Tuesday, 12 May 2020

“डरपोक”:सआदत हसन मंटो की एक मंटो की लघुकथा


मैदान बिलकुल साफ़ था। मगर जावेद का ख़याल था कि म्युनिसिपल कमेटी की लालटैन जो दीवार में गढ़ी है। उस को घूर रही है। बार बार वह इस चौड़े सहन को जिस पर नानक शाही ईंटों का ऊंचा नीचा फ़र्श बना हुआ था, तय करके इस नुक्कड़ वाले मकान तक पहुंचने का इरादा करता जो दूसरी इमारतों से बिलकुल अलग थलग था।

मगर ये लालटैन जो मस्नूई आँख की तरह हर तरफ़ टिकटिकी बांधे देख रही थी, उस के इरादे को मुतज़लज़ल कर देती और वो इस बड़ी मोरी के इस तरफ़ हट जाता जिस को फांद कर वो सहन को चंद क़दमों में तय कर सकता था....... सिर्फ़ चंद क़दमों में!

जावेद का घर उस जगह से काफ़ी दूर था। मगर ये फ़ासिला बड़ी तेज़ी से तय कर के यहां पहुंच गया था। उस के ख़यालात की रफ़्तार उस के क़दमों की रफ़्तार से ज़्यादा तेज़ थी।

रास्ते में उस ने बहुत सी चीज़ों पर ग़ौर किया। वो बेवक़ूफ़ नहीं था। उसे अच्छी तरह मालूम था कि एक बीसवा के पास जा रहा है। और उस को इस बात का भी पूरा शुऊर था कि वो किस ग़र्ज़ से उस के यहां जाना चाहता है।

वो औरत चाहता था। औरत, ख़्वाह वो किसी शक्ल में हो। औरत की ज़रूरत उस की ज़िंदगी में यक--यक पैदा नहीं हुई थी। एक ज़माने से ये ज़रूरत उस के अंदर आहिस्ता आहिस्ता शिद्दत इख़्तियार करती रही थी। और अब दफ़अतन उस ने महसूस किया था कि औरत के बग़ैर वो एक लम्हा ज़िंदा नहीं रह सकता।

औरत उस को ज़रूर मिलनी चाहिए, ऐसी औरत जिस की रान पर हौले से तमांचा मार कर वह उस की आवाज़ सुन सके। ऐसी औरत जिस से वो वाहीयात क़िस्म की गुफ़्तगु कर सके।

जावेद पढ़ा लिखा होशमंद आदमी था। हर बात की ऊंच नीच समझता था। मगर इस मुआमले में मज़ीद ग़ौर--फ़िक्र करने के लिए तैय्यार नहीं था। उस के दिल में एक ऐसी ख़्वाहिश पैदा हुई थी, जो इस के लिए नई थी।

औरत की क़ुरबत हासिल करने की ख़्वाहिश इस से पहले कई बार उस के दिल में पैदा हुई और इस ख़्वाहिश को पूरा करने के लिए इंतिहाई कोशिशों के बाद जब उसे ना-उम्मीदी का सामना करना पड़ा तो वो इस नतीजा पर पहुंचा कि उस की ज़िंदगी में सालिम औरत कभी नहीं आएगी। और अगर उस ने इस सालिम औरत की तलाश जारी रखी तो किसी रोज़ वो दीवाने कुत्ते की तरह राह चलती औरत को काट खाएगा।

अब उस के दिमाग़ में से वो औरत निकल चुकी थी जिस के होंटों पर वो अपने होंट इस तरह रखने का आर्ज़ूमंद था। जैसे तितली फूलों पर बैठती है, अब वो इन होंटों को अपने गर्म होंटों से दाग़ना चाहता था....... हौलेहौले सरगोशियों में बातें करने का ख़याल भी उस के दिमाग़ में नहीं था। अब वो बुलंद आवाज़ में बातें करना चाहता था। ऐसी बातें जो इस के मौजूदा इरादे की तरह नंगी हों।

एक ज़माना था जब जावेद औरत कहते वक़्त अपनी आँखों में ख़ास क़िस्म की ठंडक महसूस किया करता था। जब औरत का तसव्वुर उसे चांद की ठंडी दुनिया में ले जाता था। वो औरत कहता था।

