Thursday, 22 June 2023

Story- The Diamond Necklace: वह खुशी के नशे में चूर पूरे उत्साह और जुनून के साथ नाची, सब कुछ भूलते हुए, अपनी खूबसूरती के विजयोल्लास में

वह उन खूबसूरत और आकर्षक युवतियों में से थीं, जो दुर्भाग्य से कभी-कभी किसी क्लर्क के परिवार में जन्म ले लेती हैं। उसके पास दहेज था, आशाएँ थीं, साधन थे कि कोई उसे समझ सके, सराह सके, प्रेम कर सके, कि किसी अमीर अथवा प्रतिष्ठित व्यक्ति से उसकी शादी हो; लिहाजा उसकी शादी सार्वजनिक निर्देश के मंत्रालय के दफ्तर के एक अदने क्लर्क से कर दी गई थी।

 

वह साधारण सी पोशाक में रहती, क्योंकि वह अच्छी पोशाक खरीद नहीं सकती थी। वह स्वयं को उपयुक्त स्थान से नीचे पाकर व्यथित थी। क्योंकि महिलाओं की कोई जाति होती नहीं है और ही कोई श्रेणी; परिवार और जन्म के बजाय उनकी सुंदरता, शालीनता और उनका आकर्षण ही काम करते हैं।


उनका स्वाभाविक लालित्य, जन्मजात चतुराई और सहज समझ उनकी एकमात्र कुलीनता है, जो साधारणजन की बेटियों को महान् महिलाओं के बराबर का दर्जा दिलाती है।

Guy de Maupassant--- Story writer of "The Diamond Necklace

वह हमेशा दुखी रहती, क्योंकि वह महसूस करती थी कि उसका जन्म हर प्रकार की सुख-सुविधाओं और विलासिताओं को भोगने के लिए हुआ है। वह अपने अपार्टमेंट की दुर्दशा, जर्जर दीवारों, टूटी-फूटी कुरसियों और पुराने-गंदे परदों से बेहद दुखी थी। वे सब चीजें, जिन पर उस जैसी हैसियत रखनेवाली किसी अन्य महिला का ध्यान तक नहीं जाता, उसे यातना देतीं, उसे क्रोधित करती थीं।

 

उस नाटे अंग्रेज मजदूर पर नजर पड़ते ही, जो उसके घर काम करता था, उसके भीतर वितृष्णा का भाव उत्पन्न होता और विचलित करने वाले निराशाजनक सपने आने लगते। वह ओरिएंटल परदों से सुसज्जित, काँसे की ऊँची मशालों से प्रज्वलित शांत एंटीचैंबर्स के बारे में सोचती और दो वर्दीधारी विशालकाय सेवकों के बारे में, जो बड़ी सी आराम कुरसी पर, हीटर की गरम हवा में आराम से सोते हैं।

 

वह प्राचीन सिल्क की लटकनों से सजे बड़े ड्राइंग-रूमों के बारे में, सुंदर-सजीले फर्नीचर और उन पर रखी बहुमूल्य कलाकृतियों के बारे तथा स्त्रियों के निजी कक्षों के बारे में सोचती, जिन्हें अंतरंग दोस्तों और प्रख्यात एवं लोकप्रिय पुरुषों के साथ देर रात गप-शप के लिए बनाया गया था, जिनसे सभी महिलाएँ ईर्ष्या करती हैं और जिनका ध्यान वे सभी अपनी ओर आकर्षित करना चाहती थीं।

जब वह रात्रि-भोजन के लिए अपने पति के साथ पुराने, गंदे कवर वाली गोल मेज पर बैठती, और जब उसका पति डोंगे का ढक्कन खोलते हुए खुशबू का आनंद लेते हुए जादुई आवाज में कहता, “ओह! गोश्त की बोटी बहुत अच्छी है, बेहतरीन!” और वह सुरुचिपूर्ण स्वादिष्ट डिनर के बारे में, चाँदी की चमचमाती कटलरी और दीवार पर लगी प्राचीन महान् विभूतियों के पोट्रेट तथा वन में विचरित करते दुर्लभ पक्षियों को दरशाती टेपेस्टेरी के बारे में सोचती;

 

वह अद्भुत प्लेटों में परोसे लजीज व्यंजनों के बारे में और ट्राउट मछली के गुलाबी मांस या मुर्गे के पंखों को खाते हुए रहस्यमय मुसकान ओढ़े दबी जुबान से सुनाए जाते शौर्य के किस्सों के बारे में सोचती।

 

उसके पास ढंग की पोशाक थी और ही गहने, कुछ नहीं था! पर उसे किसी और से नहीं, बस उन्हीं चीजों से प्रेम था। उसे लगता था, वह उनके लिए ही बनी है। वह खुश रहना चाहती थी, वह चाहती थी कि वह अच्छी दिखाई दे, ईर्ष्या की पात्र बने, लोग उसे चाहें और उससे प्रणय निवेदन करें।

