29 मई,
1453 को उस्मानी साम्राज्य ने कुस्तुन्तुनिया पर कब्ज़ा कर लिया था. यह घटना ऐतिहासिक इसलिए है क्योंकि इससे रोमन साम्राज्य का अंत हो गया. इस घटना के बाद इस्लाम का यूरोप में प्रवेश हो गया.
क़ुस्तुंतुनिया – कांस्टैंटिनोपुल – इस्तानबुल तुर्की का तारीख़ी शहर है। यह बासफोरस और मारमरा के दहाने पर मौजूद है। यह एक तारीख़ी शहर है जो रोमन, बाइजेंटाइन, लैतिन, एवं उस्मानी साम्राज्य की राजधानी थी। इसको लेकर इसाइयों एवं मुसलमानों में भयंकर संघर्ष हुआ।
कुस्तुन्तुनिया की स्थापना रोमन सम्राट् कांस्टैंटाइन ने 328 ई. में प्राचीन नगर बाईज़ैंटियम को विस्तृत रूप देकर की थी। रोमन साम्राज्य की राजधानी के रूप में इसका आरंभ 11 मई 330 ई. को हुआ था।
कहते
हैं कि जब यूनानी साम्राज्य का विस्तार हो रहा था तो प्राचीन यूनान के नायक बाइज़ैस ने मेगारा नगर को बाइज़ैन्टियम के रूप में स्थापित किया था. यह बात 667 ईसापूर्व की है. उसके बाद जब कॉंस्टैन्टीन राजा आए तो इसका नाम कॉंस्टैंटिनोपल रख दिया गया जिसे हम कुस्तुन्तुनिया के रूप में पढ़ते आए हैं. यही आज का इस्ताम्बुल शहर है.
क़ुस्तुन्तुनिया कभी हार का मुंह ना देखने वाला शहर माना जाता था जो आज भी मूल्यवान कलात्मक‚ साहित्यिक और ऐतिहासिक धरोहरों से मालामाल समझा जाता है, 12 मीटर उंची दिवारों से घिरे इस शहर को भेदना उस समय किसी के लिए मुमकिन नही था।
शहर कस्तुनतुनिया है (आज का इस्तांबुल) और दीवारों के बाहर उस्मानी फौज (तुर्क सेना) आखिरी हल्ला बोलने की तैयारी कर रही है. उस्मानी तोपों को शहर की दीवार पर गोले बरसाते हुए 476 दिन बीत चुके हैं. कमांडरों ने ख़ास तौर पर तीन जगहों पर तोपों का मुंह केंद्रित रखकर दीवार को जबरदस्त नुक़सान पहुंचाया है.
उस्मानीयों का दौर आया जो बड़ी तेज़ी से युरोप मे घुसे जा रहे थे पर उनके रास्ते के बीच कुस्तुन्तुनिया पड़ रहा था जिसे जीतना बहुत ज़रुरी था. सुलतान बायज़ीद I के दौर मे 1390
से 1402 के इस शहर का मुहासरा हुआ पर तैमुर की वजह कर नाकामयाबी हाथ लगी, फिर 1411
मे हमला किया गया और एक बार फिर नाकामयाबी हाथ लगी , 1422 सुलतान मुराद II ने एक बार फिर मुहासरा किया, फिर नाकामयाबी हाथ लगी, वापस लौटना पड़ा …
नौजवान सुल्तान मोहम्मद फतेह 29 मई 1453 को कुस्तुनतुनिया इस्तांबुल फतह किया
21 साल के उस्मानी सुल्तान मोहम्मद सानी अप्रत्याशित रूप से अपने फौज के अगले मोर्चे पर पहुंच गए हैं. उन्होंने ये फैसला कर लिया है कि आखिरी हमला दीवार के ‘मैसोटीक्योन’ कहलाने वाले बीच के हिस्से पर किया जाएगा जहां कम से कम नौ दरारें पड़ चुकी हैं और खंदक का बड़ा हिस्सा पाट दिया गया है.
सिर पर भारी पग्गड़ बांधे और स्वर्ण जड़ित लिबास पहने सुल्तान ने अपने सैनिकों को तुर्की जबान में संबोधित किया, ‘मेरे दोस्तों और बच्चों, आगे बढ़ो, अपने आप को साबित करने का लम्हा आ गया है.’
इसके साथ ही नक्कारों, रणभेरी, तबलों और बिगुल के शोर ने रात की चुप्पी को तार-तार कर दिया, लेकिन इस कान फाड़ते शोर में भी उस्मानी फौज के गगनभेदी नारे साफ सुनाई दे रहे थे जिन्होंने किले की दीवार के कमजोर हिस्सों पर हल्ला बोल दिया था.
