Tuesday, 21 February 2023

Story of Prophet Nuh (Noah), The Ark And The Great Flood "आदम और नूह के बीच की अवधि दस शताब्दियों की थी।" (अल बुखारी)

Noah was born 1056 years after 'Adam's creation (or after he left the Garden of Eden).

 

He was Noah ibn Lamik ibn Mitoshilkh ibn Enoch ibn Yard ibn Mahlabil ibn Qinan ibn Anoush ibn Seth ibn 'Adam, the Father of Mankind 'alayhis-salam.

 

In the Bible, after the floodwaters recede, God gives Noah the rainbow as a sign that He will never again destroy the whole world by flood. In the Qur’an, although the flood has not destroyed the whole world, Noah beseeches God to make the world safe for His believers by making it uninhabitable for unbelievers.

यहूदी और ईसाई परंपराओं में बाढ़ के वृत्तांत नूह को पाप और अविश्वास के बोझ से दबे संसार में एक धर्मी व्यक्ति के रूप में स्वीकार करते हैं। कुरान और पैगंबर मुहम्मद के कथन, हमें सिखाते हैं कि पैगंबर नूह आदम के वंशजों के बीच एक ऐसे युग में आशा की किरण थे, जहां पाप और अधर्म ने लोगों को पछाड़ दिया था।

 

जब हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने आसमान पर क़ियाम कर लिया, तो शैतान को मौका मिल गया ,चुनांचे उसने पूरी दुनिया को बिगाड़ और गुमराही से भर दिया | हर दिन नाफ़रमानी, बेहयाई, गंदगी बढने लगी और गुमराही से पूरी दुनिया भर गई।

 

मूर्तिपूजा कैसे शुरू हुई

धर्मी पुरुषों की मृत्यु के बाद, शैतान ने उनके लोगों को उन जगहों पर मूर्तियाँ खड़ी करने के लिए प्रेरित किया जहाँ वे बैठते थे। कई पीढ़ियों से नूह के देशवासी उन मूर्तियों की पूजा कर रहे थे जिन्हें वे देवता कहते थे। उनका मानना था कि ये देवता उन महापुरुषों का आशीर्वाद रखते हैं जिनके नाम पर उनका नाम रखा गया था।

नूह कूफ़ा में रहता रहते थे, जो आज इराक़ में है। उनका राष्ट्र भी वहीं रहता था।

 

उसकी चेतावनी के बाद नूह के लोग दो समूहों में विभाजित हो गए। उनके शब्दों ने कमजोरों, गरीबों और दुखी लोगों के दिलों को छुआ और उनकी दया से उनके घावों को शांत किया।शासक नूह के तर्कों से थक चुके थे। परमपिता परमेश्वर ने उनकी मनोवृत्ति का वर्णन किया

उन्होंने सोचा कि वे उनके लिए अच्छा ला सकते हैं, उन्हें बुराई से बचा सकते हैं और उनकी सभी जरूरतें पूरी कर सकते हैं। उन्होंने अपनी मूर्तियों को वड्ड, सुवा`, यघुत, याउक, और नसरा जैसे नाम दिए, (इन मूर्तियों ने क्रमशः मर्दाना शक्ति; परिवर्तनशीलता, सुंदरता; पाशविक शक्ति, तेज़ी, तेज दृष्टि, अंतर्दृष्टि का प्रतिनिधित्व किया) शक्ति के अनुसार सोचा कि इन देवताओं के पास है।

 

मूलरूप से ये अच्छे लोगों के नाम थे जो उनके बीच रहते थे। उनकी मृत्यु के बाद, उनकी यादों को जीवित रखने के लिए उनकी मूर्तियाँ स्थापित की गईं।

 

हालाँकि, कुछ समय बाद, लोग इन मूर्तियों की पूजा करने लगे। बाद की पीढ़ियों को यह भी नहीं पता था कि उन्हें क्यों खड़ा किया गया था; वे केवल इतना जानते थे कि उनके माता-पिता ने उनसे प्रार्थना की थी।

 