 

उसकी एक अमीर दोस्त थी, कॉन्वेंट स्कूल की सहपाठी, वह संपन्न थी, एक ऐसी महिला, जिसके घर जाना उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था, क्योंकि जब भी वह उसके घर से लौटती, उसे बहुत पीड़ा होती।

 

एक शाम उसका पति उत्साह से भरपूर, अपने हाथ में एक बड़ा सा लिफाफा लेकर घर आया।

 

उसने कहा, “देखो, तुम्हारे लिए कुछ है।

उसने जल्दी से रैपर खोला, अंदर एक प्रिंटेड कार्ड था। उस पर लिखा था, “सार्वजनिक निर्देश विभाग के मंत्री और मैडम जॉर्ज रंपोन्नेउ अपने आवास पर १८ जनवरी, सोमवार शाम को आयोजित समारोह में श्रीमान और श्रीमती लोइसेल को सम्मानपूर्वक आमंत्रित करते हैं।

 

बजाय खुश होने के, अपने पति को उम्मीद के विपरीत उसने तिरस्कार से आमंत्रण को मेज पर फेंक दिया और बड़बड़ाई, “तुम मुझसे क्या चाहते हो?”

 

मैंने सोचा तुम खुश होगी। तुम कभी बाहर जाती नहीं हो। और यह एक अच्छा मौका है। बड़ी मुश्किल से मैंने इस आमंत्रण-पत्र को हासिल किया हैकुछ लोगों को ही मिल पाया है, उनमें एक खुशनसीब मैं भी हूँ। सारे अफसर वहाँ होंगे।

 

उसने खीजकर उसकी तरफ देखा और अधीरता से कहा, “तुम्हें क्या लगता है कि मैं इस तरह की पोशाक में वहाँ जाऊँगी?”

उसने इस बारे में नहीं सोचा था; वह हकलाया, “क्यों, जो पोशाक तुम थिएटर पहनकर जाती हो, वह मुझे बहुत अच्छी लगती है।

 

अपनी पत्नी को रोते हुए देखकर वह हताश और हैरान था। उसकी आँखों के कोर से दो बेशकीमती आँसू उसके मुँह के किनारों पर लुढ़के। वह हकलाते हुए बोला, “क्या बात है? क्या बात है डियर?”

 

अपने गहरे विषाद पर त्वरित गति से काबू पाते हुए, अपने गीले गालों को पोंछते हुए, उसने शांत स्वर में कहा, “कुछ नहीं। बस मेरे पास कोई ढंग की पोशाक नहीं है, इसलिए मैं उस समारोह में नहीं जा सकती। यह आमंत्रण तुम अपने किसी साथी को दे दो, जिसकी पत्नी के पास पहनने के लिए अच्छी पोशाक हो।

 

उसे निराशा हुई, उसने कहा, “माथिल्डे! अच्छा हम देखते हैं, एक ठीक सी पोशाक कितने में आती है, जो दूसरे मौकों पर भी काम जाए, साधारण सी?”

 

कुछ देर तक वह विचार करती रही, उस राशि में बारे अनुमान लगाती रही, जिसे सुनकर उसका मितव्ययी पति घबराकर तुरंत इनकार कर दे।

 

आखिकार, उसने झिझकते हुए कहा, “वैसे, ठीक-ठीक तो मैं नहीं बता सकती, लेकिन मुझे लगता है कि चार सौ फ्रैंक में काम हो जाना चाहिए।

 

उसका चेहरा थोड़ा पीला पड़ गया। क्योंकि करीब इतनी ही राशि उसने बंदूक खरीदने के लिए बचाकर अलग रखी थी, ताकि वह अगली गरमियों में नंतेर्रे के मैदान में दोस्तों के साथ शिकार-पार्टी में शामिल हो सके, जहाँ वे रविवार को लार्क पक्षियों का शिकार करने जाते थे। लेकिन उसने कहा, “ठीक है, मैं तुम्हें चार सौ फ्रैंक दूँगा। तुम एक बढ़िया पोशाक खरीद लेना।

 

बॉल-डांस का दिन करीब रहा था और श्रीमती लोइसेल उदास, चिंतित और बेचैन लग रही थी। हालाँकि उसकी पोशाक तैयार थी। एक शाम उसके पति ने उससे कहा, “क्या बात है, पिछले तीन दिन से तुम काफी परेशान लग रही हो?”

