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हिंदी कहानी ग़लतफ़हमी (Dr Sangita Jha) तीनों ने बालों के तिरछे जुड़े को खोल गुलाब के फूलों को बालों से निकाल नीचे फेंके. कुकी वहां खड़ी-खड़ी दिसंबर के महीने में भी पसीने से लथपथ हो रही थी.

by Engr. Maqbool Akram
June 9, 2023
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सचमुच ग़लतफ़हमी ही तो थी, पता नहीं किसे उन्हें या हमें. हम तो हम थे, बरसों बाद मिली तीन सहेलियां, जिनके ज़्यादातर सपने टूटे थे, या कहिए अपने सपनों की दुनिया में घुस ही नहीं पाए थे. तीनों ने एक दिन एक दूसरे के फ़ोन खटखटाए.

 

सुमी,“हाय कुकी, कैसी है? क्या हालचाल?”

कुकी,“कुत्ती, कमीनी, साली, चालबाज़ बोल इतने दिनों बाद, क्यों मेरी याद आई? कभी सोचा ही नहीं था मेरी सुमी इतना बदल जाएगी. जा मैं नहीं बात करती.’’

सुमी,
“
बात तो तू करेगी कुत्ती तूने जैसे बड़े फ़ोन घुमाए, बात करती है साली. मुझे बाद में पता चला तू तो सो कॉल्ड अपने पति के साथ एक एलिट क्लास की शादी में मेरे शहर आई थी. हां बाबा तू ठहरी पेज थ्री और हम गंवार, हमारा तुम्हारा तो कोई मेल ही नहीं है.’’

 

उसकी बात को वहीं काटते हुए कुकी,“बिलकुल चुप, चुप पगली, बिलकुल नहीं बदली. मैंने तो सोचा नानी बन कर मेरी सुमी अब मिसेज़ सुमिता बन गई होगी.’’

  

सुमी,‘‘चुप, चुप पहले मेरी बात सुन. गिले शिकवे थूक मैं एक धांसू प्रोग्राम बना रही हूं. सीमा के बेटे की शादी ताज बेंगॉल कलकत्ता में हो रही है. तुझे भी फ़ोन करेगी.
मैंने नीलू से बात की है, वो भी दुर्गापुर से पहुंच जाएगी,
फिर तो वो है, मैं हूं और तू, फिर समां रंगीन. सीमा तो शादी में रहेगी. अपन मिल कर हॉस्टल की पुरानी यादें ताज़ा करेंगे. अम्मा, सासू मां श्रीमती का लबादा उतार धमाल करेंगे.’’

दिल बल्लियों उछलने लगा बरसों बाद और झट उस बीस तारीख़ की तैयारियां शुरू हो गई. बाल रंग कर और फ़ेशियल ने उम्र को उठा पटका.

 

घर पर सब हैरान कि ये क्या हो रहा है. पतिदेव ने छेड़ा,“इतना सजने सवरने की क्या ज़रूरत है, आप तो ऐसी ही बड़ी ख़ूबसूरत हैं. हां कुछ कर सकती हो तो अपना कमर से बना कमरा यहां छोड़ जाओ.’’

 

दिल किया एक घूसा मारूं, बड़े आए हैं ! इनसे तो मेरी कोई भी ख़ुशी बरदाश्त ही नहीं होती. मुझे क्या करना है? शायद क्लास के कोई लड़के भी आएं, सजना तो बनता है. उन्हें भी तो पता चले, क्या खोया है उन्होंने. अकेले से भी बरसों बाद बात की.

 

इंतज़ार कब ख़त्म हुआ पता ही नहीं चला. इतनी तैयारी तो अपनी शादी से पहले भी नहीं की थी. चेन्नई से कलकत्ता की फ़्लाइट पकड़ी. एयरपोर्ट पर ही सुमी थी अपनी केतकी को लेने के लिए. जबकि सीमा बाक़ी लोगों को ले होटेल के लिए निकल चुकी थी. कुकी के लिए पति ने एक गाड़ी का इंतज़ाम करवाया था, अपने एक दोस्त के ज़रिए.

 

काफ़ी देर तक एक दूसरे को गले से लगाए रखी फिर हमेशा की तरह सुमी ने दूर किया,“स्टूपिड दूसरे शहर में आए हैं, कुछ तो तमीज़ रख, लोग हमें गे (समलैंगिक) ना सोच लें.’’ उसके बाद बड़ी शरारत से सुमी ने कुकी की पूरी बॉडी का मुआयना किया और फिर छक्का मारा, ‘‘अभी भी क़सम से ऐसी धरी है, कोई भी देख के लार टपकाने लगेगा.’’

 

उसके बाद होंठों का पाउट बना चूमने का इशारा किया. यूं तो कुकी भी कोई कम नहीं थी, लेकिन बरसों बाद अपने ऐसे डिस्क्रिप्शन ने कुकी को शर्म से लाल कर दिया.

 

तभी नीलू का फ़ोन कुकी के फ़ोन पर आया, “सारी बारात होटेल पर आ गई और ये सुमी तुझसे इश्क़ लड़ाने रुक गई. तुम लोगों का लाड़–प्यार ख़त्म हो गया हो तो जल्दी होटेल पहुंचो. एक साथ चेकइन करेंगे, पासपास के कमरे लेंगे.”

 

सुमी, “ये साली नीलू होगी, जल रही होगी. तु ही बोलती है नीलू बहुत प्यारी है. वेरी सेंसिबल, देख वहां बैचेन हुए जा रही है.’’ अब तक तो दो सहेलियों के मिलन को कार ड्राइवर भी देख रहा था.

