हिंदू धर्म में भगवान शिव को त्रिदेवों में गिना जाता है। भगवान शिव को कोई रुद्र, कोई भोलेनाथ के नाम से पुकारता है। माना जाता है कि भगवान शिव अपने भक्तों की भक्ति मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं,
और
अपने भक्तों को मनचाहा वरदान देते है। शिव को उनके शिवलिंग और सरल स्वभाव के कारण ही भोलेनाथ कहा जाता है। वहीं अपने सरल स्वभाव से परे भगवान शिव अपने 'रौद्र रूप' और 'क्रोध' के लिए भी जाने जाते हैं
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव को जब भी क्रोध आता है तो उनका तीसरा नेत्र खुल जाता है जिससे संपूर्ण पृथ्वी अस्त-व्यस्त हो जाती है। ऐसा ही एक प्रसंग है भगवान शिव और कामदेव से जुड़ा हुआ, जब कामदेव को महादेव ने भस्म कर दिया था
कथा के अनुसार जब दक्ष प्रजापति ने 'भगवान शिव और अपने पुत्री 'सती' को छोड़कर सारे देवी देवताओं को अपने यज्ञ में आमंत्रित किया तो देवी सती अपने पति महादेव का यह तिरस्कार सहन नहीं कर पाती है। और यज्ञवेदी में कूदकर आत्मदाह(भस्म) कर लेती हैं। जब यह बात भगवान शिव को पता चलती है तो वह अपने तांडव से पूरी सृष्टि में हाहाकार मचा देते हैं।
इससे व्याकुल सारे देवता भगवान शिव को समझाने कैलाश पहुंचते हैं। भगवान शिव देवताओं के समझाने पर शांत तो हो जाते हैं, लेकिन भगवान् शिव परम शांति के लिए गंगा-तमसा के पवित्र संगम पर आकर समाधि में लीन हो जाते हैं।
मां सती के मृत्यु के बाद भगवान शिव समस्त संसार को त्याग देते हैं। उनके बैरागी होने से संसार सही से नहीं चल पाता है। दूसरी तरफ पार्वती के रूप में सती का पुनर्जन्म होता है। इस बार भी पार्वती भगवान शिव से विवाह करने की इच्छा जताती हैं, लेकिन शिव के मन में प्रेम और काम भाव नहीं था, वह पूर्ण रुप से बैरागी हो चुके थे। इस वजह से भगवान विष्णु और उनके साथ सभी देवता संसार के कल्याण के लिए कामदेव से सहायता लेते हैं।
इसके बाद अपने पत्नी रति के साथ कामदेव भगवान शिव के भीतर छुपा हुआ 'काम भाव' जगाने के लिए जुट जाते हैं। कामदेव अपने अनेक प्रयत्नों के द्वारा महादेव को ध्यान से जगाने का प्रयास करते हैं। जिसमें अप्सराओं आदि के नित्य शामिल होते हैं।
पर महादेव भोलेनाथ के आगे यह सब प्रयास विफल हो जाते हैं। अंत में कामदेव स्वयं भोलेनाथ को जगाने के लिए खुद को आम के पेड़ के पीछे छिपा कर शिव जी पर उस पुष्प-वान चलाते हैं। पुष्पबान सीधे जाकर महादेव के हृदय में लगता है और उनकी समाधि टूट जाती है।
अपनी समाधि टूट जाने से भगवान शिव बहुत ही ज्यादा क्रोधित होते हैं, और आम के पेड़ के पीछे छुपे कामदेव को अपनी त्रिनेत्र से जलाकर भस्म कर देते हैं। अपने पति की राख को रति अपने शरीर पर मलकर विलाप करने लगती है। और भगवान शिव से न्याय की मांग भी करती है।
जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ कि संसार के कल्याण के लिए देवताओं के द्वारा बनाई गई यह योजना थी तो, शिवजी ने रति को वचन देते है की कि उनका पति यदुकुल में भगवान श्री कृष्ण के पुत्र के रूप में जन्म लेगा।
बाद में कामदेव ने कृष्ण के पुत्र के प्रद्युम्न के रूप में पैदा होते हैं, और देवी रति से पुनः उनका मिलन भी हो जाता है।
श्रीकृष्ण और कामदेव :पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण को भी कामदेव ने अपने नियंत्रण में लाने का प्रयास किया था। कामदेव ने भगवान श्रीकृष्ण से यह शर्त लगाई कि वे उन्हें भी स्वर्ग की अप्सराओं से भी सुंदर गोपियों के प्रति आसक्त कर देंगे। श्रीकृष्ण ने कामदेव की सभी शर्त स्वीकार की और गोपियों संग रास भी रचाया लेकिन फिर भी उनके मन के भीतर एक भी क्षण के लिए वासना ने घर नहीं किया।
रति ने पाला कामदेव को पुत्र की तरह फिर उनसे कर लिया विवाह :
जब
शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया तब ये देख रति विलाप करने लगी तब जाकर शिव ने कामदेव के पुनः कृष्ण के पुत्र रूप में धरती पर जन्म लेने की बात बताई। शिव के कहे अनुसार भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मणि को प्रद्युम्न नाम का पुत्र हुआ, जो कि कामदेव का ही अवतार था
