आज भी बहुत लोग ऐसे हैं, जो दौलत बेग ओल्डी के बारे में जानते नहीं। आखिर ऐसे क्या
कारण हैं, जो चीन को यही एक जगह मिली अपने राष्ट्र का झंडा गाड़ने के लिये।
गतिविधियों का मुख्य पड़ाव रहा।अब चीन से तनाव के कारण चर्चा में है। इसे सिल्क रूट
का मुख्य पड़ाव भी कहा जाता था। दौलत बेग ओल्डी में 5065 मीटर (16,614 फीट) की ऊंचाई पर एक
हवाई पट्टी भी बनाई है, जो दुनिया की सबसे ऊंची हवाई पट्टी है।
पट्टी और सैन्य शिविर के कारण डीबीओ पूरे लद्दाख में भारत की आन-बान और शान का प्रतीक
है। भारतीय सेनाओं की बढ़ती ताकत और इस क्षेत्र के सामरिक, कूटनीतिक महत्व के कारण
चीन यहां पर साजिशें बुनता रहता है।
में स्थित एक स्थान है।यहाँ भारत की एक सैनिक चौकी है । यह ऐतिहासिक रूप से भारत और
पूर्वी तुर्किस्तान के बीच के व्यापारिक मार्ग पर एक पड़ाव हुआ करता था। इस से ठीक
दक्षिण में पूर्व से पश्चिम बहने वाली चिपचप नदी गुज़रती है। दौलत बेग ओल्दी के नाम
का परिवर्णी (ऐक्रोनिम) बनाकर इसे कभी-कभी डी॰बी॰ओ॰ भी कहा जाता है।
लिये पगलाया चीन
करेंगे उन शब्दों से जो चीनी सेना के बैनर पर लिखे थे, “आप चीन की सीमा में प्रवेश
कर चुके हैं”। इसी बैनर के साथ चीन ने सरहद से 19 किलोमीटर अंदर घुस कर अपने पांच
टेंट लगाये और झंडे गाड़ दिये।
यहां से सीधा रास्ता जाता है चीन के जिनजियांग शहर में यारकंड तक। लद्दाख से शुरू होने
वाले इसी रास्ते के जरिये पुरातन काल में दोनों देशों के बीच व्यापार होता था। इस दूरस्थ
इलाके में आज भी मोबाइल फोन नहीं चलता। यहां सिर्फ सैटेलाइट फोन के जरिये ही बात की
जा सकती है।
उत्तर में एक ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्र में काराकोरम रेंज के पूर्वी बिंदु के पास है,
जो चीनी सीमा से दक्षिण में 8 किमी और अक्साई चिन लाइन के उत्तर-पश्चिम में चीन और
भारत के बीच वास्तविक नियंत्रण के 9 किमी उत्तर में स्थित है।
वो ऐतिहासिक जगह है, जहां पर भारतीय सेना का मिलिट्री बेस है। यहां पर चिपचप नदी भी
बहती है। कराकोरम रेंज में स्थित दौलत बेग इस इलाके का सबसे ठंडा इलाका है, जहां से
चीन सीमा यानी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल सिर्फ 8 किलोमीटर की दूरी पर है।
है जहां भारत के मिलिट्री बेस हैं। यहां से दक्षिण की ओर मुर्गो है, जहां बाल्टी समुदाय
के लोग रहते हैं। असल में यही यहां के स्थानीय निवासी हैं, जो याक और एप्रीकॉट पर अपना
जीवन बसर कर रहे हैं। यहां का तापमान जाड़े में -30 डिग्री तक रहता है। यहां बर्फ गिरना
आम बात है। पुराने जमाने में यहीं से व्यापार होता था, लेकिन 1962 की भारत-चीन जंग
के बाद इस रास्ते को बंद कर दिया।
2001 में लेह से अपने गंतव्य तक दौलत बेग ओल्डी में एक मोटर-योग्य सड़क बनाने की योजना
की घोषणा की। यह सड़क 2019 में बनकर तैयार हुई। 255 किलोमीटर की दूरी पर दरबूक-श्योक-डीबीओ
रोड 4,000-5,000 मीटर (13,000-16,000 फीट) की ऊंचाई पर है। यात्रा का समय छह घंटे बताया
गया है।सर्दियों में तापमान -55 C जितना कम रहता है।
बेग ओल्डी का मुगल युग (व्युत्पत्ति); मिर्जा
मोहम्मद हैदर द्वारा लिखे ग्रंथ तारीख- ए- रशीदी
अमीर व्यक्ति की मृत्यु हुई”।”दौलत बेग ओल्दी” तुर्की भाषा का एक अल्फाज़
है जिसका मतलब होता वह जगह जहां एक महान जंगज़ू की मौत हुई। ये जंगज़ू था सुल्तान सईद
खान जिनकी मौत कश्मीर फ़तह कर वापसी के दौरान इसी लद्दाख़ चोटी पर 1533 में हुई थी।कहते
हैं कि उसे अपने ख़ज़ाने के साथ यहीं दफ़ना दिया गया है लेकिन आजतक कोई उसकी क़ब्र
नहीं ढूंढ पाया है।
जहां उसने तारिख-ए-रशीदी लिखा था।
