Wednesday, 9 June 2021

Chughad:--Aligarh Wale “Saadat Hasan Manto” ki Ek Short Story. चुग़द; सआदत हसन मंटो

लड़कों और लड़कियों के मआशिक़ों का ज़िक्र हो रहा था। प्रकाश जो बहुत देर से ख़ामोश बैठा अंदर ही अंदर बहुत शिद्दत से सोच रहा था, एक दम फट पड़ा। सब बकवास है, सौ में से निन्नानवे मआशिक़े निहायत ही भोंडे और लचर और बेहूदा तरीक़ों से अमल में आते हैं। एक बाक़ी रह जाता है, इस में आप अपनी शायरी रख लीजीए या अपनी ज़ेहानत और ज़कावत भर दीजीए...... मुझे हैरत है... तुम सब तजरबाकार हो।

 

औसत आदमी के मुक़ाबले में ज़्यादा समझदार हो। जो हक़ीक़त है, तुम्हारी आँखों से ओझल भी नहीं। फिर ये क्या हिमाक़त है कि तुम बराबर इस बात पर ज़ोर दिए जा रहे हो कि औरत को राग़िब करने के लिए नरम--नाज़ुक शायरी, हसीन--जमील शक्ल और ख़ुशवज़ा लिबास, इतर, लोन्डर और जाने किस किस ख़ुराफ़ात की ज़रूरत है और मेरी समझ से ये चीज़ तो बिलकुल बालातर है कि औरत से इश्क़ लड़ाने से पहले तमाम पहलू सोच कर एक स्कीम बनाने की क्या ज़रूरत है।

 

चौधरी ने जवाब दिया। ”हर काम करने से पहले आदमी को सोचना पड़ता है।प्रकाश ने फ़ौरन ही कहा।मानता हूँ। लेकिन ये इश्क़ लड़ाना मेरे नज़दीक बिलकुल काम नहीं...... ये एक...... भई तुम क्यों ग़ौर नहीं करते। कहानी लिखना एक काम है। इसे शुरू करने से पहले सोचना ज़रूरी है लेकिन इश्क़ को आप काम कैसे कह सकते हैं...... ये एक...... ये एक...... ये एक... ... मेरा मतलब है।

 

इश्क़ मकान बनाना नहीं जो आप को पहले नक़्शा बनवाना पड़े...... एक लड़की या औरत अचानक आप के सामने आती है। आप के दिल में कुछ गड़बड़ सी होती है। फिर ये ख़्वाहिश पैदा होती है कि वो साथ लेटी हो। इसे आप काम कहते हैं......ये एक...... ये एक हैवानी तलब है जिसे पूरा करने के लिए हैवानी तरीक़े ही इस्तिमाल करने चाहिऐं। जब एक कुत्ता कुतिया से इश्क़ लड़ाना चाहता है तो वो बैठ कर स्कीम तैय्यार नहीं करता।

 

इसी तरह सांड जब बू सून्घ कर गाय के पास जाता है तो उसे बदन पर इतर लगाना नहीं पड़ता...... बुनियादी तौर पर हम सब हैवान हैं। इस लिए इशक़--मोहब्बत में जो दुनिया की सब से पुरानी तलब है, इंसानियत का ज़्यादा दख़ल नहीं होना चाहिए।

 

मैंने कहा।तो इस का ये मतलब हुआ कि शेअर--शायरी, मुसव्विरी, सनम तराशी ये सब फुनूने लतीफ़ा महज़ बे-कार हैं?”

 

प्रकाश ने सिगरेट सुलगाया और अपना जोश बक़दर--किफ़ायत इस्तिमाल करते हुए कहा।महज़ बे-कार नहीं...... मैं समझ गया तुम क्या कहना चाहते हो, तुम्हारा मतलब ये था कि फुनूने लतीफ़ा के वजूद का बाइस औरत है, फिर ये बे-कार कैसे हूए। असल बात ये है कि उन के वजूद का बाइस ख़ुद औरत नहीं है, बल्कि मर्द की औरत के मुतअल्लिक़ हद से बढ़ी हूई ख़ुशफ़हमी है।

 

मर्द जब औरत के मुतअल्लिक़ सोचता है तो और सब कुछ भूल जाता है। वो चाहता है कि औरत को औरत समझे...... औरत को महज़ औरत समझने से उस के जज़्बात को ठेस पहुंचती है! चुनांचे वो चाहता है उसे ख़ूबसूरत से ख़ूबसूरत रूप में देखे। योरपी ममालिक में जहां औरतें फ़ैशन की दिलदादा हैं, उन से जा कर पूछो कि उन के बालों, उन के कपड़ों, उन के जूतों के नित नए फ़ैशन कौन ईजाद करता है।

 