बड़ी एहतियात से जैसे उस को इस बेजान लफ़्ज़ के टूटने का डर हो....... एक अर्से तक वो इस दुनिया की सैर करता रहा मगर अंजाम कार उस को मालूम हुआ कि औरत की तमन्ना उस के दिल में है। उस की ज़िंदगी का ऐसा ख़्वाब है जो ख़राब मादे के साथ देखा जाये।

जावेद अब ख़्वाबों की दुनिया से बाहर निकल आया था। बहुत देर तक ज़ेहनी तौर पर वो अपने आप को बहलाता रहा। मगर अब उस का जिस्म ख़ौफ़नाक हद तक बेदार हो चुका था।

उस के तसव्वुर की शिद्दत ने उस की जिस्मानी हिस्सिय्यात की नोक--पलक कुछ इस तौर पर निकाली थी कि अब ज़िंदगी उस के लिए सोइयों का बिस्तर बन गई। हर ख़याल एक नशतर बन गया और औरत उस की नज़रों में ऐसी शक्ल इख़्तियार करगई जिस को वो बयान भी करना चाहता तो कर सकता।

जावेद कभी इंसान था। मगर अब इंसानों से उसे नफ़रत थी, इस क़दर कि अपने आप से भी मुतनफ़्फ़िर हो चुका था। यही वजह थी कि वो ख़ुद को ज़लील करना चाहता था। इस तौर पर कि एक अर्से तक इस के ख़ूबसूरत ख़याल जिन को वो अपने दिमाग़ में फूलों की तरह सजा के रखता रहा था, ग़लाज़त से लुथड़े रहें।

मुझे नफ़ासत तलाश करने में नाकामी रही है लेकिन ग़लाज़त तो मेरे चारों तरफ़ फैली हुई है। अब जी ये चाहता है कि अपनी रूह और जिस्म के हर ज़र्रे को इस ग़लाज़त से आलूदा करदूँ। मेरी नाक जो इस से पहले ख़ुशबूओं की मुतजस्सिस रही है अब बदबूदार और मुतअफ़्फ़िन चीज़ें सूँघने के लिए बेताब है।

यही वजह है कि मैंने आज अपने पुराने ख़यालात का चुग़ा उतार कर उस मुहल्ले का रुख़ किया है। जहां हर शैय एक पुर-असरार ताफ़्फ़ुन में लिपटी नज़र आती है....... ये दुनिया किस क़दर भयानक तौर पर हसीन है!”

नानक शाही ईंटों का ना-हमवार फ़र्श उस के सामने था। लालटैन की बीमार रोशनी में जावेद ने इस फ़र्श की तरफ़ अपनी बदली हुई नज़रों से देखा तो उसे ऐसा महसूस हुआ कि बहुत सी नंगी औरतें औंधी लेटी हैं जिन की हड्डियां जा बजा उभर रही हैं।

उस ने इरादा किया कि इस फ़र्श को तय करके नुक्कड़ वाले मकान की सीढ़ीयों तक पहुंच जाये और कोठे पर चढ़ जाये मगर म्युनिसिपल कमेटी की लालटैन ग़ैर-मुख़्ततिम टिकटिकी बांधे उस की तरफ़ घूर रही थी। उस के बढ़ने वाले क़दम रुक गए। और वो भुन्ना सा गया। ये लालटैन मुझे क्यों घूर रही है....... ये मेरे रास्ते में क्यों रोड़े अटकाती है।


एक मैली कुचैली औरत इस मकान में रहती थी। उस के पास चार पाँच जवान औरतें थीं जो रात के अंधेरे और दिन के उजाले में यकसाँ भद्दे पन से पेशा क्या करती थीं। ये औरतें गंदी मोरी से ग़लाज़त निकालने वाले पंप की तरह चलती रहती थीं।

जावेद को इस क़हबा ख़ाने के मुतअल्लिक़ उस के एक दोस्त ने बताया था जो हुस्न--इश्क़ की तलाश कई मर्तबा इस क़ब्रिस्तान में दफ़न कर चुका था। जावेद से वो कहा करता था।तुम औरत औरत पुकारते हो....... औरत है कहाँ?.......

