Thursday, 13 August 2020

Sher Ali Afridi, A Revolutionary: Historians Say Him Pagal Pathan. Who Killed Lord Mayo, British Viceroy in India

अंग्रेज़ो के ख़िलाफ़ हिन्दुस्तान की तारीख़ में अगर किसी शख़्स को सबसे बड़ा क्रांन्तीकारी होने का शर्फ़ हासिल है तो वो है “शेर अली अफ़रीदी” जिसको भारत के सेकुलर – कामनिस्ट इतिहासकारो ने क्रांन्तीकारी कहने के जगह “पागल पठान” कह कर पुकारा है.

 

वैसे कुछ लोग इन्हे क्रांतिवीर शेर अली नूरानी भी पुकारते हैं क्योंके एक ज़माने मे इनके एैक्शन से पूरी दुनिया हिल उठी थी।ज्ञात रहे के उस वक़्त वाइसराय की हैसियत एक राष्ट्रपति जैसी होती थी वो पुरे मुल्क का एक तरह हुक्मरान होता था जो सिर्फ ब्रिटेन की महरानी के मातहत काम करता था।


Background:

उलमा ए सादिक़पुर पटना के मौलवी अहमदुल्ला के क़ियादत में वहाबी तहरीक ने खुले तौर पर ब्रितानी मुख़ालिफ़ रुख एख़तियार कर लिया था। उस वक़्त हिन्दुस्तान में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ कोई फ़ौज ख़ड़ी नहीं की जा सकती थी, इस वजह कर मौलवी अहमदुल्ला ने मुजाहिदीनों की एक फ़ौज सरहदी इलाके़ के सिताना नाम की जगह पर खड़ी की। उस फ़ौज के लिए वे पैसा, रंगरुट और हथियार हिन्दुस्तान से ही भेजते थे।

पर सन 1857 में हालात बदलने लगे, अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ पटना में बग़ावत का झंडा पीर अली ख़ान ने उठा लिया तो वहाँ के कमिश्नर टेलर ने मौलवी साहब को माहौल ठंडा करने के उपायों पर चर्चा करने की दावत दी और वहीं उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया।

 

पटना के कमिश्नर टेलर के पटना से जाते ही तीन माह बाद मौलवी साहब को आज़ाद कर दिया गया। आज़ाद होते ही मौलवी अहमदुल्ला ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ बाक़ायदा जंग का एलान कर दिया। ब्रितानियों के ख़िलाफ़ मुजाहिदीनों ने तीन जगहों पर लड़ाइयाँ लड़ीं। पहली लड़ाई सन् 1858 में शाहीनूनसबी नाम के जगह पर हुई। जब अंग्रेज़ लड़ाइयों में नहीं जीत सके तो उन्होंने रिश्वत का सहारा लेकर अपना काम बनाया।

 

नवम्बर 1864 में मौलवी अहमदुल्ला को बड़ी चालाकी के साथ गिरफ़्तार कर लिया गया और मुक़दमा चलाया गया। बहुत लालच देकर हुकुमत ने उनके ख़िलाफ़ गवाही देने वालों को तैयार किया। इस मुकदमे में सेशन अदालत ने तो मौलवी साहब को 27 फ़रवरी 1865 को मौत की सज़ा सुनाई, लेकिन हाईकोर्ट मे अपील करने पर वह ताउम्र कालेपानी की सज़ा में बदल दी गई और मौलवी साहब को कालेपानी की काल कोठरियों में डाल दिया गया।

 

मौलवी अहमदुल्ला अगर्चे कालेपानी की काल कोठरी में क़ैद थे, लेकिन वे वहाँ से भी मुल्क भर में चलने वाले वहाबी तहरीक की क़ियादत करते रहे।


इधर शेर अली अफ़रीदी पेशावर के अंग्रेज़ी कमिश्नर के ऑफ़िस में काम करता था जो ख़ैबर पख़्तून इलाक़े का रहने वाला पठान था। वो पहले अंबाला में ब्रिटिश घुड़सवारी रेजीमेंट में भी काम कर चुका था।

 

