सलीम अनारकली की प्रेमकथा फंतासी शैली में हिंदी ही नहीं, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम में भी फिल्मांकित की गई. मूक युग में भी आर. एस. चौधरी ने ‘अनारकली’ चारू राय तथा प्रफुल्ल रॉय ने ‘द लब्ज आफ ए मुग़ल प्रिंस’ का सृजन किया था |
लेकिन ‘अनारकली’ का जिक्र छिड़ते ही याद ताजा होती है बीना राय और सी.रामचंद्र के सुपरहिट संगीत से सजी ‘ये जिंदगी उसी की है, जो किसी का हो गया, प्यार ही में खो गया…’ जैसी गीतों से सजी फिल्म ‘अनारकली’ की।
Bina Rai |
कहते हैं, जिस थिएटर में ‘मुगले आजम’ चलती थी अक्सर उसके सामने वाले थिएटर में ‘अनारकली’ प्रदर्शित की जाती थी। मतलब बीना राय की अनारकली को 7 साल बाद भी खारिज भी नहीं किया जा सकता था।
मुगल-ए-आजम और अनारकली का मामला भी शोले और जय संतोषी माँ की तरह ही है. इसने मुगल-ए-आजम से कम व्यवसाय नहीं किया. मजा ये भी कि जब
1960 में मुगल-ए-आजम रिलीज हुई, तब ‘अनारकली’ को दोबारा रिलीज किया गया और तब भी इसने अच्छा व्यवसाय किया|
हालांकि गुणवत्ता में यह मुगल-ए-आजम’ के सामने कहीं भी नहीं टिकती, पर इसके मधुर संगीत और बीनाराय की शोख अदाओं की गहरी रूमानियत ने बाज़ार लूट लिया.
बीना राय की पैदाइश लाहौर में हुई थी
13 जुलाई,
1931 को। उनका असली नाम कृष्णा सरीन था। बंटवारे के समय कृष्णा सरीन का परिवार कानपुर आ गया था। कृष्णा सरीन को पढ़ाई के लिए कानपुर से लखनऊ आना पड़ा और यहां इनका दाखिला हुआ आईटी कॉलेज में।
Bina Rai (Anar Kali)& Pradeep KUMAR (Prince Sleem) |
वह मुंबई जाने की अपनी जिद पर अड़ गईं। माता-पिता के विरोध का सामना करने के लिए भूख हड़ताल दिया। आखिर में वे मान गए और बीना ने कॉन्टेस्ट के लिए अप्लाई किया। विजेता बनीं। उन्हें बतौर अभिनेत्री पहली फिल्म मिली किशोर साहू की “काली घटा”।
बीना राय अभिनीत फिल्म ‘अनारकली’ की सफलता के बाद निर्माता-निर्देशक के. आसिफ ने उन्हें अपनी फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ में अनारकली की मुख्य भूमिका देने की बात की थी, लेकिन बात नहीं बनी। बीना राय ने पता नहीं क्यों, इसके लिए मना कर दिया। बीना राय के अनारकली बनने की कहानी भी दिलचस्प है। उन दिनों के. आसिफ ने ‘मुगल-ए-आजम’ की जोर-शोर से शुरुआत की थी। पर किसी न किसी कारण से शूटिंग टलती जा रही थी।
ऐसे समय में एक छोटे फिल्मकार नन्दलाल जसवंत लाल सामने आये। उन्होंने सलीम अनारकली की कहानी को लेकर ‘अनारकली’ का निर्माण शुरू कर दिया। इस फिल्म के सलीम प्रदीप कुमार थे तथा उनकी अनारकली बीना राय बनी थीं।
इस श्वेत-श्याम फिल्म ने धूम मचा दी थी। खासतौर पर इस फिल्म में सी. रामचन्द्र का संगीत जबर्दस्त हिट हुआ था। बीना रॉय पर फिल्माया गया ‘मोहब्बत में ऐसे कदम लड़खड़ाए, जमाने ने समझा हम पी के आये…’ का जादू संगीत प्रेमियों के सिर पर चढ़ कर बोल रहा था। नशे में झूमती अनारकली के रूप में बीना राय की अदाकारी दिलकश और गजब की थी।
