गुरुद्त्त
और वहीदा रहमान की प्रेम कहानी- मौत पर खत्म हुई:--जानें वो कैसे लोग थे जिनके प्यार
को प्यार मिला
जानें वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला:---
गुरुद्त्त और वहीदा रहमान की प्रेम कहानी- मौत पर खत्म, कोई नहीं जान पाया मौत का राज़
ये दुनिया – जो मिल भी जाती तो क्या था. इसी के मसले उन्हें पाग़ल किए थे. उनकी ‘प्यासा’, ‘काग़ज के फूल’ कल्ट हैं. वे 39 की उम्र में मर गए. शराब के साथ नींद की गोलियां ले ली. उन्हें छोड़ किसी को नहीं पता जान क्यों दी?
जानें वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला...इस लाइन को सुनते ही जहन में गुरुदत्त की फिल्म 'प्यासा' का नाम है। 1957 में आई प्यासा में एक संघषर्शील कवि को खूबसूरती के साथ पेश किया गया था। फिल्म में लीड रोल में थे गुरुदत्त, वहीदा रहमान और माला सिन्हा। गुरु दत्त भारतीय सिनेमा के ऐसे दिग्गज अभिनेता और डायरेक्टर थे जो कि फिल्मों में खामोशी भरे सीन को भी लाइट और कैमरा की मदद से सफल बना देते थे।
अपनी विशेष फिल्म स्टाइल के लिए नाम और शोहरत कमाने वाले गुरुदत्त ने ऐसा भी समय देखा है जब वह दाने-दाने को मोहताज थे।
गुरुदत्त ने वहीदा रहमान से प्रेम किया। गुरुदत्त ने ही उन्हें 'सीआईडी' में पहला ब्रेक दिया। इस फिल्म से ही गुरुदत्त वहीदा को प्यार करने लगे। पहली नजर में ही उन्हें वहीदा
"चौदहवीं का चांद" नजर आईँ। गीता दत्त उनकी पत्नी थी। इस प्रेम कहानी का असर उनके परिवार पर भी पड़ा।
परिवार टूटने के बावजूद गुरुदत्त प्रेम में डूबते गए। बेहद संवेदनशील गुरुद्त्त के लिए अपने प्यार को पाना मुश्किल था। इन स्थितियों ने उन्हें अकेलेपन और गहरी उदासी की तरफ धकेल दिया। गुरुदत्त ने आत्महत्या की। कहा जाता है कि इस आत्महत्या के पीछे कहीं न कहीं उनके प्रेम का सफल न होना भी है।
'तीसरी कसम' में अभिनय के दौरान निर्देशक द्वारा कट कहने पर जिस तरह उन्होंने पान का बीड़ा पेश करती हुई वहीदा रहमान की उंगलियों को काट लिया था, उसकी उन दिनों पर्याप्त चर्चा थी।
गुरु दत्त को दो बार प्यार मिला लेकिन दोनों ही बार उनका प्यार मुकम्मल नहीं हुआ। गुरु दत्त का पहला प्यार गीता रॉय थीं। जो एक जमाने में बड़ी गायिका हुआ करती थीं। गुरु दत्त की पहली फिल्म 'बाजी' के दौरान ही उनकी मुलाकात गीता से हुई थी।
यही से दोनों के बीच प्यार हुआ था। 3
साल तक एक-दूसरे को डेट करने के बाद दोनों ने शादी रचाई। गुरु और गीता के तीन बच्चे भी हुए लेकिन शादी के सिर्फ चार साल बाद ही दोनों के बीच झगड़े होने लगे। दोनों के रिश्ते में दरार आ गई। दोनों के रिश्ते में आई दरार की वजह अभिनेत्री वहीदा रहमान को माना जाता था और हर जगह इसी के चर्चे थे।
गुरुद्त्त और वहीदा रहमान की प्रेम कहानी
50 और 60 के दशक में उनका नाम हर किसी की जुबान पर था।
अदब, अदा और अदाकारी ने मिलकर वहीदा को बॉलीवुड की सबसे खूबसूरत हीरोइन बना दिया।
