कुछ दिनों पहले एक फंक्शन में Etawah जाने का अवसर प्राप्त हुआ था.फंक्शन के वयस्त कार्य करम से एक दिन Etawah घूमने का वक़्त निकल लिया.
एक ऑटो रिक्शा 150.00 रुपये पर पूरे दिन के लिए किराए पर लिया, अपने कैनन SLR कैमरा के साथ घुमक्कड़ी पर निकला पाड़ा।
रुक्ये! घूम से पहले जरूरी है की इटावा का इतिहास पढ़ा जाए...
Victoria Memorial-Etawah |
इटावा
का इतिहास
कल-कल
निनादिनी, पतित पावनी यमुना के तट पर बसे जनपद इटावा का यद्यपि क्रमबद्ध इतिहास उपलब्ध
नहीं है पर फिर भी विद्वानों का अनुमान है कि इटावा की ऐतिहासिक आयु साढ़े पांच हजार
वर्ष से भी अधिक है।
इसी भूभाग में स्थित होने के कारण उस काल में इटावा को इष्टिकापुरी कहा जाता था। कहा जाता है कि इटावा में ईंटों का बहुत बड़ा कारोबार था और देवस्थान के निर्माण में इटावा की ईंटों का प्रयोग शुभ माना जाता था इसी कारण इसका नाम इष्टिकापुरी पड़ा था।
इसके पश्चात इतिहास लुप्त प्राय है। सन्
836 से लेकर 1194 ई. तक इटावा का यह भूभाग कन्नौज के राठौर नृपों के अधिकार में रहा।
कन्नौज के अंतिम नरेश महाराज जयचन्द्र का मुहम्मद गौरी के साथ यहीं इकदिल के पास युद्ध
हुआ था। इस युद्ध में महाराजा जयचन्द्र के प्रसिद्ध सामान्त राजा सुमेरशाह मारे गये।
इटावा में यमुना तट पर स्थित उनका दुर्ग ध्वस्त कर दिया गया था। इस भीषण युद्ध में
गौरी के 22 सेना अधिकारी और हजारों सैनिक भी मारे गये थे। इन की कब्रें, बाइस ख्वाजा
के नाम से प्रदर्शनी के पास ही बनी हुई हैं।
Digambar Jain Mandir-Etawah |
इसके
पश्चात लगभग 6 सौ वर्षों तक, इटावा जनपद विभिन्न मुस्लिम राज्यों के अधीन रहा, पर वहां
की जुझारू जनता न कभी चैन से बैइी और उसने कभी मुस्लिम आक्रमणकारियों को चैन से बैठने
ही दिया। सन् 1252 से लेकर 1389 तक उसके कई बार भंयकर विद्रोह किया और दिल्ली साम्राज्य
से भी जूझने का साहस दिखाया। सन् 1421 से लेकर 1424 तक इटावा की जनता ने पुनः युद्ध
लड़ा परन्तु 1487 में हुसैन शाह ने विद्रोह शांत करने में सफलता पाई और इटावा पर पूरी
तरह अधिकार कर लिया।
सन्
1528 में इटावा मुगल शासन का अंग बन गया। सन् 1540 से लेकर 1556 तक शेरशाह सूरी का
आधिपत्य रहा, पर इसी वर्ष अकबर ने विजय प्राप्त की और अफगान शासन का अन्त हो गया। सन्
1751 से लेकर 1766 तक इटावा ने मराठा राज्य के अन्तर्गत स्वतन्त्रता का सुख भोगा इसी
काल खण्ड में प्रसिद्ध मराठा सेनापति सदाशिव रावभाऊ ने दिल्ली विजय के उपलक्ष्य में
यमुना के तट पर प्रसिद्ध टिक्सी महादेव मन्दिर का निर्माण कराया जो आज भी हिन्दू समाज
के लिए गौरव चिन्ह के रूप में गर्व से सिर उठाए स्थित है।
सन्
1805 में इटावा, ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधिकार में आ गया। सन् 1857 के स्वातंत्र्य
युद्ध में इटावा भी कूद पड़ा। यहां के रणबांकुरों ने अंग्रेजों को मारकर जेल का फाटक
तोड़ दिया, सरकार खजाना लूट लिया गया। तत्कालीन कलक्टर ह्यूय ने महिला के वेश में बाह
मार्ग से आगरा भाग कर अपने प्राण बचाए। फरवरी 1858 में उसी ह्यूय ने अपनी सेना एकत्रित
करके इटावा पर धावा बोला और अपना अधिकार कर लिया।
स्वातंत्र्य
युद्ध के काल में इटावा निवासियों ने भंयकर यातनाएं झेलीं। चकरनगर और रूरू के राज्य
