सुल्ताना
डाकू का
इस
कदर खौफ था कि अगर किसी दूर-दराज के पुलिस थाने के आगे से वह गुजरता भी था तो सिपाही उसे अपने हथियार सौंप दिया करते थे. वह जिन गांवों में डकैती डालता था वहां के हर पुरुष को मार डालता था ताकि उसके खिलाफ कोई गवाही देने वाला न बचे.
अंततः उसे फ्रेडी यंग नाम के एक पुलिस अफसर ने पकड़ा. उसके जीवन को लेकर पर 'सुल्ताना डाकू' नाम का एक नाटक बना जिसे उत्तरी भारत में लगने वाले मेलों में खेला जाता था और जिसे देखने को लोगों की भीड़ जुट जाया करती थी.
शुरू में इस नाटक में फ्रेडी यंग को बदला लेने वाले नायक के रूप में दिखाया जाता था और जब वह सुल्ताना को पकड़ कर लाता था, दर्शक खुशी में तालियाँ बजाने लगते थे.
लेकिन जैसे-जैसे नाटक खेला जाता रहा, असल सुल्ताना की स्मृति धुंधली पड़ती गयी और समय बीतने के साथ ये भूमिकाएं बदलती चली गईं. जब तक कि नाटक में सुल्ताना रॉबिनहुड सरीखा नायक न बन गया जो अंग्रेजों को लूटता था और गरीबों का दोस्त था. वहीं फ्रेडी यंग को एक मसखरे अंग्रेज विलेन की दिखाया जाने लगा जो हर समय व्हिस्की माँगता रहता था.
सुल्ताना का जन्म मुरादाबाद जिले के हरथला गाँव में हुआ बताया जाता है अलबत्ता अन्य स्थानों पर उसका जन्मस्थान बिलारी और बिजनौर भी बताया गया है. सुल्ताना की माँ कांठ की रहनेवाली थी.
अंग्रेजों ने कांठ के भांतू समुदाय को नवादा में साल्वेशन आर्मी के कैम्प में पुनर्वासित कर दिया था और सुल्ताना का बचपन वहीं बीता. अंग्रेज सरकार का मानना था कि कैम्प में रहने से इस समुदाय के बच्चे भले नागरिक बन सकेंगे.
सुल्ताना अपने जीवनकाल में ही एक मिथक बन गया था. उसके बारे में यह जनधारणा थी कि वह केवल अमीरों को लूटता था और लूटे हुए माल को गरीबों में बाँट देता था. यह एक तरह से सामाजिक न्याय करने का उसका तरीका था. जनधारणा इस तथ्य को लेकर भी निश्चित है कि उसने कभी किसी की हत्या नहीं की.
यह अलग बात है कि उसे एक गाँव के प्रधान की हत्या करने के आरोप में फांसी दे दी गयी. बेहद साहसी और दबंग सुल्ताना ने अपने अपराधों के चलते उत्तर प्रदेश से लेकर पंजाब और मध्यप्रदेश में अपना आतंक फैलाया.
सुल्ताना का मुख्य कार्यक्षेत्र उत्तर प्रदेश के पूर्व में गोंडा से लेकर पश्चिम में सहारनपुर तक पसरा हुआ था. पुलिस उसे खोजती रहती थी लेकिन वह अपनी चालाकी से हर बार बच जाता था. कहते हैं कि वह डकैती डालने से पहले लूटे जाने वाले परिवार को बाकायदा चिठ्ठी भेजकर अपने आने की सूचना दिया करता था.
अपने अंतिम वर्षों में वह अपने कार्यक्षेत्र को मुख्यतः कुमाऊँ के तराई-भाबर से लेकर नजीबाबाद तक सीमित कर चुका था. जिम कॉर्बेट के सुल्ताना-संस्मरणों में बार-बार कुमाऊँ के कालाढूंगी, रामनगर और काशीपुर का ज़िक्र आता है. बताया जाता है कि सुल्ताना ने नजीबाबाद में एक वीरान पड़े किले को अपना गुप्त ठिकाना बना लिया था.
चार सौ वर्ष पहले नवाब नजीबुद्दौला के द्वारा बनाए गए इस किले के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं और यह एक दिलचस्प तथ्य है कि आज उसे नजीबुद्दौला का नहीं बल्कि सुल्ताना का किला कहा जाता है.