 

“मैडम जल्दी चलिए, पीछे टैक्सी वाले हॉर्न बजा रहे हैं.” उसने भी ऐसा नज़ारा पहले कभी नहीं देखा था.

 

कार में बैठने के बाद शुरू हुए संवाद, कितनी कही अनकही बातें आपस में शेयर कीं और डिसाइड किया इन तीन दिनों को जीवन के बेहतर यादगार दिन बना देंगे. जैसे ही होटेल पहुंचे नीलू के साथ भी गले मिलने की प्रक्रिया हुई.

 

ये तीनों तो भूल ही गए कि ये सीमा और नरेश के बेटे की शादी में आए हैं. लगा ही नहीं कि ये बरसों बाद मिली हैं बल्कि लगा अभी भी वही हॉस्टल वाली लाइफ़ दोबारा मिली है. उनका कूदना देख सीमा के साथ आए उसके रिश्तेदार हैरान थे.

 

इस दौरान कितने बॉलिवुड गाने आए, कितनी पिक्चरें आईं, कितना कुछ हुआ, जो सबने अपने–अपने शहरों में अलग–अलग लोगों के साथ जिया, जो सारी चीज़ें ये लोग कभी एक साथ जिया करते थे. उन दिनों हीरो पिक्चर देख सारी सहेलियां रातभर नहीं सोईं और तो और हफ़्तों वो इनके दिलो दिमाग़ में छाया रहा.

 

ठीक उन्हीं दिनों की तरह सुमी ने कुकी को देखा और कहा,“बाप रे नीलू कुकी की आंखें तो देख, तेरे को नहीं लगता जैसे कजरारे कजरारे गाना इसकी आंखों के लिए बना है.’’ और वो कुकी की कमर पकड़ वहीं नाचने लगी. लोग दोनों को आश्चर्य से देखने लगे.

 

नीलू,“बस सुमी अब बस, सब तुम दोनों को देख रहे हैं प्लीज़! पहले हम चेक इन कर लेते हैं, बाक़ी बातें कमरे में. “तीनों के लिए दो जुड़े कमरों का इंतज़ाम सीमा ने पहले से ही किया था. नरेश और सुमी बिज़नेस पार्टनर थे, इससे उसका आना तो ज़रूरी था और उसने कुकी और नीलू को भी आने के लिए राज़ी कर लिया.

 

सुमी और नीलू तो नानी बन चुकी थीं लेकिन अभी कुकी के बेटे की शादी नहीं हुई थी. लेकिन यहां तो तीनों का ये हाल था मानो अभी अभी जवान हुए हों. इनकी मस्ती का सीमा और नरेश के रिश्तेदार भी बड़ा मज़ा ले रहे थे.

 

कुकी और सुमी नरेश की बहनों के पास गए और ज़ोर–ज़ोर से नरेश का हाथ पकड़ कर गाने लगे. “ले जाएंगे, ले जाएंगे तुम्हारे भाई को ले जाएंगे, रह जाएंगे रह जाएंगे लड़की वाले देखते रह जाएंगे.’’ बहनों ने भी नहले पर दहला मारा,“ले जाओ ले जाओ और अपनी सहेली की मार खाओ. हमने तो अपना प्यारा भाई कबका दूसरों के हवाले कर दिया है.’’

 

सीमा बेचारी को तो तो होश ही नहीं था, बेटे की शादी जो थी. वो सबका रूम अलॉट करने में लगी थी, लेकिन नरेश बीच–बीच में चुटकी ज़रूर ले रहा था. तीनों अपने–अपने कमरे में गए. कमरे में फ्रेश होने के बाद सब को लंच के लिए नीचे  हॉल में जाना था. वहां लड़की के मां–बाप और कुछ रिश्तेदार सारे लोगों से मिलने आए.

 

नरेश तो पूरे मूड में था, उसने सीमा के पांचों भाइयों का परिचय लड़की वालों से डी गैंग के रूप में कराया, जैसे–डी वन, डी टू, डी थ्री, डी फ़ोर और डी फ़ाइव. यहां डी मतलब देवता था, क्योंकि सीमा हमेशा कहती थी मेरे भाई देवता जैसे हैं.

 

सीमा ने एक बार अपनी बहन के लिए कहा,“ये मुझे जान से प्यारी है.’’ बस फिर क्या था नरेश ने तो उसका नामकरण जे एस पी बी (जान से प्यारी बहन) कर दिया. सीमा उसकी डब्ल्यू (वाइफ़) और हम तीनों डब्ल्यू बाई टू (हाफ़ वाइफ़ यानी साली आधी घर वाली) थे.

 

सीमा के भाई–भाभी भी अपने इस नामकरण से बड़े ख़ुश थे. लड़की वाले भी इस हंसी मज़ाक़ में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे. लेकिन ये तीनो सहेलियां अपनी ही दुनिया में थीं और इनकी मस्ती भी चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी.

 

लंच के बाद तीनों कमरे में पहुंचे, तभी एक शैतान सोच ने जन्म लिया कि क्यों ना यहां के रेड लाइट एरिया सोनागाछी चला जाए.

सुमी ने काफ़ी रिसर्च कर रखी थी कि पास में शोभा बाज़ार और हाथीबाग़ान मार्केट है. गाड़ी तो पास थी ही, ख़ूब सजे होंठो पे लाली गालों पर रूस आइ लाइनर मसकारा लगाकर तीनों बहुत कार्टून लग रही थीं.

 

कपड़े बदल कुकी और सुमी ने रानी पिंक कलर की साड़ी पहनी. नीलू ने डार्क ब्लू पहन ली. तीनों ने बालों को पीछे ले एक–दूसरे का तिरछा जूड़ा बनाया, जैसा ये फ़िल्मों में देखा करते थे. पहले तो तीनों एक–दूसरे को देख बहुत हंसे. फिर नीचे कार के पास जा पहुंचे.