यहां तक कि 1857 की पहली जंग आज़ादी में रोहिलखंड और अवध के जंग में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से हिस्सा भी ले चुका था। अंग्रेज़ी कमांडर रेनेल टेलर उसकी बहादुरी से इतना खुश हुआ कि उसको तोहफ़े में एक घोड़ा, एक पिस्टल और बहादुरी का बखान करते हुए एक सर्टिफ़िकेट भी दिया।

 

इसी बीच एक ख़ानदानी झगड़े में शेर अली पर अपने ही रिश्तेदार हैदर का क़त्ल करने का इल्ज़ाम लगा। उसने पेशावर में मौजूद अपने सभी अफ़सरों के सामने ख़ुद को बेगुनाह बताया। लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं मानी और उसे 2 अप्रैल 1867 को मौत की सज़ा सुना दी गई।उसका भरोसा अंग्रेज़ अफ़सरों से, अंग्रेज़ी राज से एकदम उठ चुका था।

उसको लगा कि जिनके लिए उसने ना जाने कितने अनजानों और बेगुनाहों के क़त्ल किया, आज वो ही उसे बेगुनाह मानने को तैयार नहीं थे। पहली बार उसे एहसास हुआ कि कभी भी किसी अंग्रेज़ पर हिन्दुस्तान में मुक़दमा नही चला, क़त्ल का मुक़दमा चलने से पहले ही उसे ब्रिटेन वापस भेज दिया जाता था, लेकिन आज उसे बचाने वाला कोई नहीं क्योंकि वो अंग्रेज़ नहीं बल्कि हिन्दुस्तानी है।

 

उसने फ़ैसले के खिलाफ़ अपील की, हायर कोर्ट के जज कर्नल पॉलाक ने उसकी सज़ा घटाकर उम्र क़ैद कर दी और उसे काला पानी यानी अंडमान निकोबार भेज दिया। तीन से चार साल सजा काटने के दौरान उसकी बहुत सारे क्रांतिकारियों से काला पानी की जेल में मुलाक़ात हुई।

 

जो वहां बग़ावत के जुर्म में सज़ा काट रहे थे, हालांकि उस वक्त तक अफ़रीदी क्रांतिकारी आंदोलन से प्रेरित नहीं था। फिर भी मौलवी अहमदुल्ला सादिक़पुरी से मिलने के बाद उसके अंदर अंग्रेज़ मुख़ालिफ़ जज़बात और मज़बूत हुआ।

 

चुंके मौलवी अहमदुल्ला मुजाहिदीनों को तैयार करने मे काफ़ी महारत रखते थे और यहां तक के उनके ही इशारे पर बंगाल के चीफ़ जस्टिस पेस्टन नामॅन का क़त्ल मोहम्मद अबदुल्ला पंजाबी नाम के एक लड़ाके ने 1871 में कर दी थी. और ये ख़बर जैसे ही अंडमान निकोबार पहुंचा क़ैदियों मे ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी, क्युंके उसी जज ने बहुत से क़ैदियों को काले पानी की सज़ा सुनाई थी।

 

देश को अंग्रेज़ो से छुटकारा दिलाने और यहां से खदेड़ने के लिए मौलवी अहमदुल्ला ने एक नायाब तरीक़ा अपनाया उन्होने शेर अली को तैयार किया के वोह कोई उलटी सीधी हरकत ना करे और पहले की तरह अंग्रेज़ों का भरोसा जीते और उनके नज़दीक पहुंच उनके सबसे बड़े अफ़सर को ही क़तल कर दे, जिससे अंग्रेज़ों के अंदर ख़ौफ़ तारी हो जाए और वो हिन्दुस्तान छोड़ कर भीगने पर मजबूर हो जाएं।

 

जेल में अच्छे एख़लाक़ की वजह कर 1871 में अफ़रीदी को पोर्ट ब्लेयर मे नाई का काम करने की इजाज़त दे दी गई, वोह एक तरह की ओपन जेल थी, लेकिन वहां से भागने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता था।

 

शेर अली वहां पर नाई बन कर जिंदगी गुजारने लगे और उस पल का इंतेज़ार करने लगे कि कब यहां पर लॉर्ड मायो का आना हो ताकि वोह उसका क़त्ल कर सके और मुल्क को अंग्रेज़ो से छुटकारा मिल सके।

 

उन्हे अच्छी तरह मालूम था अगर वो नाई का काम करेंगे तो उन्हे अंग्रेज़ो के क़रीब जाने का मौक़ा मिल सकेगा और उनके उपर अंग्रेज़ो का शक भी नही होगा।