वह छोटे कद का सांवली रंगत वाला एक मामूली आदमी था जिसके ढंग की दाढ़ी-मूंछें भी नहीं थीं.
तीन सौ सदस्यों के सुल्ताना के गिरोह के सामने पुलिस भी भयभीत रहती थी. चूंकि सुल्ताना अपने इलाके के ग़रीबों के बीच एक मसीहा माना जाता था, चप्पे-चप्पे में लोग उसके जासूस बन जाने को तैयार रहते थे. अनेक ब्रिटिश अफसर उसे दबोचने के काम में लगाए गए लेकिन कोई भी सफल न हो सका.
अंततः टेहरी रियासत के राजा के अनुरोध पर ब्रिटिश सरकार ने सुल्ताना को पकड़ने के लिए एक कुशल और दुस्साहसी अफसर फ्रेडी यंग को बुलाया.
Captain Freddie Young with his team to arrest Sultana Daku |
तीन सौ सिपाहियों और पचास घुड़सवारों की फ़ौज लेकर फ्रेडी यंग ने गोरखपुर से लेकर हरिद्वार के बीच ताबड़तोड़ चौदह बार छापेमारी की और अंततः 14 दिसंबर 1923 को सुल्ताना को नजीबाबाद जिले के जंगलों से गिरफ्तार कर हल्द्वानी की जेल में बंद कर दिया.
सुल्ताना के साथ उसके साथी पीताम्बर, नरसिंह, बलदेव और भूरे भी पकड़े गए थे. इस पूरे मिशन में कॉर्बेट ने भी यंग की मदद की थी.
नैनीताल की अदालत में सुल्ताना पर मुकदमा चलाया गया और इस मुकदमे को ‘नैनीताल गन केस’ कहा गया. उसे फांसी की सजा सुनाई गयी. हल्द्वानी की जेल में 8 जून
1924 को जब सुल्ताना को फांसी पर लटकाया गया उसे अपने जीवन के तीस साल पूरे करने बाकी थे.
2009
में पेंग्विन इण्डिया से छपी किताब ‘कन्फेशन ऑफ़ सुल्ताना डाकू’ की शुरुआत में लेखक सुजीत सराफ ने उसे फांसी दिए जाने से ठीक पिछली रात का ज़िक्र किया है.
सुल्ताना को एक अँगरेज़ अफसर लेफ्टिनेंट कर्नल सैमुअल पीयर्स के सम्मुख स्वीकारोक्ति करता हुआ दिखाया गया है. सुल्ताना बताता है कि चूंकि उसका ताल्लुक एक गरीब परिवार से था, उसकी माँ और उसके दादा ने उसे नजीबाबाद के किले में भेज दिया जहां मुक्ति फ़ौज यानी साल्वेशन आर्मी का कैम्प चलता था.
इस कैम्प में सुल्ताना और अन्य भांतुओं को धर्मांतरण कर ईसाई बनाने के अनेक प्रयास किये गए लेकिन वह वहां से भाग निकला. यहीं से उसके आपराधिक जीवन का आरम्भ हुआ. अपराध में निपुण सुल्ताना अपने मुंह में चाकू भी छिपा सकता था और समय आने पर उसे इस्तेमाल भी कर सकता था.
इस बात के प्रमाण हैं कि फ्रेडी यंग ने सुल्ताना की पत्नी और उसके बेटे को भोपाल के नज़दीक पुनर्वासित किया. बाद में उसने उसके बेटे को अपना नाम दिया और उसे पढ़ने के लिए इंग्लैण्ड भेजा. कहते हैं फ्रेडी यंग ने ऐसा करने का सुल्ताना से वादा भी किया था.
जहाँ तक सुल्ताना डाकू के व्यक्तिगत जीवन का प्रश्न है उसके साथ जोड़ कर देखी जाने वाली स्त्रियों में फूल कुंवर और डकैत पुतलीबाई के नाम सामने आते हैं लेकिन प्रामाणिक रूप से कुछ भी साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं.