नष्ट कर दिये गये। कुदरैल, राजपुर, सिकरौली, नीमरी, बिण्डवा खुर्द, बदरा ककहरा, सिण्डौस
और बंसरी के सूबेदार आदि सभी की जमीदारियां जब्त करके ब्रिटिश राज्य में मिला ली गई।
सैंकड़ों व्यक्ति मारे गये और सहóों घायल हुए।
कटरा साहब खां फाटक पर अंग्रेजों की एक
सैनिक टुकड़ी पर वहां के निवासियों ने आक्रमण कर 14 अंग्रेज मार डाले। प्रतिशोध की
भावना से अंग्रेजों ने अनेक लोगों को गोलियों से भून दिया।
पर शौर्य की इन गाथाओं के ठीक विपरीत अने जमींदार और सरकारी अधिकारी अंग्रेजों से मिल गए और इस स्वातंत्र्य युद्ध की पीठ में छुरा भांेक कर स्वयं को कलंकित कर लिया। सन् 1860 और 1868 में इटावा को भंयकर अकाल के रूप में दैवी आपŸिायां भी झेलनी पड़ी। जनपद निवासी पेड़ों की छाल, पत्तियां और जड़े खाने को विवश हो गए।
1885
में पूर्व जिलाधिकारी मि. ह्यूय ने कांग्रेस की स्थापना की। पर इटावा में कांग्रेस
का प्रभाव 1919
से बढ़ सका।
Etawah Sangam of five rivers
चकरनगर
तहसील क्षेत्र में बिठौली थाना के समीप महाकालेश्वर भोलेनाथ का प्राचीन मंदिर है, मंदिर
से चंद कदमों की दूरी पर पंचनद है, पंचनद में यमुना, चंबल, क्वारी, सिंध तथा पहुज पांच
नदियों का संगम है। समूचे भारत में पांच नदियों का संगम इसी स्थान पर माना गया है।
गौरतलब पहलु यह भी है कि पंचनद के आसपास जनपद इटावा ही नहीं अपितु औरैया, जालौन तथा
मध्यप्रदेश के जनपद ¨भड की सीमा जुड़ती है। सिद्ध स्थल महाकालेश्वर इटावा क्षेत्र में
होने से इसका महत्व इटावा को मिला। कार्तिक पूर्णिमा पर तो मेला लगता है, साथ ही महाशिवरात्रि
पर्व तथा श्रावण मास के हर सोमवार को भी काफी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं।
हज़रत अबुल हसन शाह वारसी (R.A) और हज़रत महमूद शाह वारसी (R.A) की दरगाह-कटरा साहब खां - इटावा
Dilip Kumar Memories: इटावा की वारसी दरगाह से दिलीप कुमार
का था खास लगाव, पत्नी संग दो बार आकर टेका था माथा
ट्रेजडी किंग के नाम के मशहूर फिल्म अभिनेता यूसूफ खान उर्फ दिलीप कुमार का इटावा से भी गहरा नाता रहा है। वह 1972 व 75 में शहर के कटरा साहब खां स्थित बड़ी दरगाह अबुल शाह हसन वारसी में पत्नी सायरा बानो व सास नसीम बानो के साथ माथा टेकने आए थे।
Dilip Kumar and Saera Bano |
दिलीप कुमार और सायरा बानो पहली बार 1972 में
दरगाह में पूरे दिन रहे थे। दूसरी बार 1975 में तीन दिवसीय उर्स के मौके पर आए और करीब
डेढ़ दिन रुके थे।दरगाह सायरा बानो की मां मशहूर अदाकारा नसीम बानो का पीरखाना (गुरु
का घर) है। उनके पीर (गुरु) महमूद शाह वारसी यहीं रहते थे। वह अपनी मां नसीम बानो के
साथ भी कई बार दरगाह आईं। नसीम बानो ही दामाद दिलीप कुमार और बेटी सायरा को संतान को
लेकर दुआ मांगने के लिए दरगाह पर लाई थीं।
कुछ लोग कहते हैं। सायरा की मां नसीम बानो इटावा के कबीरगंज मोहल्ले
की थीं।
राजा सुमेर सिंह किला
सुमेर सिंह का किला यह इटावा का गौरव रहा है। सुमेर सिंह का किला एक ऐतिहासिक धरोहर है। चाँदनी रात में यह किला जगमगा उठता है। सुरक्षा कारणो से इस किले में एक सुरंग बनवाई गई जो सीधे यमुना नदी तक जाती थी। सुमेर सिंह का किला देखने के लिए पूरे भारत से लोग आते रहते हैं।
Fort Raja Sumer Singh--Etawah |