चौधरी ने अपने मख़सूस बे-तकल्लुफ़ाना अंदाज़ में प्रकाश के कांधे पर हौले से तमांचा मारा।

 

तुम बहक होगए हो यार...... जूतों के डिज़ाइन कौन बनाता है, सांड गाय के पास जाता है तो उसे लोन्डर लगाना नहीं पड़ता। यहां बातें होरही थीं कि लड़कों और लड़कियों के वही रोमान कामयाब होते हैं जो शरीफ़ाना ख़ुतूत पर शुरू हों।

 

प्रकाश के होंटों के कोने तंज़ से सिकुड़ गए।चौधरी साहब क़िबला! आप बिलकुल बकवास करते हैं। शराफ़त को रखीए आप अपने सिगरेट के डिब्बे में, और ईमान से कहीए वो लौंडिया जिस के लिए आप पूरा एक बरस रूमालों को बेहतरीन लोन्डर लगा कर स्कीमें बनाते रहे, क्या आप को मिल गई थी?”

 

चौधरी साहब ने किसी क़दर खिसयाना हो कर जवाब दिया।नहीं।

क्यों?”

वो...... वो किसी और से मोहब्बत करती थी।

 

किस से...... किस उल्लु के पट्ठे से...... एक फेरी वाले बज़ार से जिस को तो ग़ालिब के शेअर याद थे कृष्ण चन्द्र के अफ़साने। जो आप के मुक़ाबले में लोन्डर लगे रूमाल से नहीं बल्कि अपने मैले तहमद से नाक साफ़ करता था।प्रकाश हंसा।चौधरी साहब क़िबला, मुझे याद है आप बड़ी मोहब्बत से उसे ख़त लिखा करते थे। उन में आसमान के तमाम तारे नोच कर आप ने चिपका दिए।

 

चांद की सारी चांदनी समेट कर उन में फैला दी मगर उस फेरी वाले बज़ार ने आप की लौंडिया को जिस की ज़हनी रिफ़अत के आप हरवक़्त गीत गाते थे, जिस की नफ़ासतपसंद तबीयत पर आप मर मिटे थे, एक आँख मार कर अपने थानों की गठड़ी में बांधा और चलता बना...... इस का जवाब है आप के पास??”

 

चौधरी मिनमिनाया: “मेरा ख़याल है जिन ख़ुतूत पर मैं चल रहा था, ग़लत थे। उस का नफ़सियाती मुताला भी जो मैंने किया था दरुस्त साबत हुआ।

 

प्रकाश मुस्कुराया: “चौधरी साहब क़िबला! जिन ख़ुतूत पर आप चल रहे थे, यक़ीनन ग़लत थे। उस का नफ़सियाती मुताला भी जो आप ने किया था, सौ फ़ीसद दरुस्त था और जो कुछ आप कहना चाहते हैं वो भी ठीक नहीं है।

 

इस लिए कि आप को ख़त-कुशी और नफ़सियाती मुताले की ज़हमत उठानी ही नहीं चाहिए थी। नोटबुक निकाल कर इस में लिख लीजीए कि सौ में सौ मक्खियां शहद की तरफ़ भागी आयेंगी और सौ में निन्नानवे लड़कियां भोंडे पन से माइल होंगी।

 

प्रकाश के लहजे में एक ऐसा तंज़ था जिस का रुख़ चौधरी की तरह इतना नहीं था जितना ख़ुद प्रकाश की तरफ़ था।

 

चौधरी ने सर को जुंबिश दी और कहा: “तुम्हारा फ़लसफ़ा मैं कभी नहीं समझ सकता। आसान बात को तुम ने मुश्किल बना दिया है। तुम आर्टिस्ट हो और नोटबुक निकाल कर ये भी लिख लो कि आर्टिस्ट अव़्वल दर्जे के बेवक़ूफ़ होते हैं। मुझे बहुत तरस आता है उन पर कमबख़्तों की बेवक़ूफ़ी में भी ख़ुलूस होता है।

 

दुनिया भर के मसले हल करदेंगे पर जब किसी औरत से मुडभीड़ होगी तो जनाब ऐसे चक्कर में फंस जाऐंगे कि एक गज़ दूर खड़ी औरत तक पहुंचने के लिए पिशावर का टिकट लेंगे और वहां पहुंच कर सोचेंगे वो औरत आँखों से ओझल कैसे होगई। चौधरी साहब क़िबला, निकालिये अपनी नोटबुक और ये लिख लीजीए कि आप अव़्वल दर्जे के चुग़द हैं।

 

 

चौधरी ख़ामोश रहा और मुझे एक बार फिर महसूस हुआ कि प्रकाश, चौधरी को आईना बना कर उस में अपनी शक्ल देख रहा है और ख़ुद को गालियां दे रहा है। मैंने उसे कहा।प्रकाश ऐसा लगता है चौधरी के बजाय तुम अपने आप को गालियां दे रहे हो।