गुरु दत्त ने अभिनेत्री वहीदा रहमान को फिल्म 'सीआईडी' से लॉन्च किया था। गुरुदत्त की कई फिल्मों में वहीदा ने काम किया और कुछ फिल्मों में दोनों ने साथ में भी काम किया। इस दौरान गुरु दत्त वहीदा रहमान को चाहने लगे थे। उस वक्त वहीदा और गुरु के इश्क के चर्चे हर अखबार और मैगजीन में छाये हुए थे। लेकिन उनकी ये मोहब्बत भी मुकम्मल नहीं हो पाई।
वहीदा उन दिनों तेलुगु सिनेमा में नाम कमा रहीं थीं। एक फिल्म में उन्हें गुरु दत्त ने देखा और मुंबई लाने का फैसला कर लिया। अपने प्रोडक्शन की फिल्म सीआईडी में गुरु दत्त ने वहीदा को पहला मौका दिया। इसके बाद साल
1957 में फिल्म प्यासा में गुरु दत्त और वहीदा की जोड़ी नजर आई। इस फिल्म ने हिंदी सिनेमा एक नई क्रांति ला दी।
1953 में गुरु दत्त ने गीता दत्त ने शादी कर ली लेकिन कुछ साल बाद उनकी जिंदगी में वहीदा रहमान आईं। प्यासा बनने के दौरान गीता और गुरु दत्त बीच दूरियां आनी शुरू हो गईं। वहीदा को लेकर गुरु दत्त और गीता दत्त में आए दिन झगड़े होते रहते थे। साल 1957 में गुरु दत्त और गीता दत्त की शादीशुदा जिंदगी में दरार आ गई और दोनों अलग-अलग रहने लगे।
अब वो वक्त आ गया था कि वहीदा के बिना किसी फिल्म की कल्पना भी नहीं कर पाते थे गुरु दत्त । इस बात का जिक्र उनके दोस्त अबरार अल्बी ने 10 ईयर्स विद गुरु दत्त नाम की किताब में किया है।
सफल
करियर, दुखद निजी जिंदगी
गुरू दत्त और वहीदा के रिश्तों पर सिर्फ गीता दत्त को ही ऐतराज नहीं था। वहीदा के परिवार के लोग भी नहीं चाहते थे कि वो गुरू दत्त से शादी करें। गुरू दत्त हिंदू थे और वहींदा मुस्लिम, ऐसे में वहीदा को भी इस रिश्ते का कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा था। अपना घर बचाने के लिए
1963 में गुरू दत्त ने वहीदा का साथ छोड़ दिया।
तो वहीं गुरु और वहीदा के अफेयर की खबर सुनकर गीता अपने बच्चों को लेकर गुरु दत्त से अलग होकर दूसरे घर में जाकर रहने लगीं। जिसके बाद उन्होंने शराब, सिगरेट और नींद की गोली को अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा बना लिया। गुरु दत्त अकेले हो गए थे और वहीदा ने भी उनका साथ छोड़ दिया था। बच्चों से मिलने की तड़प और अकेलापन गुरु तो अंदर ही अंदर खा रहा था।
पत्नी-बच्चों
से
दूर
रहना
और
वहीदा
का
साथ
छूट
जाना
गुरु
दत्त
से
ये
सब
बर्दाश्त
नहीं
होता
था।
सहयोगियों
के
सामने
बार
बार
वो
जान
देने
की
बात
करते
थे।
गुरु
दत्त
अपनी
ढाई
साल
की
बेटी
से
मिलना
चाह
रहे
थे
और
गीता
उसे
उनके
पास
भेजने
के
लिए
तैयार
नहीं
थीं।
उन्होंने
नशे
की
हालत
में
ही
अपनी
पत्नी
को
अल्टीमेटम
दिया,
बेटी
को
भेजो
वर्ना
तुम
मेरा
मरा
हुआ
शरीर
देखोगी।
अपने काम को लेकर गरु दत्त निर्ममता की किसी भी हद तक जा
सकते थे. इसका ही उदाहरण रहा जब उन्होंने बीमार ए.स.डी बर्मन से फिल्म छीनकर ओ.पी.