जिन
दिनों सुल्ताना का सिक्का चलता था, उन दिनों उसके कार्यक्षेत्र में तैनात एक भारतीय अफसर गोविन्द राम काला ने अपसे संस्मरण ‘मेमोयर्स ऑफ़ द राज’ में
लिखा – “एक रात डाकू सुल्ताना भांतू ने हमें बहुत डराया. शहर में अफवाह फैल गयी थी कि सुल्ताना का गिरोह शाम को हमला करने वाला है.
पुलिस चौकी का हेड कांस्टेबल मेरे पास आया कि मैं सुरक्षा पार्टी का बंदोबस्त करूं. हमने आसपास के गांवों से बीस-तीस बंदूकों की व्यवस्था की और रात भर पहरा दिया.
सुल्ताना कभी भी सरकारी कर्मचारियों को परेशान नहीं करता था न ही सरकारी खजाने को हाथ लगाता था, वरना वह चाहता तो तराई भाबर के सभी सरकारी खजाने लूट सकता था क्योंकि उनकी पहरेदारी बहुत दयनीय तरीके से होती थी. उस रात डाकू नहीं आये!”
इस तरह के अनेक संस्करणों और जन में प्रचलित किस्सों में सुल्ताना के अलग-अलग संस्करण पढ़ने-सुनने को मिलते हैं. यह जानना बहुत दिलचस्पी का विषय है कि असल सुल्ताना डाकू कौन और कैसा था.
किस्सा सुल्ताना डाकू का जब वो अमावस की रात मक्खन सेठ के यहाँ डाका डालने आने वाला था.
उसने चिठ्ठी लिखकर बताया था कि डाके के दौरान औरतों-बच्चों को हाथ नहीं लगाया जाएगा. बड़ों को भी नहीं बशर्ते वे सयाना बनने की कोशिश न करें. डाके से पहले मेज़बान द्वारा घर की ड्योढ़ी में काली माता के मंदिर स्थापित किया जाना था जिसमें प्रस्तावित डाके से तीन रात पहले से सफ़ेद तिल के निखालिस तेल का दिया जलाए रखना था.
अलग से ख़ास हिदायत थी कि चिठ्ठी मिलने के बाद से न पुलिस को इत्तला करनी थी न ज़रा सा भी माल-मत्ता इधर उधर करने की कोशिश. “हमारे मुखबिर तुम्हारी रसोई और सोने के कमरे तक घुसे हुए हैं” – चिठ्ठी में चेताया गया था.
काशीपुर से सुखियाराम साहूकार का कारिन्दा सुल्ताना का संदेसा लेकर जब मक्खन सेठ के सोंठपुर वाले फ़ार्महाउस पहुंचा वहां इलाके के कोतवाल की बड़ी दावत चल रही थी.
अंग्रेजबहादुर की कृपा से हासिल की गयी विदेशी व्हिस्की का पहला गिलास हलक में गया ही था और ख़ास मौके के वास्ते नवाब रामपुर के महल से बुलवाया गया खानसामा महमूदुल्ला स्वादिष्ट भुनी बटेर मेज पर परोस ही रहा था.
चिठ्ठी पढ़ते ही मक्खन सेठ की फूंक सरक गई. कोतवाल ने अचानक माथे पर आ गए पसीने का सबब पूछा तो मक्खन सेठ ने कागज़ आगे कर दिया. कोतवाल के मुंह में गिलास लगा हुआ था.
चिठ्ठी में लिखी इबारत देखते ही शराब का घूँट उसकी सांस की नाली में जा अटका और उसने बेतरह खांसना शुरू कर दिया. खांसते-खांसते आँखें लाल हो गईं, नाक बहने लगी. जग भर पानी पीया तब जाकर चैन आया.
सांस सामान्य होने पर कोतवाल ने सेठ को अपनी तरफ़ उम्मीदभरी निगाह से देखता पाया.
“पिछली अमावस के दिन सुल्ताना ने गड़प्पू के बनवारी सेठ के वहां डाका डाला था. सारा माल तो लूटा ही, बनवारी के साले को नीम के पेड़ से उलटा लटका कर चला गया था.
उसने इतना भर कहा था कि जिज्जी के गहने तो रहने दो सुल्ताना भाई. जाते-जाते सुल्ताना धमकी दे गया था कि तीन दिन तक साले साहब को पेड़ से उतारा न जाए.
