Thursday, 3 August 2023

ओपेनहाइमर:भौतिक विज्ञानी जिसने परमाणु बम विकसित किया: परमाणु बम के विकास की कहानी- वह वैज्ञानिक जिन्हें कभी नोबेल पुरस्कार नहीं मिला

दिसंबर 1941 में पर्ल हार्बर पर जापान के अकारण हमले के बाद, जैसे ही संयुक्त राज्य अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध में प्रवेश किया, संदेह का माहौल था कि जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने परमाणु बम बनाने का कार्यक्रम शुरू किया था। अमेरिका को जीत सुनिश्चित करने और जान बचाकर द्वितीय विश्व युद्ध को तेजी से ख़त्म करने की ज़रूरत थी।

दुनिया का पहला परमाणु बम जापान के हिरोशिमा शहर पर गिराया गया. लेकिन इस बम का विचार शुरू हुआ था, नाज़ी जर्मनी को ध्यान में रखकर. परमाणु बम को बनाया गया मैनहैटन प्रोजेक्ट के तहत. इस प्रोजेक्ट में काम करने वाले डॉक्टर एडवर्ड टेलर एक इंटरव्यू में कहते हैं:--"आज लोगों को अहसास नहीं लेकिन हिटलर दुनिया जीतने से बस बाल बराबर दूर था".

 

यदि प्रथम विश्व युद्ध रसायनज्ञों का युद्ध था, तो द्वितीय विश्व युद्ध भौतिक शास्त्रियों का युद्ध बन गया। अमेरिकी सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी डॉ. रॉबर्ट ओपेनहाइमर शीर्ष-गुप्त $2 बिलियन वाले मैनहटन इंजीनियर जिले के प्रभारी थे। उनका मिशन युद्ध के अंतिम हथियार - परमाणु बम - को तैयार करने के वैज्ञानिक प्रयास का नेतृत्व करना था। यह द्वितीय विश्व युद्ध की सर्वोच्च प्राथमिकता वाली परियोजना थी।

 

1939 में हिटलर ने पोलैंड पर आक्रमण किया और दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत हुई थी. हालांकि जिस बम ने इस युद्ध को ख़त्म किया, उसे बनाने के विचार की शुरुआत 1938 में ही हो गई थी. उस साल जर्मनी के तीन वैज्ञानिकों ने एक ज़बरदस्त खोज की. उन्होंने यूरेनियम एटम को उसके अव्ययों में तोड़ डाला.

 

इस खबर ने जर्मनी के सारे वैज्ञानिकों को चिंता में डाल दिया. क्योंकि E= MC स्क्वायर के हिसाब से ऐसी रिएक्शन अपने पीछे बहुत सारी ऊर्जा पैदा कर सकती थी. 1939 में जैसे ही युद्ध शुरू हुआ. सबके दिमाग़ में एक ही विचार कौंधा, इस खोज का इस्तेमाल अब ज़रूर बम बनाने में किया जाएगा. हालांकि ये बात अभी बस थियोरी तक सीमित थी.

 

जर्मन वैज्ञनिक लियो ज़िलार्ड थियोरी के प्रैक्टिकल में तब्दील होने का इंतज़ार नहीं कर सकते थे. उन्होंने सीधे अमेरिका का रुख़ किया. ज़िलार्ड अमेरिकी सरकार को इस ख़तरे के प्रति आगाह करना चाहते थे. लेकिन इस काम के लिए उन्हें ज़रूरत थी, एक ऐसी आवाज़ की, जिसमें वजन हो.

Albert  Einstein

 उन्होंने दुनिया के सबसे महान वैज्ञानिक से मदद मांगी. ज़िलार्ड एलबर्ट आइंस्टाइन से मिले. और उन्हें सरकार से बात करने के लिए मनाया. आइंस्टाइन ने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति फ़्रैंक्लिन रूज़वेल्ट के नाम एक ख़त लिखा. और उन्हें आगाह किया कि हिटलर के वैज्ञानिक परमाणु बम बनाने में जुट चुके हैं. इसलिए ज़रूरी है कि ये बम अमेरिका पहले बना ले. उनका एक प्रतिनिधि रूज़वेल्ट से मिला भी.

