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दो हाथ: ये हाथ हरामी हैं न हलाली, इन हाथों ने बड़े-बड़े लोगों के गुनाह दफ़न किए हैं. ये दो हाथ चाहें तो रानियों के तख़्त उलट दें (इस्मत चुग़ताई की एक कहानी)

by Engr. Maqbool Akram
November 3, 2022
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राम अवतार लाम पर से वापस आ रहा था. बूढ़ी मेहतरानी अब्बा मियां से चिट्ठी पढ़वाने आई थी. राम अवतार को छुट्टी मिल गई. जंग ख़त्म हो गई थी न! इसलिए राम अवतार तीन साल बाद वापस आ रहा था, बूढ़ी मेहतरानी की चीपड़ भरी आंखों में आंसू टिमटिमा रहे थे. मारे शुक्रगुज़ारी के वो दौड़–दौड़ कर सब के पांव छू रही थी. जैसे इन पैरों के मालिकों ने ही उसका इकलौता पूत लाम से ज़िंदा सलामत मंगवा लिया.

  

बुढ़िया पच्चास बरस की होगी पर सत्तर की मालूम होती थी. दस–बारह कच्चे–पक्के बच्चे जने, उनमें बस राम अवतार बड़ी मिन्नतों–मुरादों से जिया था. अभी उसकी शादी रचाए साल भर भी नहीं बीता था कि राम अवतार की पुकार आ गई, मेहतरानी ने बहुत वावेला मचाया मगर कुछ न चली और जब राम अवतार वर्दी पहन कर आख़िरी बार उसके पैर छूने आया तो उसकी शान–ओ–शौकत से बे–इंतिहा मरऊब हुई जैसे वो कर्नल ही तो हो गया था.

 

शागिर्द पेशे में नौकर मुस्कुरा रहे थे, राम अवतार के आने के बाद जो ड्रामा होने की उम्मीद थी सब उसी पर आस लगाए बैठे थे.

 हालांकि राम अवतार लाम पर तोप बंदूक़ छोड़ने नहीं गया था. फिर भी सिपाहियों का मैला उठाते–उठाते उसमें कुछ सिपाहियाना आन बान और अकड़ पैदा हो गई होगी.

 

भूरी वर्दी डांट कर वो पुराना राम अवतरवा वाक़ई न रहा होगा. नामुमकिन है वो गौरी की करतूत सुने और उसका जवान ख़ून हतक से खौल न उठे.

Ismat Chughtai

जब तक राम अवतार रहा उसका घूंघट फ़ुट भर लंबा रहा और किसी ने उसके रुख़–ए–पुर नूर का जलवा न देखा, जब ख़सम गया तो क्या बिलक–बिलक कर रोई थी. जैसे उसकी मांग का सिंदूर हमेशा के लिए उड़ रहा हो.

 

थोड़े दिन रोई–रोई आंखें लिए सर झुकाए मैले की टोकरी ढोती फिरी, फिर आहिस्ता–आहिस्ता उसके घूंघट की लम्बाई कम होने लगी.

 

कुछ लोगों का ख़याल है ये सारा बसंत रुत का किया धरा है, कुछ साफ़ गो कहते थे, “गौरी थी ही छिनाल, राम अवतार के जाते ही क़ियामत हो गई.”

 

कम्बख़्त हर वक़्त ही ही, हर वक़्त इठलाना, कमर पर मैले की टोकरी लेकर कांसे के कड़े छनकाती जिधर से निकल जाती लोग बदहवास हो जाते.

 

धोबी के हाथ से साबुन की बट्टी फिसल कर हौज़ में गिर जाती. बावर्ची की नज़र तवे पर सुलगती हुई रोटी से उचट जाती. भिश्ती का डोल कुवें में डूबता ही चला जाता चपड़ासियों तक की बिला कलफ़ लगी पगड़ियां ढीली हो कर गर्दन में झूलने लगती.

 

और जब ये सरापा क़ियामत घूंघट में से बाण फेंकती गुज़र जाती तो पूरा शागिर्द पेशा एक बे–जान लाश की तरह सकते में रह जाता, फिर एक दम चौंक कर वो एक दूसरे के दुर्गत पर तानाज़नी करने लगते. धोबिन मारे ग़ुस्से के कलफ़ की कूंडी लोट देती. चपड़ासन छाती से चिमटे लौंडे के बे बात तमाचे के जड़ने लगती. और बावर्ची की तीसरी बीवी पर हिस्टीरिया का दौरा पड़ जाता.

 

नाम की गौरी थी. पर कम्बख़्त स्याह बहुत थी जैसे उल्टे तवे पर किसी फ़ावढ़िया ने पराठे मलकर चमकता हुआ छोड़ दिया हो. चौड़ी फुकना सी नाक, फैला हुआ दहाना, दांत मांझने का उसकी सात पुश्त ने फ़ैशन ही छोड़ दिया था.

