शौकत को चूहे पकड़ने में बहुत महारत हासिल है। वो मुझ से कहा करता है ये एक फ़न है जिस को बाक़ायदा सीखना पड़ता है और सच्च पूछिए तो जो जो तरकीबें शौकत को चूहे पकड़ने के लिए याद हैं, उन से यही मालूम होता है कि उस ने काफ़ी मेहनत की है।
अगर चूहे पकड़ने का कोई फ़न नहीं
है तो उस ने अपनी ज़ेहानत से उसे फ़न बना दिया है। उस को आप कोई चूहा दिखा दीजिए, वो
फ़ौरन आप को बता देगा कि इस तरकीब से वो इतने घंटों में पकड़ा जाएगा और इस तरीक़े से
अगर आप उसे पकड़ने की कोशिश करें तो इतने दिन लग जाऐंगे।
चूहों की नसलों और उन की मुख़्तलिफ़ आदात-ओ-अत्वार का शौकत
बहुत गहरा मुताला कर चुका है। उस को अच्छी तरह मालूम है कि किस ज़ात के चूहे जल्दी फंस
जाते हैं और किस नसल के चूहे बड़ी मुश्किल के बाद क़ाबू में आते हैं और फिर हर क़िस्म
के चूहों को फांसने की एक सौ एक तरकीब शौकत को मालूम है।
मोटे मोटे उसूल उस
ने एक रोज़ मुझे बताए थे कि छोटी छोटी चूहियां अगर पकड़ना हों तो हमेशा नया चूहेदान इस्तिमाल
करना चाहिए। चूहेदान की साख़त किसी क़िस्म की भी हो, उस की कोई परवाह नहीं ख़याल इस
बात का रखना चाहिए कि चूहेदान ऐसी जगह पर न रखा जाये जहां आप ने चूहिया या चूहियां
देखी थीं।
ट्रंकों के पीछे। अलमारियों के नीचे, कहीं भी जहां आप ने
चूहिया न देखी हो। चूहेदान रख दिया जाये और उस में तली हुई मछली का छोटा सा टुकड़ा रख
दिया जाये। टुकड़ा बड़ा न हो। अगर चूहेदान खट से बंद होने वाला है तो उस में खासतौर पर
बड़ा टुकरा नहीं लगाना चाहिए कि चूहिया अंदर आकर उस टुकरे का कुछ हिस्सा कतर कर बाहर
चली जाएगी।
टुकड़ा छोटा होगा तो वो उसे उतारने की कोशिश करेगी और यूं
झटपट पिंजरे में क़ैद हो जाएगी..... एक चूहीया पकड़ने के बाद चूहेदान को गर्म पानी से
धो लेना चाहिए। अगर आप उसे अच्छी तरह न धोएँगे तो पहली चूहिया की बू उस में रह जाएगी
जो दूसरी चूहियों के लिए ख़तरे के अलार्म का काम देगी।
इस लिए इस बात का खासतौर पर ख़याल रखना चाहिए। हर चूहे या
चूहिया को पकड़ने के बाद चूहेदान को धो लेना चाहिए। अगर घर में ज़्यादा चूहे चूहियां
हों और उन सब को पकड़ना हो तो एक चूहेदान काम नहीं देगा।
तीन चार चूहेदान पास रखने चाहिऐं जो बदल बदल कर काम में लाए
जाएं चूहे की ज़ात बड़ी सयानी होती है, अगर एक ही चूहेदान घर में रखा जाएगा तो चूहे उस
से ख़ौफ़ खाना शुरू करदेंगे और उस के नज़दीक तक नहीं आयेंगे.......... बाअज़ औक़ात इन तमाम
बातों का ख़याल रखने पर भी चूहे चूहियां क़ाबू में नहीं आतीं।
उस की बहुत सी वजहें होती हैं। बहुत मुम्किन है कि आप से
पहले जो मकान में रहता था उस ने इसी क़िस्म का चूहेदान इस्तिमाल किया था जैसा कि आप
कर रहे हैं, ये भी हो सकता है कि उस ने चूहे पकड़ कर बाहर गली या बाज़ार में छोड़ दिया
हो और वो चंद दिनों के बाद फिर वापस घर आगया है।
ऐसे चूहे जो एक बार चूहेदान
में फंस कर फिर अपनी जगह पर वापस आजाऐं इस क़दर होशियार हो जाते हैं कि बड़ी मुश्किल
से क़ाबू में आते हैं। ये चूहे दूसरे चूहों को भी ख़बरदार कर देते हैं जिस का नतीजा ये
होता है कि आप की तमाम कोशिशें बेसूद साबित होती हैं और चूहे बड़े इत्मिनान से इधर उधर
दौड़ते रहते हैं।
और आप का और आपके चूहेदान का मुँह चढ़ाते रहते हैं..........
