Wednesday, 6 September 2023

अमृता शेरगिल: भारतीय फ्रीडा काहलो: छोटी उमर (जीवन के केवल 28 वर्ष) की बड़ी कहानी-20वीं सदी की आवारागर्द आर्टिस्ट अमृता शेरगिल.

बोल्ड लाल होंठ. काली, रहस्यमय भौहें। अपने बालों को कस कर बांधे हुए दीवार के सहारे झुकी हुई वह युवती हर तरह से फ्रीडा काहलो की तरह लग रही थी, जो अपने फोटोग्राफर-प्रेमी के साथ एक शॉट के लिए पोज़ दे रही थी। वह अपने आप में एक कलाकार भी थीं - यद्यपि, तुलनात्मक रूप से गुमनाम

मिलिए अमृता शेरगिल से, जो फ्रीडा की रचनात्मक कंपन का भारत का जवाब थीं, जो उपमहाद्वीप में कला में आधुनिकतावाद लेकर आईं। और अगर हम फ्रिडा (उन भौंहों) से तुलना करने के लिए आमंत्रित करते हैं, तो यह उसकी अपनी विरासत को कम करने के लिए नहीं है, बल्कि उसे आगे चलकर आत्म-मुक्त, महिला कलाकारों के एक भाईचारे में शामिल करने के लिए है...

 

बीसवीं सदी में एक ऐसा दौर भी आया, जब दुनिया भर के कलाकारों में सबसे अलग और लीक से हटकर काम करने का जुनून बढ़ने लगा था। उस दौर के इसी चलन ने दुनिया को ऐसे कलाकर दिए, जिन्होंने इतिहास में अपनी एक अमिट छाप छोड़ी।

 

इन्हीं कुछ अलग कलाकरों में से एक थीं भारत की पहली की अवांगार्द आर्टिस्ट अमृता शेरगिल.बोल्ड, बेबाक और सबसे महँगी पेंटर – “अमृता शेरगिल”।

 

अमृता यानी हिंदुस्तान की हमारी अपनी फ्रीडा काल्हो. सिर्फ अपने ब्रश और रंगों से कैनवास पर जीवन का जादू रचने वाली फ्रीडा नहीं, बल्कि उन्मुक्त, आजाद, निर्बंध जीने वाली फ्रीडा. वैसी ही उन्मुक्त, आजाद और निर्बंध थीं अमृता शेरगिल.

 

अपनी शैली और महिलाओं पर जोर देने के कारण, अमृता शेरगिल को "भारतीय फ्रीडा काहलो" के रूप में जाना जाने लगा।

 

आधुनिक चित्रकला की नींव रखने वाली अमृता, 20वीं सदी की अवांगार्द आर्टिस्ट अमृता. सिर्फ 19 साल की उम्र में अपनी पहली ऑइल कलर पेंटिंगयंग गर्ल्स से दुनिया भर में कला जगत का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने वाली अमृता. सिर्फ 9 साल के कॅरियर में ऐसी पेंटिंग्स बनाने वाली अमृता, जो आज भी करोड़ों में बिक रही हैं.

 

अमृता शेरगिल का जन्म 30 जनवरी, 1913 को बुडापेस्ट, हंगरी में हुआ।

उनके पिता उमराव सिंह शेरगिल मजीठिया संस्कृत और पारसी के विद्वान व्यक्ति थे। उनकी माँ मेरी अन्तोनेट्टे गोट्समान हंगरी की एक यहूदी ओपेरा गायिका थीं। उनकी एक छोटी बहन भी थी जिसका नाम इंद्रा सुंदरम था।

 Baby Amrita Shergill with her parents

बुडापेस्ट के शहर हंगरी में पिछले कई दिनों से लगातार बर्फीली सर्दी पड़ रही थी. कुछ दिनों पहले तक बर्फ गिर रही थी. उस दिन अचानक सुबह तेज सूरज निकला. 30 जनवरी का दिन था, साल 1913. पिता उमराव सिंह के पास संदेश आया- “बधाई हो, बिटिया हुई है.” पिता ने बेटी को गोद में उठाया.

