Tuesday, 24 January 2023

हैदराबाद के आठवें निजाम मुकर्रम जाह:5 शादियों कई के तलाक. दुनिया का सबसे अमीर शख्स.2 कमरों के फ्लैट में मौत. किलो में हीरे टनों में सोना, फलकनुमा पैलेस के मालिक

 मुकर्रम जाह,आज़म जाह और राजकुमारी दुर्रु शहवर के बेटे थे

हैदराबाद के आठवें निज़ाम मुकर्रम जाह बहादुर को बुधवार (14th January 2023) की शाम ऐतिहासिक मक्का मस्जिद में सुपुर्द--ख़ाक किया गया. मस्जिद के ख़तीब मौलाना हाफिज़ क़ारी क़ुरैशी ने अस्र की नमाज़ के बाद जनाज़े की नमाज़ अदा कराई.

 

छोटे से कमरे में ख़त्म हुआ 236 साल का साम्राज्य?

आठवें निजाम का निधन तुर्की की राजधानी इस्तांबुल के एक दो बेडरूम फ्लैट में होने के बाद अब उन्हें हैदराबाद में लाकर राजसी तरीके से दफना दिया गया है. निजाम मुकर्रम जाह भी एक जमाने में दुनिया के सबसे धनी लोगों में शुमार किए जाते थे. अब उनके पास कितनी दौलत थी और उसके दावेदार कौन कौन हैं. 

Prince Mukarram Jah and Princess  Esra

सातवें निजाम का निधन 1967 में हुआ. उसके बाद कायदे से निजाम के पद पर उनके सबसे बड़े बेटे आजम जाह को बैठना चाहिए था लेकिन ऐसा हुआ नहीं बल्कि आठवें निजाम के तौर पर जिस शख्स की ताजपोशी हुई वो आजम का ही सबसे बड़ा बेटा मुकर्रम जाह था.

 

मुकर्रम का जन्म वैभव के बीच फ्रांस के एक महल में हुआ था. उसकी मां धुर्रशहवर सुल्तान को तब दुनिया की सबसे सुंदर महिलाओं में गिना जाता था.

 

पहले दून स्कूल और फिर लंदन में पढ़ाई

मुकर्रम को पढ़ने के लिए दून स्कूल भेजा गया. फिर हैरो लंदन और कैंब्रिज. उन्होंने बाद में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में भी दाखिला लिया. जब 1967 में मुकर्रम की ताजपोशी हुई, उस समय वो खुद भारत के सबसे रईस लोगों में गिना जाता था. लेकिन मुकर्रम की जीवनशैली भी उतनी खर्चीली थी. हैदराबाद में रहने से उसको अरुचि थी.

 

आस्ट्रेलिया में बड़ी प्रापर्टी खरीदी और वहीं रहने लगे

फिर 70 के दशक में खबर आई कि नए निजाम ने ऑस्ट्रेलिया में एक बहुत बड़ा एस्टेट खरीद लिया है, जहां उसका फॉर्म हाउस है, जिसमें भेडों का एक बड़ा फॉर्म भी है. यही नहीं मुकर्रम ने पर्थ में एक आलीशान बंगला भी खरीदा.

 

आस्ट्रेलिया के मीडिया में उसकी चटखदार खबरें अक्सर चर्चा में रहती थीं. निजाम दरअसल वहां अपनी पहली बीवी इजरा के साथ ही जाना चाहते थे, लेकिन बीबी ने जब मना कर दिया तो उसने उसे तलाक दे दिया. जिसकी एवज में उसे मोटा मुआवजा देना पड़ा.

Falaknuma Palace--Hyderabad

वर्ष 1967 आठवें निजाम के रूप में मुकर्रम जाह की ताजपोशी हुई लेकिन वो जल्दी ही आस्ट्रेलिया में बस गए

 

एक जमाना था कि हैदराबाद के सातवें निजाम उस्मान को दुनिया का सबसे अमीर शख्स माना जाता था.