मुझे तो अपनी ज़िंदगी में सिर्फ़ एक औरत नज़र आई जो मेरी माँ थी....... मस्तूरात अलबत्ता देखी हैं और उन के मुतअल्लिक़ सुना भी है लेकिन जब कभी औरत की ज़रूरत महसूस हुई है तो मैंने माई जीवां के कोठे को अपना बेहतरीन रफ़ीक़ पाया है....... -ख़ुदा माई जीवां औरत नहीं फ़रिश्ता है....... ख़ुदा उस को ख़िज़र की उम्र अता फ़रमाए।

जावेद माई जीवां और उस के यहां की चार पाँच पेशा करने वाली औरतों के मुतअल्लिक़ बहुत कुछ सुन चुका था। उस को मालूम था कि उन में से एक हर वक़्त गहरे रंग के शीशे वाला चशमा पहने रहती है। इस लिए कि किसी बीमारी के बाइस उस की आँखें ख़राब हो चुकी हैं।

एक काली कलूटी लौंडिया है जो हरवक़्त हंसती रहती है। उस के मुतअल्लिक़ जावेद जब सोचता तो अजीब--ग़रीब तस्वीर उस की आँखों के सामने खिच जाती। मुझे ऐसी ही औरत चाहिए जो हरवक़्त हंसती रहे....... 

ऐसी औरतों को हंसते ही रहना चाहिए....... जब वो हंसती होगी तो उस के काले काले होंट यूं खुलते होंगे। जैसे बदबूदार गंदे पानी में मैले बुलबुले बन बन कर उठते हैं।

माई जीवां के पास एक और छोकरी भी थी। जो बाक़ायदा तौर पर पेशा करने से पहले गलीयों और बाज़ारों में भीक मांगा करती थी। अब एक बरस से वो इस मकान में थी, जहां अठारह बरसों से यही काम हो रहा था। ये अब पोडर और सुर्ख़ी लगाती थी। जावेद उस के मुतअल्लिक़ भी सोचता। उस के सुर्ख़ी लगे गाल बिलकुल दागदार सेबों के मानिंद होंगे....... जो हर कोई ख़रीद सकता है।

इन चार या पाँच औरतों में से जावेद की किसी ख़ास पर नज़र नहीं थी... मुझे कोई भी मिल जाये....... मैं चाहता हूँ कि मुझ से दाम लिए जाएं और खट से एक औरत मेरी बग़ल में थमा दी जाये....... एक सैकेण्ड की देर होनी चाहिए। किसी क़िस्म की गुफ़्तगु हो, कोई नरम--नाज़ुक फ़िक़रा मुँह से निकलने पाए.......


जावेद बेचैन होगया। एक उलझन सी उस के दिमाग़ में पैदा होगई। इरादा उस के अंदर इतनी शिद्दत इख़्तियार कर चुका था। कि अगर पहाड़ भी उस के रास्ते में होते तो वो उन से भिड़ जाता। मगर म्युनिसिपल कमेटी की एक अंधी लालटैन जिस को हवा का एक झोंका बुझा सकता था। उस की राह में बहुत बुरी तरह हाइल होगई थी।

उस की बग़ल में पान वाले की दुकान खुली थी। तेज़ रोशनी में उस की छोटी सी दुकान का अस्बाब इस क़दर नुमायां होरहा था कि बहुत सी चीज़ें नज़र नहीं आती थीं। बिजली के क़ुमक़ुमे के इर्दगिर्द मक्खियां इस अंदाज़ से उड़ रही थीं जैसे उन के पर बोझल होरहे हैं। जावेद ने जब उन की तरफ़ देखा तो उस की उलझन में इज़ाफ़ा होगया।

वो नहीं चाहता था कि उसे कोई सुस्त रफ़्तार चीज़ नज़र आए। उस का कर गुज़रने का इरादा जो वो अपने घर से लेकर यहां आया था इन मक्खियों के साथ साथ बार बार टकराया और वो उस के एहसास से इस क़दर परेशान हुआ कि एक हुल्लड़ सा उस के दिमाग़ में मच गया। मैं डरता हूँ... मैं ख़ौफ़ खाता हूँ... इस लालटैन से मुझे डर लगता है... मेरे तमाम इरादे इस ने तबाह कर दिए हैं....... मैं डरपोक हूँ....... मैं डरपोक हूँ....... लानत हो मुझ पर।

उस ने कई लानतें अपने आप पर भेजीं मगर ख़ातिर-ख़्वाह असर पैदा हुआ। उस के क़दम आगे बढ़ सके। नानक शाही ईंटों का ना-हमवार फ़र्श उस के सामने लेटा रहा।