बताते हैं बिचारे ने चाय तक उल्टे लटके-लटके पी
...” कोतवाल ने गला खंखार कर माहौल में रहस्य पैदा करना शुरू किया ही था कि मक्खन सेठ बोल उठा, “जब सब कुछ सुल्ताना ने ही करना है तो पुलिस काहे भर्ती कर रखी लाट बहादुर ने. उसी को कमिश्नर बना देना चाहिए.”
Captain Freddie Young with his team |
“मगर कोतवाल साहब इस चिठ्ठी पर आप क्या एक्शन लोगे?" सेठ ने पूछा.
“जो भी करना है सुल्ताने ने ही करना है सेठ जी. रामजी सब भली करेंगे. माया का क्या है फिर कमा लोगे मगर जान से हाथ धो बैठे तो ... सोच लो!”
कोतवाल के जाने के बाद सेठ ने सबसे पहले महमूदुल्ला को भोर होते ही रामपुर वापस लौट जाने को कहा और फ़ार्महाउस के सारे नौकर-चाकरों को तलब किया. ये कुल जमा पच्चीस-तीस वफादार दिखने वाले लोग थे जिनकी आधी से ज्यादा ज़िंदगी मक्खन सेठ के लिए काम करते हुए बीती थी.
सेठ का मन हुआ एक बार सुल्ताना की चिठ्ठी का हवाला देकर गरजते हुए पूछे कि कौन गद्दार मुखबिरी कर रहा है लेकिन तुरंत उसकी समझ में आ गया कि ऐसा करना बेवकूफी होगी. उसने उनसे अगली दोपहर तक अपने जंगल से साल के आठ-दस सबसे मोटे दरख्त काट कर लाने का हुक्म सुनाया और बीवी के पास चला गया.
सेठानी को सोते से जगा कर मामला बयान किया गया. सेठानी के चेहरे पर भय की रेखाएं उभरीं और वह बिना एक भी शब्द बोले मंदिर वाले कमरे में घुस कर घंटी टुनटुनाने लगी.
सेठ ने बाहर अँधेरे में आकर सिगरेट सुलगाई और विचारमग्न हो गया.पिछले तीस-चालीस सालों में उसने पाई-पाई जोड़कर फल-सब्जी और अनाज की आढ़त का बड़ा व्यापार खड़ा किया था. आढ़त से आई पूंजी की मदद से उसने ब्याज पर रुपया देने का काम शुरू किया. साहूकारी के इस धंधे में लंबा मुनाफ़ा हुआ.
उसके ज्यादातर देनदार सोंठपुर और आसपास के रहने वाले गरीब किसान थे. समय पर उधार न चुका सकने के कारण उनमें से ज्यादातर अपनी ज़मीनें औने-पौने में सेठ को बेचकर कहीं और चले गए थे.
Fort Najibabad (Sultana Daku ka Qilla) |
कल्लू ने उससे कभी एक रुपया भी उधार नहीं लिया था. कल्लू के पास अपनी ज़मीन के पक्के कागज़ थे. मक्खन सेठ के कारिंदे तालाब से पानी लेने जाते तो वह उन्हें गालियाँ बकता और उन पर अपने कुत्ते छोड़ देता. संक्षेप में कल्लू धोबी ने मक्खन सेठ को दिक कर रखा था और बावजूद अपनी ऊंची सरकारी पहुँच के वह उसका एक बाल तक टेढ़ा नहीं कर सका था.
मक्खन सेठ ने घड़ों में भर-भर सोने-चांदी के बर्तन और आभूषण जमा कर रखे थे. ये भी उसके उन्हीं गरीब देनदारों ने गिरवी रखाए हुए हुए थे जिनके वापस सोंठपुर आने की कोई संभावना न थी.
आढ़त के काम से हर शाम एक-आध कट्टा भर नोट और सिक्के आते थे. सबसे नज़दीकी बैंक सत्तर मील देहरादून में था और मक्खन को मुल्क की बैंकिंग व्यवस्था पर कोई यकीन न था. नतीजतन एक पूरा कमरा फर्श से लेकर छत तक रूपये-पैसों से अट गया था.
सुल्ताना
की चिठ्ठी से मक्खन सेठ की हवा संट थी लेकिन वह अपनी मेहनत की कमाई ऐसे ही कैसे किसी डाकू को ले जाने देता! उसके मन में एक योजना थी जिसके लिए उसने अगली सुबह साल के पेड़ मंगवाए थे. अमावस आने में छः दिन बाकी थे.