 

आंखों में पवटें काजल थोपने के बाद भी दाईं आंख का भेंगा पन ओझल न हो सका, फिर भी टेढ़ी आंख से न जाने कैसे ज़हर में बुझे तीर फेंकती थी कि निशाने पर बैठ ही जाते थे. कमर भी लचकदार न थी. ख़ासी कठला सी थी, झूटन खा–खा दुंबा हो रही थी, चौड़े भैंस के से खुर.

 

जिधर से निकल जाती कड़वे तेल की सड़ान्द छोड़ जाती, हां आवाज़ में बला की कूक थी. तीज त्योहार पर लहक कर कजरिया गाती तो उसकी आवाज़ सबसे ऊंची लहराती चली जाती.

 

बुढ़िया मेहतरानी यानी उसकी सास बेटे के जाते ही इस तरह बदगुमान हो गई. बैठे बैठाए एहतियातन गालियां देती, उस पर नज़र रखने के लिए पीछे–पीछे फिरती. मगर बुढ़ाया अब टूट चुकी थी, चालीस बरस मैला ढोने से उसकी कमर मुस्तक़िल तौर पर एक तरफ़ लचक कर वहीं ख़त्म हो गई थी, हमारी पुरानी मेहतरानी थी.

 

हम लोगों के आंवल नाल उसी ने गाड़े थे. जूं ही अम्मां के दर्द लगते मेहतरानी दहलीज़ पर आकर बैठ जाती और बा’ज़ वक़्त लेडी डाक्टर तक को निहायत मुफ़ीद हिदायतें देती, बलाईआत को दफ़ा करने के लिए कुछ मंत्र तावीज़ भी ला कर पट्टी से बांध देती, मेहतरानी की घर में ख़ासी बुजु़र्गाना हैसियत थी.

 

इतनी लाडली मेहतरानी की बहू यकायक लोगों की आंखों में कांटा बन गई. चपरासन और बावर्चन की तो और बात थी. हमारी अच्छी भली भावजों का माथा उसे इठलाते देखकर ठनक जाता, अगर वो उस कमरे में झाड़ू देने जाती जिसमें उसके मियां होते तो वो हड़बड़ा कर दूध पीते बच्चे के मुंह से छाती छीन कर भागतीं कि कहीं वो डायन उनके शौहरों पर टोना टोटका न कर रही हो.

 

गौरी क्या थी बस एक मरखना लंबे–लंबे सींगों वाला बिजार था कि छूटा फिरता था लोग अपने कांच के बर्तन भांडे दोनों हाथों से समेट कर कलेजे से लगाते, और जब हालात ने नाज़ुक सूरत पकर ली तो शागिर्द पेशे की महिलाओं का एक बाक़ायदा वफ़द अम्मां के दरबार में हाज़िर हुआ.

 

बड़े ज़ोर शोर से ख़तरा और उसके ख़ौफ़नाक नताइज पर बहस हुई, पती रक्षा की एक कमेटी बनाई गई जिसमें सब भावजों ने शद–ओ–मद से वोट दिए और अम्मां को सदर एज़ाज़ी का ओहदा सौंपा गया, सारी ख़वातीन हस्ब–ए–मरातिब ज़मीन, पीढ़ियों और पलंग की अदवाइन पर बैठें, पान के टुकड़े तक़सीम हुए और बुढ़िया को बुलाया गया.

 

निहायत इतमीनान से बच्चों के मुंह में दूध देकर सभा में ख़ामोशी क़ायम की गई और मुक़द्दमा पेश हुआ.

 

“क्यों री चुड़ैल तूने बहू क़तामा को छूट दे रखी है कि हमारी छातियों पे कोदों दले, इरादा क्या है तेरा… क्या मुंह काला कराएगी?”

 

मेहतरानी तो भरी ही बैठी थी फूट पड़ी… “क्या करूं बेगम साहब हरामख़ोर को चार चोट की मार भई दी मैं तो. रोटी भी खाने को न दिये. पर रांड मेरे तो बस की नहीं.”

 

“अरे रोटी की क्या कमी है उसे” बावर्चन ने अंटा फेंका. सहारनपुर की ख़ानदानी बावर्चन और फिर तीसरी बीवी… क्या तेहा था कि अल्लाह की पनाह फिर चपड़ासन, टालन और धोबिन ने मुक़द्दमे को और संगीन बना दिया. बेचारी मेहतरानी बैठी सबकी लताड़ सुनती और अपनी ख़ारिश–ज़दा पिंडलियां खुजलाती रही.

 

“बेगम साहब आप जैसी बताओ वैसे करने से मोए ना थोरी, पर का करूं का, रांड का टेंटवा दबाए दियों?”

अम्मां ने राय दी… “मोई को मैके फुंकवा दे.”

 

“ए बेगम साहब कहीं ऐसा हो सके है?” मेहतरानी ने बताया कि बहू मुफ़्त हाथ नहीं आई है, सारी उम्र की कमाई, पूरे दो सौ झोंके हैं, तब मुसटन्डी हाथ आई है, इतने पैसों में तो गाएं आ जातीं, मज़े से भर कलसी दूध देती.

