Blogs of Engr. Maqbool Akram

Uncategorized

ख़ुशवंत सिंह की एक कहानी-यह बिन्दो थी। जल्दी जवाब दो, तुम भी चाहती थीं या नहीं। अपना शॉल मुँह पर चारों तरफ़ से लपेट कर बिन्दों ने जवाब दिया, “हाँ”

दलीप सिंह चारपाई पर लेटा सितारोंभरे आसमान को देख रहा था ।काफ़ी गर्मी थी और चारों ओर शान्ति थी।वह लगभग नंगा था और सिर्फ़ लंगोट पहने था।फिर भी उसके बदन के हर हिस्से से पसीने की दूँदें छलक रही थीं।

 

मिट्टी की दीवारों से, जो दिन भर सूरज की गर्मी में तपती रही थीं, ज़बर्दस्त भभक निकल रही थी।

उसने घर की छत पर पानी छिड़क दिया था, लेकिन उससे भी मिट्टी और गोबर की गंध से मिलीजुली गीली गर्मी ही निकल रही थी।वह जितना ज़्यादा पानी पी सकता था, पी चुका था, लेकिन प्यास थी कि बुझती ही नहीं थी

 

फिर मच्छरों की भरमार थी जो चारों तरफ़ फैले भिनभिन कर रहे थे ।कुछ उसके कान के पास जाते तो वह उन्हें हाथ से पकड़ मसल देता था।

 

एक दो जो उसके कानों में घुस जाते, उन्हें पकड़कर वह दीवार से रगड़ देता था। कई उसकी दाढ़ी में भी घुस जाते और वे वहीं उलझकर खत्म हो जाते थे।

 

कुछ उसे काटने में भी सफल हो जाते और उसे जगहजगह खुजाना पड़ता था।सँंकरीसी गली के उस पार उसके चाचा का घर था; उसकी छत पर कई चारपाइयाँ पड़ी नज़र रही थीं।

 

एक सिरे पर चाचा बंता सिंह पड़ा सो रहा था और उसके हाथ तथा पैर इस तरह एकदूसरे से बँधे थे जैसे सलीब पर चढ़े हों वह खराटे ले रहा था और पेट उठतागिरता दिखाई दे रहा था।

 

उसने शाम को भंग पी ली थी, इसलिए जैसे घोड़े बेचकर सो रहा जज तरफ़ औरतें बैठी पंखा झल रही थीं और बातचीत दलीप सिंह ऊपर देखता जा रहा था। उसके मन में शान्ति नहीं थी, नींद रही थी।

 

सामने की छत पर उसका चाचा, उसके पिता. का भाई और हत्यारा, आराम से सो रहा था।

उसकी औरतें देर रात तक खानेपीने और गपशप करने का मज़ा ले रही थीं, जबकि उसकी अपनी माँ रेतमिट्टी से बर्तन माँज रही होगी और दिन में जलाने के कंडों के लिए गोबर इकट्ठा करती रहती थी।

 

बंता सिंह के कई नौकर थे जो गायभैंस चराने और खेत जोतने का काम करते थे और वह खुद भंग पीकर सोता रहता था।

 

उसकी काली आँखों वाली बेटी बिन्दो बेकार इधरउधर घूमती अपने जापानी सिल्क के कार्तों का प्रदर्शन करती रहती थी। लेकिन दलीप सिंह को काम ही काम में जुते रहना पड़ता था।

 

कीकर के पेड़ हिले और ठंडी बयार का झोंका छत के ऊपर से गुज़रा।इसने मच्छरों को भगा दिया और पसीना भी सूखने लगा।

 

दलीप को भी ठंडक महसूस हुई और उसे नींद आने लगी। बंता सिंह की छत पर औरतों ने पंखा झलना बन्द कर दिया। बिन्दो अपनी चारपाई के बगल में खड़ी ठंडी हवा का मज़ा लेती धीरेधीरे टहल रही थी। दलीप उसे देख रहा था।