 

ख़िलाफ़--तवक़्क़ो उस ने जवाब दिया।तुम बिलकुल ठीक कहते हो, इस लिए कि मैं भी एक आर्टिस्ट हूँ, यानी मैं भी। जब दो और दो चार बनते हैं तो ख़ुश नहीं होता। मैं भी क़िबला चौधरी साहब की तरह अमृतसर के कंपनी बाग़ में औरत से मिल कर फ़रंटीयर मेल से पिशावर जाता हूँ और वहां आँखें मल मल कर सोचता हूँ मेरी महबूबा ग़ायब कहाँ होगई।

 

ये कह कर प्रकाश ख़ूब हंसा। फिर चौधरी से मुख़ातब हुआ।चौधरी साहब क़िबला, हाथ मिलाईए। हम दोनों फिसड्डी घोड़े हैं। इस दौड़ में सिर्फ़ वही कामयाब होगा जिस के ज़हन में सिर्फ़ एक ही चीज़ हो कि उसे दौड़ना है, ये नहीं कि काम और वक़्त का सवाल हल करने बैठ जाये।

 

इतने क़दमों में इतना फ़ासिला तय होता है तो इतने क़दमों में कितना फ़ासिला तय होगा। इश्क़ जोमीटरी है अलजबरा। पस बकवास है। चूँकि बकवास है इस लिए इस में गिरफ़्तार होने वाले को बकवास ही से मदद लेनी चाहिए।चौधरी ने उकताए हुए लहजे में कहा।क्या बकवास करते हो?”

 

तो सुनो!” प्रकाश जम कर बैठ गया।मैं तुम्हें एक सच्चा वाक़िया सुनाता हूँ। मेरा एक दोस्त है, मैं उस का नाम नहीं बताऊंगा। दो बरस हूए वो एक ज़रूरी काम से चंबा गया। दो रोज़ के बाद लोट कर उसे डलहौज़ी चला आना था। इस के फ़ौरन बाद अमृतसर पहुंचना था मगर तीन महीने तक वो लापता रहा। उस ने घर ख़त लिखा मुझे जब वापस आया तो उस की ज़बानी मालूम हुआ कि वो तीन महीने चंबा ही में था। वहां की एक ख़ूबसूरत लड़की से उसे इश्क़ होगया था।

 

चौधरी ने पूछा।नाकाम रहा होगा।प्रकाश के होंटों पर मानी ख़ेज़ मुस्कुराहट पैदा हुई।नहीं, नहीं...... वो कामयाब रहा। ज़िंदगी में उसे एक शानदार तजुर्बा हासिल हुआ। तीन महीने वो चंबा की सर्दीयों में ठिठुरता और उस लड़की से इश्क़ करता रहा। वापस डलहौज़ी आने वाला था कि पहाड़ी की एक पगडंडी पर उस काफ़िर जमाल हसीना से उस की मुडभीड़ हूई। तमाम कायनात सिकुड़ कर उस लड़की में समा गई और वो लड़की फैल कर वालहाना वुसअत इख़्तियार करगई।

 

उस को मोहब्बत होगई थी...... क़िबला चौधरी साहब! सुनीए। पंद्रह दिनों तक मुतवातिर वो ग़रीब अपनी मोहब्बत को चंबा की यख़बस्ता फ़िज़ा में दिल के अंदर दबाये छुपछुप कर दूर से उस लड़की को देखता रहा मगर उस के पास जा कर उस से हम-कलाम होने की हिम्मत कर सका...... हर दिन गुज़रने पर वो सोचता कि दूरी कितनी अच्छी चीज़ है। ऊंची पहाड़ी पर वो बकरीयां चरा रही है।

 

नीचे सड़क पर उस का दिल धड़क रहा है। आँखों के सामने ये शायराना मंज़र लाईए और दाद दीजीए। उस पहाड़ी पर आशिक़--सादिक़ खड़ा है। दूसरी पहाड़ी पर उस की सीमीं बदन महबूबा...... दरमयान में शफ़्फ़ाफ़ पानी का नाला बह रहा है...... सुबहान अल्लाह कैसा दिलकश मंज़र है, चौधरी साहब क़िबला।

 

 

चौधरी ने टोका।बकवास मत करो जो वाक़िया है, उसे बयान करो।प्रकाश मुस्कुराया।तो सुनीए...... पंद्रह दिन तक मेरा दोस्त इश्क़ के ज़बरदस्त हमले के असरात दूर करने में मसरूफ़ रहा और सोचता रहा कि इसे जल्दी वापस चला जाना चाहिए। इन पंद्रह दिनों में उस ने काग़ज़ पैंसिल लेकर तो नहीं लेकिन दिमाग़ ही दिमाग़ में उस लड़की से अपनी मोहब्बत का कई बार जायज़ा लिया।