लोग इस एक गीत के लिए अनारकली को देखने बार-बार सिनेमा हॉल जाते थे। उस समय बीना राय के माथे पर बालों की एक घूमती लट के साथ पोस्टर काफी मशहूर हुआ था।
बीना राय ने वैसे तो अशोक कुमार, प्रेमनाथ और भारत भूषण के साथ अधिक फिल्में कीं, लेकिन उन्हें लोगों के दिल में बसाने वाली फिल्में थीं 1953 में आई ‘अनारकली’, 1960 में आई ‘घूंघट’ और 1963 में आई ‘ताजमहल’। इनमें उनके हीरो थे प्रदीप कुमार।
फिल्मों में उनकी सबसे सफल जोड़ी प्रदीप कुमार के साथ ही बनी, जो अपनी ऐतिहासिक फिल्मों में भूमिका के कारण प्रिंस अभिनेता के रूप में मशहूर थे। जिस तरह लोग ‘अनारकली’ के गीत सुनकर झूम उठते थे, उसी तरह ‘ताजमहल’ के गीत भी सदाबहार साबित हुए। ‘जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा…’, ‘जो बात तुझमें है तेरी तस्वीर में नहीं…’ और ‘पांव छू लेने दो फूलों को इनायत होगी…’ ने तो उस जमाने के प्रेमी युवाओं को मतवाला बना दिया था।
उन्हें
1960 में आई फिल्म ‘घूंघट’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर अवार्ड मिला। इसके पीछे एक छोटा सा किस्सा है। मुगल-ए-आजम
1960 में रिलीज हुई थी और उस दौर की बेहद कामयाब फिल्म थी। मधुबाला को उस साल का सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड मिलना तय माना जा रहा था। पर अवॉर्ड मिला बीना राय को फिल्म ‘घूंघट’ के लिए।
यह हैरान करने वाला फैसला था। इसके लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड कमिटी की खूब आलोचना भी हुई थी। बीना राय को ‘नागिन’ और ‘देवदास’ के प्रस्ताव भी मिले थे, मगर बीना राय ने दोनों बड़े प्रस्ताव ठुकरा दिये। बाद में ये दोनों भूमिकाएं वैजयंती माला को मिल गयीं। सभी जानते हैं कि ‘नागिन’ और ‘देवदास’ ने वैजयंतीमाला को टॉप पर पहुंचा दिया था।
Bina Rai with his husband Premnath |
इधर मधुबाला-दिलीप कुमार का मामला ठंडा पड़ चुका था। मधुबाला की दिमागी हालत अच्छी नहीं थी। जब तक वे इस प्रस्ताव पर विचार करतीं, आशिक मिजाज प्रेमनाथ का दिल बीना पर फिदा हो चुका था। वक्त के साथ पर्दे का प्यार वास्तविक जीवन में भी झलकने लगा और दोनों ने शादी कर ली।
उनके पति प्रेमनाथ की फिल्म कंपनी ने ‘शगूफा’, ‘गोलकुंडा का कैदी’ और ‘समुंदर’ का निर्माण किया। इनमें वे पति प्रेमनाथ के साथ थीं। लेकिन पति के साथ उनकी जोड़ी दर्शकों को कुछ खास पसंद नहीं आई। अपने
15 साल के करियर में उन्होंने कुल
19 फिल्में कीं।
1967 के बाद वे अभिनय से नाता तोड़कर पूरी तरह घर-गृहस्थी में रम गईं। कभी लाखों फिल्मी दर्शक के दिल पर राज करने वाली हीरोइन बीना राय अंतिम समय में मुंबई के मालाबार हिल स्थित अनीता भवन में बेटे मोंटी के साथ रहती थीं। उनके दो बेटे प्रेम किशन और कैलाश नाथ हैं। प्रेम किशन फिल्म-सीरियल निर्माण से जुड़े हैं। प्रेम किशन की बेटी आकांक्षा भी कई फिल्में में काम कर चुकी हैं। 6
दिसम्बर,
2009 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
The End
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