 

उसने तुरंत जवाब दिया, “मेरे पास पहनने के लिए कोई आभूषण है, और ही कोई कीमती स्टोन। मैं वहाँ बिल्कुल दरिद्र लगूँगी। अच्छा यही रहेगा कि मैं वहाँ नहीं जाऊँ।

 

उसने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, “तुम कुदरती फूल पहन सकती हो। इस मौसम में उनका उपयोग फेशनेबल लगेगा। दस फ्रैंक में दो या तीन शानदार गुलाब जाएँगे।

 

वह संतुष्ट नहीं हुई।

नहीं, उन अमीर महिलाओं के बीच गरीब दिखने से अधिक अपमानजनक कुछ भी नहीं है।

 

अकस्मात् उसका पति चिल्लाया, “तुम कितनी मूर्ख हो! अरे, तुम अपनी दोस्त श्रीमती फारेस्टियर के पास जाओ और उससे कुछ गहने उधार ले लो। तुम उसकी अच्छी दोस्त हो, वह तुम्हें कभी मना नहीं करेगी।

 

वह खुशी के मारे चीख उठी, “यह सही है। मैंने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं।

 

अगले दिन वह अपने दोस्त के घर गई और अपनी व्यथा सुनाई। श्रीमती फारेस्टियर ने काँच के पलड़ों वाली अलमारी खोली, वह उसमें से गहनों का एक बक्सा निकाल लाईं, उसे खोला और श्रीमती लोइसेल से कहा, “डियर, इनमें से पसंद कर लो।

 

उसने सभी गहने देखे, पहले कुछ कंगन, फिर मोतियों का हार, फिर वेनिस का क्रॉस, बढ़िया कारीगरी के कीमती स्टोन। उसने उन्हें आईने के सामने पहनकर देखा, हिचकिचाई, कोई अंतिम फैसला नहीं कर पाई। बस पूछती रही, “तुम्हारे पास और गहनें हैं क्या?”

हाँ हैं, इन्हें देखो। मैं तुम्हारी पसंद के बारे में नहीं जानती हूँ।

 

अचानक उसे एक काले रंग के साटन के बॉक्स में, हीरों का एक शानदार हार दिखाई दिया, और उसका दिल एक उत्कंठ कामना के साथ तेजी से धड़कने लगा। जब उसने उसे उठाया, उसके हाथ काँप रहे थे। उसने उसे अपनी हाई-नेक की पोशाक के ऊपर गले पर बाँध दिया। और आईने में स्वयं को देखकर हर्षोन्माद से अभिभूत हो गई।

 

फिर उसने हिचकिचाते हुए पूछा, उसका स्वर वेदना से भीगा हुआ था, “क्या तुम मुझे यह उधार दे सकती हो, सिर्फ यह?”

क्यों नहीं, निश्चित रूप से। 

वह अपनी दोस्त की गरदन पर झूल गई, उसे भावुकता के साथ चूमा, फिर अपनी अमूल्य निधि के साथ चली आई।

 

आखिकार बॉल-डांस का दिन आया। वहाँ उपस्थित सभी महिलाओं के बीच श्रीमती लोइसेल शालीन, रमणीय, मुसकराती, खुशी से पागल, सबसे सुंदर लग रही थी। सभी पुरुष उसकी ओर आकर्षित थे, उसका नाम पूछ रहे थे, उसकी निकटता पाना चाह रहे थे।

 

कैबिनेट के सभी सहचारी उसके साथ वाल्ट्ज डांस करना चाहते थे। यहाँ तक कि मंत्री महोदय का ध्यान भी उसकी ओर गया था।

 

वह खुशी के नशे में चूर पूरे उत्साह और जुनून के साथ नाची, सब कुछ भूलते हुए, अपनी खूबसूरती के विजयोल्लास में, अपनी सफलता की प्रतिष्ठा में, एक प्रकार के परमानंद के घटाटोप में जिसकी संरचना इस समस्त आदरभाव से, इस ढेर सारी प्रशंसा से, इस समस्त जाग्रत् कामनाओं और उस संपूर्ण विजय-भाव से हुई थी, जो महिला के दिल को बहुत प्यारा है।

वह सुबह चार बजे बाहर आई। उसका पति आधी रात से तीन और सज्जनों के साथ, जिनकी पत्नियाँ भी बॉल-डांस का आनंद ले रही थीं, एक छोटे से सुनसान गलियारे में सो रहा था।

 

उसने उसके कंधों पर शॉल रख दी, जिसे वह साथ लाया था, एक साधारण शॉल, जिसकी दरिद्रता उस बॉल-ड्रेस के ठीक विपरीत थी। उसने इस बात को महसूस किया, वह इससे बचना चाहती थी, ताकि दूसरी अमीर महिलाओं का ध्यान उसकी ओर जाए, जिन्होंने फर की महँगी शॉल ओढ़ी हुई थी।

 

लोइसेल ने उसे रोक लिया।

थोड़ा इंतजार करो। तुम्हें बाहर ठंड लग जाएगी। मैं जाकर कैब ले आता हूँ।

 

