Saturday, 19 November 2022

A Nightmare love Tale- Tolstoy And Sophia:दुनिया के महान लेखक लियो टॉल्सटाय ने जब ख़त में पूछा- क्या तुम मेरी पत्नी बनना चाहती हो?

सारे सुखी परिवार एक जैसे होते हैं. हर दुखी परिवार अपने तरीके से दुखी होता है.” – यह 1878 में छप कर आई टॉलस्टॉय कीअन्ना कैरेनिनाकी पहली पंक्ति है.

 

साहित्य जगत में लियो टॉल्सटाय एक ऐसा नाम हैं जिनकी क्षमता और योगदान से कभी इनकार नहीं किया जा सकता. उन्होंने दुनिया को तीन ऐसे महानतम उपन्यास दिए हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी प्रासंगिक रहे हैं और लोकप्रिय भी. उनके लिखे उपन्यास युद्ध और शांति को दुनिया की बेहतरीन किताबों में शुमार किया जाता है. वहीं अन्ना कारेनिना भी बेहद लोकप्रिय उपन्यास रहा है.

Leo Tolstoy

मार्क्सवादी विचारक लेनिन भी लियो टॉलस्टाय के लेखन से काफी प्रभावित थे. उन्होंने तो एक बार रूसी लेखक मैक्सिम गोर्की से यहां तक कहा था कि लिखना सीखना है तो टॉल्सटाय से सीखो..!

 

लियो का विवाह 1862 में सोफिया से हुआ. सोफिया एक उच्च वर्गीय संभ्रांत परिवार की महिला थीं. सोफिया शादी के समय लियो से उम्र में 16 वर्ष छोटी थी और इन दोनों की 13 संतानें थीं.

Sophia And Leo Tolstoy
 

लियो और सोफिया के शादीशुदा जीवन के बारे में कई तरह की बातें कही जाती हैं. कई जगह ऐसा भी लिखा गया है कि लियो शादी के बाद एक अच्छे पति साबित नहीं हो पाए थे. उनके विचार सोफिया के जीवन पर भारी पड़ते रहे.

 

लियो टॉल्सटाय के लव लेटर्स जो उन्होंने सोफिया को लिखे थे

जिसका लेखन दुनिया भर में इतना मशहूर रहा है उसने अपने प्रेमपत्र में क्या लिखा होगा, कैसे लिखा होगा... ऐसे सवाल अक्सर हमारे मन में ही जाते हैं. ये सवाल लाजिमी भी हैं इसलिए यहां पेश है लियो टॉल्सटाय का वो ख़त जो उन्होंने सोफिया को तब लिखा था, जब वह उनसे शादी करना चाहते थे और उन्हें सोफिया की तरफ से इस बारे में कोई जवाब नहीं मिल पा रहा था. लिखते हैं-

सोफिया,

मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता! पिछले तीन सप्ताह से हर दिन मैंने अपने आपसे कहा कि बस आज मैं तुमसे सब कुछ कह डालूंगा, पर हर दिन अपनी आत्मा में वही पछतावा, डर और खुशी लेकर मैं यहां से चला जाता रहा हूं.

Sophia
 
मुझे सच-सच बताओ...क्या तुम मेरी पत्नी बनना चाहती हो? वही उत्तर मुझे दो जो तुम पूरे विश्वास के साथ और अपने हृदय के गहनतम से दे सकती हो. यदि संदेह की छाया भी कहीं तुम्हें दिखे तो साफ इंकार कर दो. भगवान के लिए अपने हृदय की छानबीन ध्यान से करो. तुम्हारा इंकार मेरे लिए भयानक होगा, पर मैं उसके लिए तैयार हूं और उसे स्वीकार करने की शक्ति मुझमें है. लेकिन जब मैं तुम्हारा पति होऊंगा, तुम्हारा मुझे उतना ही प्यार ना करना, जितना कि मैं तुम्हें करता हूं, मेरे लिए भयंकर होगा.

(टॉल्सटाय)

जिस समय टॉल्सटाय ने यह पत्र लिखा तब यह माना जा रहा था कि टॉल्सटाय सोफिया से नहीं बल्कि उनकी बड़ी बहन एलिजाबेथ से प्यार करते हैं. उसी वक्त उन्होंने यह ख़त सोफिया को लिखा था. यहां उस ख़त का एक हिस्सा लिया गया है.

 

1862 में लियो टॉलस्टॉय के साथ हुई शादी के समय सोफिया आंद्रेयेव्ना कुल अठारह की थी -पति से 16 साल छोटी.