गरमियों के दिन थे निस्फ़ रात गुज़रने पर भी हवा ठंडी नहीं हुई थी। बाज़ार में आमद--रफ़्त बहुत कम थी। गिनती की सिर्फ़ चंद दुकानें खुली थीं। फ़िज़ा ख़ामोशी में लिपटी हुई थी। अलबत्ता कभी कभी किसी कोठे से हवा के गर्म झोंके के साथ थकी हुई मोसीक़ी का एक टुकड़ा उड़ कर इधर चला आता था और गाड़ी ख़ामोशी में घुल जाता था।

जावेद के सामने यानी माई जीवां के क़हबा ख़ाने से उधर हट कर बड़े बाज़ार में जो दुकानों के ऊपर कोठों की एक क़तार थी। इस में कई जगह ज़िंदगी के आसार नज़र आरहे थे। उस के बिलमुक़ाबिल खिड़की में तेज़ रोशनी के क़ुमक़ुमे के नीचे एक स्याह फ़ाम औरत बैठी पंखा झल रही थी। उस के सर के ऊपर बिजली का बल्ब जल रहा था और ऐसा दिखाई देता था कि सफ़ैद आग का एक गोला है जो पिघल पिघल कर इस वेश्या पर गिर रहा है।

जावेद इस स्याह फ़ाम औरत के मुतअल्लिक़ कुछ ग़ौर करने ही वाला था कि बाज़ार के उस सिरे से जो उस की आँखों से ओझल था। बड़े भद्दे नारों की सूरत में चंद आवाज़ें बुलंद हुईं। थोड़ी देर के बाद तीन आदमी झूमते झामते शराब के नशे में चूर नुमूदार हुए। तीनों के तीनों इस स्याह फ़ाम औरत के कोठे के नीचे पहुंच कर खड़े होगए और जावेद के कानों ने ऐसी ऐसी वाहीयात बातें सुनीं कि उस के तमाम इरादे उस के अंदर सिमट कर रह गए।

एक शराबी ने जिस के क़दम बहुत ज़्यादा लड़खड़ा रहे थे, अपने मूंछों भरे होंटों से बड़ी भद्दी आवाज़ के साथ एक बोसा नोच कर इस काली वेश्या की तरफ़ उछाला और एक ऐसा फ़िक़रा कसा कि जावेद की सारी हिम्मत पस्त होगई।

कोठे पर बर्क़ी लैम्प की रोशनी में इस स्याह फ़ाम औरत के होंट एक आबनूसी क़हक़हे ने वा किए और उस ने शराबी के फ़िक़रे का जवाब यूं दिया जैसे टोकरी भर कूड़ा नीचे फेंक दिया है। नीचे ग़ैर मरबूत क़हक़हों का एक फ़व्वारा सा छूट पड़ा और जावेद के देखते देखते वो तीनों शराबी कोठे पर चढ़े। थोड़ी देर के बाद वो नशिस्त जहां वो काली वेश्या बैठी थी ख़ाली होगई।

जावेद अपने आप से और ज़्यादा मुतनफ़्फ़िर होगया।तुम.......तुम.......तुम क्या हो?....... मैं पूछता हूँ, आख़िर तुम क्या हो....... तुम ये हो, वो हो....... तुम इंसान हो हैवान....... तुम्हारी ज़ेहानत--ज़कावत आज सब धरी की धरी रह गई है। तीन शराबी आते हैं। तुम्हारी तरह उन के दिल में इरादा नहीं होता।


लेकिन बेधड़क इस वेश्या से वाहीयात बातें करते हैं और हंसते, क़हक़हे लगाते कोठे पर चढ़ जाते हैं। गोया पतंग उड़ाने जा रहे हैं... और तुम... और तुम जो कि अच्छी तरह समझते हो कि तुम्हें क्या करना है। यूं बेवक़ूफ़ों की तरह बीच बाज़ार में खड़े हो और एक बेजान लालटैन से ख़ौफ़ खा रहे हो... तुम्हारा इरादा इस क़दर साफ़ और शफ़्फ़ाफ़ है लेकिन फिर भी तुम्हारे क़दम आगे नहीं बढ़ते... लानत हो तुम पर... ”

