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“मरने की दुआएँ क्यूँ माँगूँ जीने की तमन्ना कौन करे” अलीगढ के मोइन अहसन जज्बी जिनकी कविताएँ निस्संदेहअत्यधिक उदास हैं

ऐ मौजे बाला उनको भी ज़रा दो-चार थपेड़े हलके से
कुछ लोग अभी तक साहिल से तूफां का नज़ारा करते हैं

ये ‘जज़्बी’ साहब का ही शेर है. जिस तरह ‘मजाज़’ को लोग उनकी नज़्म ‘आवारा’ के नाम से पहचानते थे, उसी तरह भी ये शेर जज़्बी साहेब का “logo” शेर है ,जो उनकी पहचान है।

पोस्ट की शुरुआत मैं जज्बी साहेब की पूरी ग़ज़ल (जिसका रदीफ “कौन करे”) से करता हूँ:– यह शेर मोइन अहसान जज़्बी की एक प्रसिद्ध ग़ज़ल से लिया गया है।

Moin Ahsan Jazbi (The Poet)

मरने की दुआएँ क्यूँ माँगूँ जीने की तमन्ना कौन करे

मरने की दुआएँ क्यूँ माँगूँ जीने की तमन्ना कौन करे
ये दुनिया हो या वो दुनिया अब ख़्वाहिश-ए-दुनिया कौन करे

जब कश्ती साबित-ओ-सालिम थी साहिल की तमन्ना किस को थी
अब ऐसी शिकस्ता कश्ती पर साहिल की तमन्ना कौन करे

जो आग लगाई थी तुम ने उस को तो बुझाया अश्कों ने
जो अश्कों ने भड़काई है उस आग को ठंडा कौन करे

दुनिया ने हमें छोड़ा ‘जज़्बी’ हम छोड़ न दें क्यूँ दुनिया को
दुनिया को समझ कर बैठे हैं अब दुनिया दुनिया कौन करे

यह ग़ज़ल 1948 में रिलीज़ हुई हिंदी फ़िल्म “ज़िद्दी” में इस्तेमाल की गई थी, जिसमें देव आनंद और कामिनी कौशल ने अभिनय किया था और संगीत खेमचंद प्रकाश ने दिया था। देव आनंद पर फ़िल्माए गए इस गीत को किशोर कुमार ने गाया था। आम तौर पर यह माना जाता है कि यह किशोर कुमार का पहला फ़िल्मी गीत था।
इस फ़िल्म का निर्देशन प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता शाहिद लतीफ़ ने किया था, जिन्होंने भी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से पढ़ाई की थी और जज्बी के समकालीन थे।

मुईन अहसन जज़्बी की पैदाइश 21 अगस्त 1912 को मुबारकपुर आज़मगढ़ में हुई. वहीँ उन्होंने हाईस्कूल का इम्तिहान पास किया. सेंट् जोंस कालेज आगरा से 1931 में इंटर किया और एंग्लो अरबिक कालेज से बी.ए. किया. जज़्बी नौ साल की उम्र से शेर कहने लगे थे.

कहा जाता है कि उनकी सौतेली माँ के दुर्व्यवहार और आर्थिक समस्याओं के कारण उनका प्रारंभिक जीवन बहुत खुशहाल नहीं था। बचपन से ही उन्हें उर्दू शायरी का शौक था और उन्होंने इस क्षेत्र के प्रसिद्ध उस्तादों की रचनाओं का अध्ययन किया।

आरम्भ में हामिद शाहजहांपुरी से अपने कलाम की त्रुटियाँ ठीक कराईं. आगरा में मजाज़, फ़ानी बदायुनी और मैकश अकबराबादी से मुलाक़ातें रहीं जिसके कारण जज़्बी की स्रजनात्मक क्षमता निखरती रही.

लखनऊ प्रवास के दौरान अली सरदार जाफ़री और सिब्ते हसन से नज़दीकी ने उन्हें साहित्य के प्रगतिवादी विचारधारा से परिचय कराया जिसके बाद जज़्बी अलीगढ़ में एम.ए. के दौरान आंदोलन के सक्रिय सदस्यों में गिने जाने लगे.

एम.ए. करने के बाद कुछ अर्से तक जज़्बी ने माहनामा ‘आजकल’ में सहायक सम्पादक के रूप में अपनी सेवाएँ दीं. 1945 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में लेक्चरर के रूप में नियुक्ति होगयी जहाँ वह अंतिम समय तक विभन्न पदों पर रहे.