 

पर ये रांड तो दौलतियां ही देती है, अगर उसे मैके भेज दिया गया तो उसका बाप उसे फ़ौरन दूसरे मेहतर के हाथ बेच देगा. बहू सिर्फ़ बेटे के बिस्तर की ज़ीनत ही तो नहीं, दो हाथों वाली है पर चार आदमियों का काम निपटाती है. राम अवतार के जाने के बाद बुढ़िया से इतना काम क्या संभलता, ये बुढ़ापा तो अब बहू के दो हाथों के सदक़े में बीत रहा है.”

 

महिलाएं कोई ना–समझ न थीं. मुआमला अख़लाक़ियात से हट कर इक़्तेसादियात पर आ गया था. वाक़ई बहू का वुजूद बुढ़िया के लिए लाज़िमी था. दो सौ रुपय का माल किस का दिल है कि फेंक दे, इन दो सौ के इलावा ब्याह पर जो बनिये से लेकर ख़र्च किया था. जजमान खिलाए थे. बिरादरी को राज़ी किया था.

 

ये सारा ख़र्चा कहां से आएगा. राम अवतार को जो तनख़्वाह मिलती थी वो सारी उधार में डूब जाती थी. ऐसी मोटी ताज़ी बहू अब तो चार–सौ से कम में न मिलेगी. पूरी कोठी की सफ़ाई के बाद और आस–पास की चार कोठियां निमटाती है. रांड काम में चौकस है वैसे.

 

फिर भी अम्मां ने अल्टीमेटम दे दिया. कि “अगर उस लुच्ची का जल्द–अज़–जल्द कोई इंतेज़ाम न किया गया तो कोठी के अहाते में नहीं रहने दिया जाएगा.”

 

बुढ़िया ने बहुत वावेला मचाई, और जा कर बहू को मुंह भर गालियां दीं, झोंटे पकड़ कर मारा पीटा भी, बहू उसकी ज़र–ख़रीद थी. पिटती रही बड़बड़ाती रही और दूसरे दिन इंतेक़ामन सारे अमले की धज्जियां बिखेर दीं.

 

बावर्ची, भिश्ती, धोबी और चपरासियों ने तो अपनी बीवियों की मुरम्मत की. यहां तक कि बहू के मुआमले पर मेरी मुहज़्ज़ब भाबियों और शरीफ़ भाईयों में भी कट पुट हो गई, और भाबियों के मैके तार जाने लगे. ग़रज़ बहू हरे–भरे ख़ानदान के लिए सूई का कांटा बन गई.

 

मगर दो–चार दिन के बाद बूढ़ी मेहतरानी के देवर का लड़का राम रत्ती अपनी ताई से मिलने आया, और फिर वहीं रह पड़ा. दो–चार कोठियों में काम बढ़ गया था सो वो भी उसने संभाल लिया. अपने गांव में आवारा तो घूमता था. उसकी बहू अभी नाबालिग़ थी. इसलिए गौना नहीं हुआ था.

 

रत्ती राम के आते ही मौसम एक दम लोट–पोट कर बिलकुल ही बदल गया जैसे घनघोर घटाऐं हवा के झोंकों के साथ तितर–बितर हो गईं. बहू के क़हक़हे ख़ामोश हो गए.

कांसे के कड़े गूंगे हो गए, और जैसे गुब्बारे से हवा निकल जाए तो वो चुप–चाप झूलने लगा. ऐसे बहू का घूंघट झूलते झूलते नीचे की तरफ़ बढ़ने लगा. अब वो बजाय बे–नथे बैल के निहायत शर्मीली बहू बन गई.

 

जुमला महिलाओं ने इतमीनान का सांस लिया. स्टाफ़ के मर्द उसे छेड़ते भी तो वो छुई–मुई की तरह लजा जाती, और ज़्यादा–तर वो घूंघट में से भैंगी आंख को और तिर्छा करके रत्ती राम की तरफ़ देखती जो फ़ौरन बाज़ू खुजलाता सामने आकर डट जाता.

 

बुढ़िया पुरसुकून अंदाज़ में दहलीज़ पर बैठी अध–खुली आंखों से ये तरबिया ड्रामा देखती और गुड़गुड़ी पिया करती. चारों तरफ़ ठंडा–ठंडा सुकून छा गया जैसे फोड़े का मवाद निकल गया हो.

 

मगर अब के बहू के ख़िलाफ़ एक नया महाज़ क़ायम हो गया, वो अमले की मर्द जाती पर मुश्तमिल था. बात बे बात बावर्ची जो उसे पराठे तल कर दिया करता था कूंडी साफ़ न करने पर गालियां देता. धोबी को शिकायत थी कि वो कलफ़ लगा कर कपड़े रस्सी पर डालता है ये हरामज़ादी ख़ाक उड़ाने आ जाती है.

 

चपरासी मर्दाने में दस–दस मर्तबा झाड़ू दिलवाते फिर भी वहां की ग़लाज़त का रोना रोते रहते, भिश्ती जो उसके हाथ धुलाने के लिए कई मश्कें लिए तैयार रहता था अब घंटों सहन में छिड़काओ करने को कहती मगर टालता रहता. ताकि वो सूखी ज़मीन पर झाड़ू दे, तो चपरासी गर्द उड़ाने के जुर्म में उसे गालियां दे सके.

