बॉलीवुड फिल्म ‘धुरंधर’ ने पाकिस्तान के कराची शहर के ल्यारी इलाके और इसके गैंगस्टर रहमान बलूच को चर्चा में ला दिया है। रहमान कई सालों तक ल्यारी का सबसे बड़ा डॉन रहा। रहमान के क्राइम के अलावा राजनेताओं में पहुंच की भी चर्चा होती है। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) की बड़ी नेता बेनजीर भुट्टो से भी उसकी पहचान थी। दावा किया जाता है कि साल 2007 में बम धमाके से बेनजीर को बचाने वाला रहमान ही था।
रहमान डकैत के असली कामों के मुकाबले कुछ भी नहीं हैं, जिसने पाकिस्तान के कराची के एक कम विकसित शहर ल्यारी पर राज किया था, जो अब धुरंधर की वजह से भारत में सुर्खियों में आ गया है।रहमान डकैत वो हैवान था जिसने अपनी मां की हत्या कर के उनके शव को पंखे से लटका दिया था.
‘शेर-ए-बलोच’ गाने पर स्वैग से एंट्री करते हुए अक्षय की क्लिप भयंकर वायरल है. लोग उनकी परफॉरमेंस को शेयर कर अंडररेटेड लैजेंड जैसे खिताब से नवाज़ रहे हैं.
ल्यारी टाउन की आबादी साल 2023 की जनगणना के अनुसार लगभग दस लाख है और यह कराची के सबसे घनी आबादी वाले इलाक़ों में से एक है.यहां बलूच, सिंधी, उर्दू, पश्तून और पंजाबी बोलने वाले लोग बसे हुए हैं. यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां कई संस्कृतियां एक साथ रहती हैं.
ल्यारी के बारे में कहा जाता है कि इसी ने कराची शहर को जन्म दिया, जहां शुरुआती तौर पर मज़दूर वर्ग बसा था. समय के साथ औद्योगिक विकास, और बंदरगाह नज़दीक होने की वजह से यहां मज़दूर, कारीगर और कारोबारी लोग बस गए और यह शहर का पहला ‘वर्किंग क्लास’ इलाक़ा बना.
ल्यारी के कई इलाक़ों की दीवारों पर आज भी गोलियों के निशान मौजूद हैं, कई दिल भी दुखी हैं जिन्होंने गैंगवॉर में अपने प्यारों को खोया, लेकिन ल्यारी बदल चुका है.
कहानी कराची के ल्यारी से शुरू होती है. ल्यारी की जिस हवा में रहमान डकैत ने अपनी पहली सांस ली, तब तक उसमें खून की गंध घुल चुकी थी.
ल्यारी घनी आबादी वाले इलाक़ों में से एक है.
यहां बलूच, सिंधी, उर्दू, पश्तून और पंजाबी बोलने वाले लोग बसे हुए हैं. यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां कई संस्कृतियां एक साथ रहती हैं.
ल्यारी के बारे में कहा जाता है कि इसी ने कराची शहर को जन्म दिया, जहां शुरुआती तौर पर मज़दूर वर्ग बसा था. समय के साथ औद्योगिक विकास, और बंदरगाह नज़दीक होने की वजह से यहां मज़दूर, कारीगर और कारोबारी लोग बस गए और यह शहर का पहला ‘वर्किंग क्लास’ इलाक़ा बना.इस तरह यह राजनीतिक गतिविधियों और मज़दूर आंदोलनों का भी केंद्र रहा.
21वीं सदी की शुरुआत इस इलाक़े के लिए बुरी रही. पहले नशीले पदार्थों के विक्रेता और उसके बाद गैंगस्टर्स ग्रुप सक्रिय हुए.शहर में भाषाई भेदभाव और हंगामों ने भी अपना रंग दिखाया और ल्यारी की पहचान बदलने लगी.