 

बिन्दो गाँव के लोगों को अपनी छतों और आँगनों में सोते देख रही थी।सब शान्त था। उसने अपने कुर्ते के दोनों छोर हाथ से पकड़कर ऊपर उठाये और बदन को हवा दिलाने की कोशिश की, जिससे उसका पेट और छातियाँ दिखाई देने लगीं। फिर किसी ने फुसफुसाकर उससे कुछ कहा और उसने झट कुर्ता नीचे कर लिया। फिर वह अपनी चारपाई पर लेट गई और तकिये में समा गई।

 

दलीप सिंह यह देख रहा था और उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। उसके दिमाग़ से बंता सिंह की शक्ल गायब हो गई थी।

उसने आँखें बन्द कर लीं और बिन्दों की सूरत को कल्पना में उतारने की कोशिश करने लगा। उसके मन में बिन्दो के लिए कामना जगी और कल्पना में ही वह उसे प्यार करने लगा।

 

बिन्दो हमेशा उसके पास आना चाहती थी, वह आग्रह करती भी लगी। लेकिन पहले तो वह तैयार नहीं हुआ, फिर मान गया। बंता सिंह ने विरोध किया। दलीप सिंह ने आँखें बन्द कीं और सपने में डूब गया जहाँ बिन्दो थी, उसका युवा और नग्न शरीर था।

 

कई
घंटे बाद दलीप की माँ आई और उसने उसे कंधे पकड़कर हिलाया। जब तक मौसम ठंडा है, तब तक खेतों में काम कर आ।

 

आसमान काला था और सितारे चमक रहे थे। उसने अपनी कमीज़ निकाली, जो तकिये के नीचे तह करके रखी थी और पहन ली। फिर बगल वाली छत पर नज़र डाली। बिन्दो आराम से सो रही थी।

दलीप सिंह ने हल में बैल जोते और वे ही उसे खेत की तरफ़ ले चलने गाँव की सूनी, अँधेरी गलियों से होता हुआ वह सितारों से चमकते खेतों तक पहुँच गया। उसे थकान थी और बिन्दो की सूरत उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी।

 

पूरब का आसमान घुँधला हो उठा। आम के बगीचे से कोयल की आवाज़ आने लगीं। कीकर के पेड़ों में छिपे कौए धीरेधीरे काँवकाँव करने लगे।

 

दलीप सिंह हल चला रहा था लेकिन उसका दिमाग़ कहीं और था।वह सिर्फ़ हल का हत्था पकड़े था और धीरेधीरे उसके पीछे चलता जा रहा था। ज़मीन खुद रही थी ।लेकिन लाइनें सीधी थीं और गहरी।

 

सवेरे की रोशनी में उसे शर्म भी आने लगी। उसने सचेत होने का फ़ैसला किया और सपने को लगाम लगाई उसने हल का नुकीला सिरा ज़ोर से ज़मीन में घुसाया और बैलों की पीठ पर चाबुक चलाई।

 

पशुओं ने हुंकार भरी और पूँछ उठाकर तेज़ी से दौड़ने को हुए।हल गहराई से खुदाई करने लगा और मिट्टी उछलउछलकर दलीप के पैरों पर गिरने लगी

उसे लगा कि अब वह हल और बैल दोनों पर काबू पा गया है। उसने और भी ज़्यादा ज़ोर लगाकर हल की नोक से ज़मीन को उधेड़ना शुरू कर दिया।

 

सूरज आसमान में चढ़ने लगा और गर्मी में तेज़ी आई ।दलीप ने हल चलाना बन्द कर दिया और बैलों को पानी पिलाने के लिए पीपल के पेड़ के नीचे कुएँ पर ले गया और वहाँ उन्हें खोल दिया।

 

