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Memoirs by Pablo Neruda:बीसवीं शताब्दी का महान कवि, नोबेल पुरस्कार विजेता, जीवन के कुछ प्रेम प्रसंगयुक्त प्रसंग–प्रेम का पैगम्बर

by Engr. Maqbool Akram
May 9, 2023
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The
classic and deeply moving memoir by Pablo Neruda, the most widely read
political poet of our time and winner of the Nobel PrizeThe south of Chile was
a frontier wilderness when Pablo Neruda was born in 1904.

 

In these memoirs he
retraces his bohemian student years in Santiago; his sojourns as Chilean consul
in Burma, Ceylon, and Java, in Spain during the civil war, and in Mexico; and
his service as a Chilean senator.

In his uniquely expressive prose, Neruda not only explains his
views on poetry and describes the circumstances that inspired many of his
poems, but he creates a revealing record of his life as a poet, a patriot, and
one of the twentieth century’s true men of conscience.

Pablo Neruda

 

इन वर्णनों से इतना तो स्पष्ट है कि नेरुदा ने अपनी जीवनी में प्रेम, सैक्स, दीवानगी, लफंगई, संभोग, वादाखिलाफी के जितने भी स्वयं से जुड़े अनुभव हो सकते हैं, उन्हें अपनी बेबाक शैली में बेहद ईमानदारी से प्रस्तुत किया है.


Pablo Neruda

 यह सही है कि इन प्रसंगों में नेरुदा का जो परम रोमांटिक व्यक्तित्व उभर कर सामने आता है, वह बावजूद उनकी विचारधारा के उनकी रचनाओं में यहां–से–वहां तक फैला है.

(एक)

 [यह प्रसंग पुस्तक के “गांव का छोकरा” नाम के पहले ही अध्याय में ‘बचपन और कविता’ उपशीर्षक में है जहां बालक नेरुदा घर में मां के पुराने बक्से में रखे पत्र देखता है. इसमें केवल ऐसी चीजों में विशेष जिज्ञासा और रुचि का ही पता चलता है जहां से प्रेम भाव का उन्नयन ही मानना चाहिए.]

 

हमारे घर में एक संदूक था जो बड़ी मनमोहक चीजों से भरा होता था. एक सुंदर तोते का चित्र उसकी तली के साथ चिपका हुआ था. एक बार जब मेरी मां उस गुप्त संदूक में कुछ ढूंढ रही थी तो मैं तोता पकड़ने के चक्कर में उसके भीतर सिर के बल जा गिरा. जब मैं बड़ा हो गया तो सयानों की तरह उसे खोलने लगा. उसके अंदर कई बहुत सुंदर कोमल पंखे भी थे.

 

मुझे उस संदूक के बारे में और भी कुछ याद आता है. पहली प्रेम कहानी जिसने मुझे झकझोर दिया. वहां ऐसे सैकड़ों पोस्टकार्ड थे जो मुझे ठीक से याद नहीं कि एनरिक (हैनरी) या एलबर्टो में से एक नाम से मारिया थीएलमैन को भेजे गए थे. ये बहुत ही आश्चर्यजनक थे.

 वे उस समय की महान अभिनेत्रियों के चित्रों के थे जिन पर शीशे के छोटे–छोटे टुकड़े लगे रहते या ऊपर की तरफ सचमुच के बाल. कुछ पर किलों, शहरों, विदेशों के दृश्य भी थे. मेरी दिलचस्पी तस्वीरों में थी. लेकिन जब मैं बड़ा हुआ तो मैंने अच्छी लिखाई में लिखी प्रेम की वे टिप्पणियां भी पढ़ीं.

मैं लिखने वाले की कल्पना हमेशा एक छड़ीदार डर्बिनवासी के रूप में करता जिसके पास हीरे की टी–पिन है. दुनिया के सभी कोनों से भेजे गए उसके संदेश उद्दाम भावनाओं से भरे होते जिन्हें चौंकाने वाली भाषा में लिखा जाता.

 

वह उश्रृंखल प्यार होता. मैं भी इस  नामक महिला से प्यार करने लगा. मैं एक बेहद आकर्षक अभिनेत्री के रूप में उसकी कल्पना करता जो हीरे मोतियों से लदी हो. लेकिन ये पत्र मेरी मां के संदूक में कैसे आए! मुझे कभी इसका पता नहीं लगा.

 

(दो)

 [यह प्रसंग भी “गांव का छोकरा”
नाम के पहले अध्याय के ‘बचपन और कविता’ उपशीर्षक से ही है. इसमें नेरुदा केवल प्रेम में रुचिशील ही नहीं, उसमें सक्रिय भागीदार की हैसियत से सामने आते हैं. प्रेमपत्र लिखने की उनकी प्रतिभा ही रही होगी कि प्रेम में पड़ा उनका मित्र उनसे अपनी प्रेमिका को पत्र लिखने का अनुरोध कर रहा है. अंत तक आते–आते लेखक ने उसे अपदस्थ करके स्वयं प्रेम का रस–पान शुरू कर दिया है.]

 

मैं बड़ा हो गया. किताबें मुझे रुचिकर लगने लगीं. बफेलो बिल की साहसिक कहानियां और सलगारी की यात्राएं मुझे सपनों की दुनिया में ले जातीं. मेरा पहला और एकदम पवित्र प्यार लुहार की लड़की ब्लांका विल्सन को लिखे पत्रों में व्यक्त हुआ.

दरअसल एक लड़का उसके प्यार में बुरी तरह गिर पड़ा था और उसने मुझसे उसके लिए प्रेमपत्र लिखने का अनुरोध किया.