Franklin D . Roosevelt

इस खबर की गम्भीरता को समझते हुए रूज़वेल्ट तुरंत हरकत में आए. उन्होंने एक टॉप सीक्रेट प्रोजेक्ट शुरू करने का आदेश दिया. इस प्रोजेक्ट को हम मैनहैटन प्रोजेक्ट (Manhattan Project) के नाम से जानते हैं. लेकिन असल में इसका नाम था मैनहैटन इंजिनीयर डिस्ट्रिक्ट.

 

आगे सवाल था, इस प्रोजेक्ट को लीड कौन करेगा? इस काम की ज़िम्मेदारी मिली, आर्मी कोर के एक जनरल, लेस्ली ग्रोव्स को. ग्रोव्स प्रोजेक्ट की तैयारियों में जुट ग़ए.

 

नाभिकीय बम बनाने की कल्पना के साथ ही 2 दिसम्बर 1942 को नाभिकीय क्रियाओं एवं परमाणु भट्टी के खोजकर्ता एनरिको फर्मी ने शिकागो विश्वविद्यालय के स्टेडियम के नीचे बने वीरान स्क्वैश कोर्ट में पहली बार अणु विघटन की नियंत्रित श्रृंखला प्रक्रिया की सफलता का परीक्षण किया।

 

और इस परीक्षण के साथ ही परमाणु बम का आविष्कार हो चूका था। अब सिर्फ Atom Bomb का परीक्षण करना बाकी था। इसके बाद 16 जुलाई 1945 का समय चुना गया जिसमें दुनिया के पहले न्यूक्लियर बम का सफल परीक्षण किया गया।

ओपेनहाइमर: परमाणु बम का जनक- प्रारंभिक जीवन

22 अप्रैल 1904 को न्यूयॉर्क में जर्मन यहूदी आप्रवासियों के घर जन्मे ओपेनहाइमर एक प्राकृतिक वैज्ञानिक थे। जब वे मात्र 12 वर्ष के थे, उस समय उन्हें न्यूयॉर्क मिनरलोजिकल क्लब द्वारा व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया था। कम उम्र में खनिजों के बारे में उनके गहन ज्ञान से क्लब प्रभावित हुआ।

 

ओपेनहाइमर 1922 में रसायन विज्ञान का अध्ययन करने के लिए हार्वर्ड विश्वविद्यालय गए। हालाँकि, तीन साल बाद, वह भौतिकी की ओर बहुत आकर्षित हुए और इस तरह उनके करियर ने एक अलग वैज्ञानिक रास्ता अपनाया।

ओपेनहाइमर ने बाद में भौतिकी में स्नातक करने के लिए कैम्ब्रिज की यात्रा की, जहां उन्होंने कैवेंडिश प्रयोगशाला में नोबेल पुरस्कार विजेता जे जे थॉमसन - वह व्यक्ति जिसने इलेक्ट्रॉन का पता लगाया - के तहत प्रशिक्षण शुरू किया।

 

एक साल बाद, ओपेनहाइमर को अपने परमाणु अनुसंधान के बीच में, जर्मनी के गौटिंगेन विश्वविद्यालय के सैद्धांतिक भौतिकी संस्थान के निदेशक मैक्स बोर्न ने आमंत्रित किया, जहां उन्हें भविष्य के विश्व-प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के साथ विचारों और विचारों का आदान-प्रदान करने का अवसर मिला।

 

जर्मनी में रहते हुए, ओपेनहाइमर ने क्वांटम सिद्धांत पर कई पत्र प्रकाशित किए। आणविक तरंग कार्यों के लिए बोर्न-ओपेनहाइमर सन्निकटन पर उनके काम को क्वांटम आणविक सिद्धांत में एक महत्वपूर्ण योगदान माना गया, जिसे वैज्ञानिक समुदाय द्वारा व्यापक रूप से सराहा गया।

