इनमें से सबसे ख़ास बात है, पूरे समुदाय में हर कोई बराबर माना जाता है. हर कोई हर काम करता था और समुदाय की हर चीज़ पर हर किसी का हक़ होता था. यहां तक कि पर्सनल गिफ्ट में भी सबकी हिस्सेदारी थी.
इस समुदाय में हर काम की ख़ास अहमियत होती थी. इस अवधारणा ने काम की गरिमा ऐसे बढ़ाया कि किसी भी काम को ख़ास परिस्थिति या सामग्री से जोड़ना नहीं पड़े.
इसी तरह पूरे समुदाय में हर काम बारी-बारी से किए जाते थे. समुदाय में जिसे भी एक दिन का प्रशासक बनाया जाता था, वो अगले दिन सामूहिक भोजन कक्ष में बरतन भी धोता था.
इसी तरह समुदाय के हर किसी की ज़रूरतों को सामूहिक रूप से पूरा किया जाता था. इसमें घर से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य और मनोरंजन से लेकर साबुन, टूथब्रश और तौलिये तक सबकुछ सामूहिक होता था.
संपूर्ण बराबरी के आदर्श को बनाए रखने के लिए किबुत्ज़ लोग सामूहिक रसोई घर में खाना बनाते और खाते थे. कपड़े भी एक ही तरह के पहनते थे.
वर्ष 1948 में अस्तित्व में आने के बाद से जितने सामूहिक आक्रमण इस्राइल ने झेले, मानव इतिहास में अन्य किसी ने कदाचित ही झेले हों। किब्बुत्ज व्यवस्था ने ही अपने अस्तित्व के प्रारंभिक वर्षों की अवधि में इस्राइल को बचाया।
इस्राइल की
जनसंख्या
के
केवल
5 प्रतिशत
ही
किब्बुत्ज
निवासी
थे,
लेकिन
उन्होंने
देश
का
50 प्रतिशत
से
अधिक
खाद्यान्न
पैदा
किया।
किब्बुत्ज
के
एक
अभिनव
सामाजिक
संगठन
और
उनके
निर्माण
के
पीछे
की
कल्पना
शक्ति
ने
यहूदी
जीवन
में
अद्भुत
क्षमताओं
का
विकास
किया।
"किबुत्ज़"(kibbutz) का हिब्रू में अर्थ "समूह बनाना" या "इकट्ठा करना" है। संक्षेप में, यह एक ऐसा समुदाय है जहां लोग स्वेच्छा से गैर-प्रतिस्पर्धी आधार पर एक साथ रहते हैं और काम करते हैं।
‘किबुत्ज’, इजरायल का एक ताकतवर समुदाय है. खेती-किसानी से लेकर इंडस्ट्री, सरकार और सेना तक में इस समुदाय के लोगों की पैठ है.
1910 के आसपास कुछ नौजवान यहूदियों ने सबसे पहले ‘किबुत्ज’ की नींव रखी. इन नौजवानों ने गैलीली सागर (Sea of Galilee) के नजदीक जेजरील घाटी (Jezreel Valley) में जमीन का एक टुकड़ा खरीदा.
तब ये इलाक़ा
ओटोमॉन साम्राज्य के नियंत्रण में हुआ करता था. पूरी तरह
बंजर
जमीन
थी,
लेकिन
नौजवानों
ने
अपनी
जिजीविषा
के
बूते
इसको
उपजाऊ
बनाने
में
कोई
कोर-कसर
नहीं
छोड़ी.
इस
जमीन
पर
खेती
के
लिए
एक
ग्रुप
बनाया,
ताकि
काम
आसान
हो
सके.आगे
चलकर
इस
ग्रुप
को
‘किबुत्ज’
नाम
दिया.
यहूदी लोग जमीन खरीदते रहे और किब्बुत्ज जीवन शैली को आगे बढ़ाते रहे। किब्बुत्ज का इतिहास वास्तव में इस्राइल राष्ट्र से भी पुराना है।
इस्राइल विश्व के स्वाभिमानी, स्वावलंबी और वीर राष्ट्रों में से एक है। हिब्रू संस्कृति की हैरान कर देने वाली प्रगति और इस्राइल के पुनरुत्थान की जड़ें किब्बुत्ज में हैं।
इनका सपना था ज़मीन पर काम करते हुए एक ऐसी वैकल्पिक जीवनशैली विकसित करने की, जिसमें असली बराबरी का बर्ताव और जीवन को नए मूल्यों से भरा जा सके.