इस प्रकार मूर्ति पूजा का विकास हुआ। चूँकि वे अपने सेवकों को उनके बुरे कामों के लिए दंडित करने वाले सर्वशक्तिमान ईश्वर की समझ नहीं रखते थे, इसलिए वे क्रूर और अनैतिक हो गए।

 

उन्होंने ऐसा किया, लेकिन इन मूर्तियों की पूजा तब तक नहीं की गई, जब तक कि आने वाली पीढ़ियां जीवन के सही रास्ते से विचलित नहीं हो गईं। तब वे उन्हें मूरत मानकर उनकी पूजा करने लगे।

 

जब इबलीस ने उसकी मृत्यु के कारण उनके दु: को देखा, तो उसने एक मनुष्य का वेश धारण किया और कहा: 'मैंने इस व्यक्ति की मृत्यु के कारण तुम्हारे दुःख को देखा है; क्या मैं उसके जैसी एक मूर्ति बना सकता हूँ जिसे तुम्हारे सभा-स्थान में रखा जा सके कि तुम उसे याद कर सको?' उन्होंने कहा: 'हाँ।'

 

इसलिए उसने मूर्ति को अपने जैसा बनाया। उन्होंने उसे याद दिलाने के लिए उसे अपने सभा स्थान पर रख दिया। जब इबलीस ने देखा कि लोग उसे याद करने में दिलचस्पी ले रहे हैं, तो उसने कहा: 'क्या मैं आप में से हर एक के घर में उसकी मूर्ति बना सकता हूँ ताकि वह सबके घर में रहे और आप उसे याद कर सकें?'

 

वे सहमत हुए। उनके बच्चों ने सीखा और देखा कि वे क्या कर रहे थे। उन्होंने यह भी सीखा कि वे परमेश्वर के स्थान पर उन्हें स्मरण करते हैं। इसलिए भगवान के बजाय सबसे पहले पूजा की जाने वाली मूर्ति थी, जिसे उन्होंने इस प्रकार नाम दिया था।

 

फिर अल्लाह तआला ने पूरी दुनियां को सुधरने और सीधे रास्ते पर चलने के लिए हज़रत नूह अलैहिस्सलाम को नबी बनाकर भेजा।

हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने नौ सौ पचास वर्ष की उम्र पायी थी और अस्सी वर्ष के बाद पहली वही आपके पास आयी।

नबी बनते ही हज़रत नूह ने पूरी कौम में दींन की दावत फैलानी शुरू कर दी।लोगों को भलाईयों पर उकसाते और बुराइयों से मन करते, साथ ही अल्लाह तआला से दुआ करते की कौम को हिदायत हासिल हो। लेकिन कौम के लोग बड़े पत्थर दिल थे, अपने कुफ्र पर जमे रहे और हज़रत नूह को झुठलाने में लगे रहे।

 

हज़रत नूह ने बड़ी मेहनत की, तमाम उम्र तब्लीग करते रहे,फिर भी कुल अस्सी आदमियों ने इस्लाम क़ुबूल किया सिर्फ यही थोड़े से लोग थे जो हज़रत नूह के बताये रास्ते पर चलते रहे। हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि० से रिवायत है की फरमाया किसी पैगम्बर ने अपनी कौम से इतनी तकलीफ नहीं उठायी ,जितनी हजरत नूह ने अपनी कौम कौम के हाथो मुसीबत उठायी है।

 

उसकी चेतावनी के बाद नूह के लोग दो समूहों में विभाजित हो गए। उनके शब्दों ने कमजोरों, गरीबों और दुखी लोगों के दिलों को छुआ और उनकी दया से उनके घावों को शांत किया।शासक नूह के तर्कों से थक चुके थे।

 

हजरत नूह की कौम के बुरे लोग उन्हें हमेशा डराया -धमकाया ,करते जब वह भली बाते बताते होते तो उन्हें मार-मारकर बेहाल कर देते, यहाँ तक कि बेटे खबर पाते और उन्हें उठाकर ले आते|

 

