सरदी बहुत तेज़ है। नाद्या ने मेरी बाँह पकड़ रखी है। उसके घुंघराले बालों में बर्फ़ इस तरह जम गई है कि वे चांदनी की तरह झलकने लगे हैं। होंठों के ऊपर भी बर्फ़ की एक लकीर–सी दिखाई देने लगी है। हम एक पहाड़ी पर खड़े हुए हैं। हमारे पैरों के नीचे मैदान पर एक ढलान पसरी हुई है जिसमें सूरज की रोशनी ऎसे चमक रही है जैसे उसकी परछाई शीशे में पड़ रही हो।
हमारे पैरों के पास ही एक स्लेज पड़ी हुई है जिसकी गद्दी पर लाल कपड़ा लगा हुआ है।—चलो नाद्या, एक बार फिसलें!
—मैंने नाद्या से कहा—
सिर्फ़ एक बार! घबराओ नहीं, हमें कुछ नहीं होगा, हम ठीक–ठाक नीचे पहुँच जाएंगे।
मैं सोचता हूँ—
लेकिन तब क्या होगा, जब वह नीचे फिसलने क ख़तरा उठा लेगी! वह तो भय से मर ही जाएगी या पागल ही हो जाएगी।—मेरी बात मान लो!
—मैंने उससे कहा—
नहीं–नहीं, डरो नहीं, तुममें हिम्मत की कमी है क्या?
आख़िरकार वह मान जाती है। और मैं उसके चेहरे के भावों को पढ़ता हूँ। ऎसा लगता है जैसे मौत का ख़तरा मोल लेकर ही उसने मेरी यह बात मानी है। वह भय से सफ़ेद पड़ चुकी है और काँप रही है। मैं उसे स्लेज पर बैठाकर, उसके कंधों पर अपना हाथ रखकर उसके पीछे बैठ जाता हूँ। हम उस अथाह गहराई की ओर फिसलने लगते हैं। स्लेज गोली की तरह बड़ी तेज़ी से नीचे जा रही है।
बेहद ठंडी
हवा हमारे चेहरों
पर चोट कर रही है। हवा ऎसे चिंघाड़ रही है कि लगता
है, मानों कोई तेज़ सीटी बजा रहा हो। हवा जैसे गुस्से से हमारे बदनों को चीर रही है, वह हमारे सिर उतार लेना चाहती
है। हवा इतनी
तेज़ है कि साँस लेना भी मुश्किल है। लगता
है, मानों शैतान
हमें अपने पंजों
में जकड़कर गरजते
हुए नरक की ओर खींच रहा है। आसपास की सारी चीज़ें जैसे
एक तेज़ी से भागती हुई लकीर
में बदल गई हैं। ऎसा महसूस
होता है कि आनेवाले पल में ही हम मर जाएंगे।
—मैं धीमे से कहता हूँ।
स्लेज की गति धीरे–धीरे कम हो जाती है। हवा का गरजना और स्लेज का गूँजना अब इतना भयानक नहीं लगता। हमारे दम में दम आता है और आख़िरकार हम नीचे पहुँच जाते हैं। नाद्या अधमरी–सी हो रही है। वह सफ़ेद पड़ गई है। उसकी साँसें बहुत धीमी–धीमी चल रही हैं…
मैं उसकी स्लेज से उठने में मदद करता हूँ।
—मेरी ओर देखते हुए उसने कहा। उसकी बड़ी–बड़ी आँखों में ख़ौफ़ का साया दिखाई दे रहा है।
पर थोड़ी ही देर बाद वह सहज हो गई और मेरी ओर सवालिया निगाहों से देखने लगी। क्या उसने सचमुच वे शब्द सुने थे या उसे ऎसा बस महसूस हुआ था, सिर्फ़ हवा की गरज थी वह? मैं नाद्या के पास ही खड़ा हूँ, मैं सिगरेट पी रहा हूँ और अपने दस्ताने को ध्यान से देख रहा हूँ।
जैसे उसकी ज़िन्दगी और उसके जीवन की ख़ुशी इस बात पर निर्भर करती है। यह बात उसके लिए महत्त्वपूर्ण है, दुनिया में शायद सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण। नाद्या मुझे अपनी अधीरता भरी उदास नज़रों से ताकती है, मानों मेरे अन्दर की बात भाँपना चाहती हो। मेरे सवालों का वह कोई असंगत–सा उत्तर देती है। वह इस इन्तज़ार में है कि मैं उससे फिर वही बात शुरू करूँ। मैं
अरे, उसके प्यारे चेहरे पर ये कैसे भाव हैं? मैं देखता हूँ कि वह अपने आप से लड़ रही है, उसे मुझ से कुछ कहना है, वह कुछ पूछना चाहती है। लेकिन वह अपने ख़यालों को, अपनी भावनाओं को शब्दों के रूप में प्रकट नहीं कर पाती।
—सुनिए!
—मुझ से मुँह चुराते हुए वह कहती है।
—क्या?