जावेद के अंदर एक लम्हे के लिए ख़ुद इंतिक़ामी का जज़्बा पैदा हुआ। उस के क़दमों में जुंबिश हुई और मोरी फांद कर वो माई जीवां के कोठे की तरफ़ बढ़ा। क़रीब था कि वो लपक कर सीढ़ीयों के पास पहुंच जाये कि ऊपर से एक आदमी उतरा। जावेद पीछे हिट गया। ग़ैर इरादी तौर पर उस ने अपने आप को छुपाने की कोशिश भी की लेकिन कोठे पर से नीचे आने वाले आदमी ने उस की तरफ़ कोई तवज्जा दी।

उस आदमी ने अपना मलमल का कुर्ता उतार कर कांधे पर धरा था। और दाहिनी कलाई में मोतीए के फूलों का मसला हुआ हार लपेटा था। उस का बदन पसीने से शराबोर होरहा था। 

जावेद के वजूद से बेख़बर वो अपने तहमद को दोनों हाथों से घुटनों तक ऊंचा किए नानक शाही ईंटों का ऊंचा नीचा फ़र्श तय करके मोरी के उस पार चला गया और जावेद ने सोचना शुरू किया कि इस आदमी ने उस की तरफ़ क्यों नहीं देखा।

इस दौरान में उस ने लालटैन की तरफ़ देखा तो वो उसे ये कहती मालूम हुई।तुम कभी अपने मक़सद में कामयाब नहीं हो सकते। इस लिए कि तुम डरपोक हो.......

याद है तुम्हें पिछले बरस बरसात में जब तुम ने इस हिंदू लड़की इंदिरा से अपनी मुहब्बत का इज़हार करना चाहा तो तुम्हारे जिस्म में सकत नहीं रही थी.......कैसे कैसे....... भयानक ख़याल तुम्हारे दिमाग़ में पैदा हुए थे... याद है, तुम ने हिंदू मुस्लिम फ़साद के मुतअल्लिक़ भी सोचा था और डर गए थे।

उस लड़की को तुम ने इसी डर के मारे भुला दिया और हमीदा से तुम इस लिए मुहब्बत कर सके कि वो तुम्हारी रिश्तेदार थी और तुम्हें इस बात का ख़ौफ़ था कि तुम्हारी मुहब्बत को ग़लत नज़रों से देखा जाएगा। कैसे कैसे वहम तुम्हारे ऊपर इन दिनों मुसल्लत थे....... और फिर तुम ने बिलक़ीस से मुहब्बत करना चाही।


मगर उस को सिर्फ़ एक बार देख कर तुम्हारे सब इरादे ग़ायब होगए और तुम्हारा दिल वैसे का वैसा बंजर रहा....... क्या तुम्हें इस बात का एहसास नहीं कि हर बार तुम ने अपनी बेलौस मुहब्बत को आप ही शक की नज़रों से देखा है।


तुम्हें इस बात का कभी पूरी तरह यक़ीन नहीं आया कि तुम्हारी मुहब्बत ठीक फ़ितरी हालत में है... तुम हमेशा डरते हो। उस वक़्त भी तुम ख़ाइफ़ हो यहां घरेलू औरतों और लड़कीयों का सवाल नहीं, हिंदू मुस्लिम फ़साद का भी उस जगह कोई ख़दशा नहीं लेकिन इस के बावजूद तुम कभी इस कोठे पर नहीं जा सको गे....... मैं देखूंगी तुम किस तरह ऊपर जाते हो।

जावेद की रही सही हिम्मत भी पस्त होगई। उस ने महसूस क्या वो वाक़ई प्रलय हद दर्जे का डरपोक है....... बीते हुए वाक़ियात तेज़ हवा में रखी हुई किताब के औराक़ की तरह उस के दिमाग़ में देर तक फड़फड़ाते रहे और पहली मर्तबा उस को इस बात का बड़ी शिद्दत के साथ एहसास हुआ कि उस के वजूद की बुनियादों में एक ऐसी झिजक बैठी हुई है जिस ने उसे काबिल--रहम हद तक डरपोक बना दिया है।