जब ऐसी मुसीबतों में सात सदियाँ गुजर गयी,तो हजरत नूह अलैह मायूस और तंगदिल होने लगे। जब हालत यह हो गयी तो अल्लाह तआला ने वहा नाजिल की, उन्हें तसल्ली दी और फरमाया, नुह तंग दिल मत होना | अब तुम इन जालिमो से आस मत रखो, उनका साथ छोड़ दो! जो ईमान लाये, सो लाये, बाकी अब ईमान नहीं लाने के| ये तो बख्त है, सब के सब जहन्नम ईधन बनेगे हजरत नुह ने अर्ज किया कि अल्लाह! इनकी नस्ल से भी कोई ईमान लायेगा या नहीं ?

 

हुक्म हुआ, ये तो ईमान लायेंगे, वे तो जालिम हैं | फिर भी हजरत नुह ने मुहब्बत और लगाव कि वजह से और इस-लिए भी कि कोई इल्जाम दे फरमाया कि लोगो ! ईमान लाओगे तो यह समझो कि अल्लाह का अजाब आया |

 

कौम ने कहा कि हमारे जो बुत है उनकी इबादत हम हरगिज छोड़ेंगे | तुम एक खुदा कि इबादत कि बात करते हो तो इसके खिलाफ हम तो इन्ही बुतों को पूजेंगे।

 

तुम जो हमसे हेर वक़्त बहस तकरार करते हो , तो फिर ठीक है ,तुम अगर सच्चे हो तो ले आओ अपने रब का अजाब , हम उसे समझ लेंगे |

 

खुदा का अजाब –:जब हजरत नूह मायूस हो गये और दुश्मन अपनी दुश्मनी अकड़ते रहे, तो हजरत नूह अलैहिस्सलाम ने बड़ी ही नरमी और आजिजी के साथ अल्लाह को पुकारा और कहा खुदा !

 

जब मै इनको तेरी ताबेदारी और बंदगी कि तरफ बुलाता हूँ, ताकि तू इन्हें बख्शे ,तो ये अपनी अकड में ये अपनी कानो में उँगलियाँ ठूस लेते हैं , अपने चेहरों पर कपडे डाल लेते हैं और मेरी बात सुनते ही नहीं बल्कि अपने कुफ्र बल्कि अपने कुफ्र में और तेज हो जाते हैं तो अब यह बन्दा मजबूर है|

तू तो हर इक पर कुदरत रखता है ,तो खुदा ! गारत कर दे इन दुश्मनों को, इन इन्कारियों को और इनके मुल्क और इलाके को मत छोड़ |

 

हजरत नूह की यह आवाज अल्लाह ने सुन ली | अजाब का फैसला हो गया कि इस कौम को तूफ़ान से हलाक करके पानी के रास्ते से दोजख की आग में डालेंगे और हजरत नूह और उनके मानने वालों केलिए यह फैसला हुआ कि इन्हें हम इस अजाब से बचायेंगें और नाव में बिठाकर तूफ़ान से महफूज रखेंगें |


इस फैसले को अमली जमा पहनाने से पहले कौम पर ऐसा अजाब आया कि कौम कि नस्ल चलने का सिलसिला रुक गया |

 

इसके बाद अल्लाह के हुक्म से हजरत जिब्रील ने साज का पेड़ बोने का हुक्म दिया, बीस वर्ष कि मुद्दत में यह पेड़ खूब बड़ा हो गया | फिर जिब्रील ने बताया कि अब इस पेंड़ कि लकड़ी से नाव बनाना रू कर दो |

नूह ने अपना सन्दूक बनाने के लिए नगर के बाहर और समुद्र से बहुत दूर एक स्थान चुना। किसी भी जल स्रोत से दूर, जहाज के स्थान के बारे में टिप्पणी करते हुए, अविश्वासियों ने उपहास किया और हँसे।

 