चूहे के बिल के पास तो चूहेदान हर्गिज़ हर्गिज़ नहीं रखना चाहिए, इस लिए कि इतनी बड़ी
चीज़ अपने घर के पास देख कर जो पहले कभी नहीं होती थी चूहा फ़ौरन चौकन्ना हो जाता है
और उस को दाल में काला काला नज़र आ जाता है।
जब किसी हीले से चूहे न पकड़े जाएं तो गिर्द-ओ-पेश की फ़िज़ा
का मुताला-ओ-मुशाहिदा करके ये मालूम करना चाहिए कि आस पास के लोग कैसे हैं, किस क़िस्म
की चीज़ें खाते हैं और उन के घरों के चूहे किस चीज़ पर जल्दी गिरते हैं। ये तमाम बातें
मालूम करके आपको तजुर्बे करना पड़ेंगे और ऐसी तरकीब ढूंढना पड़ेगी जिसके ज़रिया से आप
अपने घर के चूहे गिरफ़्तार कर सकें।
Saadat Hasan Manto |
शौकत
चूहे पकड़ने के फ़न पर एक तवील लकचर दे सकता है। किताब लिख सकता है मगर चूँकि वो तबअन
ख़ामोशी पसंद है इस लिए उस के मुतअल्लिक़ ज़्यादा बातचीत नहीं करता।
सिर्फ़ मुझे मालूम है कि वो इस फ़न में काफ़ी महारत रखता है,
मुहल्ले के दूसरे आदमियों को उस की मुतलक़ ख़बर नहीं, अलबत्ता उस के पड़ोसी उस के यहां
से कभी कभी चूहेदान आरियतन ज़रूर मंगाया करते हैं और उस ने इस ग़रज़ के लिए एक पुराना
चूहेदान मख़सूस कर रखा है।
पिछली बरसात की बात है। मैं शौकत के यहां बैठा
था कि उस के पड़ोसी ख़्वाजा अहमद सादिक़ साहब डिप्टी सुपरिन्टेन्डेन्ट पुलिस का बड़ा लड़का
अरशद सादिक़ आया, मैंने जब उठ कर दरवाज़ा खोला तो उस ने कहना शुरू किया। “इन कमबख़्त
चूहों ने नाक में दम कर रखा है।
अब्बा जी से बार-हा कह चुका हूँ कि ज़हर मंगवाईए उन को मारने
के लिए मगर उन्हें अपने कामों ही से फ़ुर्सत नहीं मिलती और यहां हर रोज़ मेरी किताबों
का सत्यानास होरहा है.......... आज अलमारी खोली तो ये बड़ा चूहा मेरे सर पर आन गिरा..........