सामने सीढ़ीयों से किसी के उतरने की आवाज़ आई। तो जावेद अपने ख़्यालात से चौंक पड़ा। वही जो गहरे रंग के शीशों वाली ऐनक पहनती थी और जिस के मुतअल्लिक़ वो कई बार अपने दोस्त से सुन चुका था। सीढ़ीयों के इख़्तितामी चबूतरे पर खड़ी थी। जावेद घबरा गया, क़रीब था कि वो आगे सरक जाये कि उस ने बड़े भद्दे तरीक़े पर उसे आवाज़ दी।अजी ठहर जाओ....... मेरी जान घबराओ नहीं... आओ...आओ... ” इस के बाद उस ने पुचकारते हुए कहा।चले आओ... जाओ।“


ये सुन कर जावेद को ऐसा महसूस हुआ कि अगर वो कुछ देर वहां ठहरा तो उस की पीठ में दुम उग आएगी जो वेश्या के पुचकारने पर हिलना शुरू करदेगी। इस एहसास समेत उस ने चबूतरे की तरफ़ घबराई हुई नज़रों से देखा। माई जीवां के क़हबे ख़ाने की इस ऐनक चढ़ी लौंडिया ने कुछ इस तरह अपने बालाई जिस्म को हरकत दी कि जावेद के तमाम इरादे पके हुए बेरों की मानिंद झड़ गए। उस ने फिर पुचकाराआओ....... मेरी जान अब आभी जाओ।

जावेद उठ भागा। मोरी फांद कर जब वो बाज़ार में पहुंचा तो इस ने एक ऐसे क़हक़हे की आवाज़ सुनी जो ख़तरनाक तौर पर भयानक था। वो काँप उठा।जब वो अपने घर के पास पहुंचा तो उस के ख़्यालात के हुजूम में से दफ़अतन एक ख़याल रेंग कर आगे बढ़ा। जिस ने उस को तसकीन दी।जावेद, तुम एक बहुत बड़े गुनाह से बच गए। ख़ुदा का शुक्र बजा लाओ
The End

Thursday, 7 May 2020

Ertugrul: From Pages Of History’s Hero of Pre Ottoman Empire.


Ertugrul (Died-1280) is a very important character from history and actually for whole world. He was the father of OsmanGhazi, founder of Ottoman Empire, which ruled the world for (1299-1922)600 years.
For him, the limits were not an obstacle. He was the first one who tried to live settled life instead of nomad life. He fought for justice. He laid the foundations of Ottoman Empire. He cared a lot for his people, especially, for his brothers in battle


When in the leadership of Genghis Khan a bloodthirsty Mongolian army attacked other areas to spread their empire (Mongol Empire), then on one side, while passing through Eastern Europe they reached Central Europe, while on the other side they proved their power in Siberia, Subcontinent, China and Persian Area very soon.

Mongol armies created a no comparable history of cruelty and oppression. All great empires were bowing their heads to Mongol cruelty. On the other hand, Khuwarzam Empire conquered many areas of Khorasan, Iran, Syria, and Iraq occupied by Seljuks. At that time their power was at its peak.

Genghis Khan named Tornado moved towards Kuwarzam Empire with his all cruelties and tor it into pieces. After the wrath of this Empire, Turk tribes residing there started to migrate in search of a safe place.

Most of the tribes were shepherds and gypsy, wherever they saw greenery and water they placed their tents there and started living. Most of these tribes reached Iran and Syria whilst some of them migrated towards Egypt.

One of these Turk tribes was named Kayi tribe. Kayi tribe was relatively stronger and a little bit more populated than others. This was a warrior tribe and its leader was Suleiman Shah.

Kayi tribe in the leadership of Suleiman Shah left his homeland Khorasan and went to Syria. On his way, while crossing Euphrates River, Suleiman Shah drowned and couldn’t survive.

Suleiman Shah had four sons, Sungurtakun, Gundugdu, Ertugrul, and Dundar. After the death of Suleiman Shah, Kayi tribe got separated. Sungurtakun and Gundugdu went to Ahlat with his families and companions. Remainders choose Ertugrul as their leader because of his valor and bravery.

Ertugrul Ghazi had a brave, fearless and warrior personality.  He knew very well how to defend his tribe that’s why he with his brother and his tribe which was consist of almost 400 families headed towards Asia Minor and entered Seljuk’s Empire.

At that time Seljuk throne belonged to Sultan Ala-ud-Deen Kayqubad, who was very famous because of his justice.

When Ertugrul Ghazi was going to Capital Konya with his tribe to seek refuge under Sultan Ala-ud-Deen, on his way near Ankara Ertugrul Ghazi saw two armies fighting with each other.