लेकिन उसने नहीं सुना, और तेजी से सीढ़ियाँ उतर गई। जब वे सड़क पर आए, वहाँ कोई वाहन नहीं था; वे वहाँ खड़े, हर दूर से गुजरते हुए कोचवान को आवाज देते रहे।

 

आखिकार वे पैदल-पैदल सीन नदी की ओर बढ़े, हताश और ठंड में ठिठुरते हुए। घाट के पास उन्हें एक रात में चलने वाली पुरानी खटारा बग्गी मिली, वैसी बग्गियाँ पेरिस में आधी रात के बाद ही दिखाई देती हैं। उसने उन्हें शहीदों के चौक तक छोड़ दिया।

 

वे फिर वैसी ही उदासी ओढ़े अपने अपार्टमेंट की सीढ़ियाँ चढ़े। श्रीमती लोइसेल के लिए सबकुछ समाप्त हो चुका था। लेकिन उसके लिए, वह विचार कर रहा था, उसे १० बजे मंत्रालय पहुँच जाना है।

 

उसने आईने से सामने खड़े होकर शॉल हटाई, जिसने उसके कंधों को ढक रखा था, ताकि वह अपनी सजधज को, अपने वैभव को फिर से निहार सके। लेकिन यकायक उसके मुँह से एक चीख निकली। उसके गले में हार नहीं था।

 

उसके पति ने, जो अपने कपड़े बदल रहा था, उससे पूछा, “क्या बात है?”

वह पागल सी उसकी ओर बढ़ी, “मैंनेमैंने मिसेज फारेस्टियर का हार खो दिया है।

वह व्यग्रता के साथ खड़ा हो गया।

क्या...कैसे, यह संभव नहीं है!”

 

फिर उन्होंने उसकी पोशाक की तहों में, शॉल की तहों में, उसकी जेबों में, हर जगह ढूँढ़ा। हार कहीं नहीं मिला।

उसने कहा, “तुम्हें यकीन है, जब तुमने बॉल-रूम छोड़ा, वह तुम्हारे पास था?”

 

हाँ, बँगले से निकलते समय मुझे उसके होने का अहसास था।

लेकिन, अगर वह सड़क पर गिरता तो उसकी आवाज तुम्हें सुनाई देती, वह बग्गी में होना चाहिए।

हाँ, हो सकता है। क्या तुमने उसका नंबर नोट किया था?”

नहीं।

क्या तुमने उस पर ध्यान दिया था?”

नहीं।

 

वे हक्के-बक्के से एक-दूसरे को देख रहे थे। आखिकार लोइसेल ने अपने कपड़े पहने।

 

उसने कहा, “मैं पैदल वापस जाऊँगा, उस पूरे रास्ते पर, जहाँ से होकर हम आए थे, शायद हार मिल जाए।

 

और वह बाहर चला गया। वह बॉल ड्रेस में ही कुरसी पर बैठी इंतजार करती रही, बिना किसी उत्साह के, विचारशून्य, बिस्तर पर जाने की उसमें शक्ति नहीं बची थी।

 

सात बजे के करीब उसका पति लौट आया। उसे कुछ नहीं मिला था।वह पुलिस मुख्यालयों, अखबारों के दफ्तरों में गया, पुरस्कार देने की ऑफर दिया; वह कैब के ऑफिस भी गया, हर उस जगह, जहाँ उसे उसके थोड़ी सी भी आशा की किरण नजर आई।वह दिन भर इस भयावह आपदा के सामने बेसुध हालत में इंतजार करती रही।

 

लॉयलस लटका हुआ चेहरा लिये शाम को घर आया। उसे हार नहीं मिला था। उसने कहा, “तुम अपनी दोस्त को एक पत्र लिखो कि तुम्हारे हाथ से उस हार का बकल टूट गया है, उसे ठीक करवाना होगा। इससे हमें कुछ समय मिल जाएगा।उसने उसके कहने पर दोस्त को पत्र लिखा।


एक सप्ताह बीत जाने के बाद उन्होंने हार मिलने की आशा छोड़ दी।लोइसेल, जो इन दिनों में पाँच साल अधिक बूढा हो गया था, ने श्रीमती लोइसेल से कहा, “अब हमारे लिए उस हार की कीमत मालूम करना अत्यंत आवश्यक है।

 

अगले दिन वे उस जोहरी के पास गए, जिस हार के बक्से पर उसका नाम लिखा था। उसने अपने बही-खाते टटोले।

 

मैडम, उस हार को मैंने नहीं बेचा था। मैंने तो केवल यह बक्सा दिया था।

फिर वे अपनी याददाश्त के सहारे उसी प्रकार के हार की तलाश में एक जौहरी से दूसरे जौहरी के पास गए। खीज और वेदना ने उन दोनों को घेर लिया था।

 

पैलेस-रॉयल पर एक दुकान में उन्हें एक वैसा ही हार दिखाई दिया, जिसकी उन्हें तलाश थी। उस हार की कीमत चालीस हजार फ्रैंक थी। लेकिन वह उन्हें छत्तीस हजार में मिल सकता था।

