओ, हनीफ़……. जाओ…….मैं ने कहा, क्यूँ……. अफ़्सोस है कि तुम्हारी बहन का इंतिक़ाल हो गया है, मगर तुम तो अपनी जान हलकान न करो।

 

उस ने अटक अटक कर कहा…….
उस के हलक़ से आवाज़ नहीं निकलती थी…….
वो मर गई है, पर मैं उस का ग़म नहीं कर सकती…….
मैं ख़ुद मर चुकी हूँ…….
इस का मतलब नहीं समझा…….
तुम क्यूँ मरो…….
तुम्हें तो मेरा जीवन साथी बनना है।

 

ये सुन कर वो धाड़ें मार मार कर रोने लगी…….
जाओ हनीफ़ जाओ…….
मैं अब किसी काम की नहीं रही…….
कल रात…….
कल रात बाबू जी ने मेरा ख़ात्मा कर दिया…….
मैं चीख़ी…….
उधर दूसरे से क्वार्टर से जीजी चीख़ी और मर गई…….
वो समझ गई थी…….
हाय, काश! मैं न चीख़ी होती।

 

वो
मुझे क्या बचा सकती थी……. जाओ, हनीफ़ जाओ……. ये कह कर वो उठी, दीवाना वार मेरा बाज़ू पकड़ा और घसीटती बाहर ले गई। फिर दौड़ कर क्वॉर्टर में दाख़िल हुई और दरवाज़ा बंद कर दिया……. थोड़ी देर के बाद वो हराम–ज़ादा कुंदन लाल आया। उस के साथ चार पाँच आदमी थे ख़ुदा की क़सम!

 

अकेला होता तो मैं पत्थर मार मार कर उसे जहन्नम वासिल कर देता…….
बस ये है मेरी कहानी…….सुमित्री की कहानी, जिस के ये अल्फ़ाज़ हर–वक़्त मेरे कानों में गूंजते रहते हैं, जाओ हनीफ़ जाओ…….
किस क़दर दुख है इन तीन लफ़्ज़ों में…….

 

हनीफ़ की आँखों में आँसू तैर रहे थे। मैं ने उस से पूछा। जो होना था, वो तो हो गया था……. तुम ने सुमित्री को क़ुबूल क्यूँ न किया?

 

हनीफ़ ने आँखें झुका लीं…….ख़ुद को एक मोटी गाली दे कर उस ने कहा। कमज़ोरी…….
मर्द उमूमन ऐसे मुआमलों में बड़ा कमज़ोर होता है…….
लअनत है इस पर……
”

The End

Disclaimer–Blogger
has prepared this short story with help of materials and images available on
net. Images on this blog are posted to make the text interesting.The materials
and images are the copy right of original writers. The copyright of these
materials are with the respective owners.Blogger is thankful to original
writers.


 



Share198Tweet124
Engr. Maqbool Akram

Engr. Maqbool Akram

I am, Engineer Maqbool Akram (M.Tech. Mechanical Engineer from AMU ), believe that reading and understanding literature and history is important to increase knowledge and improve life. I am a blog writer. I like to write about the lives and stories of literary and historical greats. My goal is to convey the lives and thoughts of those personalities who have had a profound impact on the world in simple language. I research the lives of poets, writers, and historical heroes and highlight their unheard aspects. Be it the poems of John Keats, the Shayari of Mirza Ghalib, or the struggle-filled story of any historical person—I present it simply and interestingly.

Latest Post

साहब-ए-करामात- फाताँ ने वहीं चारपाई से कहा। “हाँ…….मौलवी साहब की दाढ़ी और पट्टे।” सआदत हसन मंटो

May 5, 2025
धुंआ धुंआ ज़िंदगी लाइफ़ इन मेट्रो; ट्वंटी  ट्वंटी क्रिकेट की तरह तलाक़ का निर्णय भी जल्दी आगया. और वे दोनों ‘एक्स’ होगए (नंदकिशोर बर्वे)

धुंआ धुंआ ज़िंदगी-लाइफ़ इन मेट्रो; ट्वंटी ट्वंटी क्रिकेट की तरह तलाक़ का निर्णय भी जल्दी आ गया. और वे दोनों ‘एक्स’ हो गए. (नंद किशोर बर्वे)