कहते हैं कि श्रीकृष्ण से दुश्मनी के चलते राक्षस शंभरासुर नवराज प्रद्युम्न का अपहरण करके ले गया और उसे समुद्र में फेंक आया। उस शिशु को एक मछली ने निगल लिया और वो मछली मछुआरों द्वारा पकड़ी जाने के बाद शंभरासुर के रसोई घर में ही पहुंच गई।
तब रति रसोई में काम करने वाली मायावती नाम की एक स्त्री का रूप धारण करके रसोईघर में पहुंच गई। वहां आई मछली को उसने ही काटा और उसमें से निकले बच्चे को मां के समान पाला-पोसा। जब वो बच्चा युवा हुआ तो उसे पूर्व जन्म की सारी याद दिलाई गई। इतना ही नहीं, सारी कलाएं भी सिखाईं तब प्रद्युम्न ने शंभरासुर का वध किया और फिर मायावती को ही अपनी पत्नी रूप में द्वारका ले आए।
भगवान ब्रह्मा ने दिया वरदान: पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय ब्रह्माजी प्रजा वृद्धि की कामना से ध्यानमग्न थे। उसी समय उनके अंश से तेजस्वी पुत्र काम उत्पन्न हुआ और कहने लगा कि मेरे लिए क्या आज्ञा है? तब ब्रह्माजी बोले कि मैंने सृष्टि उत्पन्न करने के लिए प्रजापतियों को उत्पन्न किया था किंतु वे सृष्टि रचना में समर्थ नहीं हुए इसलिए मैं तुम्हें इस कार्य की आज्ञा देता हूं। यह सुन कामदेव वहां से विदा होकर अदृश्य हो गए।
यह देख ब्रह्माजी क्रोधित हुए और शाप दे दिया कि तुमने मेरा वचन नहीं माना इसलिए तुम्हारा जल्दी ही नाश हो जाएगा। शाप सुनकर कामदेव भयभीत हो गए और हाथ जोड़कर ब्रह्माजी के समक्ष क्षमा मांगने लगे।
कामदेव की अनुनय-विनय से ब्रह्माजी प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि मैं तुम्हें रहने के लिए
12 स्थान देता हूं- स्त्रियों के कटाक्ष, केश राशि, जंघा, वक्ष, नाभि, जंघमूल, अधर, कोयल की कूक, चांदनी, वर्षाकाल, चैत्र और वैशाख महीना। इस प्रकार कहकर ब्रह्माजी ने कामदेव को पुष्प का धनुष और 5
बाण देकर विदा कर दिया।
ब्रह्माजी से मिले वरदान की सहायता से कामदेव तीनों लोकों में भ्रमण करने लगे और भूत, पिशाच, गंधर्व, यक्ष सभी को काम ने अपने वशीभूत कर लिया। फिर मछली का ध्वज लगाकर कामदेव अपनी पत्नी रति के साथ संसार के सभी प्राणियों को अपने वशीभूत करने बढ़े।
इसी क्रम में वे शिवजी के पास पहुंचे। भगवान शिव तब तपस्या में लीन थे तभी कामदेव छोटे से जंतु का सूक्ष्म रूप लेकर कर्ण के छिद्र से भगवान शिव के शरीर में प्रवेश कर गए। इससे शिवजी का मन चंचल हो गया।
उन्होंने विचार धारण कर चित्त में देखा कि कामदेव उनके शरीर में स्थित है। इतने में ही इच्छा शरीर धारण करने वाले कामदेव भगवान शिव के शरीर से बाहर आ गए और आम के एक वृक्ष के नीचे जाकर खड़े हो गए। फिर उन्होंने शिवजी पर मोहन नामक बाण छोड़ा, जो शिवजी के हृदय पर जाकर लगा। इससे क्रोधित हो शिवजी ने अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से उन्हें भस्म कर दिया।
कामदेव को जलता देख उनकी पत्नी रति विलाप करने लगी। तभी आकाशवाणी हुई जिसमें रति को रुदन न करने और भगवान शिव की आराधना करने को कहा गया। फिर रति ने श्रद्धापूर्वक भगवान शंकर की प्रार्थना की।
रति की प्रार्थना से प्रसन्न हो शिवजी ने कहा कि कामदेव ने मेरे मन को विचलित किया था इसलिए मैंने इन्हें भस्म कर दिया। अब अगर ये अनंग रूप में महाकाल वन में जाकर शिवलिंग की आराधना करेंगे तो इनका उद्धार होगा।
तब कामदेव महाकाल वन आए और उन्होंने पूर्ण भक्तिभाव से शिवलिंग की उपासना की। उपासना के फलस्वरूप शिवजी ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम अनंग, शरीर के बिन रहकर भी समर्थ रहोगे। कृष्णावतार के समय तुम रुक्मणि के गर्भ से जन्म लोगे और तुम्हारा नाम प्रद्युम्न होगा।
The End
Note:--The above story of kamdeva and Lord Shiva has been
posted with help of Wikipedia and various stories available on net, With thanks.