इस तरह हजरत नूह अपनी नाव तैयार करने में जुटे रहे |जब नाव तैयार हो गयी तो उन्होंने तख्ती के जोड़ पर हर हिस्से में रोगने कीर लगाया और अल्लाह के हुक्म के मुताबिक शमशाद के तख्तों का ताबूत हजरत आदम के मुबारक जिस्म के लिए बनाया और इसी वजह से अल्लाह ने उनके जिस्म को तूफ़ान से बचाया |

अविश्वासियों को ईश्वर की शक्ति और भव्यता की कोई समझ नहीं थी, इसलिए वे समझ नहीं पाए कि नूह समुद्र से दूर, एक पहाड़ी की चोटी पर एक जहाज का निर्माण क्यों करेगा। उन्होंने उसे पागल कहा और जोर से हंसे। जहाज ने आकार लेना शुरू किया और जब यह समाप्त हो गया, तो नूह ने धैर्यपूर्वक परमेश्वर के आदेश की प्रतीक्षा की।

 

"यहाँ तक कि जब हमारा हुक्म आया और नीचे के इलाके उमड़ने लगे, तो हमने कहा: 'इसमें एक-एक क़िस्म के दो-दो जानवर (नर और मादा) लाद दो, और अपने परिवार में सवार हो जाओ, सिवाय इसके कि जिनके खिलाफ़ बात निकल चुकी हो, और वे जो विश्वास करते हैं। और थोड़े ही के सिवा किसी ने उस की प्रतीति की। (कुरान 11:40)

जब पानी पृथ्वी से बरसने लगा और आकाश से गिरने लगा, तो परमेश्वर ने नूह को अपने परिवार और विश्वासियों के साथ सन्दूक में प्रवेश करने का निर्देश दिया। परमेश्वर ने नूह को यह भी आज्ञा दी कि वह अपने साथ हर जानवर, पक्षी और कीट का एक जोड़ा (नर और मादा) ले जाए। अविश्वासियों ने उसे अविश्वसनीय रूप से देखा, और पूछा कि वह सभी जानवरों के साथ क्या करना चाहता है।

 

फिर हजरत जिब्रील ने हर जिंस के पक्षी और जानवर, जो धरती पर पाए जाते थे ,हजरत नूह के पास जमा किये |हजरत नूह ने हर जानवर का एक जोड़ा लेकर नाव में चढाया | 

हजरत नूह के जितने दीनी साथी थे,उन्हें भी नाव में सवार किया |जब ये बयासी लोग नाव में सवार हुए और उनके तमाम समान भी नाव में लद गये,तब अल्लाह का अजाब शुरू हुआ और तनूर से पानी का फव्वारा निकलना शुरू हुआ |

 

हजरत नूह कि बीवी और उनका बेटा कनआन नाव पर आये | कनआन ने तो कह दिया,मै किसी पहाड़ी पर पनाह ले लूँगा |

 

हजरत नूह बोले,इससे काम चलेगा, पहाड़ की पनाह काम देगी , किसी झाड़ और पौधे की इसलिए बेटे ! तुम अब भी जाओ |लेकिन वह नाफरमान बेटा माना |इसी बीच एक मौज आई और उसे डूबा दिया|

 

हजरत नूह को उनके डूबने पर बड़ी दया आयी,अर्ज किया कि यह बीटा अपनों मे से है,और अल्लाह !तूने अपनों को बचने का वायदा किया था|उम्मीद है तू अपना वायदा पूरा करेगा|हुक्म हुआ, अपना वह है जो भले कामों वाला है,बुरे कामों वाला अपना नहीं है |

 

अजाब (तूफ़ान) का मंजर : प्रलय की शुरुआत :-

चालीस दिन तक तूफ़ान का यह पानी जमीन को डुबाता रहा |

आसमान से वर्षा भी हुयी ,जमीन से पानी के सोते भी फूटे| तमाम आबादियों के मकान ,बाग़ माल जायदाद और तमाम लोग इस तूफ़ान की भेंट चढ़ गये,हर तरफ पानी ही पानी था,यहाँ तक की पहाड़ भी इसमें डूब गये लेकिन नूह कि नाव पे जो लोग सवार थे ,वे झकोले खाते हुए भी,अँधेरा, हवा और अथाह पानी के होते हुए भी अल्लाह कि पनाह में थे |अल्लाह ने उन्हें डूबने से बचा लिया था |