May 2, 2025
IUIUIIU

तुमने क्यों कहा था मैं सुंदर हूं: फ़ोटो में माया की तरह छरहरे शरीर, परंतु बहुत सुंदर अनुपात के अवयव की निरावरण युवती, दाईं बांह का सहारा लिये एक चट्टान पर बैठी, कहीं दूर देख रही थी (यशपाल की कहानी )

May 2, 2025
अलाउद्दीन खिलजी, ने भारत की रक्षा दुनिया के क्रूरतम लड़ाके ‘मंगोलो’ से की। जिन्होंने बगदाद के खलीफा अबू मुस्तसिम बिल्लाह तक को मार दिया था।

अलाउद्दीन खिलजी, ने भारत की रक्षा दुनिया के क्रूरतम लड़ाके ‘मंगोलो’ से की। जिन्होंने बगदाद के खलीफा अबू मुस्तसिम बिल्लाह तक को मार दिया था।

May 2, 2025
जॉन कीट्स ब्रिटेन के महान कवि और फैनी ब्रॉन की असफल प्रेम कहानी- कीट्स की मृत्यु महज 25 साल में हो गई दोनों ने शादी नहीं की उसने विधवा के रूप में कीट्स  की मृत्यु पर शोक मनाया।

जॉन कीट्स ब्रिटेन के महान कवि और फैनी ब्रॉन की असफल प्रेम कहानी- कीट्स की मृत्यु महज 25 साल में हो गई दोनों ने शादी नहीं की उसने विधवा के रूप में कीट्स की मृत्यु पर शोक मनाया।

May 2, 2025
Fall of Constantinople नौजवान सुल्तान मोहम्मद फतेह ने 29 मई 1453 को कुस्तुनतुनिय फतह (इस्तांबूल) किया.रोमन साम्राज्य का अंत. इस के बाद इस्लाम का यूरोप में प्रवेश.

Fall of Constantinople नौजवान सुल्तान मोहम्मद फतेह ने 29 मई 1453 को कुस्तुनतुनिय फतह (इस्तांबूल) किया.रोमन साम्राज्य का अंत. इस के बाद इस्लाम का यूरोप में प्रवेश.

May 2, 2025
पटना की बेहद हसीन तवायफ और एक पुजारी की लव स्टोरी – यह सूखा हुआ पान हमेशा उनकी विधवा पत्नी के लिए रहस्य ही बना रहा.

पटना की बेहद हसीन तवायफ और एक पुजारी की लव स्टोरी – यह सूखा हुआ पान हमेशा उनकी विधवा पत्नी के लिए रहस्य ही बना रहा.

April 24, 2025
बड़ी शर्म की बात: (इस्मत चुग़ताई) औरत मर्द की नाक काटे तो दहल जाती हूं. उफ़ कितनी शर्म की बात

बड़ी शर्म की बात: (इस्मत चुग़ताई) औरत मर्द की नाक काटे तो दहल जाती हूं. उफ़ कितनी शर्म की बात

March 22, 2025
नशे की रात के बाद का सवेरा (ख़ुशवंत सिंह) अपने अधूरे सपने का अन्त देखने लगा-जो एक विवाहित आदमी बिना संTकोच के कर सकता है.

नशे की रात के बाद का सवेरा (ख़ुशवंत सिंह) अपने अधूरे सपने का अन्त देखने लगा-जो एक विवाहित आदमी बिना संTकोच के कर सकता है.

March 18, 2025
अंतिम प्यार: ताड़ के वृक्षों के समूह के समीप मौन रहने वाली छाया के आश्रय में एक सुन्दर नवयुवती नदी के नील-वर्ण जल में अचल बिजली-सी मौन खड़ी थी. (रबिन्द्रनाथ टैगोर की कहानी )

अंतिम प्यार: ताड़ के वृक्षों के समूह के समीप मौन रहने वाली छाया के आश्रय में एक सुन्दर नवयुवती नदी के नील-वर्ण जल में अचल बिजली-सी मौन खड़ी थी. (रबिन्द्रनाथ टैगोर की कहानी )

March 17, 2025
नाच पार्टी के बाद. वन नाइट लव स्टोरी (रूसी कहानी हिंदी में) लियो टॉल्स्टॉय

नाच पार्टी के बाद. वन नाइट लव स्टोरी (रूसी कहानी हिंदी में) लियो टॉल्स्टॉय

March 17, 2025
परवीन शाकिर छोटी उम्र बड़ी जिंदगी वो शायरा जिनके शेरों में धड़कता है आधुनिक नारी का दिल- दिल को उस राह पे चलना ही नहीं, जो मुझे तुझ से जुदा करती है