तुम्हें क्या बताऊं उन चूहों ने मुझे कितना तंग किया है। किसी किताब की जिल्द सलामत
नहीं।
बाअज़ बड़ी किताबों की जल्द तो इस सफ़ाई से इन कमबख़्तों ने
कतरी है कि मालूम होता है किसी ने आरी से काट दी है।”
मैं अरशद को शौकत के पास ले गया और कहा। “अरशद साहब तशरीफ़
लाए हैं। चूहों की शिकायत लेकर आए हैं।”
अरशद कुर्सी पर बैठ गया और पेशानी पर से पसीना पूंछ कर कहने
लगा। “शौकत साहब, मैं क्या अर्ज़ करूं। अभी अलमारी की तमाम किताबें मैं बाहर निकाल
कर आया हूँ। एक भी इन में ऐसी नहीं जिस पर चूहों ने अपने दाँत तेज़ न किए हों।
बावर्चीख़ाना मौजूद है, दूसरी अलमारीयां हैं जिन में हरवक़त
खाने पीने की चीज़ें पड़ी रहती हैं, समझ में नहीं आता कि मेरी किताबें कतरने में उन
को क्या मज़ा आता है.......... यानी काग़ज़ और दफ़ती भला कोई ग़िज़ा है.......... अजी साहब
एक अंबार कतरे हुए गत्ते और धुन्के हुए काग़ज़ों का मैंने अलमारी में से निकाला है।”
शौकत मुस्कुराया। “डिप्टी सुपरिन्टेन्डेन्ट
पुलिस के घर में चूहे हर रोज़ सेंध लगाते फिरें.......... ये कैसे हो सकता है?”
अरशद ने इस मज़ाक़ से लुत्फ़ न उठाया इस लिए कि वो वाक़ई बहुत
परेशान था। “शौकत साहब, वो मामूली चूहे थोड़े हैं। मोटे मोटे संडे हैं जो खुले बंदों
फिरते रहते हैं.......... मेरे सर पर एक आन पड़ा। ख़ुदा की क़सम अभी तक दर्द होरहा है।”
शौकत और मैं दोनों खिलखिला कर हंस पड़े। “अरशद भी मुस्कुरा
दिया। आप तो दिल लगी कर रहे हैं और यहां ग़ुस्सा के मारे मेरा बुरा हाल हो रहा है।”
शौकत ने उठ कर अरशद को सिगरट पेश किया। “अपने दिल का गुबार
इस के धोएँ के साथ बाहर निकालिये और मुझे बताईए कि मैं आपकी क्या ख़िदमत कर सकता हूँ।”
अरशद ने सिगरट सुलगाया और कहा। “मैं आप से चूहेदान मांगने
आया था। अम्मी जान ने मुझ से कहा था कि शौकत के घर में मैंने दो तीन पड़े देखे हैं”
शौकत ने फ़ौरन नौकर को आवाज़ दी और उसे कहा। “वो चूहेदान जो
तुम ने कल गर्म पानी से धोकर ख़ूब साफ़ किया था अरशद साहब के घर दे आओ और देखो उन के
नौकर से कहना कि उस अलमारी के नीचे उस कोना में रखे जहां अरशद साहब अपनी किताबें रखते
हैं.......... उस अलमारी से दूर भी नहीं।
इस में मछली या तेल में
तली हुई किसी चीज़ का टुकड़ा लगा कर रख दिया जाये।” फिर अरशद से मुख़ातब
हो कर कहा। “आप भी अच्छी तरह सुन लीजिएगा.......... बाज़ार से अगर पकौड़े मिल जाएं तो
एक पकैड़ा काफ़ी रहेगा..... और जब चूहा पकड़ा जाये तो ख़ुदा के लिए उसे मेरे घर के पास
न छोड़ दीजिएगा और बहुत जगहें आपको मिल जाएंगी जहां से वो फिर वापस न आसके।”
देर तक अरशद हमारे पास बैठा रहा। शौकत उसको मज़ीद हिदायात
देता रहा। जब नौकर चूहेदान उस के घर पहुंचा कर वापस आगया तो उस ने इजाज़त चाही और चला
गया।
इस वाक़िया के चार रोज़ बाद अरशद मेरे घर आया। मैं और वो चूँकि
इकट्ठे कॉलिज में पढ़ते रहे हैं। इसी लिए वो मेरे बेतकल्लुफ़ दोस्त हैं, शौकत से उस
का तआरुफ़ मैंने ही कराया था। आते ही उस ने इधर उधर देखा जैसे मुझ से कोई राज़ की बात
तख़लिया में कहना चाहता है। मैंने पूछा। “क्या बात है। तुम इतने परेशान क्यों हो?”