 

उन्होंने जौहरी से उस हीरे के हार को तीन दिन तक नहीं बेचने की गुजारिश की। उनकी यह शर्त भी जौहरी मान गया कि अगर फरवरी के अंत तक उन्हें खोया हुआ हार मिल जाता है, तो वह इस हार को चौंतीस हजार फ्रैंक में वापस ले लेगा।

 

लोइसेल के पास अठारह हजार फ्रैंक थे, जो उसके पिता उसके लिए छोड़ गए थे। उसने सोचा बाकी रकम के लिए कर्ज ले लेगा। उसने कर्ज लिया, एक से एक हजार फ्रैंक, दूसरे के पाँच सौ, किसी से पाँच लुइस और किसी से तीन लुइस।

 

उसने वचन-पत्र लिखकर दिए, पूरे हो सकने वाले वादे किए, सूदखोरों और भिन्न-भिन्न प्रकार के ऋणदाताओं के चक्कर लगाए।

 

उसने अपना बचा हुआ समूचा जीवन दाँव पर लगा दिया, बरबाद कर देने वाले जोखिम भरे इकरारनामों पर बिना समझे-पढ़े दस्तखत किए। आने वाली विपत्तियों, भौतिक असुविधाओं और सभी मानसिक यातनाओं की संभावनाओं से भयभीत उसने जौहरी के काउंटर पर छत्तीस हजार फ्रैंक रखे और नया हीरों का हार खरीद लिया।

 

जब श्रीमती लोइसेल ने हार लौटाया, श्रीमती फॉरेस्टियर ने उससे सख्त लहजे में कहा, “तुम्हें उसे जल्दी ही लौटाना चाहिए था। मुझे उसकी आवश्यकता पड़ सकती थी।

 

उसने बक्से को नहीं खोला, क्योंकि वह बहुत डर गई थी। अगर उसे हार बदलने का पता लग जाता, वह क्या सोचती, वह क्या कहती? क्या वह श्रीमती लोइसेल को चोर नहीं समझ लेती?

श्रीमती लोइसेल अब एक गरीब के भयावह जीवन को जानती थी। हालाँकि उसने अपनी बदली हुई भूमिका बहुत ही साहस के साथ निभाई। वह भारी कर्ज किसी भी हाल में चुकाना आवश्यक था। वह अवश्य चुकाएगी। उन्होंने नौकर को निकाल दिया, अपना अपार्टमेंट बदल दिया; एक कमरा किराए पर ले लिया।

 

उसे अहसास हुआ कि घर की साफ-सफाई, देखभाल और रसोईघर के काम का क्या मतलब होता है। वह प्लेटें और चिकने बरतन अपने गुलाबी नाखूनों से साफ करती, वह मैले कपड़े धोती, उन्हें कतार में सुखाने डालती; वह सुबह-सुबह कचरे का बैग लेकर नीचे गली में जाती, बीच-बीच में रुककर साँस लेती हुई।

 

और एक आम गृहिणी की तरह अपनी बाँह में टोकरी लटकाए वह किराने का सामान, फल-सब्जी, गोश्त वगैरह खरीदती, उनसे सौदेबाजी करती, अपमानित होती, एक-एक पैसा बचाने की कोशिश करती।

 

हर महीने उन्हें कुछ वचन-पत्रों का भुगतान करना होता और कुछ का नवनीकरण कर और समय माँगना पड़ता था।

 

उसके पति ने शाम के समय व्यापारियों के खातों की नकल करने का काम शुरू कर दिया, वह घर पर भी देर रात काम करता, उसे एक पेज की नकल के पाँच सूस मिलते।

 

यह जीवन-क्रम दस वर्षों तक चला। दस वर्षों में उन्होंने सारा कर्ज संचित चक्रवृद्धि ब्याज समेत चुकता कर दिया।

 

श्रीमती लोइसेल अब बूढ़ी दिखाई देने लगी थी। वह एक निर्धन घर-परिवार वाली स्त्री बन गई थीमजबूत, कठोर और रूखी। बिखरे बालों, तिरछे स्कर्ट और लाल हाथों से पानी की सरसराहट की साथ फर्श साफ करती हुई, वह ऊँची आवाज में बात करती।

 

लेकिन कभी-कभी, जब उसका पति दफ्तर में होता, वह खिड़की के पास बैठ जाती और बहुत पहले की उस शाम को, उस बॉल-डांस के उन पलों को याद करती, वह कितनी सुंदर, कितनी सम्मानित, कितनी उत्साहित थी!

 

अगर वह उस हार को नहीं खोती तो क्या होता? कौन जानता है? कौन जानता है? जीवन कितना विलक्षण और परिवर्तनशील है! हमारे तबाह होने या बचने के लिए बस एक छोटी सी वस्तु काफी होती है!