 

लड़की के जिस्म की हर चीज़ उसे पसंद थी। लेकिन ये सवाल दरपेश था कि उसे हासिल कैसे किया जाये। क्या एक दम बग़ैर किसी तआरुफ़ के वो उस से बातें करना शुरू करदे? बिलकुल नहीं, ये कैसे हो सकता था...... क्यों, हो कैसे नहीं सकता...... मगर फ़र्ज़ कर लिया जाये उस ने मुँह फेर लिया।

 

जवाब दिए बग़ैर अपनी बकरीयों को हाँकती, पास से गुज़र गई...... जल्दबाज़ी कभी बार-आवर नहीं होती...... लेकिन उस से बात किए बग़ैर उसे हासिल कैसे किया जा सकता है? एक तरीक़ा है, वो ये कि उस के दिल में अपनी मोहब्बत पैदा की जाये। उस को अपनी तरफ़ राग़िब किया जाये। हाँ हाँ, ठीक है। लेकिन सवाल ये है राग़िब कैसे किया जाये...... हाथ से, इशारा...... नहीं, बिलकुल पोच है......

 

सौ क़िबला चौधरी साहब! हमारा हीरो इन पंद्रह दिनों में यही सोचता रहा...... सोलहवीं दिन अचानक बाओली पर उस लड़की ने उस की तरफ़ देखा और मुस्कुरा दी...... हमारे हीरो के दिल की बाछें खुल गईं, लेकिन टांगें काँपने लगीं...... आप ने अब टांगों के मुतअल्लिक़ सोचना शुरू किया। लेकिन जब मुस्कुराहट का ख़याल आया तो अपनी टांगें अलग करदीं और उस लड़की की पिंडुलीयों के मुतअल्लिक़ सोचने लगा जो उठी हुई घघरी में से उसे नज़र आई थीं।

 

कितनी सुडौल थीं। लेकिन वो दिन दूर नहीं जब वो उन पर बहुत आहिस्ता आहिस्ता हाथ फेर सकेगा...... पंद्रह दिन और गुज़र गए...... उधर वो मुस्कुरा कर पास से गुज़रती रही। उधर हमारे हीरो साहब जवाबी मुस्कुराहट की रीहरसल करते रहे...... सवा महीना होगया और उन का इश्क़ सिर्फ़ होंटों पर ही मुस्कुराता रहा।

 

आख़िर एक दिन ख़ुद उस लड़की ने मोहर--खामोशी तोड़ी और बड़ी अदा से एक सिगरेट मांगा। आप ने सारी डिबिया हवाले करदी और घर आकर सारी रात कपकपाहट पैदा करने वाले ख़्वाब देखते रहे। दूसरे दिन एक आदमी को डलहौज़ी भेजा और वहां से सिगरेटों के पंद्रह पैकेट मंगवा कर एक छोटे से लड़के के हाथ अपनी महबूबा को भिजवा दिए।

 

जब उस ने अपनी झोली में डाले तो आप के दिल को दूर खड़े बहुत मुसर्रत महसूस हुई। होते होते वो दिन भी आगया। जब दोनों बैठ कर बातें करने लगे। कैसी बातें? क़िबला चौधरी साहब बताईए, हमारा हीरो क्या बातें करता था उस से?”

 

चौधरी ने उस को उकताए हुए लहजे में जवाब दिया।मुझे क्या मालूम।प्रकाश मुस्कुराया।मुझे मालूम है क़िबला चौधरी साहब...... घर से चलते वक़्त वो बातों की एक लंबी चौड़ी फ़हरिस्त तैय्यार करता था। मैं उस से ये कहूंगा, मैं उस से ये कहूंगा जब वो नाले के पास कपड़े धोती होगी तो मैं आहिस्ता आहिस्ता जा कर उस की आँखें मीच लूंगा


फिर उस की बग़लों में गुदगुदी करूंगा लेकिन जब उस के पास पहुंचता और आँखें मीचने और गुदगुदी करने का ख़याल आता तो उसे शर्म आजाती...... क्या बचपना है...... और वो उस से कुछ दूर हट कर बैठ जाता और भेड़ बकरियों की बातें करता रहता...... कई दफ़ा उसे ख़याल आया कब तक ये भेड़ बकरीयां उस की मोहब्बत चरती रहेंगी...... दो महीने से कुछ दिन ऊपर होगए और अभी तक वो उस के हाथ तक नहीं लगा सका।

 

मगर वो सोचता कि हाथ लगाए कैसे, कोई बहाना तो होना चाहिए लेकिन फिर उसे ख़याल आता बहाने से हाथ लगाना बिलकुल बकवास है, लड़की की तरफ़ से उसे ख़ामोश इजाज़त मिलनी चाहिए कि वो उस के बदन के जिस हिस्से को भी चाहे हाथ लगा सकता है। अब ख़ामोश इजाज़त का सवाल आजाता...... उसे कैसे पता चल सकता है उस ने ख़ामोश इजाज़त दे दी है...... क़िबला चौधरी साहब, इस का खोज लगाते लगाते पंद्रह दिन और गुज़र गए।

