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Story of Galwan Valley–वो गुलाम रसूल गलवान: जिसकी वजह से घाटी का नाम ‘गलवान’पड़ा

by Engr. Maqbool Akram
June 23, 2020
in Uncategorized
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सबसे महत्वपूर्ण बात यह है
कि 1962 के बाद पहली बार इस क्षेत्र में तनाव पैदा हुआ है, और वह भी तब जब LAC को स्पष्ट
रूप से परिभाषित किया गया है और दोनों ही प्रतिद्वंद्वी पक्षों की ओर से स्वीकार किया
गया है.
आइए 1962 पर लौटते हैं जब चीन ने भारत पर अपनी पूर्वी और उत्तरी
सीमाओं पर हमला किया. अन्य फैक्टर्स के अलावा इस युद्ध के लिए बड़ी वजह में से एक शिनजियांग
और तिब्बत के बीच सड़क का निर्माण था.
यह राजमार्ग आज G219 के रूप
में जाना जाता है और इस सड़क का लगभग 179 किमी हिस्सा अक्साई चिन से होकर गुजरता है,
जो एक भारतीय क्षेत्र है.भारतीय
सहमति के बिना सड़क का निर्माण करने के बाद, चीनी दावा करने लगे कि ये क्षेत्र उन्हीं का है.
1959 तक जो चीनी दावा था, उसकी तुलना में सितंबर 1962 (युद्ध से एक महीने पहले) में वो पूर्वी लद्दाख में और अधिक क्षेत्र पर दावा दिखाने लगा. नवंबर 1962 में युद्ध समाप्त होने के बाद चीनियों ने अपने सितंबर 1962 के दावे लाइन की तुलना में भी अधिक क्षेत्र पर कब्जा कर लिया.
लद्दाख के पास स्थित गलवान
घाटी विवादित क्षेत्र अक्साई चीन में है. वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी LAC अक्साई चीन
को भारत से अलग करती है. अक्साई चीन को विवादित क्षेत्र इसलिए कहा जाता है, क्योंकि
इस पर भारत और चीन दोनों ही अपना दावा करते हैं. ये घाटी चीन के दक्षिणी शिनजियांग
और भारत के लद्दाख़ तक फैली है. गलवान नदी के पास होने के कारण इस इलाके को गलवान घाटी
कहा जाता है.
पूर्वी लद्दाख
में चीन और भारत के बीच सैन्य तनाव का केंद्र बनी गलवन घाटी पिछले कई दिनों से चर्चा
में है।

सवाल ये उठा रहा है कि गलवान वैली कहां है? (Where is Galwan valley) और इस इलाके पर प्रभुत्व को लेकर दोनों देश क्यों इतने उतावले हैं?
लद्दाख के पास स्थित गलवान घाटी विवादित क्षेत्र अक्साई चीन में है. वास्तविक नियंत्रण
रेखा यानी LAC अक्साई चीन को भारत से अलग करती है.
अक्साई
चीन को विवादित क्षेत्र इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इस पर भारत और चीन दोनों ही अपना
दावा करते हैं. ये घाटी चीन के दक्षिणी शिनजियांग और भारत के लद्दाख़ तक फैली है. गलवान
नदी के पास होने के कारण इस इलाके को गलवान घाटी कहा जाता है.
लगभग 14 हजार फीट की ऊंचाई और माइनस 20 डिग्री तक गिरने वाले तापमान
वाली जगह गलवान घाटी में जारी तनाव के बीच हम इसके इतिहास के बारे में जानने की कोशिश
करते हैं.
ऐसे पड़ा गलवान घाटी
(Galwan Valley) का नाम
गलवां घाटी का नाम लद्दाख
के रहने वाले चरवाहे गुलाम रसूल गलवां के नाम पर पड़ा था। सर्वेंट ऑफ साहिब नाम की
पुस्तक में गुलाम रसूल ने बीसवीं सदी के ब्रिटिश भारत और चीनी साम्राज्य के बीच सीमा
के बारे में बताया है।
गुलाम रसूल गलवां का जन्म
सन 1878 में हुआ था। गुलाम रसूल को बचपन से ही नई जगहों को खोजने का जुनून था। इसी
जुनून की वजह से गुलाम रसूल अंग्रेजों का पसंदीदा गाइड बन गया।
अंग्रेजों को भी लद्दाख का इलाका बहुत पसंद था। ऐसे में गुलाम रसूल
ने 1899 में लेह से ट्रैकिंग शुरू की थी और लद्दाख के आसपास कई नए इलाकों तक अपनी पहुंच
बनाई। इसी क्रम में गुलाम रसूल गलवां ने अपनी पहुंच गलवां घाटी और गलवां नदी तक बढ़ाई।
ऐसे में इस नदी और घाटी का नाम गुलाम रसूल गलवां के नाम पर पड़ा।