नैय्यर को दे दी. हुआ ये कि गुरु दत्त ‘बहारें फिर भी आएंगी’
नाम की एक फिल्म बना रहे
थे. इस फिल्म के म्यूज़िक के लिए उन्होंने एस. डी. बर्मन को चुना.
एस. डी. के साथ वो पहले भी कई फिल्मों में काम कर चुके
थे. और उन फिल्मों का म्यूज़िक भी खासा हिट रहा था. फिल्म की मेकिंग के दौरान एस. डी.
बीमार हो गए. गुरु दत्त ने उन्हें फिल्म से निकालकर उनकी जगह ओ.पी. नय्यर को साइन कर
लिया.
ओ.पी.
नय्यर और गुरु दत्त का एक और किस्सा बड़ा मशहूर रहा है. फिल्म ‘बाज़’
का
म्यूज़िक गुरु दत्त ने ओ.पी. नय्यर से करवाया था. फिल्म पिट गई. गुरु दत्त की हालत
इतनी खराब हो गई कि वो किसी भी आर्टिस्ट का पेमेंट तक नहीं कर पा रहे थे.
ऐसे में नय्यर उनके पास आए और अपना पैसा मांगने लगे. नय्यर
की पहली फिल्म भी नहीं चली थी और इस फिल्म के बाद तो वो टूट ही गए थे. अब वो बंबई से
वापस अपने घर चंडीगढ़ लौट जाना चाहते थे.
गुरु दत्त के पास पैसे तो थे नहीं, इसलिए उन्होंने नय्यर
से वादा किया कि अपनी अने वाली फिल्मों में काम देंगे. नय्यर मान गए. इसके बाद गुरु
दत्त ने नय्यर को ‘आर पार’ और
‘सीआईडी’ जैसी
फिल्मों मे म्यूज़िक करने का मौका दिया, जो काफी सफल रहीं.
‘सीआईडी’
के साथ गुरु दत्त ने सिर्फ
ओ.पी. से किया वादा ही पूरा नहीं किया था. इस फिल्म में उन्होंने ने देव आनंद से
10 साल पहले की उस ड्रिंक्स वाली शाम को किया वादा भी निभाया. गुरु दत्त ने ‘बाज़ी’
में देव आनंद को हीरो लिया.
दोस्ती के इस किस्से में एक बात का ज़िक्र ट्रिविया के
तौर पर किया जा सकता है. वो ये कि गुरु दत्त ‘सीआईडी’के
डायरेक्टर नहीं, प्रोड्यूसर थे जबकि वादा उस फिल्म में हीरो बनाने का था जिसे गुरु
दत्त डायरेक्ट करते.
एक के बाद एक हिट हो
रही फिल्मों ने गुरु दत्त को सफलता का आदी बना दिया था. वो ‘फ्लॉप’ शब्द के मायने भूल
गए थे. लेकिन उन्हें जल्द ही मालूम चल गया. और वो इस असफलता से कभी उबर नहीं पाए. फिल्म
थी ‘कागज़ के फूल’ (1959). ये फिल्म इतनी सुंदर बन रही थी कि सिनेमैटोग्रफर
मूर्ति ने पहले आठ सीन के बाद ही कह दिया कि फिल्म तो कविता जैसी बन रही है लेकिन कोई
देखेगा नहीं. जवाब में गुरु दत्त ने कहा,
‘…ये
फिल्म मैं पब्लिक के लिए नहीं, अपने लिए बना रहा हूं…’
हालांकि यही बात गुरु दत्त ने फिल्म ‘प्यासा’
की मेकिंग के दौरान भी कही
थी. ‘कागज़ के फूल’ बन
तो गई लेकिन जनता को पसंद नहीं आई. फिल्म बुरी तरह पिट गई. गुरु दत्त एकदम टूट गए.