 

सुमी,“ड्राइवर सोनागाछी चलो.’’

ड्राइवर अवाक रह गया,‘‘मैडम आप लोग सोनागाछी? की सुनछी बाबा आमी, भद्रो लोगेरा सोना गाछी जाबे आमियो कोनो दिन जाय नी. नोतून गोनडोगल की कोरबो बूझते पारछी ना (मैं क्या सुन रहा हूं, अच्छे लोग सोनागाछी नहीं जाते. मैं भी कभी गया नहीं, अब नया तमाशा क्या करूं समझ नहीं पा रहा हूं
).’’

 

कुकी बंगला समझती थी, ड्राइवर की बात सुन ठहाके मार कर हंसने लगी. उसने भी नहले पर दहला मारा,‘‘की भापछिस आमरा केनो जाछी, आमरा रिसीरच कोछि उन देर लाइफ़ केमोन आछे, ओर केमोन थाके (तुमने क्या सोचा हम लोग उनके जीवन पर रिसर्च कर रहे हैं. वो कैसे रहते हैं).’’

 

वो बेचारा इन सजी–धजी औरतों को मुंह खोले देखता रहा.

“ठीक है चालो जिधर चलना है चालो, आप लोग तो बड़ा लोग. मेरा क्या बिसात जो आप को समझाएगा.’’ ड्राइवर धीरे से बोला.बस फिर क्या था हम लोग अपनी मंज़िल की ओर गाते गाते निकल पड़े.

“ज़िंदगी एक सफ़र है सुहाना, यहां कल क्या हो किसने जाना.’’ सचमुच कल तो इसका इल्म भी नहीं था कि आज सोनागाछी की रंगीन दुनिया की सैर की जाएगी.

 

रास्ते से गुलाब के लाल फूल ख़रीदे उन्हें बड़े यत्न से बालों में लगाया. सचमुच कुकी और सुमी तो धनाढ्य कॉल गर्ल लग रही थीं, लेकिन बेचारी नीलू अपनी पतली कमर की वजह से अलग ज़रूर लग रही थी पर एकदम गाछी वाली नहीं लग रही थी. कुकी को छोड़ दोनों डर भी रहे थे.

 

सुमी,“ये साली बिलकुल ही नहीं बदली. इसकी आंखों से ही इसकी शरारत झलकती है पता नहीं राहुल जीजू इसे कैसे झेलते हैं.’’

 

कुकी,“और हां ये तो दूध से धुली मेम हैं, विष्णु सर से पूछो अपनी लक्ष्मी की कैसे पूजा करते हैं. याद है कॉलेज में भी ये ऐसी ही मस्ती करती थी और बाद में ऐसा चोला पहन लेती थी मानो शांति की देवी हो. बड़ी आई मुझपर कॉमेंट करने वाली.’’

 

नीलू,“चुप! बिलकुल चुप. कोई लड़ाई झगड़ा नहीं. हम अपने एड्वेंचर पर निकले हैं, जो कभी किया नहीं था. हम तीनों के लिए नया और अपनी तरह का अनोखा है.’’

 

ड्राइवर विश्वजीत सोच रहा था कि पैसे वालों की ज़िंदगी भी क्या ज़िंदगी है? साला जिस जगह लेडीज़ मजबूरी में पेट भरने के लिए जाता है, ये लोग मस्ती के लिए जाता है.

 

तीनों दोस्तों ने पुरानी कई बातों की जुगाली की. नरेश उनका क्लास मेट था और अब सीमा का पति और सुमी का एक अच्छा दोस्त. विष्णु सर कॉलेज में सबके सीनियर थे. इससे सुमी और सीमा को कॉलेज के समय के लड़कों के काफ़ी राज़ मालूम थे, जो आमतौर पर लड़कियों तक नहीं पहुंचते थे.

 

आज बातों ही बातों में सब राज अब खुल रहे थे. बाप रे कुकी और नीलू तो शायद दूसरी दुनिया की बातें सुन रहे थे. उनके हीरो और रेड लाइट एरिया! सचमुच दिल को दुखाने जैसी बातें थी. चाह कर भी उस ज़माने में कई कारणों से दिल को समझाना पड़ा.

 

बॉयेज़ हॉस्टल की ऐसी दास्तान, डर लगने लगा कि साथ पढ़ने वाले जिनके साथ कई सपनों को जिया, ऐसे हैवान.सुमी,“डोंट बी जजमेंटल इट्स कॉमन और डिमांड ऑफ़ एज, डोंट थिंक अवर हसबैंड्स आर देवता. कौन हमें बताएगा.’’

 

जीवन अब से तब में झूलने लगा. नीलू और कुकी तो सारी शैतानी भूल अपने–अपने क्रश की कल्पना में डूब गए. क्या वो भी! छी:छी: ना ना ये तो हो ही नहीं सकता. बातों–बातों में हाथी बाग़ान मार्केट आ गया.

 

ड्राइवर ने फिर चेताया,“मेम शाब लोग आमि बोले दीछी किंतु ,वोट भालो एरीया ना, रिशक अपना देर अभी टाइम है, वापश जाएगा तो चालो ( मेम साब वो अच्छी जगह नहीं है, मैं आपको आगाह कर रहा हूं. आपकी जवाबदारी अभी भी समय है, वापस चलिए).’’कुकी और नीलू ने सोचा अच्छा यही है कि वापस चलें.