उनके पास दुनिया के बेहतरीन हीरे जवाहरात, कारें, महल, प्रापर्टी सभी कुछ था. इसके बाद जब मुकर्रम जाह हैदराबाद के निजाम बने तो 80 के दशक के बाद उनकी प्रापर्टी की कीमत करीब 25,000 करोड़ की आंकी गई थी.

Chowmahla Palace--Hyderabad

हालांकि तब निजाम के पास देशभर बहुत सी प्रापर्टी थीं. और एक से एक से एक मंहगे जवाहरात और बेशकीमती सामानों के साथ 70 से ज्यादा महंगी कारों का काफिला. लेकिन उसके बाद निजाम की संपत्ति गिरने लगी बल्कि ये कहिए कि तेजी से गिरने लगी.

 

निजाम के धन गंवाने का सिलसिला कई तरह से शुरू हुआ. एक तो इस पूरी प्रापर्टी में हिस्सा जताने वाले ना जाने कितने ही दावेदार थे. खुद सातवें निजाम की कुल मिलाकर 150 संतानों ने इस पर अपनी हिस्सेदारी का दावा किया. निजाम उस्मान अली की तमाम बीवियों के अलावा बाहरी संबंधों से भी तमाम संतानें थीं. इसके अलावा पूरी संपत्ति की देखरेख करने वाले स्टाफ और मेंटीनेस पर मोटा धन खर्च हो रहा था.

Azmat Jaah and Princess Durru  shehvar (Parents of Mukarram jah 8th Nizam 

निजाम के धन गंवाने का सिलसिला कई तरह से शुरू हुआ. एक तो इस पूरी प्रापर्टी में हिस्सा जताने वाले ना जाने कितने ही दावेदार थे. खुद सातवें निजाम की कुल मिलाकर 150 संतानों ने इस पर अपनी हिस्सेदारी का दावा किया. निजाम उस्मान अली की तमाम बीवियों के अलावा बाहरी संबंधों से भी तमाम संतानें थीं. इसके अलावा पूरी संपत्ति की देखरेख करने वाले स्टाफ और मेंटीनेस पर मोटा धन खर्च हो रहा था.

 

आठवें निजाम मुकर्रम ने अपनी 05 शादियों में कई के तलाक सेटल करने पर अपने हिस्से का बहुत सा पैसा गंवाया.

खुद तो खैर वो बुरी तरह शाहखर्च थे ही. इसके अलावा हैदराबाद में महलों की सारी बेशकीमती चीजें जिसमें तमाम जवाहरात भी शामिल थे. चोरी होते चले गए. बहुत सा धन कर्जदारों से पास गया. इससे हैदराबाद निजाम की कुल नेटवर्थ 1000 करोड़ के आसपास आंकी जा रही है.

 

खुद तो खैर वो बुरी तरह शाहखर्च थे ही. इसके अलावा हैदराबाद में महलों की सारी बेशकीमती चीजें जिसमें तमाम जवाहरात भी शामिल थे. चोरी होते चले गए. बहुत सा धन कर्जदारों से पास गया. इससे हैदराबाद निजाम की कुल नेटवर्थ 1000 करोड़ के आसपास आंकी जा रही है.

 

बाद में तो हालत ये हो गई थी कि हैदराबाद के निजाम को भी उनके ट्रस्टों के जरिए गुजारे के लिए धन जरूर मिलता था, जिससे वो शाहखर्ची कतई नहीं कर सकते थे. उनकी सारी प्रापर्टी का मामला पेचीदा है. इसके अब भी जो हल्के फुल्के दावेदार हैं.

लेकिन असल दावा अब निजाम मुकर्रम शाह की ही 05 बीवियों और उनके दो बेटों और तीन बेटियों के बीच होने वाला है.

 

फिलहाल निजाम परिवार के पास हैदराबाद में 06 हवेलियां और औरंगाबाद में एक हवेली है. इसके अलावा उनकी बची खुची करोड़ों की ज्वैलरी की देखभाल का काम एक ट्रस्ट करता है. इसके अलावा भी निजाम से जुड़े कई ट्रस्ट हैं, जो बहुत सी चीजों को देख रहे हैं. उनके कई शिक्षा संस्थान भी हैं, जो इन ट्रस्ट के जरिए संचालित होते हैं.