उन्होंने तय कर लिया कि आगे से कोई फिल्म डायरेक्ट नहीं करेंगे.
गीता
अपने समय की मशहूर सिंगर्स में गिनी जाती थीं.
उन्होंने गुरु दत्त (और उस समय के दीगर डायरेक्टर्स के लिए भी ) की कई फिल्मों
में गाने गाए थे. लेकिन अपनी शर्तों पर. ‘साहब बीवी और गुलाम’ (1962) में उन्हें वहीदा
रहमान की आवाज़ बनने का ऑफर दिया गया था. उन्होंने इससे साफ मना कर दिया. कारण स्पष्ट
था. बाद में वहीदा की आवाज़ आशा भोसले ने दी, जबकि गीता ने फिल्म में मीना कुमारी के
लिए गाने गए.
‘कागज़
के फूल’ के
बाद गुरु दत्त फिल्में प्रोड्यूस करने लगे. ‘साहब बीवी और गुलाम’
के अलावा ‘चौदहवीं का चांद’
जैसी फिल्में उन्हीं के प्रोडक्शन
हाउस से निकलीं. ‘बहारें फिर भी आएंगी’ (एक्टर-प्रोड्यूसर) वो आखिरी फिल्म रही जिससे वो किसी
भी तरह जुड़े थे. लेकिन इस वक्त तक वो अपनी पूरी ऊर्जा फिल्मों को दे नहीं पा रहे थे.
करियर ढलान पर था और निजी जीवन में भूचाल आया हुआ था.
चीज़ें हाथ से फिसलने लगीं तो गीता दत्त बच्चों को लेकर
मायके चली गईं. घर गुरु दत्त को काटने को दौड़ने लगा. उन्होंने घर बेच दिया और किराए
से रहने लगे. इन्हीं दिनों उनके यार भी उनसे दूर होने लगे. अबरार दक्षिण के सिनेमा
में काम करने चले गए.
और फिर वो मनहूस दिन भी आया जब गुरु दत्त ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
गुरु
10 अक्टूबर को अपने घर में मृत पाए गए थे। उसी दिन उन्होंने भाई के साथ बच्चों के लिए शॉपिंग की। पतंग उड़ाई और फिर वह लेखक अबरार अल्वी से भी मिले। अबरार से उन्होंने फिल्म 'बहारें फिर भी आएंगी' को लेकर चर्चा की।
जिस रात के काले अंधेरों के आगोश में गुरुदत्त मौत की नींद सो गए थे उस रात उन्होंने जमकर शराब पी थी, इतनी उन्होंने पहले कभी नहीं पी थी। गीता (उनकी पत्नी, जिनके साथ वह उनके अलगाव का दौर था) के साथ उनकी नोंकझोंक हो गई थी।
गीता ने उनकी बिटिया को उनके साथ कुछ वक्त बिताने के लिए भेजने से इंकार कर दिया था। गुरुदत्त अपनी पत्नी को बार–बार फोन कर रहे थे कि वह उन्हें अपनी बेटी से मिलने दे लेकिन गीता फोन नहीं उठा रही थी।
हर फोन के साथ गुरुदत्त का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। अंत में उन्होंने अल्टीमेटम, या फिर कहें कि यह संकेत देते हुए कहा,
'बच्ची को भेज दो या फिर तुम मेरा मरा मुंह देखो।' इसके बाद उन्होंने करीब एक बजे खाना खाया और ऐसे सोए कि दुबारा नहीं उठे । उनकी मौत उनके कमरे में हुई।
ये उनका आखिरी प्रोजेक्ट था, जिसे धर्मेंद्र के साथ पूरा किया जा चुका था। इसी फिल्म की बातचीत के दौरान अबरार अलवी से गुरु दत्त ने कहा,
'यार, अबरार अगर तुम बुरा न मानो तो मैं अब रिटायर होना चाहता हूं।'