कस्तुनतुनिया पर तुर्कों की जीत
उस्मानी झंडा लहरा रहा था…
एक तरफ ज़मीन पर और दूसरी तरफ़ समुद्र में खड़े जहाजों पर तैनात तोपों के दहानों ने आग बरसाना शुरू कर दिया. इस हमले के लिए बांजिटिनी सैनिक तैयार खड़े थे. लेकिन पिछले डेढ़ महीनों की घेराबंदी ने उनके हौंसले पस्त कर दिए थे.
बहुत से शहरी भी मदद के लिए दीवार तक आ पहुंचे थे और उन्होंने पत्थर उठा-उठाकर नीचे इकट्ठा होने वाले सैनिकों पर फेंकना शुरू कर दिया था. दूसरे लोग अपने-अपने करीबी गिरिजाघरों की तरफ़ दौड़े और रो-रो कर प्रार्थना शुरू कर दी.
पादरियों
ने
शहर
के
विभिन्न
चर्चों
की
घंटियां
पूरी
ताकत
से
बजानी
शुरू
कर
दी
थी
जिनकी
टन
टनाटन
ने
उन
लोगों
को
भी
जगा
दिया
जो
अभी
तक
सो
रहे
थे.
ईसाई धर्म के सभी संप्रदायों के लोग अपने सदियों पुराने मतभेद भुलाकर एकजुट हो गए और उनकी बड़ी संख्या सबसे बड़े और पवित्र चर्च हाजिया सोफिया में इकट्ठा हो गई. सुरक्षाकर्मियों ने बड़ी जान लगाकर उस्मानी फौज के हमले रोकने की कोशिश की.
इस दौरान ज्यादातर सुरक्षा कर्मी मारे जा चुके थे और उनका सेनापति जीववानी जस्टेनियानी गंभीर रूप से घायल होकर रणभूमि से भाग चुका था. जब पूरब से सूरज की पहली किरण दिखाई दी तो उसने देखा कि एक तुर्क सैनिक करकोपरा दरवाजे के ऊपर स्थापित बाजिंटिनी झंडा उतारकर उसकी जगह उस्मानी झंडा लहरा रहा था.
यूनान
का मनहूस दिन
सुल्तान फातेह के बेटे सलीम के दौर में उस्मानी सल्तनत ने खिलाफत का दर्जा हासिल कर लिया और कस्तुनतुनिया उसकी राजधानी बनी और मुस्लिम दुनिया के सारे सुन्नियों का प्रमुख शहर बन गया. सुल्तान फातेह के पोते सुलेमान आलीशान के दौर में कस्तुनतुनिया ने नई ऊंचाइयों को छुआ.
फिर उनका बेटा सुलतान मुहम्मद II गद्दी पर बैठा और सिर्फ़ 21 साल की उमर मे उसने इस शहर को 53 दिन के मुहासरे के बाद 29 मई 1453 को फ़तह कर लिया जिसे अपने वक़्त की अज़ीम फ़ौज पिछले 1500 साल से फ़तह ना कर सकी थी और इस पुरे वाक़ियो को हम Fall of Constantinople के नाम से जानते हैं..
असल मे सुल्तान मुहम्मद II और उनके इस फ़तह की पेशनगोइ पैगम्बर अलैहि सलाम ने अपनी एक हदीस (मसनद अहमद) में काफी पहले कर दी थी :- “निश्चित ही तुम कुस्तुनतुनिया फतह करोगे वो एक बहुत अज़ीम सिपह सालार होगा और उसकी बहुत अज़ीम सेना होगी”
ये फ़तह 53 दिन की उतार चढ़ाओ कि जंग के बाद नसीब होती है.. इसके बाद जो हुआ वो तारीख़ है
1500 साल से चली आ रही बाइजेण्टाइन साम्राज्य हमेशा के लिए ख़त्म हो जाती है.
6 अप्रैल
1453 ई. को शुरु हुई जंग मे बाइजे़ण्टाइन लगातार भारी पड़ रहे थे, चुंके एक जगह खड़े हो कर उन्हे उस्मानीयों को रोकना था..
22 अप्रैल
1453 एक ऐसा तारीख़ी दिन है जब दुनिया ने एक ऐसी जंगी हिकमत अमली देखी जिस पर वह आज भी हैरतज़दा हैं जब मुहासिरा कुस्तुन्तुनिया के दौरान “सुल्तान मुहम्मद फ़ातेह” ने समुंद्री जहाज़ों को ज़मीन पर चलवा दिया.
