Sunday, 15 August 2021

स्वतंत्रता संग्राम की गुमनाम नायिका:-- अजीजन बाई: कानपुर की एक ‘तवायफ़’अपने बदनाम पेशे के दाग को अपनी शहादत के खून से धो डाला

भारत ने अपने स्वतंत्रता की पहली लड़ाई साल 1857 में लड़ी थी, जिसकी गूंज दशकों तक दबाई नहीं जा सकी और जिस कारण आज़ादी के सपने को सच्चाई में बदल पाना संभव हो पाया। हम उस आंदोलन से तो भली-भांति परिचित हैं, जिसकी शुरुआत सिपाहियों की एक टुकड़ी द्वारा की गयी थी और जो फैलती हुई देश के अधिकांश हिस्सों में पहुँच गयी।


पर हम इस कहानी के जिस पहलू को नहीं जानते वो उन लोगों की है, जिन्होंने इस आन्दोलन को संभव बनाया।

उस समय देश के लिए किया गया तवायफ़ों का योगदान भी कुछ ऐसा ही है। ये ऐसी बहादुर स्वतंत्रता सेनानी थीं जिनके आत्म-बलिदान की कहानियों का शायद ही कहीं ज़िक्र मिले। इनमें से एक हैं आजीज़ूनबाई जिनकी कहानी आज भी प्रेरणा देती है। अजीजन बाई वैसे तो पेशे से एक नर्तकी थी, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में भी उन्होंने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था और 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रजों को लोहे के चने चबाने के लिए मजबूर कर दिया था।

 

भारत की आजादी की संघर्ष में हिस्सा लेने वालों में उच्च, पिछड़े समाज और दलित समुदायों से आने वाली औरतों के साथ-साथ बहुत सी सराय वालियां, तवायफों व नृर्तकियों ने भी हिस्सा लिया था। नृर्तकियों के तवायफखानों में स्वतंत्रता संग्राम की योजनाएं तैयार होती थी।

 

हर तरफ तनाव का माहौल था। इसी समय जून 1857 में एक घटना हुई। भारतीय सैनिक जब कानपुर की घेराबंदी कर रहे थे उसी वक्त ब्रिटिश अफसरों ने उन्हें घेर लिया। उस समय इन सैनिको के साथ एक तवायफ भी थी जो इनसे कंधे से कंधा मिला कर लड़ रही थी।

 

यह तवायफ थी अज़ीज़ुंबाई जिन्हें मर्दाना कपड़ों में, पिस्तौल, मेडल से लैस घोड़े पर सवार देखा गया था।कई बड़े नाम थे जो तब क्रांति के नायक हुआ करते थे।अंग्रेज इनके नाम भर से कांपते थे। मगर, एक नाम और भी था जो क्रांति की मशाल थामे आजादी की राह को रोशन कर रहा था।

 

यह थीं अजीजन बाई। नाच-गाने के लिए पहचान रखती थीं, मगर देश के लिए घुंघरू उतार तलवार को थाम लिया और अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। अजीजन बाई ने नाना साहब और तात्या टोपे को बचा खुद का बलिदान दे दिया।

 

दरअसल अजीजन कुलीन क्षत्रीय खानदान की लड़की थी बचपन में अजीजन अपनी सहेलियों के साथ मेला देखने गई थी मेले से वापस लौटते वक्त रास्ते में अंग्रेज सैनिकों के चंगुल में फंस गई शराब के नशे में चूर अंग्रेज अजीजन और उसकी सहेली को जबरन बैलगाड़ी में बैठाकर अपने डेरे पर ले जा रहे थे

 

मौका मिलते ही दोनों पुल के ऊपर से यमुना जी में कूंद पड़ती हैं साथ की लड़की मर जाती है लेकिन भाग्य की धनी अजीजन बच जाती हैं।मुसलमान पहलवान इस लड़की को उठा ले जाता है और 500 रूपए में कानपुर के एक तबायफ खाने में बेच देता है

 

यहीं पर उस लड़की का नामकरण होता है और एक क्षत्राणी अजीजन बाई बन जाती है समय अपनी गति से आगे बढ़ता है अजीजन की खूबसूरती , नृत्य और गायन की ख्याती दूर दूर तक फैलती है और अम्मीजान की दुकान (तवायफ खाना) पर चहल-पहल बढ़ जाती है

 

अजीजन बाई के पास बड़ी संख्या में अंग्रेज भी आते थे। इसकी जानकारी तात्या टोपे को हुई तो उन्होंने अजीजन बाई को बुलाया। उन्होंने अजीजन बाई को अंग्रेजों की सूचना देने की बात कही।

 