टॉलस्टाय तब तक एक बड़े उपन्यासकार के तौर पर रूस भर में ख्याति हासिल कर चुके थे. हद दर्जे के जुआरी और वेश्यागामी टॉलस्टॉय के असंख्य औरतों के साथ शारीरिक सम्बन्ध रहे थे.

 

इनमें उनके फार्म पर काम करने वाली अनेक नौकरानियां भी थीं जिनमें से एक ने उनके बच्चे को भी जन्म दिया था. अपने सेक्स जीवन की तमाम तफसीलें टॉल्सटाय डायरियाँ में लिखा करते थे.


इससे जुड़ा एक किस्सा यह भी सामने आता है कि शादी की रात ही लियो ने सोफिया को वो डायरी पढ़ने को दे दी थी, जिसमें उनके बीते जीवन के प्रेमप्रसंग, शराब और जुए इत्यादि से जुड़ी ढेरों बातें दर्ज थीं. इस डायरी से लिखी गई हकीकत को सोफिया बर्दाश्त नहीं कर पाई थीं और उसी दिन से दोनों के रिश्तों में एक खटास सी पैदा हो गई थी. हालांकि दोनों हमेशा साथ रहे जब तक कि लियो ने खुद अपना घर नहीं छोड़ दिया था.

Leo Tolstoy With Sophia

इस शादी के परिणामस्वरूप कुल तेरह बच्चे पैदा हुए जिनमें से तीन बचपन में ही गुजर गए. शादी के शुरुआती पंद्रह सालों में टॉलस्टॉय के लिखेयुद्ध और शान्ति औरअन्ना कैरेनिना दुनिया के सबसे ज्यादा पढ़े गए उपन्यासों में हैं. इन पंद्रह सालों में टॉलस्टॉय की पत्नी ने नौ बच्चों को जन्म दिया.

 

सोफिया ने अपने जीनियस पति के काम को अंजाम देने में अपना खुद का जीवन होम कर दिया.

एक गर्भावस्था से दूसरी गर्भावस्था के बीच सोफिया के लिए अथक मेहनत का समय होता था. उसे अपने पति की सेक्रेटरी, कॉपी सम्पादक और आर्थिक प्रबन्धक का काम भी करना होता था.

 

1869 के साल के आते आते जबयुद्ध और शान्ति के आख़िरी अध्याय लिखे जा रहे थे, सोफिया ने पूरी पांडुलिपि में आठ बार संशोधन किये और इतनी ही बार उसकी प्रतिलिपियाँ तैयार कीं. बाल-बच्चों के साथ दिन भर मसरूफ़ रहने के बाद वह रात को मोमबत्ती की रोशनी में इस काम को अंजाम देती थी.

Sophia
 
सोफिया एक बेहद पढ़े-लिखे परिवार से ताल्लुक रखती थी और उसके परनाना रूस के इतिहास के पहले शिक्षा मंत्री रहे थे. उसे ख़ुद कहानियां सुनाना अच्छा लगता था और उसने अपने अनुभवों को अनेक डायरियों की सूरत दी.

 

उसके पास लिखने के लिए अपने परिवार की असंख्य कहानियां थीं लेकिन टॉलस्टॉय की कहानियों को ठीक करने में ही उसकी आधी जिन्दगी खप गई. यह अलग बात है कि टॉलस्टॉय की निगाह में साहित्य की दुनिया में औरतों के लिए कोई जगह नहीं थी.

Leo Tolstoy
 
विवाह के तीन दशक बीतते बीतते यह सम्बन्ध एक बड़ा बोझ बन चुका था.

टॉलस्टॉय के भीतर का वैचारिक संघर्ष भी नए आयाम लेता जा रहा था. अगले अठारह-बीस साल दोनों के बीच अजीब सी कैफ़ियत रही और आखिरकार 1910 में एक दिन अपनी पत्नी को बताये बगैर बूढ़े टॉलस्टॉय घर से निकल गए. अगले दिन आस्तापोवो नाम के रेलवे स्टेशन पर निमोनिया से उनकी मौत हो गयी.

 

मोटे तौर पर देखा जाय तो यह एक त्रासद सम्बन्ध था जिसने संसार को महान साहित्यिक रचनाएं दीं लेकिन सोफिया और टॉलस्टॉय दोनों को भावनात्मक रूप से तबाह कर दिया.