 

मगर बहू सर झुकाए सबकी डांट फटकार एक कान से सुनती दूसरे कान से उड़ा देती. न जाने सास से क्या जा कर कह देती कि वो काएं–काएं कर के सब का भेजा चाटने लगती. अब उसकी नज़र में बहू निहायत पारसा और नेक हो चुकी थी.

 

फिर एक दिन दाढ़ी वाले दारोगा जी जो तमाम नौकरों के सरदार थे और अब्बा के ख़ास मुशीर समझे जाते थे. अब्बा के हुज़ूर में दस्त–बस्ता हाज़िर हुए, और उस भयानक बदमाशी और ग़लाज़त का रोना–रोने लगे. जो बहू और रत्ती राम के नाजायज़ ताल्लुक़ात से सारे शागिर्द पेशे को गंदा कर रही थी. अब्बा जी ने मुआमला सेशन सपुर्द कर दिया. यानी अम्मां को पकड़ा दिया. महिलाओं की सभा फिर से छिड़ी और बुढ़िया को बुला कर उसके लत्ते लिए गए.

 


“अरी निगोड़ी ख़बर भी है ये तेरी बहू क़तामा क्या गुल खिला रही है?”

 

मेहतरानी ने ऐसे चुंधरा कर देखा जैसे कुछ नहीं समझती ग़रीब. कि किस का ज़िक्र हो रहा है और जब उसे साफ़–साफ़ बताया गया कि चश्मदीद गवाहों का कहना है कि बहू और रत्ती राम के ताल्लुक़ात नाज़ेबा हद तक ख़राब हो चुके हैं, दोनों बहुत ही काबिल–ए–एतराज़ हालतों में पकड़े गए हैं तो इस पर बुढ़िया बजाय अपनी बेहतरी चाहने वालों का शुक्रिया अदा करने के, बहुत चिराग़–ए–पा हुई. बड़ा वावेला मचाने लगी. कि “राम ओतरवा होता तो उन लोगों की ख़बर लेता जो उसकी मासूम बहू पर तोहमत लगाते हैं.”

 

बहू निगोड़ी तो अब चुप–चाप राम अवतार की याद में आंसू बहाया करती है. काम–काज भी जान तोड़ करती है. किसी को शिकायत नहीं होती. ठिटोल भी नहीं करती. लोग उसके नाहक़ दुश्मन हो गए हैं. बहुत समझाया मगर वो मातम करने लगी कि सारी दुनिया उसकी जान की लागों हो गई है.

 

आख़िर बुढ़िया और उसकी मासूम बहू ने लोगों का क्या बिगाड़ा है. वो तो किसी के लेने में, ना देने में, वो तो सबकी राज़–दार है. आज तक उसने किसी का भांडा फोड़ा, उसे क्या ज़रूरत जो किसी के फेक में पैर उड़ाती फिरे.

 

कोठियों के पिछवाड़े क्या नहीं होता. मेहतरानी से किसी का मैला नहीं छुपता. इन बूढ़े हाथों ने बड़े–बड़े लोगों के गुनाह दफ़्न किए हैं. ये दो हाथ चाहें तो रानियों के तख़्त उलट दें. पर नहीं उसे किसी से बुग़्ज़ नहीं. अगर उसकी गले में छुरी दबाई गई तो शायद ग़लती हो जाए. वैसे वो किसी के राज़ अपने बूढ़े कलेजे से बाहर नहीं निकलने देगी.”

 

उसका तेहा देखकर फ़ौरन छुरी दबाने वालों के हाथ ढीले पड़ गए. सारी महिलाएं उसका पक्ष करने लगीं. बहू कुछ भी करती थी उनके अपने क़िले तो महफ़ूज़ थे तो फिर शिकायत कैसी? फिर कुछ दिन हुए बहू के इश्क़ का चर्चा कम होने लगा. लोग कुछ भूलने लगे, ताड़ने वालों ने ताड़ लिया कि कुछ दाल में काला है.

 

बहू का भारी भरकम जिस्म भी दाल के काले को ज़्यादा दिन न छिपा सका, और लोग शद–ओ–मद से बुढ़िया को समझाने लगे. मगर इस नए मौज़ू पर बुढ़िया बिलकुल उड़न घाइआं बताने लगी, बिलकुल ऐसे बन जाती जैसे एक दम ऊंचा सुनने लगी है. अब वो ज़्यादा–तर खाट पर लेटी बहू और रत्ती राम पर हुक्म चलाया करती, कभी खांसती, छींकती बाहर धूप में आ बैठती तो वो दोनों उसकी ऐसी देख रेख करते जैसे वो कोई पटरानी हो.