लोकल गैंगस्टर अपना वर्चस्व बनाने में जुटे थे. चाकू टकराते, सड़क पर चीत्कार उठता, फिर अचानक से सारी आवाज़ें गुल हो जातीं. सन्नाटा पसर जाता. एक ही आवाज़ इस सन्नाटे को चीरती, लाश की ज़मीन से घसीटकर ले जाने की आवाज़.
21वीं सदी की शुरुआत इस इलाक़े के लिए बुरी रही. पहले नशीले पदार्थों के विक्रेता और उसके बाद गैंगस्टर्स ग्रुप सक्रिय हुए.शहर में भाषाई भेदभाव और हंगामों ने भी अपना रंग दिखाया और ल्यारी की पहचान बदलने लगी.
अतीत में ल्यारी में गैंग्स (Gang of leyari) सिर्फ़ नशीले पदार्थों की बिक्री तक सीमित थे.
कलाकोट की अफ़शानी गली के दो भाइयों शेर मोहम्मद (शेरू) और दाद मोहम्मद (दादल, रहमान बलोच के पिता) ने ड्रग्स के कारोबार को फैलाने और ताक़त हासिल करने के लिए अपना गैंग बनाना शुरू किया.
ड्रग्स के कारोबार से जुड़ा इक़बाल उर्फ़ बाबू डकैत का गैंग भी ल्यारी के इसी इलाक़े कलरी और आस-पास के मोहल्लों में सक्रिय था. फिर ल्यारी जैसी बड़ी आबादी का कौन सा इलाक़ा किसके पास होगा और किस मुहल्ले में चरस और अफ़ीम जैसी ड्रग्स का कारोबार किसके क़ब्ज़े में होगा, यह रस्साकशी दुश्मनी का रंग लेती चली गई.”
दादल की मौत के बाद रहमान ने ‘विरासत’ संभाली और जल्द ही कारोबारी जलन और एक-दूसरे को नीचा दिखाने की खींचातानी में एक दिन रहमान की हाजी लालू और उसके बेटों से खटपट हो गई.
इस गरमा-गरमी ने लालू और रहमान के रास्ते अलग कर दिए. टकराव के इस रवैये ने दुश्मनी का रूप ले लिया तो लालू के बेटे अरशद पप्पू ने कलाकोट में रहमान को रास्ते से हटाने की कोशिश की.रहमान बच तो निकला, मगर अरशद पप्पू के ग़ुस्से का रुख़ उसके रिश्तेदारों की तरफ़ हुआ और अरशद पप्पू के हाथों रहमान के रिश्तेदार मारे जाने लगे.
इधर रहमान ने बची-खुची ताक़त जुटाकर जवाबी तौर पर अरशद पप्पू के रिश्तेदारों पर हमलों की शुरुआत की.इनमें बलूच एकजुटता के नेता और ल्यारी की जानी-मानी शख़्सियत अनवर भाई जान जैसे मशहूर लोग भी मारे गए.पुलिस के अनुसार, ड्रग्स के बाद ल्यारी के गैंग्स जबरन वसूली करने लगे.
शेरशाह कबाड़ी मार्केट से लेकर जोड़िया बाज़ार तक, जो शहर की होलसेल मार्केट है, यह दायरा बढ़ता गया.आख़िरकार साल 2009 में रहमान एसपी चौधरी के साथ एक कथित मुठभेड़ में मारा गया और उनके गैंग की बागडोर उज़ैर बलोच के पास आ गई, जिसने स्थानीय राजनीति पर भी असर डालना शुरू कर दिया.
फिर आया नाइंटीज़. ल्यारी का परिचय होता है इकबाल से, जिसे बाबू डकैत के नाम से भी जाना जाता था. बाबू एक पढ़ा-लिखा गैंगस्टर था. बाबू डकैत ने शहर में अपना ड्रग्स का धंधा शुरू किया. अपना नेटवर्क इतना मज़बूत किया कि पुलिस भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती थी.
