Friday, 5 June 2020

किशोर कुमार-आवाज़ के जादूगर, जिनकी आवाज़ सुनकर दिल में मोहब्बत जाग उठे

जिंदगी के अनजाने सफर से बेहद प्यार करने वाले हिन्दी सिने जगत के महान पार्श्व गायक किशोर कुमार का नजरिया उनकी गाई इन पंक्तियो में समाया हुआ है।
बीच राह में दिलबर बिछड़ जाए कहीं हम अगर
और सूनी सी लगे तुम्हे जीवन की ये डगर
हम लौट आएंगे तुम यूं ही बुलाते रहना
कभी अलविदा ना कहना

पल पल दिल के पास तुम रहती हो
पल पल दिल के पास तुम रहती हो
जीवन मीठी प्यास ये कहती हो
पल पल दिल के पास तुम रहती हो

चल के तुझे, मैं ले के चलूं
एक ऐसे गगन के तले
जहाँ ग़म भी हो, आँसू भी हो
बस प्यार ही प्यार पले
एक ऐसे गगन के तले

रूप तेरा मस्ताना, प्यार मेरा दीवाना
रूप तेरा मस्ताना, प्यार मेरा दीवाना
भूल कोई हमसे ना हो जाए


यदि आप हिंदी गानों के शौकीन हैं और आपकी पसंदीदा लिस्ट में किशोर दा के गाने ना हों यह मुमकिन ही नहीं.

तीन नायकों को बनाया महानायक

किशोर कुमार ने हिन्दी सिनेमा के तीन नायकों को महानायक का दर्जा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।

उनकी आवाज के जादू से देव आनंद सदाबहार हीरो कहलाए
किशोर ने ही बनाया था राजेश खन्ना को देश का सुपरस्टा
अमिताभ बच्चन को बनाया महानायक

देव आनंद और किशोर की मरते दम तक दोस्ती

जिद्दी में किशोर कुमार ने पहली बार पार्श्वगायन किया, वह भी देव आनंद के लिए। यहीं से किशोर और देव आनंद के बीच अभिन्न मित्रता की शुरुआत हुई। आगे चलकर देव ने अपने अधिकांश गाने किशोर से ही गवाए। 1987 में किशोर कुमार के असामयिक निधन तक यह दोस्ती कायम रही।


अंतिम बार किशोर नेसच्चे का बोलबाला’ (1989) फिल्म के लिए देव आनंद को अपनी आवाज दी थी।जिद्दीकी सफलता ने देव आनंद को स्टार का दर्जा दिला दिया। उस समय तक दिलीप कुमार और राज कपूर भी स्टार का दर्जा हासिल कर चुके थे। दोनों की आठ-दस फिल्में प्रदर्शित हो चुकी थीं।


किशोर बन गए राजेश खन्ना के गीतों की आवाज

किशोर कुमार यानी वो आवाज जिसने जवां दिलों की धड़कनों को अपने नाम कर लिया. उनकी बात करते ही सबसे पहले किसी चेहरे का ध्यान आता है तो वो है राजेश खन्ना. राजेश खन्ना की सफलता में किशोर कुमार का सबसे बड़ा हाथ माना जा सकता है. सवाल ये है कि अगर किशोर कुमार नहीं होते तो क्या राजेश खन्ना, राजेश खन्ना होते?


किशोर कुमार के गानेमेरे सपनों की रानी कब आएगी तूने राजेश खन्ना को रातोंरात देश का सुपर स्टार बना दिया. राजेश खन्ना रातोंरात देश की लाखों लड़कियों के दिलों की धड़कन बन गए.

1969 में आई फिल्मअराधनाने तहलका मचा दिया. किशोर कुमार की आवाज में जो एक रोमांस था उसे राजेश खन्ना का चेहरा मिल गया था. इस फिल्म की खास बात ये थी कि राजेश खन्ना और किशोर कुमार पहली बारअराधनाफिल्म के सेट पर ही मिले और दोनों की केमिस्ट्री वहीं से शुरू हो गई.