“मैं
तुम्हें एक बड़ी दिलचस्प बात सुनाने आया हूँ मगर यहां नहीं सुनाऊंगा तुम बाहर चलो।”
ये कह कर उस ने मुझे बाज़ू से पकड़ा और बाहर ले गया।
रास्ते में उस ने मुझे अपनी दास्तान सुनाना
शुरू की। “अजीब-ओ-गरीब कहानी है जो मैं तुम्हें सुनाने वाला हूँ। बख़ुदा ऐसी बात हुई
कि मेरी हैरत की कोई इंतिहा नहीं रही..... यानी किसे यक़ीन था कि इतनी ज़िद्दी और नफ़ासत-पसंद
लड़की एक चूहेदान के ज़रीया से मेरे क़ाबू में आजाएगी.......... उसी चूहे दान के ज़रीया
से जो उस रोज़ तुम्हारे सामने मैंने शौकत से लिया था।”
मैंने हैरतज़दा होकर पूछा। “कौन सी लड़की इस चूहेदान में फंस
गई.......... लड़की न हुई चूहिया होगई..... आख़िर बताओ तो सही लड़की कौन है।”
“अम्मां
वही सलीमा जिस की नफ़ासत पसंदियों की बड़ी धूम है और जिस की ज़िद्दी तबीयत के बड़े चर्चे
हैं।”मेरी हैरत और ज़्यादा बढ़ गई। “सलीमा.......... झूट?”
“ख़ुदा की क़सम..........
झूट बोलने वाले पर लानत। और भला मैं तुम से झूट क्यों कहने लगा..... यही सलीमा, शौकत
के दिए हूए चूहेदान के ज़रिया से मेरे क़ाबू में आगई और बख़ुदा ये मेरे वहम-ओ-गुमान में
भी न था कि वो ऐसी आसानी से फंस जाएगी..... ”
मैंने फिर उस से हैरत भरे लहजा में कहा। “लेकिन ये हुआ क्यों
कर। तुम मुझे पूरी दास्तान सुनाओ तो कुछ पता चले..... चूहे दानों से भी कभी किसी ने
लड़कियां फांसी हैं। बड़ी बेतुकी सी बात मालूम होती है मुझे।
मैं सलीमा को अच्छी तरह जानता हूँ। हमारे यहां उस का अक्सर
आना जाना है। वो सिर्फ़ नफ़ासतपसंद ही नहीं बल्कि बड़ी ज़हीन लड़की है। अंग्रेज़ी ज़बान पर
उसे ख़ूब उबूर हासिल है। तीन चार मर्तबा उस से मुझे गुफ़्तुगू करने का इत्तिफ़ाक़ हुआ
तो मैंने मालूम किया कि अदब और शेअर के मुतअल्लिक़ उस की मालूमात बहुत वसीअ हैं।
मुसव्विर
भी है, प्यानो बजाने में बड़ी महारत रखती है। उस की ज़िद्दी और नफ़ासतपसंद तबीयत के बारे
में भी चूँकि मुझे बहुत कुछ मालूम है, इसी लिए मुझे अरशद की ये बात सुन कर सख़्त तअज्जुब
हुआ। वो तो किसी को ख़ातिर ही में लानेवाली नहीं। अरशद जैसे चुग़द को उस ने कैसे पसंद
करलिया। ये मुअम्मा मेरी समझ में नहीं आता था।
अरशद बेहद ख़ुश था। उस ने मेरी तरफ़ फतहमंद नज़रों से देखा
और कहा। “मैं तुम्हें सारा वाक़िया सुना देता हूँ। इस के बाद किसी क़िस्म की वज़ाहत
की ज़रूरत न रहेगी.......... क़िस्सा ये है कि परसों रात को अम्मी जान और अब्बा जी और