बाबू डकैत अपनी कहानी में हीरो था. लेकिन उसका एक विलन भी था. उसका नाम था दादल. बाबू ने उसे मार डाला. दादल की मौत ने सब कुछ बदल के रख दिया. एक खालीपन आया. आगे चलकर उस जगह को उसका बेटा सरदार अब्दुल रहमान बलोच भरने वाला था. ये वही शख्स था जो रहमान डकैत के नाम से पहचाना जाता है.
रहमान डकैत की किताब में उसूल, मॉरलिटी जैसे शब्दों के लिए जगह नहीं थी. रहमान ने अपने जीवन का सबसे पहला अपराध महज़ 13 साल की उम्र में किया था. किसी छोटी-सी बात पर अनबन हुई और उसने सामने वाले शख्स को चाकू मार दिया. इस घटना ने उसे आदमी से राक्षस नहीं बनाया.
वो घटना तब हुई जब उसे अपनी मां पर शक हुआ. रहमान को लगता था कि उसकी मां का अफेयर किसी दूसरे आदमी से चल रहा है. उसने अपने शक को मिटाने की कोशिश नहीं की. अंदर के हैवान को बाहर निकाला और बेदर्दी से अपनी मां को मौत के घाट उतार दिया.
वो सिर्फ इतने पर ही नहीं रुका. रहमान ने अपनी मां के शक को पंखे से लटका दिया. इस घटना से पूरे ल्यारी में दहशत छा गई. लोग दबी आवाज़ में कहने लगे कि जो अपनी मां के साथ ऐसा कर सकता है वो कैसा आदमी होगा.
रहमान ने ऐसा अपराध किया, उसके बावजूद आपको लोग मिलेंगे जो उसे किसी मसीहा से कम नहीं उसकी वजह है कि रहमान डकैत बाहरी दुनिया के सामने खुद को फ़रिश्ते की तरह पेश करता है.
वो लोगों का इलाज करवाता, गरीब लड़कियों की शादी का खर्च उठाता, किसी को कोई ज़रूरत होती तो रहमान के दरवाज़े खुले मिलते. बेसिकली ऐसा कर के रहमान पब्लिक सपोर्ट अर्जित कर रहा था.ताकि उसका बचाव सिस्टम से होता रहे.
रहमान के राज में वहां ड्रग्स और चोरी पूरी तरह से बंद थी. अगर किसी घर के लड़के ने चोरी की तो उसके घरवालों को वॉर्निंग दी जाती. अगर वो नहीं मानता तो दूसरी वॉर्निंग भेजी जाती है. इतने पर भी कोई नहीं मानता तो फिर उस शख्स की लाश ही घर पहुंचती. रहमान डकैत एक तरह से अपनी ही सरकार चला रहा था.
रहमान सिर्फ डर के सहारे ल्यारी पर राज करके खुश नहीं था। उसने राजनीति में कदम रखा। ल्यारी पाकिस्तान पीपल्स पार्टी का गढ़ था, जिसकी स्थापना पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय ज़ुल्फिकार अली भुट्टो और बाद में उनकी बेटी, स्वर्गीय बेनजीर भुट्टो ने की थी। प्रेस की तस्वीरों में रहमान पूर्व गृह मंत्री ज़ुल्फिकार मिर्जा के साथ और बेनजीर भुट्टो के आस-पास नजर आया।
ऐसी भी खबरें हैं कि रहमान के मामले में राजनीतिक दबाव के कारण कानून लागू करने वाली एजेंसियों के हाथ बंधे हुए थे। हालांकि, टॉप पुलिस अधिकारियों ने इस बात से इनकार किया है और कहा है कि पुलिस पर कोई दबाव नहीं था।
ल्यारी में राजनीतिक और प्रशासनिक खालीपन की वजह से रहमान सत्ता में आया। इलाके में डेवलपमेंट की कमी और गरीबी ने रहमान जैसे लोकल पावर सेंटर को जन्म दिया था। एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने एक पीपीपी नेता के हवाले से कहा, “राजनीतिक हस्तियों ने ल्यारी को नजरअंदाज किया।