 

मानो कोई नन्हा फरिश्ता खुद आसमान से उतर आया हो. पूरे सिर पर काले, चमकीले, रेशमी बालों की टोपी थी. चौड़ा माथा, बड़ी-बड़ी आंखें. पहली ही मुलाकात में पिता की आंखों में देखती हुई नन्ही बच्ची. डरी, रोई. माता- पिता ने बड़े लाड़ से नाम रखा था-अमृता.

 

अृमता के पिता उमराव सिंह शेरगिल हिंदुस्तान के एक कुलीन घराने से थे और मां एंतोनियो गॉतेसमान हंगेरियन मूल की यहूदी महिला थीं. वो एक ऑपेरा सिंगर और खुद भी हंगरी के एक समृद्ध कुलीन खानदान से ताल्लुक रखती थीं.

 

शुरुआती जीवन दिमाग तो अमृता का तेज था ही, उंगलियों में भी बला का हुनर था. 5 साल की उम्र से उन्होंने चित्र बनाना शुरू कर दिया था. वो अपने नन्हे-नन्हे हाथों से पेंसिल से कागज पर अपने खिलौनों, चिडि़या, बत्तख, बिल्ली, कुत्ता और घर के छोटे-छोटे सामानों के हूबहू चित्र उतार देतीं.

 

भाषाएं सीखने का तो उसे मानो कोई वरदान मिला हुआ था. छह बरस की उमर तक अमृता को औपचारिक रूप से अंग्रेजी सिखाने की शुरुआत नहीं हुई थी. घर में सब बच्चों से हंगेरियन में बात करते. माता-पिता कई बार आपस में अंग्रेजी में बात करते थे.

Amrita Shergill with her Sister

एक दिन वो आपस में कुछ बात कर रहे थे. तभी अमृता ने कहा कि उसे पता है कि वो दोनों क्या बात कर रहे हैंपेरिस के ग्रां सैलों में प्रदर्शित पहली पेंटिंगयंग गर्ल्समां चौंक गईं. इसे कैसे पता. इसे तो अंग्रेजी आती नहीं. अमृता ने तुरंत मां के कहे वाक्य का हंगेरियन में अनुवाद कर दिया. अमृता ने बिलकुल सही अनुवाद किया था. मां-पिता भौंचक रह गए.

 

ये बिना सिखाए कब उसने अंग्रेजी भी सीख ली. परिवार के साथ हिंदुस्तान वापसी 1921 में कुछ आर्थिक दिक्कतों के चलते अमृता और उनकी छोटी बहन इंदिरा को लेकर माता-पिता हिंदुस्तान लौट आए और शिमला में रहने लगे.

 

अमृता में एक विद्रोही और अवांगार्द तेवर तब भी था, जब वो छोटी बच्ची थीं. शिमला के कॉन्वेंट स्कूल से अमृता को इसलिए निकाल दिया गया क्योंकि एक दिन स्कूल में भरे हॉल में अमृता ने सबके सामने घोषणा कर दी कि वो जीजस को नहीं मानतीं. वो तो नास्तिक हैं. तब उनकी उम्र सिर्फ 9 साल थी.


19 साल की उम्र में पेरिस के ग्रां सैलों में उनकी पहली पेंटिंग प्रदर्शित हुई. नाम था- ‘यंग गर्ल्स.’ बेहद शांत, धूमिल और धूसर से रंगों में बनाई गई इस पेंटिंग को देखकर पेरिस में उस जमाने के नामी आर्टिस्ट, कला के जानकार और प्रोफेसर पियेर वेलां भी अचंभित रह गए.

 

कुछ ऐसा ही लम्हा रहा होगा, जब 20 साल की फ्रीडा काल्हो एक दिन अपनी पेंटिंग्स लेकर अपने शहर और देश के सबसे बड़े कलाकार डिएगो रिवेएरा से मिलने पहुंच गई थी और अपने अक्खड़, मुंहफट मिजाज के बावजूद डिएगो उन तस्वीरों से नजर नहीं हटा पाए. पेरिस के ग्रां सैलों में लगी उस प्रदर्शनी को देखने के बाद एक ज्यूरी मेंबर को जिज्ञासा हुई कि ये पेंटिंग बनाने वाली शख्स कौन है.