 

ओपेनहाइमर ने 1927 में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले और कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी दोनों में प्रोफेसरशिप ली। ओपेनहाइमर ने अपने 13 साल परमाणु भौतिकी, क्वांटम क्षेत्र सिद्धांत और खगोल भौतिकी सहित कई वैज्ञानिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण शोध करने में बिताए।


हिटलर के नाज़ी जर्मनी के उदय के साथ, कई अन्य लोगों की तरह ओपेनहाइमर का विचार था कि जर्मनी जल्द ही दुनिया का पहला परमाणु हथियार विकसित करेगा। जैसे ही सितंबर 1939 में पूरे यूरोप में युद्ध छिड़ गया, ओपेनहाइमर ने समान विचारधारा वाले अमेरिकियों के साथ सहयोग किया जो परमाणु हथियार विकसित करने के लिए समान रूप से उत्सुक थे।


विश्व युद्ध अधर में था. जर्मनी दिन पर दिन बढ़त बनाता जा रहा था. और जापान ने भी अमेरिका के लिए मुश्किलें बढ़ा दी थीं. ज़रूरी था कि मैनहैटन प्रोजेक्ट को पूरी स्पीड से आगे बढ़ाया जाए. इस काम को अंजाम दिया, जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने. वो शख़्स जो आगे जाकर मैनहैटन प्रोजेक्ट का मुख्य चेहरा बनने वाला था.

ओपेनहाइमर की अपने पेशेवर क्षेत्र पर व्यापक पकड़ के कारण अमेरिकी वैज्ञानिक हलकों में उनकी प्रतिष्ठा बढ़ी। 1940 के दशक की शुरुआत तक उन्हें ऐसे व्यक्ति के रूप में जाना जाने लगा, जो हमेशा प्रश्न पूछने से पहले ही सही उत्तर दे देते थे। 


नाज़ियों द्वारा यूरोप में यहूदी समुदाय के साथ अमानवीय व्यवहार ने प्रतिभाशाली परमाणु भौतिक विज्ञानी को क्रोध से भर दिया था। उस समय ओपेनहाइमर को अत्यधिक वर्गीकृत 'प्रोजेक्ट वाई' - परमाणु बम बनाने के मिशन - के प्रमुख के रूप में नामित किया गया था।

 

उन्होंने केवल यह कहकर अमेरिकी विश्वविद्यालय परिसरों से सर्वश्रेष्ठ युवा भौतिकविदों की भर्ती की, “मैं आपको नहीं बता सकता कि हम क्या काम करेंगे। लेकिन मैं आपको बता सकता हूं कि यह इस युद्ध को समाप्त कर सकता है - और यह सभी युद्धों को समाप्त कर सकता है।

 

Florence Pugh and Cillian Murphy --Film  "Oppenheimer"

1942 तक लॉस एलामोस, न्यू मैक्सिको में जल्दबाजी में निर्मित सुदूर रेगिस्तान सुविधा में असाधारण गोपनीयता में काम करते हुए उन्होंने सुपर प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों के एक समूह का नेतृत्व किया, जिनमें से कुछ नोबेल पुरस्कार के प्राप्तकर्ता थे।

 

अपनी विशिष्ट मार्टिंस पीते हुए और सिगरेट लहराते हुए उन्होंने एक्सिस पॉवर्स पर सैन्य श्रेष्ठता प्राप्त करने के लिए स्वयं और कुशल वैज्ञानिकों को फील्ड प्रयोगशाला में ख़तरनाक गति से चलाया।

 

ओपेनहाइमर को पता था कि यदि उनकी टीम परमाणु रहस्यों को उजागर नहीं कर सकती तो धुरी राष्ट्र भी ऐसा नहीं कर सकते। गणितज्ञ चार्ल्स क्रचफ़ील्ड ने कहा किलॉस एलामोस में भी, ओपेनहाइमर ने हथियारों या भौतिकी के बारे में बात नहीं की।

 

ओपेनहाइमर को मैनहटन प्रोजेक्ट के तहत प्रोजेक्ट Y का डायरेक्टर बनाया गया.