Ertugrul Ghazi was familiar with none of the armies, but he whilst watching that one of them is less crowded and the other one is a huge army, he with his smallest army who were totally 420 only, stood with the less crowded ones.

He attacked the opponent army with his these few soldiers suddenly and strongly. Opponent army got scared and thought that they might have got some help from somewhere.

This army whilst it was winning lost the battle. Later on, it came to know that the army whom Ertugrul Ghazi helped was the army of Seljuk Sultan Ala-ud-Deen Kayqubad.

Sultan Ala-ud-Deen was very impressed by Ertugrul Ghazi’s bravery and his tribe was given the area of Karaca Dağ near Ankara in its empire.

It was a hilly area. Kayi tribe settled there. It is said that Sultan Alā ad-Dīn had given this area to the Kayi Tribe so that the borders of this side can be protected from the attacks from Byzantines army.

Sultan allowed them to conquer the areas along the border and add them to the empire. This area was connected with the Byzantine’s Border. In a very short span of time, Ertuğrul impressed everyone with his bravery.
After some time, Sogut city was also allotted to Ertugrul Gazi by the Sultan. The result of these victories was that many other Turkish tribes also joined Ertugrul Ghazi and accepted him as their Chief.

For a landlord to get such power and influence, could have been a matter of concern for Sultan Alā ad-Din but due to internal disorder and rebellions from state chiefs in Asia Minor, the Seljuk Empire was at the last stage of decline.

The Mongolians had occupied a large area while on the other; Christian forces had re-occupied many old Byzantines Provinces.

Besides this, many Seljuk leaders had established autonomous governments۔ The borders areas were usually in a state of war and there was always a threat of attack from Mongols.

In such a situation, instead of getting worried from the victories of Ertuğrul Ghazi, Sultan had a sigh of relief, so he rewarded to Ertuğrul Ghazi.

So, at a location between Yeni City and Bursa, as a deputy of Alā ad-Dīn, when Ertuğrul Ghazi defeated a united army of Mongols and Byzantines, Sultan rewarded this city as well to Ertuğrul and he named the entire state “Sultanooni”.

He also made Ertuğrul Ghazi the commander of his front line army troop. In this vast area (Sultanooni), there were numerous castles besides landless pastures and fertile lands.

But most of the area of Sultanooni was occupied by stubborn leaders, and in order to fully establish his authority, Ertuğrul Ghazi and later on his son Osman Ghazi had to fight for a long period.
Halime Hatun wife of Ertuğrul Ghazi was the daughter of Seljuk Prince Ghiyath ad-Din Mas’ud. Halime Hatun gave birth to three sons, Gunduz, Savcı, and Osman. After the death of Ertuğrul Ghazi, his successor was his youngest son Osman Gazi.

Ertugrul ghazi assessed the states and political conditions of the states well from the surrounding principals. He lived well with his neighbours and lived in peace and comfort in a powerful state.

Ertugrul ghazi, who was very generous, would always help the folks with their fondness. He loved the Christians in the region where he had been ruling for half a century.

After the death of Ertugrul ghazi, his young son Osman ghazi became the reign of the people and tribes. Osman Brain began to spread from the roots of the earth to the earth, which would take the seas, the lands, the continents and the countries among the magnificent branches.

Tomb of Ertugrul

Ertugrul Ghazi was buried in Sougat, his son Osman Ghazi also built a mosque there. The current tomb of Ertugrul Ghazi was re-built in Sultan Abdul Hamid II era. In 1998, Ertugrul Ghazi Mosque was built in his honour in Asbghat, Turkmenistan province.

           
The End

Note: This blog with photos has been prepared with help of Wikipedia and various materials available on net thanks to all original writer over this topic.


Monday, 4 May 2020

Roxelana:Story of a Slave Concubine girl, Who Became Powerful Queen of Ottoman Sultan Suleyman.


Behind every strong man, there is a strong woman.

Crimean Tatars kidnapped her during one of their Crimean–Nogai slave raids in Eastern Europe. Roxelana was the daughter of a priest from Russia.

At age 17 she was captured and taken to Istanbul. There the girl was bought by the great vizier Ibrahim Pasha and delivered in the Sultan's harem. After some time, Roxelana became a concubine and favorite who ascended the throne of Suleiman I.
She became one of the most powerful and influential women in Ottoman history and a prominent and controversial figure during the era known as the Sultanate of Women.