 

1869 से इंतेज़ार करते करते वह वक़्त भी आया जब 8 फ़रवरी 1872 को हिन्दुस्तान का वाईसराय और गवर्नर लार्ड मायो अंडमान निकोबार पहुँचा. गर्वनर जनरल लॉर्ड मेयो ने अंडमान निकोबार के पोर्ट ब्लेयर में मौजूद जेल के क़ैदियों के हालात जानने और सिक्योरिटी इंतज़ामों की जाएज़ा लेने के लिए वहां का दौरा किया था।

 

पहले से ही वाईसराय के दौरे का पुरा शिड्यूल पता कर रखे शेर अली अफ़रीदी होप टाऊन नाम के जजी़रे के पास जा कर छुप गये और वाईसराय का इंतज़ार करने लगे। शाम सात बजे का वक़्त था, उसी समय लार्ड मायो का वहां से गुज़र हुआ.

 

लॉर्ड मेयो अपनी बोट की तरफ़ वापस रहा था। लेडी मेयो उस वक़्त बोट में ही उसका इंतज़ार कर रही थीं। वायसराय का सिक्यॉरिटी दस्ता जिसमें 12 सिक्यॉरिटी ऑफ़िसर शामिल थे, वो भी साथ साथ चल रहे थे।

 

इधर शेर अली अफ़रीदी ने उस दिन तय कर लिया था कि आज अपना मिशन पूरा करना है, जिस काम के लिए वो सालों से इंतज़ार कर रहे थे, वो मौक़ा आज उन्हे मिल गया है और शायद सालों तक दोबारा नहीं मिलना है।

 

वो खुद चूंकि इसी सिक्योरिटी दस्ते का हिस्सा रह चुके थे, इसलिए बेहतर जानते था कि वो कहां चूक करते हैं और कहां लापरवाह हो जाते हैं। हथियार उनके पास था ही, उनके नाई वाले काम का ख़तरनाक औज़ार अस्तुरा या चाकू। उनको मालूम था कि अगर वाईसराय बच गया तो मिशन भी अधूरा रह जाएगा और उनका भी बुरा हाल होगा, वैसे भी उन्हे ये तो पता था कि यहां से बच निकलने का तो कोई रास्ता है ही नहीं।

 

वाईसराय जैसे ही बोट की तरफ बढ़ा, उसका सिक्यॉरिटी दस्ता थोड़ा बेफ़िक्र हो गया कि चलो पूरा दिन ठीकठाक गुज़र गया। वैसे भी उस दौर मे वायसराय तक पहुंचने की हिम्मत कौन कर सकता था ?

 


लेकिन उसकी यही बेफ़िक्री उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी और आख़री भूल हो गई। पोर्ट पर अंधेरा था, उस वक़्त रौशनी के इंतज़ाम बहुत अच्छे नहीं होते थे। फ़रवरी के महीने में वैसे भी जल्दी अंधेरा हो जाता है, बिजली की तरह एक साया वाईसराय की तरफ़ झपटा।

 

जब तक खुद वाईसराय या सिक्यॉरिटी दस्ते के लोग कुछ समझते, वाईसराय लार्ड मायो ख़ून में सराबोर हो चुका था, वो तक़रीबन मरने मरने पर था, उसे इलाज के लिए कलकत्ता ले जाने का फ़ैसला किया गया। पर तब तक काफ़ी देर हो चुका था, लॉर्ड मेयो कि मौक़े पर ही मौत हो चुकी थी।

 

शेर अली को मौक़े से ही पकड़ लिया गया, पूरे ब्रिटिश साम्राज्य में दहशत फैल गई। लंदन तक बात पहुंची तो हर कोई हक्का बक्का रह गया। जब वाईसराय के साथ ये हो सकता है तो कोई भी अंग्रेज हिंदुस्तान में खुद को महफ़ुज़ नहीं मान सकता था।

 

शेर अली अफ़रीदी से जमकर पूछताछ की गई, उसने मानो एक ही लाईन रट रखा था, ‘मुझे अल्लाह ने ऐसा करने का हुक्म दिया है, मैंने अल्लाह की मर्ज़ी पूरी की है बस अंग्रेज़ों ने काफी कोशिश की ये जानने की कि क्या कोई संगठन इसके पीछे है या फिर कोई ऐसा राजा जिसका राज उन्होंने छीना हो या फिर ब्रिटिश राज के ख़िलाफ़ किसी बाहरी ताक़त का हाथ हो।

 

उनसे जब पूछा गया कि अपने ने लॉर्ड मायो को क्यो मारा ? देश का बहादुर ने युं जवाब दिया ” he had done it on orders from God. Then he was asked, if there was any co-conspirator. He said: ‘Yes, God is the co-conspirator.’”