उन्होंने कम उम्र से ही अपनी कविताएँ भी लिखना शुरू कर दिया था। कहा जाता है कि 17 साल की उम्र में उन्होंने “फ़ितरत, एक मुफ़लिस की नज़र में” शीर्षक से एक मार्मिक कविता लिखी थी। इस कविता में व्यक्त उनके विचारों की परिपक्वता ने उस समय के स्थापित कवियों को भी चकित कर दिया था। इस कविता का एक शेर नीचे दिया गया है

जब जेब में पैसे बजते हैं, जब पेट में रोटी होती है
उस वक़्त ये ज़रा हीरा है, उस वक़्त ये शबनम मोती है
Film Ziddi--

उन्होंने 1929 में हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की और आगरा के सेंट जॉन्स कॉलेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की। यहीं उनकी मुलाक़ात मजाज़ से हुई और वो दोस्त बन गए, जो जल्द ही शायरी की ऊँचाइयों पर पहुँचने वाले थे,लेकिन उनकी दुखद मौत कम उम्र में ही हो गई।

इसके बाद जज्बी ने दिल्ली के एंग्लो-अरेबिक कॉलेज में दाखिला लिया और वहीं से बी.ए. की पढ़ाई पूरी की। 1941 में, वो अलीगढ़ चले गए और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से एम.ए. किया।

शायद आर्थिक तंगी, अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी पाने में दिक्कत और घर के दुखी माहौल के कारण ही उन्होंने मूल रूप से “मलाल” को अपना तख़ल्लुस बनाया। बाद में ही उन्होंने इसे बदलकर “जज़्बी” कर दिया। इन परिस्थितियों ने उनकी कविताओं में एक उदास उदासी और विषाद का भाव भर दिया।

शायद इसी ने उनकी कविताओं को एक प्रकार की अमरता प्रदान की। जैसा कि शेली ने कहा है:“हमारे सबसे मधुर गीत वे हैं जो सबसे दुखद विचारों को व्यक्त करते हैं दुःख की बात है कि उनकी कविताएँ निराशाजनक रूप से कम रही हैं।“

वे अपने अधिकांश प्रसिद्ध समकालीनों की तरह विपुल रचनाएँ नहीं कर पाए।आखिरकार, 1945 में, उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में व्याख्याता के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने 1956 में वहाँ से अपनी पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की, उनके शोध प्रबंध का विषय मौलाना हाली का जीवन और कार्य था।

अपनी स्थिर नौकरी से प्राप्त आर्थिक सहायता के साथ,उनका जीवन और भी व्यवस्थित हो गया। यह उनके लिए श्रेय की बात है कि उन्होंनेअपनी सौतेली माँ की बहुत अच्छी देखभाल की, इसके बावजूद कि उन्हें पहले कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था।

वे उर्दू प्रगतिशील लेखक आंदोलन (“तरक़्क़ीपसंद तहरीक”) से भी जुड़े थे। उनकी कविताएँ “फ़रोज़ान”, “सुख़न-ए-मुख़्तसर” और “गुदाज़-ए-शब” शीर्षकों के अंतर्गत प्रकाशित हुईं।

मुईन अहसन जज़्बी ने शाइरी के अलावा आलोचना की कई अहम किताबें भी लिखीं. ‘हाली का सियासी शुऊर’ पर उन्हें डॉक्टरेट की डिग्री भी मिली और यह किताब हाली अध्ययन में एक संदर्भ ग्रंथ के रूप में भी स्वीकार की गयी. इसके अतिरिक्त ‘फ़ुरोज़ां’, ‘सुखन-ए-मुख्तसर’ और ‘गुदाज़ शब’ उनके काव्य संग्रह हैं.

13 फ़रवरी 2005 को (90 वर्ष की आयु में) उनका निधन हो गया।उनके निधन के एक वर्ष बाद, साहित्य अकादमी, दिल्ली ने उनकी “कुल्लियात” प्रकाशित की।

यहाँ जज़्बी साहेब की 5 ग़ज़लें प्रस्तुत हैं.
(1)- मिले मुझ को ग़म से फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना


मिले मुझ को ग़म से फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना
कि टपक पड़े नज़र से मय-ए-इशरत-ए-शबाना

यही ज़िंदगी मुसीबत यही ज़िंदगी मसर्रत
यही ज़िंदगी हक़ीक़त यही ज़िंदगी फ़साना

कभी दर्द की तमन्ना कभी कोशिश-ए-मुदावा
कभी बिजलियों की ख़्वाहिश कभी फ़िक्र-ए-आशियाना

मिरे क़हक़हों की ज़द पर कभी गर्दिशें जहाँ की
मिरे आँसुओं की रौ में कभी तल्ख़ी-ए-ज़माना

मिरी रिफ़अ’तों से लर्ज़ां कभी मेहर-ओ-माह ओ अंजुम
मिरी पस्तियों से ख़ाइफ़ कभी औज-ए-ख़ुसरवाना

कभी मैं हूँ तुझ से नालाँ कभी मुझ से तू परेशाँ
कभी मैं तिरा हदफ़ हूँ कभी तू मिरा निशाना