 

भली बीवियों ने उसे समझाया. रत्ती राम का मुंह काला करो और इससे पहले कि राम अवतार लौट आए. बहू का ईलाज करवा डाल. वो ख़ुद इस फ़न में माहिर थी. दो दिन में सफ़ाई हो सकती थी. मगर बुढ़िया ने कुछ समझ कर ही न दिया. बिलकुल इधर–उधर की शिकायतें करने लगी कि उसने घुटनों में पहले से ज़्यादा ऐंठन होती है निज़ कोठियों में लोग बहुत ही ज़्यादा बादी चीज़ें खाने लगे हैं.

 

किसी न किसी कोठी में दस्त लगे ही रहते हैं. उसकी टाल–मटोल पर नासिहीन जल कर मरुन्डा हो गए. माना कि बहू औरत ज़ात है, नादान है, भोली, बड़ी–बड़ी शरीफ़ ज़ादियों से ख़ता हो जाती है, लेकिन उनकी आला ख़ानदान की मुअज़्ज़िज़ सासें यूं कान में तेल डाल कर नहीं बैठ जातीं, पर न जाने ये बुढ़िया क्यों सठिया गई थी. जिस बला को वो बड़ी आसानी से कोठी के कूड़े के तह में दफ़न कर सकती थी उसे आंखें मीचे पलने दे रही थी.

 

राम अवतार के आने का इंतिज़ार था. हर वक़्त की धमकियां तो देती रहती थी.

“आन दे राम अवतार का, कहांगी. तोरी हड्डी पसली एक कर दे.” और अब राम अवतार लाम से ज़िंदा वापिस आ रहा था. फ़िज़ा ने सांस रोक ली थी. लोग एक मुहीब हंगामे के मुंतज़िर थे.

 

मगर लोगों को सख़्त कोफ़्त हुई जब बहू ने लौंडा जना. बजाय उसे ज़हर देने के बुढ़िया की मारे ख़ुशी के बाछें खिल गईं. राम अवतार के जाने के दो साल बाद पोता होने पर क़तई मुतअज्जिब न थी. घर–घर फटे पुराने कपड़े और बधाई समेटती फिरी. उसका भला चाहने वालों ने उसे हिसाब लगा कर बहुतेरा समझाया कि ये लौंडा राम अवतार का हो ही नहीं सकता, मगर बुढ़िया ने क़तई समझ कर न दिया.

 

उसका कहना था असाढ़ में राम अवतार लाम पे गया. बुढ़िया पीली कोठी के नए अंग्रेज़ी वज़ा के महीने में संडास में गिर पड़ी थी. अब चेत लग रहा है, और जेठ के महीने में बुढ़िया को लू लगी थी. मगर बाल–बाल बच गई थी. जभी से उसके घुटनों का दर्द बढ़ गया… “वेद जी पूरे हरामी हैं दवाएं खरिया मिला कर देते हैं.” उसके बाद वो बिलकुल अस्ल सवाल से हट कर ख़ैलाओं की तरह ओल–फ़ोल बकने लगती. किस के दिमाग़ में इतना बूता था कि वो बात इस काइयां बुढ़िया को समझाता जिसे ना समझने का वो फ़ैसला कर चुकी थी.

 

लौंडा पैदा हुआ तो उसने राम अवतार को चिट्ठी लिखवाई.

“राम अवतार को बाद चुम्मा, प्यार के मालूम हो कि यहां सब कुशल हैं और तुम्हारी कुशलता भगवान से नेक चाहते हैं और तुम्हारे घर में पूत पैदा हुआ है सो तुम इस ख़त को तार समझो और जल्दी से आ जाओ.”

 

लोग समझते थे कि राम अवतार ज़रूर चिराग़–ए–पा होगा मगर सबकी उम्मीदों पर ओस पड़ गई जब राम अवतार का मुसर्रत से लबरेज़ ख़त आया कि वो लौंडे के लिए मोज़े और बनियान ला रहा था.

 

बुढ़िया पोते को घुटने पर लुटाए खाट पर बैठी राज किया करती, भला इससे ज़्यादा हसीन बुढ़ापा क्या होगा, सारी कोठियों का काम तुरत–फुरत हो रहा हो, महाजन का सूद पाबंदी से चुक रहा हो और घुटने पर पोता सो रहा हो.

 

ख़ैर लोगों ने सोचा, राम अवतार आएगा. असलीयत मालूम होगी. तब देख लिया जाएगा और राम अवतार जंग जीत कर आ रहा था. आख़िर को सिपाही है क्यों न ख़ून खौलेगा. लोगों के दिल धड़क रहे थे. शागिर्द पेशे की फ़िज़ा जो बहू की तोता चश्मी की वजह से सो गई थी. दो–चार ख़ून होने और नाकें कटने की आस में जाग उठी.

 

लौंडा साल भर का होगा. जब राम अवतार लौटा. शागिर्द पेशे में खलबली मच गई. बावर्ची ने हांडी में ढेर सा पानी झोंक दिया ताकि इतमीनान से पीटने का लुत्फ़ उठाए. धोबी ने कलफ़ का बर्तन उतार कर मुंडेर पर रख दिया और भिश्ती ने डोल कुवें के पास पटक दिया.