 

जेल में उसकी सेल के साथियों से भी पूछताछ की गई, एक क़ैदी ने बताया कि शेर अली अफ़रीदी कहता था कि अंग्रेज़ देश से तभी भागेंगे जब उनके सबसे बड़े अफ़सर को मारा जाएगा और वाईसराय ही सबसे बड़ा अफ़सर था। उसके क़त्ल के बाद वाकई अंग्रेज़ खौफ़ में आ गए।

 

इसीलिए ना सिर्फ़ इस ख़बर तो ज़्यादा तवज्जो देने से बचा गया बल्कि शेर अली को भी चुपचाप फांसी पर लटका दिया गया। लंदन टाइम्स के जिस रिपोर्टर ने उस फांसी को कवर किया था, वो लिखता है कि जेल ऑफिसर ने आखि़री ख़्वाहिश जैसी कोई बात उससे पूछी थी तो शेर अली ने मुस्करा कर जवाब दिया था, ‘नहीं साहिब’। लेकिन फांसी से पहले उसने मक्का की तरफ़ मुंह करके नमाज़ ज़रूर अदा की थी।

 

और 11 मार्च 1872 को जब सूली को हंसते हंसते चूमा भारतीय जेल कर्मी को मुख़ातिब करते हुए उनके ज़ुबान पर ये शब्द मौजूद थे: ‘Brothers! I have killed your enemy and you are a witness that I am a Muslim.’ और उसनें कलमा पढ़ कर आख़री सांस ली।

 

अंग्रेज़ी इतिहासकारों ने ये ठान लिया था के किसी भी क़ीमत पर शेर अली अफ़रीदी के का़रनामे को हिन्दुस्तानी तारीख़ मे जगह नही दी जाएगी और इस पर William Hunter ने लिखा है ” Neither his name, nor that of his village or tribe will find record in the book”

 

ये तो अग्रेज़ो की बात थी पर हमारे हिन्दुस्तान के तारीख़दां (Historian) ने शेर अली अफ़रीदी को “पागल पठान” और ना जाने कितने ख़ुबसुरत ख़ुबसुरत नाम से पुकारा है :

 

अब आप बताईये पागल कौन था ? इतिहास लिखने वाले ? या फिर शेर अली अफ़रीदी ?

राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रा शेखर आज़ाद, भगत सिंह, रासबिहारी बोस भी नहीं कर सके जो कारनामा, उस काम को इस क्रांतिकारी ने दिया था अंजाम, लेकिन वो तोपागल पठान’ है

 

शेर अली अफ़रीदी को हांथ 8 फ़रवरी 1872 को लॉर्ड रिचर्ड बुर्क (लॉर्ड मेयो Lord Mayo) का क़त्ल होना कितना बड़ा काम था, आप इसी बात से जान सकते हैं कि भगत सिंह ने 17 दिसम्बर, 1928 को जिस सांडर्स की हत्या की, वो डीएसपी स्तर का ऑफ़िसर था।

 

22 जुन 1897 को पुणे में चापेकर बंधुओं ने कमिश्नर स्तर के अधिकारी की ही हत्या की थी।

 

23 दिसम्बर 1912 को रासबिहारी बोस और विश्वास ने लॉर्ड हॉर्डिंग के हाथी पर दिल्ली में घुसते वक्त बम फेंका था, महावत की मौत हो गई लेकिन हॉर्डिंग बच गया था।

 

23 दिसम्बर 1929 को वाईसराय लॉर्ड इरविन की स्पेशल ट्रेन पर भगवती चरण बोहरा और साथियों ने आगरा से दिल्ली आते वक्त बम फेंका था, वो बच गया।

 