फिर कई डोल पानी खींचा, खुद नहाया और बैलों पर भी पानी डालकर तरबतर घर की तरफ़ लौटने लगा।माँ उसका इन्तज़ार कर रही थी।वह सरसों का साग और ज़रासा घी उस पर रखकर ताज़ी रोटी उसके लिए लाई।

एक बड़े पीतल के कटोरे में छाछ भी थी। दलीप एकदम खाने पर जुट गया और माँ पास बैठी मक्खियाँ उड़ाती रही। रोटी और साग खाकर उसने छाछ का कटोरा गटक लिया।

 

फिर वह चारपाई पर लेट गया और गहरी नींद में सो गया। माँ पास बैठी उसे हवा करती रही।दलीप सवेरे से शाम तक सोता रहा।

 

शाम
को उठा और खेतों में पानी देने निकल पड़ा पानी की नाली उसके और चाचा के खेतों के बीच से होकर निकलती थी। बंता सिंह के खेत उसके मज़दूर जोतते थे। जब से उसने अपने भाई को मारा था, वह शाम को खेतों में खुद नहीं आता था।

 

दलीप सिंह अपने खेतों में आने वाली पानी की नालियाँ साफ़ करने लगा। जब यह काम पूरा हो गया, तब वह निकास के पास आया और हाथपैर धोये। फिर उसी के किनारे बहते पानी में पैर डालकर बैठ गया और माँ का इन्तज़ार करने लगा।

 

सूरज डूबने लगा तो दूर तक फैली ज़मीन पर अँधेरा छाने लगा और कटे हुए चाँद के पास संध्या का तारा चमकने लगा। उसे गाँव के कुएँ पर औरतों के पानी भरने और बातें करने की आवाज़ें आने लगींबच्चे खेल रहे थे, कुत्ते भौंक रहे थे, चिड़ियाँ अपने घोंसलों में वापस पहुँचने के लिए शोर मचा रही थीं और ये सब मिलीजुली आवाज़ें अपना एक अलग समाँ पैदा कर रही थीं।

 

फिर गाँव की औरतें एकदूसरे के साथ खेतों में इधरउधर शौच के लिए बिखरने लगीं थोड़ी देर बाद वे वापस आईं और नाले के साथ लाइनें लगाकर सफ़ाई करने के लिए जा बैठीं।

 

दलीप सिंह की माँ पानी के रखवाले से लकड़ी का टोकन लेकर उसके पास आई, कि उसका पानी लेने का समय शुरू हो रहा है। फिर वह जानवरों की देखभाल करने लौट गई।

 

बंता सिंह के मज़दूर जा चुके थे। दलीप सिंह ने चाचा की नाली का रास्ता बन्द किया और अपने खेतों की तरफ़ का खोल दिया। इसके बाद वह ठंडी घास पर पैर फैलाकर लेट गया और गुड़ी हुई ज़मीन पर उछलउछलकर, और चाँद की रोशनी में चमकती, आगे बहती पानी की धार को देखने लगा।

 

लेटेलेटे वह गाँव से रही आवाज़ें सुनता और ऊपर फैले आसमान को देखता रहा। चारों तरफ़ छिटकी चाँदनी में एक अजीब सी शान्ति छा गई।

 

तभी दलीप सिंह की आँखें पास में ही कहीं पानी के छिटकने की आवाज़ से खुलीं। उसने करवट ली तो देखा कि दूसरे किनारे पर एक औरत अपने कूल्हों पर बैठी सफ़ाई कर रही है।एक हाथ से वह अपने पीछे पानी मार रही थी और दूसरे से सामने।

फिर ज़मीन से उसने ज़रासी मिट्टी निकाली, उसे अपने हाथों पर मला और बहते पानी में डुबोकर उन्हें साफ़ किया। फिर कुलला किया और चेहरे पर पानी के छींटे मारे

 

इसके
बाद वह उठकर खड़ी हो गई, उसकी सलवार ज़मीन पर नीचे पड़ी रही। फिर कमीज़ का सामने का हिस्सा ऊपर उठाकर उससेअपना मुँह पोंछा।