ऊंची दीवारों से घिरे फ़ार्महाउस में घुसने के लिए एक ही मुख्य प्रवेशद्वार था. उस खासे चौड़े गेट को बंद कर देने से सुल्ताना तो क्या किसी मक्खी तक का भीतर घुसना मुमकिन न था.
प्रवेशद्वार को साल के तीन-तीन फुट चौड़े तनों से ढंकने-बंद करने में तीन दिन लगे. इसके बावजूद इस बीच उसने अपने आठ-दस अफसर दोस्तों से भी मदद मांगने की कोशिश जरूर की लेकिन सुल्ताना का नाम सुनते ही उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए.
अमावस की रात सुल्ताना आया और खूब आया. मक्खन सेठ भूल गया था कि सुल्ताना का गिरोह सेंध लगाने का वर्ल्ड चैम्पियन था. दो ढाई घंटे की मशक्कत के बाद उसके जांबाज साथियों ने फ़ार्महाउस की दीवार की नींव के नीचे इतना बड़ा गड्ढा खोद डाला कि उसमें से आदमी ही नहीं एक बार में दो घोड़े आर-पार हो सकते थे.
सुल्ताना को गेट बंद करने की सेठ की हरकत नागवार गुज़री लिहाज़ा उसने लूट से पहले सारे नौकरों के सामने उसकी बढ़िया ठुकाई की. देवी की पूजा उसके बाद हुई.
मक्खन सेठ के घर इतनी दौलत निकलने का सुल्ताना को अंदाज न था. जब उसके लाये सारे थैले और चादरें भर गए, उसने सेठ के बारदाना गोदाम से निकाले गए जूट के दो दर्ज़न कट्टों में माल भरा.
मुश्किल यह आन पड़ी कि उतना माल लेकर जाया कैसे जाय! गिरोह के पास नौ घोड़े थे जिन पर हद से हद अठारह कट्टे लादे जा सकते थे.
सुल्ताना के पास इलाके की हर तरह की खुफिया जानकारी थी. उसने अपने दो साथियों से कहा कि नीचे तालाब के पास जाकर कल्लू धोबी के तीन गधों को नकद रकम देकर खरीद लाएं.
यह भी हिदायत दी गयी कि कल्लू सौ रुपये मांगे तो उसे पांच सौ दिए जाएं. सुल्ताना उसूलन कभी किसी गरीब को तंग नहीं करता था. कल्लू के गधे ले आये गए.
पौ फटने में आधा-पौन घंटा बचा था जब सुल्ताना सारा माल लाद कर सेंध के रास्ते बाहर निकला. पहाड़ों का घुमावदार रास्ता था. आधे रास्ते में यूं हुआ कि सबसे पीछे आ रहा एक बूढ़ा गधा झुण्ड से बिछड़ गया और वापस अपने मालिक के पास पहुंच गया.
कभी
सोंठपुर का इत्तफाक हो तो के. डी. एस्टेट देखने जरूर जाएं. एस्टेट की सीमा के बाहर मुख्य सड़क पर किराने की दुकान है. एम. एस. एंड सन्स यानी मक्खन सेठ के पुत्रों द्वारा अस्सी साल पहले स्थापित की गई इस बड़ी दुकान में बैठे रहने वाले खब्ती बूढ़े से कभी एस्टेट का रास्ता न पूछें. एस्टेट उसके ठीक सामने है.
भीतर घुसते ही गधे की एक प्रस्तर-प्रतिमा दिखाई देगी जिस पर हर रोज़ फूल चढ़ाए जाते हैं. अब के. डी का फुल फॉर्म न किसी से पूछने लगियो.
हॉलीवुड में सुल्ताना के जीवन पर जो फिल्म बनी उसका नाम 'द लॉन्ग ड्यूएल' था। इस फिल्म में सुल्ताना का किरदार युल ब्रेनर ने निभाया था। साल 1975 में पाकिस्तान में भी सुल्ताना पर पंजाबी भाषा में फिल्म बनाई गई। फिल्म में सुल्ताना का किरदार अभिनेता सुधीर ने निभाया था। इनके अलावा भी सुल्ताना पर कई फिल्में बन चुकी हैं।
The End
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