30 अप्रैल 1908 कोप्राफुल चाकी औरखुदिराम बोस मुज़फ़्फ़रपुर(बिहार) मे जजकिँगर्फोड को क़त्ल करने निकले थे पर नाकामयाब हो गए थे।

 

ऐसे कितने ही क्रांतिकारी हुए जिन्होंने जान की बाज़ी लगाकर कई अंग्रेज अफ़सरों पर हमले किए, कइयों को मौत के घाट उतारा भी। लेकिन कोई उतना कामयाब नहीं हुआ, जितना शेर अली अफ़रीदी हुए।

 

फिर शेर अली अफ़रीदी को आप या देश की जनता क्यों नहीं जानती और क्यों इतना सम्मान नहीं देती

 

एक ख़ास बात ये भी है कि जिस तरह असेंबली बम कांड से पहले भगत सिंह ने अपना हैट वाला फ़ोटो पहले ही खिंचवाकर अखबारों में भेजने का इंतज़ाम किया था, ठीक उसी तरह शेर अली अफ़रीदी ने भी गिरफ़्तारी के बाद अपना फोटो खिंचवाने में काफ़ी दिलचस्पी दिखाई थी।

 

उसके कई फ़ोटो अलग अलग पोज़ में मौजूद हैं। शायद वो भी इस बात का ख़्वाहिशमंद थे कि आने वाली पीढ़ियां उन्हे याद रखे के उन्होने कितना बड़ा काम कर दिया था। पर ये भी सच है। ना किसी कोर्स की किताब में इस शख़्स का ज़िक्र किया गया है और ना कोई उसकी जयंती या पुण्यतिथि मनाता है। यहां तक कि क्रांतिकारियों या देशभक्तों की किसी भी सूची में उसका नाम नहीं है। 

The End

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Saturday, 8 August 2020

How To Impress Boss While Working From Home During The Corona virus Epidemic.

To reduce the spread of Corona virus Epidemic, educational institutions and markets shut down in lock down across the country.Then managers and bosses of offices started asking employees to Work from Home, where possible.

 

More Bosses and managers may find that either by choice or by mandate, their staff will have to work from home.

 

Working from home in this Corona virus Epidemic is convenient; you can impress your boss, while working from home. It takes a bit of effort and planning to make it really work. Once you’re set up and know what to expect, though, you can enjoy the time savings and impress your boss.

 

Doesn’t let working from home stall your efforts to impress your boss and plant the seeds to continue your career advancement. Here are Tips to demonstrate your leadership when working from home:

(1) Do more than what has been asked.

You may have a little more time for your work since you will not be commuting. Leverage this extra time to exceed expectations. Don't wait your Boss to ask  you to research the background of a potential business client.

 

Consider going a step further and identify ways to approach the prospective client and pitch it to your boss.Impress your boss by thinking outside the box and being a strategic partner.

 

Leaders don’t just do what they are told to do. Leaders do what has to be done to do the work well.

(2). Propose an idea, be more active

Bosses are also impressed with professionals who are proactive. It helps managers when their reports identify and solve an issue to benefit the team. For instance, you learn about a time-saving application that you think might make data collection for your team easier and more effective.

 

When events like the corona virus outbreak restricts a company’s ability to do business as usual, proposing an idea that might help your boss save money could help you to make a positive impression. Your boss will see that you are thinking like a business leader.

 

Bosses may not have the time to think critically about all aspects of the work, especially inefficiencies that could be holding up or frustrating the work. Take responsibility, propose an idea and follow through with it.

 

Social distancing doesn’t have to thwart your efforts to impress your boss and attain your professional goals. Maintain regular communication with your manager, exceed expectations where you can and be proactive.

(3). Send periodic updates present and Brief

While you may not be in the office, you can still keep in contact with your manager and colleagues. You might send a weekly email to or schedule a weekly call with your manager communicating what you have accomplished in the past week and what you plan to do the following week.

You don’t need to send your boss an email after you do every little thing (unless they specifically told you to do that), but sending updates will give your boss a grasp on what you are accomplishing in your department.

 

Sending a list of intended goals at the beginning of the day and a list of accomplishments at the end of the day is a great way to keep your boss in the loop on your productivity.

