Blogs of Engr. Maqbool Akram

Blogs of Engr. Maqbool Akram

Menu
  • Home
  • Stories
  • Poems & Poets
  • History
  • Traveloge
  • Others
  • About us
Home Uncategorized

हरनाम कौर-(मंटो )एक चीख़ निहाल सिंह के हलक़ से निकली और दो क़दम पीछे हट गया। हरनाम कौर! ज़नाना लिबास, सीधी मांग, काली चुटिया..और बहादुर होंट भी चूस रहा था।

by Engr. Maqbool Akram
August 7, 2023
in Uncategorized
0
491
SHARES
1.4k
VIEWS
Share on FacebookShare on Twitter

निहाल सिंह को बहुत ही उलझन हो रही थी। स्याह–व–सफ़ैद और पत्ली मूंछों का एक गुच्छा अपने मुँह में चूसते हुए वो बराबर दो ढाई घंटे से अपने जवान बेटे बहादुर की बाबत सोच रहा था।

 

निहाल सिंह की अधेड़ मगर तेज़ आँखों के सामने वो खुला मैदान था जिस पर वो बचपन में बंटों से कबड्डी तक तमाम खेल खेल चुका था। किसी ज़माने में वो गांव का सब से निडर और जियाला जवान था। क़िमाद और मकई के खेतों में मैं ने उस कई हटीली मुटियारों को कलाई के एक ही झटके से अपनी मर्ज़ी का ताबे बनाया।

 

थूक फेंकता था तो पंद्रह गज़ दूर जा के गिरती थी। क्या रंगीला सजीला जवान था। लहरिया पगड़ी बांध कर और हाथ में छूरी लेकर जब मेले टेले को निकलता तो बड़े बूढ़े पुकार उठते। किसी को सुंदर जाट देखना है तो सरदार निहाल सिंह को देख ले। 

सुंदर जाट तो डाकू था। बहुत बड़ा डाकू जिस के गाने अभी तक लोगों की ज़बान पर थे लेकिन निहाल सिंह डाकू नहीं था। उस की जवानी में दरअस्ल कृपाण की सी तेज़ी थी। यही वजह है कि औरतें उस पर मरती थीं। हरनाम कौर का क़िस्सा तो अभी गांव में मशहूर था कि उस बिजली ने कैसे एक दफ़ा सरदार निहाल सिंह को क़रीब क़रीब भस्म कर डाला था।

 

निहाल सिंह ने हरनाम कौर के मुतअल्लिक़ सोचा तो एक लहज़े के लिए उस की अधेड़ हड्डियों में बीती हुई जवानी कड़–कड़ा उठी। क्या पतली छमक जैसी नार थी। छोटे छोटे लाल होंट जिन को वो हर वक़्त चूसती रहती……..

 

एक रोज़ जब कि बेरियों के बेर पके हुए थे। सरदार निहाल सिंह से उस की मुडभेड़ हो गई……..
वो ज़मीन पर गिरे हुए बेर चुन रही थी और अपने छोटे छोटे लाल होंट चूस रही थी। निहाल सिंह ने आवाज़ा कसा……..
कीहड़े यार दातता दुध पीता….
सड़गया्यं लाल बुल्लियां?

 

हरनाम कौर ने पत्थर उठाया और तान कर उस को मारा। निहाल सिंह ने चोट की पर्वा ना की और आगे बढ़ कर उस की कलाई पकड़ ली। लेकिन वो बिजली की सी तेज़ी से मच्छी की तरह तड़प कर अलग हो गई और ये जा वह जा।

 

निहाल सिंघ को जैसे किसी ने चारों शाने चित्त गिरा दिया। शिकस्त का ये एहसास और भी ज़्यादा हो गया। जब ये बात सारे गांव में फैल गई।

 

निहाल सिंह ख़ामोश रहा। उस ने दोस्तों दुश्मनों सब की बातें सुनीं पर जवाब ना दिया। तीसरे रोज़ दूसरी बार उस की मुडभेड़ गुरुद्वारा साहिब से कुछ दूर बड़की घनी छाओं में हुई। हर नाम कौर ईंट पर बैठी अपनी गुरगाबी को कीलें अंदर ठोंक रही थी। निहाल सिंह को पास देख कर वो बिदकी। पर अब के उस ने कोई पेश ना चली।

 

शाम को जब लोगों ने निहाल सिंह को बहुत ख़ुश ख़ुश ऊंचे सुरों में फ़ी हर नाम कोरे, ओ–नारे…. गाते सुना तो उन को मालूम हो गया। कौन सा क़िला सर हुआ है…. लेकिन दूसरे रोज़ निहाल सिंह ज़िना बिलजब्र के इल्ज़ाम में गिरिफ़्तार हुआ और थोड़ी सी मुक़द्दमे बाज़ी के बाद उसे छः साल की सज़ा हो गई।