 

आठवें निजाम मुकर्रम खुद इस्तांबुल तुर्की में पिछले करीब 03 दशकों से दो बेडरूम के एक छोटे से फ्लैट में रह रहे थे.

ये फ्लैट भी परिवार की मिल्कियत में आएगा. हो सकता है कि देश में कुछ और संपत्तियां हों. हालांकि बहुत सी संपत्तियां पिछले 50 सालों में निजाम द्वारा बेची भी जाती रही है. अब आइए जानते हैं कि निजाम की कुल संंपत्ति के मोटे वारिस कौन से हैं.

 

निजाम की पहली पत्नी प्रिंसेस एजरा से एक बेटा और एक बेटी हैं. बेटा यानि अजमत जाह अब हैदराबाद के नए निजाम बनेंगे.

वह 62 साल के हैं. लंदन में रहते हैं. पेशे से प्रोफेशनल फोटोग्राफर और सिनेमेटोग्राफर हैं. दुनिया के बेहतरीन निर्देशकों के साथ काम कर चुके हैं. इस संपत्ति के बड़े दावेदारों में उनका नाम सबसे ऊपर है. 

Prince Azmat Jah---9Th Nizam of Hyderabad

पहली पत्नी प्रिंसेस एजरा की बेटी प्रिंसेस शहकार भी इस पूरी प्रापर्टी की हिस्सेदारों में हैं.

वह अपनी मां के साथ लगातार लंदन से हैदराबाद आती रही हैं. दो महलों चोमोहल्ला और फलकनुमा के रेनोवेशन में उनकी भूमिका मां के साथ खास रही है. उनकी वैवाहिक स्थिति स्पष्ट नहीं है. वह दुनियाभर में वाइल्ड लाइफ के लिए की चैरिटी संस्थाओं के साथ मिलकर काम करती रही हैं.

Pricess Esra --Wife of Mukarram Jah

आठवें निजाम की दूसरी बीवी हेलन के बेटे आजम खान जाह हैं. आस्ट्रेलिया में रहते हैं.

उनका रियल एस्टेट और एक्विटी का काम है. पिता की पहली पत्नी प्रिंसेस एजरा और उनके दोनों बच्चों के साथ उनके संबंध बहुत मधुर हैं. वह मुकर्रम जाह एजुकेशन ट्रस्ट के कामकाज को देखते हैं और दुनियाभर में घूमते रहते हैं. वह भी इस प्रापर्टी के हिस्सेदारों में हैं.

Pricess Esra --Wife of Mukarram Jah

आठवें निजाम मुकर्रम ने तीसरी शादी मिस तुर्की मनोलिया ओनूर से की थी. बाद में उनका मनोलिया से तलाक हो गया लेकिन इससे उन्हें एक बेटी नीलोफर हुई.

जो अब करीब 32 साल की हैं. नीलोफर इंस्टाग्राम पर लगातार अपने परिवार की पिक्चर डालती रहती हैं. वह तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में रहती हैं. मां के निधन के पहले से ही उन्होंने पिता की प्रापर्टी में अपने हिस्से के लिए मुकदमा कर रखा है.

Princess Nilofer Jah

एक समय में तो उन्होंने इस प्रापर्टी में 3000 करोड़ रुपए का हिस्सा मांगा था. देखने वाली होगी कि इस प्रापर्टी की असल कीमत कितनी आंकी जाती है. वह लगातार अपने वकील के साथ इस्तांबुल से हैदराबाद आती रही हैं.

 

उन्होंने ये आरोप भी लगाया है कि पहले तो वह अपने पिता से लगातार मिलती रहती थीं लेकिन पिछले कुछ सालों से पिता की पहली पत्नी रहीं प्रिंसेस एजरा और उनके बच्चे उन्हें पिता से दूर रख रहे हैं. मिलने नहीं देते.