मोहम्मद हैदर द्वारा लिखे ग्रंथ तारीख ए राशिद में मिलता है। मिर्जा हैदर यारकंद के
तत्कालीन सुल्तान सैयद खान का चचेरा भाई था। सैयद सुल्तान खान ने 1530 में तिब्बत और
कश्मीर को जीतने की मुहिम शुरू की।
कि 1531 में सर्दियों के समाप्त होते ही वह सुल्तान खान के साथ मुहिम पर निकला। कारकोरम
दर्रे को पार करते हुए डीबीओ में सुल्तान बीमार हो गया। सुल्तान चंद दिनों में ठीक
हो गया। सुल्तान ने हैदर को कश्मीर फतह के लिए भेजा और खुद बाल्टिस्तान पर चढ़ाई के
लिए निकला। बाल्टिस्तान में बड़ी संख्या में लोग मारे गए।
बढ़ते हुए द्रास के राजा को हैदर ने हराया। इसके बाद वह श्रीनगर पहुंचा और श्रीनगर
के राजा ने उसकी अधीनता स्वीकारते हुए उसे अपना मेहमान भी बनाया। 1533 में वह वापस
लौटा और वसंत के मौसम में लद्दाख के आगे वह फिर सुल्तान सैयद खान से मिला।
तारिख-ए-रशीदी
दोगलत ने 1540 ई. में कश्मीर पर कब्ज़ा कर हमायूँ के प्रतिनिधि के रूप में शासन किया
था। मिर्ज़ा हैदर दोगलत बाबर का मौसेरा भाई था।तारीख़-ए-रशीदी मुग़ल बादशाह हुमायूँ
की शाही फ़ौज में कमांडर के पद पर नियुक्त मिर्ज़ा हैदर दोगलत द्वारा रची गई थी।
चिन था जम्मू कश्मीर का हिस्सा
जॉनसन ने चीन और लद्दाख के बीच किसी भी तरह के विवाद से बचने के लिए 1865 में जॉनसन
लाइन का प्रस्ताव रखा। उन्होंने अक्साई चिन को पूरी तरह जम्मू कश्मीर का हिस्सा बतया।
उस समय चीन का जियांग पर कोई कब्जा नहीं था औ जियांग की सीमा अक्साई चिन के साथ लगती
थी।
की राय का कोई औचित्य ही नहीं था। करीब 34 साल बाद 1899 में चीन ने जियांग पर कब्जा
कर लिया और फिर अक्साई चिन में भी दिलचस्पी दिखानी आरंभ कर दी। उसके बाद ब्रिटिश अधिकारी
जॉर्ज मैकेर्टिनी ने नयी सरहद तय की और ब्रिटिश शासन के मुताबिक मैकेर्टिनी रेखा कारकोरम
को सीमा मानती थी।
तरफसे यह प्रस्ताव चीन को भेजा गया। चीन ने कोईजवाब नहीं दिया और उसकी चुप्पी को चीन
की सहमति मान लिया गया।
ने इस क्षेत्र की सामरिक महत्ता को समझा और पूरे क्षेत्र को फिर अपने अधिकार में लेना
चाहा। अंग्रेजों ने पूरे क्षेत्र पर अपनी सैन्य ताकत के जरिए कब्जाकर लिया। साल
1947 में देश की आजादी के बाद भारत ने जॉनसन लाइन को चीन के साथ अपनी सीमा मान लिया,
लेकिन चीन साजिशें रचता रहा और वह समूचे अक्साई चिन को अपना इलाका बताता रहा। भारत-चीन
के बीच 1962 में हुई लड़ाई के दौरान चीन ने मैकेर्टिनी और मैक्डोनाल्ड रेखा को लांघते
हुए बड़े इलाके पर कब्जा कर लिया।
में है। इसके बाद दोनों के बीच सीमा विवाद बढ़ गया और दोनों के बीच वास्तविक नियंत्रण
रेखा तय हुई। चीन ने सीमा विवाद के पूरी तरह हल होने तक सुझाव दिया कि दोनों पक्ष वास्तविक
नियंत्रण पर अपने अपने इलाके में 20-20 किलोमीटर पीछे चले जाएं। हर बार चीन
छल करता है और वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन करता आया है।
Beg Oldi का महत्व
की हर हरकत पर भारतीय सेनाओं की नजर रहती है। कारकोरम, अक्साई चिन, जियांग, गिलगित
बाल्टिस्तान व गुलाम कश्मीर तक चीन के मंसूबों को रोकने और वास्तविक नियंत्रण रेखा
पर चीनी सेना के हर दुस्साहस का मुहंतोड़ जवाब देने में Daulat Beg Oldi भारत के लिए
तुरुप का पत्ता है।
सेना के लिए भी एक मजबूत स्तंभ है। यह मध्य एशिया के साथ भारत के जमीनी संपर्क के लिए
बहुत अहम है। कारोकोरम की पहाड़ियों के सुदूर पूर्व में स्थित डीओबी अक्साई चिन में
भारत-चीन की वास्तविक नियंत्रण रेखा से मात्र आठ किलोमीटर दूर पूर्वोत्तर में है।
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