नूह की पत्नी उसके साथ नहीं गई, क्योंकि उसने उस संदेश पर कभी विश्वास नहीं किया था जो नूह प्रचार कर रहा था; ही उसका सबसे बड़ा बेटा, जो किसी ऊँचे पहाड़ पर भाग जाना पसंद करता था।

 

जैसे ही विश्वासियों और जानवरों ने सन्दूक में प्रवेश किया, पृथ्वी की हर दरार से पानी टपकने लगा और आसमान से बारिश होने लगी। मात्रा पहले कभी नहीं देखी गई। घंटे दर घंटे पानी का स्तर बढ़ता गया, और समुद्र और नदियों ने भूमि पर आक्रमण किया।

फिर तूफान के ख़त्म होने का हुक्म हो गया,कहा गया जमीन !

अपने पानी को थाम | आसमान!अब पानी का काम नहीं |जब नाव से उतरने का वक़्त करीब आया तो हजरत नूह ने कव्वे को फरमाया कि जल्दी पानी का हाल मालूम करके एलान करे ,ऐसा हो कि कही जाकर ठहर जाए|

 

कव्वा जाकर मुर्दार खाने में लग गया और यहाँ भूल गया कि हजरत नुह ने कुछ कहा था | इसलिए उसे हजरात्नुह ने बाद-दुआ दे दी और वह हमेशा के लिए जलील ख्वार कर दिया गया | अपनी ना फ़रमानी कि वजह से मुर्दार खाना उसके भाग्य में लिख दिया गया |

फिर कबूतर को हुक्म दिया कि वह पता लगाए | वह जैतून के पत्तो को चोंच में लेकर वापस आया | पत्तो ही के बुनियाद पर हजरत नुह ने यह अंदाज लगाया कि पानी अब काफी खसक गया है और अब पेड़ो के सर पानी से ज़ाहिर हो गए कि | इस खबर से दिल का गम और रंज दूर हुआ |

 

अब तो कबूतर के जिम्मे यह काम कर दिया गया कि वही जाये और ये खबर लाए कि पानी अब किस दह तक घटा।

 

कबूतर हर दिन उड़ता और पानी की कमी की खबर किसी किसी तरह पहुंचता था। एक दिन कबूतर के पांव में कीचड़ लगी हुई पायी गयी ,यह इस बात का सबूत था की जमीन पर से पानी बिलकुल खिसक गया है।

 

हज़रत नूह ने कबूतर के हक़ में दुआ की,जा तुझे खुद मखलूक की निगाह में प्यारा बना देगा,हर आदमी तुझे चाहेगा। तफ़्सीर लिखने वाले कहते हैं कि हक़ तआला ने हुक़्म दिया की मई एक पहाड़ी पर नाव को ठहराऊंगा और तमाम नाव वालों को उस पहाड़ पर उतार दूंगा।

 

रिवायत है कि नाव में बैठे लोग बू और गंदगी से बड़फी तकलीफ उठा रहे थे और समझ में नही आता था कि क्या करे।

हज़रत नूह ने अल्लाह से दुआ की और इस मुसीबत को दूर करने की दरख्वास्त की। हुक़्म हुआ कि अपना हाथ हाथी की पीठ पर रखो। हज़रत नूह के हाथ रखते ही एक सूअर का जन्म हुआ उसने सब नाजासतें खाकर गंदी फिजा को बेहतर बना दिया। इसी तरह ज्यों ही हज़रत नूह ने अल्लाह के हुक़्म से शेर के माथे पर हाथ डाला, क़ुदरत से बिल्ली निकली और उसने सरे चूहों को खा लिया।

 