अब मुझे ठीक से याद नहीं कि ये पत्र किस तरह के थे लेकिन ये ही मेरी पहली साहित्यिक उपलब्धियां थीं. एक दिन जब मेरी उस लड़की से अचानक मुलाकात हुई तो उसने छूटते ही पूछा कि क्या मैं ही उन पत्रों का लेखक हूं जो उसके प्रेमी ने उसे दिए हैं.

मैं अपने लिखे से इनकार नहीं कर सका और बहुत ही शर्माते मैंने हां कही. तब उसने मुझे एक श्रीफल दिया, जो मैंने खाया नहीं बल्कि एक अमूल्य निधि की तरह संभाल कर रखा. इस तरह उस लड़की के दिल में अपने मित्र की जगह खुद को बिठाकर मैंने उसे अनगिनत प्रेमपत्र लिखे और अनगिनत श्रीफल पाए.

 

(तीन)

[यह प्रसंग भी पहले अध्याय के ‘बचपन और कविता’ उपशीर्षक में है. यहां लेखक स्वयं कोई पहल का कर्ता न होकर शिकार है.]

 

मेरे घर के सामने दूसरी तरफ दो लड़कियां रहती थीं जो मुझे ऐसे घूरती थीं कि मेरा चेहरा लाल हो जाता. वे बालप्रौढ़ होने के साथ ही उतनी ही दुष्ट थीं जितना मैं दब्बू और शांत था. एक बार मैं अपने दरवाजे पर खड़ा उनकी तरफ न देखने की कोशिश कर रहा था. वे ऐसी चीज पकड़े थीं जिसने मेरा ध्यान खींचा.


मैं डरते–डरते पास गया तो उन्होंने मुझे एक पक्षी का घोंसला दिखाया जो सैवार और छोटे पंखों से बना था. उसमें अनेक सुंदर नीले–फीरोजी रंग के छोटे अंडे थे. जब मैं उन्हें देखने पास पहुंचा तो एक लड़की ने कहा कि पहले वे मेरे कपड़ों के अंदर टटोलकर देखेंगी.

 

मैं इतना डर गया कि कांपने लगा और दूर छिटक गया. वे दोनों देवियां अपने सिर पर उस मनमोहक खजाने को रखे मेरी ओर लपकीं. इस पकड़म–पकड़ाई में मैं एक ऐसी संकरी गली में आ गया जो मेरे पिता की एक खाली बेकरी की तरफ जाती थी.

मेरे कातिलों ने मुझे पकड़ ही लिया और वे मेरी पेंट उतारने लगीं कि तभी रास्ते से मेरे पिता के कदमों की आहट सुनाई पड़ी. यही घोंसले का अंत था. वे सुंदर अंडे गिरकर चूर–चूर हो गए जबकि एक काउंटर के नीचे हमलावर और शिकार दोनों सांस रोके बैठे थे.

 

(चार)

 [यह प्रसंग पहले अध्याय के ही ‘गैहूं के बीच प्रेम’ उपशीर्षक में है. यहां सैक्स तो है, लेकिन नेरुदा की अपनी पहल पर नहीं,
वह उसके भोक्ता या उपभोक्ता मात्र हैं.]

 

मैं काफी देर तक आंखें खोले पीठ के बल लेटा रहता. मेरा चेहरा और हाथ बालियों से भरे रहते.  रात साफ, ठंडी और गहरी थी. आकाश में चांद नहीं था लेकिन लगता तारे बारिस में नहाकर आए हैं और जैसे वे केवल मेरे लिए ही आकाश में चमक रहे हैं. फिर मैं सो जाता.

 

लेकिन अचानक मेरी आंख खुल गईं क्योंकि कोई चीज मेरी तरफ बढ़ रही थी. किसी अजनबी का शरीर बालियों से होता मेरी ओर आ रहा था. मैं डर गया. वह चीज मेरे और–और पास आ रही थी.

मैं उस अनजान चीज के सरकने से बालियों के दबने, टूटने की आवाज सुन सकता था. मेरा शरीर ऐंठ गया और मैं प्रतीक्षा कर रहा था. शायद मुझे उठकर चिल्लाना चाहिए. लेकिन मैं हिला तक नहीं. मैं अपने सिर के पास सांस की आवाज सुन सकता था.

 

अचानक एक हाथ मेरे ऊपर आया, एक बड़ा और कठोर हाथ. लेकिन वह किसी स्त्री का हाथ था. वह मेरी भोंहों, मेरी आंखों, मेरे चेहरे पर कोमलता से फिरने लगा. तब एक गरम मुंह मेरे मुंह से सट गया और मैंने महसूस किया कि उस स्त्री का शरीर मेरे शरीर को दबा रहा है.

 

धीरे–धीरे मेरा डर आनंद में बदलने लगा. मेरा हाथ उसके चोटी बंधे बालों पर, कोमल भंवों पर, पॉपी जैसी नरम आंखों पर और अन्य जगहों की खोज में फिरने लगा.

 

मैंने
दो स्तनों को महसूस किया जो पूरे भरे और सख्त थे, चौड़े गोल नितंब, मेरी टांगों को अपने में जकड़े टांगें. और मैंने अपनी उंगलियां उसकी जंघाओं के बीच के बालों से लगाईं जैसे पहाड़ के शैवालों पर. उस अनजान मुख से कोई शब्द तक नहीं निकला.