 अराधनासे पहले राजेश खन्ना अपनी पहली हिट फिल्म की तलाश में घूम रहे थे, लेकिन वो फिल्म उन्हें मिली नहीं थी. 1966 में राजेश खन्ना ने फिल्म इंडस्ट्री मेंराजफिल्म से शुरुआत की थी. हालांकि पहलेआखिरी खतरिलीज हुई.

इन दोनों फिल्मों के गाने तो अच्छे थे लेकिन, राजेश खन्ना की कोई बड़ी पहचान नहीं बन पाई. इसके बाद राजेश खन्ना नेबहारों के सपनेऔरऔरत और श्रीमानजीजैसी फिल्मों में काम किया लेकिन बात नहीं बनी.

शायद राजेश खन्ना को किशोर कुमार की आवाज का ही इंतजार था. जैसे ही 1969 मेंअराधनाआई पूरा देश राजेश खन्ना और किशोर कुमार का दीवाना हो गया.

ऐसा कहा जाता है कि राजेश खन्ना के सहारे किशोर कुमार ने भीअराधनाफिल्म से अपनी दूसरी पारी शुरू की. इससे पहले किशोर कुमार की पहचान एक एक्टर-सिंगर के तौर पर थी. वो फिल्मों में एक्टिंग भी किया करते थे और गाया भी करते थे.

1971 में राजेश खन्ना और किशोर कुमार की जोड़ी को आरडी बर्मन के तौर पर एक नया साथी मिला. तीनों ने पहली बार साथ में फिल्मकटी पतंगकी

कटी पंतगके बाद से इन तीनों के बीच एक कभी रुकने वाला सिलसिला शुरू हुआ. सत्तर के दशक में आरडी बर्मन ही नहीं, हर म्यूजिक डायरेक्टर राजेश खन्ना के गानों के लिए किशोर कुमार ही को गायक चुनता.


1973 मेंअमर प्रेमके गानों ने रोमेंटिंक राजेश-किशोर की जोड़ी ने सैड सॉन्ग्स की दुनिया में भी धमाका मचाया. 1974 में आई फिल्मआप की कसममें किशोर कुमार ने राजेश खन्ना के लिएजिंदगी का सफर…’ जैसा सुपरहिट सैड सॉन्ग गाकर राजेश खन्ना को दिलीप कुमार के बाद दूसरा ट्रैजेडी किंग बना दिया.

इस दौर से राजेश खन्ना का स्टारडम खत्म होना शुरू हो चुका था. जैसे-जैसे किशोर दूसरे के लिए गाते गाते ऊपर जा रहे थे वैसे-वैसे राजेश खन्ना नीचे रहे थे.

किशोर कुमार और बिग बी का किस्सा


फिल्म डॉन, मुकद्दर का सिकंदर, अमर अकबर एंथनी, दोस्ताना जैसी कई फिल्मों में आज के महानायक अमिताभ बच्चन के लिए गा चुके किशोर कुमार 1980 के दशक के मध्य में एक बार उनसे इसलिए नाराज हो गए थे क्योंकि अमिताभ ने किशोर की एक होम प्रोडक्शन फिल्म में अतिथि कलाकार की भूमिका नहीं की थी. किशोर ने बिग बी के लिए गाना बंद कर दिया था. बाद में सुलह हो गई.


मिलिए, किशोर कुमार की चार पत्नियों से

जिंदगी के हर क्षेत्र में मस्तमौला रहने वाले किशोर कुमार के लिए उनकी लव लाइफ भी बड़ी अनोखी थी. प्यार, गम और जुदाई से भरी उनकी जिंदगी में चार पत्नियां आईं. किशोर कुमार की पहली शादी रुमा देवी से हुई थी, लेकिन जल्दी ही शादी टूट गई.