 

पर तभी पता नहीं कैसे एक विचित्र घटना घट गई जो हमेशा कुकी के साथ होती है. हाथी बाग़ान बाज़ार में एक नक़ली बालों की दुकान थी. कुकी ने जिद की उसे हेयर एक्सटेंशन (नक़ली बाल ) लेने हैं. सुमी चिल्लाई,“अब ये क्या पागलपन सोनागाछी में ही रहना है क्या? ये उलटी सीधी चाह क्यों वो बाल कहां लगाएगी?’’

 

फिर तीनों उस विग वाली दुकान में गए. कुकी ने सारे विग पहन कर दिखाए. सुमी और नीलू तो पेट पकड़–पकड़कर हंसने लगे. उनकी नज़रों में वो कभी फ़िल्मों की वैम्प और किसी विग में एक्स्ट्रा कैबरे डान्सर दिख रही थी. जब कुकी को मिरर दिखाया तो ख़ुद को देख वो भी पेट पकड़–पकड़ हंसने लगी.

 

सचमुच ये अजब ग़ज़ब नज़ारा था. दुकानदार भी इस अजब–ग़ज़ब तिकड़ी को देख हैरान था. कितना भी छुपाओ उम्र तो झलकती ही थी, उस पर से मेकअप, लाल गुलाब और स्टाइल वाली बातें. ये तो कितना भी रंग ले, सोनागाछी की नहीं हो सकती.

 

अभी ये सब चल रहा था कि कुकी ने रट लगाई,“जल्दी बाहर चलो, मुझे होटेल वापस जाना है.’’

सुमी,“अब ये क्या? आर यू मैड, ये कौन सी नई बात!’’

कुकी,“अरे पहले बाहर निकलें, ड्राइवर को फ़ोन करें, फ़ास्ट इमर्जेन्सी कान्ट वेट. बहुत ज़ोर के मुझे नम्बर टू जाना है.’’

 

सुमी,“ये देख उस दुकान के पीछे जाके कर ले. हम लोग सामने खड़े हो जाएंगे, किसी को नहीं जाने देंगे.’’

कुकी,“पागलो मुझे सूसू नहीं पॉटी आई है. मैं रोक नहीं सकती.” सुमी ने ड्राइवर को फ़ोन घुमाया.

ड्राइवर,“मैडम जी हम तो दूर में है, घूरे आसचीं एकटू टाइम लाग बे (मैडम हम दूर हैं, घूम के आना पड़ेगा, थोड़ा टाइम लगेगा).’’

सुमी,“दिस ड्राइवर इज़ मैड यार क्या–क्या बंगाली में बोले जा रहा प्लीज़ कुकी यू ओन्ली डील.” कुकी ने फ़ोन किया तो बोला,“दोस मिनिट.’’

 

बाप रे अंदर का खाया हुआ तो बाहर निकलने के लिए बेताब था. दस मिनट तो दस बरस की तरह थे. कुकी तो कहीं भी बैठना चाहती थी, खड़े रहना भी नामुमक़िन था. बाहर एक स्टूल भी नहीं था. अचानक कुकी को एक हाथ से खिंचने वाला रिक्शा दिखा. पेट पकड़ दौड़ कर उस पर जा बैठ गई. उस समय पॉटी को बाहर निकलने से बचाने का यही एक उपाय लगा.

 

अभी बैठे दस सेकंड भी नहीं हुए थे, उसका मालिक दौड़ता हुआ आया,“उरी बाबा एटा की, भोद्रो लोग की कोरछेन आमि तो गोरिब मानुष, आमार रिक्शा होच्छे आमार मां, आमा के खावा दे. आपनी की टूटे फेलबेन? नामान मैडम (ये क्या हो रहा है? भले लोग, आप लोग क्या कर रहे हैं? मैं ग़रीब आदमी हूं, मेरा रिक्शा मेरी मां है. मुझे खाना देता है, इसे क्या तोड़ देंगे. उतरिए मैडम).’’

 

कुकी ने बंगाली में ही अनुरोध किया,“काका बाबू आमार पेटे ख़ूब बेथा कोरछे, एकटू बोशते देन. ड्राइवरेर जोन्ने वेट कोरछि, आशुक आमि नामीये जाबो. आपना के बोशेर जोन्ने टाका दिए दीच्छि (काका जी मेरे पेट में बहुत दर्द है बैठने दीजिए , ड्राइवर का वेट कर रहे हैं. आते ही चले जाएंगे. आपको बैठने का पैसा भी दे देते हैं ).’’


ऐसा कह कुकी ने सुमी से उसे बीस रुपए दे देने के लिए कहा. हाथ से खिंचने वाला रिक्शा पहली बार देखा, उस पर बैठ भी गई. तभी रिक्शे वाले को एक सवारी दिखी और उसने कुकी को नीचे उतरने को कहा. बैठने से पोटी थोड़े देर के लिए रुक–सी गई थी. खड़े होते ही फिर डर लगा कि कहीं कपड़ों में ही तमाशा ना हो जाए.

 

सुमी की खीझ चरम सीमा पर पहुंच गई थी. अब तो सोनागाछी का भूत भी उतर गया था और सारा ध्यान इस समस्या से बाहर कैसे निकला जाए पर था.

 

सुमी,“मुझे मालूम था ये कुकी कभी सुधरेगी नहीं, क्या ज़रूरत थी लंच में भूखों की तरह झपटने की. थोड़ा भी सबर नहीं. ये भगवान पोटी अगर बाहर आ गई तो तुझे यहीं छोड़ हम लोग उबर पकड़ चले जाएंगे. ऐसा ही था तो अडल्ट डायपर बांध कर क्यों नहीं निकलती.’’

 

सचमुच कुकी की पूरी ज़िंदगी में पहली बार ऐसा वाक़या हो रहा था. बचपन में भी मां को कभी नहीं कहा कि अम्मा घर चलो पोटी आई है. नीचे वाले भाग को किसी तरह से उलटा प्रेशर लगा कर पोटी को रोक कर रखा था.