 

उन्हें उम्मीद थी कि हिंदुस्तान से आई किसी उम्रदराज सफेद बालों वाली महिला से उनका सामना होगा. लेकिन उनके सामने खड़ी थी बमुश्किल 40 किलो वजन और सुनहरे रेशमी बालों वाली 19 साल की एक लड़की. ज्यूरी मेंबर की आंखों में शुबहा था, “ये चित्र तुमने बनाया है? आखिर कैसे? क्या तुम पालने में ही पेंटिंग सीख चुकी थी.” अमृता सामने खड़ी बस मुस्कुराती रहीं.

 

25 की उम्र में विवाह और हिंदुस्तान वापसी 1938 में 25 साल की उम्र में अमृता ने बुडापेस्ट में अपने ममेरे भाई विक्टर एगोन से विवाह किया, जो पेशे से डॉक्टर थे. वे उनके साथ हिंदुस्तान लौट आईं और उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर से कुछ 30 किलोमीटर दूर सराया नाम की जगह पर रहने लगीं, जहां उनके पिता की पुश्तैनी जागीर थी.

 

यह जागीर उन्हें अंग्रेजों से मिली थी. सरदार उमराव सिंह शेरगिल के परिवार ने वहां एक शक्कर मिल बनवाई थी और एक पूरा का पूरा शहर ही बसा दिया था. कुछ साल वहां रहने के बाद 1940 की गर्मियों में वो अपने पति के साथ लाहौर चली गईं. लाहौर में अमृता की जिंदगी बहुत लंबी नहीं रही.

 

वहां पहुंचने के कुछ ही समय बाद वो बीमार पड़ गईं. कोई समझ नहीं पाया कि बीमारी आखिर थी क्या. अमृता के डॉक्टर पति भी नहीं.

 

अमृता शेरगिल कई पुरुषों और स्त्रियों से प्रेम-सम्बन्ध थे। इनमें से बहुत सी स्त्रियों के उन्होंने पेटिंग्स भी बनाई। ऐसा माना जाता है कि उनकी एक प्रसिद्द पेंटिंगटू वीमेनमें उनकी और उनकी प्रेमिका मारी लौइसे की पेंटिंग है।

 

आजाद अमृता हिंदुस्तान के लिए नहीं बनी थी भारत के निहायत संकीर्ण और मर्दवादी माहौल में अमृता शुरू से ही अनफिट थीं. विवाहित होने के बावजूद उनका बहुत सारे लोगों के साथ प्रेम रहा, जिन्हें वे लंबे-लंबे खत लिखा करती थीं.

 

अमृता का मन, जीवन ऐसा नहीं था, जिसे किसी समाज का नियम और रिश्ते की दीवार बांध सके. पिता उमराव सिंह ये बात जानते थे, इसलिए वे अमृता के हिंदुस्तान लौटने के पक्ष में नहीं थे. उन्होंने बेटी से कहा, “ये देश तुम्हारे लिए नहीं है. तुम यहां घुट जाओगी.” और यही हुआ भी. जहां यूरोप में उनकी निजी जिंदगी से ज्यादा बड़ी उनकी कला, रूमानियत, आजादी और निर्बंधता थी, वहीं हिंदुस्तान के संकीर्ण और जजमेंटल माहौल ने उन्हें बांधकर रख दिया था.

 

महफिलों में चर्चे उनके व्यक्तित्व और कला से ज्यादा उनके सौंदर्य, देह और प्रेम संबंधों के होते. 

कभी किसी ने इस बारे में बात नहीं की कि इतनी सुंदर, काबिल और अपने समय से 100 साल आगे की स्त्री को इतना छोटा सा जीवन क्यों नसीब हुआ.

 

अमृता की देह में कोई बीमारी नहीं थी. उसका मन बीमार था. “यंग गर्ल्सकी उदास, ठहरी हुई उन दो लड़कियों की तरह और अपने चित्रों में रची अनगिनत लड़कियों की तरह, जो गलती से गलत देश-काल में पैदा हो गई थीं. 