इस किले में एक डाक बंगला है जिसमे देश-विदेश से अतिथि आते रहते हैं, यहाँ पर एक हनुमान मंदिर भी है। राजा सुमेर सिंह के किले में फिल्म की सूटिंग भी होती रहती है। यह जगह इटावा जिला आकर्षक स्थल इसलिए ही कहलाई जाती है।
यह किला एक प्रेम कहानी का मूक गवाह है, जिसने भारतीय उपमहाद्वीप की किस्मत ही बदल दी।
1190 के आसपास - जय चंद्र ने संयुक्ता के स्वयंवर की घोषणा की और पृथ्वीराज को छोड़कर देश के सभी योग्य राजकुमारों को आमंत्रित किया।
पीरथवी राज चौहान का अपमान करने के लिए, जयचंद्र ने स्वयंवर अखाड़े (राजा सुमेर सिंह इटावा का किला) के द्वार पर चौहान की एक आदमकद प्रतिमा स्थापित की, जो एक द्वारपाल के रूप में तैयार की गई थी।
चौहान भड़क गए और उन्होंने संयुक्ता के साथ भागने का फैसला किया।स्वयंवर के दौरान, संयुक्ता अपने सभी उत्साही चाहने वालों की नज़रों को नज़रअंदाज़ करते हुए, औपचारिक माला पकड़े हुए दरबार से गुज़री। वह दरवाजे से गुजरी और पृथ्वीराज की मूर्ति के गले में माला डाल दी, उसे अपना पति घोषित कर दिया।
चौहान पास में भेष में छिपा हुआ था, तुरंत उसकी सराय में उसकी गोद में उसे अपने तेज घोड़े पर बिठाया और एक साहसी पलायन किया।जय चंद अपमानित महसूस कर रहे थे लेकिन उनके पास इतनी ताकत नहीं थी कि वह चौहान पर हमला कर सकें।
इसलिए, उन्होंने भारत के बाहर अफगानिस्तान से गोरी के मुहम्मद को खैबर दर्रे के माध्यम से भारत में प्रवेश करने और पृथ्वीराज पर हमला करने की जानकारी के साथ आमंत्रित किया।
मराठा सरदार ने कराया था टिक्सी मंदिर
का निर्माण
शहर के दक्षिणी किनारे स्थित टिक्सी मंदिर इटावा की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर में शामिल है। मराठा शैली में निर्मित इस मंदिर में वशिष्ठ मुनि द्वारा शिव¨लग स्थापित है।
Tixi Temple-Etawah |
पानीपत के तीसरे युद्ध में अहमदशाह अब्दाली का साथ देने वाले इस क्षेत्र के नवाबों को हराने की मन्नत पूरी होने पर मंदिर का निर्माण कराया गया था। 1780 में निर्माण कार्य पूर्ण हुआ था, तब से यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है।
Tixi Temple-Etawah |
जनश्रुति के मुताबिक प्राचीन काल में
यह क्षेत्र बीहड़ का जंगल था, वशिष्ठ मुनि ने यहां पर वशिष्ठेश्वर महादेव की स्थापना
की थी। शिव¨लग धरातल से ऊंचाई पर था, सिद्ध स्थल
होने से शिव भक्त यहां आकर पूजा-अर्चना तपस्या करते थे। इस स्थल से करीब 500 मीटर की
दूरी पर यमुना नदी के घाट स्थापित हैं। उस दौरान ग्वालियर-¨भड की ओर आवागमन करने वाले
नदी में नाव के माध्यम से आवागमन करते थे।
Tixi Temple-Etawah |
मराठा सरदार सदाशिव भाऊ कन्नौज तथा फर्रुखाबाद
में नवाबों को खात्मा करने के लिए सेना सहित 1772 में यमुना नदी पर आकर रुका था। उस
समय नवाबों का भी मजबूत सैन्य संगठन था। उस समय कुछ श्रद्धालुओं ने मराठा सरदार को
इस शिव¨लग पर रुद्रीय अभिषेक करके अपनी विजय सुनिश्चित
करने की सलाह दी। मराठा सरदार ने पूजा-अर्चना करके मन्नत मांगकर नवाबों को परास्त कर
दिया।
तब
मराठा सरदार ने मराठा शैली में शिव¨लग तक सीढि़यों सहित मेहराबदार
छत का निर्माण कराया। 1780 में निर्माण पूर्ण होना इटावा के गजेटियर में दर्ज है।
At Top of Tixi Temple |
करीब दो सौ साल पुराना है पक्का तालाब:
महारानी विक्टोरिया के दौर वाले तालाब
Pakka Talab -Etawah |
ब्रिटिश
शासन काल में महारानी विक्टोरिया के भारत आगमन पर विक्टोरिया मैमोरियल की स्थापना की
गई थी। पक्का तालाब अपने तरह का एक विशेष तालाब है। यह अंग्रेजों के जमाने से स्थित
है। इसके एक किनारे पर ब्रिटिश कालीन मेमोरियल हॉल बना हुआ है, वहीं यहां अनेक मंदिर
भी हैं जो लोगों की आस्था का केंद्र हैं।
Sai Mandir-Pakka Talab-Etawah |
महारानी विक्टोरिया के नाम पर जिले के रजवाड़ा व धनाढ्य घरानों द्वारा शहर के पक्का तालाब के किनारे बनाया गया विक्टोरिया मेमोरियल हॉल अब दुर्दशा का शिकार हो रहा है।
Victoria Memorial-Etawah |
आजाद भारत
को विरासत में मिले इस ऐतिहासिक भवन का वर्ष 1989 में तत्कालीन जिलाधिकारी राजीव खेर
द्वारा नुमाइश के फंड से इसका जीर्णोद्धार कराया गया था। तब से इसका नाम कमला नेहरु
भवन रख दिया गया।
Pakka Vahan-Etawah |
जमीदारों
के सहयोग से पहली बार यहीं विक्टोरिया हॉल में इटावा प्रदर्शनी लगाई गई थी जो सात साल
तक प्रत्येक वर्ष लगी। इसके बाद दोबारा 1910 में वर्तमान जगह पर प्रदर्शनी शुरु हुई,
जिसका नाम अब इटावा महोत्सव एवं पशु मेला प्रदर्शनी हो गया है। 15 अगस्त 1957 को नाम
परिवर्तन।
Etawah
22 khawaja:
जहाँ मोहम्मद गौरी के सिपाहिओं की कब्रे बनी है (सन् 1192)
22
ख्वाजा जो कि इटावा नुमाइश चौराहे के पास स्थित है ,वास्तव मैं यह एक अनोखा कब्रिस्तान
क्यूंकि इसमें 22 खाजों की कब्रे है |
22 Khawaja -Etawah |
यह
कब्रे मोहम्मद गौरी के 22 शिपासलार की हैं जो युद्ध मैं मारे गए थे। 1192 मे जब तराइन
का दुतिय युद्ध हुआ और जब पृथ्वीराज हार गए तो मोहम्मद गौरी ने सम्पूर्ण हिंदुस्तान
पे राज्य करने के विचार से उसने बाकि राज्यों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया|
22 Khawaja-Etawah |
उसकी सेना इटावा के नजदीक आकर रुक गयी और सुमेर सिंह किले को चारो और से घेर लिया उस समय राजा सुमेर सिंह ने मोहम्मद गोरी की सेना पर हमला कर दिए दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ जिसमे मोहम्मद गोरी के कई बड़े सिपेसलार मारे गए |
कहते हैं उन्ही मे से 22 सिपेसलारों की कब्रे यहाँ उनकी बनवा दी गयी
थी ,तबसे लेकर अब तक यहाँ उनकी कब्रें मौजूद हैं , इस कब्रिस्तान के अंदर न केवल लोगों
को दफनाया ज्यादा है बल्कि इसके अंदर एक मस्जिद भी जहाँ नियामत रूप से नमाज अदा की
जातीं है।
Etawah
Kali Vahan Mandir-
जहां महाभारत के अमर अश्वत्थामा आते हैं हर सुबह पूजा करने
इटावा
काली वाहन मंदिर यमुना बैंक के पास इटावा -ग्वालियर रोड पर है जो लोगो के आस्था एक
बड़ा प्रतीक माना जाता है।
Kali Vahan Mandir-Etawah |
मंदिर
के चीफ महंत राधेश्याम द्विवेदी जी बताते हैं की हर रात इटावा काली वाहन मंदिर को सफाई करके
दरवाजे बंद किये जाते हैं लेकिन जब सुबह गेट खोले जाते हैं तो ताजे फूल माता
के आगे पाए जाते जिससे यही माना जाता की अस्वथामा जो की महाभारत का एक श्रापित अमर
इंसान है जो अपने दंड की माफ़ी के लिए हर रोज आता है।
इटावा
काली वाहन मंदिर के अंदर तीन प्रमुख महाकाली ,महालक्ष्मी एंड महासरस्वती मूर्तियां
हैं उसके अतरिक्त अन्य भगवानों के छोटे-छोटे अतिमनमोहक राम -सीता ,हनुमान और अन्य देवी