 

एक रविवार, जब वह सप्ताह भर के घरेलू कामों की व्यस्तता के बाद तरोताजा होने के लिए टहलती हुई चैंप्स-एलिसीस गई, वहाँ अचानक उसकी नजर पर एक महिला पर पड़ी, वह एक बच्चे की उँगली पकड़े घूम रही थी। वह श्रीमती फारेस्टियर थी, अब भी युवा, अब भी सुंदर, अब भी आकर्षक।

श्रीमती लोइसेल ने स्वयं को विचलित महसूस किया। क्या उसे उससे बात करनी चाहिए? हाँ, क्यों नहीं? और अब जब उसने उसका वैसा ही हार खरीदकर दे दिया था, वह उसे सबकुछ बताएगी। क्यों नहीं बताए? वह उसके पास पहुँची।

 

गुड मॉर्निंग, जीन!”

उसकी दोस्त, एक साधारण सी महिला के आत्मीय संबोधन से चकित थी, बिल्कुल नहीं पहचान पाई और हकलाते हुए बोली, “लेकिन मैडम, मैं तुम्हें नहीं जानती हूँ, तुम्हें शायद कोई गलतफहमी हुई है।

 

जीन, मैं माथिल्डे लोइसेल हूँ।

उसकी दोस्त ने हैरानी से कहा, “ओह! मेरी प्यारी माथिल्डे! तुम कितनी बदल गई हो?”

 

हाँ, जब मैं तुम्हें हार लौटाने आई थी, उसके बाद मेरे दिन काफी कठिनाई में बीते, बहुत ही मनहूस दिन और वह सब तुम्हारी वजह से हुआ!”

मेरी वजह से? भला वह कैसे?”

तुम्हें वह हीरों का हार याद है, जो तुमने मुझे मंत्रालय की बॉल-डांस पार्टी पर पहनने के लिए दिया था?”

हाँ, बहुत अच्छी तरह से।

हाँ तो, मैंने उसे खो दिया था।

तुम क्या कहना चाहती हो? उसे तो तुमने लौटा दिया था।

 

मैंने तुम्हें वैसा ही हार कर्ज की रकम से खरीदकर लौटाया था। और कर्ज चुकाने में हमें दस साल का समय लग गया। तुम समझ सकती हो, यह सब हमारे लिए आसान नहीं था, हमारे लिए जिनके पास कुछ नहीं था। आखिरकार सारा कर्ज चुकता हो गया है, अब मैं खुश हूँ।

 

मैडम फारेस्टियर चलते-चलते रुक गई। उसने कहा, “तुम कह रही हो कि तुमने मेरे उस हार के बदले एक हीरों का हार खरीदा था?”

 

हाँ, उस समय, तुम्हारा इस पर ध्यान नहीं गया। दोनों बिल्कुल एक जैसे थे।

और वह खुशी से मुसकराई, जिसमें गर्व भी था, साथ ही निष्कपटता भी।

 

मैडम फारेस्टियर भीतर तक द्रवित हो गई, उसने उसके दोनों हाथ पकड़ लिये, “ओह! मेरी भोली-भाली माथिल्डे! मेरा वह हार नकली था। उसकी कीमत अधिक-से-अधिक पाँच सौ फ्रैंक होगी।

The End

Disclaimer–Blogger has prepared this  short story "The Diamond Necklace" with help of materials and images available on net. Images on this blog are posted to make the text interesting.The materials and images are the copy right of original writers. The copyright of these materials are with the respective owners.Blogger is thankful to original writers.


 

























































Monday, 19 June 2023

Prophet Musa, The plagues of Egypt: End of Pharaoh and His Army. That Ended 400 year of slavery of People of Israel & Death of Firaun

These plagues are recorded in the Quran and Bible too, and were sent by God after Pharaoh refused to let the Israelites leave Egypt.

 

This plague God sent on the nation of Egypt, and it was that finally ended the brutal 400-year slavery of the people of Israel. What is this?

 

The "Plagues of Egypt", called were a number of incidents believed to have happened during the Pharaonic period of Ancient Egypt. 

At the time of the plagues, the Israelites, who were God’s chosen people, were living as enslaved peoples in Egypt. They were undergoing a great deal of suffering and were crying out to God to save them from their circumstances.

 

Prophet Moses began by asking the Pharaoh to release the Israelites, but he refused.

 

It was in response to the Pharaoh’s refusal that God sent the 5 plagues. The plagues were intended to force Pharaoh’s hand and make him release the Israelites from Egypt.

First, God gave Pharaoh and the Egyptians warnings, in the form of plagues. With each plague, the Egyptians had an opportunity to repent and release the Israelites from slavery.

 

Every time, the Egyptians refused Even after that direct warning and all the other plagues, Pharaoh still would not release the Israelites from slavery.