ओपेनहाइमर को मैनहटन परियोजना का निदेशक बनाए जाने पर चिंताएँ थीं क्योंकि परियोजना में काम करने वाले कई नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक उन्हें रिपोर्ट करेंगे, जबकि ओपेनहाइमर को नोबेल पुरस्कार विजेता होने का दर्जा प्राप्त नहीं था।


ओपेनहाइमर नोबेल पुरस्कार पाने में असफल रहे क्योंकि सैन्य तकनीकी सफलताओं को समिति द्वारा मान्यता नहीं दी गई है.

प्रोजेक्ट Y, इस पूरे मिशन का साइंटिफिक आर्म था. जिसके तहत बम को डिज़ाइन किया जाना था. ओपेनहाइमर एक पेचीदा शख़्सियत के व्यक्ति थे. जिनियस इंसान थे, लेकिन कॉलेज के दिनों में प्रैक्टिकल से डरते थे.

 

कॉलेज में एक बार उन्होंने अपने प्रोफ़ेसर को ज़हर देने की कोशिश की थी. एक प्रेमिका थी, जिसने उन्हें कमुनिस्ट विचारों से रूबरू कराया. गीता पढ़ते थे, साहित्य में रुचि थी लेकिन लोगों के साथ व्यवहार में अक्खड़ थे.

 

इसके बावजूद जब उन्हें मैनहटन प्रोजेक्ट की ज़िम्मेदारी मिली, उन्होंने बाक़ी सभी चीज़ों को किनारे रखते हुए अपना पूरा ध्यान प्रोजेक्ट पर लगा दिया. मैनहैटन प्रोजेक्ट पर तीन साल तक काम चला. 1942 से 1945 तक. दुनिया में सरकारी खर्चे पर शुरू हुआ, ये पहला साइंस प्रोजेक्ट था, जिसे कई सालों तक चलाया जाना था.

मैनहटन परियोजना के वैज्ञानिक

इन सालों में कई मुश्किलें आई. काम पूरी गोपनीयता से होना था. प्रोजेक्ट सफल होगा या नहीं, इसकी कोई ग़ैरंटी नहीं थी. और इसी दौरान अमेरिकी वैज्ञानिकों को जर्मनी से होड़ बनाए रखनी थी. जो पहले सफल होता, दुनिया उसकी मुट्ठी में होती.

 

दुनिया भर के महान वैज्ञानिकों ने मैनहैटन प्रोजेक्ट में अपना योगदान दिया. इनमें ओपेनहाइमर, लियो ज़िलार्ड, एनरिको फ़र्मी का नाम आपने सुना. इनके अलावा नील बोह्र, रिचर्ड फ़ायनमेन, क्लाउस फुक्स जैसे दिग्गज वैज्ञानिकों के नाम शामिल थे. मैन हैटन प्रोजेक्ट के दौरान कुछ दिलचस्प वाक़ये भी हुए.

एक किस्सा वो है जब प्रोजेक्ट के लिए 14 हज़ार टन चांदी लोन ली गई. लोन की रिक्वेस्ट पहुंची US ट्रेज़री डिपार्टमेंट के पास. चूंकि प्रोजेक्ट पूरी तरह सरकार से फ़ंडेड था, इसलिए ट्रेज़री ने सवाल उठाया कि ये रक़म चाहिए क्यों.


असली बात ये थी कि ये चांदी पैसे के तौर पर नहीं, परीक्षण के लिए धातु के तौर पर इस्तेमाल की जानी थी. लेकिन चूंकि पूरा मामला गुप्त था, इसलिए ये बात ट्रेज़री के अधिकारियों को नहीं बताई जा सकती थी. फिर भी किसी तरह ये लोन सेंक्शन हुआ.