 

छः साल के बजाय निहाल सिंह को साढे़ सात की क़ैद भुगतनी पड़ी। क्यों कि जेल में उसका दो दफ़ा झगड़ा हो गया था। लेकिन निहाल सिंह को उस की कुछ पर्वा ना थी।

 

क़ैद काट कर जब गांव रवाना हुआ और रेल की पटड़ी तय कर के मुख़्तलिफ़ पगडंडियों से होता हुआ गुरुद्वारे के पास से गुज़र कर बढ़के घने दरख़्त के क़रीब पहुंचा तो उस ने क्या देखा कि हरनाम कौर खड़ी है……..
और अपने होंट चूस रही है।

 

इस से पेशतर कि निहाल सिंह कुछ सोचने या कहने पाए। वो आगे बढ़ी और उस की चौड़ी छाती के साथ चिमट गई।

sadat Hasan Manto

 

निहाल सिंह ने उस को अपनी गोद में उठा लिया और गांव के बजाय किसी दूसरी तरफ़ चल दिया……..
हर नाम कौर ने पूछा।कहाँ जा रहे हो?

 

निहाल सिंह ने नारा लगाया। जो बोले सो निहाल सत सिरी अकाल। दोनों खिलखिला कर हंस पड़े।

 

निहाल सिंह ने हरनाम कौर से शादी कर ली और चालीस कोस के फ़ासले पर दूसरे गांव में आबाद हो गया। यहां बड़ी मिन्नतों से छः बरस के बाद बहादुर पैदा हुआ और बैसाखी के रोज़ जब कि वो अभी पूरे ढाई महीने का भी नहीं हुआ था। हर नाम कौर के माता निकली और वो मर गई।

निहाल सिंह ने बहादुर की परवरिश अपनी बेवा बहन के सपुर्द करदी जिस की चार लड़कियां थीं छोटी छोटी……..
जब बहादुर आठ बरस का हुआ तो निहाल सिंह उसे अपने पास ले आया।

 

चार बरस हो चले थे कि बहादुर अपने बाप की निगरानी में था। शक्ल सूरत में वो बिलकुल अपनी माँ जैसा था उसी तरह दुबला पतला और नाज़ुक। कभी कभी अपने पतले पतले लाल लाल होंट चूसता तो निहाल सिंह अपनी आँखें बंद कर लेता।

 

निहाल सिंह को बहादुर से बहुत मोहब्बत थी। चार बरस उस ने बड़े चाओ से नहलाया धुलाया। हर रोज़ दही से ख़ुद उस के केस धोता। उसे खिलाता। बाहर सैर के लिए ले जाता। कहानियां सुनाता। वर्ज़िश कराता मगर बहादुर को इन चीज़ों से कोई रग़्बत ना थी।

 

वह हमेशा उदास रहता। निहाल सिंह ने सोचा इतनी देर अपनी फूफी के पास जो रहा है। इस लिए उदास है। चुनांचे फिर उस को अपनी बहन के पास भेज दिया और ख़ुद फ़ौज में भर्ती हो कर लाम पर चला गया।


चार बरस और गुज़र गए। लड़ाई बंद हुई और निहाल सिंह जब वापस आया तो वो पचास बरस के बजाय साठ बासठ बरस का लगता था। इस लिए उस ने जापानियों की क़ैद में ऐसे दुख झेले थे कि सुन कर आदमी के रोंगटे खड़े होते थे।

 

अब बहादुर की उम्र निहाल सिंह के हिसाब के मुताबिक़ सोला के लग भग थी मगर वो बिल्कुल वैसा ही था जैसा चार बरस पहले था….
दुबला पतला….
लेकिन ख़ूबसूरत।

 

निहाल सिंह ने सोचा कि उस की बहन ने बहादुर की परवरिश दिल से नहीं की। अपनी चार लड़कियों का ध्यान रखा जो बछेरियों की तरह हर वक़्त आंगन में कडकड़े लगाती रहती हैं।चुनांचे झगड़ा हुआ और वो बहादुर को वहां से अपने गांव ले गया।

 

लाम पर जाने से उस के खेत खलियान और घर बार का सत्यानास हो गया था। चुनांचे सब से पहले निहाल सिंह ने उधर ध्यान दिया और बहुत ही थोड़े अर्से में सब ठीक ठाक कर लिया इस के बाद उस ने बहादुर की तरफ़ तवज्जे दी। इस के लिए एक भूरी भैंस ख़रीदी।