 

प्रकाश ने सिगरेट सुलगाया और मुँह से धुआँ निकालते हुए कहने लगा।इस दौरान में वो काफ़ी घुल मिल गए थे। लेकिन इस का असर हमारे हीरो के हक़ में बुरा हुआ। दौरान--गुफ़्तगु में उस ने लड़की से अपने ऊंचे ख़ानदान का कई बार ज़िक्र किया था, अपने ओबाश दोस्तों पर कई बार लानतें भेजी थीं जो पहाड़ी देहातों में जा कर ग़रीब लड़कीयों को ख़राब करते थे।

 

कभी दबी ज़बान में, कभी बलंद बाँग अपनी तारीफ़ भी की थी। अब वो कैसे उस लड़की पर अपनी शहवानी ख़्वाहिश ज़ाहिर करता। ज़ाहिर था कि मुआमला बहुत टेढ़ा और पेचदार होगया है। मगर उस का जज़्ब--इशक़ सलामत था इस लिए उसे उम्मीद थी कि एक रोज़ ख़ुद लड़की ही अपना आप थाली में डाल कर उस के हवाले करदेगी......

 

इस उम्मीद में चुनांचे कुछ दिन और बीत गए एक रोज़ कपड़े धोते धोते लड़की ने जब कि हाथ साबुन से भरे हुए थे इस से कहा।तुम्हारी माचिस ख़त्म होगई है मेरी जेब से निकाल लो...... ” ये जेब ऐन उस की छाती के उभार के ऊपर थी। हमारा हीरो झेंप गया।

 

लड़की ने कहा।निकाल लोना...... थोड़ी सी हिम्मत करके उस ने अपना काँपता हुआ हाथ बढ़ाया और दो उंगलियां बड़ी एहतियात से उस की जेब में डालीं। माचिस बहुत नीचे थी। घबराया। कहीं और जा टकराईं। चुनांचे बाहर निकाल लीं और अपनी ख़ाली माचिस से तीली निकाल कर सिगरेट सुलगाया और लड़की से कहा तुम्हारी जेब से माचिस फिर कभी निकालूंगा।

 

ये सुन कर लड़की ने शरीर शरीर नज़रों से उस की तरफ़ देखा और मुस्कुरा दी। हमारे हीरो ने आधा मैदान मार लिया। दूसरा आधा मारने के लिए वो स्कीमें सोचने लगा। एक रोज़ सुबह सवेरे नाले के इस तरफ़ बैठा, दूसरी तरफ़ नदी पर उस लड़की को बकरीयां चराते देख रहा था और उस की उभरी हुई जेब के माल पर ग़ौर कररहा था कि नीचे सड़क पर बाओली के पास एक मोटर लारी रुकी।

 

सिख ड्राईवर ने बाहर निकल कर पानी पिया और उस लड़की की तरफ़ देखा। मेरे दिल में एक जलन सी पैदा हुई। बाओली की मुंडेर पर खड़े हो कर इस मोबिल ऑयल से लिथड़े हुए सिख ड्राईवर ने फिर एक बार सावित्री की तरफ़ देखा और अपना ग़लीज़ हाथ उठा कर उसे इशारा किया। मेरे जी में आई पास पड़ा हुआ पत्थर इस पर लुड़का दूं...... इशारा करने के बाद उस ने दोनों हाथ मुँह के इधर उधर रख कर निहायत ही भोंडे तरीक़े से पुकारा।

 

जानी...... मैं सदक़े...... आऊं?...... मेरे तन बदन में आग लग गई ...... सिख ड्राईवर ने ऊपर चढ़ना शुरू किया। मेरा दिल घुटने लगा। चंद मिनटों ही में वो हरामज़ादा उस के पास खड़ा था लेकिन मुझे यक़ीन था कि अगर उस ने कोई बदतमीज़ी की तो वो छड़ी से उस की ऐसी मरम्मत करेगी कि सारी उम्र याद रखेगा...... में उधर से निगाह हटा कर इस मरम्मत के बारे में सोच रहा था कि एक दम दोनों मेरी आँखों से ओझल होगए।

 

मैं भागा नीचे, सड़क की तरफ़ बाओली के पास पहुंच कर सोचा क्या हमाक़त है। तशवीश कैसी? लेकिन फिर ख़याल आया कहीं वो उल्लू का पट्ठा दराज़ दस्ती कर बैठे। इस लिए पहाड़ी पर तेज़ी से चढ़ना शुरू किया। बड़ी मुश्किल चढ़ाई थी। जगह जगह ख़ारदार झाड़ियां थीं। उन को पकड़ कर आगे बढ़ना पड़ता था। बहुत दूर ऊपर चला गया पर वो दोनों कहीं नज़र आए।