दूसरे लोग सब सिनेमा देखने चले गए। मैं घर में अकेला था। कुछ समझ में नहीं आता कि क्या
करूं।
आराम कुर्सी में टांगें फैलाए लेटा यही सोच रहा था कि एक
मोटा सा चूहा मुझे नज़र आया। उस को देखना था कि मारे ग़ुस्सा के मेरा ख़ून खोलने लगा।
फ़ौरन उठा और उस को पकड़ने की तरकीब सोचने लगा। उसे हाथ से पकड़ना तो ज़ाहिर है बिलकुल
मुहाल था, मैं किसी तरीक़े से उस को मार भी नहीं सकता था, इस लिए कि कमरे में बेशुमार
फ़र्नीचर और ट्रंक वग़ैरा पड़े थे।
मैंने शौकत के दिए हुए चूहेदान का ख़याल किया जिस से आठ चूहे
हम लोग पकड़ चुके थे मगर शौकत की हिदायात के मुताबिक़ उस को गर्म पानी से धोना ज़रूरी
था। मुझे कोई काम तो था नहीं और वक़्त भी काफ़ी था, चुनांचे मैंने ख़ुद ही समावार में
पानी गर्म किया और चूहेदान को धोना शुरू कर दिया।
अभी मैंने लौटे से गर्म पानी की धार उस के
आहनी तारों पर डाली ही थी कि दरवाज़े पर दस्तक हुई। दरवाज़ा खोला तो क्या देखता हूँ
कि सलीमा खड़ी है। मैंने कहा। “आईए, आईए।” वो अन्दर चली आई और कहने लगी। “क्या कर रहे
हैं आप? ” मैंने झेंप कर जवाब दिया। “जी चूहेदान धो रहा हूँ।” वो बेइख़्तियार हंस पड़ी। “चूहेदान धो रहे हैं.....
ये सफ़ाई आख़िर किस लिए हो रही है..... कोई बड़ा चूहा इन्सपैकशन के लिए तो नहीं आरहा।”
ये सुन कर मेरी झेंप दूर हो गई और मैंने क़हक़हा लगा कर कहा।
“जी हाँ.......... एक बहुत बड़ा चूहा इन्सपैकशन के लिए आना चाहता है ये सफ़ाई इसी सिलसिले
में हो रही है।”
ये कह कर अरशद ख़ामोश होगया। इस पर मैंने इस से कहा। “सुनाते
जाओ। रुको नहीं..... तुम्हारी दास्तान बहुत दिलचस्प है.......... हाँ तो फिर सलीमा
ने क्या कहा।
“कुछ
नहीं। मेरी बात सुन कर वह सहन ही में चौकी पर बैठ गई और कहने। “आप सफ़ाई कीजीए। इस
सफ़ाई की इन्सपैकशन मैं करूंगी..... हाँ ये तो बताईए आज ये सब लोग कहाँ गए हैं।”
मैंने जवाब दिया “सिनेमा गए हैं, मैं बे-कार बैठा था कि एक चूहा अपने कमरे में मुझे
नज़र आया।
मैं क्या अर्ज़ करूं हमारे घर में किस तरह बड़े बड़े मोटे संडे
चूहे सेंध मारते फिरते हैं। मेरी किताबों का तो उन्हों ने सत्यानास कर दिया है। अब
उन के ज़ुल्म-ओ-सितम से मेरे अंदर एक इंतिक़ामी जज़्बा पैदा होगया है। ये चूहेदान ले
आया हूँ इस से हर रोज़ दो तीन चूहे पकड़ता हूँ और उन को काले पानी भेज देता हूँ।”
सलीमा ने मेरी गुफ़्तुगू में दिलचस्पी ज़ाहिर की। “ख़ूब, ख़ूब.....