वह तात्या टोपे के करीब आईं तो सैनिक का रूप ले लिया। इसके बाद अजीजन ने अपने साथ रहने वाली युवतियों को भी सैनिक बनाकर टोली बना ली। यह टोली हमेशा पुरुषों की वेशभूषा में ही रहती थी। घोड़ों पर बस्तियों से गुजरती यह टोली लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए उत्साहित करती थीं।


Nana Saheb Peshwa

 

एक जून 1857 को नाना साहब, तात्या टोपे, टिक्का ङ्क्षसह अजीमुल्ला खां, आदि ने गंगाजल को मस्तक पर लगाते हुए अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने की शपथ ली। इस समय तक अजीजन बाई तात्या टोपे की काफी विश्वास पात्र हो चुकी थीं। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि वह इस मौके पर इतने प्रमुख लोगों के साथ मौजूद थीं।


Tatya Tope

 

अजीजन बाई ने चकलो की लगभग सभी तवायफों का संगठन बनाकर एकजुट किया। उन्होंने अपने संगठन का नाम मस्तानी टोली रखा|

 

उस टोली में सम्मिलित स्त्रियाँ आदमियों का भेष धारण करके तलवार लिए घोड़ों पर चढ़कर नवयुवकों को क्रांति में भाग लेने की प्रेरणा देती व निडरतापूर्व सशस्त्र जवानों का हौसला आफ़जाई करती था|

 

1857 की क्रांति की लहर पूरे देश में धधक रही थी तब मस्तानी टोली की सभी तवायफें अंग्रेजों की छावनी में भी नृत्य प्रदर्शन के लिए जाकर वहां की गुप्त सूचनाएं हासिल करती थी और इन जानकारियों को स्वतंत्रता सेनानियों तो पहुंचाया करती थी।

 

अजीजन बाई को जानकर यह जाना जा सकता है कि कितनी गहरी साम्राज्यवाद-विरोधी चेतना लोगों में थी. ऐसे लोगों में जो बहुत कुछ मजबूरी में झेल रहे थे, एक उम्मीद की आंच दिखते ही वे सर्वस्व त्याग के लिए तैयार हो गए. अजीजन एक नृत्यांगना थीं जिनके यहां अंग्रेज अफसर आते-जाते थे।

 

जब आजादी की पहली लड़ाई छिड़ी तो वे गोपनीय तरीके से आजादी के लिए लड़ रही फौज के सेनानायक तात्या टोपे से मिलाने आईं। उन्होंने कहा कि देश के लिए वे भी अपनी जान की बाजी लगाने को तैयार हैं ।टोपे ने उनकी सराहना की और कहा कि गोरे अफसरों की गुप्त सूचनाएं आप ला सकती हैं ।यह हमारे बड़े काम की होंगी।

 

अजीजन ने ऐसा ही किया. बहुत मदद की।लेकिन अफसोस कि एक दिन अंग्रेजों को इसकी जानकारी हो गयी कि अजीजन सूचना साझा कर देती हैं।उनपर जुल्म ढाए गए. उनकी हत्या कर दी गयी।

 

अजीजन के सम्बन्ध में यह लोकगीत है जो बताता है कि लोकजीवन अपने किसी भी योद्धा को भूलता नहीं. अपनी जुबान में उसे अमर कर देता है :

फौजी टोपे से मिली अजीजन

हमहूँ चलब मैदान मा.

बहू-बेटिन कै इज्जत लूटैं

काटि फैंकब मैदान मा.

अइसन राच्छस बसै पइहैं

मारि देब घमसान मा.

भेद बताउब अंग्रेजन कै

जेतना अपनी जान मा.

भेद खुला तउ कटीं अजीजन

गईं धरती से असमान मा.”

 

[मतलबअजीजन बाई आजादी के लिए लड़ने को तैयार होकर सेनानी तात्या टोपे से मिलीं. मैदान में चलकर लड़ने का अनुरोध किया. कहा कि ये अंग्रेज हिन्दुस्तानी बहू-बेटियों की इज्जत लूटते हैं, इन्हें मैं मैदान में काट फेंकूंगी. जब घमासान युद्ध होगा, ऐसे राक्षसों को बचने नहीं दूंगी. मार डालूंगी. (तात्या ने उनसे कहा कि मुझे अंग्रेजों का भेद बताइये) उन्होंने कहा कि जितना भी मेरी जानकारी में होगा, अंग्रेजों का सारा भेद मैं आपको बताऊंगी. फिर एक दिन अजीजन का भेद अंग्रेजों के सामने खुल गया. वे मार-काट डाली गयीं। इस धरती से उठ कर वे आसमान में चली

 