 

हाँपते हाँपते मैंने अपने सामने की झाड़ी पकड़ कर खड़े होने की कोशिश की... क्या देखता हूँ झाड़ी के दूसरी तरफ़ पत्थरों पर सावित्री लेटी है और इस ग़लीज़ ड्राईवर की दाढ़ी उस के चेहरे पर बिखरी हुई है... मेरी...... मेरे जिस्म के सारे बाल जल गए। एक करोड़ गालियां इन दोनों के लिए मेरे दिल में पैदा हुईं।

 

लेकिन एक लहज़े के लिए सोचा तो महसूस हुआ कि दुनिया का सब से बड़ा चुग़द मैं हूँ।...... उसी वक़्त नीचे उतरा और सीधा लारियों के अड्डे का रुख़ किया......प्रकाश के माथे पर पसीने की नन्ही नन्ही बूंदें चमकने लगीं।

The End

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Saturday, 5 June 2021

The Mad Sultan Ibrahim: Harem, Eunuchs', Silk Rope, Golden Cage, "Sweet Lump of Sugar", and Death

The Ottoman Empire was one of the greatest powers that world has ever known. With territory spanning 3 continents and a reign of over 600 years the “House of Osman” was not to be trifled with. The empire was ruled by the all powerful Sultan, the king of kings, the khan of khans, he ruled by decree.

 

Some Sultans were warriors, others thoughtful poets. But of the 36 or so Sultan’s that ruled during the empire, there is one who stands out to both the Turkish people and historians alike as…different from the rest. Sultan Ibrahim I, more commonly known as Ibrahim the mad. 


But to do justice to the story of Ibrahim the Mad, we must first tell the story of his mother, the beautiful Greek concubine Maypeyker Kösem, and his father, the compassionate Sultan Ahmed.

 

Kösem Sultan: (1589 –1651) known as Mâh-Peyker Sultan. She was one of the most powerful women in Ottoman history, Favorite Consort and wife of Ottoman Sultan Ahmed I (1603–1617).

 

She achieved power and influenced the course of the Ottoman Empire through her consort Sultan Ahmet I, then through her sons Murad IV (1623–40) and Ibrahim I (1640–48) and finally through her minor grandson Mehmed IV (1648–87).

Ottoman Sultan Ibrahim I

 Kösem Sultan was of Greek origin, the daughter of a priest on the island of Tinos.

Her maiden name was Anastasia. She was sent to Constantinople the capital of the Ottoman Empire by Bosna Beylerbeyi where she was sold at the age of fifteen to the harem of Sultan Ahmed I.

 

Kösem Sultan

Her name was changed after her capture to Mahpeyker (Moon-Shaped), and later by Sultan Ahmed I to Kösem. She was transferred to the old palace on the death of Sultan Ahmed in 1617, but returned as Valida Sultan (Queen Mother), when her son Murat IV was installed in 1623.

Mehmed mother--Turhan Hatice

It was Mehmed's mother Turhan Hatice who proved to be Kösem's arch-rival.

It is rumored that Turhan ordered Kösem's assassination when she heard that Kösem was said to be plotting Mehmed's removal and replacement by another grandson with a more pliant mother.


Furthermore, some have speculated that Kösem was strangled with a curtain by the chief black eunuch of the harem, Tall Süleyman.

Sultan Ahmaed Majid (Blue Masjid)--Istanbul


After her death her body was taken from Topkapi to the Old Palace (Eski Sarayı) and then buried in the mausoleum of her husband Ahmad I. 

Kösem was renowned for her charity work and for freeing her slaves after 3 years of service. When she died the people of Constantinople observed three days of mourning.

Mahperkey Kösem Sultan had 8 children, 4 boys and 4 girls.

Male-Murad IV, Prince Süleyman, Prince Kasım, İbrahim I.

Girl-Ayşe Sultan, Fatma Sultan, Gevherhan Sultan, Hanzade Sultan

 

When the Sultan died a sort of deadly musical chairs for would-be Sultans began.

 

Often, the son who was closest to the throne at the time of the Sultans death, literally the one nearest in physical distance from the throne, would become the new Sultan by jumping into the chair and declaring himself so.

 

Upon ascending to the throne, the triumphant new Sultan would shout his first decree, usually something like “All my brothers are to be immediately killed.”

 

Kösem Sultan

An army of deadly eunuchs would then be sent forth to do just that. All brothers, including infant children, and mothers carrying as of yet unborn brothers were quickly eliminated.

 

(These eunuch assassins were curious in that, in addition to having been castrated, they had also had their eardrums poked out, so as not to hear the screams of their victims, and their tongues split, so that they could not speak of their dastardly deeds.