लेकिन ये तो बताईए काला पानी यहां से कितनी दूर है।”
मैंने कहा। “बहुत दूर नहीं। कोतवाली पास ही जो गंदा नाला बहता है उसी को फ़िलहाल मैंने
काला पानी बना लिया है। चूहों ने इस पर एतराज़ नहीं किया, क्योंकि इस मोरी का पानी काला
ही है।”
हम दोनों ख़ूब हंसे। फिर मैंने लौटा उठाया और
चूहेदान को बरशश के साथ धोना शुरू कर दिया। जब छींटे उड़े तो मैंने सलीमा से कहा। “आप
यहां से उठ जाईए, छींटे उड़ रहे हैं.......... वैसे भी ये मेरी बड़ी बदतमीज़ी है कि मैं
आप के सामने ऐसी ग़लीज़ चीज़ साफ़ करने बैठ गया हूँ।” उस ने फ़ौरन ही कहा। “आप तकल्लुफ़ न कीजीए
और अपना काम करते चले जाईए। छींटों के मुतअल्लिक़ भी आप कोई फ़िक्र न करें।”
जब मैंने चूहेदान अच्छी तरह धो कर साफ़ कर लिया तो सलीमा ने
पूछा। “अच्छा, अब आप ये बताईए कि इस को धोने की क्या ज़रूरत थी, बग़ैर धोए क्या आप इस
ज़ालिम चूहे को नहीं पकड़ सकते।” मैंने कहा। “जी नहीं.......... इस से पहले चूँकि इस चूहेदान
में हम एक चूहा पकड़ चुके हैं और उस की बू इस में अभी तक बाक़ी है इस लिए धोना ज़रूरी
है।
गर्म पानी से पहले चूहे की बू ग़ायब हो जाएगी। इस लिए दूसरा
चूहा आसानी के साथ फंस जाएगा।” मेरी ये बात सुन कर सलीमा ने बिलकुल बच्चों की तरह कहा।
“अगर चूहेदान में चूहे की बू रह जाये तो दूसरा चूहा नहीं आता।”
मैंने स्कूल मास्टरों का सा अंदाज़ इख़्तियार कर लिया।
“बिलकुल नहीं, इस
लिए कि चूहों की नाक बड़ी तेज़ होती है। आप ने सुना नहीं आम तौर पर ये कहा करते हैं कि
फ़ुलां आदमी की तो चूहे की नाक है। यानी उस की क़ुव्वत-ए-शाम्मा बड़ी तेज़ है..........
समझीं आप? ” सलीमा ने मेरी तरफ़ जब देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने एक बहुत बड़ी
बात इस से कह दी है जिस को सुन कर वो बहुत मरऊब होगई है।
उस की निगाहों में मुझे अपने मुतअल्लिक़ क़दर-ओ-मंजिलत की झलक
नज़र आई। इस से मुझे शह मिल गई। चुनांचे वो तमाम बातें जो मैंने शौकत से उस रोज़ सुनी
थीं। एक लैक्चर की सूरत में दुहराना शुरू करदीं और वो”मैंने
उस की बात काट कर कहा। “ये सब मुझे अफ़साना मालूम होता है। तुम झूट कहते हो।”
तुम भी अजीब क़िस्म के मुनकिर हो।”
अरशद ने बिगड़ कर कहा। भई क़सम ख़ुदा की , इस का एक एक लफ़्ज़ सच है। मुझे झूट बोलने
की ज़रूरत ही क्या है। तुम्हें हैरत ज़रूर होगी, इस लिए कि मैं ख़ुद बहुत मुतहय्यर हूँ।
सलीमा जैसी पढ़ी लिखी और ज़हीन लड़की ऐसी फ़ुज़ूल बातों से मुतअस्सिर होगई।
ये बात मुझे हमेशा मुतहय्यर रखेगी, मगर भई हक़ीक़त से तो इनकार
नहीं हो सकता। उस ने मेरी ऊटपटांग बातें बड़े ग़ौर से सुनीं जैसे उसे दुनिया का कोई राज़-ए-निहुफ़ता
बता रहा हूँ.......... वल्लाह ये ज़हीन लड़कीयां भी प्रलय दर्जे की सादा लौह होती हैं।
सादा लौह नहीं कहना चाहिए। ख़ुदा मालूम क्या होती है। तुम
उन से कोई अक़ल की बात कहो तो बस बिगड़ जाएंगी ये समझेंगी कि हम ने उन की अक़ल-ओ-दानिश
पर हमला कर दिया है और जब उन से कोई मामूली सी बात कहो जिस से ज़ेहानत का दूर से तअल्लुक़
भी न हो तो वो ये समझेंगी कि उन की मालूमात में इज़ाफ़ा होरहा है.......... तुम किसी
फ़लसफ़ा दान और बाल की खाल उतारने वाली औरत से कहो कि ख़ुदा एक है तो वो नुक्ता चीनी
शुरू करदेगी।
अगर उस से ये कहो देखो मैंने तुम्हारे सामने माचिस की डिबिया