 

जैरीन जाह, जो निजाम मुकर्रम जाह की चौथी बीवी जमीला बुलारस की संतान हैं.

वह करीब 28 साल की हैं. मोरक्को में रहती हैं. उनके बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं मिलती. वह भी निजाम की इस संपत्ति की बड़ी हिस्सेदारों में एक हैं.

Princess Zarine Mukarram
 

निजामों की वंशावली पहले खलीफा अबु बक्र तक जाती है.

आधुनिक काल की बात करें तो 1650 के आसपास उनके वंशज ख्वाजा आबिद खान समरकंद से दक्कन आए. यहां उसकी मुलाकात मुग़ल शहजादे औरंगज़ेब से हुई. जो तब दक्कन के गवर्नर हुआ करते थे.

Mir Osman Ali Khan-7Th Nizam

1657 में जब औरंगज़ेब और दारा शिकोह के बीच उत्तराधिकार की लड़ाई छिड़ी, आबिद खान ने औरंगज़ेब का साथ दिया. औरंगज़ेब ने आबिद के बेटे ग़ाज़ीउद्दीन खान की शादी पिछले वजीर की बेटी से करवा दी. इन शादी से एक बेटा हुआ. मीर कमरुद्दीन खान.

 

औरंगज़ेब की मौत के बाद मुग़ल साम्राज्य में एक और उत्तराधिकार की लड़ाई छिड़ी. अगले दो दशक मुग़ल बादशाह एक के बाद एक बदलते रहे. 1713 में मुग़ल गद्दी पर बैठे फर्रुखसियर ने मीर कमरुद्दीन खान को दक्कन का गवर्नर नियुक्त किया.

 

उन्हें 6 सूबों का सूबेदार और कर्नाटक का फौजदार बनाया गया. कमरुद्दीन सफल शासक थे. लेकिन सय्यद भाइयों की चाल से उन्हें इस पद से हाथ धोना पड़ा. बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला के काल में उन्हें पहले मुरादाबाद और फिर मालवा भेज दिया गया.

 

यहां भी उनकी ताकत में इजाफा होता गया. सय्यद भाई कमरुद्दीन की बढ़ती ताकत से खबरदार थे. उन्होंने एक बार फिर कमरुद्दीन को पद से हटाने की कोशिश की. लेकिन कमरुद्दीन ने तंग आकर अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया और सीधे दक्कन का रुख कर लिया.

Mukarram Jah in Turkey

सय्यद भाइयों की मौत के बाद मुहम्मद शाह ने कमरुद्दीन को वजीर का पद ऑफर किया. इस बीच दक्कन के एक सूबेदार मुबरेज़ खान ने कमरुद्दीन के खिलाफ विद्रोह कर डाला. कमरूदीन और मुबरेज़ खान के बीच हुई लड़ाई में जीत कमरुद्दीन की हुई.

 

और इसके बाद दक्कन में उनका वर्चस्व हो गया. साल था 1724.

अब तक मुहम्मद शाह रंगीला को अहसास हो चुका था कि कमरूदीन से लड़ाई में उन्हें ही ज्यादा नुकसान होगा, इसलिए उन्होंने कमरुद्दीन को आसफ़ ज़ाह की उपाधि से नवाजा, जो तब मुग़ल सल्तनत में मिलने वाली सबसे बड़ी उपाधि हुआ करती थी. आसफ जगह का मतलब, आसफ के बराबर. इस्लामी धर्मग्रंथों के हिसाब से आसफ, राजा सोलोमन के दरबार में वजीर का नाम था.

यहीं से हैदराबाद रियासत में आसफ़जाही सल्तनत की शुरुआत हुई.

आसफ जाह ने कभी खुद को मुगलों से आजाद घोषित नहीं किया. आसफ जाह के राज में भी मुगलों का झंडा फहराया जाता रहा. और साल 1948 तक जुम्मे की नमाज औरंगज़ेब के नाम पर पढ़ी जाती रही. हालांकि व्यावहारिक रूप से आसफ जाही एक अलग आजाद रियासत थी.

