Tuesday 17 September 2024

मेरा नाम राधा है (मंटो) नीलम जिसे स्टूडियो के तमाम लोग मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था।मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।

नागपाड़े में मैं जब शाम को पान वाले की दुकान पर बैठता था तो प्रायः एक्टर और एक्ट्रेसों की बातें हुआ करती थीं। लगभग सभी एक्टर और एक्ट्रेसों के संबंध में कोई--कोई स्केंडल प्रसिद्ध था।

 

यह उस समय का जिक्र है, जब उस लड़ाई का नामोनिशान भी था। शायद आठ-नौ बरस पहले की बात है, जब जिंदगी में हंगामें बड़े तरीके से आते थे। आजकल की तरह नहीं कि बेमतलब और व्यर्थ के लड़ाई-झगड़े और घटनाएं होती हैं। उस समय मैं चालीस रुपया माहवार पर एक फिल्म कंपनी में नौकर था और मेरी जिंदगी बर्फीली जमीन पर स्लेज की तरह मजे से गुजर रही थी।

 

यानी सुबह दस बजे स्टूडियो पर गए। नियाज मुहम्मद वलन की बिल्लियों को दो पैसे का दूध पिलाया। चालू फिल्म के लिए चालू किस्म के संवाद लिखे। बंगाली एक्ट्रेस से, जो उस जमाने में बंगाल की बुलबुल कहलाती थी, थोड़ी देर मज़ाक किया और दादा गोरे की, जो उस स्थान का सबसे बड़ा फिल्म डायरेक्टर था, थोड़ी-सी खुशामद की और घर चले आए।

 

जैसा कि मैं बता चुका हूं कि जिंदगी की गाड़ी बड़ी नरमी से मजे में ढलक रही थी। स्टूडियो का मालिक हरमजरजी फरामजी जो मोटे-मोटे लाल गालों वाला मौजी किस्म का ईरानी था, एक अधेड़ उम्र की खोजा एक्ट्रेस के प्रेम में फंसा हुआ था। हर नई लड़की के स्तन टटोलकर देखना उसका काम था। कलकत्ता के बऊ बाजार की एक मुसलमान वेश्या थी जो अपने डायरेक्टर, साउंड रिकॉर्डिस्ट और स्टोरी राइटर-तीनों के साथ इश्क लड़ा रही थी। उस इश्क का असल में मतलब यह था कि उन तीनों का प्रेम उसके लिए विशेष रूप से मौजूद रहे।

 

वन की सुंदरीकी शूटिंग चल रही थी। नियाज मुहम्मद वलन की जंगली बिल्लियों को, जो उसने खुदा मालूम स्टूडियो के लोगों पर क्या असर पैदा करने के लिए पाल रखी थीं, दो पैसे का दूध पिलाकर मैं हर रोज उसवन की सुंदरीके लिए मुश्किल भाषा में संवाद लिखा करता था।

 

उस फिल्म की कहानी क्या थी, प्लाट कैसा था, जाहिर है कि इसका पता मुझे कुछ नहीं था। क्योंकि उस जमाने में मैं एक मुंशी था जिसका नाम केवल आज्ञा मिलने पर जो कुछ कहा जाए गलत-सलत उर्दू में जो डायरेक्टर साहब की समझ में जाए, पेंसिल से एक कागज पर लिखकर देना होता था। खैर, ‘वन की सुंदरीकी शूटिंग चल रही थी और अफवाह यह थी किदलीपका पार्ट अदा करने के लिए एक नया चेहरा सेठ हरमजरजी फरामजी कहीं से ला रहे हैं।

 

हीरो का पार्ट राजकिशोर को दिया गया था। राजकिशोर रावलपिंडी का एक सुंदर-स्वस्थ युवक था। उसके शरीर के बारे में लोगों का ख्याल था कि बहुत मरदाना और सुडौल है। मैंने कई बार उसके बारे में गौर किया, लेकिन मुझे उसके शरीर में, जो कि सचमुच कसरती और गठीला था, कोई खिंचाव नजर नहीं आया।

 

लेकिन उसका कारण यह भी हो सकता है कि मैं बहुत ही दुबला और मरियल किस्म का आदमी हूं और अपने भाई-बंदों के शरीरों की निरख-परख करने का इतना आदी नहीं जितना उनके दिलो-दिमाग और आत्मा के बारे में सोचने का आदी हूं।

 

मुझे राजकिशोर से घृणा नहीं थी, इसलिए कि मैंने अपनी उम्र में शायद ही किसी आदमी से घृणा की हो। लेकिन वह मुझे कुछ ज्यादा पसंद नहीं था। इसका कारण मैं धीमे-धीमे बताऊंगा।

 

राजकिशोर की भाषा, भाव ठेठ रावलपिंडी के थे, जो कि मैं बहुत ही पसंद करता था। मेरा विचार है कि पंजाबी भाषा में यदि कहीं बढ़िया शेर मिलते हैं तो वे रावलपिंडी की भाषा में ही आपको मिल सकते हैं।

 

उस शहर की भाषा में एक अजीब तरह का मरदानापन है, जिसमें भारी आकर्षण और मिठास है। यदि रावलपिंडी की कोई औरत आपसे बात करे तो ऐसा लगता है कि मीठे आम का रस आपके मुंह में चुआया जा रहा है। लेकिन मैं आमों की नहीं राजकिशोर की बात कर रहा था, जो मुझे आम से बहुत कम प्रिय था।

 

राजकिशोर, जैसा कि मैं कह चुका हूं, सुंदर और स्वस्थ युवक था। यहां तक बात खत्म हो जाती, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होती, लेकिन परेशानी यह थी कि उसे यानी राजकिशोर को खुद अपने स्वास्थ्य और सौंदर्य का ज्ञान था, ऐसा ज्ञान जो कम-से-कम मेरे लिए स्वीकार नहीं था।

 

इसमें कोई शक नहीं कि मैं दमा का मरीज हूं, कमजोर हूं। मेरे एक फेफड़े में हवा खींचने की बहुत कम ताकत है, लेकिन खुदा गवाह है कि मैंने आज तक अपनी कमजोरी का दिखावा नहीं किया। हालांकि मुझे इसका पूरा-पूरा ज्ञान है कि आदमी अपनी कमजोरियों से इसी तरह फायदा उठा सकता है जिस तरह की अपनी ताकत से उठा सकता है। लेकिन मेरा ईमान है कि हमें ऐसा नहीं करना चाहिए।

 

मेरी निगाह में सुंदरता वह है, जिसकी लोग चिल्ला-चिल्लाकर नहीं वरन दिल-ही-दिल में सराहना करें। मैं उस तंदुरुस्ती को बीमारी समझता हूं जो नंगी होकर या सख्त पत्थर बनकर टकराती फिरे।

 

कुछ भी हो, लेकिन मैं अपने दिलोदिमाग को इस बात को कभी तैयार नहीं कर सका कि वह राजकिशोर को उसी नजर से देखे जिससे दूसरे देखते थे। यही कारण था कि मैं बातचीत के बीच में उससे उलझ जाया करता था।

 

राजकिशोर में वे ये सब सौंदर्य मौजूद थे, जो एक युवक में होने चाहिए। लेकिन मुझे दुख है कि उसे उन सौंदर्यों का बहुत ही भौंडा प्रदर्शन करने की आदत थी। आपसे बात कर रहा है और अपने एक बाजू के पट्टे अकड़ा रहा है और खुद ही दाद दे रहा है। बहुत ही गंभीर वार्ता हो रही है, यानी स्वराज की बात छिड़ी है और वह अपने खादी के कुरते के बटन खोलकर अपने वक्ष की चौड़ाई का अंदाज़ा कर रहा है।

 

सारे फिल्म प्रोड्यूसर उसकी इज्जत करते थे, क्योंकि उसके चाल-चलन की पवित्रता की बहुत प्रसिद्ध थी। फिल्म प्रोड्यूसरों को छोड़िए, पब्लिक को भी इस बात का अच्छा ज्ञान था कि राजकिशोर बहुत ही अच्छे चरित्र का आदमी है।

 

फिल्मी दुनिया में रहकर पाप के धब्बों से बचे रहना किसी भी आदमी के लिए बहुत बड़ी बात है। यों तो राजकिशोर एक सफल हीरो था, लेकिन उसके इस एक गुण ने भी उसे बहुत ऊंचाई पर पहुंचा दिया था।

 

नागपाड़े में मैं जब शाम को पान वाले की दुकान पर बैठता था तो प्रायः एक्टर और एक्ट्रेसों की बातें हुआ करती थीं। लगभग सभी एक्टर और एक्ट्रेसों के संबंध में कोई--कोई स्केंडल प्रसिद्ध था। लेकिन राजकिशोर का जब भी जिक्र आता तो श्यामलाल पनवाड़ी बड़े मजेदार लहजे में कहा करता, ‘‘मंटो साहब, राज भाई ही एक ऐसा एक्टर है जो लंगोट का भारी पक्का है।’’

 

मालूम नहीं श्यामलाल उसे राज भाई कैसे कहने लगा था, लेकिन उसके बारे में मुझे इतना अधिक अचंभा भी नहीं था, इसलिए राज भाई की मामूली-से-मामूली बात भी एक कारनामा बनकर लोगों तक पहुंच जाती थी।

 

उदाहरण के तौर पर बाहर के लोगों को उसकी आमदनी का पूरा-पूरा ज्ञान था। अपने बाप को महीने का खर्च क्या देता है, अनाथालयों को महीने का चंदा कितना देता है, उसका अपना जेब-खर्च क्या हैये सब बातें लोगों को इस तरह मालूम थीं जैसे वे चीजें उन्हें जुबानी याद कराई गई हों।

 

श्यामलाल ने एक दिन मुझे बताया कि राज भाई का अपनी सौतेली मां के साथ बहुत ही अच्छा व्यवहार है। उस जमाने में जब आमदनी का कोई जरिया नहीं था, बाप और नई बीवी उसे तरह-तरह के दुःख देते थे, लेकिन राज भाई की तारीफ है कि उन्होंने अपना कर्त्तव्य पूरा किया और उनको अपने सिर-आंखों पर जगह दी।

 

अब दोनों पलंग पर बैठे राज करते हैं। हर सुबह-सवेरे राज अपनी सौतेली मां के पास जाता है और उसके चरण छूता है, बाप के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो जाता है और जो आज्ञा मिले, उसका तुरंत पालन करता है।

 

मैं नहीं कह सकता कि क्या कारण था, लेकिन ईमान की बात है कि मेरे दिल--दिमाग के किसी अंधेरे कोने में यह शक बिजली की तरह कौंध जाता कि राज बन रहा है। राज की जिंदगी बिलकुल बनावटी है, लेकिन परेशानी यह थी कि मेरे विचारों का नहीं था।

 

लोग देवताओं की तरह उसकी पूजा करते थे और मैं दिल-ही-दिल में घुटता था। राज की बीवी थी। राज के चार बच्चे थे। वह अच्छा पति और अच्छा पिता था। उसकी जिंदगी पर से चादर का कोई भी कोना हटाकर देखा जाता तो आपको कोई धब्बेदार चीज नजर आती। यह सब कुछ था लेकिन उसके होते हुए भी मेरे दिल में बराबर शक बना रहता था।

 

खुदा की कसम मैंने दिल को लानत दी कि भई तुम बड़े वाहियात हो कि ऐसे अच्छे आदमी को, जिसे सारी दुनिया अच्छा कहती है और जिसके बारे में तुम्हें कोई शिकायत भी नहीं, बेकार शक की नजरों से देखते हो। यदि एक आदमी अपना सुडौल बदन बार-बार देखता है तो वह कौन-सी बुरी बात है।

 

यदि तुम्हारा बदन भी ऐसा ही खूबसूरत होता, तो बहुत संभव है कि तुम भी यही हरकत करते। इसमें कोई शक नहीं कि उसकी जिंदगी में कोई स्केंडल नहीं था। अपनी बीवी के सिवा किसी दूसरी स्त्री का मैला या उजला दामन उससे बंधा नहीं था।

 

मैं यह भी मानता हूं कि वह सब एक्ट्रेसों को बहन कहकर पुकारा करता था और वे भी उसे प्रत्युत्तर में भाई कहा करती थीं, लेकिन दिल ने हमेशा मेरे दिमाग से यही सवाल किया कि संबंध कायम करने की ऐसी ज्यादा जरूरत ही क्या है।

 

भाई-बहन का संबंध कुछ और है। लेकिन किसी स्त्री को अपनी बहन कहना उस भाव से जैसे यह बोर्ड लगाया जा रहा है किसड़क बंद हैयायहां पेशाब करना मना हैबिलकुल दूसरी बात है।

 

यदि तुम किसी स्त्री से गहरा संबंध करना नहीं चाहते तो उसका ढिंढोरा पीटने की क्या जरूरत है। यदि तुम्हारे दिल में तुम्हारी बीवी के सिवा किसी स्त्री का ख्याल नहीं सकता तो उसका इश्तहार देने की क्या जरूरत है। यह और इस तरह की दूसरी बातें चूंकि मेरी समझ में नहीं आती थीं इसलिए मुझे अजीब किस्म की उलझन होती थी।

 

खैर!

वन की सुंदरीकी शूटिंग चल रही थी। स्टूडियो में ख़ासी चहल-पहल थी। हर रोज एक्स्ट्रा लड़कियां आती थीं जिनके साथ हमारा दिन हंसी-मज़ाक में गुजर जाता था।

 

एक दिन नियाज मुहम्मद वलन के कमरे में मेकअप मास्टर, जिसे हम उस्ताद कहते थे, यह ख़बर लेकर आया कि दलीप के रोल के लिए जो लड़की आने वाली थी, गई है और जल्द काम शुरू हो जाएगा।

 

उस समय चाय का दौर चल रहा था। कुछ उसकी हरारत थी, कुछ इस ख़बर ने हमको गरमा दिया। स्टूडियो में एक नई लड़की का आना हमेशा खुशी का समाचार हुआ करता है। इसलिए हम सब नियाज मुहम्मद वलन के कमरे से निकलकर बाहर चले आए ताकि उसके दर्शन किए जा सकें।

 

शाम के वक्त जब सेठ हरमजरजी फरामजी ऑफिस से निकलकर असली तबलती की चांदी की डिबिया से दो खुशबूदार तंबाकू वाले पान निकालकर अपने चौड़े गले में दबाकर बिलिअर्ड खेलने वाले कमरे का रुख कर रहे थे, हमें वह नई लड़की नजर आई।

 

सांवले रंग की स्त्री थी, मैं केवल इतना ही देख सका, क्योंकि वह जल्दी-जल्दी सेठ के साथ हाथ मिलाकर स्टूडियो की मोटर में बैठकर चली गई। कुछ देर के बाद नियाज मुहम्मद ने बताया कि उस स्त्री के होंठ मोटे थे। वह शायद केवल होंठ ही देख सका था। उस्ताद, जिसने शायद इतनी झलक भी देखी थी, सिर हिलाकर बोला, ‘हूं….कंडम।यानी बकवास है।

 

चार-पांच दिन गुजर गए, लेकिन वह नई लड़की स्टूडियो में नहीं आई। पांचवें या छठे दिन जब मैं गुलाब के होटल में चाय पीकर निकल रहा था, अचानक मेरी और उसकी मुठभेड़ हो गई।

 

मैं हमेशा स्त्रियों को चार आंखों से देखने का आदी हूं। यदि कोई स्त्री एकदम मेरे सामने जाए तो मुझे उसका कुछ भी नजर नहीं आता। चूंकि अप्रत्याशित रूप से उससे मेरी मुठभेड़ हुई थी, इसलिए मैं उसकी शक्ल-सूरत के बारे में कोई अंदाज़ा नहीं कर सका। हां, पैर मैंने जरूर देखे जिनमें नई चाल के स्लीपर थे।

 

लेबोरेटरी से स्टूडियो तक जो रोड जाती है, उस पर मालिकों ने बजरी बिछा रखी है। उस बजरी में बेशुमार गोल-गोल पट्टियां हैं, जिन पर से जूता बार-बार फिसलता है। चूंकि उसके पांव में खुले स्लीपर थे, इसलिए चलने में उसे कुछ ज्यादा तकलीफ़ हो रही थी।

 

उस मुलाकात के बाद धीरे-धीरे मिस नीलम से मेरी दोस्ती हो गई। स्टूडियो के लोगों को खैर इसका ज्ञान नहीं था। लेकिन उसके साथ मेरे संबंध बहुत ही खुले हुए थे। उसका असली नाम राधा था। मैंने जब एक बार उससे पूछा कि तुमने इतना प्यारा नाम क्यों छोड़ दिया तो उसने जवाब दिया, ‘यों हीलेकिन फिर कुछ देर बाद कहा, ‘यह नाम इतना प्यारा है कि फिल्म में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

 

आप शायद सोचें कि राधा धार्मिक प्रवृत्ति की स्त्री है। जी नहीं, उसका धर्म और उसकी बला से दूर का भी संबंध था। लेकिन जिस तरह मैं हर नया काम शुरू करने से पहले कागज परबिस्मिल्लाहअर्थात जय प्रभु के दो शब्द जरूर लिखता हूं, इसी तरह शायद उसे भी साधारण रूप में राधा नाम से अधिक प्रेम था।

 

चूंकि वह चाहती थी कि उसे राधा कहा जाए, इसलिए मैं आगे चलकर उसे नीलम ही कहूंगा।

 

नीलम बनारस की वेश्या की बेटी थी। वहां की बोलचाल और भाव में, जो बहुत अच्छा मालूम होता था, मेरा नाम सआदत होने पर भी सादिक कहा करती थी।

 

एक दिन मैंने उससे कहा, ‘नीलम, मैं जानता हूं कि तुम मुझे सआदत कह सकती हो, फिर मेरी समझ में नहीं आता कि तुम अपनी गलती ठीक क्यों नहीं करतीं।

 

यह सुनकर उसके सांवले होंठों पर, जो बहुत ही पतले थे, एक हल्की-सी मुस्कराहट गई और उसने जवाब दिया, ‘जो गलती मुझसे एक बार हो जाए, मैं उसे ठीक करने की कोशिश नहीं किया करती।

 

मेरा ख्याल है कि बहुत कम लोगों को मालूम है कि वह स्त्री, जिसे स्टूडियो के तमाम लोग एक मामूली एक्ट्रेस समझते थे, विचित्र प्रकार के गुणों की खान थी। उसमें दूसरी एक्ट्रेसों का-सा ओछापन नहीं था। उसकी गंभीरता, जिसे स्टूडियो का हर आदमी अपनी ऐनक के गलत रंग में देखता था, बहुत प्यारी चीज थी।

 

उसके सांवले चेहरे पर, जिसकी त्वचा बहुत ही साफ और एक-सी थी, यह गंभीरता, यह साफ तबियत तथा प्रसन्न मुद्रा उसके हित में अहित बन गई थी। इसमें कोई शक नहीं, उससे उसकी आंखों में, उसके पतले होंठों के कोनों में दुख की नामालूम रेखाएं स्पष्ट हो गई थीं। लेकिन यही एक बात थी जिसने उसे दूसरी स्त्रियों से बिलकुल भिन्न बना दिया था।

 

मैं उस समय भी आश्चर्य में था और अब भी वैसा ही हैरान हूं कि नीलम कोवन की सुंदरीमें दिलीप के रोल के लिए क्यों चुना गया था, इसलिए कि उसमें तेजी और तर्रारी नाम को भी थी।

 

जब वह पहली बार अपने वाहियात पार्ट को अदा करने के लिए तंग चोली पहनकर सेट पर आई तो मेरी निगाहों को बहुत दुख हुआ। वह दूसरों की स्थिति को तुरंत ही भांप जाया करती थी, इसलिए मुझे देखते ही उसने कहा, ‘‘डायरेक्टर साहब कह रहे थे कि तुम्हारा पार्ट चूंकि शरीफ स्त्रियों का नहीं है, इसलिए तुम्हें इस तरह की वेशभूषा दी गई है।’’ मैंने उनसे कहा, ‘‘यदि यह वेशभूषा है तो मैं आपके साथ नंगी चलने के लिए तैयार हूं।’’

 

मैंने उससे पूछा, ‘‘डायरेक्टर साहब ने यह सुनकर क्या कहा?’’

 

नीलम के होंठों पर एक अर्थपूर्ण हल्की मुस्कराहट खिल गई, ‘‘उन्होंने तसव्वुर में मुझे नंगी देखना शुरू कर दिया। ये लोग भी कितने अहमक हैं, यानी उस वेशभूषा में मुझे देखकर बेचारे को तसव्वुर पर जोर डालने की जरूरत ही क्या थी?’’ सुदृढ़ मानसिक स्थिति के लिए नीलम का यह साहस भी काफी था।

 

अब मैं उन घटनाओं की ओर जाता हूं जिनकी मदद से मैं यह कहानी पूरी करना चाहता हूं।

 

बंबई में जून के महीने से बारिश शुरू हो जाती है और सितंबर के मध्य तक जारी रहती है। पहले दो-ढाई महीनों में इतना अधिक पानी बरसता है कि स्टूडियो में काम नहीं हो सकता।वन की सुंदरीकी शूटिंग अप्रैल के अंत में हुई थी। जब पहली बारिश हुई तो हम अपना तीसरा सैट पूरा कर रहे थे।

 

एक छोटा-सा सीन बाकी रह गया था, जिसमें कोई विशेष काम नहीं था। इसलिए बारिश में भी हमने अपना काम जारी रखा। लेकिन जब यह काम खत्म हो गया, तो हम काफी समय के लिए बेकार हो गए।

 

उस बीच स्टूडियो के लोगों को एक-दूसरे के साथ मिलकर बैठने का मौका मिलता है। मैं लगभग सारे दिन गुलाब के होटल में बैठा चाय पीता रहता था। जो भी आदमी अंदर आता था या तो सारे का सारा भीगा होता था या आधा। बाहर की सब मक्खियां शरण लेने के लिए अंदर जमा हो जाती थीं।

 

इतना गंदा दृश्य था कि जी बिगड़ता था। एक कुर्सी पर चाय छानने का कपड़ा पड़ा है तो दूसरी कुर्सी पर प्याज काटने की बदबूदार छुरी पड़ी झक मार रही है। गुलाब साहब पास खड़े हैं और अपने गोश्त लगे दांतों के नीचे बंबई की रुई बचा रहे हैं।

 

उस होटल में, जिसकी छत कोरोगेटिड स्टील की थी, सेठ हरमजरजी फरामजी, उनके साले एंडलजी और हीरोइनों के सिवा सब लोग आते थे। नियाज मुहम्मद को तो दिन में कई बार वहां आना पड़ता था, क्योंकि उसने चुनी-मुनी नाम की दो बिल्लियां पाल रखी थीं। राजकिशोर दिन में एक चक्कर लगा जाता था।

 

ज्यों ही वह अपने लंबे कद्दावर कसरती बदन के साथ दरवाजे पर आता, मेरे सिवाय होटल में बैठे हुए तमाम लोगों की आंखें चमक उठतीं। एक्स्ट्रा लड़के उठ-उठकर राज भाई को कुर्सी देते और जब वह उसमें से किसी की दी हुई कुर्सी पर बैठ जाता तो वे सब-के-सब परवानों की तरह उसके चारों ओर जाम हो जाते। उसके बाद दो तरह की बातें सुनने में आतीं।

 

एक दिन जब बारिश थमी हुई थी और हरमजरजी फरामजी का अलसेशियन कुत्ता नियाज मुहम्मद की दो बिल्लियों से डरकर गुलाब के होटल की ओर दुम दबाए भागा रहा था तो मैंने मौलश्री के पेड़ के नीचे बने हुए गोल चबूतरे पर नीलम और राजकिशोर को बातें करते हुए देखा।

 

मैं गुलाब होटल से निकलकर रिकॉर्डिंग रूम में छज्जे तक पहुंचा तो राजकिशोर ने अपने चौड़े कंधे पर से खादी का थैला एक झटके के साथ उतारा और उसे खोलकर एक मोटी कॉपी बाहर निकाली। मैं समझ गया, यह राजकिशोर की डायरी है।

 

प्रतिदिन सब कामों से निवृत्त होकर अपनी सौतेली मां का आशीर्वाद लेकर राजकिशोर सोने से पहले अपनी डायरी लिखने का आदी है।

 

यों तो उसे पंजाबी बोली बहुत प्रिय है, लेकिन वह रोजनामचा अंग्रेज़ी में लिखता है जिसमें कहीं टैगोर के नाजुक स्टाइल की और कहीं गांधी के राजनीतिक ढंग की झलक नजर आती है। उसकी लेखनी पर शेक्सपियर के ड्रामों का प्रभाव काफी है। लेकिन मुझे उस स्टाइल में लिखने वालों का व्यक्तित्व कभी नजर नहीं आया।

 

खैर, वह नीलम को उस डायरी के कुछ पृष्ठ पढ़कर सुना रहा था। मैंने दूर से ही उसके खूबसूरत होंठों की सिकुड़न से मालूम कर लिया कि शेक्सपियर के तरीकों में प्रभु की प्रार्थना कर रहा है।

नीलम मौलश्री के पेड़ के नीचे गोल सीमेंट के बने चबूतरे पर चुपचाप बैठी थी। उसके चेहरे पर राजकिशोर की डायरी-पाठ से कोई परिवर्तन के चिह्न दृष्टिगोचर नहीं हो रहे थे। वह राजकिशोर की उभरी हुई छाती की ओर देख रही थी। उसके कुर्ते के बटन खुले थे और सफेद बटन पर उसकी छाती के काले बाल बहुत ही खूबसूरत मालूम होते थे।

 

स्टूडियो में चारों ओर हर चीज तरीके से लगी थी। नियाज मुहम्मद की दो बिल्लियां भी, जो आमतौर पर गंदी रहा करती थीं, उस दिन बहुत साफ-सुथरी दिखाई दे रही थीं। वे दोनों सामने बैंच पर लेटी नरम-नरम पंजों से अपना मुंह धो रही थीं।

 

नीलम सार्जेट की बेदाग साड़ी में दिख रही थी। ब्लाउज सफेद निकल का था, जो उसकी सांवली और सुडौल बांहों के साथ बहुत ही अच्छा मध्यम सौंदर्य प्रदर्शित कर रहा था।

 

 ‘नीलम इतनी प्रभाव रहित क्यों दिखाई दे रही है?’ एक क्षण के लिए यह प्रश्न मेरे दिमाग में पैदा हुआ और जब एकदम उसकी तथा मेरी आंखें चार हुईं तो मुझे उसकी निगाह के किरण-पुंज में अपने प्रश्न का उत्तर मिल गयानीलम प्रेमपाश में बंधी चुकी है।

 

उसने हाथ के इशारे से मुझे बुलाया। थोड़ी देर इधर-उधर की बातें हुईं। जब राजकिशोर चला गया तो उसने मुझसे कहा, ‘‘आज आप मेरे साथ चलिएगा।

 

शाम को छह बजे मैं नीलम के मकान पर था। ज्यों ही हम अंदर पहुंचे, उसने अपना बैग सोफे पर फेंका और मुझसे नजर मिलाए बिना कहा, ‘आपने जो कुछ सोचा है, गलत है।

 

मैं उसका मतलब समझ गया था। इसलिए मैंने जवाब दिया, ‘‘तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि मैंने क्या सोचा था?’’

उसके पतले होंठों पर अर्थपूर्ण धीमी-सी मुस्कराहट गई, ‘‘इसलिए कि हम दोनों ने एक ही बात सोची थी। आपने शायद बाद में ध्यान नहीं दिया, लेकिन मैं बहुत सोच-विचार के बाद इस नतीजे पर पहुंची कि हम दोनों गलत थे।

 

यदि मैं कहूं कि हम दोनों सही थे?’’

 

उसने सोफे पर बैठते हुए कहा, ‘‘तो हम दोनों बेवकूफ़ हैं।यह कहकर तुरंत ही उसके चेहरे की गंभीरता और ज्यादा बढ़ गई।

 

‘‘सादिक, यह कैसे हो सकता है। मैं बच्ची हूं जो मुझे अपने दिल का हाल मालूम नहीं। तुम्हारे विचार से मेरी उम्र क्या होगी?’’

 

बाइस बरस।

 

बिलकुल ठीक, लेकिन तुम नहीं जानते कि दस बरस की उम्र में मुझे प्रेम के अर्थ मालूम थे। अर्थ क्या हुए जी, खुदा की कसम प्रेम करती थी। दस से लेकर सोलह बरस तक मैं एक खतरनाक प्रेम में बंधी रही हूं। मेरे दिल में अब क्या खाक किसी की मुहब्बत पैदा होगी

 

यह कहकर उसने मेरे आश्चर्यचकित चेहरे की ओर देखा और उसी निराश भाव से कहा, ‘‘तुम भी कभी नहीं मानोगे, चाहे मैं तुम्हारे सामने अपना दिल निकालकर ही क्यों रख दूं, फिर भी तुम यकीन नहीं करोगे। मैं अच्छी तरह जानती हूं।

 

भई खुदा की कसम, वह मर जाए जो तुमसे झूठ बोले। मेरे दिल में अब किसी की मुहब्बत पैदा नहीं हो सकती। लेकिन इतना जरूर है कियह कहते-कहते वह एकदम रुक गई।

 

मैंने उससे कुछ कहा, क्योंकि वह भारी चिंता में डूब गई थी। वह शायद सोच रही थी किइतना जरूरक्या है?

 

थोड़ी देर के बाद उसके पतले होंठों पर वही हल्की अर्थपूर्ण मुस्कराहट आई, जिससे उसके चेहरे की गंभीरता में थोड़ी-सी बुद्धिमानी भरी शरारत पैदा हो जाती थी। सोफे पर से एक झटके के साथ उठकर उसने कहना शुरू किया, ‘‘मैं इतना जरूर कह सकती हूं, कि यह मुहब्बत नहीं है। कोई और बात हो तो मैं कह नहीं सकती। सादिक, मैं तुम्हें यकीन दिलाती हूं।’’

 

मैंने तुरंत ही कहा, ‘‘यानी तुम अपने आपको यकीन दिलाती हो?’’

 

वह जल गई, ‘‘तुम बहुत कमीने हो। कहने का एक ढंग होता है। आखिर तुम्हें यकीन दिलाने की मुझे जरूरत ही क्या पड़ी है। मैं अपने आपको यकीन दिला रही हूं। लेकिन परेशानी यह है कि नहीं रहा। क्या तुम मेरी मदद नहीं कर सकते?’’

 

यह कहकर वह मेरे पास बैठ गई और दाएं हाथ की उंगलियां पकड़कर मुझसे पूछने लगी, ‘राजकिशोर के बारे में तुम्हारा क्या विचार है? मेरा मतलब है कि तुम्हारे विचार के अनुसार राजकिशोर में वह कौन-सी चीज है जो मुझे पसंद आई है?’

 

उंगलियां छोड़कर उसने एक-एक करके दूसरी उंगलियां पकड़नी शुरू कीं, ‘‘मुझे उसकी बातें पसंद नहीं, मुझे उसकी एक्टिंग पसंद नहीं, मुझे उसकी डायरी पसंद नहीं। जाने आज क्या खुराफात सुना रहा था।

 

कहते-कहते ही तंग आकर वह उठ खड़ी हुई, ‘‘समझ में नहीं आता कि मुझे क्या हो गया है। बस केवल यह जी चाहता है कि एक शोर हो, बिल्लियों की लड़ाई की तरह शोर मजे, धूल उड़े और मैं पसीना-पसीना हो जाऊं।’”फिर एकदम वह मेरी ओर पलटी, ‘‘सादिक, तुम्हारा क्या ख्याल है। मैं कैसी स्त्री हूं?’’

 

मैंने मुस्कराकर जवाब दिया, ‘‘बिल्लियां और औरतें हमेशा मेरी समझ में अच्छी रही हैं।’’

 

उसने एकदम पूछा, ‘‘क्यों?’’

 

मैंने थोड़ी देर सोचकर जवाब दिया, ‘‘हमारे घर में एक बिल्ली रहती थी। साल में एक बार उस पर रोने के दौरे पड़ते थे। उसका रोना-धोना सुनकर कहीं से एक बिलौटा जाया करता था। फिर उन लोगों में इतनी लड़ाई और खून-खराबा होता था कि इलामां….. लेकिन उसके बाद वह खाला बिल्ली बच्चों की मां बन जाया करती थी।

 

नीलम का मानो मुंह का स्वाद खराब हो गया, ‘‘यू, तुम कितने गंदे हो।’’फिर थोड़ी देर के बाद इलायची से मुंह का स्वाद ठीक करने के बाद उसने कहा, ‘‘मुझे औलाद से नफरत है। खैर, हटाओ जी इस किस्से को।

 

यह कहकर नीलम ने पानदान खोलकर अपनी पतली उंगलियों से मेरे लिए पान लगाना शुरू कर दिया। चांदी की छोटी-छोटी कुलियों में से उसने बड़ी सफाई से चमची के साथ चूना और कत्था निकालकर फैले हुए पान पर लगाया और गिलौरी बनाकर मुझे दी, ‘‘सादिक, तुम्हारा क्या विचार है?’’

 

यह कहकर वह चुप हो गई।

मैंने पूछा, ‘‘किस बारे में?’’

 

उसने सरौते से भुनी हुई छालियां काटते हुए कहा, ‘‘इसी बकवास के बारे में जो बेकार में शुरू हो गई है। यह बकवास नहीं तो क्या है, यानी मेरी समझ में तो कुछ आता ही नहीं। खुद ही फाड़ती हूं और खुद ही सीती हूं। यदि यह बकवास इसी तरह जारी रही तो जाने क्या होगा…? तुम नहीं जानते हो, मैं बहुत जबरदस्त औरत हूं।’’

 

‘‘जबरदस्त से तुम्हारा क्या मतलब है?’’

 

नीलम के होंठों पर वही हल्की अर्थपूर्ण मुस्कान गई, ‘‘तुम बड़े बेशर्म हो। सब कुछ समझते हो, लेकिन बारीक-बारीक चुटकियां लेकर मुझे उकसाओगे जरूर….यह कहते हुए उसकी आंखों की सफेदी गुलाबी रंग में बदल गई, ‘‘तुम समझते क्यों नहीं कि मैं बहुत…. गरम मिज़ाज की औरत हूं।यह कहकर वह उठ खड़ी हुई, ‘‘अब तुम जाओ, मैं नहाना चाहती हूं।

 

मैं चला आया। इसके बाद बहुत दिनों तक नीलम ने राजकिशोर के बारे में मुझसे कुछ कहा। लेकिन उस बीच हम दोनों एक दूसरे के विचारों से परिचित थे। वह जो कुछ सोचती थी, मुझे मालूम हो जाता था और मैं जो कुछ सोचता था, उसे मालूम हो जाता था। कई दिनों तक यही मौन विनिमय जारी रहा।

 

एक दिन डायरेक्टर कपलानी, जोवन की सुंदरीबना रहा था, हीरोइन का रिहर्सल सुन रहा था। हम सब म्यूजिक रूम में जमा थे। नीलम एक कुर्सी पर बैठी अपने पांव की गति से धीमे-धीमे ताल दे रही थी। एक बाजारू किस्म का गाना था, लेकिन धुन अच्छी थी। जब रिहर्सल खत्म हुई तो राजकिशोर कंधे पर खादी का थैला रखे कमरे में घुसा।

 

डायरेक्टर कृपलानी, म्यूजिक डायरेक्ट घोष और साउंड रिकॉर्डिस्ट पी.एन. बोधाइन सबको उसने अंग्रेज़ी में आदाब किया। हीरोइन मिस ईदनबाई को हाथ जोड़कर नमस्कार किया और कहा, ‘‘ईदन बहन, कल मैंने आपको क्राफर्ड मार्किट में देखा, मैं तब आपकी भाभी के लिए मौसंबियां खरीद रहा था कि आपकी मोटर नजर आई’’

 

हिलते-हिलते उसकी नजरें नीलम पर पड़ीं, जो पियानो के पास एक ऊंची कुर्सी में धंसी हुई थी। एकदम उसके हाथ नमस्कार के लिए उठे।

 

यह देखते ही नीलम उठ खड़ी हुई, ‘‘राज साहब, मुझे बहन कहिएगा।’’ नीलम ने यह बात इस ढंग से कही कि म्यूजिक रूम में बैठे सभी आदमी एक क्षण के लिए स्तब्ध रह गए।

 

राजकिशोर खिसियाना-सा रह गया और केवल इतना कह सका, ‘‘क्यों?’’

नीलम जवाब दिए बिना बाहर निकल गई। तीसरे दिन मैं नागपाड़े में दोपहर के समय श्यामलाल पनवाड़ी की दुकान पर गया तो वहां उसी घटना के बारे में चर्चाएं हो रही थीं।

 

श्यामलाल बड़े मजेदार तरीके से कह रहा था, ‘‘साली का अपना मन मैला होगा, नहीं तो राज भाई किसी को बहन कहे और वह बुरा माने? कुछ भी हो, उसकी इच्छा कभी पूरी नहीं होगी। राज भाई लंगोट का बहुत पक्का है।’’ मैं राज भाई के लंगोट से बहुत तंग गया था, लेकिन मैंने श्यामलाल से कुछ कहा और चुप बैठा उसकी और उसके मित्र ग्राहकों की बातें सुनता रहा, जिनमें गप बहुत ज्यादा और असलियत बहुत कम थी।

 

स्टूडियो के उस म्यूजिक रूम की घटना का सबको पता था कि तीन रोज से बातचीत का विषय केवल यही चीज बन रही थी कि राजकिशोर को मिस नीलम ने क्यों एकदम बहन कहने से मना किया। मैंने राजकिशोर से इस बारे में कुछ नहीं सुना, लेकिन उसके एक मित्र से मालूम हुआ कि उसने अपनी डायरी में उस पर बहुत ही मजेदार रिमार्क लिखा है और प्रार्थना की है कि मिस नीलम का दिल--दिमाग पाक-साफ हो जाए।

 

इस घटना को कई दिन गुजर गए, लेकिन कोई और विशेष बात हुई। नीलम पहले से कुछ ज्यादा गंभीर हो गई थी और राजकिशोर के कुरते के बटन अब हर समय खुले रहते थे, जिससे उसकी सफेद और उभरी हुई छाती के काले बाल बाहर झांकते रहते थे।

 

चूंकि एक-दो रोज से बारिश नहीं हुई थी औरवन की सुंदरीका चौथे सेट का रंग सूख गया था, इसलिए डायरेक्टर कपलानी ने नोटिस बोर्ड पर शूटिंग का ऐलान कर दिया। वह सीन जो अब लिया जाने वाला था, नीलम और राजकिशोर के बीच था अर्थात् दोनों को भाग लेना था। चूंकि मैंने ही उसके संवाद लिखे थे, इसलिए मुझे मालूम था कि राजकिशोर बातें करते-करते नीलम का हाथ चूमेगा। इस सीन में चूमने की बिलकुल गुंजाइश नहीं थी।

 

लेकिन चूंकि जनता को उकसाने के लिए आमतौर पर फिल्मों में स्त्रियों को ऐसी वेशभूषा पहनाई जाती है, जो उनकी भावनाओं को भड़काए, इसलिए डायरेक्टर कृपलानी ने पुराने नुस्खे के अनुसार चुंबन का यह टच रखा था।

 

जब शूटिंग शुरू हुई तो मैं धड़कते दिल के साथ सेट पर मौजूद था। राजकिशोर और नीलम का हाल क्या होगा, इस विचार से ही मेरे दिल में सनसनी की एक लहर दौड़ जाती थी। किंतु सारा सीन पूरा हो गया और कुछ हुआ। हर संवाद के बाद एक थका देने वाली मनहूसियत के साथ आकाशदीप जलते और बुझते जाते, स्टार्ट और कट की आवाज़ें गरजतीं और जब शाम को सीन के क्लाईमेक्स का समय आया तो राजकिशोर ने बड़ी भावुकता से नीलम का हाथ पकड़ा, लेकिन कैमरे की ओर पीठ करके अपना हाथ चूमा और अलग कर दिया।

 

मेरा ख्याल था कि नीलम अपना हाथ खींचकर राजकिशोर के मुंह पर ऐसा चांटा जड़ेगी कि रिकॉर्डिंग रूम में पी.एन. बोधा के कानों के पर्दे फट जाएंगे लेकिन इसके विरुद्ध नीलम के पतले होंठों पर एक नीरस मुस्कान दिखाई दी, जिसमें स्त्री की कोमल भावनाओं का कोई चिह्न नाममात्र भी नहीं था।

 

मुझे भारी निराशा हुई थी। लेकिन मैंने उसका जिक्र नीलम से नहीं किया। दो-तीन दिन गुजर गए और जब उसने भी उस बारे में मुझसे कुछ कहा तो मैंने यह नतीजा निकाला कि उसे उस हाथ घूमने वाली बात की गंभीरता का ज्ञान नहीं था, वरना यों कहना चाहिए कि उसके बेफिक्र दिमाग में उसका ख्याल तक नहीं आया था और उसकी वजह सिर्फ यह हो सकती थी कि वह उस वक्त राजकिशोर की जुबान से जो औरत को बहन कहने का आदी था, प्रेमालाप सुन रही थी।

 

नीलम का हाथ चूमने के बजाए राजकिशोर ने अपना हाथ क्यों चूमा था, क्या उसने बदला लिया था, क्या उसने स्त्री को अपमानित करने की कोशिश की थीऐसे कई प्रश्न मेरे दिमाग में पैदा हुए, लेकिन कोई जवाब मिला।

 

चौथे दिन जब मैं अपनी आदत के अनुसार नागपाड़े में श्यामलाल की दुकान पर गया तो उसने मुझसे शिकायत भरे लहजे में कहा, ‘‘मंटो साहब, आप तो हमें अपनी कंपनी की कोई बात सुनाते ही नहीं। आप बताना नहीं चाहते या फिर आपको कुछ मालूम नहीं होता। पता है राज भाई ने क्या किया?’’

 

इसके बाद उसने अपने तरीके से वह कहानी कहनी शुरू की किवन की सुंदरीमें एक सीन था, जिसमें डायरेक्टर साहब ने राज भाई को मिस नीलम का मुंह चूमने का ऑर्डर दिया था।

 

इस पर राज भाई ने कहा, ‘‘ना साहब, मैं ऐसा काम कभी नहीं करूंगा। मेरी अपनी पत्नी है। इस गंदी औरत का मुंह चूमकर क्या मैं उसके अपवित्र होंठों से अपने होंठ मिला सकूंगा। बस साहब, तुरंत डायरेक्टर साहब को सीन बदलना पड़ा और राज भाई ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेलीं। जब वक्त आया तो उसने इस सफाई से अपना हाथ चूमा कि देखने वालों को यही मालूम हुआ कि उस साली का हाथ चूमा है।’’

 

मैंने उस बातचीत का जिक्र नीलम से नहीं किया, इसलिए कि जब वह सारे किस्से से ही बेख़बर थी तो उसे व्यर्थ दुःखी करने से क्या लाभ।

 

बंबई में मलेरिया आमतौर से फेल जाता है। मालूम नहीं कौन-सा महीना था और कौन-सी तारीख थी। केवल इतना याद है किवन की सुंदरीका पांचवां सेट लग रहा था और बारिश बड़े जोरों पर थी कि नीलम अचानक बहुत तेज बुखार में घिर गई।

 

चूंकि मुझे स्टूडियो में कोई काम नहीं था, इसलिए मैं घंटों उसकी तीमारदारी करता रहा। मलेरिया ने उसके चेहरे के सांवलेपन में एक अजीब किस्म का दुःखदायी पीलापन पैदा कर दिया था। उसकी आंखों और उसके पतले होंठों के कोनों में जिनमें अवर्णनीय मुस्कुराहट खेलती थी, अब उसमें बेबसी की झलक दिखाई देती थी।

 

कुनेन की टिकियों से उसका शरीर काफी कमजोर हो गया था, इसलिए उसे अपनी कमजोर आवाज को जोर लगाकर ऊंचा उठाना पड़ता था। उसका विचार था कि शायद उसके कान भी खराब हो गए हैं।

 

एक दिन जब उसका बुखार बिलकुल दूर हो गया और वह बिस्तर पर लेटी नम्र स्वर में ईदन बाई की बीमारी में सहायक होने का धन्यवाद दे रही थी, तभी नीचे से मोटर के हॉर्न की आवाज आई। मैंने देखा कि वह आवाज सुनकर नीलम के बदन पर एक ठंडी फुरफुरी-सी दौड़ गई।

 

थोड़ी देर बार कमरे का सागौनी दरवाजा खुला और राजकिशोर खादी के सफेद कुरते और तंग पायजामे में अपनी पुरानी किस्म की बीवी के साथ कमरे में घुसा। ईदन बाई को ईदन बहन कहकर उसने सलाम किया।

 

मेरे साथ हाथ मिलाया और अपनी बीवी की, जो तीखे-तीखे कट वाली घरेलू किस्म की स्त्री थी, हम सबसे परिचित कराकर वह नीलम के पलंग पर बैठ गया।

 

कुछ क्षणों तक वह यों ही मुस्कराता रहा, फिर उसने नीलम की ओर देखा और पहली बार उसकी धुली हुई आंखों में एक भारी भावुकता का बेड़ा तैरता हुआ दिखा।

 

मैं अभी पूरी तरह संभल ही पाया था कि उसने क्षमा-याचना के भाव से कहना शुरू किया, ‘‘मैं बहुत दिनों से इरादा कर रहा था कि आपकी बीमारी की हालत देखने आऊं, लेकिन इस कमबख्त मोटर का इंजन कुछ ऐसा खराब हुआ कि दस दिन कारखाने में पड़ी रही।

 

आज आई तो मैंने शांति (अपनी बीवी की ओर इशारा करते हुए) से कहा, भई चलो, इसी वक्त उठो। रसोई का काम कोई और कर लेगा। आज इत्तफाक से रक्षाबंधन का त्योहार भी है। नीलम बहन की कुशलता भी पूछ आएंगे और उनसे राखी भी बंधवा आएंगे।’’

 

यह कहकर उसने अपनी खादी के कुरते से एक रेशमी फुंदने वाला गजरा निकाला। नीलम के चेहरे पर पीलापन और ज्यादा दुःखदायी हो गया।

 

राजकिशोर जान-बूझकर नीलम की ओर नहीं देख रहा था, इसलिए उसने ईदन बाई से कहा, ‘‘लेकिन ऐसे नहीं, खुशी का मौका है, बहन बीमार बन राखी नहीं बांधेगी। शांति, चलो उठो। इनको लिपस्टिक आदि लगाओ। मेकअप बक्स कहां है?’’

 

सामने मेंटल पीस पर नीलम का मेकअप बक्स पड़ा था। राजकिशोर ने लंबे-लंबे पग उठाए और उसे ले आया। नीलम चुप थी। उसके पतले होंठ भिंच गए थे, जैसे वह अपनी चीख बड़ी मुश्किल से रोक रही थी।

 

जब शांति ने पतिव्रता स्त्री की भांति उठकर नीलम का मेकअप करना चाहा तो उसने कोई प्रतिवाद किया। ईदन बाई ने एक बेजान लाश को सहारा देकर उठाया और जब शांति ने बहुत ही बेढंगेपन से होंठों पर लिपस्टिक लगाना शुरू किया तो वह मेरी ओर देखकर मुस्कराई। नीलम की वह मुस्कराहट एक चीख थी।

 

मेरा ख्याल था, नहीं मुझे यकीन था कि एकदम कुछ होगानीलम के भिंचे हुए होंठ एक धमाके के साथ बंद हो गए और जिस तरह बरसात में पहाड़ी नाले बड़े-बड़े मजबूत बंध तोड़कर दीवानों की तरह आगे बढ़ जाते हैं, उसी तरह नीलम अपनी रुकी हुई भावुकता से तूफानी बहाव में हम सबके कदम उखाड़कर खुदा जाने किन गहराइयों में धकेल ले जाएगी लेकिन आश्चर्य है कि वह बिलकुल चुप रही।

 

उसके चेहरे का दुखदायी पीलापन गजरे और लाली के ढेर में छिपता रहा और वह पत्थर की मूर्ति की भांति बेबस बनी रही। अंत में जब मेकअप पूरा हो गया तो उसने राजकिशोर से आश्चर्यजनक रूप से दृढ़तापूर्वक कहा, ‘‘लाइए, अब मैं राखी बांध दूं।’’

 

रेशमी फुंदनों वाला गजरा थोड़ी देर में राजकिशोर की कलाई में था और नीलम, जिसके हाथ कांपने चाहिए थे, बड़े धैर्य और शांति के साथ उसमें गांठ दे रही थी।

 

इस कार्य के बीच में एक बार फिर मुझे राजकिशोर की धुली हुई आंखों में एक कोमल भावुकता की झलक नजर आई, जो तुरंत ही उसकी हंसी में गायब हो गई। राजकिशोर ने एक लिफाफे में रीति के अनुसार नीलम को कुछ रुपए दिए, जो उसने धन्यवाद देकर अपने तकिये के नीचे रख लिए।

 

जब वे लोग चले गए और मैं और नीलम अकेले रह गए तो उसने मुझ पर एक उजड़ी-सी निगाह डाली, फिर तकिए पर सिर रखकर चुपचाप लेट गई। पलंग पर राजकिशोर अपना थैला भूल गया था। जब नीलम ने उसे देखा तो पांव से एक ओर रख दिया।

 

मैं लगभग दो घंटे तक उसके पास बैठा अखबार पढ़ता रहा। जब उसने कोई बात नहीं की तो मैं बिना अलविदा कहे वापिस चला आया।

 

इस घटना के तीन दिनों बाद मैं नागपाड़े में अपनी नौ रुपये माहवार की कोठरी में बैठा शेव कर रहा था और दूसरी कोठरी में रहने वाली अपनी साथिन मिसिज फरनेंडेस की गालियां सुन रहा था कि एकदम कोई अंदर आया। मैंने पलटकर देखा, वह नीलम थी।

 

एक क्षण के लिए मैंने सोचा कि नहीं कोई और है। उसके होंठों पर गहरे लाल रंग की लिपस्टिक कुछ इस तरह फैली हुई थी जैसे मुंह से खून निकलकर बहता रहा हो, जिसे पोंछा नहीं गया हो।सिर का एक बाल भी सही हालत में नहीं था।

 

सफेद साड़ी की बूटियां उड़ी हुई थीं। ब्लाउज के तीन-चार हुक खुले हुए थे और उसकी सांवली छातियों पर खराशें नजर रही थीं।

 

नीलम को उस हालत में देखकर मुझसे यह पूछते बना कि तुम्हें क्या हुआ है और मेरी कोठरी का पता लगाकर कैसे पहुंची हो।

 

पहला काम मैंने यह किया कि दरवाजा बंद कर दिया। जब मैं कुरसी खींच कर उसके पास बैठा तो उसने अपने लिपस्टिक से लिथड़े हुए होंठ खोले और कहा, ‘‘मैं सीधी यहां रही हूं।’’

 

मैंने धीमे से पूछा, ‘‘कहां से?’’

 

‘‘अपने घर सेऔर मैं तुमसे यह कहने आई हूं कि अब वह जो बकवास शुरू हुई थी, खत्म हो गई है।’’

 

‘‘कैसे?’’

 

‘‘मुझे मालूम था कि वह फिर मकान पर आएगा। ऐसे वक्त आएगा जब और कोई नहीं होगा। और वह आयाअपना थैला लेने के लिए।’’ यह कहते हुए उसके पतले होंठों पर, जो लिपस्टिक ने बिलकुल बेशक्ल कर दिए थे, हल्की-सी अर्थपूर्ण मुस्कराहट आई।

 

‘‘वह अपना थैला लेने आया था। मैंने कहा, चलिए दूसरे कमरे में पड़ा है। मेरा भाव शायद बदला हुआ था, क्योंकि वह कुछ घबरा-सा गया। मैंने कहा घबराइए नहीं। जब हम दूसरे कमरे में घुसे तो मैं थैला देने के बजाय ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठ गई और मेकअप करना शुरू कर दिया।’’ इतना कहकर वह चुप हो गई। सामने मेरी टूटी हुई मेज पर शीशे के गिलास में पानी पड़ा था। उसे उठाकर नीलम गटागट चढ़ा गई।

 

फिर साड़ी के छोर से अपने होंठ पोंछकर उसने आगे बताना शुरू किया, ‘‘मैं एक घंटे तक मेकअप करती रही। जितनी लिपस्टिक होंठों पर थुप सकती थी, मैंने थोपी। जितनी लाली मेरी गालों पर चढ़ सकती थी, मैंने चढ़ाई। वह चुपचाप एक कोने में खड़ा-खड़ा मेरी शक्ल देखता रहा। जब मैं बिलकुल चुड़ैल बन गई तो मजबूत पैरों के साथ चलकर मैंने दरवाजा बंद कर दिया’’

 

मैंने पूछा, ‘‘फिर क्या हुआ?’’

 

अपने सवाल का जवाब पाने के लिए जब मैंने नीलम की ओर देखा तो वह मुझे बिलकुल दूसरी नजर आई। साड़ी से होंठ पोंछने के बाद उसके होंठों की रंगत कुछ अजीब-सी हो गई थी। उस समय तो वह चुड़ैल नजर नहीं रही थी, लेकिन जब उसने मेकअप किया होगा तो जरूर चुड़ैल दिखाई देती होगी।

 

मेरे सवाल का जवाब उसने तुरंत ही नहीं दिया। टाट की चारपाई से उठकर वह मेरी मेज पर बैठ गई और कहने लगी, ‘‘मैंने उसको झंझोड़ दियाजंगली बिल्ली की तरह मैं उसके साथ चिपट गई। उसने मेरा मुंह नोचा, मैंने उसका…. बहुत देर तक हम दोनों एक दूसरे के साथ कुश्ती लड़ते रहे

 

ओह, उसमें बला की ताकत थीलेकिनलेकिनजैसा कि मैं तुमसे एक बार कह चुकी हूंमैं बहुत जबर्दस्त औरत हूंमेरी कमजोरीमेरा शरीर तप रहा था। मेरी आंखों से चिंगारियां निकल रही थींमेरी हड्डियां कड़ी हो रही थीं। मैंने उसे पकड़ लिया। मैंने उससे बिल्लियों की तरह लड़ना शुरू कियामुझे मालूम नहीं था क्योंमुझे पता नहीं था किसलिएबे सोचे-समझे उससे भिड़ गई।

 

हम दोनों ने कोई भी ऐसी बात जुबान से निकाली जिसका मतलब कोई दूसरा समझ सकेमैं चीखती रहीवह केवल हूं-हूं करता रहाउसके सफेद खादी के कुर्ते की कई बोटियां मैंने इन उंगलियों से नोचींउसने मेरे बालकई लटें जड़ से निकाल डालींउसने अपनी सारी ताकत खर्च कर दी।

 

लेकिन मैंने इरादा कर लिया था कि जीत मेरी ही होगीवह कालीन पर मुर्दें की तरह लेटा थाऔर मैं इतनी हांफ रही थी, ऐसा लगता था कि मेरी सांस एकदम रुक जाएगीइतना हांफते हुए भी मैंने उसके कुरते को तार-तार कर दिया। उस समय जब मैंने उसका चौड़ा-चकला सीना देखा तो मुझे मालूम हुआ कि वह बकवास क्या थीवही बकवास जिसके बारे में हम दोनों सोचते थे और कुछ समझ नहीं पाते थे….’’

 

यह कहकर वह तेजी से उठ खड़ी हुई और अपने बिखरे हुए बालों को एक ओर हटाकर कहने लगी, ‘‘सादिक, कमबख्त का शरीर वाकई खूबसूरत है। जाने मुझे क्या हुआ, एकदम मैं उस पर झुकी और उसे काटना शुरू कर दिया और वह सी-सी करता रहा। लेकिन जब मैंने उसके होंठों से अपने लहू-भरे होंठ लगाए और उसे एक खतरनाक चुंबन दिया तो वह फल बेचने वाली औरत की तरह ठंडा हो गया और मैं उठ खड़ी हुई।

 

मुझे उससे घिन महसूस होने लगी। मैंने पूरी ऊंचाई से उसकी तरफ नीचे देखा, उसके सुंदर शरीर पर मेरे खून और लिपस्टिक की लाली ने बहुत बुरे बेल-बूटे बना दिए थे। मैंने अपने कमरे पर नजर फिराई तो हर चीज बनावटी नजर आई। मैंने जल्दी से दरवाजा खोला कि कहीं मेरा दम घुट जाए और सीधी तुम्हारे पास चली आई।’’

 

यह कहकर वह चुप हो गई, मुर्दे की तरह चुप। मैं डर गया। उसका एक हाथ तो चारपाई से नीचे लटक रहा था, मैंने छुआ, वह आग की तरह गर्म था।

नीलम….नीलम….

मैंने कई बार उसे जोर से पुकारा, लेकिन उसने कोई जवाब दिया। आख़िर मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में ‘‘नीलमकहा तो वह चौंकी और उठकर जाते हुए उसने केवल यह कहा, ‘‘सआदत, मेरा नाम राधा है।

The End

Disclaimer–Blogger has posted this story “मेरा नाम राधा है (मंटो की कहानी) मैंने जब बहुत जोर से भयानक आवाज में नीलम कहा तो वह चौंकी और उठकर जाते हुए उसने केवल यह कहा, सआदत, मेरा नाम राधा है।: By Saadat Hasan Manto. With help of materials and images available on net. Images on this blog are posted to make the text interesting.The materials and images are the copy right of original writers. The copyright of these materials are with the respective owners.Blogger is thankful to original writers.

 






























 













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