 

बालियों के पहाड़ जैसे ढेर के गढ़े में, सात आठ अन्य लोगों की उपस्थिति के बीच जरा भी आवाज किए प्यार करना कितना मुश्किल काम है. लोग भी ऐसे जिन्हें सोए से जगाना दुनिया में सबसे बड़ा अपराध होता. लेकिन प्यार में सब कुछ संभव है, बस थोड़ी सावधानी की जरूरत है.

 

कुछ देर बाद वह अजनबी मेरे पास ही जोर–जोर से सांसें लेती सो गई. मैं बहुत घबरा गया. मैंने सोचा कि अभी दिन निकलेगा और वे लोग एक नंगी औरत को मेरे साथ लेटे हुए पाएंगे. फिर मुझे भी नींद आ गई.

 

जब मैं उठा और भौंचक हाथ पास में बढ़ाया तो पाया कि वहां केवल गरम पूस और अनुपस्थिति है.  तभी एक पक्षी गा उठा और तब सारा जंगल ही कूजन से गुंजायमान हो गया. एक मोटर का हार्न तेजी से बजा और सब आदमी और स्त्रियां अपने काम पर लग गए. गहाई का एक और दिन शुरू हो रहा था.

 

(पांच)

 [यह प्रसंग पुस्तक के दूसरे अध्याय
“
शहर में गुम” के उपशीर्षक ‘घर की तलाश’ में है. यह लेखक की पहल है एक विधवा के साथ.]

 

ठीक इसी समय अचानक मेरी दोस्ती एक विधवा के साथ हो गई जो मेरे मन में हमेशा रहेगी. उसकी आंखें बड़ी–बड़ी और नीलीं थीं जो अपने पति को याद करने पर पनीली और कोमल हो जातीं. वह कोई युवा उपन्यासकार था जो अपनी शारीरिक बनावट के कारण प्रसिद्ध था.

उन दोनों की जोड़ी बहुत ही शानदार थी. वह सोने जैसे बालों, सुंदर शरीर और गहरी नीली आंखों वाली महिला थी और उसका पति बहुत ही लंबा गठे शरीर का आदमी. पति को क्षय रोग ने नष्ट कर दिया. बाद में मुझे लगा कि इसमें उसके सौंदर्य का भी योग रहा होगा.

 

उस सुंदर विधवा ने अभी काले वस्त्रों को छोड़ा नहीं था. उसकी काली और बैंगनी रेशमी ड्रैस लगती जैसे बर्फ के सफेद फूल पर उदासी का रंग चढ़ा है. एक दिन मेरे कमरे में लांड्री के पीछे उसका वह आवरण गिर गया और मैं उस जलती बर्फ के सब फलों को टटोलने और उनका स्वाद लेने में कामयाब हो गया.

 

अभी परमानंद की प्राप्ति होने को ही थी कि मैंने देखा कि उसकी आंखें मेरी आंखों के नीचे बंद होने लगीं और उसने आह भरते, सुबकते हुए कहा ‘ओह राबर्टो, राबर्टो!’ (यह आदतवश था. एक पवित्र कौमार्य नए ईश्वर को अंगीकार करने से पहले लुप्त होते ईश्वर को पुकार रहा था).

मेरी जवानी और जरूरत के बावजूद यह विधवा मेरे लिए कुछ ज्यादा ही थी. उसके आमंत्रण और–और आतुर होते गए और उसका भावुक मन मुझे असमय विनाश की तरफ ले जा रहा था. इतनी ज्यादा मात्रा में प्यार की खुराक कुपोषित व्यक्ति के लिए अच्छी नहीं. और मेरा कुपोषण तो दिन–दिन और अधिक नाटकीय मोड़ ले रहा था.

 

(छह)

[यह प्रसंग पुस्तक के तीसरे अध्याय “दुनिया की सड़कें” के उपशीर्षक ‘मोंट परनासे’
(
पैरिस की परनासे पहाड़ी) से है जिसमें टैक्सी में रह गई एक लड़की के साथ दो मित्रों के संभोग का किस्सा है. पाब्लो नेरुदा और उनके मित्र लेखक अल्वारो ने उसकी मजबूरी का फायदा उठाया. इसमें पाब्लो नेरुदा की अस्वीकार्य प्रवृत्ति का पहली बार पता चलता है.]

 

जो लड़की नहीं गई थी वह टैक्सी में ही हमारी प्रतीक्षा कर रही थी. अल्वारो और मैंने उसे सुबह का सूप पीने के लिए अपने यहां आमंत्रित किया. हमने बाजार से उसके लिए फूल खरीदे और उसकी बहादुरी के लिए उसे चूमा और पाया कि वह खासी आकर्षक थी. उसे खूबसूरत या घरेलू तो नहीं कहा जा सकता लेकिन पैरिस की लड़कियों की खासियत उसकी उठी नाक अच्छी थी. हमने उसे अपने मामूली से होटल में निमंत्रित किया और उसने कोई ना–नुकुर नहीं की.

 

वह अल्वारो के साथ उसके कमरे में गई. मैं बिस्तर पर गिरते ही थकान से नींद में चला गया. फिर देखा कि मुझे कोई जोर से झकझोर रहा है. वह अल्वारो था. उसका छोटा सा चेहरा कुछ अजीब लग रहा था. “सुनो”, उसने कहा. “वह औरत तो बहुत ही शानदार है. मैं सब कुछ तुम्हें नहीं बता सकता. तुम्हें खुद देखना होगा.”

 

कुछ मिनटों के बाद वह अजनबी मेरे बिस्तर में आ गई, कुछ सोई सी, पर तत्पर. उससे प्यार करते हुए मैंने उसकी रहस्यात्मक भेंट प्राप्त की. उसमें जो आनंद आया उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. अल्वारो सही था.