 

राम अवतार को देखते ही बुढ़िया उसकी कमर से लिपट कर चिंघाड़ने लगी मगर दूसरे लम्हे खीसें काढ़े लौंडे को राम अवतार की गोद में देकर ऐसे हंसने लगी जिसे कभी रोई ही न हो.

 

राम अवतार लौंडे को देखकर ऐसे शरमाने लगा जैसे वही उसका बाप हो, झटपट उसने संदूक़ खोल कर सामान निकालना शुरू किया. लोग समझे खकरी या चाक़ू निकाल रहा है मगर जब उसने उसमें से लाल बनियान और पीले मोज़े निकाले तो सारे अमले की क़ुव्वत मर्दाना पर ज़र्ब–कारी लगी. हत तिरे की, साला सिपाही बनता है, हिजड़ा ज़माने भर का.

 

और बहू सिमटी सिमटाई जैसे नई–नवेली दुल्हन, कांसी की थाली में पानी भर कर राम अवतार के बदबूदार फ़ौजी बूट उतारे और चरण धो कर पिए.

 

लोगों ने राम अवतार को समझाया, फब्तियां कसीं, उसे गाउदी कहा मगर वो गाउदी की तरह खीसें काढ़े हंसता रहा, जैसे उसकी समझ में न आ रहा हो. रत्ती राम को गौना होने वाला था सो वो चला गया.

 

राम अवतार की इस हरकत पर ताज्जुब से ज़्यादा लोगों को ग़ुस्सा आया. हमारे अब्बा जो आम तौर पर नौकरों की बातों में दिलचस्पी नहीं लिया करते थे वो जिज़बिज़ हो गए. अपनी सारी क़ानून–दानी का दाओ लगा कर राम अवतार को क़ाइल करने पर तुल गए.

 

“क्यूं बे तू तीन साल बाद लौटा है ना?”

“मालूम नहीं हुजूर थोड़ा कम ज़्यादा… इत्ता ही रहा होगा.”

“और तेरा लौंडा साल भर का है.”

“इत्ता ही लगे है सरकार पर बड़ा बदमास है सुसर.” राम अवतार शरमाए.

“अबे तू हिसाब लगा ले.”

“हिसाब…? क्या लगाऊं सरकार.” राम अवतार ने मरघिल्ली आवाज़ में कहा.

 

“उल्लू के पट्ठे ये कैसे हुआ?”

“अब जे मैं का जानूं सरकार… भगवान की देन है.”

“भगवान की देन, तेरा सर… ये लौंडा तेरा नहीं हो सकता.”

 

अब्बा ने उसे चारों और से घेर कर क़ाइल करना चाहा कि लौंडा हरामी है, तो वो कुछ क़ाइल सा हो गया. फिर मरी हुई आवाज़ में अहमक़ों की तरह बोला.

 

“तो अब का करूं सरकार… हराम जादी को मैंने बड़ी मार दी.” वो ग़ुस्से से बिफर कर बोला.

“अबे निरा उल्लू का पट्ठा है तू… निकाल बाहर क्यों नहीं करता कम्बख़्त को.”

“नहीं सरकार कहीं ऐसा हुए सके हैं…” राम अवतार घिगयाने लगा.

“क्यूं बे?”

 

“हुजूर ढाई तीन सौ फिर सगाई के लिए कां से लाऊंगा और बिरादरी जमाने में सौ दो सौ अलग खरच हो जाएंगे.”

“क्यूं बे तुझे बिरादरी क्यों खिलानी पड़ेगी? बहू की बदमाशी का तावान तुझे क्यों भुगतना पड़ेगा?”

“जे मैं ना जानूं सरकार हमारे में ऐसा होय है.”

 

“मगर लौंडा तेरा नहीं राम अवतार… उस हरामी रत्ती राम का है.” अब्बा ने आजिज़ आकर समझाया.

“तो का हुआ सरकार… मेरा भाई होता है रत्ती राम कोई गैर नहीं अपना खून है”

“निरा उल्लू का पट्ठा है.” अब्बा भन्ना उठे.

“सरकार लौंडा बड़ा हो जावेगा अपना काम समेटेगा.”

 

राम अवतार ने गड़ गड़ कर समझाया. वो दो हाथ लगाएगा सो अपना बुढ़ापा तीरा हो जाएगा. नदामत से राम अवतार का सर झुक गया.

 

और न जाने क्यों एक दम राम अवतार के साथ अब्बा का सर झुक गया जैसे उनके ज़ह्न पर लाखों करोड़ों हाथ छा गए… ये हाथ हरामी हैं न हलाली, ये तो बस जीते जागते हाथ हैं जो दुनिया के चेहरे की ग़लाज़त धो रहे हैं उसके बुढ़ापे का बोझ उठा रहे हैं.

 

ये नन्हे–मुन्हे मिट्टी में लिथड़े हुए स्याह हाथ धरती की मांग में सींदूर सजा रहे हैं.