इनमें से सबसे ख़ास बात है, पूरे समुदाय में हर कोई बराबर माना जाता है. हर कोई हर काम करता था और समुदाय की हर चीज़ पर हर किसी का हक़ होता था. यहां तक कि पर्सनल गिफ्ट में भी सबकी हिस्सेदारी थी.
इस समुदाय में हर काम की ख़ास अहमियत होती थी. इस अवधारणा ने काम की गरिमा ऐसे बढ़ाया कि किसी भी काम को ख़ास परिस्थिति या सामग्री से जोड़ना नहीं पड़े.
इसी तरह पूरे समुदाय में हर काम बारी-बारी से किए जाते थे. समुदाय में जिसे भी एक दिन का प्रशासक बनाया जाता था, वो अगले दिन सामूहिक भोजन कक्ष में बरतन भी धोता था
इसी तरह समुदाय के हर किसी की ज़रूरतों को सामूहिक रूप से पूरा किया जाता था. इसमें घर से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य और मनोरंजन से लेकर साबुन, टूथब्रश और तौलिये तक सबकुछ सामूहिक होता था.
संपूर्ण बराबरी के आदर्श को बनाए रखने के लिए किबुत्ज़ लोग सामूहिक रसोई घर में खाना बनाते और खाते थे. कपड़े भी एक ही तरह के पहनते थे.
इस्राइल की जनसंख्या के केवल 5 प्रतिशत ही किब्बुत्ज निवासी थे, लेकिन उन्होंने देश का 50 प्रतिशत से अधिक खाद्यान्न पैदा किया। किब्बुत्ज के एक अभिनव सामाजिक संगठन और उनके निर्माण के पीछे की कल्पना शक्ति ने यहूदी जीवन में अद्भुत क्षमताओं का विकास किया।
‘किबुत्ज’ समुदाय के लोग पूजा-पाठ और धर्म-कर्म से प्रार्थना से ज्यादा जमीन
पर काम को तरजीह देते हैं. इजरायल की स्थापना के बाद एक तरीके से इसी समुदाय ने वहां
धर्मनिरपेक्षता की नींव भी रखी.
‘किबुत्ज’ समुदाय की सबसे बड़ी बात यह है कि चाहे महिला हो या पुरुष, हर कोई बराबर है. हर कोई काम करता है और सभी चीजों पर सबका बराबर का हक होता है.
इस समुदाय के किसी शख्स को पर्सनल गिफ्ट भी मिलता है तो उस पर
भी पूरे समुदाय का हक होता है. साबुन से लेकर टूथब्रश और तौलिया तक एक दूसरे के साथ
शेयर करते हैं. एक साथ खाना बनातें हैं और एक साथ खाते हैं.
‘किबुत्ज’
समुदाय
(Kibbutz Community) कितना कर्मठ है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अपनी
स्थापना के करीब 20 साल बाद 1930 आते-आते इस समुदाय ने खेती-किसानी में आत्मनिर्भता
तो हासिल ही की. एक कदम आगे बढ़कर पूरी इंडस्ट्री खड़ी कर दी. कपड़े से लेकर खाने-पीने
और तमाम चीजें बनाने लगे.
साल 1948 में जब औपचारिक तौर पर एक देश के रूप में इजरायल की नींव रखी गई, तब ‘किबुत्ज’ समुदाय हर मोर्चे पर खड़ा नजर आया. हर तरीके से मदद की. इजरायल की स्थापना के बाद इस समुदाय ने और तरक्की की.
एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में पूरे इजराइल में 270 के आसपास ‘किबुत्ज’ सेटलमेंट हैं. हर सेटलमेंट में 100 से लेकर 1000 के आसपास लोग रहते हैं.