 

अगले दिन नाश्ते पर अल्वारो ने मुझे चेतावनी देते हुए स्पानी में कहा – “अगर हम तुरत इस औरत को नहीं छोड़ते तो हमारी यात्रा खत्म समझो. हम लोग संभोग के अनंत समुद्र में समा जाएंगे.”

 

(सात)

 [यह प्रसंग पुस्तक के “शानदार एकांत”
नामक चौथे अध्याय के उपशीर्षक ‘एक विधुर का नाच’ से है. विधुर पाब्लो नेरुदा हैं और नचाने वाली एक बर्मी लड़की जोस्सी ब्लिस है जो उन्हें कलकत्ता में मिली. फिलहाल उस लड़की का कोई वक्तव्य या किसी के द्वारा इस प्रसंग पर किया शोध या डाला प्रकाश हमारे पास नहीं है, इसलिए पाब्लो नेरुदा के वर्णन पर विश्वास करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है.

 इसमें लेखक ने उस लड़की पर जो अन्याय किया उसका सारा दोष उसकी मानसिक बीमारी पर मढ़ा है. वह उसे बिन बताए दूसरी पोस्टिंग पर छोड़ चला गया. लेकिन उसे खोजते जब वह किसी तरह कोलंबो पहुंची तो लेखक का व्यवहार उसके प्रति काफी अमानवीय दिखाई पड़ता है.]

 

मैं लोगों के जीवन और आत्मा में इतना गहरे गया था कि मैं एक स्थानीय लड़की को दिल दे बैठा. गली में वह अंग्रेज महिला की तरह कपड़े पहनती थी और अपना नाम जोस्सी ब्लिस बताती थी. लेकिन अपने घर के अंदर (जहां मैं बाद में जाने लगा था) वह उन कपड़ों को उतार फेंकती और अपने सुंदर कपड़े पहनती तथा बर्मी नाम बताती.


 
मेरा
घरेलू जीवन बहुत ही परेशानी भरा रहा. प्यारी जोस्सी ब्लिस धीरे–धीरे इतनी बड़बड़ाने वाली और अधिकार जमाने वाली हो गई कि उसकी ईर्ष्यालु बदमिजाजी बीमारी का रूप धारण कर गई.

 

उसमें
केवल यही एक कमी थी. अगर यह नहीं होती तो शायद मैं हमेशा के लिए उसके साथ रहता. 


मैं उसके नंगे पैरों, काले बालों में चमकते सफेद फूलों से बहुत प्यार करता था. लेकिन उसके ईर्ष्यालु स्वभाव ने उसे हिंसक बना दिया था. उसके सिर पर बात–बेबात भूत सवार हो जाता. जब भी बाहर से मुझे कोई पत्र आता तो वह ईर्ष्यालु हो आपे से बाहर हो जाती. वह बिना खोले ही मेरे टैलीग्राम छुपा देती और जो भी मैं करता उसकी नजर में संदेहास्पद होता.

 

कभी–कभी मैं रात में चमक देखकर जग जाता. मच्छरदानी के दूसरी तरफ भूत जैसा कुछ चल रहा होता. यह वही होती, अपने सफेद कपड़ों में और हाथ में लंबा चाकू लिए. वह मेरे बिस्तर के चारों तरफ घंटों घूमती रहती और तय नहीं कर पाती कि मुझे मारना है या नहीं.

 

वह मुझसे कहती कि जब मैं मरूंगा तो उसके सारे डर दूर हो जाएंगे.अगले दिन वह कुछ रहस्यात्मक कर्मकांड करती जिससे कि मैं उसके प्रति वफादार बना रहूं. 


शायद अंत में वह मुझे मार ही डालती. सौभाग्य से इस बीच मुझे अपने श्रीलंका तबादले की सूचना मिल गई. मैंने उसे बिना बताए अपने जाने की तैयारियां कर लीं और एक दिन मैं अपने कपड़े और किताबें वगैरह और दिनों की तरह ही घर पर छोड़ कर निकला और एक जहाज में सवार हो गया जो मुझे यहां से काफी दूर ले जाने वाला था.

 

मैं उस बर्माई बाघिन जोस्सी ब्लिस को दुख भरे मन से छोड़कर जा रहा था. जब जहाज बंगाल की खाड़ी में चलने को हुआ तो मैंने लिखना शुरू किया –“टेंगो डेल विउदो” (“विधुर का टेंगो नृत्य”), एक स्त्री को समर्पित दुखांत कविता. स्त्री जिसे मैंने खो दिया और जिसने मुझे खो दिया क्योंकि उसके खून में क्रोध का सागर लहराता था. रात बहुत लंबी थी और दुनिया बहुत अकेली थी.

 

सूरज की रोशनी में जलते मेरे उन दिनों पर बादल की छाया करने वाली घटना घटी. बिना किसी सूचना के मेरी बर्मी प्रेमिका जोस्सी ब्लिस ने मेरे घर के सामने धरना दे दिया. वह अपने सुदूर देश से आई थी. यह मानकर कि रंगून के सिवा दुनिया में कहीं चावल शायद होता ही नहीं है वह अपनी पीठ पर लादकर एक बोरी चावल भी लाई थी.

 

इसके अलावा वह हमारे प्रिय पाल रॉबसन रिकार्ड और एक चटाई भी लाई थी. वह सारा दिन दरवाजे पर ही बैठी रहती और जो भी मुझसे मिलने आता उसे गालियां देकर भगा देती. अब उस पर ईर्ष्या का भूत पूरी तरह सवार हो चुका था जिसमें वह मेरे घर को भी जला रही थी. उसने एक बिचारी यूरोपियन लड़की पर हमला कर दिया जो यूं ही मुझसे मिलने चली आई थी.