The preferred method for royal fratricide was strangulation by silk rope…a classy way to go at least.)

 

Royal fratricide was the standard and regarded as simply part of the bargain.

So far the policy of brother killing was working out great. But it had one major drawback; it nearly wiped out the Osman family line. Once the Sultan had killed all his brothers it was up to him to carry on the Osman name, a risky business.

 

All of this changed in 1590 with the rule of Ahmed I. He is well known for commissioning the building of the the amazing Sultan Ahmed Mosque, aka the Blue Mosque. In fact, the entire old town of Istanbul is also known by his name, as the Sultan Ahmet district.

 

Ahmed was a kind ruler, and was very much in love with a young and beautiful Greek girl named Maypeyker Kösem. Kösem, however, was more then just beautiful, she was cunning, brilliant and hungry for power.

 

Ahmed was the first Sultan to break with the practice of royal fratricide. Ahmed had grown up with a slightly retarded brother named Mustafa. Ahmed was well known for his compassion, and when it came time to have his mildly retarded brother Mustafa done in, he just couldn’t do it.

 

Instead the childish Mustafa lived with his grandmother in a single room of the Harem known as the Kafe or the Golden Cage. A special room, it had windows only on the second floor, and a slot for delivering food. Though it was beautifully decorated on the inside, it was merely an exquisite prison cell.

Sultan Ahmet I


For the first time in Ottoman history a royal brother was spared the silk rope and allowed to live. This simple act of kindness was to change the way the entire Osman line of succession worked and Mustafa would be the first of many royal brothers who would spent most of their lives in this gilded jail.

 

When Ahmed died of typhoid fever, Mustafa, despite being retarded or perhaps because of it was installed to the throne. Another first, it was the first time in Osman house history, a Osman brother was made Sultan instead of a son. His rule didn’t last long.

Kösem Sultan

After a few months the confused Sultan was sent on a hunting trip only to come back and find he had been deposed by his nephew Osman II and Mustafa was sent back to the golden cage. (This was the first deposing in Ottoman history).

 

The young Osman II was then himself deposed and killed.

Mustafa was dragged back out of the golden cage, re-enthroned, only to be deposed again by his other nephew Murad IV.

 

Mustafa was finally sent happily back to his safe Golden Cage where he could read in peace…before eventually being strangled by the silk rope.

 

The cause of all this conflict really lay between the Janissaries (special soldiers) and the Greek beauty Maypeyker Kösem.

Kösem, the widow of Ahmed I and mother of Murad IV was in league with the eunuch corp. Kösem and the eunuchs ruled through the mentally disabled Mustafa, while the Janissaries ruled through Osman II… whom they decided they didn’t like after all, and killed.

 

It was a time of firsts, this being the first regicide in Ottoman history. (When the Janissaries killed Osman II they killed him by “compression of his testicles”, “a mode of execution reserved by custom to the Ottoman sultans.” They also cut off his ear and sent it to his mother Hadice show who was in charge.)

 

Kösem took the opportunity presented by the death of Osman II. Her oldest son Murad IV was only 11, still a minor, so when he took the throne, the seductive Kösem became official regent of the Ottoman Empire.

 

Murad IV

Murad IV’s rule (and his mother Kösem’s by proxy) was iron fisted. He banned alcohol, tobacco, and coffee on pain of death. He also returned to the practice of brother killing, (and son killing if Mama Kösem was behind it) offing a couple of his brethren. But Murad IV didn’t kill all his brothers. History tends to repeat itself.

 

Like his father Ahmet with his retarded brother Mustafa, Murad IV also had a slightly weird brother whom he allowed to live. His name was Ibrahim.

 

Murad IV was determined not to make the same mistake his father had with Mustafa. Murad IV ordered that upon his death, his weird brother Ibrahim was to be killed as well. 

All fine and well, except had these orders be carried out the Osman line would have ended. It seems Murad IV would have rather seen the end of the house of Osman, and then has the mad Ibrahim as Sultan.

 

Murad died at the age of 27 of cirrhosis of the liver (Ironically, the prohibition crazy Murad may have been a closet alcoholic).

As Murad IV lay on his death bed his mother Kösem lied to him, saying that Ibrahim had already been strangled. Happy at the news, Murad IV died smiling.

 

After Murad’s death Kösem promptly placed Ibrahim;- (The Mad Sultan on to the throne).

Ibrahim was in no shape to rule a nation. Odd to begin with, it didn’t help that he had spent his entire life living as a prisoner in the golden cage, staring longingly out the unreachable stained glass windows.

 

Inside the prince was kept company by a few deaf-mute servants, and a couple of harem girls, barren ones, to prevent him from fathering possible heirs to the throne.(The servants were, by default, prisoners as well.)