—मैं पूछता हूँ।
—चलिए, एक बार फिर फिसलें।
—मैं तुम से प्यार करता हूँ, नाद्या।
क्या बात है? वे शब्द किसने कहे थे? शायद इसी ने? या हो सकता है मुझे बस ऎसा लगा हो, बस ऎसे ही वे शब्द सुनाई दिए हों?
“अच्छा लगता है“। पर स्लेज पर बैठते हुए तो वह पहले की तरह ही भय से सफ़ेद दिखाई दे रही है और काँप रही है। उसे साँस लेना भी मुश्किल हो रहा है।
—मैं तुम से प्यार करता हूँ, नाद्या!
मैं उसे उसके घर तक छोड़ने जाता हूँ। वह धीमे–धीमे क़दमों से चल रही है और इन्तज़ार कर रही है कि शायद मैं उससे कुछ कहूंगा। मैं यह नोट करता हूँ कि उसका दिल कैसे तड़प रहा है। लेकिन वह चुप रहने की कोशिश कर रही है और अपने मन की बात को अपने दिल में ही रखे हुए है। शायद वह सोच रही है।
जल्दी ही नाद्या को इन शब्दों का नशा–सा हो जाता है, वैसा ही नशा जैसा शराब या मार्फ़ीन का नशा होता है। वह अब इन शब्दों की ख़ुमारी में रहने लगी है। हालाँकि उसे पहाड़ी से नीचे फिसलने में पहले की तरह डर लगता है लेकिन अब भय और ख़तरा मौहब्बत से भरे उन शब्दों में एक नया स्वाद पैदा करते हैं जो पहले की
तरह उसके लिए एक पहेली बने हुए हैं और उसके दिल को तड़पाते हैं। उसका शक हम दो ही लोगों पर है—
मुझ पर और हवा पर। हम दोनों में से कौन उसके सामने अपनी भावना का इज़हार करता है, उसे पता नहीं। पर अब उसे इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। शराब चाहे किसी भी बर्तन से क्यों न पी जाए—
नशा तो वह उतना ही देती है। अचानक एक दिन दोपहर के समय मैं अकेला ही उस पहाड़ी पर जा पहुँचा। भीड़ के पीछे से मैंने देखा कि नाद्या उस ढलान के पास खड़ी है, उसकी आँखें मुझे ही तलाश रही हैं।
…अकेले फिसलने में हालाँकि उसे डर लगता है, बहुत ज़्यादा डर! वह्बर्फ़ की तरह सफ़ेद पड़ चुकी है, वह काँप रही है, जैसे उसे फ़ाँसी पर चढ़ाया जा रहा हो। पर वह आगे ही आगे बढ़ती जा रही है, बिना झिझके, बिना रुके।
शायद आख़िर उसने फ़ैसला कर ही लिया कि वह इस बार अकेली नीचे फिसल कर देखेगी कि “जब मैं अकेली होऊंगी तो क्या मुझे वे मीठे शब्द सुनाई देंगे या नहीं?” मैं देखता हूँ कि वह बेहद घबराई हुई भय से मुँह खोलकर स्लेज पर बैठ जाती है।
स्लेज के फिसलने की गूँज सुनाई पड़ रही है। नाद्या को वे शब्द सुनाई दिए या नहीं—
मुझे नहीं मालूम…
मैं बस यह देखता हूँ कि वह बेहद थकी हुई और कमज़ोर–सी स्लेज से उठती है। मैं उसके चेहरे पर यह पढ़ सकता हूँ कि वह ख़ुद नहीं जानती कि उसे कुछ सुनाई दिया या नहीं। नीचे फिसलते हुए उसे इतना डर लगा कि उसके लिए कुछ भी सुनना या समझना मुश्किल था।
फिर कुछ ही समय बाद वसन्त का मौसम आ गया। मार्च का महीना है…
सूरज की किरंएं पहले से अधिक गरम हो गई हैं। हमारी बर्फ़ से ढकी वह सफ़ेद पहाड़ी भी काली पड़ गई है, उसकी चमक ख़त्म हो गई है। धीरे–धीरे सारी बर्फ़ पिघल जाती है।
हवा ख़ामोश हो गई है और मैं यह शहर छोड़कर पितेरबुर्ग जाने वाला हूँ—
हो सकता है कि मैं हमेशा के लिए वहाँ चला जाऊंगा।
उसका चेहरा और उदास हो जाता है, गाल पर आँसू ढुलकने लगते हैं…
और बेचारी लड़की अपने हाथ इस तरह से आगे बढ़ाती है मानो वह उस हवा से यह प्रार्थना कर रही होकि वह एक बार फिर से उसके लिए वे शब्द दोहराए।
इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। उसका पति—
एक बड़ा अफ़सर है और उनके तीन बच्चे हैं। वह उस समय को आज भी नहीं भूल पाई है, जब हम फिसलने के लिए पहाड़ी पर जाया करते थे। हवा के वे शब्द उसे आज भी याद हैं, यह उसके जीवन की सबसे सुखद, हृदयस्पर्शी और ख़ूबसूरत याद है।