 

यह बिन्दो थी।

दलीप सिंह उसे इस तरह देखकर वासना में पागल हो उठा। उसने नाली पर छलाँग लगाई और उसकी तरफ़ दौड़ा। लड़की का चेहरा कमीज़ से ढका था। वह पीछे मुड़ती, इससे पहले ही दलीप ने उसके पास पहुँचकर उसे अपनी बाँहों में जकड़ लिया। उसके चेहरा घुमाते ही उसे पकड़कर बारबार चूमने लगा और उसकी चीख रोकने के लिए उसके होंठों पर अपना मुँह कसकर जमा दिया।

फिर उसे नीचे हरी घास पर लिटा दिया। बिन्दो जंगली शेरनी की तरह लड़ रही थी। उसने दलीपकी दाढ़ी दोनों हाथों से कसकर पकड़ ली और उसके

 

गालों में अपने दाँत गड़ा दिये। उसकी नाक काट ली, जिससे खून बह निकला लेकिन वह जल्द ही मस्त हो गई और चुप होकर लेट गई। उसकी आँखें बन्द थीं और आँसू दोनों गालों पर बह रहे थे, जिनसे आँखों पर लगा सुरमा निकलनिकलकर कानों तक रहा था। चाँद की पीली रोशनी में वह सुन्दर लग रही थी।

 

दलीप को अब अफ़सोस होने लगा। उसने यह नहीं सोचा था कि इससे उसे चोट पहुँचेगी उसने अपने बड़ेरूखे हाथ बिन्दो के चेहरे पर फिराये और बालों में उँगलियाँ डालकर उन्हें सीधा किया। फिर नीचे झुककर प्यार से अपनी नाक उसकी नाक से रगड़ी।

 

बिन्दो ने आँखें खोलीं और खाली नज़रों से उसे देखा। उनमें नफ़रत नहीं थी, प्यार भी नहीं था। सिर्फ़ एक खाली नज़र थी। दलीप सिंह ने उसकी आँखें और नाक प्यार से चूमीं बिन्दो उसी तरह उसे देखती रही और उसकी आँखों से आँसू झरते रहे

 

बिन्दो की सहेलियाँ उसे आवाज़ें दे रही थीं। उन्हें कोई जवाब नहीं मिल रहा था। उनमें से एक उसके पास पहुँची और मदद के लिए चिल्लाने लगी। दलीप सिंह तेज़ी से उठा, नाली के पार कूदा और अँधेरे में गायब हो गया।

 

सिंहपुरा गाँव के सभी मर्द दलीप सिंह के खिलाफ़ मुकदमा देखने कचहरी जा पहुँचे। सारा कमरा, वरांडा और बाहर का मैदान गाँववालों से खचाखच भरा था। वरांडे के

 

एक कोने में दलीप सिंह को हथकड़ी लगाये दो सिपाही बैठे थे। उसकी माँ शॉल से अपना मुँह ढके उस पर पंखा झल रही थी। वह रो रही थी और बारबार नाक छिनकती जा रही थी। दूसरे कोने पर बिन्दो, उसकी माँ, और कुछ दूसरी औरतें एक घेरासा बनाये बैठी थीं, बिन्दो भी रोती और नाक पोंछती जा रही थी।

 

इनके पीछे लम्बाचौड़ा बंता सिंह अपने साथियों के साथ आपस में सलाहमशविरा करते हुए खड़ा था। दूसरे गाँववाले इधरउधर खोमचेवालों से खरीदकर कुछ खातेपीते और कुछ कान साफ़ करने वाले से सिंगी डलवाकर वक् गुज़ार रहे थे। कई लोग स्तंभन की दवाइयाँ बेचनेवालों के इर्दगिर्द खड़े हँसीमज़ाक कर रहे थे।

 