 

मगर निहाल सिंह को इस बात का दुख ही रहा कि बहादुर को दूध, दही और मक्खन से कोई दिलचस्पी नहीं थी। जाने कैसी ऊट–पटांग चीज़ें उसे भाती थीं। कई दफ़ा निहाल सिंह को ग़ुस्सा आया मगर वो पी गया। इस लिए कि उसे अपने लड़के से बेइंतिहा मोहब्बत थी।

 

हालाँ कि बहादुर की परवरिश ज़्यादा तर उस की फूफी ने की थी मगर उस की बिगड़ी हुई आदतें देख कर लोग यही कहते थे कि निहाल सिंह के लाड प्यार ने इसे ख़राब किया है और यही वजह है कि वो अपने हम–उम्र नौ–जवानों की तरह मेहनत मशक़्क़त नहीं करता।

 

गो निहाल सिंह की हरगिज़ ख़्वाहिश नहीं थी कि उस का लड़का मज़दूरों की तरह खेतों में काम करे और सुबह से लेकर दिन ढलने तक हल चलाए।

 

वाह–गुरूजी की कृपा से स के पास बहुत कुछ था। ज़मीनें थीं। जिन से काफ़ी आमदन हो जाती थी। सरकार से जो अब पेंशन मिल रही थी। वो अलग थी। लेकिन फिर भी उस की ख़्वाहिश थी। दिली ख़्वाहिश थी कि बहादुर कुछ करे……..
क्या? ये निहाल सिंह नहीं बता सकता था।

 

चुनांचे कई बार उस ने सोचा कि वो बहादुर से क्या चाहता है। मगर हर बार बजाए इस के कि उसे कोई तसल्ली बख़्श जवाब नहीं मिलता। उस की बीती हुई जवानी के दिन एक एक कर के उस की आँखों के सामने आने लगते और वो बहादुर को भूल कर उस गुज़रे हुए ज़माने की यादों में खो जाता।

 

लाम से आए निहाल सिंह को दो बरस हो चले थे। बहादुर की उम्र अब अठारह के लग भग थी……..
अठारह बरस का मतलब ये है कि भरपूर जवानी……..
निहाल सिंह जब ये सोचता तो झुँझला जाता। चुनांचे ऐसे वक़्तों में कई दफ़ा उस ने अपना सर झटक कर बहादुर को डाँटा। नाम तेरा मैं ने बहादुर रखा है….
कभी बहादुरी तो दिखा। और बहादुर होंट चूस कर मुस्कुरा देता।

 

निहाल सिंह ने एक दफ़ा सोचा कि बहादुर की शादी कर दे। चुनांचे उस ने इधर उधर कई लड़कियां देखीं। अपने दोस्तों से बात–चीत भी की। मगर जब उसे जवानी याद आई तो उस ने फ़ैसला कर लिया कि नहीं, बहादुर मेरी तरह अपनी शादी आप करे गा। कब करे गा। ये उस को मालूम नहीं था। इस लिए कि बहादुर में अभी तक उस ने वो चमक नहीं देखी थी ।

 

जिस से वो अंदाज़ा लगाता कि उस की जवानी किस मरहले में है….
लेकिन बहादुर ख़ूबसूरत था। सुंदर जाट नहीं था। लेकिन सुंदर ज़रूर था। बड़ी बड़ी काली आँखें, पतले पतले लाल होंट, सुतवां नाक, पतली कमर। काले भौंरा ऐसे केस मगर बाल बहुत ही महीन….
गांव की जवान लड़कियां दूर से उसे घूर घूर के देखतीं।

 

आपस में कानाफूसी करतीं मगर वो उन की तरफ़ ध्यान ना देता। बहुत सोच बिचार के बाद निहाल सिंह इस नतीजे पर पहुंचा। शायद बहादुर को ये तमाम लड़कियां पसंद नहीं और ये ख़याल आते ही उस की आँखों के सामने हरनाम कौर की तस्वीर आ गई। बहुत देर तक वह उसे देखता रहा।

 

इस के बाद उस को हटा कर उस ने गांव की लड़कियां लीं। एक एक कर के वह उन तमाम को अपनी आँखों के सामने लाया मगर हर नाम कौर के मुक़ाबले में कोई भी पूरी ना उतरी….
निहाल सिंह की आँखें तमतमा उठीं। बहादुर मेरा बेटा है। ऐसी वैसियों की तरफ़ तो वो आँख उठा भी नहीं देखेगा।

 