 

लोन हासिल करने की ज़िम्मेदारी कर्नल केनेथ निकल्स को मिली थी. वो जाकर ट्रेजरी उप सचिव, डेनियल बेल से मिले. बेल बुजुर्ग व्यक्ति थे, जबकि निकल्स की उम्र उनसे कम थी. निकल्स जब मिलने गए, बेल ने उनसे पूछा:--”आपको अभी कितनी रक़म चाहिए.”

 

निकल्स ने जवाब दिया, 600 टन चांदी. बेल ने फिर कहा, 'ट्रॉय आउंस' में बताओ. यहां पर ये जान लीजिए कि ट्रॉय आउंस, बहुमूल्य रत्नों के भार का एक मेट्रिक होता है.

 

एक ट्रॉय आउंस, 31.1 ग्राम के बराबर होता है. बहरहाल आगे किस्सा सुनिए. बेल के सवाल पर निकल्स ने जवाब देते हुए कहा:-

मुझे नहीं पता कितने, ट्रॉय आउंस. बस मुझे 600 टन चांदी चाहिए. वैसे भी क्या फ़र्क़ पड़ता है. ट्रॉय आउंस हो या टन. चांदी तो उतनी ही रहेगी”.

 

ये सुनकर बेल ने निकल्स से कहा:--”नवयुवक, तुम्हारे लिए टन हो सकता है, लेकिन ट्रेज़री में गिनने वाले लोगों को सिर्फ़ ट्रॉय आउंस ही समझ आता है.”

अंत में केनेथ निकल्स को अपनी ज़रूरत की चांदी मिल गई. चूंकि ये लोन था. इसलिए इसे वापिस करना पड़ा. वापसी में पूरे 25 साल लगे.

 

इन सालों में परीक्षण के लिए चांदी इस्तेमाल हुई लेकिन जितनी लोन ली थी, उसके एक प्रतिशत हिस्से से भी कम. 14 हज़ार टन में से महज़ 300 किलो. ये किस्सा कर्नल केनेथ निकल्स की रोड टू ट्रिनिटी में दर्ज है. ट्रिनिटी परमाणु बम के परीक्षण का कोड नेम था.

 

16 जुलाई 1945, सुबह साढ़े पांच बजे इंसान ने दुनिया ख़त्म करने की काबिलियत हासिल कर ली


परमाणु विस्फोट के दिन क्या हुआ?

16 जुलाई, 1945 को ये परीक्षण किया गया था. इस काम के लिए अमेरिका के न्यू मेक्सिको राज्य के लॉस एलामोस शहर से 330 किलोमीटर दूर रेगिस्तान में एक जगह को चुना गया. जिसका स्पैनिश भाषा में नाम था, "ज़ोर्नाडा, डेल, मुएर्तो" या हिंदी में कहें तो 'मौत का सफ़र'.

 

12 जुलाई को बम का प्लूटोनियम कोर साइट पर लाया गया. 15 तारीख़ तक बम को पूरी तरह असेंबल कर एक 100 फुट ऊंचे टावर पर रख दिया गया. टेस्ट का समय 16 तारीख़ की सुबह 4 बजे नियत था. लेकिन 15 तारीख़ की रात ज़ोरदार बारिश हुई.

 

इसलिए टेस्ट का समय आगे बढ़ाकर 5 बजकर 30 मिनट कर दिया गया. टेस्ट की जगह से 20 किलोमीटर दूर तीन बंकर भी बनाए हुए थे, ताकि टेस्ट का निरीक्षण किया जा सके. जब निरीक्षण का वक्त आया, सब कुछ तैयार था, बम तैयार था. वैज्ञानिक तैयार थे. लेकिन फिर भी कोई ठीक ठीक नहीं बता सकता था, आगे क्या होगा.