In Istanbul, Valida Hafsa Sultan selected Hurrem as a gift for her son, Suleiman (The Tenth Ottoman Sultan-1494-1566). Hurrem later managed to become the Haseki Sultan or "favourite concubine" of the Ottoman imperial harem.

In 1533 Suleiman married Hurrem in a magnificent formal ceremony, making him the first Ottoman Sultan to wed since Orhan Ghazi (reign 1326–1362), and violating a 200-year-old custom of the Ottoman imperial house according to which sultans were not to marry their concubines.

Never before was a former slave elevated to the status of the sultan's lawful spouse, much to the astonishment of observers in the palace and in the city. Hurrem also received the title Haseki Sultan and became the first consort to hold this title.

Really  a unique love story

She was the first imperial consort to receive the title Haseki Sultan. Hurrem remained in the Sultan's court for the rest of her life and had six children with him, including the future Sultan Selim II. She was the grandmother of Murad III.
Roxelana acquired the kind of outsize influence no woman before her had ever enjoyed in the empire, leaving a lasting imprint on both Ottoman history and European imagination.

Rivalry in Sultan’s Harem

Roxelana unprecedented rise from harem slave to Suleiman's legal wife and "queen of the Ottoman Empire" attracted jealousy and disfavor not only from her rivals in the harem, but also from the general populace. She soon became Suleiman's most prominent consort beside Mahidevran Sultan (also known as Gulbahar).

Roxelana Hurrem was allowed to give birth to more than one son which was a stark violation of the old imperial harem principle, "one concubine mother — one son," which was designed to prevent both the mother's influence over the sultan and the feuds of the blood brothers for the throne.

She was to bear the majority of Suleiman's children. Hurrem gave birth to her first son Mehmed in 1521 (who died in 1543) and then to four more sons, destroying Mahidevran's status as the mother of the sultan's only son.

Suleiman's mother, Hafsa Sultan, partially suppressed the rivalry between the two women.

Never before was a former slave elevated to the status of the sultan's lawful spouse, much to the astonishment of observers in the palace and in the city. Hurrem also received the title Haseki Sultan and became the first consort to hold this title.

Later, Hurrem became the first woman to remain in the Sultan's court for the duration of her life. In the Ottoman imperial family tradition, a sultan's consort was to remain in the harem only until her son came of age (around 16 or 17), after which he would be sent away from the capital to govern a faraway province, and his mother would follow him.


This tradition was called Sancak Beyliği. The consorts were never to return to Istanbul unless their sons succeeded to the throne. In defiance of this age-old custom, Hurrem stayed behind in the harem, even after her sons went to govern the empire's remote provinces.


Killing of Prince Mustafa, his 38-year-old first born son by his first wife.

Hurrem Sultan knew that according to the rules of the harem, if Mustafa became sultan he would have all of her sons killed to prevent them from trying to overthrow him.

During those times, the Ottoman sultans did not hesitate to sacrifice even their loved ones for the unity of the empire and the people – one of the reasons why the Ottoman Empire stood for centuries.

Suleyman had a son, Mustafa, by his first wife, Mahidevran. Mustafa resembled his grandfather Selim I because of his handsome face and bravery, and was expected to succeed Suleyman even though there was no formal succession system in the Ottoman Empire.

Suleyman suspicious about a possible plot against him, and when the sultan acquired evidence about the betrayal of his son, he executed Mustafa. It is said that Hurrem, who wanted her children to sit on the throne after Suleyman, encouraged the Sultan to kill his own son.

After the death of Mustafa, Mahidevran lost her status in the palace as the mother of the heir apparent and moved to Bursa. The new sultan after 1566 put her on a lavish salary. Her rehabilitation had been possible after the death of Hurrem in 1558.

Death Of Roxelana
She died on 15 April 1558 and was buried in a domed mausoleum (turbe) decorated in exquisite Iznik tiles depicting the garden of paradise, perhaps in homage to her smiling and joyful nature.[30] Her mausoleum is adjacent to Suleiman's, a separate and more somber domed structure, at the courtyard of the Suleymaniye Mosque.


The End
Note—This blog has been prepared with help of Wikipedia and various articles and photos available on net. With thanks to original writers.