 

अपनी पति की आदतों को लेकर अपनी एक डायरी में सोफिया ने लिखा है:-

मानवता को खुश रखने के लिए जिन बातों का वे उपदेश देते हैं, वही चीजें जीवन को इस कदर जटिल बना देती हैं कि मेरे लिए जीना और भी मुश्किल  होता जाता है. उन्होंने शाकाहारी खाना ही खाना होता है. इसका मतलब हुआ खाना दो बार बनाना पड़ता है. इसमें दुगना खर्च होता है और दुगनी ही मेहनत लगती है.

Leo Tolstoy with his wife Sophia

प्रेम और भलेपन पर दिए जाने जाने वाले उनके प्रवचन उन्हें अपने परिवार के प्रति बेपरवाह बनाते हैं और वे पारिवारिक जिन्दगी में तमाम तरह की गैरजरूरी नोंकझोंक करने लगते हैं. और दुनियावी चीजों के उनके त्याग (जो सिर्फ शब्दों में होता है) ने उन्हें एक ऐसे आदमी में बदल दिया है जो बिना रुके हर समय दूसरों की बुराई करता रहता है.”

एक बेहद प्रतिभावान और संवेदनशील स्त्री के रूप में सोफिया को अपने विचारों के लिए बहुत बड़े आसमान की दरकार थी लेकिन उसके पति ने उसे लगातार हाशिये में फेंका और गैरज़रूरी महसूस कराया. टॉलस्टॉय और सोफिया की सम्बन्ध एक ऐसी दास्तान है जिसमे स्त्री बिना शर्त पुरुष को अपना आदर्श और भगवान मानती है जबकि पुरुष उसे लगातार यातना पहुंचाता रहता है.

 

19वीं शताब्दी का अंत होते होते दरिद्रों और असहाय के प्रति तॉलस्तॉय की सेवावृति यहाँ तक बढ़ी कि उन्होने अपनी रचनाओं से रूस देश में होनेवाली अपनीं समस्त आय दान कर दी।

Sophia and Leo Tolstoy with their kids

अपनी पत्नी को मात्र उतना अंश लेने की उन्होंने अनुमति दी जितना परिवार के भर पोषण के लिये अनिवार्य था। 'पुनरुत्थान' (रिसरेक्शन) [1899] नामक अपने उपन्यास की समस्त आय उन्होंने रूस की शांतिवादी जाति दुखेबोर लोगों को रूस का परित्याग कर कैनाडा में जा बसने के लिये दे दी।

 

धन-दौलत साहित्यिक प्रतिभा के बावजूद तोलस्तोय मन की शांति के लिए तरसते रहे। अंततः 1890 में उन्होंने अपनी धन-संपत्ति त्याग दी।

 

1910 में सहसा उन्होंने अपने पैत्रिक ग्राम "यास्नाया पोल्याना" को सर्वदा के लिये परित्यक्त करने का निश्चय किया। 10 नवम्बर 1910 को अपनी पुत्री ऐलेक्लेंड्रा के साथ उन्होनें प्रस्थान किया, पर 22 नवबंर 1910 को मार्ग के स्टेशन ऐस्टापोवो में अकस्मात् फेफड़े में दाह होने से वहीं उनका शरीरांत हो गया।

The End

अस्वीकरण-ब्लॉगर ने नेट-विकिपीडिया पर उपलब्ध सामग्री और छवियों की मदद से यह संक्षिप्त लेख तैयार किया है। पाठ को रोचक बनाने के लिए इस ब्लॉग पर चित्र पोस्ट किए गए हैं। सामग्री और चित्र मूल लेखकों के कॉपी राइट हैं। इन सामग्रियों का कॉपीराइट संबंधित स्वामियों के पास है। ब्लॉगर मूल लेखकों का आभारी है।






























Monday, 14 November 2022

Maharaja: lustful Cabinet Meetings of Princely State Kapurthala. (By Divan Germani Das)

Ghulam Gilani was the Prime Minister of the Government of Kapurthala, an important State in Northern India, situated in the strategic Doab region of Punjab. He was virtually a dictator during the reign of Maharaja Nihal Singh of Kapurthala.

The ministers and officials of the State feared him, and even the Maharaja was dependent on him. There was no check on his powers by any other authority in the Government.

In those days the Maharajas and the Kings were mere nominal figures but the real power was vested in the hands of the Prime Ministers who were in reality the dictators, like the Ranas of Nepal.

 

These dictators used the Kings to satisfy the subjects as imperial symbols of authority, but wielded real power themselves.