दिन
गुज़रते गए। बेरियों के बेर कई दफ़ा पके। मकई के बूटे खेतों में कई दफ़ा निहाल सिंह के क़द के बराबर जवान हुए। कई सावन आए मगर बहादुर की यारी किसी के साथ ना लगी और निहाल सिंह की उलझन फिर बढ़ने लगी।

 

थक हार कर निहाल सिंह दिल में एक आख़िरी फ़ैसला करके बहादुर की शादी के मुतअल्लिक़ सोच ही रहा था कि एक गड़बड़ शुरू हो गई। भांत भांत की ख़बरें गांव में दौड़ने लगीं। कोई कहता अंग्रेज़ जा रहा है। कोई कहता रूसियों का राज आने वाला है। एक ख़बर लाता कांग्रेस जीत गई है। दूसरा कहता नहीं रेडियो में आया है कि मुल्क बट जाए गा। जितने मुँह, उतनी बातें।

निहाल सिंह का तो दिमाग़ चकरा गया। उसे उन ख़बरों से कोई दिलचस्पी नहीं थी। सच्च पूछिए तो उसे उस जंग से भी कोई दिलचस्पी नहीं थी। जिस में वो पूरे चार बरस शामिल रहा था। वो चाहता था कि आराम से बहादुर की शादी हो जाये और घर में उस की बहू आ जाए।

 

लेकिन एक दम जाने क्या हुआ। ख़बर आई कि मुल्क बट गया है। हिंदू मुस्लमान अलग अलग हो गए हैं बस फिर क्या था चारों तरफ़ भगदड़ सी मच गई। चल चलाव शुरू हो गया और फिर सुनने में आया कि हज़ारों की तादाद में लोग मारे जा रहे हैं। सैंकड़ों लड़कियां अग़वा की जा रही हैं। लाखों का माल लूटा जा रहा है।

 

कुछ दिन गुज़र गए तो पक्की सड़क पर क़ाफ़िलों का आना जाना शुरू हुआ। गांव वालों को जब मालूम हुआ तो मेले का समां पैदा हो गया। लोग सौ सौ, दो दो सौ की टोलियां बना कर जाते। जब लौटते तो उन के साथ कई चीज़ें होतीं। गाय, भैंस, बकरियां, घोड़े, ट्रंक, बिस्तर और जवान लड़कियां।

 

कई दिनों से ये सिलसिला जारी था। गांव का हर जवान कोई ना कोई कारनामा दिखा चुका था हत्ता कि खिया का नाटा और कुबड़ा लड़का दरयाम सिंह भी…….. उस की पीठ पर बड़ा कोहान था। टांगें टेढ़ी थीं, मगर ये भी चार रोज़ हुए पक्की सड़क पर से गुज़रने वाले एक क़ाफ़िले पर हमला करके एक जवान लड़की उठा लाया था।

 

निहाल सिंह ने उस लड़की को अपनी आँखों से देखा था। ख़ूबसूरत थी। बहुत ही ख़ूबसूरत थी। लेकिन निहाल सिंह ने सोचा कि हरनाम कौर जितनी ख़ूबसूरत नहीं है।

 

गांव में कई दिनों से ख़ूब चहल पहल थी। चारों तरफ़ जवान शराब के नशे में धुत बोलियां गाते फिरते थे। कोई लड़की भाग निकलती तो सब उस के पीछे शोर मचाते दौड़ते कभी लूटे हुए माल पर झगड़ा हो जाता तो नौबत मरने मारने पर आ जाती। चीख़–व–पुकार तो हरघड़ी सुनाई देती थी। ग़र्ज़–ये–कि बड़ा मज़ेदार हंगामा था। लेकिन बहादुर ख़ामोश घर में बैठा रहता।

 

शुरू शुरू में तो निहाल सिंह बहादुर की इस ख़ामोशी के मुतअल्लिक़ बिलकुल ग़ाफ़िल रहा। लेकिन जब हंगामा और ज़्यादा बढ़ गया और लोगों ने मज़ाक़िया लहजे में उस से कहना शुरू किया क्यूँ सरदार निहाल सय्यां, तेरे बहादुर ने सुना है बड़ी बहादुरियां दिखाई हैं? तो वो पानी पानी हो गया।

चौपाल पर एक शाम को यरक़ान के मारे हुए हलवाई बिशेशर ने दोन की फेंकी और निहाल सिंह से कहा। दो तो मेरा गंडा सिंह लाया है…….. एक मैं लाया हूँ बंद बोतल, और ये कहते हुए बिशेशर ने ज़बान से पटाख़े की आवाज़ पैदा की जैसे बोतल में से काग उड़ता है। नसीबों वाला ही खोलता है ऐसी बंद बोतलें सरदार निहाल सय्यां।