 

उपनिवेशी पुलिस ने उसके इस अनियंत्रित अभद्र व्यवहार को गली की शांति के लिए खतरा मानते हुए मुझे चेतावनी दी कि या तो उसे घर के अंदर रखूं या वे उसे देश से बाहर निकाल देंगे. मैं कई दिनों तक पशोपेश में पड़ा रहा. एक तरफ उसका कोमल अतृप्त प्यार था और दूसरी तरफ उसके पागलपन का भय. मैं

 

उसे
अपने घर के अंदर नहीं आने दे सकता था. वह प्यार में चोट खाई आतंकवादी थी जो कुछ भी कर सकती थी.

 

और अंततः एक दिन उसने जाने का मन बना ही लिया. उसने मुझसे प्रार्थना की कि मैं उसे जहाज तक छोड़ आऊं. जहाज जब चलने को हुआ और मैं उतरने लगा तो वह अपने चारों तरफ के यात्रियों से अलग हो मेरी तरफ दौड़ी और मेरे चेहरे को बार–बार चूमने लगी. उसके आंसुओं से मैं नहा गया.


जैसे कोई रस्म कर रही हो, उसने मेरे हाथ चूमे, मेरा सूट चूमा और इससे पहले कि मैं रोक पाता वह मेरे जूतों पर गिर गई. वह जब खड़ी हुई तो मेरे जूतों पर लगी सफेद पालिश से उसका मुंह सना हुआ था जैसे आटे से. लेकिन इसके बावजूद मैंने उसे जाने से नहीं रोका, न वापस अपने साथ आने के लिए कहा.

मैंने किसी तरह अपने को काबू में रखा. एक तरफ मेरा दिल पुकार–पुकार कर कहता था कि उसे बुला लो लेकिन दूसरी तरफ बुद्धि मना करती थी. मैंने उसे जाने दिया, जिससे मेरे दिल में जो घाव हुआ वह आज भी वैसे ही है. उसके सफेद रंग पुते चेहरे से बहते अनियंत्रित आंसू मेरी स्मृति में अभी भी ताजा हैं.

 

(आठ)

 [यह प्रसंग पुस्तक के पांचवें अध्याय
“
स्पेन मेरे दिल में” के उपशीर्षक
‘
फैडरिको कैसा था’ में है. इसमें प्रसिद्ध स्पानी लेखक लोर्का और पाब्लो नेरुदा के नव्य प्रयोगों का वर्णन है. इसी में एक करोड़पति की पार्टी में पाब्लो नेरुदा द्वारा अपरिचित से सैक्स की क्रिया और लोर्का द्वारा उसमें परोक्ष भागीदारी का वर्णन है. इसमें नेरुदा के अनेक विचनों के जाहिर होने के कारण इसे विस्तार से दे रहे हैं. ]

 

मुझे वह शाम याद आ रही है जब एक विशाल कामुक दुस्साहस में मुझे लोर्का का अनपेक्षित समर्थन मिला. हमें एक ऐसे करोड़पति ने आमंत्रित किया था जो अमेरिका या अर्जेंटीना में ही मिल सकते हैं. वह पैदायशी विद्रोही था, अपनी मेहनत से बना आदमी. उसने एक सनसनीखेज अखबार के द्वारा अपार धन संपत्ति जमा कर ली थी. 

एक विशाल बगीचे से घिरा उसका घर नव धनाढ्य के सपनों को साकार करने वाला था. घर के रास्ते में सैकडों पिंजरों में देश–विदेश से लाए रंग–बिरंगे पक्षी थे. उसका पुस्तकालय ऐसी विरल किताबों और पांडुलिपियों से भरा था जो उसने यूरोप की नीलामियों में खरीदी थीं.

 

लेकिन सबसे आश्चर्यजनक चीज थी उसका विशाल पढ़ने के कमरे का फर्श जिस पर चीते की खालों को जोड़कर बनाया गया बड़ा कार्पेट बिछा था. मुझे पता चला कि उसके एशिया, अफ्रीका और अमेरिका में कितने ही एजेंट थे जिनका एकमात्र काम था शेर, चीतों जैसे जानवरों की खाल एकत्रित करना.

 

ऐसा था नतालियो बोताना नाम के इस बदनाम और शक्तिशाली पूंजीपति का घर जो बूनो एयर्स के लोकमत का नियामक था. फैडरिको और मैं मेजबान के दायें–बायें बैठे.

हमारे सामने ही एक बेहद सुकुमार महिला कवि बैठी थी जिसकी नजरें पूरे डिनर भर फैडरिको से अधिक मुझ पर टिकी हुई थीं. खाने में एक बैल भी शामिल था जिसे 8-10 लोग जलते कोयलों के पास उठाकर लाए थे. शाम का आकाश गहरा नीला और तारों से जगमग था. जलते मांस की खुशबू के साथ मिली मसालों की गंध और अनगिनत झींगुरों की झंकार और मेंढकों की टर्राहट.

खाने
के बाद मेज से उठकर फैडरिको क साथ मैं और वह महिला प्रकाशित तरण ताल की ओर गए.

फेडरिको बेहद खुश था और हर बात पर हंस रहा था. लोर्का आगे–आगे बतियाता और हंसता चल रहा था. वह बहुत खुश था. वह हमेशा ही ऐसा था. खुशी उसकी ऐसे ही अभिन्न अंग थी जैसे उसकी त्वचा.