Ghulam Gilani lived in the city of Kapurthala, not far out in splen did isolation. He held his daily cabinet meetings at Diwan Khana near the palace of Princess Gobind Kaur, daughter of Maharaja Nihal Singh and sister of Maharaja Kharak Singh, Ruler of Kapurthala State and she was renowned for her great beauty and sex appeal.


Ghulam Gilani had a harem of his own, but he loved Princess Gobind Kaur madly.

 

In those times most of the Hindu States had Muslim Prime Minis ters and the Court language used to be Persian or Urdu. Most of the official documents and files were written in Persian or Persia-nised Urdu.

 

Ghulam Gilani was a man of most luxurious habits and had many wives who were strictly veiled as ordained by the Muslim faith. One part of the Diwan Khana was set apart exclusively for his personal use and in the other part, cabinet meetings used to be held.

 

These meetings took place everyday when most of the ministers brought their official files for submission to the Prime Minister and for receiving his orders. At the back of the Diwan Khana there was a garden for his relaxation.

 

In one part of the house, Ghulam Gilani had a narrow under ground tunnel dug up which connected the Diwan Khana with the adjacent palace where Princess Gobind Kaur lived.

 

This tunnel was unknown to anyone except Ghulam Gilani and Gobind Kaur and at the entrance of the tunnel there was a big spacious room where Ghulam Gilani administered justice and did his official work of the day.

 

In front of this room there was a big hall where the ministers collected for Cabinet meetings, presided over by the Prime Minister. The time for the meeting usually was about 2 p.m. in the winter months and about 9 a.m. in the summer months.

 

Ghulam Gilani had put up a big curtain between the main hall and his study room adjoining it.

He sat in the small room on a Persian carpet with a huge white pillow on which he inclined and smoked hookah (a big smoking pipe) and used to conduct the proceedings while the other ministers sat luxuriously in the main room on Persian carpets but they were not allowed to smoke hookah.

 

Screened by the curtain the Prime Minister’s movements were not noticeable and he went through the tunnel to the palace of Gobind Kaur to be with her whenever it pleased him and at the same time gave the appearance of carrying on the administration of Ihe State.

 

Each Minister prepared the case and submitted his views in writing to the Prime Minister who had the power to agree with the views of the Minister or not and give final orders. All the Ministers used to study thoroughly the civil and criminal cases including murder cases, civil or revenue disputes, and submitted their views to the Prime Minister.

 

The Prime Minister had adopted a peculiar and unique method for conducting the proceedings of the Cabinet. As he used to sit behind the curtain, he was not visible to the members of the Cabinet but he could speak to them whenever he wanted to do so.

 

The Cabinet members were given to understand that whenever he was silent on a case, this should be considered as rejected.

 

If he would say, ‘Yes’ or ‘I don’t mind agreeing with you,’ then they should understand that the Prime Minister agreed with the views of the Minister concerned.

 

But it habitually happened that when the Cabinet Meeting was going on, the Prime Minister used to sneak away from his study room. He was away to the residence of Gobind Kaur through the underground tunnel.

 

The Ministers used to read out their cases loudly and submitted them to the Prime Minister, seeking his sanction, but as most of the time, the Prime Minister was not in his room, there was no response from him.

 

Silence had meant that the case was rejected by the Prime Minister.

Whenever it suited the Prime Minister to bring Gobind Kaur to his study room, he did so and she used to sit in his lap while he presided over the Cabinet meetings sitting behind the curtain, smoking the hukka and drinking strong beverages especially brewed for the Prime Minister.


The most intoxicating wines were prepared with the admixture of precious metals including gold, silver and pearls of rare value which cost the Prime Minister one thousand rupees per cup. The Ministers sitting in the next room were ignorant of what was happening in the Prime Minister’s room.

 

Both the Prime Minister and Princess Gobind Kaur drained one cup after another. The Ministers were under the illusion that their presiding genius was there alone attending carefully to the cases and reports submitted to him by them.

 

The Cabinet meeting would last several hours during which period Ghulam Gilani was either at the palace of Gobind Kaur or playing with her a romantic game in the Cabinet room.

 

The Ministers would get disappointed to find that nearly all their recommenda tions were rejected by the Prime Minister.

 

After some time the Ministers came to know of the mystery surrounding Ghulam Gilani’s performance. They decided to find out a way to get rid of such a licentious Prime Minister.

 

The public was also tired of the administration as most of the innocent people were hung and murderers were set scot free. The revenues of the State dwindled and the treasury got depleted. The people were revolting everywhere.

The End

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