सब पहाड़ों ने अपनी बुलंदी पर फक्र करते हुए सर बुलंद किया, मगर जूड़ी पहाड़ ने छोटापन ही दिखाया।अल्लाह तआला ने उसके इस छोटेपन की वजह से उसे इज्जत बख्शी और नूह की नाव उस पहाड़ पर ठहराई गयी, उसी पहाड़ के नीचे तमाम लोग उतरे ,वहां एक गांव आबाद किया।इस गांव का नाम सुके आमानीन था।

जहाज पर नूह के साथ रहने वालों की संख्या के बारे में विद्वानों के अलग-अलग मत हैं।

इब्न अब्बास ने कहा कि 80 विश्वासी थे जबकि काब अल-अहबर ने कहा कि 72 विश्वासी थे। दूसरों ने दावा किया कि नूह के साथ 10 विश्वासी थे। मुद्दे का प्रामाणिक संदर्भ नहीं है।

बचे लोगों ने आग जला दी और उसके चारों ओर बैठ गए। बोर्ड पर आग जलाना प्रतिबंधित कर दिया गया था ताकि जहाज की लकड़ी को जलाकर जला दिया जाए। फर्श की पूरी अवधि के दौरान उनमें से किसी ने भी गर्म खाना नहीं खाया था। जहाज़ से उतरने के बाद परमेश्वर के धन्यवाद में उपवास का एक दिन था।

 

जब यह गांव पूरी तरह आबाद हो गया तो एक बार फिर एक ऐसी वेब चली की पूरी आबादी तबाह हो गयी ,सिर्फ हज़रत नूह और उनके तीन बेटे बाकी रह गएहम,साम और याफ्स ,बाकि सब फणा हो गए।

 

अल्लाह तआला ने वहा भेजी की मने तेरी कौम को कुफ्र और नाफ़रमानी की वजह से हलाक़ किया। अब जो बचे हैं,उनको तूफान जैसी अजाब का शिकार बनाऊंगा।फिर अल्लाह तआला ने नूह की नस्ल में ऐसी बरकत रखी कि चालीस वर्ष की मुद्दत में कई शहर और गांव आबाद हो गए।

 

हज़रत नूह ने मुल्क शाम, फारस,खुरासान,इराक वगैरह के इलाक़ा सैम को दे दिया,पश्चिमी मुल्क हब्शा वगैरह हम को दिया और चीन तुर्किस्तान वगैरह याफ्स को दिया।

इस प्रकार उसके बाद पृथ्वी नूह के वंशजों से आबाद हुई.

एक दिन जिब्रील और इजराइल ने हज़रत नूह से पूछा इस लंबी उम्र बाद तुमने इस फनी दुनिया को कैसा पाया,कहा धुंए की तरह की थोड़ी देर रुक कर एक दरवाजे से दाखिल हुआ और दूसरे से निकल गया।

 

जब हज़रत नूह बीमर हुए और इंतकाल फरमा गए तो उनके बेटों ने उनको बैतूल मुक़द्दस में दफन किया,वे उनकी जुदाई से बेहद परेसान ग़मगीन रहे। हज़रत नूह सच्चे पैगम्बर थे,वह हमेशा अपनी कौम को अल्लाह की खुशी हासिल करने की तरफ बुलाते रहे। वह बड़े इबादत गुजर थे।

 

नूह का जलप्रलय लगभग 4500 साल पहले इराम शहर में और उसके आसपास हुआ था, जो आज के एदोम का केंद्र लूत झील के दक्षिण-पश्चिम में है; जानवरों की प्रत्येक प्रजाति से एक मादा और एक नर को सन्दूक में ले जाया गया। जलप्रलय के बाद, सन्दूक ने मेसोपोटामिया के चारों ओर एक पहाड़ पर विश्राम किया और सन्दूक के लोग शायद मेसोपोटामिया के उर शहर में नूह के साथ बस गए .