 

इस बीच तीनों ने बालों के तिरछे जुड़े को खोल गुलाब के फूलों को बालों से निकाल नीचे फेंका. पीछे से एक मनचला चिल्लाया,‘‘की होबे मोदी जी का स्वच्छ भारोत.’’ कुकी वहां खड़ी–खड़ी दिसंबर के महीने में भी पसीने से लथपथ हो रही थी.

 

ड्राइवर भी ट्रैफ़िक में था और क़रीब पंद्रह मिनट में आया. वो पंद्रह मिनट जीवन के सबसे कठिन मिनट थे. ड्राइवर के आते ही कुकी दौड़ कर सामने की सीट में बैठ गई और दोनों को पीछे बैठने कह कहा,“जल्दी होटेल वापस चलो मैं किसी तरह मैनेज करती हूं.’’

 

सुमी,“सारा प्लान चौपट कर दिया और बड़ी आई है मैनेज करने वाली. ड्राइवर आसपास कोई होटेल देखो. हम लोग कॉफ़ी पी लेंगे और ये अपना पेट ख़ाली कर लेगी. “

 

ड्राइवर की तो जान सूख गई, वो बेचारा घबराकर बोला,“मेमशाब हम पइलेइ बोला येटा भालो जगा नाई, इदर अच्छा मानुष लोग नेई. मुशीबोत होने सोकता, सोत्ति मिथ्थे कोथा बोले नाई. विश्वास कोरून, एखेने भालो होटेल पावा जाबे ना, आपनार होटेल जेते होबे आमार कोथा सुनेन (मेमसाब मैं तो पहले ही कह रहा था, ये अच्छी जगह नहीं है.

 

यहां भले लोग नहीं रहते. मुसीबत हो सकती है, मेरा विश्वास करिए. यहां कोई अच्छा होटेल नहीं मिलेगा. मेरी बात सुनिए, आप लोगों के होटेल ही चलते हैं).’’

 

सुमी,“पगला गया है क्या, ये मैडम को ज़ोरों की लेट्रिन यानी पैखाना आया है. होटेल नहीं ले गया तो तेरी कार सुलभ शौचालय बन जाएगी. फिर धोते रहना. ये मैडम जम के पनीर पसंदा, मंचूरीयन और मशरूम खा के निकली हैं. कार से उसकी ख़ुशबू जाने में महीने लग जाएंगे.’’

ड्राइवर,“ओरे बाबा, एरोकोमो होये. आमार माथा घुरछे, चालो होटेल खुजता है (बाप रे, ऐसा भी होता है. मुझे चक्कर आ रहा है, ठीक है होटेल ढूंढ़ते हैं).’’
थोड़ी दूर जाने पर एक पुरानी बिल्डिंग दिखी, जिस पर लिखा था ‘फ़िश होटेल’. जान में जान आई. कुकी तो किसी हाल में रुक नहीं सकती थी, कार रुकते ही होटेल रिसेप्शन की ओर भागी.

 

वहां तीन–चार दलाल की तरह के लोग बैठे हुए थे. उसने पर्स ने निकाल अपना बिज़नेस कार्ड उन्हें दिया और कहा,“आमरा पार्टीर जोन्ने एक टा हाल खुजछि, आपना टैरीफ चाई (हम पार्टी के लिए एक हाल ढूंढ़ रहे हैं, आपका टैरिफ़ चाहिए).’’

 

तब तक दोनों मित्र भी आ गई और उन्होंने कमान अपने हाथों में ली. कुकी ने उन्हें रेस्टरूम के लिए पूछा. जो उन्हें समझ नहीं आया, तो उसे टॉयलेट बोलना पड़ा. उनमें से एक आदमी बोला,“एक फ़्लोर ऊपर चढ़ दान (दाहिना) जाइए, वहीं है.”

 

सारी व्यथाएं यहीं ख़त्म नहीं हो जाती. अभी तो शुरू हुई थी. कुकी को हर पल लग रहा था कि सब कुछ बाहर आ जाएगा. ऊपर तो पूरी तिलस्मी गुफा सी थी. वो पूरी तरह से डर गई. तब पता चला नारी को अपनी इज़्ज़त हर उम्र में प्यारी होती है. उस अंधेरी गुफा में कोने में जाने पर एक शौचालय दिखा, जो बहुत ही गन्दा था.

 

किसी तरह मुंह में रुमाल लगा पास पहुंची तो पाया, नीचे कई इस्तेमाल किए कॉन्डम गिरे हुए थे. भाग भी नहीं सकती थी, फ़्लश भी नहीं काम कर रहा था. बाहर एक गन्दी बालटी मग और एक वॉश बेसिन था. किसी तरह मशक़्क़त लगा वॉश बेसिन का नल खोला, मग की सहायता से बालटी भरी और शौचालय में किसी तरह कपड़े ऊपर कर मल विसर्जन किया.

 

किसी तरह ख़ुद को साफ़ कर नीचे आई. नीचे शायद एक आदमी दोनों मित्रों को हाल दिखाने ले गया था. वो सामने रखी टूटी चेयर में बैठ गई. अंदर की कुकी फिर जाग उठी, इतने भयानक इक्स्पिरीयन्स के बाद भी उसने उस दलाल से दिखने वाले आदमी से पूछ लिया,“आपके यहां रूम्स के क्या रेट हैं?’’

 

उस आदमी के जवाब ने तो कुकी के होश उड़ा दिए,“आप बोलिए आपका क्या रेट है? हम आपको कमरा देगा, खाना देगा और पोईशा भी देगा. कस्टमर भी देगा, आपका जैसे कई मेमशाब इधर आता है. शोब सीक्रेट, कोई जानने नोई शकेगा.’’