-देवताओं के निवास भी हैं |
वहीँ
मंदिर के बाहर दाहिनी ओर एक छोटी सी चोटी पर भैरव बाबा का मंदिर भी है, पुराणों के
अनुशार ऐसा माना जाता की जब माता एक कन्या के रूप रख कर त्रिकुटा हिल के पास ध्यान के लिए गयी थी वहां एक भैरव नाथ नाम का राक्षस माता का पीछा करने लगा और उनके ध्यान मे रूकावट डालने लगा इससे क्रोधित हो माता ने अपने
असली रूप मैं आकर उसका वध कर दिया |
Etawah
Lion Safari
- इटावा सफारी पार्क
इटावा
सफारी जिसे पहल लायन सफारी (Etawah
Lion Safari) के नाम से भी जाना जाता था यह इटावा-ग्वालियर रोड , 5
km इटावा सिटी की दूरी पर है|
यह हर सोमवार को बंद रहता है तथा इसमें जाने का समय 10 बजे से साम 5 बजे तक होता है। इटावा सफरी के सारे लुफ्त उठाने के लिए आपको 10 से 4 :30 बजे तक टिकट लेने होंगे,इटावा सफारी के तरफ से आपको घूमने के लिए एक बस टूर भी प्रदान कराया जाता है जिसके कोस्ट लगभग Rs. 200-500 रूपए के बीच मैं होती है।
इटावा
सफारी बनाने का फैसला 2006 मैं लिया गया था ,और इसका काम 2012 मैं स्पैनिश कम्पनी उरबा
द्वारा कुछ इस तरीके से डिसाइड किया गया है
की यह प्राकृतिक और मनोहक दिखाई दे सके ,बड़े बड़े फत्रों से गुफाओं के सेफ और कलाकृति
की गयी है ताकि यहाँ घूमने वाले लोग वाइल्डलाइफ को अच्छे से समझ और लुफ्त उठा सकें।
इटावा
सफारी पार्क मे कुल 5 प्रजातियों के 112 जानवर हैं जो इस 350 हेक्टेयर मैं फैली इस
जगह मैं उनके रहने,खाने तथा घूमने के उचित परबंद लिए गए हैं।
इटावा में जन्मे थे मशहूर फिल्मकार के
आसिफ
के.
आसिफ मशहूर फिल्म निर्माता ही नहीं बेहतरीन लेखक भी थे। उन्होंने भारतीय सिनेमा की
सबसे भव्य और ऐतिहासिक माइलस्टोन फिल्म मुग़ले आजम बनाकर अमरता हासिल कर ली ।
K.Asif-Director of FilmMughl e Azam |
शहर के मोहल्ला कटरा पुर्दल खां में स्थित महफूज
अली के घर में उनकी यादें अभी ¨जदा हैं, इस घर में के आसिफ के मामा असगरी आजादी किराए
पर रहा करते थे। उनके मामा की पशु अस्पताल में डॉक्टर के रूप में यहां तैनाती हुई थी।
उसी दौरान उनकी बहन लाहौर से आकर अपने भाई की सरपरस्ती में रहने लगी थी।
उन्होंने 14 जून 1922 को
एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम उस समय कमरूद्दीन रखा गया जो वॉलीबुड पहुंचकर के.
आसिफ के नाम से मशहूर हुआ। बताते हैं कि उनका बचपन मुफलिसी में ही बीता लेकिन शिक्षा
के प्रति सजग थे। इसके तहत फूल बेंचने के साथ इस्लामियां इंटर कालेज से जुड़े मदरसा
में शिक्षा ग्रहण की। इस दौरान वे टेल¨रग का कार्य करने लगे, टेल¨रग बेहतरीन करने से उनके
पास ख्यतिप्राप्त लोग कपड़े सिलाने आते थे। ऐसे लोगों से वार्तालाप करके के आसिफ के
मन में बड़े-बड़े सपने समाहित हुए।
A Road of Etawah |
सपनों
को साकार करने के लिए वे मुंबई में फिल्मी दुनियां में पहुंच गए। 1941 में उनकी फूल
फिल्म रिलीज हुई जो उस समय की सबसे बड़ी फिल्म मानी गई, इसके पश्चात 1951 में उनकी हलचल
फिल्म ने समूचे देश में हलचल मचाई। इसके पश्चात 1960 में मुगल-ए-आजम रिलीज हुई तो इस
फिल्म ने फिल्म जगत में तहलका मचा दिया।
Shiv Mandir at Pakka Talab-Etawah |
Yes, it is that simple really! Enjoy
your trip! Keep travelling!
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