जिसे पा सका न ज़ाहिद जिसे छू सका न सूफ़ी
वही तार छेड़ता है मिरा सोज़-ए-शाइराना

(2)- हम दहर के इस वीराने में जो कुछ भी नज़ारा करते हैं

हम दहर के इस वीराने में जो कुछ भी नज़ारा करते हैं
अश्कों की ज़बाँ में कहते हैं आहों में इशारा करते हैं

क्या तुझ को पता क्या तुझ को ख़बर दिन रात ख़यालों में अपने
ऐ काकुल-ए-गीती हम तुझ को जिस तरह सँवारा करते हैं

ऐ मौज-ए-बला उन को भी ज़रा दो चार थपेड़े हल्के से
कुछ लोग अभी तक साहिल से तूफ़ाँ का नज़ारा करते हैं

क्या जानिए कब ये पाप कटे क्या जानिए वो दिन कब आए
जिस दिन के लिए हम ऐ ‘जज़्बी’ क्या कुछ न गवारा करते हैं

(3) दाग़-ए-ग़म दिल से किसी तरह मिटाया न गया


दाग़-ए-ग़म दिल से किसी तरह मिटाया न गया
मैं ने चाहा भी मगर तुम को भुलाया न गया

उम्र भर यूँ तो ज़माने के मसाइब झेले
तेरी नज़रों का मगर बार उठाया न गया

रूठने वालों से इतना कोई जा कर पूछे
ख़द ही रूठे रहे या हम से मनाया न गया

फूल चुनना भी अबस सैर-ए-बहाराँ भी फ़ुज़ूल
दिल का दामन ही जो काँटों से बचाया न गया

उस ने इस तरह मोहब्बत की निगाहें डालीं
हम से दुनिया का कोई राज़ छुपाया न गया

थी हक़ीक़त में वही मंज़िल-ए-मक़्सद ‘जज़्बी’
जिस जगह तुझ से क़दम आगे बढ़ाया न गया

(4) कूचा-ए-यार में अब जाने गुज़र हो कि न हो


कूचा-ए-यार में अब जाने गुज़र हो कि न हो
वही वहशत वही सौदा वही सर हो कि न हो

जाने इक रंग सा अब रुख़ पे तिरे आए न आए
नफ़स-ए-शौक़ से गुल शोला-ए-तर हो कि न हो

अब मुसलसल भी जो धड़के दिल-ए-नाशाद मिरा
किस को मालूम तिरे दिल को ख़बर हो कि न हो

क़हर में लुत्फ़ में मद-होशी ओ हुश्यारी में
वो मिरे वास्ते तख़्सीस-ए-नज़र हो कि न हो

हिज्र की रात थी इमकान-ए-सहर से रौशन
जाने अब उस में वो इमकान-ए-सहर हो कि न हो

(5) अपनी सोई हुई दुनिया को जगा लूँ तो चलूँ

अपनी सोई हुई दुनिया को जगा लूँ तो चलूँ
अपने ग़म-ख़ाने में इक धूम मचा लूँ तो चलूँ

और इक जाम-ए-मय-ए-तल्ख़ चढ़ा लूँ तो चलूँ
अभी चलता हूँ ज़रा ख़ुद को सँभालूँ तो चलूँ

जाने कब पी थी अभी तक है मय-ए-ग़म का ख़ुमार
धुँदला धुँदला नज़र आता है जहान-ए-बेदार

आँधियाँ चलती हैं दुनिया हुई जाती है ग़ुबार
आँख तो मल लूँ ज़रा होश में आ लूँ तो चलूँ

वो मिरा सेहर वो एजाज़ कहाँ है लाना
मेरी खोई हुई आवाज़ कहाँ है लाना

मिरा टूटा हुआ वो साज़ कहाँ है लाना
इक ज़रा गीत भी इस साज़ पे गा लूँ तो चलूँ

मैं थका हारा था इतने में जो आए बादल
किसी मतवाले ने चुपके से बढ़ा दी बोतल

उफ़ वो रंगीन पुर-असरार ख़यालों के महल
ऐसे दो चार महल और बना लूँ तो चलूँ

मुझ से कुछ कहने को आई है मिरे दिल की जलन
क्या किया मैं ने ज़माने में नहीं जिस का चलन

आँसुओ तुम ने तो बेकार भिगोया दामन
अपने भीगे हुए दामन को सुखा लूँ तो चलूँ

मेरी आँखों में अभी तक है मोहब्बत का ग़ुरूर
मेरे होंटों को अभी तक है सदाक़त का ग़ुरूर

मेरे माथे पे अभी तक है शराफ़त का ग़ुरूर
ऐसे वहमों से ज़रा ख़ुद को निकालूँ तो चलूँ

 

The End

Disclaimer–Blogger has prepared this short write up on Poet “Moin Ahsan Jazbi Saheb” with help of materials and images available on net. Images and videos on this blog are posted to make the text interesting.The materials videos and images are the copy right of original writers. The copyright of these materials are with the respective owners.Blogger is thankful to original writers.

 

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