अजीजन बाई: अपने बदनाम पेशे के दाग को अपनी शहादत के खून से धो डाला

कानपुर जनपद में कई स्थानों पर स्वतंत्रता का झंडा लहरा उठा, किंतु दुर्भाग्य और नेतृत्व की अदूरदर्शिता के कारण यह स्वतंत्रता कुछ दिन ही रह सकी। अंग्रेजों ने और सेना बुलाकर कानपुर पर हमला कर उसे फिर से अपने अधीन कर लिया। गोरों ने स्वतंत्रता प्रेमी क्रांतिवीरों को बंदी बना लिया। इन वंदियों में नर्तको अजीजन भी थी।

 

बंदी बनाकर जब उसे सेनापति हैवलाक के सामने हाजिर किया गया, तब सेनापति उस महिला को सैनिक वेश में देखकर चकित रह गया। उसने अजीजन बाई के रूप तथा नृत्य-गायन आदि की चर्चा और प्रशंसा पहले से सुन रखी थी। अत: एक नर्तकी रूपजीवा को इस रूप में देखना वास्तव में ही अंग्रेजों के लिए आश्चर्य का विषय था।

 

इसके साथ ही सेनापति के आश्चर्य का कारण यह भी था कि स्वतंत्रता प्रेमी बंदियों के साथ जिस प्रकार का व्यवहार किया जाता है, उसे जानकर तो अधिकांश पुरुष भी भयभीत हो जाते हैं किंतु अजीजन उस विषम संकट की घड़ी में मुस्करा रही थी। उसके सुंदर मुख-मंडल पर मुस्कान बिखर रही थी।

 

अंग्रेज अधिकारी ने उससे कहा कि यदि वह क्षमा माँग ले और उनके कैंप (छावनी) में सेवा करने को तैयार हो तो उसे माफ किया जा सकता है। ऐसा न करने पर मौत की सजा निश्चित है। अंग्रेज अधिकारी के प्रस्ताव को ठुकराते हुए अजीजन ने कहा-'अंग्रेजों की पूर्ण हार देखने के अलावा मेरी और कोई इच्छा नहीं है।

 

आप मेरी जान ले सकते हैं, मुझे झुका नहीं सकते।' सेनाधिकारी अजीजन के इन शब्दों को सुनकर आगबबूला हो गया और उसने विद्रोही नर्तकी अजीजन को तुरंत गोली मार देने की आज्ञा दे दी। स्वतंत्रता की दीवानी अजीजन ने इस आदेश को सुनकर गर्व से सिर ऊँचा किया और प्रसन्नता पूर्वक मुस्कराती हुई फायरिंग स्क्वाड' के सामने जाकर खडी हो गई।

 

और इस प्रकार क्रांति की बलिवेदी पर नर्तकी अजीजन बाई शहीद हो गई। अजीजन के संवंध में ऐसी धारणा थी कि बाबूगढ़ में १२५ अंग्रेज स्त्री और बच्चों की जो हत्या हुई थी, उसके पीछे अंग्रेजों के अत्याचारों से पीड़ित और उत्तेजित सैनिकों को बदला लेने के उकसाने वाली वही थी।

 

 यद्यपि नाना साहब ने स्त्री-बच्चों को सुरक्षित रखने की थी। नाना साहब की आज्ञा की उपेक्षा करने की हिम्मत अजीजन ही जुटा पाई था अन ऐसी दृढ़ चरित्र और साहसी नारी ही ऐसा कदम उठा सकती थी।

The End

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Friday, 13 August 2021

Story of Prophet Yahya A.S: Salome Step daughter of King Herod--Danced for his (John the Baptist) Head

 Prophet Yahya (as) was the son of Prophet Zakariya (as).

The family tree of Zakariya AS, Yahya AS, Maryam AS and Isa AS is closely linked.

Yahya AS would later be related to Isa AS, as his mother, the wife of Zakariya AS, was the maternal aunt of Maryam AS. According to some reports, the wife of Zakariya AS and Maryam AS were with child at around the same time.

 

His birth was a miracle because he was born of a barren mother, and an aged father.

Zakariya (as) prayed for a son earnestly. Allah responded to his prayers, and soon the angels arrived with good news!

 

They informed the Prophet that Allah himself has named the child as Yahya (as). When the Prophet asked for a sign, the angel said that he will not be able to talk for the next three days!

 

Zakariya (as) could not talk for the next three days, just like the angels told him. He had to communicate using gestures during that period!

 

After a few months, the Prophet was blessed with a baby boy. He named the boy Yahya (as). Even as a child, Yahya (as) was unlike any other kids. In a world where children used to amuse themselves, Yahya (as) was serious all the time.

 

Most children took delight in torturing animals, but the young Prophet Yahya (as) was merciful to them. He fed the animals from His food, and he ate the fruit or leaves of trees! Yahya (as) loved reading books since childhood.

 

When He grew up, Allah the exalted called upon him. "Oh Yahya, hold fast to the Torah". He said Allah (s.w.t) blessed him with wisdom even as a child!