बासफोरस से शहर कुस्तुन्तुनिया के अंदर जाने वाली पानी के रास्ते ‘शाख़ ज़रीं’ के दहाने पर बाइज़ेण्टाइनीयों ने एक ज़ंजीर लगा रखी थी जिस की वजह से उस्मानी समुंद्री जहाज़ शहर के करीब न जा सकते थे….
सुल्तान ने शहर के एक जानिब के इलाक़े से जहाज़ों को ज़मीन पर से गुज़ार कर दुसरी जानिब पानी में उतारने का अजीब ओ गरीब मंसूबा पेश किया और 22 अप्रैल 1453 ई. को उस्मानियों के अज़ीम जहाज़ खुश्की पर सफ़र करते हुए शाख़ जरीं में दाखिल हो गए.
Map of Turkey showing Istanbul |
सुबह कुस्तुन्तुनिया की दिवारों पर खड़े बाइजे़ण्टाइनी फौजी आँखें मलते रह गए के ये ख्वाब है या हक़ीक़त? ज़ंजीर अपनी जगह क़ायम है और उस्मानी जहाज़ शहर के किनारे पर खड़े हैं…..
बहरहाल ये हिकमत अमली कुस्तुन्तुनिया की फ़तह में सबसे अहम रही क्यूँकि इसी की बदौलत उस्मानियों को पहली बार शहर के इतने क़रीब पहुंचने का मौक़ा मिला और 29 मई को उन्होंने कुस्तुन्तुनिया को फ़तेह कर लिया.
हर तरफ़ से 12 मीटर उंची दिवार से घिरे इस शहर मे दाख़िल होने के लिए अरबन ओस्ताद ने सुल्तान के हुक्म पर शाही तोप तोप बनाई जिसके मार की ताक़त बहुत अधिक थी.. इस तोप ने ही दिवारों मे छेद कर डाले जिससे उस्मानी फ़ौज शहर के अंदार दाख़िल हो सकी.
इस जंग मे एक बहुत मज़बुत और बहादुर सिपाही और भी था जिसे दुनिया बहुत कम जानती है , जो के सुल्तान महमद की परछाई था और इसी सिपाही को क़ुस्तुन्तुनिया के क़िले पर सबसे पहले उस्मानी झण्डा फहराने का शर्फ़ हासिल हुआ , इस सिपाही का नाम था “उलुबातली हसन” जो के क़ुस्तुन्तुनिया को फ़तह करने के बाद 25 साल की उमर मे शहीद हो गया था.
क़ुस्तुन्तुनिया को फ़तह करने के लिए 53 दिन
(April 6, 1453 – May 29, 1453) तक चली जंग मे ये हमेशा मैदान मे डटे रहे और आख़िर मे वो दिन आया जब क़ुस्तुन्तुनिया फ़तह हुआ और क़ुस्तुन्तुनिया पर उस्मानी झण्डा फहरा और इसे को फहराने के वास्ते उलुबातली हसन तीर बरछे व भाले का परवाह किये बगै़र दीवार पर चढ़ गए और उस्मानी झण्डा फहरा कर शहीद हो गए ✊ उनके बदन से 27 तीर निकाली गई थीं जो उन्हे जंग के दौरान लगी.
फ़तह क़ुस्तुन्तुनिया के बाद ख़िलाफ़ते उस्मानीया की राजधानी एदिर्न
(Edirne) से हटाकर क़ुस्तुन्तुनिया ला दी गयी और इस जगह को आज दुनिया इंस्तांबुल के नाम से जानती है।
यहां एक बात क़ाबिले गौर है कि… बाइज़ेण्टाइनी सल्तनत में रोमन कैथोलिक और ग्रीक ओर्थोडाक्स के बीच बहुत सालों से लड़ाई होती आ रही थी… रोमन कैथोलिक… ग्रीक ओर्थोडाक्स पर हावी रहते थे… जब सुल्तान मुहम्मद फातेह ने बाइज़ेण्टाइनी सल्तनत पर हमला किया तो ग्रीक ओर्थोडाक्स ने उस्मानीयों का साथ दिया था..
इसलिए सुल्तान ने ग्रीक चर्च को मज़हबी मामलात में आज़ादी दी…. बदले में चर्च ने उस्मानी सल्तनत को कुबूल कर लिया..! इनके अंदर
1204 के वाक़िये को लेकर भी आपस मे ना इत्तेफ़ाक़ी थी..