 

कुकी तो बिना रुके बाहर भागी और ज़ोरों से सांस लेने लगी. उसे देख बाहर खड़े देख बिल्डिंग के दो वॉचमैन दौड़े आए,“क्या हुआ मैडम जी?’’कुकी झल्लाई,“अंदर अच्छा टॉयलेट नहीं है क्या?”

 

दोनों शायद बिहार से थे और अंदर वालों से ज़्यादा शातिर थे, उनका जवाब,“क्या हुआ रानी कोई बदमाशी किया क्या?
धंधा करने आती है और नखरा दिखाती हैं. यहां आजा हमारे पास जो चाहिए वो करा देते हैं. पैसा नहीं ना है पास में पर मज़ा पूरा देंगे.”

 

इतनी बड़ी ग़लतफ़हमी, ख़ैर ग़लती तो हमारी ही थी. फ़िश होटेल तो था ही मछलियों को जाल में फंसाने के लिए. तभी फ़ोन की रिंग बजी,‘‘कुकी रिसेप्शन पर ही रुकना हम आ रहे हैं, हमारा काम हो गया.’’ कुकी अब बहुत घबरा रही थी कि अपना बिज़नेस कार्ड क्यों दिया. वो होटेल के बाहर के दरवाज़े पर खड़ी थी, जहां से रिसेप्शन दिखता था.

 

जैसे ही दोनों दिखे जान में जान आई और उनकी तरफ़ लपकी. सुमी ने मोर्चा सम्भाला था,“थैंक यू सर, हम जैसा होगा आपको इन्फ़ॉर्म करेंगे.” जल्दी से तीनों बाहर आई. सुमी ने कुकी को मैसेज किया,‘नो डिस्कशन इन फ्रंट ऑफ़ ड्राइवर’ सीधे होटेल पहुंच कर दम लिया.

 

होटेल पहुंच कर कुकी का मन किया चिल्ला–चिल्लाकर रोए. ऐसी ग़लतफ़हमी तो ज़िंदगी में कभी भी किसी को नहीं हुई थी. कॉलेज के ज़माने में भी ये तीनों कभी भी फ़ास्ट गर्ल भी नहीं मानी गई और आज उसकी वजह से उन तीनों को उस ग़लतफ़हमी का शिकार होना पड़ेगा.

 

तीनों अपने–अपने शहरों की जानी मानी हस्तियां और एक छोटी–सी चाहत कि सोनागाछी चला जाय, उनकी ज़िंदगी देखी जाय और उस पर कुछ बौद्धिक डिस्कशन ने उन्हें कहां पहुंचा दिया. उस पर से बक़ायदा नाम पता लिखा बिज़नेस कार्ड जो उनके पास था.

 

सेल फ़ोन की घंटी उसे डरा रही थी कि कहीं फ़िश होटेल की कॉल तो नहीं है. वो तो सुमी और नीलू की ग्रिलिंग का उसे पता नहीं है, ना ही उसने अपना इक्सपीरियंस उनसे शेयर किया, क्योंकि इतना डर जो गए थे और तो और उस ड्राइवर, जो राहुल के दोस्त का था, ने अपने मालिक को तो कहीं सोनागाछी, हाथी बाग़ान और फ़िश होटेल की बात तो नहीं बता दी.

 

तीनों बहुत डरे हुए थे, उस पर तैयार होकर आज संगीत और कल शादी भी अटेंड करनी थी. कुकी जब रिसेप्शन पर अपने दोनों दोस्तों की राह देख रही थी तभी वहां दो भद्र पुरुष उसे होटेल से बाहर निकलते हुए दिखे थे और उन्होंने भी उसे बड़े ध्यान से देखा था. पूरी शाम मायूसी छाई रही.

 

नीचे से फ़ोन पर फ़ोन आ रहे थे कि जल्दी संगीत के लिए हाजरी लगाई जाए. सब लोग उन तीनों का बेसब्री से नीचे इंतज़ार कर रहे थे, तीनों उस पूरे ग्रुप की जान जो थीं. सारी बुरी सोच को पीछे झटक तीनों तैयार हुए. इस अवसर के लिए बनाए गए फ़्लोर लेंथ गाउन पहने और चेहरे की रंगाई पोताई की. दोपहर और रात के गेटअप में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ था.

 

ये तीनों सचमुच अप्सराएं दिख रही थीं, उम्र तो ना जाने कहां ग़ायब. मन की सारी परेशानियों को झटक तीनों नीचे उतरीं. संगीत के लिए हॉल बहुत ही अच्छे तरीक़े से फूलो से सजा हुआ था. दूल्हा दुल्हन तो परी कथाओं के राजकुमार और राजकुमारी लग रहे थे. माहौल देख तीनों का डर छूमंतर हो गया.

 

एक–एक कर के एक परफ़ॉरमेंस होते जा रहे थे. इन लोगों ने भी ‘माई रे माई मुंडेर पे तेरी– –
-’
पर एक डान्स तैयार किया था. इनकी बारी आने के पहले केतकी ने महसूस किया कि एक तीखी नज़र उसका पीछा कर रही है. ध्यान से देखने पर पैरों तले ज़मीन खिसक गई.ये वही महाशय थे जिन्होंने उसे फ़िश होटेल पर देखा था.