से ये एक तीली निकाली है, ये हूई एक तीली, अब में दूसरी निकालता हूँ। मेज़ पर इन तीलियों
को पास पास रख कर जब तुम उस से ये कहोगे, देखो, अब ये दो तीलियां होगई हैं तो वो इस
क़दर ख़ुश होगी कि उठ कर तुम्हें चूमना शुरू कर देगी।
ये कह कर अरशद ख़ूब हंसा। मुझे भी हंसना पड़ा इस लिए कि बात
ही हंसी पैदा करने वाली थी। जब हम दोनों की हंसी कम हुई मैंने उस से कहा। “अब तुम अपनी
बक़ाया कहानी सुनाओ और हंसी मज़ाक़ को छोड़ो।”
“हंसी मज़ाक़ मैं कैसे छोड़
सकता हूँ भाई।” अरशद ने बड़ी संजीदगी से कहा। “मैं तो
उस से हंसी मज़ाक़ ही में बातें कर रहा था मगर वो बड़ी संजीदगी से सुन रही थी। हाँ तो
जब मैंने चूहे पकड़ने के उसूल उस को बता दिए तो और ज़्यादा बच्चा बन कर उस ने मुझ से
कहा। “अरशद साहब आप तो फ़ौरन चूहे पकड़ लेते होंगे?”
मैंने बड़े फ़ख़्र के साथ
जवाब दिया। “जी हाँ, क्यों नहीं।” इस पर सलीमा ने बड़े इश्तियाक़ के साथ
कहा। “क्या आप इस चूहे को जो आप ने अभी अभी देखा था मेरे सामने पकड़ सकते हैं?” “अजी
ये भी कोई मुश्किल बात है, यूं चुटकियों में उसे गिरफ़्तार किया जा सकता है।”
सलीमा उठ खड़ी हुई। “तो चलीए, मेरे सामने उसे गिरफ़्तार कीजीए।
मैं समझती हूँ आप कभी इस चूहे को पकड़ नहीं सकेंगे।”
मैं ये सुन कर यूंही मुस्कुरा दिया। “आप ग़लत समझती हैं। पंद्रह नहीं तो बीस मिनट में
वो चूहा इस चूहेदान में होगा।
और आप की नज़रों के सामने बशर्तिके आप इतने अर्सा तक इंतिज़ार
कर सकें।” सलीमा ने कहा। “मैं एक घंटे तक यहां बैठने के लिए तैय्यार
हूँ मगर मैं आप से फिर कहती हूँ कि आप नाकाम रहेंगे?.......... वक़्त मुक़र्रर करके
आप चूहे को कैसे पकड़ सकते हैं?.......... ” मैं उस वक़्त अजीब-ओ-ग़रीब मूड में था।
अगर कोई मुझ से ये कहता कि तुम ख़ुदा दिखा सकते हो तो मैं
फ़ौरन कहता, हाँ दिखा सकता हूँ। चुनांचे मैंने बड़े फ़ख़्रिया लहजा में सलीमा से कहा।
“हाथ कंगन को आरसी क्या.......... मैं अभी आपको वो चूहा पकड़ के दिखाई देता हूँ मगर
शर्त बांधीए।”
उस
ने कहा मैं हर शर्त बांधने के लिए तैय्यार हूँ, इस लिए कि हार आप ही की होगी।”
इस पर ख़ुदा मालूम मुझ में कहाँ से जुर्रत आगई जो मैंने उस से कहा। “तो ये वाअदा कीजिए
कि अगर मैंने चूहा पकड़ लिया तो आप से जो चीज़ तलब करूंगा आप बखु़शी दे देंगी।”
सलीमा
ने जवाब दिया। “मुझे मंज़ूर है।”
चुनांचे मैंने काँपते हुए हाथों से चूहेदान में सुबह की तली हुई मछली का एक टुकड़ा लगाया
और उस को अपनी किताबों की अलमारी से दूर सोफे के पास रख दिया। शर्त व्रत का मुझे उस
वक़्त कोई ख़्याल नहीं था।
लेकिन में दिल में ये दुआ ज़रूर मांग रहा था कि कोई न कोई
चूहा ज़रूर फंस जाये ताकि मेरी सुर्ख़रूई हो। न जाने किस जज़्बा के मातहत मैंने गप हाँक
दी। बाद में मुझे अफ़सोस हुआ कि ख़्वाह-मख़्वाह शर्मिंदा होना पड़ेगा। चुनांचे एक बार मेरे
जी मीनाई कि उस से कह दूं, मैं तो आप से यूंही मज़ाक़ कर रहा था।
चूहा पंद्रह मिनट में कैसे पकड़ा जा सकता है..........गांधी
जी का सत्य गिरह ही होता तो उसे जब चाहे पकड़ लेते मगर ये तो चूहा है। आप ख़ुद ही ग़ौर
फ़रमाएं। मगर मैं उस से ये न कह सका। इस लिए कि इस में मेरी शिकस्त थी।
ये कह कर अरशद ने जेब से सिगरट निकाल कर सुलगाया और मुझ से
पूछा। “क्या ख़याल है तुम्हारा इस दास्तान के मुतअल्लिक़?”