इस के बाद उन्होंने मधुबाला के साथ विवाह किया. लेकिन शादी के नौ साल बाद ही मधुबाला की मौत के साथ यह शादी भी टूट गई. 1976 में किशोर कुमार ने अभिनेत्री योगिता बाली से शादी की लेकिन यह शादी भी ज्यादा नहीं चल पाई. इसके बाद साल 1980 में उन्होंने चौथी और आखिरी शादी लीना चंद्रावरकर से की जो उम्र में उनके बेटे अमित से दो साल बड़ी थीं.

रुमा गुहा

1951 में रुमा गुहा के साथ शादी की लेकिन यह केवल 8 बरस तक ही कामयाब रही. 1958 में दोनों का तलाक हो गया. रुमा खास कर बंगला की अभिनेत्री और गायिका रही है गायक अमित कुमार रुमा और किशोर के ही बेटे हैं.


मधुबाला-किशोर कुमारजब दो टूटे दिल हुए एक

फिल्म नया दौर से हटाए जाने और दिलीप कुमार से रिश्ता तोड़ने के बाद अभिनेत्री मधुबाला का दुखी होना स्वाभाविक था और स्वाभाविक था रूमा गांगुली द्वारा तलाक लिए जाने के बाद गायक-अभिनेता किशोर कुमार का भी दुखी होना। किशोर-मधुबाला की पहली मुलाकात 1956 में हुई थी।

प्रोड्यूसर जे.के. नंदा ने फिल्म शुरू की, तो उसका नाम रखा ढाके की मलमल। हीरोइन का रोल मधुबाला को दिया और हीरो बनाया किशोर कुमार को। किशोर कुमार के व्यवहार से मधुबाला बहुत प्रभावित थीं। दोनों की साथ-साथ बनने वाली यह पहली फिल्म थी और यही वह फिल्म थी, जिसकी शूटिंग करने बीमार मधुबाला आखिरी बार किसी स्टूडियो में गई, लेकिन पति के साथ बनी पहली फिल्म वे पूरी नहीं कर पाई।


1958 में क्लासिक कॉमेडी फिल्मचलती का नाम गाड़ीआई। इसमें मधुबाला ने तीनों गांगुली भाइयों अशोक कुमार, अनूप कुमार और किशोर कुमार के साथ काम किया। फिल्म सुपर हिट रही। मधुबाला के अब्बा किशोर से बहुत प्रभावित हुए।

उधर मुगल--आजम की शूटिंग खत्म होने वाली थी कि अताउल्ला खान यानी मधुबाला के अब्बा ने मधुबाला पिक्चर्स के नाम से एक प्रोडक्शन कंपनी की नींव रखी और अपनी दो बेटियों मधुबाला और चंचल के साथ किशोर कुमार को लेकर महलों के ख्वाब नाम से एक फिल्म शुरू कर दी। यही वह फिल्म थी, जो मधुबाला और किशोर को नजदीक ले आई। दिलीप से अलग होने के गम को किशोर कुमार ने मधुबाला की जिंदगी से उड़ा दिया।


 पार्टी और महफिलों से दूर रहने वाले किशोर कुमार की खान खानदान के साथ धीरे-धीरे खूब जमने लगी। उधर किशोर कुमार की पहली पत्नी रूमा ने अपना घर बसा लिया। वे रूमा ठुकराल बन गई। अब किशोर ने अपनी जिंदगी की वीरानी को दूर करने का फैसला किया। दरअसल, खान साहब को भी अब यह यकीन होने लगा कि किशोर मधुबाला से प्यार पैसे के लालच में नहीं कर रहा है।

दोनों की शादी हो जाए, तो खान खानदान को खुशी होगी। उधर किशोर अपनी शामें अक्सर गिरनार में बिताने लगे। वे मधुबाला को बाहर लेकर कम ही गए और जब गए, तो बुरका उनकी गर्लफ्रेंड को छुपाए रहता था।