 

इसके अगले 100 सालों में मुगलों की ताकत कमजोर हुए और दक्कन में मराठा ताकतवर होते गए. मराठाओं और हैदराबाद के निजामों के बीच कई जंगें हुईं. जिनमें मिली हार के चलते, निजाम मराठाओं को चौथ चुकाया करते थे. इसके बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का दौरा शुरू आया. और इस दौर में भी निजाम अपनी रियासत बचाने में कामयाब रहे.

आसफ़जाह की परंपरा में आगे चलकर कुल 8 निजाम हुए. जिनमें से सबसे मशहूर हुए, आसफ़ जाह मुज़फ़्फ़ुरुल मुल्क सर मीर उस्मान अली खां.

 

जो 1911 में हैदराबाद के सातवें निजाम बने. यूं तो निज़ाम वो हैदराबाद के थे. लेकिन ब्रिटिश सरकार से उनकी नजदीकी के चलते उन्हें दुनिया का ताकतवर मुसलमान नेता माना जाता था.

 

1921 में उन्होंने अपने दोनों बेटों की शादी अब्दुल माजिद यानी तुर्की के आख़िरी खलीफा की बेटियों से करवाई.

Princess Durru Shehvar 

तुर्की के खलीफा तब फ़्रांस में निर्वासन में रह रहे थे. निजाम के बेटे से शादी का एक महत्वपूर्ण पहलू ये था कि इस शादी के बाद निज़ाम के बेटे को अगला खलीफा घोषित कर दिया गया. जिसके चलते उनकी राजनैतिक शक्ति में काफी इजाफा हुआ.

 

निज़ाम की कंजूसी

डेलरिम्पल लिखते हैं, निज़ाम को बहुत पहले से ये डर था कि उनके राज्य का भारत में विलय हो जाएगा. इसलिए वो ये सब खज़ाना अलग रखे हुए थे. ताकि वक्त आने पर इसे देश से बाहर ले जाया जा सके. वक्त के साथ हालांकि वो इस ख़ज़ाने को भूल गए और वो सालों से तहखाने में धूल खाता रहा. इसके बाद भी निजाम को इन सब से कोई फर्क पड़ता था.

 

1937 में टाइम पत्रिका ने उन्हें 'दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति.' बताया. एक आंकड़े के हिसाब से उनकी कुल संपत्ति तब अमेरिकी की GDP के 2 % के आसपास थी.

2008 में फोर्ब्स पत्रिका की इतिहास के सबसे अमीर लोगों की श्रेणी में निजाम पांचवें नंबर पर थे. हालांकि अमीर होने के साथ साथ निजाम अपनी कंजूसी के लिए काफी फेमस थे.

 

किस्सा है कि जब भी निजाम को उनके विदेशी दोस्त सिगरेट ऑफर करते तो निजाम एक सिगरेट निकालने की बजाय 4-5 निकाल कर अपनी जेब में रख लेते थे.

 

निजाम के पास तमाम दुनिया की दौलत थी. दुनिया का सबसे बड़ा, 282 कैरेट का जैकब हीरा, वो पेपरवेट की तरह इस्तेमाल करते थे. इसके बावजूद हैदराबाद रियासत की हालत खस्ता थी.

आजादी के बाद निजाम हैदराबाद को भारत से अलग रखने की भरपूर कोशिश की. लेकिन उनकी ये कोशिश काम नहीं आई. ऑपरेशन पोलो के तहत 562वीं रियासत के रूप में हैदराबाद का भारत में विलय करा दिया गया.

 

25 जनवरी, 1950 को निज़ाम ने भारत सरकार के साथ एक समझौते पर दस्तख़त किए जिसके तहत भारत सरकार ने उन्हें प्रति वर्ष 42 लाख 85 हज़ार 714 रुपए प्रिवी पर्स देने की घोषणा की. निज़ाम ने 1 नवंबर, 1956 तक हैदराबाद के राजप्रमुख के तौर पर काम किया.


