Thursday, 11 March 2021

इस्लाम के उदय और उसके बनने में एक महिला की अहम भूमिका रही: वो महिला थीं-ख़दीजा: मोहम्मद की पत्नी

 ख़दीजा (५६७-६२० इसवी) इस्लामी पैगंबर मुहम्मद की पहली पत्नी थी।वह इस्लाम धर्म स्वीकार करनेवाली पहली महिला थी।

 

मोहम्मद को एक पुरुष के पैगंबर बनाने में ख़दीजा की सबसे बड़ी भूमिका थी. इस्लाम जब अपने शुरुआती दिनों में मुश्किल में था तो ख़दीजा की दरियादिली से लोगों के भरोसे जीतने में काफ़ी मदद मिली। जब भी मोहम्मद कमज़ोर पड़े तो वो ख़दीजा ही थीं जिन्होंने उन्हें ताक़त दी


ऐसा कहा जाता है हर सफल पुरुष के पीछे एक सफल महिला होती है. ऐसा ही कुछ पैंगंबर मोहम्मद के साथ भी था।आज की तारीख़ में इस्लाम में औरतों की स्थिति पर बहस होती है लेकिन इस्लाम के उदय और उसके बनने में एक महिला की अहम भूमिका रही. वो महिला थीं- ख़दीजा।


ख़दीजा एक अमीर सौदागर की बेटी थीं. इस सौदागर ने अपने पुश्तैनी काम को बढ़ा कर एक बड़े कारोबारी साम्राज्य में तब्दील कर दिया था. लेकिन एक युद्ध में पिता की मौत के बाद खदीजा ने ख़ुद आगे बढ़ कर इस कारोबारी साम्राज्य की बागडोर संभाल ली.कारोबार में उनकी जो लियाकत थी, उसने उन्हें एक नई राह दिखाई और आख़िर में इसने दुनिया का इतिहास ही बदल दिया।

 

कुरआन के अवतरण के दौरान और मुहम्मद के सन्देश प्रसार-प्रचार के हर काम में तथा उनको "प्रेषित" घोषित किये जाने के बाद लोगों द्वारा होने वाले भारी विरोध-अत्याचार के सामने ख़दीजा उनके साथ मजबूती से खडी हुई।

 

इसी प्रोत्साहन और मदद की वजह से मुहम्मद अपने काम में सफ़ल होते गए और इस्लाम फ़ैलता गया।ख़दीजा ने इस के लिये अपना पुरा धन लगा दिया तथा समय-समय पर जब कुरैश मुसलमानों पर अत्याचार करते, ख़दीजा गुलामों को आजाद करवाती थी और मुसलमानों को खाना खिलवाती थी।

 

ख़दीजा किन किन सिफ़ात फ़ायज़ थीं इसका अंदाज़ा यूँ लगाया जा सकता है कि बनी हाशिम के सरदार, यमन के बादशाह और तायफ़ के बुज़ुर्ग तमाम माल दौलत लिये हुए आपसे शादी करने की ख़्वाहिश से आते थे और आपके इंकार के बाद ख़ाली हाथ लौटते थे। इससे साबित होता है कि आप अमीने क़ुरैश पर फ़िदा थीं।

 

ख़दीजा एक बहुत ही सफल व्यापारी थी।

कुरैश के व्यापार कारवाँ जब गर्मियों में यात्रा करने के लिए सीरिया या सर्दियों में यात्रा पर यमन के लिए एकत्र होते, तब ख़दीजा के कारवाँ को भी कुरैश के अन्य सभी व्यापारियों के कारवाँओं के साथ रखा जाता था।

ख़दीजा व्यापार कारवाँ के साथ यात्रा नहीं करती थी, बल्कि नौकरों को अपनी ओर से व्यापार करने के लिए कमीशन पर नियुक्त करती थी। इस. ५९५ में सीरिया में एक सौदे के लिए ख़दीजा को एक एजेंट की जरूरत पडी। अबू तालिब इब्न अब्द अल मुतालीब ने उसके दूर के चचेरे भाई मोहम्मद इब्न अब्दुल्ला की सिफारिश की।

 

ख़दीजा ने मुहम्मद को काम पर रखा, तब वे २५ साल के थे।ख़दीजा के रिश्तेदार खजिमह इब्न हाकिम ने ख़दीजा से कहा कि उसे मुहम्मद का कमीशन दोगुना करना होगा।