 

Each time the Pharaoh is subjected to humiliation, his defiance becomes greater.


Five Consecutive Punishments upon the followers of Pharaoh.

When the blessed staff of Prophet Musa turned into a serpent and swallowed the snakes of magicians, then they (the magicians) fell into prostration and embraced the true faith. But Pharaoh and his followers still did not embrace the true faith.

And instead, his disbelief and stubbornness increased even more and he started to strive even harder to hurt the feelings and torture the Momineen of Bani Israil and Prophet Musa.

Pharaoh started to use different means to increase his cruelties. Aggrieved from the cruelties of Pharaoh, Prophet Moses supplicated in the court of Allah.

 

O my Rabb! Pharaoh has become very ignorant and cruel and his followers breached their promises.

Therefore, trail them with such curses that may be a punishment for them which becomes in admonition for my people and future generation. (Ruh-ul-Bayan, vol3, pp22: Part 9 Surah al-Ara’af verse 133)

 

After the supplication of Prophet Moses, Allah sent five consecutive punishments on the followers of Pharaoh. Those five punishments are as following:

 

1) Plague of Storm

All of sudden, a cloud appeared which prevailed darkness everywhere. Then it started to rain heavily. In the midst of the rain, there was a storm, resulting in the rain water to enter the houses of the followers of Pharaoh. They were clogged in the water and water mounted up to their necks.

 

Those who sat down drowned and killed. Neither they could move nor do anything. The waves of the storm destroyed their crops and gardens. 

Though the houses of Bani Israil were adjacent with the houses of the followers of Pharaoh, the water of the flood did not enter the houses of Bani Israil and they were living in their houses with peace and serenity.

 

When Pharaoh’s followers could no longer tolerate the punishment and became helpless, they came to Prophet Musa and requested him to pray for them so that this calamity is taken away from them.

They also announced that they will embrace faith and will send Bani Israil to him (To Prophet Moosa). Thus Moses supplicated and the punishment of storm was taken away.

 

Then again they deviated from their committed promise and did not embrace the faith. Once again they started their atrocities and ignorant activities.


2. Plague of Locusts

The pharaoh’s followers enjoyed peace and tranquillity for one month but when their cheating, arrogance and cruelties started to increase, Almighty Allah, sent his wrath and punishment in the shape of locusts. Thus swarms of locusts emerged from all nooks and corners which ate all their crops and gardens.


They even ate the woods of their houses. The houses of Pharaoh’s followers were full with locusts and it made their life miserable, but the fields and gardens of the believers of Banu Israil were safe and sound from the invasion of these locusts.

Upon seeing this, pharaoh’s followers learnt a great lesson and after getting fed up of this punishment, they again reported Moses and promised him that if he supplicates for the removal of this punishment, we will surely embrace the true faith and will not execute tyrannies and cruelties on Bani Israil.

Therefore, on the seventh day, the punishment was removed from them dure to the prayers of Prophet Musa. Again, these people lived in a state of luxury and peace for a month.

Once again these people broke their promises and did not embrace the true faith again. Their practices of disbelief and sins started to increase again.


3. Plague of Weevil

After a passage of another month, there was a new torment hailed upon them in form of weevils. Some interpreters say that these weevils entered in their wheat and cash crops and ate away all their food reserves.


Some interpreters are of the opinion that it was a tiney vermin that eroded the ripen crops and also entered in their dresses and started bruising and biting their skin and this incessant stinging to their bodies made them convulsive like a slaughtered cock.

 

Their conditions worsened so much that these vermin bruised and scratched the hair of heads, beards, moustaches, eyebrows and eyelashes and they had an appearance as that of a small pox victim.

 


These vermins also entered in their foods, waters and utensils and due to the presence of these insects, the Pharaoh’s followers were unable to eat and drink and were unable to have even a nap for a moment.

 

This punishment remained for a time span of one week and made them very miserable. These people were compelled to howl and cry and once again they reported Moses and requested him to pray for their redemption and assured that they will accept the faith.

 


Feeling pity on their state of anxiety and melancholy, Prophet Musa supplicated for them and consequently, the punishment was shunned away.

 

As per there habit, these insolent followers of Pharaoh once again breached their promise and once again started their acts of persecutions and cruelties which a new vigour and more intensity.

 

After one month, there was another punishment upon them in the form of frogs.


4. Plague of Frogs

All of a sudden, there was an abrupt and haphazard breeding of numerous frogs in the houses of the followers of Pharaoh and the conditions of these atrocious and tyrants was as that were so ever these people would have sitting, their gatherings were filled with thousands of frogs.

 

If anyone opened his mouth to talk or eat, frogs would jump in his mouth. Frogs would be in their cook pots and would sit over their bodies in hundreds. They were having no relieve from these frogs while walking, sitting, and sleeping. 