 

Yahya (as) soon became the wisest and most knowledgeable man during that time. Soon, Allah blessed him with abilities to pass judgements on people's affairs! He interpreted the secrets of religion; he guided the people on to the right path, and warned them of evil.

 

By the time He reached his maturity, his compassion for people and animals increased greatly. He called the people to repent the sins.

 

Once it so happened that Zakariya (as) and His wife went searching for Yahya (as) who had been missing for many days. Prophet Zakariya (as) went searching for his son who didn't come home for three days. He them found Him sitting in a grave, which He had dug himself. Zakariya (as) was surprised to see the Young Prophet Yahya (as) weeping.

 

The old Prophet Zakariya (as) said "My Son"

"I had been searching for you everywhere!"

"Why you sitting in this grave and weeping?"

He asked Him (as) "O father" the young Prophet Yahya (as) answered.

 

"Didn't you tell me that the span between Paradise and Hell can be crossed only by the tears of weepers?"


The old Prophet Zakariya (as) was surprised to hear the wisdom of his son.

 

"Weep then, my son" He said to Him, and they wept together!

They say that Yahya (as) wept so much that tears marked His cheeks! Yahya (as) found comfort in the open, and never cared about food. He sometimes ate grass, leaves and herbs as well. He slept anywhere in the mountains of holes in the ground.

He would never pay any heed to the animals, and would continue to pray and sleep inside. The beast easily recognized Yahya (as) as the Prophet, and they would leave the cave.

 

The Prophet Yahya (as) would sometime feed the beasts from his own food! He would then satisfy himself with the prayers for his soul. He would then spend rest of the night, crying and praising Allah (s.w.t).

 

When Yahya (as) called people to worship Allah (s.w.t), He made them cry out of love and submission! He arrested their hearts, with the truthfulness of His words!

 

It’s clear why Prophet Yahya spoke to the people about Isa Al-Masih. Through Isa, we can know the way to Heaven. And Isa is the expression of Allah’s mercy towards people. Prophet Yahya wanted everyone to understand this.

 

A conflict took place between Prophet Yahya (as) and the authorities at that time.

A tyrant king, Herod Antipas, the ruler of Palestine, was in love with Salome, his brother's daughter. He was planning to marry his beautiful niece. The marriage was encouraged by her mother and by some of the learned men of Zion, either out of fear or to gain favor with the ruler.

 

On hearing the ruler's plan, Prophet Yahya AS pronounced that such a marriage would be incestuous. 

He summoned everyone and told them that He would never approve, as it was against the Torah! The Prophet's pronouncement spread like wildfire! When Salome heard this, she got really angry! It was her ambition to rule the kingdom with her uncle. That night, Salome plotted to get the Prophet killed!

 

Thus, Prophet Yahya AS (John the Baptist), the last of the Old Testament prophets, was killed for no other reason than spreading God’s word and telling the truth.

 

Salome danced in Seven Veils before Herod for the Head of Prophet Yahya as (John the Baptist)

After Salome danced before Herod and his guests at a festival, he promised to give her whatever she asked. Prompted by her mother, Herodias, who was infuriated by Prophet Yahya’s condemnation of her marriage.

 

She demanded the head of Prophet Yahya as, on a platter, and the unwilling Herod was forced by his oath to have Prophet Yahya (John Baptist) beheaded. Salome took the platter with Prophet Yahya (John’s) head and gave it to her mother.

 

Herod is portrayed as lusting after Salome, while Salome, in her turn, desires Prophet Yahya (John the Baptist); she finally satisfies her corrupt wishes by kissing the lips of the severed head of Prophet Yahya, who had spurned her. Hence, Salome has become an erotic symbol in art, and it is likely that it is her provocative “Dance of the Seven Veils”.

 

Who was Salome?

Salome, (flourished 1st century CE), according to the Jewish historian Josephus, the daughter of Herodias and step daughter of Herod Antipas, tetrarch (ruler appointed by Rome) of Galilee, a region in Palestine.

 

In Biblical literature she is remembered as the immediate agent in the execution of John the Baptist. She was twice married, first to the tetrarch Philip (a half brother of her father, Herod Philip, and a son of Herod I the Great) and then to Aristo ulus (son of Herod of Chalcis

 

According to the Gospels of Mark (6:14–29) and Matthew (14:1–12), Herod Antipas had imprisoned John the Baptist for condemning his marriage to Herodias, the divorced wife of his half brother Herod Philip (the marriage violated Mosaic Law), but Herod was afraid to have the popular prophet killed.

 

The cruel woman gloated with delight. But the death of Allah's beloved prophet was avenged. Not only she, but all the children of Israel were severely punished by invading armies which destroyed their kingdom. His grave is in Umayyad Mosque in Syria.

The End

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