किब्बुत्ज एक कृषि समुदाय है। इनमें से अधिकांश समाजवाद के सिद्धांतों पर संगठित और धार्मिक सिद्धांतों पर आधारित हैं। पारंपरिक लोगों से वे अलग हैं, जिनमे व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए कोई स्थान नहीं। सभी किब्बुत्ज सुंदर और ग्राम्य परिवेश में स्थित हैं।
सभी किब्बुत्ज वासी एक ही डाइनिंग हॉल में खाना खाते हैं। किसी के घर में कोई रसोई नहीं होती। परिवारों के खेत बंटे नहीं होते। किसी का कोई निजी खर्च नहीं होता। शिक्षा हो, चिकित्सा हो, विदेश यात्रा करनी हो, सभी का सारा खर्च किब्बुत्ज उठाता है।
किसी की निजी आय हो, वह भी किब्बुत्ज की संपत्ति हो जाती है।
खेती से, बाह्य सेवाओं से, होटलों से तथा विशिष्ट उत्पादों के निर्यात से प्रत्येक किब्बुत्ज को भारी आय होती है, जिसका इस्राइल की सकल आय में महत्वपूर्ण योगदान होता है। आधुनिक विश्व में वे शांति, सुरक्षा, सौम्यता और सृजनशीलता के नखलिस्तान हैं।
इस्राइल के अस्तित्व में आने से पूर्व 20वीं शताब्दी के प्रारभ में जब अमीर यहूदियों ने अरबों से भूमि खरीदी, तो सुनसान निर्जीव-सी पहाड़ियों के बीच यह क्षेत्र सांपों और बिच्छुओं से बुरी तरह पीड़ित था। चिकित्सा रिपोर्ट में यह भूमि मानव बस्तियों के लिए प्रतिकूल पाई गई।
बुजुर्गों ने यह रिपोर्ट पढ़ी, तो उसे किसी तिजोरी में छिपा दिया, ताकि युवा विचलित न हों। उन्होंने युवाओं से कह दिया कि सब ठीक-ठाक है। सर्वप्रथम उन्होंने गायों के लिए शेड बनाए, फिर बच्चों के लिए सुरक्षित स्थान और अंत में वयस्कों के लिए आवास।
अपने ऐतिहासिक महत्व और अनूठी जीवन शैली से परे, किब्बुत्जों ने इस्राइल की पहचान और अनन्य विकास को आकार देने में विशिष्ट भूमिका निभाई है और देश की मजबूती में योगदान दिया है। कई किब्बुत्ज शुष्क क्षेत्रों में कृषि नवाचार में सबसे आगे रहे हैं।
येरूशलम के पूर्व से लेकर मृत सागर (डेड सी) तक विस्तृत जुडियन डेजर्ट में कहीं-कहीं फसलों से लहराते खेत मिलेंगे, जिन्हें देखकर विश्वास ही नहीं होता कि ऐसी मरूभूमि में भी खेती हो सकती है। यह सब किब्बुत्ज के किसानों का पुरुषार्थ है! मरुभूमि को उपजाऊ खेतों में रूपांतरित करने की तकनीक, कला और साहस केवल इस्राइल के पास है।
युद्ध किब्बुत्ज मानसिकता का हिस्सा नहीं है। फिर भी, जब-जब अरब के साथ युद्ध छिड़ा, तो पाया गया कि इस्राइली सेना के जेट लड़ाकू पायलटों में से 25 प्रतिशत किब्बुत्ज वासी थे। इस्राइल की परिस्थितियों में एक जेट फाइटर का होना बहुत बड़ी बात है।
इसके लिए उन सभी कौशलों की आवश्यकता होती है जो एक इंसान के पास होने अनिवार्य होते हैं-साहस, बुद्धिमत्ता, त्वरित सजगता, तप और पूर्ण समर्पण। इतनी बड़ी संख्या में जब जेट पायलट किब्बुत्जनिक होते हैं, तो किब्बुत्जों के लिए यह दिखाने का अवसर होता है कि वे शांतिप्रिय और विकासोन्मुखी होने के साथ युद्ध कलाओं में भी निपुण हैं।
किब्बुत्ज के सदस्य प्रायः ऐसे काम करते हैं, जो उनके अद्वितीय समुदायों के लोकाचार और मूल्यों को दर्शाते हैं। किब्बुत्ज अपने सदस्यों को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने में सक्षम रहे हैं। इन सेवाओं ने उच्च मानक स्थापित किए हैं
इस्राइल के गौरवशाली इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के साथ किब्बुत्जों को चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा है। इस्राइल का अच्छा मित्र होने पर भी अमेरिका समाजवादी मूल्यों पर आधारित किब्बुत्ज जीवन शैली के विरुद्ध रहा है।
भले ही इस्राइल की आबादी में किब्बुत्जनिकों का अनुपात कम हो, उनका प्रभाव उस देश के सशक्तिकरण के रूप में विश्व को आज भी दिखाई पड़ रहा है।
The
End
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