The End

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Engr. Maqbool Akram

Engr. Maqbool Akram

I am, Engineer Maqbool Akram (M.Tech. Mechanical Engineer from AMU ), believe that reading and understanding literature and history is important to increase knowledge and improve life. I am a blog writer. I like to write about the lives and stories of literary and historical greats. My goal is to convey the lives and thoughts of those personalities who have had a profound impact on the world in simple language. I research the lives of poets, writers, and historical heroes and highlight their unheard aspects. Be it the poems of John Keats, the Shayari of Mirza Ghalib, or the struggle-filled story of any historical person—I present it simply and interestingly.

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May 2, 2025
अलाउद्दीन खिलजी, ने भारत की रक्षा दुनिया के क्रूरतम लड़ाके ‘मंगोलो’ से की। जिन्होंने बगदाद के खलीफा अबू मुस्तसिम बिल्लाह तक को मार दिया था।

अलाउद्दीन खिलजी, ने भारत की रक्षा दुनिया के क्रूरतम लड़ाके ‘मंगोलो’ से की। जिन्होंने बगदाद के खलीफा अबू मुस्तसिम बिल्लाह तक को मार दिया था।

May 2, 2025
जॉन कीट्स ब्रिटेन के महान कवि और फैनी ब्रॉन की असफल प्रेम कहानी- कीट्स की मृत्यु महज 25 साल में हो गई दोनों ने शादी नहीं की उसने विधवा के रूप में कीट्स  की मृत्यु पर शोक मनाया।

जॉन कीट्स ब्रिटेन के महान कवि और फैनी ब्रॉन की असफल प्रेम कहानी- कीट्स की मृत्यु महज 25 साल में हो गई दोनों ने शादी नहीं की उसने विधवा के रूप में कीट्स की मृत्यु पर शोक मनाया।

May 2, 2025
Fall of Constantinople नौजवान सुल्तान मोहम्मद फतेह ने 29 मई 1453 को कुस्तुनतुनिय फतह (इस्तांबूल) किया.रोमन साम्राज्य का अंत. इस के बाद इस्लाम का यूरोप में प्रवेश.

Fall of Constantinople नौजवान सुल्तान मोहम्मद फतेह ने 29 मई 1453 को कुस्तुनतुनिय फतह (इस्तांबूल) किया.रोमन साम्राज्य का अंत. इस के बाद इस्लाम का यूरोप में प्रवेश.

May 2, 2025
पटना की बेहद हसीन तवायफ और एक पुजारी की लव स्टोरी – यह सूखा हुआ पान हमेशा उनकी विधवा पत्नी के लिए रहस्य ही बना रहा.

पटना की बेहद हसीन तवायफ और एक पुजारी की लव स्टोरी – यह सूखा हुआ पान हमेशा उनकी विधवा पत्नी के लिए रहस्य ही बना रहा.

April 24, 2025
बड़ी शर्म की बात: (इस्मत चुग़ताई) औरत मर्द की नाक काटे तो दहल जाती हूं. उफ़ कितनी शर्म की बात

बड़ी शर्म की बात: (इस्मत चुग़ताई) औरत मर्द की नाक काटे तो दहल जाती हूं. उफ़ कितनी शर्म की बात

March 22, 2025
नशे की रात के बाद का सवेरा (ख़ुशवंत सिंह) अपने अधूरे सपने का अन्त देखने लगा-जो एक विवाहित आदमी बिना संTकोच के कर सकता है.

नशे की रात के बाद का सवेरा (ख़ुशवंत सिंह) अपने अधूरे सपने का अन्त देखने लगा-जो एक विवाहित आदमी बिना संTकोच के कर सकता है.

March 18, 2025
अंतिम प्यार: ताड़ के वृक्षों के समूह के समीप मौन रहने वाली छाया के आश्रय में एक सुन्दर नवयुवती नदी के नील-वर्ण जल में अचल बिजली-सी मौन खड़ी थी. (रबिन्द्रनाथ टैगोर की कहानी )

अंतिम प्यार: ताड़ के वृक्षों के समूह के समीप मौन रहने वाली छाया के आश्रय में एक सुन्दर नवयुवती नदी के नील-वर्ण जल में अचल बिजली-सी मौन खड़ी थी. (रबिन्द्रनाथ टैगोर की कहानी )

March 17, 2025
नाच पार्टी के बाद. वन नाइट लव स्टोरी (रूसी कहानी हिंदी में) लियो टॉल्स्टॉय

नाच पार्टी के बाद. वन नाइट लव स्टोरी (रूसी कहानी हिंदी में) लियो टॉल्स्टॉय

March 17, 2025
परवीन शाकिर छोटी उम्र बड़ी जिंदगी वो शायरा जिनके शेरों में धड़कता है आधुनिक नारी का दिल- दिल को उस राह पे चलना ही नहीं, जो मुझे तुझ से जुदा करती है

परवीन शाकिर छोटी उम्र बड़ी जिंदगी वो शायरा जिनके शेरों में धड़कता है आधुनिक नारी का दिल- दिल को उस राह पे चलना ही नहीं, जो मुझे तुझ से जुदा करती है