 

निहाल सिंह का जी जल गया। क्या था बिशेशर और क्या था गंडा सिंह? एक यरक़ान का मारा हुआ, दूसरा तप–ए–दिक़ का……..
मगर जब निहाल सिंह ने ठंडे दिल से सोचा तो उस को बहुत दुख हुआ। क्यों कि जो कुछ बिशेशर ने कहा हक़ीक़त थी। बिशेशर और उस का लड़का गंडा सिंह कैसे भी थे।

 

मगर तीन जवान लड़कियां, उन के घर में वाक़ई मौजूद थीं और चूँकि बिशेशर का घर उस के पड़ोस में था। इस लिए कई दिनों से निहाल सिंह उन तीनों लड़कियों के मुसलसल रोने की आवाज़ सन रहा था।

 

गुरुद्वारे के पास एक रोज़ दो जवाँ बातें कर रहे थे और हंस रहे थे।निहाल सिंह के बारे में तो बड़ी बातें मशहूर हैं।अरे छोड़। बहादुर तेव चूड़ियां पहन कर घर में बैठा है।

 

निहाल सिंह से अब न रहा गया। घर पहुंच कर उस ने बहादुर को बहुत ग़ैरत दिलाई और कहा। तू ने सुना लोग क्या कहते फिरते हैं……..
चूड़ियां पहन कर घर में बैठा है तो।

 

क़सम वाह–गुरु–जी की, तेरी उम्र का था तो सैंकड़ों लड़कीयां मेरी इन टांगों……..

 

निहाल सिंह एक दम ख़ामोश हो गया। क्यों कि शर्म के मारे बहादुर का चेहरा लाल हो गया था। बाहर निकल कर वह देर तक सोचता चला गया और सोचता सोचता कुँवें की मुंडेर पर बैठ गया….
उस की अधेड़ मगर तेज़ आँखों के सामने वो खुला मैदान था। जिस पर ब्रंटों से ले कर कबड्डी तक तमाम खेल खेल चुका था।

 

बहुत देर तक निहाल सिंह इस नतीजे पर पहुंचा कि बहादुर शर्मीला है और ये शर्मीला पन उस में ग़लत परवरिश की वजह से पैदा हुआ है। चुनांचे उस ने दिल ही दिल में अपनी बहन को बहुत गालियां दीं और फ़ैसला किया कि बहादुर के शर्मीले पन को किसी ना किसी तरह तोड़ा जाये और इस के लिए निहाल सिंह के ज़हन में एक ही तरकीब आई।

 

ख़बर
आई कि रात को कच्ची सड़क पर से एक क़ाफ़िला गुज़रने वाला है। अंधेरी रात थी। जब गांव से एक टोली उस क़ाफ़िले पर हमला करने के लिए निकली तो निहाल सिंह भी ठा–ठा बांध कर उन के साथ हो लिया।

हमला हुआ। क़ाफ़िले वाले निहत्ते थे। फिर भी थोड़ी सी झपट हुई। लेकिन फ़ौरन ही क़ाफ़िले वाले इधर उधर भागने लगे। हमला करने वाली टोली ने उस अफ़रा–तफ़री से फ़ायदा उठाया और लूट मार शुरू कर दी। लेकिन निहाल सिंह को माल–ओ–दौलत की ख़्वाहिश नहीं थी। वह किसी और ही चीज़ की ताक में था।

 

सख़्त अंधेरा था गो गांव वालों ने मशालें रोशन की थीं मगर भाग दौड़ और लूट खसोट में बहुत सी बुझ गई थीं। निहाल सिंह ने अंधेरे में कई औरतों के साये दौड़ते देखे मगर फ़ैसला ना कर सका कि इन में से किस पर हाथ डाले।

 

जब काफ़ी देर हो गई और लोगों की चीख़–व–पुकार मद्धम पड़ने लगी तो निहाल सिंह ने बे–चैनी के आलम में इधर उधर दौड़ना शुरू किया। एक दम तेज़ी से एक साया बग़ल में गठड़ी दबाये उस के सामने से गुज़रा।

 

निहाल सिंह ने उस का तआक़्क़ुब किया। जब पास पहुंचा तो उस ने देखा कि लड़की है और जवान…. निहाल सिंह ने फ़ौरन अपने गाड़े की चादर निकाली और उस पर जाल की तरह फेंकी। वो फंस गई। निहाल सिंह ने उसे काँधों पर उठा लिया और एक ऐसे रास्ते से घर का रुख़ किया कि उसे कोई देख ना ले।