बंता सिंह ने सरकारी वकील की मदद करने के लिए अपना भी एक वकील कर लिया था। उसने गवाहों को इकट्ठा करके उन्हें समझाना शुरू किया कि जिरह में क्या और कैसे कहना है। उसने बताया कि बचाव पक्ष का वकील उनसे क्या सवाल पूछेगा। 

उसने अदालत के अरदली और मुंशी को बंता सिंह से मिलाया और पैसे दिलवाये। फिर सरकारी वकील को देने के लिए नोटों की एक गड्डी उससे ली। न्याय की मशीन में अच्छी तरह तेल डाल दिया गया। इधर दलीप सिंह का कोई वकील था और गवाह

 

अरदली ने अदालत का दरवाज़ा खोला और गाने जैसी आवाज़ में नाम पुकारना शुरू किया। उसने बंता सिंह और उसके साथियों को भीतर बुलाया। दलीप सिंह को दो सिपाही ले गये लेकिन उसकी माँ को जाने नहीं दिया गया। उसने पैसा नहीं दिया था जब अदालत बैठ गई, मुंशी ने आरोप पढ़कर सुनाये।

 

दलीप सिंह ने कहा, ‘मैं बेगुनाह हूँ।मजिस्ट्रेट मि. कुमार ने सबइन्सपेक्टर को बिन्दो को पेश करने की आज्ञा दी।

 

बिन्दो शॉल से मुँह ढके और नाक पोंछती कठघरे में आकर खड़ी हो गई। इन्सपेक्टर ने उससे अपने पिता की दलीप सिंह से दुश्मनी के बारे में सवाल किया। उसने खून और वीर्य से सने कपड़े अदालत में पेश किये। इसके बाद आरोप पक्ष का काम पूरा हो गया। गुनाह के सबूत पेश कर दिये गये थे।

 

कैदी
से पूछा गया कि कया उसे कोई सवाल करने हैं। दलीप सिंह ने हथकड़ी में बैँधे हाथ जोड़कर कहा, “मैं बेगुनाह हूँ, मोतियोंवाले

 

कुमार साहब का धीरज जवाब दे रहा था।

तुमने आरोप सुन लिया? अगर लड़की से कुछ नहीं पूछना, तो मैं फ़ैसला सुना देता हूँ।

 

मोतियोंवाले, मेरा कोई वकील नहीं है। गाँव में मेरे कोई दोस्त भी नहीं हैं जो मेरी तरफ़ से बोलें। गरीब आदमी हूँ। मेहरबानी करें। मैं बेगुनाह हूँ।

 

मजिस्ट्रेट को अब गुस्सा आने लगा। उसने मुंशी की तरफ़ मुड़कर कहा, “जिरहबिलकुल नहीं

 

लेकिन,’
दलीप सिंह ने घबराकर कहा, “’बाश्शा,
आप मुझे जेल भेजें, उससे पहले लड़की से पूछ लें कि क्या उसकी रज़ामंदी नहीं थी। वह चाहती थी, इसीलिए मैं गया। मेरा कोई दोष नहीं है

 

मिस्टर कुमार मुंशी की तरफ़ फिर मुड़े।

सवाल है कि क्या तुम भी यह चाहती थीं। जवाब दो

 

मिस्टर कुमार ने भी बिन्दो से पूछा, जवाब दो, कया तुम भी चाहती थीं?”

बिन्दो ने नाक छिनकी और रोने लगी। मजिस्ट्रेट और दर्शक उत्सुकता से जवाब का इन्तज़ार करने लगे।

जल्दी जवाब दो, तुम भी चाहती थीं या नहीं। मुझे और भी काम है

अपना शॉल मुँह पर चारों तरफ़ से लपेटकर बिन्दों ने जवाब दिया, “हाँ।

The End

Khushvant Singh

Disclaimer–Blogger
has posted this short story with help of materials and images available on net.
Images on this blog are posted to make the text interesting.The materials and
images are the copy right of original writers. The copyright of these materials
are with the respective owners.Blogger is thankful to original writers.

 

  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *