Tuesday 28 May 2024

Royal Love Story: महाराजा कपूरथला Spanish flamenco dancer को महारानी बना कर लाया लेकिन रानी का दिल महाराजा के बेटे पर आ गया.

स्पेन की लड़की कैसे बनी कपूरथला की महारानी?

अनीता डेलगाडो ब्रियोन्स, एक स्पेनिश फ्लेमेंको डांसर और गायिका थीं. कपूरथला के महाराजा जगजीत सिंह उन्हें अपना दिल दे बैठे और शादी कर भारत ले आए.

 

कपूरथला, आज पंजाब का एक शहर है. लेकिन कभी ये अपने आप में पूरी रियासत हुआ करता था. कपूरथला की स्थापना राणा कपूर, जैसलमेर के एक भाटी राजपूत ने की थी. 11 वीं सदी से लेकर 1772 तक कपूरथला भाटी राजपूतों के अधीन रहा, जो तब दिल्ली सल्तनत के अधीन आते थे.

1772 में कपूरथला पर आहलूवालिया सिख सरदारों का कब्ज़ा हो गया. और उन्होंने कपूरथला में सिख महाराजाओं की पीढ़ी की शुरुआत की. कपूरथला को महलों और बागों का शहर कहा जाता है. साथ ही इसे पंजाब का पेरिस भी बुलाया जाता है.

 

पंजाब और पेरिस के इसी कनेक्शन से जुडी है हमारी आज की कहानी. कहानी एक लड़की की जो स्पेन के गांवों से निकली और कपूरथला की महारानी बन गई. क्या थी कपूरथला की महारानी की कहानी?

 

अनीता डेलगाडो ब्रियोन्स स्पेनिश फ्लेमेंको डांसर और गायिका

एक लड़की थी, अनीता डेलगाडो ब्रियोन्स नाम था उसका। साल 1890 में उसकी पैदाइश हुई. भारत से हजारों मील दूर. स्पेन के छोटे से शहर मलागा में. मां-बाप ला-कास्टाना नाम का एक छोटा सा कैफे चलाते थे. कैफे में जुआं भी चलता था और इसी से घर की रोजी रोटी आती थी. लेकिन फिर 1900 के आसपास कुछ यूं हुआ कि स्पेन के राजा ने जुएं पर बैन लगा दिया.

अनीता और उसके मां-बाप को मजबूरन मलागा छोड़कर मेड्रिड आना पड़ा. अनीता के पिता काम की तलाश में थे लेकिन काम मिलना इतना आसान नहीं था. चीजें बद से बदतर होती जा रही थीं. तभी अनीता और उसकी बहन ने सोचा कि घर चलाने के लिए उन्हें काम करना होगा। उनके पड़ोस में एक आदमी फ्लेमेंको डांस का माहिर हुआ करता था. दोनों ने उससे मदद मांगी और वो तैयार भी हो गया. उसने अनीता और उसकी बहन को मुफ्त में डांस सिखाया।

 

हालांकि अनीता के पिता इस बात से हरगिज़ खुश नहीं थे. क्योंकि डांस से पैसा कमाने का मतलब था मेड्रिड के क्लबों में मर्दों के सामने नाचना। अनीता और उसकी बहन के पास कोई चारा था. घर कैसे भी चलाना था. सो उन्होंने क्लबों में डांस से पैसा कमाना शुरू कर दिया।

उसी से घर चलने लगा. मेड्रिड का एक मशहूर क्लब था - कुरसाल फ़्रंटन नाम का. यहां सिर्फ स्पेन से बल्कि विदेशों से भी लोग आया करते थे. इसी क्लब में अनीता और उसकी बहन डांस किया करती थी. यहीं एक रोज़ रात की परफोर्कमैन्स के दौरान कुछ ऐसा हुआ जिसने दोनों बहनों की जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी

 

अनीता बनी महारानी प्रेम कौर

साल 1906 की बात है. उस साल स्पेन के महाराजा अल्फोंसो थर्टीन की शादी का मौका था. और इस मौके पर दुनिया भर से मेहमान बुलाए गए थे. इनमें से कुछ नाम भारत से भी थे. और एक नाम था कपूरथला के महाराज जगतजीत सिंह का. मेड्रिड में रहते हुए जगतजीत सिंह एक शाम कुरसाल फ़्रंटन पहुंचे।

 

उन्होंने अनीता को डांस करते हुए देखा, और देखते ही उसे दिल दे बैठे। अनीता की उम्र तब 16 साल की रही होगी। अनीता को इसकी कोई खबर नहीं थी. अगली सुबह उसके घर के बाहर एक आलीशान गाड़ी रुकी। जिसमें से महाराजा जगतजीत सिंह उतरे और उन्होंने अनीता से अपने प्यार का इज़हार किया।

 

एक हफ्ते बाद उनका सेक्रेटरी अनीता के घर आया. शादी का फॉर्मल प्रस्ताव लेकर। अनीता के रूढ़िवादी ईसाई मां बाप इस शादी के लिए कतई राजी नहीं थे. लेकिन फिर एक ऑफर ने उनकी ना को हां में बदल दिया। 


महराजा जगतजीत सिंह ने अनीता के हाथ के बदले उनके परिवार को 1 लाख पाउंड दिए.

 

और अनीता को भी शादी के लिए राजी कर लिया। हालांकि शादी से पहले कुछ और तैयारियां बाकी थीं. शादी की तैयारियों के लिए अनीता को रातों रात पेरिस रवाना किया गया. ताकि शाही परिवार वाली ट्रेनिंग हो सके.

 

महाराजा जगतजीत सिंह के पास पेरिस में एक आलीशान महल था. नाम था Pavillion de Kapurthala’. अपने संस्मरण में अनीता लिखती हैं कि इस महल में कैसे उन्हें शाही तौर तरीके सिखाए गए. उन्हें 5 भाषाओं की ट्रेनिंग दी गई. साथ ही उन्होंने डांस स्केटिंग, टेनिस और ड्राइविंग लेशन भी लिए.

पेरिस में कई महीनों की ट्रेनिंग के बाद 1907 में अनीता को भारत लाया गया. और 28 जनवरी, 1908 को कपूरथला में महाराजा जगतजीत सिंह और अनीता की शादी हुई. सिख परम्परा से. इस दिन के बाद अनीता बन गई महारानी प्रेम कौर. कपूरथला ने महारानी को यूरोप की कमी नहीं खेलने दी.

 

क्योंकि जैसा कि हमने पहले बताया, कपूरथला को पंजाब का पेरिस कहा जाता है. इसका कारण था कि महाराजा जगतजीत सिंह, फ्रेंच चीजों, खासकर वास्तुकला के बहुत बड़े मुरीद हुआ करते थे. अपना राजमहल भी उन्होंने फ्रेंच वास्तुकला के हिसाब से बनाया था. इतना ही नहीं, कपूरथला राजमहल के खानसामे भी पेरिस के रिट्ज होटल से आते थे.

 

और अब सुनिए चौकाने वाली बात. महाराजा जगतजीत का फ़्रांस प्रेम इस हद तक का था कि उनका पानी भी फ़्रांस से ही मंगाया जाता था.  इन कारणों से महरानी प्रेम कौर का कपूरथला में खूब दिल लगा. अपने संस्मरणों में वो लिखती हैं कि महराजा ने उन्हें नया महल दिखाते हुए कहा

 

मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि इतनी सुन्दर महारानी, इस राजमहल में रहेगी लेकिन अब मुझे लगता है कि इसे तुम्हारा ही इंतज़ार था”.

 

16 साल चला रिश्ता

बहरहाल यूं मौज़ मस्तियों में महरानी का हनीमून काल बीता और जल्द ही उन्होंने एक औलाद को भी जन्म दिया. राजकुमार अजीत सिंह. स्पेन से आई महारानी का जल्द ही पूरे भारत में नाम हो गया था.

 

लेकिन अंग्रेज़ जो बाकी यूरोप को अपने से नीच समझते थे, स्पेनिश महिला के महारानी बनने से खार खाए हुए थे.

 

जिसके चलते वो अपने कार्यक्रमों में महारानी को न्योता तक नहीं भेजते थे. हालांकि बाकी दुनिया महारानी से मुग्ध थी. इसी से जुड़ा एक किस्सा है. एक बार महारानी प्रेम कौर निजाम के बुलावे पर हैदराबाद गई. निजाम ने उन्हें देखा और देखते ही दिल दे बैठे। हालांकि वो किसी और की पत्नी थीं लेकिन निजाम ने अपना प्यार दिखाने में कोई भी कोताही नहीं बरती. एक शाम जब महारानी खाने की मेज पर बैठी तो उन्होंने देखा कि उनके नैपकिन में हीरे रखे हुए हैं

 

महाराजा जगतजीत सिंह और रानी प्रेम कौर की शादी 16 साल तक ही चल पाई. जिसके बाद दोनों के बीच कुछ मतभेद उपजने लगे.

 

महाराजा के बड़े बेटे से विदेशी रानी प्यार कर बैठी

महाराजा ने स्पेनी सुंदरी से शादी तो कर ली लेकिन जब वह उसको कपूरथला के महल में ले आया तो रानी धीरे धीरे खुद को तन्हा पाने लगी. ऐसे समय में उसके जीवन में सौतेला बेटा कमल आया, जो पढ़ा-लिखा, समझदार और उसे खुश फील कराने वाला था.

 

ऐसे में महाराजा का बड़ा बेटा कमल उसके करीब आने लगा. जो हमेशा उसे सपोर्ट करता और भावनात्मक संबल देते हुए उसे बेहतर फील कराता. धीरे धीरे ये स्थिति गई कि रानी को उसका साथ अच्छा लगने लगा. लंदन में पढ़े इसे खूबसूरत लंबे बेटे का नाम था कमल. रानी उससे प्यार कर बैठी.

हालांकि वह डरती भी थी कि इसका अंजाम क्या होगा लेकिन इसके बाद भी प्यार कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था. दोनों साथ साथ घूमने और मिलने लगे. एकांत में प्रेम की जगह तलाशने लगे. महाराजा तक जब ये खबरें पहुंचनी शुरू हुईं तो उन्होंने इस पर विश्वास बेशक नहीं किया लेकिन शक का बीज तो पड़ ही चुका था.

 

इस प्यार का भंडाफोड़ लंदन में हुआ. 

महाराजा अपने लावलश्कर और विदेशी महारानी के साथ गए हुए थे. वहां उन्होंने सेवाए होटल बुक कराया. जब महाराजा कहीं विदेश जाते थे तो पूरा का पूरा होटल बुक करा लेते थे. अगर ऐसा नहीं हो पाता था को तो दो-तीन फ्लोर तो बुक हो ही जाता था.


महाराजा को शक तो होने लगा कि स्पेनिश महारानी उसके प्रति वफादार नहीं है. उसका कोई और भी प्रेमी भी है. लंदन में इस बार महाराजा ने होटल सेवाए के कुछ फ्लोर किराए पर लिए. ऊपर मंजिल के शानदार सूइट में महाराजा और महारानी रुके. दोनों के अलग अलग शयनकक्ष थे. बीच में एक गलियारा दोनों शयनकक्ष को एक ड्राइंगरूम में जोड़ता था. बाहर राजा का एक खास नौकर खुशहाल सिंह बैठकर प्रहरा देता रहता था.

 

उन दिनों कमल भी लंदन में ही था. रात में महारानी चुपचाप कमल से मिलने लगी.

वो अपने कमरे से चुपचाप निकल होटल के ही एक दूसरे कमरे में चली जाती, जहां कमल उसका इंतजार कर रहा होता. महाराजा के नौकर खुशहाल से ये बात छिपी नहीं रही. एक रात जब रानी कमरे से बाहर निकली तो खुशहाल ने देख लिया. तुरंत राजा को जगाकर सूचना दी.राजा ने कमरा देखा तो वो वहां वाकई नहीं थी.

 

कुछ देर बाद रानी नाइट गाउन में बिखरे बालों के साथ वहां पहुंची.

इसके बाद राजा ने तुरंत नीचे की मंजिल के कमरों से अपने अफसरों को बुलाया. उस समय राजा के लावलश्कर के साथ दीवान जरमनी दास भी थे, जिन्होंने इस वाकये को अपनी किताबमहाराजामें लिखा.

ये वाकया जेवियर मोरो ने भी अपनी किताबपैशन इंडियामें लिखा. जब सभी लोग महाराजा के कमरे में बैठकर रानी का इंतजार करने लगे तो कुछ देर बाद रानी नाइट गाउन में बिखरे बालों के साथ वहां पहुंची.

 

राजा ने फैसला सुनाया कि अब वो अपनी स्पेनिश सुंदरी महारानी को तलाक दे देगा.

महाराजा बिफर उठा.रानी बार बार सफाई दे रही थी कि वो नीचे के कमरे में अपनी फ्रांसीसी परिचारिका के पास गई थी, क्योंकि उसको नींद नहीं रही थी. महाराजा इस बात को मानने को तैयार नहीं था.

 

वो लगातार अड़ा हुआ था कि रानी नीचे के कमरों में अपने प्रेमी के पास गई थी.रानी के रोने का भी उस पर कोई असर नहीं नजर रहा था. रातभर ये नौटंकी चलती रही. राजा ने फैसला सुनाया कि अब वो अपनी स्पेनिश सुंदरी महारानी को तलाक दे देगा.

 

और तब उसी होटल में रह रहे मुहम्मद अली जिन्ना को बीच बचाव में आना पड़ा था. जिन्ना महाराजा जगतजीत सिंह के दोस्त हुआ करते थे.वह कई मुकदमों में महाराजा के वकील भी थे.

 

मुहम्मद अली जिन्ना लंदन के होटल में महाराजा जगतजीत सिंह को समझाने पहुंचे कि उनकी बीवी ने कुछ ऐसा नहीं किया है कि उस पर शक किया जा सके लेकिन राजा ये बात मानने को तैयार ही नहीं था. तब जिन्ना को गुस्सा गया. उसने फिर पेशेवर वकील की तरह महाराजा को कहा कि ये तलाक उसको बहुत भारी पड़ेगा.

 

महाराजा का कहना था कि रानी का अपने कमरे से रात में गायब हो जाना बड़ा सबूत है.

 

जिन्ना ने पलटकर कहा कि ये कोई सबूत नहीं है. अगर वो तलाक देना चाहता है तो बेशक दे लेकिन रानी को मोटा भत्ता बांध दे. महाराजा इसके लिए भी तैयार नहीं था. लेकिन जिन्ना ने फिर जिस तरह के तर्क दिए और राजा को कोर्ट तक ले जाने की धौंस दी तो राजा ठंडा पड़ने लगा.

आखिरकार महाराजा तलाक और खास सालाना भत्ते के लिए तैयार हो गया. जिन्ना से महाराजा से 36000 रुपए सालाना का भत्ता तैयार कराया, जो उस समय के लिहाज से बहुत बड़ी रकम थी. साथ ही अनिता से हुए बेटे अजित सिंह के लिए 24000 रुपए का सालाना भत्ता, जब तक कि वो जवान नहीं हो जाता.


इस तलाक के बाद कमल से भी रानी के संबंध खत्म हो गए. वह स्पेन वापस चुकी थी.

बाद में वो गुप्त रूप से सेक्रेट्री के साथ पेरिस में रहने लगी. जेवियर मोरो की किताब के अनुसार, जिसे वह अपना सेक्रेटरी बताती थीं, वह उनके प्रेमी और करीबी दोस्त थे.

 

उनका नाम गाइनेस फर्नांडिज दि सेग्यूरा था. वह अनिता की एक रिश्ते की बहन के पति थे और जब वह अनिता के करीब आए तब विधुर हो चुके थे. वह स्टॉक ब्रोकर और सुशिक्षित शख्स थे, जो कई भाषाएं बोल लेते थे. रानी का एक बेटा था अजीत. बाद में बड़े होने पर उसकी भी मृत्यु हो गई.

जिन्ना ने सुनिश्चित किया कि महारानी को बंटवारे में अच्छी खासी जायदाद मिले.

इसके बाद महरानी ने अपना बाकी का जीवन यूरोप में ही रहकर गुजारा। भारत से तोहफे में जो हीरे जवाहरात उन्हें मिले थे, उस दौर में यूरोप के कई शाही परिवार उन पर रश्क किया करते थे. 72 साल की उम्र में साल 1962 में उनकी मृत्यु हो गई. और उन्होंने अपने जेवर आदि अपने बेटे अजीत सिंह के नाम कर दिए.


महाराजा जगतजीत सिंह का क्या हुआ? महाराजा ने इसके बाद एक और शादी की.

1942 में उन्होंने एक चेक महिला, यूजीन ग्रॉसुपोव से ब्याह किया। हालांकि ये शादी भी ज्यादा दिन चल नहीं पाई और दिसंबर 1946 में यूजीन ग्रॉसुपोव की भी मृत्यु हो गई.  महाराजा भी कुछ ही साल जिन्दा रहे और साल 1949 में वो भी चल बसे. कपूरथला राजघराने के वो आख़िरी महाराज थे. क्योंकि 1947 में इस रियासत का भी बाकी रियासतों की तरह भारत में विलय करा दिया गया.

The End

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