 

झिलमिलाते तरण ताल के किनारे एक ऊंचा बुर्ज सा बना हुआ था. उसकी सफेदी रात के प्रकाश में चमक रही थी.

 

हम धीरे–धीरे उस बुर्ज के सबसे ऊपरी हिस्से पर आ गए. उसके ऊपर जाकर हम अलग–अलग शैलियों के तीन कवि दुनिया से एकदम बेखबर वहां थे. नीचे ताल की नीली आंखें चमक रही थीं. दूर कहीं हम पार्टी में बजते गिटारों और चलते संगीत को सुन सकते थे. ऊपर तारों भरी रात हमारे सिरों के इतना करीब थी जैसे हम उसे छू सकते थे.

 

मैंने उस लंबी और सुन हरी लड़की को अपनी बाहों में ले लिया.
जब मैंने उसे चूमा तो पाया कि वह बेहद संवेदनशील, गदराई और पूरी औरत थी. फेडरिको को आश्चर्य हुआ जब हम वहीं खुले में फर्श पर पसर गए. जब मैं उसके कपड़े उतारने लगा तो लोर्का की बड़ी आंखें अविश्वास में फैल गईं.

 

“यहां से भागो! और देखो कि कोई ऊपर न आने पाए!” मैंने जोर से आदेश सा देते उससे कहा.

 

जिस तरह तारों भरे आकाश को भेंट चढ़ाने का अवसर नजदीक आया, फेडरिको खुशी–खुशी कहे अनुसार अपने काम पर चला गया और बुर्ज की अंधेरी सीढ़ियों पर फिसल कर गिर पड़ा. महिला और मुझे न चाहते हुए भी उसकी मदद के लिए नीचे आना पड़ा. वह दो हफ्ते तक लंगड़ाता रहा.

(नौ)

 [यही वह प्रसंग है जिसको लेकर छात्र, महिला और मानवाधिकार संगठनों ने पाब्लो नेरुदा पर बलात्कार के आरोप लगाए हैं. यह प्रसंग पुस्तक के चौथे अध्याय
“
एक शानदार एकांत”
के ‘सिंगापुर’ उपशीर्षक में है, हालांकि यह घटना श्रीलंका के कोलंबो की है. हम इसपर किसी भी तरह की टिप्पणी किए बिना पाठकों के लिए पूरा प्रसंग यहां दे रहे हैं.]

 

मेरा एकांत बंगला शहरी आबादी से दूर था. जब मैंने उसे किराए पर लिया तो सबसे पहले यह देखा कि उसका गुसलखाना कहां है. मुझे वह कहीं नहीं मिला. असल मैं वह घर के अंदर के स्नानघर में नहीं था बल्कि घर के पीछे था. मैंने उत्सुकता से उसका मुआयना किया.


वह लकड़ी का एक डिब्बा था जिसके बीच में एक छेद बना हुआ था. चिले में गांव में ऐसी कलाकृतियां हमने बचपन में देखी थीं. लेकिन वहां गुसलखाना या तो गहरे कुएं पर या बहते पानी के ऊपर होता था. यहां तो उस छेद के नीचे एक धातु का घड़ा लगा दिया गया था.रोज सुबह वह घड़ा साफ मिलता था.मुझे नहीं पता उसका पाखाना कहां चला जाता था.

 

एक सुबह मैं थोड़ा जल्दी उठा और जो हो रहा था उसे देखकर चकित रह गया.घर के पीछे की तरफ एक सांवली औरत आई. ऐसी सुंदर औरत मैंने अभी तक श्रीलंका में देखी नहीं थी. वह नीची जाति की तमिल औरत थी. वह सबसे सस्ते कपड़े की लाल और सुनहरी रंग की सूती साड़ी पहने हुई थी.

 

उसने नंगे पैरों में मोटे कड़े पहने हुए थे. उसकी नाक के दोनों तरफ लाल बिंदी सी कुछ थी. हो सकता है वे साधारण शीशे की ही हों लेकिन उस पर तो मोती सी दिखाई पड़ती थीं.

वह बिना मुझे देखे चुपचाप गुसलखाने की तरफ बढ़ गई और फिर उस गंदे पाखाने को सिर पर लेकर चली गई. उसकी चाल किसी देवी जैसी थी.

 

वह
इतनी प्यारी थी कि उसके गंदे काम के बावजूद मैं उसे अपने मन से नहीं निकाल सका. एक शर्मीले जंगली जानवर की तरह वह एक दूसरी दुनिया का ही प्राणी थी. मैंने उसे बुलाया लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ.

 

उसके बाद, मैं उसके रास्ते पर कोई उपहार रख देता, कोई रेशमी कपड़ा या कोई फल. वह उसे बिना देखे ही चली जाती. वह हेय दिनचर्या उसके सांवले सौंदर्य के द्वारा किसी महारानी के उत्सव जैसी हो गई. 

एक
सुबह मैंने उसे मनाने की ठान ली. मैंने उसकी कलाई जोर से पकड़ ली और उसकी आंखों में देखा. कोई ऐसी भाषा नहीं थी जिसमें मैं उससे बात कर सकता.

 

बिना मुस्कुराए, वह मेरे साथ चली आई और फिर नंगी मेरे बिस्तर में थी. उसकी पतली सी कमर, भारी नितंब, गदराए कुच ऐसा लगता था जैसे कोई हजारों साल पुरानी प्रतिमा दक्षिण भारत से उठकर चली आई हो. वह एक पुरुष और मूर्ति का संभोग था. पूरे संभोग के दौरान उसकी आंखें खुली रहीं और वह पूरी तरह क्रियाहीन रही. उसका मुझसे वितृष्णा करना सही ही था. उसके बाद ऐसा कभी नहीं हुआ.