 

ग़नीमत सुमी और नीलू को उन्होंने नहीं देखा. ये महाशय बड़ी याचनामय नज़रों से कुकी को देख रहे थे. कुकी उम्र की इस ढलान पर भी बार–बार अपने सीने को शॉल से ढंकने की अथक कोशिश कर रही थी और सुमी बार–बार शॉल को झटक कर उसे डांट रही थी. ‘‘इतने सुंदर फ़्लोर गाउन का शो क्यों बिगाड़ रही है और इतना ढंकने की कोशिश क्यों?”

इधर शायद वो महाशय सोच रहे थे कि सुबह और रात में इतना फ़र्क़! अब ये भद्र जामा क्यों? एक दो बार आकर उन्होंने कुकी को अपनी कोहनी से कोचककर छेड़ने की कोशिश भी की. उनकी आंखे लगातार कुकी को देख रही थीं. कुकी चुपचाप अपनी आंखें झुकाए बैठी थी. सुमी बार–बार छेड़ रही थी,“किससे शरमा रही है, फिर वो ही ग्रो मैम आपकी नहीं, आपके बेटे की शादी हो रही है.

 

सासू मां हैं हम सब प्लीज़ ये नाटक बंद कर. सबका मज़ा ख़राब ना कर मेरी माता.’’ कुकी समझ ही नहीं पा रही थी कि क्या करे फिर उसने फिर वही सुबह वाली इमर्जेन्सी का बहाना किया इस बार पॉटी नहीं कै यानी वोमिटिंग का. सुमी फिर चिल्लाई,“बाप रे इसका कुछ नहीं हो सकता, शादी में आई है या हगने, मूतने? अब क्या फिर फ़िश होटेल जाएगी उलटी करने.’’

 

कुकी उसके हाथ से रूम की चाबी ले रूम की ओर भागी. उसके पीछे सुमी और नीलू भी आए. कमरे में पहुंच डर के मारे कुकी ने जो थोड़ा बहुत खाया था सब उगल दिया. उसकी सांस भी ज़ोरों से चल रही थी, अब सुमी और नीलू भी परेशान से हो गये थे.

 

सुबह जम के पॉटी और अब जम के उलटी से कुकी बड़ी कमज़ोर लग रही थी. ऊपर से नीचे पसीने–पसीने हो गई कुकी को देख दोनों सहेलियों को भी पसीना आ गया. इधर मजनू महाशय अपनी छम्मकछल्लो यानी कुकी को एड़ी–चोटी का ज़ोर लगाकर ढूंढ रहे थे.


उन्हें लग रहा था उनसे पहले तो कोई मनचला चिड़िया को तो नहीं उड़ा ले गया. परेशानी ये थी कि वो किसी से पूछ भी नहीं सकते थे. इधर सुमी परेशान सी नरेश के पास पहुंची और कुकी की तबियत ख़राब होने की बात बताई. उसे ख़ुद भी बहुत एसीडीटी हो रही थी, तुरंत उनके कमरे में आया. कुकी काफ़ी बीमार–सी दिख रही थी उसे भी ख़राब लगा और उसने लड़की के पिता को फ़ोन कर एक डॉक्टर की मांग की.

 

लड़की के पिता ने बताया कि संगीत में उनका एक मित्र आया है जो पेशे से डॉक्टर है. उसे लेकर वो भी कुकी के कमरे में पहुंचे. डॉक्टर को देख कुकी तो ज़ोर–ज़ोर से चिल्लाने लगी “नहीं–नहीं मैं बिलकुल ठीक हूं, प्लीज़ आप सब संगीत में जाइए. मेरे लिए आप लोगों को अपना प्रोग्राम ख़राब करने की ज़रूरत नहीं है.’’

 

लड़की के पिता ने डॉक्टर से बंगाली में कहा,“डागधर बाबू आपना के मैंडमेर काछे थाकते होबे. आमरा फ़ंक्शने आछी, जोदी दरकार होये डेकेनेन (डॉक्टर साहेब आपको मैडम के पास रहना होगा, हमलोग फ़ंक्शन में जा रहे हैं, यदि ज़रूरत पड़े तो बुला लीजिएगा).’’

 

बाप रे अब कुकी को तो काटो तो ख़ून नहीं. डॉक्टर बाबू ही तो वो मनचले थे जिनकी वजह से उसे उलटी हुई थी. कुकी झट खड़ी हो गई और चिल्लाने लगी,“मैं एकदम ठीक हूं चलो संगीत में चलते हैं. मैं कोने में बैठ जाऊंगी.” इसके बाद नरेश ने कहा,“अरे डॉक्टर बाबू ये हमारी फ्रेंड केतकी चेन्नई की पेज थ्री लेडी.

 

इनके पति हैं राहुल ढोलकिया वेरी सीनियर एडवोकेट ऑफ़ चेन्नई. बहुत दिनों सुप्रीम कोर्ट में भी थे और मैम भी एनटरप्रेनर हैं. इनका एनजीओ भी अंडर प्रिविलेज्ड लेडीज़ के लिए काम करता है.’’

 

अब मुंह फाड़ने की बारी डॉक्टर बाबू की थी. ये ठरकी बाबू फ़िश होटेल और केतकी का लिंक समझ ही नहीं पा रहे थे. राहुल का नाम तो सभी जानते थे उस पर से उसकी बीबी को कोहनी मारना और बुरी दृष्टि डालना, अब तो डरने की बारी डॉक्टर बाबू की थी. कुकी नरेश की बात से थोड़ी आश्वस्त हुई और घबराहट भी कम हुई.

 

सब लोग एक साथ नीचे आए और सबने मिल कर ख़ूब धमाल मचाया. तीनों सहेलियों ने अपनी जगह पर ही खड़े होकर ख़ूब डान्स किया. कुकी ने तो लगभग समा ही बांध दिया. अभी तक इधर–उधर डोल रहे डॉक्टर बाबू डर के मारे पीछे जा कर बैठ गए.