The followers of Pharaoh started to cry due to this punishment and again in this whining state, they reported  Prophet Musa and begged him to invoke for them and administered many oaths and promised him that we will surely embrace the faith and will never coerce the believers in future.

Therefore, on the seventh day, due to the supplication of Prophet Musa, this punishment was also lifted but these condemned and cursed people again, engaged themselves in their devilish activities upon acquiring peace.

They once again started persecution of believers and again began to disrespect Prophet Moses. Once again they stimulated the severe punishment for them and again the torment hailed upon them in form of blood.

 

5. Plague of water turning into Blood

All of a sudden, the water of all wells and rivers of Pharaoh’s followers were filled with blood and they beseeched Pharaoh about it.

 

The ignorant Pharaoh said that this is magic of Syaduna Musa. Upon hearing his comments, his followers said that what kind of magic is this that our crockery and kitchenware are filled with blood and believers have no impact on them.

Then Pharaoh ordered them to draw out water with believers from the same bucked, but it was strange and miraculous expression of the Power of the Most Powerful Almighty Allah.


That when believers drew out water, it was crystal clear, pure and sweet water; but on contrary, when the followers of Pharaoh used to draw out water, it was pure blood.


When the severe thirst humiliated the followers of Pharaoh, they came to believers and said that we will drink water with you in the same pot and at the same time.

 

When believers and non believers used to collectively drink water, at the side of believers, there was a crystal clear water but on the other side of non-believers, the water that used to go in to the mouths of pharaoh’s followers used to alter in blood.

 

In state of helplessness, the Pharaoh and his followers quenched their thirst by chewing grass and extracting water from it but even the liquid that was extracted from it would turn into blood when it reached in their mouths.

 

Fed up from these miserable conditions, the followers of Pharaoh again requested Moses for the removal of the punishment from them.

 

Again due to prophetic kindness and compassion, Moses prayed for them. Thus on the seventh day, the torment of this curse of blood was removed from them.images

 

There were consecutive five punishments on the followers of Pharaoh and every punishment was removed on the seventh day.

 

There used to be an interval of one month between two punishments, but the hearts of these tyrants and transgressors were so sternly sealed and they were wretched to such an extent that they would not embrace the faith.

 

Almighty Allah decided to put an end to Pharaoh's crimes after He had given him several chances.

 

The Quran mentions that God instructs Musa to travel at night with the Israelites and warns them that they would be pursued. The Pharaoh chases the Israelites with his army after realizing that they have left during the night.

Allah commanded Moses to depart, and the children of Israel received reluctant permission from Pharaoh to go out of the city for their feast. They prepared themselves to leave Egypt.

This later became known as the Exodus. They carried with them their jewels and borrowed a lot of jewels from the Egyptians.

 

In the darkness of night, Moses led his people towards the Red Sea, and in the morning they reached the beach. By then Pharaoh was aware of their departure, so he mobilized a huge army to pursue them.

 

The Parting of the Red Sea

The impatient children of Israel soon became agitated and Joshua (Yusha), Ibn Nun, exclaimed: "In front of us is this impassable barrier, the sea, and behind us the enemy; surely death cannot be avoided!"

 

Moses replied that he would wait for further guidance from Allah. These words filled them with some hope, but man is always impatient for results: they were willing to surrender themselves back into slavery.

At that moment Allah revealed to Moses: "Strike the sea with your staff!" Moses did as he was commanded. A fierce wind blew, the sun shone brightly, and in a flash the sea parted, the crests of the waves standing like mountains on each side.

 

As they looked back, they saw Pharaoh and his army approaching, about to take the very path which had been opened for them.

In great fear and panic, they pleaded with Moses to ask Allah to close the sea. However, Allah commanded Moses not to smite the sea with his staff again, for Allah's decree was already in action.

 

The Death of the Pharaoh

Pharaoh and his army had seen the miracle, how the sea had parted.

Pharaoh turned to his men and stated: "Look! The sea has opened at my command so that I may follow those rebels and arrest them!"

 

They rushed across the parted waters, and when they were midway, Allah commanded the sea to return to its former state.

Terror-stricken Pharaoh, realizing that his end had come, declared out of fear: "I believe that there is no god worthy of worship except Allah in whom the children of Israel believe, and I am of those who surrender to Him."

 

But Allah did not accept this declaration from the tyrant, and the waters closed over him, drowning him and his entire army.

 

Moses's People's Escape and Pharaoh's Death

The curtain fell on Pharaoh's tyranny, and the waves threw his corpse up on to the western seashore.

 

The Egyptians saw him and knew that their gods whom they worshipped and obeyed were mere slaves who could not keep death away from their own necks.

 The Quran states that the body of the Pharaoh is made a sign and warning for all future generations.

 And the Israelites continue their journey to the Promised Land.


Israelites after Pharaoh's Defeat. Were cursed with forty years of wilderness wandering in Desert?

The End

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