———————————————————————————————

ऐसा नहीं है कि यह केवल नेरुदा की अपनी कोई निजी विशेषता है. क्रांतिकारी विचारधारा में ‘रेवोल्यूशनरी रोमांटिसिज्म‘ जिसे फ्रांसीसी मार्क्सवादी दार्शनिक हैनरी लेफीवा ने एक सौंदर्यशास्त्रीय मान्यता के रूप में स्थापित करने की कोशिश की, एक प्रबल प्रवृत्ति रही है.

 

यानी पूंजीवादी देशों में पार्टी के नियंत्रण से बाहर चले ऐसे तमाम प्रगतिशील आंदोलन या व्यक्तिगत प्रवृत्तियां जो चीजों को रोमानी रूप में देखती हों और उनकी अभिव्यक्ति का बेहद निजी और रोमानी तरीका अपनाते हों.

The End

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Engr. Maqbool Akram

Engr. Maqbool Akram

I am, Engineer Maqbool Akram (M.Tech. Mechanical Engineer from AMU ), believe that reading and understanding literature and history is important to increase knowledge and improve life. I am a blog writer. I like to write about the lives and stories of literary and historical greats. My goal is to convey the lives and thoughts of those personalities who have had a profound impact on the world in simple language. I research the lives of poets, writers, and historical heroes and highlight their unheard aspects. Be it the poems of John Keats, the Shayari of Mirza Ghalib, or the struggle-filled story of any historical person—I present it simply and interestingly.

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Renuka Devi: Daughter of founder of Abdullah Women’s College A.M.U.Aligarh was legendary actress of pre-partition era (Begum Khurshid Mirza)

Renuka Devi: Daughter of founder of Abdullah Women’s College A.M.U.Aligarh was legendary actress of pre-partition era (Begum Khurshid Mirza)

May 11, 2025

साहब-ए-करामात- फाताँ ने वहीं चारपाई से कहा। “हाँ…….मौलवी साहब की दाढ़ी और पट्टे।” सआदत हसन मंटो

May 5, 2025
धुंआ धुंआ ज़िंदगी लाइफ़ इन मेट्रो; ट्वंटी  ट्वंटी क्रिकेट की तरह तलाक़ का निर्णय भी जल्दी आगया. और वे दोनों ‘एक्स’ होगए (नंदकिशोर बर्वे)

धुंआ धुंआ ज़िंदगी-लाइफ़ इन मेट्रो; ट्वंटी ट्वंटी क्रिकेट की तरह तलाक़ का निर्णय भी जल्दी आ गया. और वे दोनों ‘एक्स’ हो गए. (नंद किशोर बर्वे)

May 2, 2025
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तुमने क्यों कहा था मैं सुंदर हूं: फ़ोटो में माया की तरह छरहरे शरीर, परंतु बहुत सुंदर अनुपात के अवयव की निरावरण युवती, दाईं बांह का सहारा लिये एक चट्टान पर बैठी, कहीं दूर देख रही थी (यशपाल की कहानी )

May 2, 2025
अलाउद्दीन खिलजी, ने भारत की रक्षा दुनिया के क्रूरतम लड़ाके ‘मंगोलो’ से की। जिन्होंने बगदाद के खलीफा अबू मुस्तसिम बिल्लाह तक को मार दिया था।

अलाउद्दीन खिलजी, ने भारत की रक्षा दुनिया के क्रूरतम लड़ाके ‘मंगोलो’ से की। जिन्होंने बगदाद के खलीफा अबू मुस्तसिम बिल्लाह तक को मार दिया था।

May 2, 2025
जॉन कीट्स ब्रिटेन के महान कवि और फैनी ब्रॉन की असफल प्रेम कहानी- कीट्स की मृत्यु महज 25 साल में हो गई दोनों ने शादी नहीं की उसने विधवा के रूप में कीट्स  की मृत्यु पर शोक मनाया।

जॉन कीट्स ब्रिटेन के महान कवि और फैनी ब्रॉन की असफल प्रेम कहानी- कीट्स की मृत्यु महज 25 साल में हो गई दोनों ने शादी नहीं की उसने विधवा के रूप में कीट्स की मृत्यु पर शोक मनाया।

May 2, 2025
Fall of Constantinople नौजवान सुल्तान मोहम्मद फतेह ने 29 मई 1453 को कुस्तुनतुनिय फतह (इस्तांबूल) किया.रोमन साम्राज्य का अंत. इस के बाद इस्लाम का यूरोप में प्रवेश.

Fall of Constantinople नौजवान सुल्तान मोहम्मद फतेह ने 29 मई 1453 को कुस्तुनतुनिय फतह (इस्तांबूल) किया.रोमन साम्राज्य का अंत. इस के बाद इस्लाम का यूरोप में प्रवेश.

May 2, 2025
पटना की बेहद हसीन तवायफ और एक पुजारी की लव स्टोरी – यह सूखा हुआ पान हमेशा उनकी विधवा पत्नी के लिए रहस्य ही बना रहा.

पटना की बेहद हसीन तवायफ और एक पुजारी की लव स्टोरी – यह सूखा हुआ पान हमेशा उनकी विधवा पत्नी के लिए रहस्य ही बना रहा.