(4) Do Your Best on“Video Conference”

Treat video conference meetings as if they were in-person work meetings. Come to the meeting a few minutes early to show punctuality, and make sure you wear something professional,a nice collared shirt, for example, will show you are present and professional, even when your boss isn’t watching.

(5) Pay Attention

Whether it is in video conferences, phone calls, emails, or any other means of communication, you want to be paying attention. One of the most effective ways your boss will see this is during video conferences.

 

Actively listen and look at your computer screen during meetings. If you are visibly distracted by your phone or something in your home, it will not only make you look unprofessional but also could tell your boss you are not working at home effectively.

The End

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Tuesday, 4 August 2020

Durru Shehvar: Last Princess of Ottoman Dynasty.Married To An Indian Prince, Not a Fairy Tale Ending

Durru shehvar (1914–2006) was the daughter of Abdulmejid II of the Ottoman dynasty, who was the last heir apparent to the Ottoman Imperial throne and the last Caliph of the Ottoman Caliphate.

The princess was ten years old when her family was banished from Turkey under the Ataturk reforms, following which they settled in Nice, France.

Durru Shehvar, the elder daughter-in-law of the Nizam of Hyderabad, Mir Osman Ali Khan. She was born in Turkey, brought up in France but married to the son of the world’s richest man, the Nizam of Hyderabad.

The dawn of the 20th century was a very turbulent time for Europe. Think of the Russian Revolution, the First World War, and the infamous 1918 “Spanish Flu” pandemic.

Turkey, too, was going through all kinds of upheavals in those days, culminating in the ratification of a new Turkish Constitution in 1924, which spelled the end of the Ottoman dynasty as well as its Caliphate. The entire imperial family was forced to leave the country at less than a day’s notice.Princess Durru Shehvar

The princess was ten years old when her family was banished from Turkey under the Ataturk reforms, following which they settled in Nice, France.

She held the titles of Princess of Berar through marriage, and Imperial Princess of the Ottoman Empire by birth before the monarchy's abolition in 1922.

Marriage of Durru Shehvar Prince Azam Jah (1907–1970), the eldest son and heir of the last Nizam of Hyderabad State.

When the crown prince of Hyderabad, Azam Jah, came of age, the Nizam started looking for a suitable bride for his heir. Princess Durru Shehvar was the prime candidate. She had the striking looks and bearing of someone born to be queen. Her ancestry was impeccable and, most importantly, through her bloodline.

Princess DurruShehvar

Persuaded by Maulana Shaukath Ali and his brother, Maulana Mohammad Ali, Nizam Mir Osman Ali Khan decided to send a life-time monthly pension of 300 pounds to the deposed Caliph, and allowances to several individuals in the family.

When Durru Shehvar, came of age, she was sought in marriage by several Muslim Royals including the Shah of Persia and the King of Egypt for their heirs.

Shaukat Ali prevailed on the Nizam to send a proposal to the Caliph asking for Durru Shever’s hand for his elder son, Prince Azam Jah. The deposed Caliph could hardly reject the offer from his benefactor.

But it was not that easy; the Mehr (the bride money) of 50,000 pounds that the Caliph demanded for his daughter was “too big”, the Nizam felt. But with the intervention of Shaukat Ali, the Caliph proposed to offer for the same Mehr, the hand of his brother’s daughter Niloufer, for the Nizam’s younger son, Prince Mauzam Jah. The Nizam readily agreed and sent his two sons to France.

The marriage of Princess Durru Shehvar with Prince Azam Jah, along with that of Prince Mauzam and Niloufer took place in Nice, in France, on 12 November, 1931, in a simple ceremony attended by only a simple affair with only the members of Sultan’s family at Nice, a few Turkish nobles and friends.

As well as representatives of the Nizam — Sir Akbar Hydari and Nawab Mehdi Yar Jung, who happened to be in Europe at that time to attend the Round Table Conference. The Khalifa himself performed the ceremonies. All the offices and educational institutions in the Nizam’s dominions were given a holiday on the day.

Durru Shehvar was 18 at the time, and significantly taller than her husband of 25, Azam Jah. Her father-in-law, the Nizam loved pointing out how much taller she was than his son, at their parties.

The Princess became the first woman to inaugurate an airport when she inaugurated the airport in Hyderabad in the 1940s. She is also credited with inaugurating the Osmania General Hospital.She set up the Durru Shehvar Children's & General Hospital for women and children in the old city of Hyderabad. 