नतीजतन, रहमान डकैत जैसे लोगों ने उस खालीपन को भरा। लियारी में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या थी और आज भी है। रहमान लड़कों को रोजाना दिहाड़ी देता था और उन्हें कलाश्निकोव देकर इलाके में गश्त करने को कहता था और इन लड़कों को पता भी नहीं होता था कि वे किस पर गोली चला रहे हैं।”
सत्ताधारी पार्टी से संबंधों के जरिए मिले राजनीतिक प्रभाव से रहमान की सत्ता की भूख शांत नहीं हुई। वह सीधा कंट्रोल चाहता था। उसने डकैत नाम और उस पहचान को छोड़ दिया जिसका वह कभी आनंद लेता था और खुद को सरदार अब्दुल रहमान बलूच कहने लगा। इस नाम में खास तौर पर उसके कबीले, बलूच का जिक्र था।
उसने अपने विरोधी गैंग से रिश्ते सुधारे और 2008 में पीपल्स अमन कमेटी बनाई। पीपल्स अमन कमेटी शुरू में पीपीपी की सहयोगी लग रही थी।
अफवाहें थीं कि वह चुनाव लड़ सकता है। आसिफ अली जरदारी, बेनजीर भुट्टो के पति और पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति की सुरक्षा बंदूकधारी गार्ड करते थे, जिनके बारे में माना जाता था कि वे रहमान के गैंग के थे।
गैंगवार में कई बेगुनाह लोगों की जान चली गई… खान भाई को लगा कि लड़ाई बंद होनी चाहिए, उन्होंने बहुत बड़ी कुर्बानी दी; वह अपने दुश्मन गफ्फार बलूच से समझौता करने के लिए मिलने गए। पीपल्स अमन कमेटी बनाने का मकसद क्रिमिनल एक्टिविटीज को खत्म करना था।”
पावर गेम में रहमान ऊपर चढ़ता जा रहा था. दूसरी ओर उसके दुश्मन हाजी लालू का बेटा अरशद पप्पू भी जोरों-शोरों से अपनी तैयारी कर रहा था. इस जंग में पहला हमला पप्पू ने किया. उसने कब्रिस्तान जाकर रहमान के पिता दादल की कब्र को तोड़ा. ये सीधे तौर पर रहमान को एक मैसेज था.
रहमान गुस्से से पागल हुए जा रहा था. लेकिन पप्पू झुकने वालों में से नहीं था. उसने एक दिन रहमान के चाचा को घेर लिया. उन्हें गोलियों से भून दिया. लेकिन उससे पहली उनकी चीखें रहमान डकैत तक पहुंचाई. रहमान बदले की आग में जले जा रहा था. लेकिन इस कहानी पर इतनी जल्दी पूर्ण विराम लगने वाला नहीं था.
चौधरी असलम एनकाउंटर स्पेशलिस्ट थे. चौधरी असलम कितने खतरनाक थे, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगा लीजिए कि उन्हें कई मौकों पर अपने परिवार को गुप्त स्थान पर रखना पड़ता था. क्योंकि हमेशा उनकी जान खतरे में रहती. चौधरी असलम को एक ज़िम्मेदारी सौंपी गई. उन्हें ल्यारी की सड़कों से गैंगस्टर्स का सफाया करना था.
चौधरी असलम जानते थे कि ये बहुत मुश्किल काम है, लेकिन वो ठान चुके थे कि रहमान को जेल की सलाखों के पीछे डालकर ही दम लेंगे.
साल 2006 में उन्होंने रहमान को अरेस्ट भी कर लिया. लेकिन कुछ पुलिसवालों का ईमान चौधरी असलम का दुश्मन बन गया. रहमान ने कुछ पुलिस अधिकारियों को पांच करोड़ रुपये की रिश्वत दी और एकदम आराम से जेल से फरार हो गया.