April 24, 2025
बड़ी शर्म की बात: (इस्मत चुग़ताई) औरत मर्द की नाक काटे तो दहल जाती हूं. उफ़ कितनी शर्म की बात

बड़ी शर्म की बात: (इस्मत चुग़ताई) औरत मर्द की नाक काटे तो दहल जाती हूं. उफ़ कितनी शर्म की बात

March 22, 2025
नशे की रात के बाद का सवेरा (ख़ुशवंत सिंह) अपने अधूरे सपने का अन्त देखने लगा-जो एक विवाहित आदमी बिना संTकोच के कर सकता है.

नशे की रात के बाद का सवेरा (ख़ुशवंत सिंह) अपने अधूरे सपने का अन्त देखने लगा-जो एक विवाहित आदमी बिना संTकोच के कर सकता है.

March 18, 2025
अंतिम प्यार: ताड़ के वृक्षों के समूह के समीप मौन रहने वाली छाया के आश्रय में एक सुन्दर नवयुवती नदी के नील-वर्ण जल में अचल बिजली-सी मौन खड़ी थी. (रबिन्द्रनाथ टैगोर की कहानी )

अंतिम प्यार: ताड़ के वृक्षों के समूह के समीप मौन रहने वाली छाया के आश्रय में एक सुन्दर नवयुवती नदी के नील-वर्ण जल में अचल बिजली-सी मौन खड़ी थी. (रबिन्द्रनाथ टैगोर की कहानी )

March 17, 2025
नाच पार्टी के बाद. वन नाइट लव स्टोरी (रूसी कहानी हिंदी में) लियो टॉल्स्टॉय

नाच पार्टी के बाद. वन नाइट लव स्टोरी (रूसी कहानी हिंदी में) लियो टॉल्स्टॉय

March 17, 2025
परवीन शाकिर छोटी उम्र बड़ी जिंदगी वो शायरा जिनके शेरों में धड़कता है आधुनिक नारी का दिल- दिल को उस राह पे चलना ही नहीं, जो मुझे तुझ से जुदा करती है

परवीन शाकिर छोटी उम्र बड़ी जिंदगी वो शायरा जिनके शेरों में धड़कता है आधुनिक नारी का दिल- दिल को उस राह पे चलना ही नहीं, जो मुझे तुझ से जुदा करती है

March 17, 2025
आय विल कॉल यू मोबाइल फोन (रूपा सिंह) जैसे ही डाटा ऑन किया खट् खट् कर कई मैसेज दस्तक देते चले आये इतनी तेजी से सबकी खबरें स्क्रीन पर चमक रही थी

आय विल कॉल यू मोबाइल फोन (रूपा सिंह) जैसे ही डाटा ऑन किया खट् खट् कर कई मैसेज दस्तक देते चले आये इतनी तेजी से सबकी खबरें स्क्रीन पर चमक रही थी

March 17, 2025
चार्ल्स डिकेंस: के प्रेम प्रसंग विक्टोरियन इंग्लैंड के महान उपन्यासकार अपने युग के रॉक स्टार गलत जगहों पर प्यार की तलाश

चार्ल्स डिकेंस: के प्रेम प्रसंग विक्टोरियन इंग्लैंड के महान उपन्यासकार अपने युग के रॉक स्टार गलत जगहों पर प्यार की तलाश

March 18, 2025
पंच परमेश्वर: फूलो ने घूंघट नहीं खींचा मुंह उठा दिया गेहुंए रंग में दो मांसल आंखें थीं जिनमें  रात का खुमार अभी बिल्कुल मिटा नहीं (रांगेय राघव की कहानी)

पंच परमेश्वर: फूलो ने घूंघट नहीं खींचा मुंह उठा दिया गेहुंए रंग में दो मांसल आंखें थीं जिनमें रात का खुमार अभी बिल्कुल मिटा नहीं (रांगेय राघव की कहानी)

March 18, 2025
मैं खुदा हूँ Ana’l haqq मंसूर अल-हलाज: जल्लाद ने सिर काटा तो धड़ से खून की धार फूट पड़ी और अचानक उनके शरीर से कटा एक-एक अंग चीखने लगा च्मैं ही सत्य हूं

मैं खुदा हूँ Ana’l haqq मंसूर अल-हलाज: जल्लाद ने सिर काटा तो धड़ से खून की धार फूट पड़ी और अचानक उनके शरीर से कटा एक-एक अंग चीखने लगा च्मैं ही सत्य हूं

March 17, 2025
नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है  तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

March 18, 2025
अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

March 18, 2025
Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

March 17, 2025
सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

March 17, 2025
Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

March 17, 2025
मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

March 17, 2025
Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

March 18, 2025
Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

March 17, 2025
River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

March 17, 2025
Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

March 18, 2025
पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

March 17, 2025
पड़ोसिन (कहानी रवीन्द्रनाथ ठाकुर) अब छिपाना बेकार है वह तुम्हारी ही पड़ोसिन है, उन्नीस नम्बर में रहती है मैंने पूछा, सिर्फ कविताएं पढ़कर ही वह मुग्ध हो गई?’

पड़ोसिन (कहानी रवीन्द्रनाथ ठाकुर) अब छिपाना बेकार है वह तुम्हारी ही पड़ोसिन है, उन्नीस नम्बर में रहती है मैंने पूछा, सिर्फ कविताएं पढ़कर ही वह मुग्ध हो गई?’

March 17, 2025
Katha Saar of Karbala (Play):  By Munshi Premchand katha samrat ( 31 July 1880 –8 October 1936 )

Katha Saar of Karbala (Play): By Munshi Premchand katha samrat ( 31 July 1880 –8 October 1936 )

March 17, 2025
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