 

मगर घर पहुंचा तो बत्ती गुल थी। बहादुर अंदर कोठरी में सो रहा था। निहाल सिंह ने उसे जगाना मुनासिब ख़याल न किया। किवाड़ खोला। चादर में से लड़की निकाल कर अंदर धकेल, बाहर से कुंडी चढ़ा दी। फिर ज़ोर ज़ोर से किवाड़ पीटे। ताकि बहादुर जाग पड़े।

 

जब निहाल सिंह ने मकान के बाहर खटिया बिछाई। और बहादुर और उस लड़की की मुडभेड़ की कपकपाहट पैदा करने वाली बातें सोचने के लिए लेटने लगा तो उस ने देखा कि बहादुर की कोठड़ी के रोशन दानों में दिए की रोशनी टिमटिमा रही है।

 

निहाल सिंह उछल पड़ा। और एक लहज़े के लिए महसूस किया कि वो जवान है। क़िमाद के खेतों में मुटियारों को कलाई से पकड़ने वाला नौ–जवान।

 

सारी रात निहाल सिंह जागता रहा और तरह तरह की बातें सोचता रहा। सुबह जब मुर्ग़ बोलने लगे तो वह उठ कर कोठड़ी में जाने लगा। मगर डेयुढ़ी से लौट आया। उस ने सोचा कि दोनों थक कर सो चुके हों गे और हो सकता है…….. निहाल सिंह के बदन पर झुरझुरी सी दौड़ गई और वह खाट पर बैठ कर मूंछों के बाल मुँह में डाल कर चूसने और मुस्कराने लगा।

 

जब दिन चढ़ गया और धूप निकल आई तो उस ने अंदर जा कर कुंडी खोली। सटर–पटर की आवाज़ें सी आएं। किवाड़ खोले तो उस ने देखा कि लड़की चारपाई पर केसरी दुपट्टा ओढ़े बैठी है। पीठ उस की तरफ़ थी। जिस पर ये मोटी काली चुटिया साँप की तरह लटक रही थी। जब निहाल सिंह ने कोठड़ी के अन्दर क़दम रखा तो लड़की ने पांव ऊपर उठा लिए और सिमट कर बैठ गई।

ताक़ में दिया अभी तक जल रहा था। निहाल सिंह ने फूंक मार कर उसे बुझाया और दफ़अतन उसे बहादुर का ख़याल आया……..
बहादुर कहाँ है?……..
उस ने कोठड़ी में इधर उधर नज़र दौड़ाई मगर वो कहीं नज़र ना आया। दो क़दम आगे बढ़ कर उस ने लड़की से पूछा। बहादुर कहाँ है?

 

लड़की ने कोई जवाब ना दिया। एक दम सटर–पटर सी हुई और चारपाई के नीचे से एक और लड़की निकली……..
निहाल सिंह हक्का बक्का रह गया….
लेकिन उस ने देखा। उस की हैरतज़दा आँखों ने देखा कि जो लड़की चारपाई से निकल कर बिजली की सी तेज़ी के साथ बाहर दौड़ गई थी। उस के दाढ़ी थी, मुंडी हुई दाढ़ी।

 

निहाल सिंह चारपाई की तरफ़ बढ़ा लड़की जो कि उस पर बैठी थी और ज़्यादा सिमट गई मगर निहाल सिंह ने हाथ के एक झटके से उस का मुँह अपनी तरफ़ किया। एक चीख़ निहाल सिंह के हलक़ से निकली और दो क़दम पीछे हट गया। हरनाम कौर!

ज़नाना लिबास, सीधी मांग, काली चुटिया…….. और बहादुर होंट भी चूस रहा था।

The
End

Disclaimer–Blogger has posted this short Hindi
story
“हरनाम कौर” of Sadat Hasan Manto with help of
materials and images available on net. Images on this blog are posted to make
the text interesting.The materials and images are the copy right of original
writers. The copyright of these materials are with the respective
owners.Blogger is thankful to original writers.



Share196Tweet123
Engr. Maqbool Akram

Engr. Maqbool Akram

I am, Engineer Maqbool Akram (M.Tech. Mechanical Engineer from AMU ), believe that reading and understanding literature and history is important to increase knowledge and improve life. I am a blog writer. I like to write about the lives and stories of literary and historical greats. My goal is to convey the lives and thoughts of those personalities who have had a profound impact on the world in simple language. I research the lives of poets, writers, and historical heroes and highlight their unheard aspects. Be it the poems of John Keats, the Shayari of Mirza Ghalib, or the struggle-filled story of any historical person—I present it simply and interestingly.