 

मैनहट्टन परियोजना

मैनहैटन प्रोजेक्ट के दौरान, लॉस अलामोस के वैज्ञानिकों ने उस बम को विकसित करने के लिए काम किया जो जापानी शहरों हिरोशिमा और थियोरिटीकल गणना में एक सम्भावना ये भी बनती थी कि टेस्ट की चेन रिएक्शन कभी रुके ही नहीं, और वो पूरे वातावरण को भस्म कर डाले. टेस्ट से कुछ महीने पहले वैज्ञानिकों ने इस बात पर खूब माथापच्ची की.

 

लेस्ली ग्रोव्स ने ओपेनहाइमर से कहा, अगर ढाई करोड़ में एक भी संभावना ऐसी है कि इस टेस्ट से दुनिया नष्ट हो सकती है, तो टेस्ट नहीं होगा.

ओपेनहाइमर ने उन्हें जवाब दिया, ऐसा होने की सम्भावना लगभग शून्य है. ओपेनहाइमर हालांकि टेस्ट के सफल होने को लेकर पूरी तरह श्योर नहीं थे.टेस्ट से कुछ मिनटों पहले उन्होंने अपने एक साथी से शर्त लगाई. शर्त के अनुसार अगर टेस्ट सफल होता तो ओपेनहाइमर उसे 10 डॉलर देते, जबकि असफल होने की सूरत में उस बेचारे को अपनी एक महीने की तनख़्वाह से हाथ धोना पड़ता.

 

शर्तें और भी लग रही थी. एनरिको फ़र्मी सबसे ये शर्त लगा रहे थे कि ये बम सिर्फ़ न्यू मेक्सिको शहर को नष्ट करेगा, अमेरिका को या पूरी दुनिया को. ठीक 5.30 पर काउंट डाउन शुरू हुआ.

 

गिनती 10 से शुरू हुई, और जब तक 1 पर पहुंची, इंसान दुनिया तबाह करने की ताक़त हासिल कर चुका था. मशरूम के आकार का एक ग़ुब्बारा आसमान में ऊंचा उठा और दुनिया की सबसे ज़्यादा देखी गई तस्वीरों में से एक में तब्दील हो गया.

 

इस परमाणु परीक्षण से 21 किलोटन विस्फोटक के बराबर ऊर्जा पैदा हुई. बेहतर समझने के लिए कल्पना कीजिए, आसमान में 5 फुट बॉल मैदानों के बराबर आकार का एक आग का गोला, जिसके 15 किलोमीटर के इलाक़े में जो कुछ भी आया, राख हो गया.

 

इस विष्फोट का असर मीलों दूर तक हुआ था. लेकिन सरकार ने परमाणु परीक्षण की बात लोगों से छुपाई रखी. फिर भी एक शख़्स था जिसने इत्तेफ़ाक से इस परीक्षण का पता लगा लिया. कौन था ये शख़्स, इसी से जुड़ा सुनिए एक और दिलचस्प किस्सा.

परमाणु बम का राज कैसे खुला?

जिस दिन लॉस एलामोस में परीक्षण हुआ, उसके अगले ही रोज़ वहां से 3000 किलोमीटर दूर न्यू यॉर्क की एक कम्पनी के दफ़्तर में ग्राहकों का तांता लगा हुआ था. कम्पनी का नाम था, ईस्ट मैन कोडेक. जो कैमरे की फ़िल्म बनाया करती थी. ग्राहकों ने कम्पनी से आकर शिकायत की कि उनकी सारी फ़िल्म ख़राब निकल रही हैं. उसमें धब्बे लगे हुए हैं.

 

कोडेक ने जूलियन वेब नाम के एक वैज्ञानिक को कारण पता लगाने का ज़िम्मा सौंपा. जेम्स वेब तहक़ीक़ात करते हुए पहुंचे इंडियाना राज्य की एक फ़ैक्ट्री तक. इस फ़ैक्ट्री में कार्डबोर्ड के वो डिब्बे बनाए जाते थे, जिनमें कैमरा फ़िल्मों को स्टोर किया जाता था.