जल्द
ही तरह-तरह के शिल्पकार, कारीगर, व्यापारी, चित्रकार, कलाकार और दूसरे हुनरमंद इस शहर का रुख करने लगे. सुल्तान फातेह ने हाजिया सोफिया को चर्च से मस्जिद बना दिया.
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Hagia Sophiya |
लेकिन उन्होंने शहर के दूसरे बड़े गिरिजाघर कलिसाय-ए-हवारियान को यूनानी रूढ़िवादी संप्रदाय के पास ही रहने दिया और ये संप्रदाय एक संस्था के रूप में आज भी कायम है.
सुलतान मोहम्मद फ़ातेह ने शहर पर फ़तह हासिल करने के बाद पहला आदेश जारी करके शहर के निवासियों को सुरक्षा और स्वतंत्रता प्रदान की, उन्होने वहां मौजुद तमाम इसाईयो को मज़हबी आज़ादी दी और यहां तक के सुलतान मुहम्मद ने इसाईयो की इज़्ज़त ओ आबरु, जान ओ माल की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी ख़ुद ली।
इस तरह उन्दलुस (स्पेन) के ज़वाल के बाद पहली बार उस्मानी फ़ौज को यूरोप में घुसने का रास्ता मिलता है और बालकन (सर्बिया , बोसनिया , अलबानिया) के इलाके़ ‘क्रीमिया’ व इटली के ओरंटो पर उस्मानियों का क़ब्ज़ा हो जाता है।
इस तरह यूरोपियों के पूर्व (चीन, भारत और पूर्वी अफ़्रीक़ा) के व्यापार का रास्ता (समुंद्री और ज़मीनी) पूरी तरह से मुस्लिम हाथों में चला जाता है और समूचे मध्य-पूर्व पर मुस्लिम शासकों का कब्ज़ा हो जाता है।
पूर्व (चीन, भारत और पूर्वी अफ़्रीक़ा) से आने वाले रेशम, मसालों और आभूषणों पर अरब और अन्य मुस्लिम व्यापारियों का कब्जा हो गया था – जो मनचाहे दामों पर इसे यूरोप में बेचने लगे।
फ़तह
के पहले और बाद में कई यूनानी एवं अन्य दानिशवर लोग कु़स्तुन्तुनिया छोड़कर भाग निकले। इनमें से ज़्यादातर इटली जा पहुँचे जिससे यूरोपीय पुनर्जागरण को बहुत ताक़त मिली और योरप के लोग जागरुक होने लगे और इसके बाद स्पेनी और पुर्तागली (और इतालवी) शासकों को मशरिक़ (पूर्व) के रास्तों की बैहरी (सामुद्रि) जानकारी की इच्छा और जाग उठती है ।
1475 की शुरुआत से यूरोपीय देशों की नौसेना के उरुज को देखा गया. इसी सिलसिले मे अमरीका की खोज क्रिस्टोफर कोलम्बस ने 12 अक्तुबर 1492 की थी और वास्को डी गामा कप्पड़ पर कालीकट के निकट 20 मई 1498 ईस्वी को भारत में आया था.
कस्तुनतुनिया की विजय सिर्फ एक शहर पर एक राजा के शासन का खात्मा और दूसरे शासन का प्रारंभ नहीं था.
इस घटना के साथ ही दुनिया के इतिहास का एक अध्याय खत्म हुआ और दूसरा शुरू हुआ था. एक तरफ 27 ईसा पूर्व में स्थापित हुआ रोमन साम्राज्य
1480 साल तक किसी न किसी रूप में बने रहने के बाद अपने अंजाम तक पहुंचा.
दूसरी ओर उस्मानी साम्राज्य ने अपना बुलंदियों को छुआ और वह अगली चार सदियों तक तक तीन महाद्वीपों, एशिया, यूरोप और अफ्रीका के एक बड़े हिस्से पर बड़ी शान से हुकूमत करता रहा.
1453 ही वो साल था जिसे मध्य काल के अंत और नए युग की शुरुआत का बिंदु माना जाता है.
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Sultan Mohammad fateh |
इसी
दौर मे समुद्र रास्ते से दुनिया का चक्कर लगानेवाला पहला आदमी मैगलन बना था. और फिर इसके बाद शुरु हुआ योरप के साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद का नंगा नाच जो आज तक जारी है।
यूनान में आज भी गुरुवार को मनहूस दिन माना जाता है. वो तारीख 29 मई 1453 को गुरुवार का ही दिन था.
पहली जंग ए अज़ीम यानी First World War के बाद 13 November 1918 से 23 September 1923 तक ये शहर ब्रिटिश, फ़्रंच और इटेलियन फ़ौज के क़ब्ज़े मे रहा.
The End
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