 

कुकी ने भी सोचा वो क्यों उनकी ग़लतफ़हमी दूर करे, वो ख़ुद भी तो डॉक्टर उस पर से प्रॉपर कलकत्ता का होते हुए फ़िश होटेल गया था उसका क्या?

 

कुकी और फ़िश होटेल तो एक ऐक्सिडेंट पर डॉक्टर बाबू तो जान बूझ कर गए थे. लम्बी लम्बी सांस ले कुकी ने सारी नेगेटिव सोचों को निकाल फेंका और मस्ती में लग गई. रात को राहुल का फ़ोन आया,“और हाउ आर यू? स्वीट हार्ट कहां–कहां गई? विक्टोरिया मेमोरीयल! इट्स वन ऑफ़ इट ऑफ़ इट्स ऑन काइंड मारबलस और काली मंदिर, अरे यार साइंस सिटी, हावड़ा ब्रिज.

 

यू मस्ट सी नथिंग लाइक कैल…’’
कुकी की तो डर के मारे घिग्गि बंध गई. राहुल सेंट ज़ेवियर्स और उसके बाद प्रेज़िडेन्सी कलकत्ता से पढ़े हुए हैं. झूठ भी नहीं बोल सकती. कहीं उसके फ़िश होटेल की बात ड्राइवर ने राहुल के दोस्त को बता दी तो! फिर राहुल की अवाज़,“क्या हुआ चुप क्यों डार्लिंग मन नहीं लगा मेरे बिना बोलो तो मेरी कुकी चुप बिलकुल अच्छी नहीं लगती.

 

बेटा भी कम्प्लेन कर रहा है मम्मु को क्या हो गया, कोई ख़बर नहीं दिस इज़ नॉट ऑफ़ हर काइंड. अभी तक तो दस कॉल आ जाते. या तो मम्मु बहुत बिज़ी है या फिर परेशान. बोलो क्या परेशानी है?” कुकी धीरे से बोली,“ना ऐसी कोई बात नहीं, सब ठीक है दोस्तों में ऐसी मशगूल हुई कि सब भूल गई. सॉरी, बेटू को बता देना आई ऐम आलराइट. ठीक है अभी डान्स के बाद बहुत थकी हूं, कल बात करेंगे.’’

 

रातभर सपने में उस डॉक्टर बाबू को अपनी ओर झपटते हुए पाया. सुबह जब उठी तो सुमी को अपने सिर के पास पाया,“ये सोनागाछी की शान उठ, ग्राहक इंतज़ार में हैं. उठिए और मुजरा करिए मोहतरमा.’’ इसके बाद वो ज़ोर–ज़ोर के गाने लगी,“दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिए, बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए.’’

 

बस फिर क्या था किसी तरह नॉर्मल हुई कुकी. फिर झटके खाने लगी और डर के मारे कांपने लगी. उसने फिर डरते–डरते सुमी और नीलू को बताया कि उस मलचले डॉक्टर ने उसे फ़िश होटेल में देख लिया था जब वो रिसेप्शन पर उन दोनों इंतज़ार कर रही थी. यहां उसने कुकी को पहचान लिया और कल रात संगीत में उस डॉक्टर ने उसे तंग भी किया.

 

अब सुमी ने मोर्चा संभाल कुकी को ज़ोर के डांटा,“तो कल क्या मुंह में लेइ चिपका के बैठी थी. बाप रे लड़की से औरत बन गई है पर ज़रा भी अक्ल नहीं. अभी भी कमसिन कन्या जैसे बिहेव करती है. वो क्या तेरी इज़्ज़त उतार लेगा और कौन–सा तो धंधा करने गई थी फ़िश होटेल, जो डर के मारे कांप रही है.’’ सुमी ने तुरंत नरेश को फ़ोन लगा कर रूम में बुलाया और सारी बात बताई.

 

नरेश का तो हंस–हंसकर बुरा हाल हो गया, उसने कुकी को गले लगा उसका सर थपथपाया और कहा,“ईस्ट ऑर वेस्ट अवर कुकी इज़ दी बेस्ट, लेट हर बी लाइक व्हाट शी इज़. चलो अब तुम लोग इसे सम्भालो और मैं मनचले डॉक्टर की ग़लतफ़हमी भी दूर करता हूं और साथ में ख़बर भी लेता हूं. कुकी स्माइल बी ब्रेव.’’

 

शाम की शादी में सबने काफ़ी एंजॉय किया और तो और कुकी भी काफ़ी नॉर्मल हो गई थी. डॉक्टर बाबू शायद अपनी हरक़तों की वजह से डर गए थे इससे पूरी शादी से नदारद थे.

 

नरेश ज़रूर बीच–बीच में आकर कुकी को छेड़ कर चला जा रहा था. इस कलकत्ता ट्रिप को महीनों बीत गए लेकिन अभी भी कभी कुकी की फ़ोन की घंटी बजती है तो कुकी डर जाती है कि कहीं फ़िश होटल से तो फ़ोन नहीं है, अपना बिज़नेस कार्ड जो वहां छोड़ आई थी.

The End

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Engr. Maqbool Akram

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I am, Engineer Maqbool Akram (M.Tech. Mechanical Engineer from AMU ), believe that reading and understanding literature and history is important to increase knowledge and improve life. I am a blog writer. I like to write about the lives and stories of literary and historical greats. My goal is to convey the lives and thoughts of those personalities who have had a profound impact on the world in simple language. I research the lives of poets, writers, and historical heroes and highlight their unheard aspects. Be it the poems of John Keats, the Shayari of Mirza Ghalib, or the struggle-filled story of any historical person—I present it simply and interestingly.

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