Latest Post

Roxelan--From Harem to Queen

Roxelana: A Concubine From Harem To Queen of Ottoman Suleiman The Mgnificient

May 20, 2025
Travelogue of Gandikota canyon & Fort: adventure, heritage and romance.

Travelogue of Gandikota canyon & Fort: adventure, heritage and romance.

May 15, 2025
Renuka Devi: Daughter of founder of Abdullah Women’s College A.M.U.Aligarh was legendary actress of pre-partition era (Begum Khurshid Mirza)

Renuka Devi: Daughter of founder of Abdullah Women’s College A.M.U.Aligarh was legendary actress of pre-partition era (Begum Khurshid Mirza)

May 11, 2025

साहब-ए-करामात- फाताँ ने वहीं चारपाई से कहा। “हाँ…….मौलवी साहब की दाढ़ी और पट्टे।” सआदत हसन मंटो

May 5, 2025
धुंआ धुंआ ज़िंदगी लाइफ़ इन मेट्रो; ट्वंटी  ट्वंटी क्रिकेट की तरह तलाक़ का निर्णय भी जल्दी आगया. और वे दोनों ‘एक्स’ होगए (नंदकिशोर बर्वे)

धुंआ धुंआ ज़िंदगी-लाइफ़ इन मेट्रो; ट्वंटी ट्वंटी क्रिकेट की तरह तलाक़ का निर्णय भी जल्दी आ गया. और वे दोनों ‘एक्स’ हो गए. (नंद किशोर बर्वे)

May 2, 2025
IUIUIIU

तुमने क्यों कहा था मैं सुंदर हूं: फ़ोटो में माया की तरह छरहरे शरीर, परंतु बहुत सुंदर अनुपात के अवयव की निरावरण युवती, दाईं बांह का सहारा लिये एक चट्टान पर बैठी, कहीं दूर देख रही थी (यशपाल की कहानी )

May 2, 2025
अलाउद्दीन खिलजी, ने भारत की रक्षा दुनिया के क्रूरतम लड़ाके ‘मंगोलो’ से की। जिन्होंने बगदाद के खलीफा अबू मुस्तसिम बिल्लाह तक को मार दिया था।

अलाउद्दीन खिलजी, ने भारत की रक्षा दुनिया के क्रूरतम लड़ाके ‘मंगोलो’ से की। जिन्होंने बगदाद के खलीफा अबू मुस्तसिम बिल्लाह तक को मार दिया था।

May 2, 2025
जॉन कीट्स ब्रिटेन के महान कवि और फैनी ब्रॉन की असफल प्रेम कहानी- कीट्स की मृत्यु महज 25 साल में हो गई दोनों ने शादी नहीं की उसने विधवा के रूप में कीट्स  की मृत्यु पर शोक मनाया।

जॉन कीट्स ब्रिटेन के महान कवि और फैनी ब्रॉन की असफल प्रेम कहानी- कीट्स की मृत्यु महज 25 साल में हो गई दोनों ने शादी नहीं की उसने विधवा के रूप में कीट्स की मृत्यु पर शोक मनाया।

May 2, 2025
Fall of Constantinople नौजवान सुल्तान मोहम्मद फतेह ने 29 मई 1453 को कुस्तुनतुनिय फतह (इस्तांबूल) किया.रोमन साम्राज्य का अंत. इस के बाद इस्लाम का यूरोप में प्रवेश.

Fall of Constantinople नौजवान सुल्तान मोहम्मद फतेह ने 29 मई 1453 को कुस्तुनतुनिय फतह (इस्तांबूल) किया.रोमन साम्राज्य का अंत. इस के बाद इस्लाम का यूरोप में प्रवेश.

May 2, 2025
पटना की बेहद हसीन तवायफ और एक पुजारी की लव स्टोरी – यह सूखा हुआ पान हमेशा उनकी विधवा पत्नी के लिए रहस्य ही बना रहा.

पटना की बेहद हसीन तवायफ और एक पुजारी की लव स्टोरी – यह सूखा हुआ पान हमेशा उनकी विधवा पत्नी के लिए रहस्य ही बना रहा.

April 24, 2025
बड़ी शर्म की बात: (इस्मत चुग़ताई) औरत मर्द की नाक काटे तो दहल जाती हूं. उफ़ कितनी शर्म की बात

बड़ी शर्म की बात: (इस्मत चुग़ताई) औरत मर्द की नाक काटे तो दहल जाती हूं. उफ़ कितनी शर्म की बात

March 22, 2025
नशे की रात के बाद का सवेरा (ख़ुशवंत सिंह) अपने अधूरे सपने का अन्त देखने लगा-जो एक विवाहित आदमी बिना संTकोच के कर सकता है.