 

टेस्टिंग से पता चला कि इन कार्ड बोर्ड से निकले रेडिएशन से फ़िल्में ख़राब हो रही थीं. ऐसा पहले भी हुआ था, लेकिन तब रेडीएशन का कारण रेडियम हुआ करता था. इस बार कारण रेडियम नहीं था. वेब ने लैब टेस्टिंग से पता लगाया कि ये रेडीएशन एकदम नए प्रकार का था. लेकिन ये रेडीएशन आया कहां से, ये सवाल अब भी वेब के सामने बना हुआ था.

 

काफ़ी खोज के बाद वेब इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ये रेडीएशन हवा के ज़रिए फ़ैक्ट्री तक पहुंचा था. इस बात को हालांकि वेब ने क़ई साल तक छुपाए रखा. साल 1949 में कम्पनी को भेजी अपनी रिपोर्ट में उन्होंने बताया कि कोडेक की फ़िल्म न्यूक्लियर टेस्ट के चलते ख़राब हुई थी.

 

कम्पनी इसके बाद सरकार के पास पहुंची. दोनों के बीच समझौता हुआ कि आगे जो भी टेस्ट होगा, उसका स्केड्यूल कम्पनी को पहले दे दिया जाएगा. ताकि वो अपना प्रोडक्ट बचा सके. बदले में कम्पनी ने वादा किया कि वो इस राज को राज रखेगी.

 

हिरोशिमा और नागासाकी पर बम बारी

जापान ने बिना शर्त आत्मसमर्पण की मांग को नजर अंदाज कर दिया और रेडियो टोक्यो ने घोषणा की कि उसकी सेनाएं लड़ना जारी रखेंगी। ट्रूमैन ने जापान के आक्रमण में खो जाने वाले अनुमानित लाखों अमेरिकी जीवन को बचाने के लिए युद्ध को तेजी से समाप्त करने का निर्णय लिया।

 

6 अगस्त 1945 को कर्नल पॉल तिब्बत, फ्लाइंग ऐस और 'एनोला गे' के कमांडिंग ऑफिसर बी-29 बमवर्षक जापान पहुंचे। उनके नौ सदस्यीय दल का उत्साह चरम पर था। वे 'लिटिल बॉय' नाम का 8,900 पाउंड का यूरेनियम परमाणु बम ले जा रहे थे।

 

तिब्बत से हिरोशिमा शहर का स्पष्ट दृश्य दिखाई देता था।

बिना एस्कॉर्ट सेनानियों के उड़ते हुए उन्होंने अपने चार इंजन वाले विमान को जापान की सेकॉर्ड सेना के मुख्यालय स्थल तक सावधानीपूर्वक निर्देशित किया। इलेक्ट्रॉनिक्स विशेषज्ञ मॉरिस जेपसन ने आखिरी बार सर्किट की जाँच की। बम डिब्बे खोले गए.

 

फिर उल्टी गिनती शुरू हो गई. "10, 9, 8, 7, 6..." मेजर फ़्रीबी ने बी-29 में एक लीवर दबाया और चिल्लाया, "बम दूर" जैसे ही 'लिटिल बॉय' लक्ष्य की ओर अपनी नाक नीचे करके चला गया, भारी बमवर्षक की नाक ऊपर की ओर झुक गई।

 

बम 43 सेकंड के लिए गिरा और जमीन से 1,890 फीट की ऊंचाई पर परमाणु विस्फोट के रूप में फट गया। बम से निकली आग ने पूरे शहर को निगल लिया.