 

ख़दीजा ने अपने सेवकों, में से मय्सरह को मुहम्मद की सहायता के लिए भेजा। लौटने पर, मय्सरह ने बताया कि मुहम्मद ने बडे ही प्रामाणिकता से व्यवसाय किया है जिसके परिणामस्वरूप उन्हे दोगुना लाभ हुआ है। मय्सरह ने यह भी कहा कि वापसी यात्रा पर, मुहम्मद एक पेड़ के नीचे आराम करने के लिए बैठ गए।

 

तभी वहाँ से गुजरते हुए एक भिक्षु ने मय्सरह को बताया कि, " इस पेड़ के नीचे जो बैठा है यह कोई और नहीं है, एक नबी है। " मय्सरह ने यह भी दावा किया कि जब वह मुहम्मद के पास खड़ा था और वे सो गए, देखा कि मुहम्मद के ऊपर खड़े दो स्वर्गदूतों ने उन्हे गर्मी और सूरज की चमक से बचाने के लिए घना बादल बना दिया।

 

खदीजा से निकाह

आपकी ईमानदारी और अच्छे अखलाक से प्रभावित होकर ह्ज़रत खदीजा ने खुद ही निकाह का पैगाम भेजा।आपने चचा अबू तालिब से ज़िक्र किया तो उन्होने अनुमति दे दी।

 

आपके चचा हज़रत हम्ज़ा ने खदीजा के चचा अमर बिन सअद से रसुलअल्लाह के वली (बडे) की हैसियत से बातचीत की और 20 ऊंटनी महर (निकाह के वक्त औरत या पत्नी को दी जाने वाली राशि या जो आपकी हैसियत में हो) पर चचा अबू तालिब ने निकाह पढा।

 

हज़रते खदीजा का यह तीसरा निकाह था, पहला निकाह अतीक नामी शख्स से हुआ था जिनसे 3 बच्चे हुये। उनके इन्तिकाल (देहान्त) के बाद अबू हाला से हुआ था, फिर उनका भी इन्तेकाल हुआ आखिर में हज़रते खदीजा का निकाह आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से हुआ और आपको उम्माहतुल मोमिनीन यानी उम्मत की माँ का शर्फ़ हासिल हुआ, निकाह के समय आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आयु 25 वर्ष और खदीजा की उम्र 40 वर्ष थी।

 

जब ख़दीजा ने मोहम्मद साहब को हौसला दिया

मोहम्मद साहब एक क़ुरैश क़बीले में पैदा और बड़े हुए (ख़दीजा भी इसी कबीले में पैदा हुईं थीं) उस समय अलग-अलग क़बीले अलग-अलग देवताओं को पूजते थे

 

बहरहाल, शादी के कुछ साल बाद मोहम्मद साहब के भीतर आध्यात्मिक रुझान पैदा होने लगा. ध्यान करने के लिए वह पक्का के पहाड़ों की ओर चल दिए।

 

कहा जाता है कि मोहम्मद साहब को देवदूत के पहले पैग़ाम का इलहाम हुआ तो उन्हें समझ ही नहीं आया कि क्या किया जाए वह डर गए,वह समझ ही नहीं पाए उनके साथ यह क्या हो रहा है।

 

उन्हें जो अनुभूति हो रही थी, उसके बारे में वह समझ ही नहीं पा रहे थे, क्योंकि वे एकेश्वरवाद या अद्वैतवाद की संस्कृति में पले-बढ़े नहीं थे उन्हें वह संदर्भ बिंदु ही नहीं मिल रहा था, जहाँ से वह अपने साथ हुई घटना का विश्लेषण करें और इसे समझ पाएं।

 

मोहम्मद साहब इस पैग़ाम से काफ़ी भ्रमित हो गए थे. इसने उन्हें बेचैन कर दिया था. इस घटना की जानकारी देने वाले कुछ स्रोतों में कहा गया इसे समझना इतना आसान भी नहीं था

 

मोहम्मद साहब ने अपने इस अहसास को सिर्फ़ एक शख़्स को बताया. उस शख्स को जिन पर वह सबसे ज़्यादा विश्वास करते थे. ख़दीजा ने उनकी ये बातें सुनीं और उन्हें शाँत किया. उन्हें कहीं कहीं इस बात का अंदाजा हो रहा था कि मोहम्मद साहब के साथ कुछ अच्छा ही हुआ होगा. उन्होंने अपने पति को आश्वस्त किया. भरोसा दिलाया।ख़दीजा ने उन्होंने विश्वास दिलाया कि मोहम्मद साहब वास्तव में एक पैग़ंबर हैं।