 

Ibrahim also lived under the constant and reasonable fear of deaf-mute eunuchs throttling him with a silk rope. So it makes sense that when guards showed up to bring him to the throne, he refused to go, thinking it was a trick.

 

Ibrahim wouldn’t even open the door until Murad’s body was produced. When Ibrahim was finally convinced that he was not about to be garroted to death, he ran deliriously through the halls screaming “the butcher is dead”, “the butcher of the empire is dead.”

 

Suddenly out of the cage and the supreme ruler of an enormous empire, Ibrahim barely knew what to do with himself. While his mom did most of the actual decision making, Ibrahim busied himself with his new harem.

 

He first decorated his room with mirrors so that he might get a better view of himself in action. He then called the girls in.


One time the Mad Sultan saw the beautiful daughter of the Grand Mufti, the empire’s highest religious authority, and asked for her hand in marriage. 


Her father, aware of Ibrahim’s depravities, urged his daughter to decline. So the Mad Sultan ordered her kidnapped and carried to his palace, where he ravished her for days, before returning her to her father.

 

Ibrahim’s harem was full of young, nubile, girls from around the world. But after a while, the slender things from Russia and the Balkans didn’t do it for him anymore.

 

One day Ibrahim happened to see the genitalia of a female cow.

Pleased by what he saw, Ibrahim had a gold cast made and, hoping to find a human match to the bovine privates, he ordered his aides to “bring him the fattest woman in the world.” They did their best, finding a 300 pound Armenian girl named “Sugar Cube” (Sechir Para or more literally translated “Sweet Lump of Sugar”).

 

Ibrahim loved her, and spent many a night curled in her large arms. It wasn’t long until the big woman had gained power over Ibrahim equal only to that of her girth.

 

It would be Sugar Cube who would spell the final downfall of Ibrahim the Mad.

Sugar Cube told Ibrahim that a member of his concubine was sleeping with an outsider and conspiring against him. The paranoid Ibrahim, decided to clean house and had the majority of his harem, some 280 girls, tied up in sacks and drowned in the river.

 

This worried his mother Kösem, who was actually ruling the foundering empire. Concerned about Sugar Cube’s rising power, she in turn had Sugar Cube strangled. The palace was indeed a rough place.

 

They knew her everywhere as “the Filthy Sultana.” One day one of her many enemies caught up with her and poisoned her coffee with chopped hair and ground glass, causing a long and painful death.”)

 

With permission from Kösem, the Grand Mufti whose daughter Ibrahim had had his way with, lead the overthrow.

Between heavy taxes, the mismanaged wars, and with a Venetian blockade reducing the Ottoman capital to starvation, discontent boiled over. In 1648, a popular revolt broke out, and an angry mob tore Ibrahim’s Grand Vizier to pieces.

 

Ibrahim was deposed in favor of his 6 year old son, and a fatwa was then issued for the Mad Sultan’s execution, which was carried out by strangulation.

 

Ibrahim was deposed, sent back to the golden cage, and 10 days later his worst fears were realized at the hands of a deaf-mute eunuch wielding a silk rope. This time Ibrahim met his end gleefully, assuming that the guards were there to reinstate him as Sultan.

Murder of Sultan Ibrahim I (The Mad Sultan)


This would mark the end of Ibrahim the Mad’s rule, but not the rule of his mother Kösem.

After Ibrahim’s death, she had Ibrahim’s son, and her grandson, Mehmed IV put onto the throne with the words “Here he is! See what you can do with him!” While Mehmed IV was still a child, Ibrahim apparently stabbed him in the face, and tried to drown him.

 

An Eunuch in Hrem

In a certain irony, Kösem’s reign would finally come to an end at the hands of another woman. Her daughter-in-law and Mehmed’s IV mother Turhan had Kösem killed and started her own rule of the Ottoman Empire. (She was the only other woman besides Kösem to officially rule the Ottoman Empire.)

 

Murder in Topkapi Palace by an Eunuch

For a woman who ruled the empire for well over 30 years Kösem met with a very ignoble fate.

When she was confronted by the eunuchs sent to kill her “she went mad, stuffıng her precious jewels into her pockets and fleeing through the intricate mazes of the harem, which she knew better than anyone.

Kösem Sultan

She crept into a small cabinet, hoping that the eunuchs would go past her and the janissaries come to the rescue. But a piece of her skirt caught in the door, betraying her hiding place.

 

The eunuchs dragged her out, tearing her clothes, stealing her jewels. She fought; but she was an old woman now. One of her attackers strangled her with a curtain. Her naked, bleeding body was dragged outside and flaunted before the janissaries.”

Murder of Kösem Sultan

The rule of Ibrahim the Mad, Kösem and the period surrounding it, marked a turning point in the Ottoman Empire, and the beginning of its decline. 

 

The End


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