 

हिरोशिमा के नागरिकों ने लगभग दस मिलियन डिग्री तापमान के साथ सूर्य की चमक से भी अधिक चमकीला कुछ देखा। 80,000 लोगों की जान तुरंत चली गई, और एक नए वैज्ञानिक आविष्कार के कारण अनुमानित 200,000 मनुष्यों की बाद में मृत्यु हो गई, जिसमें पहले अज्ञात पैमाने पर नरसंहार के लिए परमाणु विकिरण का उपयोग किया गया था।

हिरोशिमा में नौ वर्ग मील का क्षेत्र मलबे और खंडहरों के विस्तार में तब्दील हो गया था। वर्ष के अंत तक शिशुओं से लेकर बुजुर्गों तक 140,000 लोगों की मृत्यु हो गई।

 

लेकिन जापान ने फिर भी आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया।

वाशिंगटन ने तुरंत दूसरे परमाणु हमले का आदेश दिया। हिरोशिमा को तबाह करने के तीन दिन बाद, 9 अगस्त को सुबह 3:47 बजे, एक और बी-29 ने टिनियन एयरबेस से उड़ान भरी। आठ घंटे की उड़ान के बाद इसने 'फैट मैन' को बंदरगाह शहर नागासाकी के ऊपर गिरा दिया।

 

शॉकवेव और उत्पन्न परमाणु ताप का अनुमान 21 किलोटन था, जो हिरोशिमा बम से चालीस प्रतिशत अधिक था। 1945 के अंत तक नागासाकी में 74,000 लोग मारे गए। 11 अगस्त 1945 को, न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक बैनर शीर्षक चलाया, "जापान ने आत्मसमर्पण करने की पेशकश की" क्योंकि हजारों उत्साहित अमेरिकियों ने मैनहट्टन में टाइम्स स्क्वायर पर भीड़ लगा दी थी।

 

ओपनहाइमर खुद नागासाकी पर हमले से काफ़ी दुखी थे.

नागासाकी पर हमले के बाद ओपनहाइमर जाकर राष्ट्रपति हेनरी ट्रुमैन से मिले. और उनसे आग्रह किया कि परमाणु हथियारों को आगे युद्ध के इस्तेमाल में ना लाया जाए.

ओपेनहाइमर ने , मुझे महसूस होता है, मेरे हाथ खून से रंगे हुए हैं.”ट्रमैन ने जवाब दिया:--खून मेरे हाथ में है, इसकी ज़िम्मेदारी मुझे लेने दो.”

 

राष्ट्रपति ट्रूमैन ओपेनहाइमर के नैतिक रुख से बहुत खुश नहीं थे और उन्होंने व्हाइट हाउस के अधिकारियों से कहा कि वह उनसे दोबारा कभी नहीं मिलना चाहते।

 

द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद, ओपेनहाइमर एक घरेलू नाम बन गया और लाइफ और टाइम दोनों पत्रिकाओं के कवर पर छा गया।

1947 में, उन्हें परमाणु ऊर्जा आयोग (एईसी) की सामान्य सलाहकार समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। हालाँकि, अपने जीवनकाल के दौरान, ओपेनहाइमर ने अधिक शक्तिशाली हाइड्रोजन बम के विकास का कड़ा विरोध किया - एक ऐसा रुख जिसने उन लोगों को नाराज कर दिया जो चाहते थे कि अमेरिका बढ़ते सोवियत खतरे का प्रभावी ढंग से मुकाबला करे।

 

कम्युनिस्ट सहानुभूति रखने के कारण ओपेनहाइमर की आलोचना की गई और उन्हें 1954 में एईसी के प्रमुख के पद से हटा दिया गया और सभी सुरक्षा मंजूरी छीन ली गई।

बाद में, 1963 में, ओपेनहाइमर को एनरिको फर्मी पुरस्कार से सम्मानित किया गया - एक ऐसा कदम जिसे अमेरिकी राजनीतिक नेतृत्व द्वारा प्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक को मान्यता देने के लिए क्षमाप्रार्थी संकेत के रूप में देखा गया।

18 फरवरी 1967 को प्रिंसटन, न्यू जर्सी में गले के कैंसर के कारण ओपेनहाइमर की मृत्यु हो गई।

The End

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