परवीन शाकिर छोटी उम्र बड़ी जिंदगी वो शायरा जिनके शेरों में धड़कता है आधुनिक नारी का दिल- दिल को उस राह पे चलना ही नहीं, जो मुझे तुझ से जुदा करती है

March 17, 2025
आय विल कॉल यू मोबाइल फोन (रूपा सिंह) जैसे ही डाटा ऑन किया खट् खट् कर कई मैसेज दस्तक देते चले आये इतनी तेजी से सबकी खबरें स्क्रीन पर चमक रही थी

आय विल कॉल यू मोबाइल फोन (रूपा सिंह) जैसे ही डाटा ऑन किया खट् खट् कर कई मैसेज दस्तक देते चले आये इतनी तेजी से सबकी खबरें स्क्रीन पर चमक रही थी

March 17, 2025
चार्ल्स डिकेंस: के प्रेम प्रसंग विक्टोरियन इंग्लैंड के महान उपन्यासकार अपने युग के रॉक स्टार गलत जगहों पर प्यार की तलाश

चार्ल्स डिकेंस: के प्रेम प्रसंग विक्टोरियन इंग्लैंड के महान उपन्यासकार अपने युग के रॉक स्टार गलत जगहों पर प्यार की तलाश

March 18, 2025
पंच परमेश्वर: फूलो ने घूंघट नहीं खींचा मुंह उठा दिया गेहुंए रंग में दो मांसल आंखें थीं जिनमें  रात का खुमार अभी बिल्कुल मिटा नहीं (रांगेय राघव की कहानी)

पंच परमेश्वर: फूलो ने घूंघट नहीं खींचा मुंह उठा दिया गेहुंए रंग में दो मांसल आंखें थीं जिनमें रात का खुमार अभी बिल्कुल मिटा नहीं (रांगेय राघव की कहानी)

March 18, 2025
मैं खुदा हूँ Ana’l haqq मंसूर अल-हलाज: जल्लाद ने सिर काटा तो धड़ से खून की धार फूट पड़ी और अचानक उनके शरीर से कटा एक-एक अंग चीखने लगा च्मैं ही सत्य हूं

मैं खुदा हूँ Ana’l haqq मंसूर अल-हलाज: जल्लाद ने सिर काटा तो धड़ से खून की धार फूट पड़ी और अचानक उनके शरीर से कटा एक-एक अंग चीखने लगा च्मैं ही सत्य हूं

March 17, 2025
नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है  तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

March 18, 2025
अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

March 18, 2025
Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

March 17, 2025
सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

March 17, 2025
Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

March 17, 2025
मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

March 17, 2025
Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

March 18, 2025
Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

March 17, 2025
River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

March 17, 2025
Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

March 18, 2025
पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

March 17, 2025
पड़ोसिन (कहानी रवीन्द्रनाथ ठाकुर) अब छिपाना बेकार है वह तुम्हारी ही पड़ोसिन है, उन्नीस नम्बर में रहती है मैंने पूछा, सिर्फ कविताएं पढ़कर ही वह मुग्ध हो गई?’

पड़ोसिन (कहानी रवीन्द्रनाथ ठाकुर) अब छिपाना बेकार है वह तुम्हारी ही पड़ोसिन है, उन्नीस नम्बर में रहती है मैंने पूछा, सिर्फ कविताएं पढ़कर ही वह मुग्ध हो गई?’

March 17, 2025
Katha Saar of Karbala (Play):  By Munshi Premchand katha samrat ( 31 July 1880 –8 October 1936 )

Katha Saar of Karbala (Play): By Munshi Premchand katha samrat ( 31 July 1880 –8 October 1936 )

March 17, 2025
Royal Love Story of A Maharani: एक महारानी की अनोखी प्रेम कहानी महारानी रियासत के दीवान से ही प्रेम कर बैठी

Royal Love Story of A Maharani: एक महारानी की अनोखी प्रेम कहानी महारानी रियासत के दीवान से ही प्रेम कर बैठी

March 17, 2025
  • About us
  • Contact us
  • Home

Copyright © 2025. All rights reserved. Design By Digital Aligarh

No Result
View All Result
  • About us
  • Contact us
  • Home

Copyright © 2025. All rights reserved. Design By Digital Aligarh