इसके बाद राज्य पुनर्गठन विधेयक के तहत उनकी रियासत को तीन भागों महाराष्ट्र, कर्नाटक और नवगठित राज्य आंध्र प्रदेश में बांट दिया गया. साल 1967 में मीर उस्मान अली खां की मृत्यु हो गयी. इसके बाद औपचारिक रूप से आठवें निजाम बने मुकर्रम जाह. मुकर्रम ज़ाह उस्मान अली ख़ान के पोते थे और उन्होंने अपने बेटों को दरकिनार कर अपने पोते को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था.

 

यूं तो मुकर्रम औपचारिक रूप से निज़ाम थे बेहद अमीर व्यक्ति भी थे, लेकिन चूंकि ये एक लोकतान्त्रिक देश है इसलिए इनकी एक और पहचान यहां पर बताना जरूरी हो जाता है. मुकर्रम जाह कुछ वक्त के लिए देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल के हॉनररी ऐड डी कैम्प (ADC) रहे थे. साथ ही 2010 में उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि नेहरू उन्हें किसी मुस्लिम देश का राजदूत बनाना चाहते थे.

 

गार्जियन के लेख में विलियम डेलरिम्पल लिखते हैं, निज़ाम के महलों में 14 हजार 718 लोगों का स्टाफ था.

निजाम ओस्मान अली खान की 42 मिस्ट्रेस हुआ करती थीं. उनका स्टाफ अलग से. निज़ाम के मुख्य महल चौमोहल्ला में 6000 नौकर काम करते थे. 3 हजार अरब बॉडीगार्ड्स थे. 28 नौकर तो सिर्फ पानी लाने के काम के लिए रखे थे. वहीं 38 का काम झूमरों की सफाई करना होता था. इसके अलावा 10-12 ऐसे नौकर थे, जो सिर्फ निजाम के लिए अखरोट पीसने का काम किया करते थे.

 

इन सब के बावजूद निजाम की प्रॉपर्टी की हालत खस्ता थी. गैराज में 60 गाड़ियां थीं, जिनमें से सिर्फ 4 चलने की हालत में थीं. इनमें से एक लिमोज़ीन को जब निज़ाम की ताजपोशी के लिए ले जाया जा रहा था, वो बीच में ही ख़राब हो गई.

Princess Shehkar Mukarram and Prince Azmat Jah

इन सब चीजों के रखरखाव और तनख्वाह का चौड़ा बिल बनता था. फिर भी 1971 तक सब ठीक रहा. सरकार से मिलने वाले भत्ते से काम मजे में चल रहा था. फिर 1971 में एक और घटना हुई. इंदिरा गांधी सरकार ने प्रिवी पर्स पर रोक लगा दी. जिसके चलते निजाम के सामने लिक्विडिटी की दिक्कत खड़ी हो गयी.

 

इसके अलावा पिछले निज़ाम मीर ओस्मान के 16 बेटे और अठारह बेटियों सहित सैकड़ों में पोते पोतियां थे. ये सभी निजाम की दौलत में से हिस्सा चाहते थे. जिसके चलते नए निजाम को कई सारे कोर्ट केसेस से उलझना पड़ रहा था.

 

इस सबसे परेशान होकर 1972 में मुकर्रम जाह ने हैदराबाद छोड़ दिया और वो ऑस्ट्रेलिया के पर्थ राज्य में जा बसे. और यहां के एक शीप फ़ार्म में रहने लगे. इस चक्कर में उनकी पहली बेगम, प्रिंसेज़ एज्रा ने भी उनसे तलाक ले लिया.

 

ऑस्ट्रेलिया में रहने के दौरान वो समाचार पत्रिकाओं के लिए कौतुहल का विषय थे. एक बार एक इंटरव्यू के उनसे पूछा गया, निजामों का वंशज ऑस्ट्रेलिया में भेड़ क्यों चरा रहा है?