अक्सर प्रेमी अपनी प्रेमिका को इम्प्रेस करने के लिए महंगे तोहफे देते हैं, लेकिन कंजूसी के लिए मशहूर किशोर इन फिजूल की बातों पर पैसा वेस्ट नहीं करते थे। हां, कभी-कभार वे मधुबाला को उनके मनपसंद गुलाब के फूलों का गुलदस्ता जरूर दे जाते थे।

मधुबाला की खूबसूरती पर मर-मिटने वालों की भी कमी नहीं थी। उनको विवाह के लिये तीन अलग-अलग लोगों से प्रस्ताव मिले। वह सुझाव के लिये अपनी मित्र नर्गिस के पास गयी। नर्गिस ने भारत भूषण से विवाह करने का सुझाव दिया जो कि एक विधुर थे।

नर्गिस के अनुसार भारत भूषण, प्रदीप कुमार एवं किशोर कुमार से बेहतर थे। लेकिन मधुबाला ने अपनी इच्छा से किशोर कुमार को चुना। किशोर कुमार एक तलाकशुदा व्यक्ति थे। मधुबाला के पिता ने किशोर कुमार से बताया कि वह चिकित्सा के लिये लंदन जा रही है तथा उसके लौटने पर ही वे विवाह कर सकते है। मधुबाला मृत्यु से पहले विवाह करना चाहती थीं ये बात किशोर कुमार को पता था।


ऐसा भी कहा जाता है कि शादी करने के लिए किशोर ने अपना धर्म बदल कर अपना नाम करीम अब्दुल रखा था। मधुबाला जैसी पत्नी पाने के लिए इस शर्त को मान लेने में किशोर को कोई ऐतराज नहीं था। निकाह की तारीख तय हो गई और बंगले पर निकाह की रस्म पूरी हुई।

1960 में उन्होने विवाह किया। परन्तु किशोर कुमार के माता-पिता ने कभी भी मधुबाला को स्वीकार नही किया। उनका विचार था कि मधुबाला ही उनके बेटे की पहली शादी टूटने की वज़ह थीं।

किशोर कुमार ने माता-पिता को खुश करने के लिये हिन्दू रीति-रिवाज से पुनः शादी की, लेकिन वे उन्हे मना सके। यह शादी नौ साल तक चली। 23 फरवरी 1969 को मधुबाला की मौत हो गई। किशोर एक बार फिर अकेले थे।

अभिनेत्री योगिता बाली

1976 में किशोर कुमार ने अभिनेत्री योगिता बाली से शादी की लेकिन यह शादी भी ज्यादा नहीं चल पाई. इसके बाद 1978 में योगिता बाली ने किशोर कुमार से तलाक लेकर मिथुन चक्रवर्ती से शादी कर ली.


1980 में किशोर कुमार ने चौथी शादी लीना चंद्रावरकर से की जो उम्र में उनके बेटे अमित से दो साल बड़ी थीं


याद कीजिये फिल्म महबूब की मेंहदी का ये गाना.जिसे बड़े परदे पर लीना चन्द्रवरलर पर फिल्माया गया था.

इतना तो याद है मुझ
हाये, इतना तो याद है मुझे, के उनसे मुलाक़ात हुई
बाद में जाने क्या हुआ
बाद में जाने क्या हुआ ना जाने क्या बात हुई

सो गई वो आवाज़

13 अक्टूबर, 1987 को मुंबई में किशोर के निधन के साथ उनकी खंडवा में बसने की ख्वाहिश ने भी दम तोड़ दिया. हालांकि, उनकी इच्छा के मुताबिक उनका अंतिम संस्कार उनके गृहनगर खंडवा में ही किया गया. खंडवा स्थित उनके पैतृक आवास पर किशोर कुमार के गीत संगीत का एक संग्रहालय बनाया गया.