इस घटना ने चौधरी असलम की ईगो पर गहरी चोट मारी. उन्होंने मन पक्का कर लिया, कि अब वो रहमान को गिरफ्तार नहीं करेंगे. बल्कि सीधे उसका एनकाउंटर करेंगे. कहानी कुछ साल आगे बढ़ी. साल था 2009. अगस्त का महीना. खबर आती है कि चौधरी असलम ने एक ऑपरेशन शुरू किया है.
पांच घंटे बाद बदल छंटे और खबर आई कि रहमान डकैत को मार दिया गया है. रहमान सिर्फ ल्यारी के लिए ही अहम नहीं था, बल्कि पाकिस्तान की पॉलिटिक्स के लिए भी एक अहम किरदार था. ये वही रहमान था जिसने साल 2007 में एयरपोर्ट पर ब्लास्ट के बाद बेनज़ीर भुट्टो को सुरक्षित पहुंचाया था. वो खुद उनकी गाड़ी ड्राइव कर रहा था. उस रहमान का अंत एक पुलिस एनकाउंटर में हुआ.
रहमान डकैत 29 साल तक जिंदा रहा, लेकिन उसकी बदनामी की कहानियां दशकों से ल्यारी में बनी हुई हैं और अब ये कहानियां सरहद पार करके भारतीय सिनेमा तक पहुंच गई हैं।
‘धुरंधर’ के अंत में भी दिखाया गया कि उसे मार दिया जाता है. हालांकि मेकर्स ने अपने हिसाब से क्रिएटिव लिबर्टी भी ली. मार्च 2026 में ‘धुरंधर 2’ आने वाली है. बताया जा रहा है कि उस फिल्म में भी फ्लैशबैक के ज़रिए रहमान डकैत की वापसी हो सकती है.
कराची में रहमान डकैत ने बम धमाके में बचाई थी बेनजीर भुट्टो की जान, भुट्टो परिवार ने ल्यारी के ‘धुरंधर’ को दिया धोखा, कराया खात्मा
अक्टूबर, 2007 में नौ साल के निर्वासन के बाद बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान लौटी थीं। 18 अक्टूबर को लाखों समर्थक कराची में उनके स्वागत में जुटे थे। इसी दौरान उनकी रैला में दो बम धमाके हुए। बेनजीर भुट्टो इन धमाकों में बाल-बाल बचीं।
धमाकों के तुरंत बाद बेनजीर एक सफेद कार से क्लिफ्टन स्थित अपने घर पहुंची थीं। उस वक्त आसपास मौजूद रहे लोगों का दावा है कि भुट्टो को धमाकों से निकालकर लाने वाला कोई और नहीं बल्कि रहमान डकैत था।
1995 के बाद अब्दुल रहमान बलूच ने इतनी तेजी से क्राइम में कदम बढ़ाए कि वह रहमान डकैत बन गया। रहमान जबरन वसूली, अपहरण, ड्रग तस्करी, अवैध हथियारों की बिक्री और हत्या जैसे अपराधों में शामिल था।
एक दशक से ज्यादा तक रहमान का खौफ ल्यारी ही नहीं कराची के कई हिस्सों में रहा। रहमान के उदय के पीछे एक राजनीतिक दल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) का भी हाथ रहा।
बेनजीर ने ल्यारी में 1987 में वहीं अपनी शादी का रिसेप्शन दिया था। ये उनके क्षेत्र से लगाव को दिखाता है।
माना जाता था कि सार्वजनिक जगहों पर बेनजीर और दूसरे पीपीपी नेताओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी लंबे समय तक रहमान के लोग संभालते रहे जब 2007 में बेनजीर पाकिस्तान लौटकर सड़कों पर उतरीं को उनके आसपास रहमान के लोगों का घेरा था। धमाके के बाद रहमान ने खुद बेनजीर को भीड़ से निकाला।
The End
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