फिर अगली सुबह गुरु दत्त ने आंखें नहीं खोली। फिल्मों के लेखक अबरार अल्वी ने अपनी किताब 'टेन ईयर्स विद गुरु दत्त' में बताते हैं कि घटना की जानकारी पर जब वो आर्क रॉयल पहुंचे तो उन्होंने देखा, 'गुरु दत्त अपने कुर्ते पायजामे में शालीनाता से लेटे हुए थे।
बिस्तर के बगल में एक छोटी सी शीशी में गुलाबी रंग का तरल पदार्थ था।' यह देखते ही अबरार के मुंह से निकला, 'आह! मृत्यु नहीं आत्महत्या! इन्होंने अपने आपको मार डाला।' गुरु दत्त ने हिन्दी सिनेमा को 'कागज के फूल', 'प्यासा', 'मिस्टर एंड मिसेज 55', 'बाज', 'जाल', 'बाजी', 'आर पार', 'चौंदवीं का चांद', 'साहिब बीबी और गुलाम' जैसी फिल्में दी थीं।
दुनिया मिल जाने के हासिल को भी सिफर कहने की जुर्रत करने वाले गुरु दत्त अपनी प्यास दबाए जा चुके थे. विरक्ति के उस भाव के साथ कि वो रहें या न रहें, ‘बहारें तो फिर भी आएंगी.
'प्यासा' के लिए गुरुदत्त कोठे पर दे आए थे नोटों की गड्डी
निर्देशक अबरार अल्वी फिल्म प्यासा की कहानी लिख रहे थे, तो उनको फिल्म में एक संघर्षरत कवि की कहानी पर आधारित लिखना था जो देश की आजादी के बाद अपने काम को लोगों के बीच पॉपुलर बनाना चाहता है। फिल्म 'प्यासा' के शुरुआती दिनों में यह फैसला लिया गया था कि फिल्म की कहानी किसी कोठे पर आधारित होगी। लेकिन इसमें एक दिक्कत थी, गुरु दत्त कभी कोठे पर नहीं गए थे।
इस फिल्म के लिए जब कोठे पर गए तो वहां का नजारा देखकर हैरान रह गए। यहां एक नाचने वाली लड़की तकरीबन सात महीनों की गर्भवती थी। फिर भी वहां मौजूद लोग उसे नचाए जा रहे थे। ये मंजर देख गुरु दत्त वहां से उठे और अपने दोस्तों से कहा, 'चलों यहां से।' जाते समय वो नोटों की गड्डी वहीं रखकर बाहर निकल आए। इन सबको देखने के बाद दत्त ने कहा कि उन्हें 'साहिर' के गाने के लिए चकले का सीन मिल गया और वो गाना था 'जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां है'।
चौदहवीं का चांद हो, या आफताब हो
जो भी हो तुम खुदा कि कसम, लाजवाब हो।
मोहम्मद रफी की आवाज में ये गाना जब भी कानों में पड़ता है तो दिमाग में सीधे खूबसूरत अदाकारा वहीदा रहमान की तस्वीर उभर कर आ जाती है। सच में इस गाने को देखकर यही लगता है इसे सिर्फ और सिर्फ वहीदा रहमान के लिए लिखा गया।
Jaane woh kaise log the jinke pyar ko pyar mila
Jaane woh kaise log the jinke pyar ko pyar mila
Khusioyonki manzil dhoondi to gham ki gard mili
Chahat ke nagme chahe to, aahen shard mili
Dil ke bojh ko doona kar gaya, jo gam saar mila
Bichhad gayaa har santhi de kar pal do pal ka santh
Kisko phursat hai jo thaame deewane ka haath
Humko apna saaya tak aqsar bezaar mila
Humne to jab kaliyaan maangi kaaton ka haar mila
Isko hi jeena kehte hain to yunhi ji lenge
Uf na karenge lab see lenge aansoo pee lenge
Gham se ab ghabraana kaisa gham sau baar mila
Humne to jab kaliyaan maangi kaaton ka haar mila