किशोर दा ने मौत से पहले ही अपने लिए तीन गाने चुन लिए थे। जिंदगी का सफर है ये कैसा सफर, पल पल दिल के पास तुम रहते हो और वो मुकद्दर का सिंदर कहलाएगा. किशोर कहते थे जब मैं छोटा था तालाब किनारे गाता था तब मेरे दादाजी कहते थे, तेरे गाने से हिरण तेरे पास जाते हैं। एक दिन तू बड़ा सिंगर बनेगा। उनके दादाजी की बात सही निकली और किशोर दुनिया के महान सिंगर बने।
The End




Monday, 1 June 2020

Plaque, Noble Prized Novel by Albert Camus: In This Time Of Corona-virus

Who would have imagined that a 73-year-old novel called The Plague would have more than metaphorical significance in our own time? Yet here we are, beset by the corona-virus and still in possession of Albert Camus’s gorgeous and profound meditation on life in the shadow of death.


It is hard to believe that Corona-virus has crash down on our heads from a blue sky. There have been as many plagues as wars in history; yet plagues and wars always take people by surprise.”The main thing about a pandemic like the novel corona-virus (Covid 19) is that it doesn’t discriminate.

Albert Camus

Whoever you are, wherever you live, you’re vulnerable, at least in principle. While some of us may fare better because of our age or health, the microbes themselves are impartial.

Who  Was Albert Camus Author of Novel Plague

Albert Camus (1913–1960) was a French Algerian philosopher, author, and journalist. He won the Nobel Prize in Literature at the age of 44 in 1957, the second-youngest recipient in history.

He spent his childhood in a poor neighborhood and later studied philosophy at the University of Algiers. He was in Paris when the Germans invaded France during World War II in 1940. Camus tried to flee but finally joined the French Resistance where he served as editor-in-chief at Combat, an outlawed newspaper.


After the war, he was a celebrity figure and gave many lectures around the world. He married twice but had many extramarital affairs.

Plague is a fictional story about the very real town of Oran in Algeria.

Albert Camus published The Plague in 1947. It is a fictional story written about the very real town of Oran in Northern Algeria. Many consider this novel to be a war allegory of the French resistance to the Nazis in World War II, pointing out the futility of human aspirations and the inevitability of suffering.

Summery of Novel Plague

In the small town of Oran, Algeria, dead bodies are multiplying exponentially. A strange virus has penetrated the town walls; it is causing people’s flesh to boil, their inside to curdle with fever and vomit. There seems to be no hope for a cure. Terror has taken over.

One doctor, a darkly handsome man named Rieux, may be the last hope the people of Oran have – or he may simply have lost his mind, He is working tirelessly to treat the victims. He not only puts himself in contact with the deadly contagion, he does so methodically, with tremendous energy and unflinching dedication.

Thousands of rats stagger into the open and die. When a mild hysteria grips the population, the newspapers begin clamoring for action.


The authorities finally arrange for the daily collection and cremation of the rats. Soon thereafter, M. Michel, the concierge for the building where Dr. Rieux works, dies after falling ill with a strange fever.

When a cluster of similar cases appears, Dr. Rieux's colleague, Castel, becomes certain that the illness is the bubonic plague. He and Dr. Rieux are forced to confront the indifference and denial of the authorities and other doctors in their attempts to urge quick, decisive action.

Only after it becomes impossible to deny that a serious epidemic is ravaging Oran. The authorities enact strict sanitation measures, placing the whole city under quarantine.

Dr. Rieux notes that wars and plagues have always existed in human populations, yet people are always surprised when they become victims of one or the other. Even though he has personally seen several fatal cases, the events seem unreal even to him. As he recalls vivid, horrifying historical accounts of plague epidemics, Dr. Rieux braces himself for the possibility of another one.