 

नूह के सन्दूक का स्थान: कुरान के अनुसार, सन्दूक जूडी पर्वत पर टिका था

नूह के सन्दूक (Hazrzt नूह के जहाज) को अल्लाह के द्वारा चेतावनी के संकेत के रूप में छोड़ दिया गया था।

 

इमाम बुखारी, इब्न अबी हातिम, अब्दुर रज्जाक और इब्न जरीर ने क़तादाह के अधिकार पर परंपराओं को यह कहते हुए संबंधित किया है कि जिस समय मुसलमानों ने इराक और अल-जज़ीरा पर विजय प्राप्त की, यह सन्दूक अभी भी माउंट जूडी पर मौजूद था

और एक परंपरा के अनुसार, बाकिरदा की बस्ती के पास, और शुरुआती मुसलमानों ने इसे देखा था। आधुनिक समय में भी कुछ लोगों ने हवाई जहाजों में अपनी उड़ान के दौरान इस क्षेत्र की एक चोटी पर एक सन्दूक जैसी वस्तु देखी है, जिसके बारे में संदेह है कि यह नूह का सन्दूक है,

 

कुरान के अनुसार, सन्दूक जूडी पर्वत पर टिका था, जो कुर्दिस्तान में जज़ीराह इब्न 'उमर के उत्तर-पूर्व में स्थित है। लेकिन बाइबिल के अनुसार इसका विश्राम स्थल अर्मेनिया में माउंट अरारत था, जो उसी नाम के टायर के पहाड़ों की श्रेणियों में से एक है जो आर्मेनिया से दक्षिणी कुर्दिस्तान तक फैला हुआ है। जूडी पर्वत, अरारात श्रेणी के पहाड़ों में से एक है, और आज भी इसी नाम से जाना जाता है।

 

क्या नूह के जलप्रलय ने पूरी पृथ्वी को ढक लिया था?

अब आइए इस प्रश्न पर विचार करें: क्या यहाँ वर्णित जलप्रलय ने पूरी पृथ्वी को ढँक दिया था या यह उस विशेष क्षेत्र तक ही सीमित था जहाँ पैगंबर नूह रहते थे? यह एक ऐसा सवाल है जो आज तक पूरी तरह से सुलझा नहीं है।

 

जहाँ तक बाइबल और इस्राएली परंपराओं का संबंध है, यह सार्वभौमिक था। (उत्पत्ति 7:18-24) लेकिन कुरान इसके बारे में चुप है, हालांकि यह उन चीजों को कहता है जो दिखाते हैं कि जलप्रलय के बाद पूरी मानव जाति पैगंबर नूह और उनके साथ सन्दूक में उनके वंशज थे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जलप्रलय ने सभी पृथ्वी को कवर किया

इसे इस प्रकार समझाया जा सकता है: इतिहास के उस समय पृथ्वी का एकमात्र क्षेत्र, जो मानव जाति द्वारा बसा हुआ था, वह क्षेत्र था जिसमें नूह रहता था, और जो पीढ़ियाँ जलप्रलय के बाद आईं, वे धीरे-धीरे अन्य भागों में फैल गईं पृथ्वी का।

 

यह सिद्धांत दो बातों से समर्थित है। पहला, इस बात का निर्णायक प्रमाण है कि दजला और फरात के देश में एक बड़ा जलप्रलय आया था। इसकी पुष्टि ऐतिहासिक परंपराओं, पुरातात्विक अवशेषों और भूवैज्ञानिक साक्ष्यों से होती है।

 

लेकिन पृथ्वी के अन्य भागों में ऐसे कोई प्रमाण नहीं हैं जो दिखा सकते हैं कि जलप्रलय विश्वव्यापी था। दूसरे, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे दूरस्थ स्थानों में रहने वाले पृथ्वी के लगभग सभी लोगों के लिए परंपराएँ नीचे गई हैं कि एक बार पूरी पृथ्वी पर एक बड़ी बाढ़ गई थी।

 

उपरोक्त से जो निष्कर्ष निकाला जा सकता है वह यह है कि एक समय में पृथ्वी के सभी लोगों के पूर्वज एक ही स्थान पर रहते थे। लेकिन, जब बाद में वे पृथ्वी के विभिन्न देशों में फैल गए; वे जलप्रलय की परंपराओं को अपने साथ ले गए। (कृपया अल-आराफ़ की आयत 47 की तफ़सीर देखें)

The End

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