She was subject to immense attention and adulation in the 1930s. “Jab woh paan khaati thi, toh halak se jaata hua dikhta tha (When she swallowed a paan, you could see it going down her throat!).reminisces a friend’s grandmother of the princess.

Following the birth of her sons Prince Mukarram Jah in 1934 and Prince Muffakham Jah in 1939, she took charge of their upbringing, the two princes being educated in Britain but got them married to Turkish ladies. The last Nizam- (Mir Osman Ali Khan) later bypassed his own son and nominated her first son and his grandson, as his successor.

Her marriage "mismatched" in every sense, “She was 5’10", her husband was 5 ‘3". She brought with her a completely cosmopolitan life, while most of Hyderabad was still under purdah.

She was of impeccable lineage but her family had very little money, and it was a typical rags-to-riches story. She knew of her husband’s 50 concubines but carried herself regally.”

Her marriage was not exactly a fairytale ending.

Her marriage "mismatched" in every sense, “She was 5’10", her husband was 5 ‘3". She brought with her a completely cosmopolitan life, while most of Hyderabad was still under purdah.

Perhaps this excerpt of a 1931 article in Time magazine, reporting on their wedding, can offer a hint. The Crown Prince Azam Jah,stated his views on marriage thus:

‘I like horses. They are more dependable than women. If a horse throws you it will stand by until you get on your feet.’ Nevertheless Crown Prince Azam Jah obeyed his father’s orders to marry last week.” It does sound a bit ominous, doesn’t it?

It was very difficult for her to adjust to the very conservative Muslim culture that permeated Hyderabad at the time.But she never went into purdah. There were also rumors at the time that the Nizam’s senior wife Dulhan Pasha wanted to poison her.

Relations between Azam Jah (her husband) and his brother Moazzam Jah were also strained. She always thought Hyderabad could never equal the Ottoman culture, and many Hyderabadis thought she looked down on them.”

Durru Shehvar knew of her husband’s 50 concubines but carried herself regally. However, there was a great gulf between the Princess and the Prince, Azam Jah and their marriage fell apart within few years.

It is an irony that when she was born, her father, the Caliph was the head of all the Muslims in the world; but was overthrown and sent away in exile.

After the divorce, Durru Shehvar stayed in Hyderabad for some years, and then moved to London, where she died in 2006, aged 93, with her two sons by her side. (Her ex-husband Azam Jah, had passed away in 1970, aged 63.). After her husband’s death,she divided her time between Hyderabad and London.

Each time she returned to Hyderabad for a visit, she attracted big crowds. She always remained a superstar, fondly remembered and frequently written about in the Indian press.

 Social activity of Durru Shehvar in Hyderabad

The Nizam called her his precious Jewel (Nagina) and encouraged her to participate actively in Hyderabad’s social life.

In Hyderabad, Durru Shehvar soon identified herself with the people. With a great passion for providing health care and education for common people, she set up a general and children’s hospital in Purani Haveli, which still runs in her name.

A Junior College for girls in Yakutpura, Bagh-e-Jahanara, is also run on the funds she provided. Durru Shehvar also laid the foundation stone of the Begum pet Airport building in 1936. Until then a small strip at Hakimpet served as the airport for Hyderabad.

She inaugurated the Ajmal Khan Tibbiya College Hospital in Aligarh Muslim University (AMU).

She ensured her sons, Prince Mukarram Jah and Prince Muffakam Jah, received the best possible western education in Europe and married Turkish brides, as she desired. Mukarram studied in Eton, where India’s first prime minister, Jawaharlal Nehru had earlier studied. 

Durru Shehvar was fluent in French, English, Turkish and Urdu and even contributed articles to French magazines. She believed that women should earn their own living and worked hard to remove the practice of purdah. 

She was upset about Turkish Government's attitude against her family members after declaration of the republic. Despite being a member of Ottoman royal family she refused to be buried in Turkey since she was upset that the Turkish Government refused in 1944 her father's burial in Istanbul. 

Princess Durru Shehvar, after shifting permanently to London, frequented the city. Her last visit to the city was in 2004, two years before she passed away in London at the age of 92. With her death, ended a glorious chapter of Hyderabad.

The End

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