मैंने कहा। “बहुत दिलचस्प है, मगर इस का दिलचस्प तरीन हिस्सा
तो अभी बाक़ी है। जल्दी जल्दी वो भी सुना दो।”
“क्या
पूछते हो दोस्त.......... वो पंद्रह मिनट जो मैंने इंतिज़ार में गुज़ारे सारी उम्र मुझे
याद रहेंगे। मैं और सलीमा कमरे के बाहर कुर्सियों पर बैठे थे। वो ख़ुदा मालूम क्या
सोच रही थी। मगर मेरी बुरी हालत थी। सलीमा ने मेरी जेब घड़ी अपनी रान पर रखी हुई थी।
में बार बार झुक कर उस में वक़्त देख रहा था। दस मिनट गुज़र
गए मगर पास वाले कमरा में चूहेदान बंद होने की खट न सुनाई दी। ग्यारह मिनट गुज़र गए।
कोई आवाज़ न आई।
साढ़े ग्यारह मिनट होगए।
ख़ामोशी तारी रही। बारह मिनट गुज़रने पर भी कुछ न हुआ। सवा बारह मिनट होगए, साढ़े बारह
हुए कि दफ़्फ़ातन खट की आवाज़ बुलंद हुई।
मुझे ऐसा महसूस हुआ
कि चूहेदान मेरे सीने में बंद हुआ है। एक लम्हा के लिए मेरे दिल की धड़कन बंद सी होगई।
लेकिन फ़ौरन ही हम दोनों उठे। दौड़ कर कमरे में गए और चूहेदान के तारों में से जब मुझे
एक मोटे चूहे की थूथनी और उस की लंबी लंबी मूंछें नज़र आईं तो मैं ख़ुशी से उछल पड़ा।
पास ही सलीमा खड़ी थी, उस की तरफ़
मैंने फ़त्हमंद नज़रों से देखा और झटपट उस के हैरत से खुले हुए होंटों को चूम लिया..........
ये सब कुछ इस क़दर जल्दी में हुआ कि सलीमा चंद लम्हात तक बिलकुल ख़ामोश रही, लेकिन इस
के बाद उस ने ख़फ़्गी आमेज़ लहजा में मुझ से कहा “ये क्या बेहूदगी है?”
उस वक़्त ख़ुदा मालूम में कैसे मूड में था कि
एक बार मैंने फिर उसी अफ़रातफ़री में उस का बोसा ले लिया और कहा।
“अजी मौलाना आप ने शर्त हारी है। और..... तीसरी मर्तबा
उस ने अपने होंट बोसे के लिए ख़ुद पेश करदिए .......... जिस तरह चूहा हाथ आया इसी तरह
सलीमा भी हाथ आगई, मगर भई में शौकत का बहुत ममनून हूँ।
अगर मैंने चूहेदान को गर्म पानी से न धोया होता तो चूहा कभी
न फंसता।ये दास्तान सुन कर मुझे बहुत लुत्फ़ आया। लेकिन अफ़सोस भी हुआ, इस लिए कि शौकत
उस लड़की सलीमा की मुहब्बत में बुरी तरह गिरफ़्तार है।
The End
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