गलवन समुदाय का इतिहास
कश्मीर में घोड़ों का व्यापार करने वाले एक समुदाय को गलवन बोला जाता है। कुछ स्थानीय समाज शास्त्रियों के मुताबिक इतिहास में घोड़ों को लूटने और उन पर सवारी करते हुए व्यापारियों के काफिलों को लूटने वालों को गलवन बोला जाता रहा है।
कश्मीर में जिला बड़गाम में आज भी गलवनपोरा नामक एक गांव है। गुलाम रसूल गलवन का मकान आज भी लेह में मौजूद है। अंग्रेज और अमेरिकी यात्रियों के साथ काम करने के बाद उसे तत्कालिक ब्रिटिश ज्वाइंट कमिश्नर का लद्दाख में मुख्य सहायक नियुक्त किया था।उसे अकासकल की उपाधि दी गई थी।
ब्रिटिश सरकार और जम्मू कश्मीर के तत्कालीन डोगरा
शासकों के बीच समझौते के तहत ब्रिटिश ज्वाइंट कमिश्नर व उसके सहायक को भारत, तिब्बत
और तुर्कीस्तान से लेह आने वाले व्यापारिक काफिलों के बीच होने वाली बैठकों व उनमें
व्यापारिक लेन देन पर शुल्क वसूली का अधिकार मिला था।
वर्ष 1925 में गुलाम रसूल की मौत हो गई थी। गुलाम रसूल की किताब सर्वेंटस ऑफ साहिब की प्रस्ताना अंग्रेज खोजी फ्रांसिक यंगहस्बैंड ने लिखी है। वादी के कई विद्वानों का मत है कि अक्साई चिन से निकलने वाली नदी का स्नोत गुलाम रसूल ने तलाशा था। यह सिंधु नदी की प्रमुख सहायक नदियों में शामिल श्योक नदी में आकर मिलती है।

भारत–चीन के लिए क्यों अहम है गलवान घाटी, जहां सैनिकों की हुई झड़प
पैंगोंग सो में फिंगर क्षेत्र में सड़क को भारतीय जवानों के गश्त करने के लिहाज से अहम माना जाता है. भारत ने पहले ही तय कर लिया है कि चीनी विरोध की वजह से वह पूर्वी लद्दाख में अपनी किसी सीमावर्ती आधारभूत परियोजना को नहीं रोकेगा.

भारत और चीन के बीच 1950 से चल रहा विवाद
दरअसल, इस क्षेत्र को लेकर भारत और चीन के बीच 1950 से ही विवाद चल रहा है. सबसे अहम बात यह है कि 1962 के बाद पहली बार इस क्षेत्र में तनाव पैदा हुआ है, और वह भी तब जब एलएसी को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है और दोनों देशों की ओर से स्वीकार किया गया है.
1962 में चीन ने भारत पर अपनी पूर्वी और उत्तरी सीमाओं पर हमला किया था. अन्य फैक्टर्स के इस युद्ध के लिए बड़ी वजह शिनजिंयाग और तिब्बत के बीच सड़क का निर्माण था. यह राजमार्ग आज जी-219 के रूप में जाना जाता है. इस सड़क का लगभग 179 किलोमीटर हिस्सा अक्साई चिन से होकर गुजरता है, जो एक भारतीय क्षेत्र है. भारतीय सहमति के बिना सड़क निर्माण करने के बाद, चीन दावा करने लगा कि ये क्षेत्र उसका है.

कहां है ये इलाका और कब से है विवाद
चीन लगातार भारत के इलाके पर अपना अधिकार जताता रहा है. अक्साई चिन का ये इलाका तिब्बती पठार के उत्तर–पश्चिम में है. ये कुनलुन पर्वतों के ठीक नीचे का इलाका है. अगर ऐतिहासिकता में देखा जाए तो ये इलाका भारत को मध्य एशिया से जोड़ने वाले सिल्क रूप का हिस्सा था.
सैंकड़ों सालों तक ये मध्य एशिया और भारत के बीच संस्कृति, बिजनेस और भाषा को जोड़ने का माध्यम रहा है. अक्साई चिन लगभग 5,000 मीटर ऊंचाई पर स्थित एक नमक का मरुस्थल है. इसका क्षेत्रफल 42,685 वर्ग किलोमीटर है. ये इलाका निर्जन है यहां स्थाई बस्तियां नहीं हैं.
1959 तक चीन का जो दावा था, उसकी तुलना में सितंबर 1962 (युद्ध से एक महीने पहले) में वह पूर्वी लद्दाख में और अधिक क्षेत्र पर दावा दिखाने लगा. नवंबर 1962 में युद्ध समाप्त होने के बाद चीनियों ने अपने सितंबर 1962 के दावे लाइन की तुलना में भी अधिक क्षेत्र पर कब्जा कर लिया.
 चीन अपने शिनजियांग–तिब्बत राजमार्ग से भारत को यथासंभव दूर रखना चाहता था. यही कारण है कि चीन ने अपनी दावा लाइन को इस तरह तैयार किया कि सभी प्रमुख पहाड़ी दर्रों और क्रेस्टलाइन्स पर उसका कब्जा दिखे.
पर्वत श्रृंखलाओं के बीच
आने-जाने के लिए पहाड़ी दर्रों की जरूरत होती है, उन्हें कब्जा करके चीन चाहता था कि
भारतीय सेना पश्चिम से पूर्व की ओर कोई बड़ा मूवमेंट न हो सके.
The End
Note—This Blog “Story of GalwanValley–वो गुलाम रसूल गलवान: जिसकी वजह से घाटी का नाम ‘गलवान‘पड़ा”.has been prepared
with the help of reporting of various News papers, TV.Channels reporting and
photos available on net. With thanks to all of them

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Engr. Maqbool Akram

Engr. Maqbool Akram

I am, Engineer Maqbool Akram (M.Tech. Mechanical Engineer from AMU ), believe that reading and understanding literature and history is important to increase knowledge and improve life. I am a blog writer. I like to write about the lives and stories of literary and historical greats. My goal is to convey the lives and thoughts of those personalities who have had a profound impact on the world in simple language. I research the lives of poets, writers, and historical heroes and highlight their unheard aspects. Be it the poems of John Keats, the Shayari of Mirza Ghalib, or the struggle-filled story of any historical person—I present it simply and interestingly.

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