नशे की रात के बाद का सवेरा (ख़ुशवंत सिंह) अपने अधूरे सपने का अन्त देखने लगा-जो एक विवाहित आदमी बिना संTकोच के कर सकता है.

March 18, 2025
अंतिम प्यार: ताड़ के वृक्षों के समूह के समीप मौन रहने वाली छाया के आश्रय में एक सुन्दर नवयुवती नदी के नील-वर्ण जल में अचल बिजली-सी मौन खड़ी थी. (रबिन्द्रनाथ टैगोर की कहानी )

अंतिम प्यार: ताड़ के वृक्षों के समूह के समीप मौन रहने वाली छाया के आश्रय में एक सुन्दर नवयुवती नदी के नील-वर्ण जल में अचल बिजली-सी मौन खड़ी थी. (रबिन्द्रनाथ टैगोर की कहानी )

March 17, 2025
नाच पार्टी के बाद. वन नाइट लव स्टोरी (रूसी कहानी हिंदी में) लियो टॉल्स्टॉय

नाच पार्टी के बाद. वन नाइट लव स्टोरी (रूसी कहानी हिंदी में) लियो टॉल्स्टॉय

March 17, 2025
परवीन शाकिर छोटी उम्र बड़ी जिंदगी वो शायरा जिनके शेरों में धड़कता है आधुनिक नारी का दिल- दिल को उस राह पे चलना ही नहीं, जो मुझे तुझ से जुदा करती है

परवीन शाकिर छोटी उम्र बड़ी जिंदगी वो शायरा जिनके शेरों में धड़कता है आधुनिक नारी का दिल- दिल को उस राह पे चलना ही नहीं, जो मुझे तुझ से जुदा करती है

March 17, 2025
आय विल कॉल यू मोबाइल फोन (रूपा सिंह) जैसे ही डाटा ऑन किया खट् खट् कर कई मैसेज दस्तक देते चले आये इतनी तेजी से सबकी खबरें स्क्रीन पर चमक रही थी

आय विल कॉल यू मोबाइल फोन (रूपा सिंह) जैसे ही डाटा ऑन किया खट् खट् कर कई मैसेज दस्तक देते चले आये इतनी तेजी से सबकी खबरें स्क्रीन पर चमक रही थी

March 17, 2025
चार्ल्स डिकेंस: के प्रेम प्रसंग विक्टोरियन इंग्लैंड के महान उपन्यासकार अपने युग के रॉक स्टार गलत जगहों पर प्यार की तलाश

चार्ल्स डिकेंस: के प्रेम प्रसंग विक्टोरियन इंग्लैंड के महान उपन्यासकार अपने युग के रॉक स्टार गलत जगहों पर प्यार की तलाश

March 18, 2025
पंच परमेश्वर: फूलो ने घूंघट नहीं खींचा मुंह उठा दिया गेहुंए रंग में दो मांसल आंखें थीं जिनमें  रात का खुमार अभी बिल्कुल मिटा नहीं (रांगेय राघव की कहानी)

पंच परमेश्वर: फूलो ने घूंघट नहीं खींचा मुंह उठा दिया गेहुंए रंग में दो मांसल आंखें थीं जिनमें रात का खुमार अभी बिल्कुल मिटा नहीं (रांगेय राघव की कहानी)

March 18, 2025
मैं खुदा हूँ Ana’l haqq मंसूर अल-हलाज: जल्लाद ने सिर काटा तो धड़ से खून की धार फूट पड़ी और अचानक उनके शरीर से कटा एक-एक अंग चीखने लगा च्मैं ही सत्य हूं

मैं खुदा हूँ Ana’l haqq मंसूर अल-हलाज: जल्लाद ने सिर काटा तो धड़ से खून की धार फूट पड़ी और अचानक उनके शरीर से कटा एक-एक अंग चीखने लगा च्मैं ही सत्य हूं

March 17, 2025
नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है  तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

March 18, 2025
अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

March 18, 2025
Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

March 17, 2025
सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

March 17, 2025
Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

March 17, 2025
मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

March 17, 2025
Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

March 18, 2025
Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

March 17, 2025
River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

March 17, 2025
Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

March 18, 2025
पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

March 17, 2025
  • About us
  • Contact us
  • Home

Copyright © 2025. All rights reserved. Design By Digital Aligarh

No Result
View All Result
  • About us
  • Contact us
  • Home

Copyright © 2025. All rights reserved. Design By Digital Aligarh