The public reacts to their sudden imprisonment with intense longing for absent loved ones. They indulge in selfish personal distress, convinced that their pain is unique in comparison to common suffering.

Father Paneloux delivers a stern sermon, declaring that the plague is God's punishment for Oran's sins. Raymond Rambert endeavors to escape Oran to rejoin his wife in Paris, but the city's bureaucrats refuse to let him leave.

He tries to escape by illegal means with the help of Cottard's criminal associates. Meanwhile, Rieux, Tarrou, and Grand doggedly battle the death and suffering wrought by the plague.

Rambert finalizes his escape plan, but, after Tarrou tells him that Rieux is likewise separated from his wife, Rambert is ashamed to flee. He chooses to stay behind and help fight the epidemic.


If someone speculates that the epidemic will last six months, he or she quickly realizes that there is no reason why it should not last for a year or longer. Contemplation of the present provokes helpless impatience, and the past provokes regret.

Grand explains to Dr. Rieux why his marriage to Jeanne failed. They married, continued to love one another, and worked. However, they worked so hard that they forgot to love one another, and she eventually left him. Grand has tried unsuccessfully for years to write her a letter explaining his actions.

Cottard committed a crime (which he does not name) in the past, so he has lived in constant fear of arrest and punishment. He greets the plague epidemic with open arms because he no longer feels alone in his fearful suffering. He accumulates a great deal of wealth as a smuggler during the epidemic.


After the term of exile lasts several months, many of Oran's citizens lose their selfish obsession with personal suffering. They come to recognize the plague as a collective disaster that is everyone's concern.

They confront their social responsibility and join the anti-plague efforts. When M. Othon's small son suffers a prolonged, excruciating death from the plague, Dr. Rieux shouts at Paneloux that he was an innocent victim.

Father Paneloux, deeply shaken by the boy's death, delivers a second sermon that modifies the first.He declares that the inexplicable deaths of innocents force the Christian to choose between believing everything and believing nothing about God.

When he falls ill, he refuses to consult a doctor, leaving his fate entirely in the hands of divine Providence. He dies clutching his crucifix, but the symptoms of his illness do not match those of the plague. Dr. Rieux records him as a "doubtful case."

How Epidemic Plaque  ended

The most popular theory of how the plague ended is through the implementation of quarantines. The uninfected would typically remain in their homes and only leave when it was necessary, while those who could afford to do so would leave the more densely populated areas and live in greater isolation.

By late January the plague is in full retreat, and the towns people begin to celebrate the imminent opening of the town gates. Othon, however, does not escape death from the disease.


When the epidemic ends, Cottard cannot cope. He begins randomly firing his gun into the street until he is captured by the police. Grand, having recovered from a bout of plague, vows to make a fresh start in life.

Tarrou dies just as the epidemic is waning, but he battles with all his strength for his life, just as he helped Rieux battle for the lives of others.

Rambert's wife joins him in Oran after the city gates are finally opened, but Dr. Rieux's own wife dies of a prolonged illness before she and her husband can be reunited.


The public quickly returns to its old routine, but Rieux knows that the battle against the plague is never over because the bacillus microbe can lie dormant for years. The Plague is his chronicle of the scene of human suffering that all too many people are willing to forget.

Meaning of Life in Albert Camus’ “The Plague”

That the plague bacillus never dies or vanishes entirely, that it can remain dormant for dozens of years in furniture or clothing, that it waits patiently in bedrooms, cellars, trunks, handkerchiefs, and old papers and that perhaps the day will come when, for the instruction or misfortune, the plague will rouse its rats and send them to die in some well-contented city.” (Albert Camus, The Plague).

Towards the end The Plague, Camus allows the plague to pass. Perhaps this is Camus’s way of showing that pain and evil are cyclical, but never completely subside.

The End

Note:--This short write-up “Plaque, Noble Prized Novel by Albert Camus” has been prepared with help of Wikipedia and various articles over this topic and photos available on net, with thanks.