 

इस पर उन्होंने जवाब दिया, “इस्लाम के पहले खलीफा अबु बक्र भी चरवाहे थे, फिर मैं क्यों नहीं”?जॉन जुब्रज़ीकी अपनी किताब लॉस्ट निज़ाममें लिखते हैं कि एक बार ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री बॉब हॉक ने निज़ाम से मुलाकात की इच्छा जताई. निज़ाम ने जवाब दिया, “मुझे अकेला छोड़ दो. मैं जानता हूं मैं हैदराबाद का निज़ाम हूं. इतना काफी है”.

 

करीब दो दशक ऑस्ट्रेलिया में रहने के बाद 1990 के दशक में मुकर्रम जाह ने ऑस्ट्रेलिया छोड़ दिया. और इसके बाद कभी लन्दन तो कभी तुर्की में समय बिताया. इस दौरान मुकर्रम जाह ने चार और शादियां की. उनकी एक बीवी हेलेन सिमंस का 1989 में एड्स से निधन हो गया था. कुछ शादियों में तलाक के बाद उन्हें अपनी दौलत का एक बड़ा हिस्सा देना पड़ा. जिसके चलते हैदराबाद में उनकी जितनी प्रॉपर्टी थी, उसका रखरखाव मुश्किल हो गया.

 

डैलरिम्पल लिखते हैं कि साल 2001 में उन्हें हैदराबाद में निजाम के कमरे में जाने का मौका मिला. वहां सैकड़ों साल पुराने बहुमूल्य अस्त्र शस्त्र रखे हुए थे. कुल आठ हजार डिनर डेट थे. जिनमें से हर डिनर सेट में 2600 बर्तन शामिल थे. कोठीमहल का एक कमरा पूरा फ्रेंच शैम्पेन की कैरेट से सीलिंग तक भरा हुआ था. 30 सालों से ये सब चीजें धूल खा रही थीं. क्योंकि निजाम मुकर्रम ज़ाह को इन सब की कोई फ़िक्र थी.

 

साल 1996 में हैदराबाद के इन पुराने महलों और ऐतिहासिक धरोहरों को दोबारा सहेजने का काम शुरू हुआ.

 

साल 2002 में निजाम की जायदाद को रिस्टोर कर एक संग्रहालय बनाया गया. उनकी कई सम्पत्तियों को पर मामला 2023 में कोर्ट में है. जहां तक आख़िरी निज़ाम मुकर्रम ज़ाह की बात है, 1980 तक वो भारत के सबसे अमीर शख्स हुआ करते थे.

 

एक अनुमान के अनुसार एक समय में उनकी कुल संपत्ति लगभग 25 हजार करोड़ रूपये के बराबर थी. इसके बावजूद अपने उन्होंने अंतिम दिन इस्तांबुल टर्की में एक दो बैडरूम अपार्टमेंट में रहकर गुजारे.

 

निज़ाम गोवा खरीदने चाहते थे

साल 2002 में जब अधिकारी हैदराबाद में निज़ाम की जायजाद का हिसाब किताब कर रहे थे. उन्हें एक खास दस्तावेज़ मिला. इस दस्तावेज़ से सामने आई भारतीय इतिहास की एक छुपी हुई कहानी. पता चला कि 1940 के आसपास निजाम ओस्मान अली पुर्तगालियों से गोवा खरीदने की कोशिश कर रहे थे. गोवा क्यों?


क्योंकि उन्हें अपने राज्य के लिए एक पोर्ट की जरुरत थी. जिसके जरिये वो बाकी दुनिया से ट्रेड कर पाते. उन्हें अहसास हो गया था कि वक्त आने पर भारत सरकार उनके राज्य को अलग थलग कर सकती है. 1948 में उनका ये डर सही भी साबित हुआ. भारत ने हैदराबाद के आयात निर्यात पर शिकंजा कस दिया. ओस्मान अली ने जिन्ना से मदद मांगने की कोशिश की. लेकिन पोर्ट होने के चलते उनकी सारी कोशिश असफल रही. और 5 दिन की सैन्य कार्रवाई के बाद हैदराबाद भारत का हिस्सा बन गया 

The End

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