March 17, 2025
आय विल कॉल यू मोबाइल फोन (रूपा सिंह) जैसे ही डाटा ऑन किया खट् खट् कर कई मैसेज दस्तक देते चले आये इतनी तेजी से सबकी खबरें स्क्रीन पर चमक रही थी

आय विल कॉल यू मोबाइल फोन (रूपा सिंह) जैसे ही डाटा ऑन किया खट् खट् कर कई मैसेज दस्तक देते चले आये इतनी तेजी से सबकी खबरें स्क्रीन पर चमक रही थी

March 17, 2025
चार्ल्स डिकेंस: के प्रेम प्रसंग विक्टोरियन इंग्लैंड के महान उपन्यासकार अपने युग के रॉक स्टार गलत जगहों पर प्यार की तलाश

चार्ल्स डिकेंस: के प्रेम प्रसंग विक्टोरियन इंग्लैंड के महान उपन्यासकार अपने युग के रॉक स्टार गलत जगहों पर प्यार की तलाश

March 18, 2025
पंच परमेश्वर: फूलो ने घूंघट नहीं खींचा मुंह उठा दिया गेहुंए रंग में दो मांसल आंखें थीं जिनमें  रात का खुमार अभी बिल्कुल मिटा नहीं (रांगेय राघव की कहानी)

पंच परमेश्वर: फूलो ने घूंघट नहीं खींचा मुंह उठा दिया गेहुंए रंग में दो मांसल आंखें थीं जिनमें रात का खुमार अभी बिल्कुल मिटा नहीं (रांगेय राघव की कहानी)

March 18, 2025
मैं खुदा हूँ Ana’l haqq मंसूर अल-हलाज: जल्लाद ने सिर काटा तो धड़ से खून की धार फूट पड़ी और अचानक उनके शरीर से कटा एक-एक अंग चीखने लगा च्मैं ही सत्य हूं

मैं खुदा हूँ Ana’l haqq मंसूर अल-हलाज: जल्लाद ने सिर काटा तो धड़ से खून की धार फूट पड़ी और अचानक उनके शरीर से कटा एक-एक अंग चीखने लगा च्मैं ही सत्य हूं

March 17, 2025
नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है  तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

नारी का विक्षोभ: सूरज ने जब सुना सविता कविता करती है तब दौड़ा-दौड़ा उस्ताद हाशिम के पास गया। (रांगेय राघव)

March 18, 2025
अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

अपरिचित (मोहन राकेश) सामने की सीट ख़ाली थी वह स्त्री किसी स्टेशन पर उतर गई थी इसी स्टेशन पर न उतरी हो यह सोचकर मैंने खिड़की का शीशा उठा दिया और बाहर देखा.

March 18, 2025
Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

Thakur Ka Kuan (Story Munshi Premchand) कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी इनमें बात हो रही थी खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिए पैसे नहीं हैं।

March 17, 2025
सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

सुखांत (आंतोन चेखव): इसमें इतना सोचने वाली कौन सी बात है? तुम एक ऐसी औरत हो जो मेरे दिल को भा सके तुम्हारे अंदर वो सारे गुण हैं जो मेरे लिए सटीक हों।

March 17, 2025
Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

Epic Love Tale Prithaviraj Chohan & Samyukta: Chivalry, Betrayal, Revange. Changed History &Geography of India

March 17, 2025
मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

March 17, 2025
Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

Khayzuran: Romance of a Dancing Slave Became Abbasid Caliphate Queen of The Ruler Al-Mahdi

March 18, 2025
Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

Shaghab: Sad end of a dancing concubine who became the dominant Queen of the Abbasid Empire Caliph Ahmad al Mutadid?

March 17, 2025
River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

River Stairs (R Nath Tagore) Story of a young widow Kusum. Jaan lo main saint hun is dunya ka nahin tum mujhe bhul jao.

March 17, 2025
Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

Peshawar Express: Krishen Chander. Narrator is train itself Haunting narrative that captures the brutality and chaos of the partition of India in 1947.

March 18, 2025
पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

पोस्टमास्टर (रवीन्द्रनाथ टैगोर) सवेरे से बादल खूब घिरे हुए थे पोस्टमास्टर की शिष्या बड़ी देर से दरवाजे के पास बैठी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन और दिनों की तरह जब यथासमय उसकी बुलाहट न हुई.

March 17, 2025
पड़ोसिन (कहानी रवीन्द्रनाथ ठाकुर) अब छिपाना बेकार है वह तुम्हारी ही पड़ोसिन है, उन्नीस नम्बर में रहती है मैंने पूछा, सिर्फ कविताएं पढ़कर ही वह मुग्ध हो गई?’

पड़ोसिन (कहानी रवीन्द्रनाथ ठाकुर) अब छिपाना बेकार है वह तुम्हारी ही पड़ोसिन है, उन्नीस नम्बर में रहती है मैंने पूछा, सिर्फ कविताएं पढ़कर ही वह मुग्ध हो गई?’

March 17, 2025
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