 

ख़दीजा की पैगंबर मोहम्मद के जीवन में काफ़ी मज़बूत मौजूदगी रही है

पैग़म्बरे इस्लाम अपने तमाम उमूर में हज़रत ख़दीजा से मशविरा करते थे। हज़रत ख़दीजा उनवाने मुशाविरे पैग़म्बर  ज़िन्दगी की तमाम मुश्किलात में पैग़म्बर के साथ रहें और ज़िन्दगी के नागवार हवादिस में आपको तसल्ली बख़्शती थीं, इस्लाम की दावत के दौरान आपकी ज़िन्दगी में जो मुश्किलात और मशक़्क़तें पेश रही थीं। हज़रत खदीजा ने आप की ख़ातिर उन्हे तहम्मुल किया।

 

ख़दीजा: एक औरत थी दुनिया की पहली मुस्लिम

चूँकि ख़दीजा पहली शख्स थीं, जिन्हें मोहम्मद साहब ने अपनी अनुभूतियों के बारे में बताया था इसलिए इतिहास में उन्हें पहला मुसलमान माना जाए। एक नए धर्म में दीक्षित होने वाला पहला शख्स।

 

ख़दीजा ने मोहम्मद साहब के संदेश पर भरोसा किया और उसे कुबूल किया।ख़दीजा ने मोहम्मद साहब को हिम्मत दी कि वे अपना संदेश का प्रसार करें ।ख़दीजा के भरोसे ने उन्हें यह अहसास कराया उनकी भी कोई आवाज़ है।

 

इसी मोड़ पर उन्होंने कबीलों के सरदारों को चुनौती देनी शुरू की और सार्वजनिक रूप से यह कहना शुरू किया कि इस दुनिया में सिर्फ़ एक ही ईश्वर है और वह है अल्लाह किसी दूसरे की उपासना ईश निंदा है।

 

जब मोहम्मद साहब ने इस्लाम का प्रचार शुरू किया तो मक्का के समाज में एकेश्वरवाद का विरोध करने वाले कई लोगों ने उन्हें हाशिये पर धकेलने की कोशिश की. लेकिन उस वक़्त ख़दीजा ने उनका साथ दिया. उस दौरान उनको जिस समर्थन और संरक्षण की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी वह उन्हें खदीजा से मिला

                              

अगले दस साल तक ख़दीजा ने अपने पति और एक नए पंथ के समर्थन के लिए अपने परिवार के संपर्कों और अपनी संपत्ति का पूरा इस्तेमाल किया इस तरह उस समय एक ऐसे नए धर्म की स्थापना उस माहौल में हुई जब समाज बहु-ईश्वरवाद में विश्वास करता था।

 

हज़रत खदीजा की वफ़ात माहे रमज़ान हुई।

ख़दीजा की मृत्यु "प्रवर्तन के १० वर्ष बाद" रमजान में हो गई,यानि अप्रैल या मई ६२० .. में मुहम्मद के पैगंबर घोषित किये जाने के १० वर्ष बाद। मुहम्मद ने इस वर्ष को "दु: का वर्ष" कहा। इसी वर्ष में मुहम्मद के चाचा और रक्षक अबू तालिब भी निधन हो गया। ख़दीजा की ६५ वर्ष की आयु में मृत्यु हुई, उन्हे जन्नत-उल कब्रिस्तान में दफनाया गया,जो मक्का, सऊदी अरब में है।

 

ख़दीजा की मौत के बाद तुरंत, विरोधियों से मुहम्मद को अपने संदेश के प्रसार में बहुत भारी अत्याचारऔर उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। कहीं-कहीं उन्हें शत्रुओं से उपहास सहना पडा और लोगों ने उनके उपर पत्थर भी बरसाए।

The End

Disclaimer–Blogger has prepared this short write up with help of materials and images available on net. Images on this blog are posted to make the text interesting. The materials and images are the copy right of original writers. The copyright of these materials are with the respective owners. Blogger is thankful to original writers.







No comments:

Post a Comment