हरियाणा के हिसार किले में स्थित गूजरी महल आज भी बादशाह सुल्तान फिरोज शाह तुगलक और उसकी प्रेमिका गूजरी की अमर प्रेम कथा गुनगुनाता है़ गूजरी महल भले ही आगरा के ताजमहल जैसी भव्य इमारत न हो, लेकिन दोनों के निर्माण का आधार प्रेम की धरोहर ही था़ ।
1354 में फिरोज शाह तुगलक ने अपनी प्रेमिका गूजरी के प्रेम में हिसार का गूजरी महल बनवाया।गूजरी महलजो महज दो साल में बन कर तैयार हो गया़ गूजरी महल का निर्माण फिरोज शाह तुगलक ने गूजरी के रहने के लिए कराया था, जो खूबसूरत काले पत्थरों से बनाया गया था़ सुल्तान फिरोज शाह तुगलक और गूजरी की प्रेमगाथा बड़ी रोचक है।
हिसार का गूजरी महल
गूजरी महल की स्थापना के लिए बादशाह फिरोजशाह तुगलक ने किला बनवाया, यमुना नदी से हिसार तक नहर लाया और एक नगर बसाया। किले में आज भी दीवान-ए-आम, बारादरी और गूजरी महल मौजूद हैं। दीवान-ए-आम के पूर्वी हिस्से में स्थित कोठी फिरोजशाह तुगलक का महल बताई जाती है।
इस इमारत का निचला हिस्सा अब भी महल-सा दिखता है। फिरोजशाह तुगलक के महल की बंगल में लाट की मस्जिद है। अस्सी फीट लंबे और 29 फीट चौड़े इस दीवान-ए-आम में सुल्तान कचहरी लगाता था। गूजरी महल के खंडहर इस बात की निशानदेही करते हैं कि कभी यह विशाल और भव्य इमारत रही होगी।
कब और कैसे फ़िरोज़ को गुजरी से प्यार हुआ?
सुल्तान फिरोजशाह तुगलक और गूजरी की प्रेमगाथा बड़ी रोचक है। हिसार जनपद के ग्रामीण इस प्रेमकथा को इकतारे पर सुनते नहीं थकते। यह प्रेम कहानी लोकगीतों में मुखरित हुई है। फिरोजशाह तुगलक दिल्ली का सम्राट बनने से पहले शहजादा फिरोज मलिक के नाम से जाने जाते थे।
फ़िरोज़ ने गुजरी से वादा किया था कि राजा बनने के बाद वह उनके लिए महल बनाकर देगे. साथ ही उनके ज़िले में सारी सुविधाओं का इंतज़ाम करेंगे. आइए जानते हैं कब और कैसे फ़िरोज़ को गुजरी से प्यार हुआ और उसने किस वादे के चलते गुज़री महल को बनवा के दिया।
पहली नज़र में ही फ़िरोज़ अपना दिल दे बैठा था
बात उस ज़माने की है, जब दिल्ली के तख़्त पर मुहम्मद बिन तुग़लक़ (1325-51) काबिज थाउ।सके उत्तराधिकारी के रूप में फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ख़ुद को तैयार कर रहा था। शिकार करना उसका पसंदीदा शौक था। एक दिन वह हिसार के घने जंगलों में अपने शिकार का इंतज़ार कर रहा था। तभी उसकी नज़र एक चेहरे पर जा रुकी।
यह चेहरा गुज्जर जाति की एक युवती का था, जोकि जंगल में मौजूद कुछ लोगों को दूध बेच रही थी । फ़िरोज़ काफ़ी देर तक टकटकी लगाकर उसे देखता रहा. वो उसकी सुंदरता पर मोहित हो चुका था। कहते हैं इस पहली नज़र में ही फ़िरोज़ गुजरी को अपना दिल दे बैठा था ।
उस दिन तो फ़िरोज़ गुजरी से बिना बात किए लौट आया. मगर उसका चेहरा उसकी नज़रों से हट नहीं रहा था । उसने तुरंत अपने सैनिकों से उस युवती का पता लगाने को कहा अप । ने मालिक के आदेश पर सैनिक दोबारा हिसार के जंगलों में पहुंचे और युवती के बारे में जानकारी ली ।
...और इस
तरह
शुरू
हुई
गुजरी-फ़िरोज़ की प्रेम
कहानी
पीर के
डेरे
पर
करते
थे
मुलाकात...
शिकार के बहाने रानी से मिलते थे बादशाह
घने जंगल में एक कच्ची बस्ती थी, जिसके किनारे पर एक डेरा था। यह डेरा भूले-बिसरे मुसाफिरों की शरणस्थली थी। पीर के इस डेरे पर गुजरी रोजाना दूध देने आती थी और अचानक दोनों की मुलाकात हुई। फिर क्या था, मौका पाते ही शहजादे, शिकार के बहाने डेरे पर पहुंच जाते था।
वह रोज़ शिकार के लिए वहां जाता । वैसे शिकार तो एक बहाना था। दरअसल, वह गुजरी को देखना चाहता था । उसे अपने दिल की बात कहना चाहता था । जल्द ही उसकी मुलाकात गुजरी से हुई । उसने देर न करते हुए गुजरी से अपने दिल की बात कह दी । फ़िरोज़ के लिए अच्छी बात यह रही कि गुजरी ने उसके प्यार को स्वीकार कर लिया । इस तरह शुरू हुई दोनों की प्रेम कहानी।
दिल्ली के तख़्त पर बैठने के बाद निभाया अपना वादा
फ़िरोज़ ने गुजरी से वादा किया था कि राजा बनने के बाद वह उनके लिए महल बनाकर देगे. साथ ही उनके ज़िले में सारी सुविधाओं का इंतज़ाम करेंगे. मगर उसने वादा किया कि वह उसकी इस इच्छा को पूरी ज़रूर करेगा ।
1351 में फ़िरोज़ जैसे ही दिल्ली के तख्त पर बैठा । उसने बिना देर करते हुए हिसार को पूरी तरह से बदल कर रख दियाउ । सने न सिर्फ़ वहां बुनियादी सुविधाओं का इंतज़ाम किया. बल्कि अपनी गुजरी के लिए एक शानदार महल तैयार करवाया, जिसे 'हिसार-ए-फ़िरोज़ा' के नाम से ख़्याति मिली ।
गुजरी महल के ठीक पास फ़िरोज़ ने अपने लिए भी एक किला बनवाया, जिसे हिसार का किला कहा गया ।इस वादे के पूरे होते ही गुजरी और फ़िरोज़ विवाह के बंधन में बंधे और हमेशा के लिए एक हो गए । इस तरह यह प्रेम कहानी इतिहास के पन्नों में अमर हो गई ।
काबिले-गौर है कि हिसार को फिरोजशाह तुगलक के वक्त से हिसार कहा जाने लगा, क्योंकि उसने यहां हिसार-ए-फिरोजा नामक किला बनवाया था। 'हिसार' फारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है 'किला'। इससे पहले इस जगह को 'इसुयार' कहा जाता था। अब गूजरी महल खंडहर हो चुका है।
सुनने की फ़ुर्सत हो तो आवाज़ है पत्थरों में,
उजड़ी हुई बस्तियों में आबादियां बोलती हैं।..''
The End
Disclaimer–Blogger has prepared this short write up with help of
materials and images available on net. Images on this blog are posted to make
the text interesting. The materials and images are the copy right of original
writers. The copyright of these materials are with the respective
owners. Blogger is thankful to original writers.