 

उनकी 1932 की पेंटिंग "यंग गर्ल्स" को 1933 में प्रसिद्ध कला शो पेरिस सैलून में स्वर्ण पदक मिला।

इसमें उसकी बहन, इंदिरा को यूरोपीय कपड़े पहने हुए और आत्मविश्वास से भरे हुए दिखाया गया है, जबकि वह आंशिक रूप से नग्न दोस्त डेनिस प्राउटॉक्स के साथ बैठी है, जिसका चेहरा उसके बालों से छिपा हुआ है - एक महिला बोल्ड और साहसी है और दूसरी आरक्षित और छिपी हुई है।

 

पेंटिंग शेर-गिल के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है - मिलनसार और मिलनसार, क्योंकि वह उन लोगों के बीच जानी जाती थी जो पेरिस की पार्टियों में उसका सामना करते थे, या दूर छुपकर जोरदार पेंटिंग करते थे।

 

ताहिती के रूप में सेल्फ पोर्ट्रेट" फ्रांसीसी पोस्ट-इंप्रेशनिस्ट पॉल गाउगिन की शैली को उजागर करता है, जो अक्सर गहरे रंग की ताहिती महिलाओं को चित्रित करते थे। उसके अपने भूरे शरीर को गौगुइन की नग्न महिला की शैली में चित्रित किया गया है, जिसमें उसके चेहरे पर एक सादे पोनीटेल और दूर की, उदास अभिव्यक्ति है।

 

शेरगिल को भी अपनी कामुकता के बारे में विवाद महसूस हुआ। डालमिया ने लिखा, वह समलैंगिक संबंध के विचार की ओर आकर्षित हुईं, "आंशिक रूप से एक मजबूत व्यक्ति के रूप में महिला के बारे में उनके व्यापक दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप, सम्मेलन की चालाकी से मुक्त।"

 

शेर-गिल ने 1934 में अपनी मां को लिखे एक पत्र में चास्सनी के साथ घनिष्ठता से इनकार किया - वनिता और किदवई की किताब के लिए हंगेरियन से अनुवादित।

 

हालाँकि उसने पुरुषों के साथ "रिश्तों के नुकसान" का हवाला दिया, उसने चासनी के बारे में कहा: "यौन दृष्टि से हमारा एक-दूसरे के साथ कभी कोई लेना-देना नहीं था।" उन्होंने आगे कहा, "मैंने सोचा था कि मौका आने पर मैं एक महिला के साथ रिश्ता शुरू करूंगी।"

1939 में, शेर-गिल और एगन अंततः भारत के गोरखपुर जिले के एक गाँव सराया में बस गए।

वहां रहते हुए वह उदास रहती थी. कुछ समय के बाद, उसने और एगन ने लाहौर में स्थानांतरित होने का फैसला किया, जो भारत का एक बढ़ता हुआ सांस्कृतिक केंद्र है जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। लाहौर में अपने पहले महत्वपूर्ण एकल कला शो से कुछ दिन पहले, वह बीमार हो गईं।

 

शेरगिल की विरासत हाल के वर्षों में बढ़ी है। संयुक्त राष्ट्र के सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को ने उनके जन्म की 100वीं वर्षगांठ 2013 को अमृता शेरगिल का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया।

 

उनकी मृत्यु के बाद, उनके परिवार ने बड़ी संख्या में पेंटिंग्स नई दिल्ली में नेशनल गैलरी ऑफ़ आर्ट को सौंप दीं और 1976 में भारत सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय खजाने के रूप में मान्यता दी, जिससे आधिकारिक अनुमति के बिना उनकी कला को देश से बाहर ले जाना अवैध हो गया। परिणामस्वरूप, खुले बाज़ार में शेर-गिल की पेंटिंग देखना दुर्लभ है।

 

आखिरी बार उनका एक काम क्रिस्टीज़ में पेश किया गया था -1931 से शीर्षकहीन (सेल्फ पोर्ट्रेट) - 2015 में था। यह £1,762,500 ($2.7 मिलियन) में बिका, जो कलाकार के काम के लिए दूसरी सबसे बड़ी नीलामी कीमत थी।









The End

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